ससुरजी के साथ मेरे रंगरेलियां 03

Story Info
एक जवान बहु की अपने ससुरजि से मस्ती और चुदवाने कीएक और दास्त.
6k words
4.65
368
4

Part 3 of the 4 part series

Updated 06/10/2023
Created 08/22/2021
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एक जवान बहु की अपने ससुरजि से मस्ती और चुदवाने कीएक और दास्ताँ।

दोस्तों, में हूँ आप की चहेती हेमा, हेमा नन्दिनी मेरा नया अबुभव 'ससुरजी के साथ मेरे रंगरेलियां' का तीसरा एपिसोड के साथ आप के समक्ष। कृपया इस एपिसोड के बारे में आपके जो भी राय हो जरूर दे। यह एपिसोड भी दुसरे एपिसोड के तररह आप का मन लूभायेगी, ऐसी मेरी आशा है। आईये चलते है उस अनुभव की ओर।

आप की हेमा।

**************

एक बहु के और उसके प्यारे ससुरजी का एक मस्ती भरी अनुभव।

**************

उस दिन शनिवार था, शाम के आठ बजे थे। उस उस दोपहर को अपने कुछ ऑफिस के काम से मेरे पति तीन दिन के लिए दिल्ली गए है। उनके जाने के बाद, उस शाम मैंने अपनी ससुरजी, सासुमा और मेरी छोटी ननद गीता और बड़ी ननद संगीता को डिनर पर बुलाई। वैसे मेरे पाठकों को मालूम ही है की मेरी सासुमा मुझसे कुढ़ती है। और इसीलिए हम अलग से रहने लगे हैं। पहले तो सासुमा ना, ना करि फिर मेरे बहुत मानाने पर आने को राजी होगयी। डिनर के बाद मैंने मेरी ननद के लिए एक सिल्क की फैंसी घागरा चोळी, सासुमा और बड़ी ननद संगीता के लिए एक एक कंचि सिल्क साड़ी और ससुरजी के लिए एक Raymond का पैंट और शर्ट मटीरियल दी। साल में एक आध बार सासुमा के परिवार को कपडे रखना हमारे यहाँ रिवाज़ है।

डिनर के बाद जब वह घर के लिएनिकले तो मैं बोली "सासुमा, आज मोहन नहीं है, और मैं अकेली हूँ .. क्यों न आप् यही रुक जाते"

सासुमा नहीं मानी पर जब तक मोहन न आजाये वह ससुरजी को मेरे यहाँ रुकने का मंजूरी दी। मैं अपनी चाल सफल होने पर हंसी और ससुरजी को आंख दबायी। यह सब मेरा उन माँ बेटी को मेरे प्रेजेंट्स का फल था।

सासुमा और गीता चले गए। उनके बाद संगीता भी "हेमा मैं भी चलती हु" कहकर चली गयी। संगीता मेरी ननद है और वह मेरे से उम्र में एक साल २ साल बड़ी है। इसी लिये वह मुझे भाभि ना कह कर नाम से बुलाती है।

उन सबके जानके बाद मैंने main डोर बंद किया और हॉल का main लाइट भी ऑफ करदी। अब सिर्फ एक मद्दीम प्रकाश का बल्ब जल रहा था। मैं अपने कमरे में गयी और एक पारदर्शी नईटी पहनी और एक मरून रंग की लेसी ब्रा और पैंटी पहनी। मेरे ब्रा और पैंटी लिंगरी के अंदर से साफ दोख रहे है। ब्रा और पैंटी का लेसी मेटीरियल से मेरे उन्नत वक्ष, कड़क निपल और मेरी जांघों के बीच बुर की पत्तियां साफ दिख रही है।

मुस्कुराते हुए मै हॉल में प्रवेश करि। तब तक ससुरजी भी अपने कपडे बदल चुके है और वह अब एक लुंगी और जुब्बा पहन कर हॉल में टीवी देख रहे थे। मुझे देख ससुरजी ने अपने हाथ फैलाये। मैं हँसते हुए उनके बाँहों में समा गयी और अपने गोल उभरदार चूतड़ उनके गोद में रखी।

"साली तू जादूगरनी है... क्या जादू कर दिया अपने सासुमा पर?" मेरे गालों की काटते बोले।

"ओह बाबूजी... आप मुझे गाली दे रहे है.." मैं रूठने का बहाना कर उनके गोद से उठने का बहाना करि।

"अरी...रूठ मत मेरी रानी तूम तो मेरे दिल की रानी हो, आओ अब अपने संहासन पर बैठो, मेरा सैनिक तुम्हे सलामी देनेके लिए आतुर है" और उन्होंने मुझे अपने लंड पर खींचे।

मैं उनके गोद में फिर से अपने चूतड़ जमाते हुए उन्हें एक मनमोहक मुस्कान दी।

"तुम्हारी यह जादू भरी मुस्कान ही मुझे तुम्हारे दास (slave) बनादिए सचमें ही तू बड़ी जादूगरनी है...तुमने संगीता पर क्या जादू चलाया

"क्यों...? क्या हुआ...?" मैंने पुछा। मेरे संगीता से बात करने के बाद क्या हुआ होगा मैं समझ गयी।

"जैसे तुम्हे मालूम नहीं...." मेरे गोरे गाल को काटते बोले।

"Oh!..sssssssssiiiiiiaaa" मैं सिसकारी ली। "आप बोलेंगे तब न मुझे मालूम होगा.. है की नहीं...?" में ससुरजी के एक हाथ कॅ मेरे छाती पर खींची और उनके गाल को चूमि।

"मैंने क्या किया आप बोलियेतो सही" मैं उनकी गोद से उठती बोली। उन्होंने मुझे फिरसे अपने गोद में खींचते बोले "मेरी जादू की छड़ी.. जैसे की तुम्हे मालूम नहीं.." मेरी गलों को काटते और एक निपल को पिंच करते बोले। ससुरजी की ऐसी रोमांस से मैं बहुत ही उत्तेजित होती हूँ।

"नहीं.. मुझे नहीं मालूम..." मैं खिल खिलाकर हंसती बोली। मेरे हंसने से मेरे मस्त चूचियां मस्तानी अंदाज़ से हिलने लगे, जिन्हे पकडने के लिए ससुरजी मेरे ऊपर लपके। मैं वैसे ही हँसते हुए वहां से भागी और वह मेरे पीछे दौड़ने लगे। इन्हे उकसाने मे मुझे बहुत मज़ा आ रहा है। मैं खिल खिलाकर हँसते हुए कभी उन्हें ठेंगा दिखाती तो कभी मेरी जीभ (tongue) बहार मिकाल कर छेड़ती तो कभी कभी मेरी नाईट गाउन को खोलकर हँसते हुए तुरंत ढक लेती हुए में हॉल में भागने लगी। ससुरजी के आंखों मे वासना के डोरे तैरने लगे, मै देखा की उनका हलब्बी लंड एकदम तनकर इस्पात की छड़ी बनी है। जिस वजह से उन्हें भागने में दिक्क्त हो रही है तो उन्होंने अपनी लुंगी उतार फेंके। उनका मर्दानगी कभी जुब्बे के अंदर तो कभी बाहर झलकने लगी।

अच्छा हुआ, हाल ही में हमने पेंटहाउस में शिफ्ट करे। यह तीन बैडरूम वला घर है। जिसे हमने खरीद लिया है। जिसके लिए ससुरजी 50 % भरने के लिए हामी भरे। और हमने इस पेंटहाउस में शिफ्ट कर गए। आजू बाजू कोई और अपार्टमेंटस नहीं थे जिसकी वजह से बेवजह हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करेंगे। रात में हम सीढ़ियों के पास वाली दरवाजा बंद करते तो किसी बात का दिक्कत नहीं। कुछ भी बात करो, कितना चाहे मस्ती करो.. किसी और को डिस्टर्ब नहीं। वैसे मै सब अपर्टमेंट वालों से अच्छे सम्बन्ध मेन्टेन करती हूँ।

ऐसे ही कुछ देर भागने के बाद जब मैं मेरी कमरे की ओर भाग रही थी तो बाबूजी ने मुझे पकड़ने की कोशिश किये। लेकिन उनके हाथ मेरे नाईट गाउन को ही पकड़ सके। जैसे ही मै भाग रही थी "ssaarrrr rrrrrrrr..tup,tup" मेरी नाईट गाउन फट गयी और उसके सारे बटन्स टूट गए और मेरी गाउन मेरे बदन से नोचे गिरी। अब मैं सर्फ लेसी पैंटी और ब्रा में हूँ। तब तक में थक चुकी थी और सीधा जाकर मेरे बिस्तर पर औंधे पड़ी। मैं हांफने लगी और मेरी साँसे तेज होकर मेरा बदन जोर जोरसे हिलने लगी।

बाबूजी मेरे पीछे पीछे आये और मेरे ऊपर गिरे। उनके वजन के नीचे मैं दब गयी। "ओह बाबूजी मैं मर गयी" कहते मैं उनके नीचे चट पटाने लगी। बाबूजी मेरे मुलायम नितम्बों पर अपने दोनों हाथ फेरते बोले "...कितना चिकना चूतड़ है... बिलकुल मक्कन की गेंदे" और जी भरकर हाथ फेरते हुए दबाने लगे और दांतों से काटने लगे। कभी कभी उनके उँगलियाँ पैंटी नीचे मेरी गांड की दरार में भी घुसने लगे। अब तक मैं भी खूब गरमा गयी थी। मेरे चुदास बुर में चींटे रेंगने जैसे सुयं सुयं होने लगे और मेरी रसीली फांके ऊपर को उभरने लगे।

"नहीं बाबूजी... जब तक आप मुझे संगीता के घर में क्या हुआ बोलेंगे नहीं, मैं आप से बात करने वाली नहीं, और आप मुझे छुएंगे नहीं" में उन्हें अपने से दूर धकेली और खुद दूर हट कर रूठने का बहाना करने लगी।

"अरी मेरी बुल बुल, मेरी प्यारी गुड़िया... ऐसा भी क्या रूठना... ठीक है मैं सुनावुंगा.. लेकिन एक शर्त पर की... तुम मेरी गोद में बैठ कर सुनोगी तब .. ओके...?"

"ठीक है... अब शुरू होजायिये.. " मैं कही और मेरी मुलायम गांड को बाबूजी के गोद में रख दी।

मेरे ससुरजी ने मेरे गालों को चूमकर एक चूची पकड़ कर बोलने लगे......

".... हप्ता दस दिनों मे एक बार मैं संगीता के घर जाया करता हूँ। तुम्हारे यहाँ मेरी चुदाई के दस दिन बाद एक दिन मैं संगीता से मिलने गया था। उस दिन मैंने संगीता के आँखों में एक अजीब चमक देखि। .. उसके साथ साथ वह मटक मटक कर अपनी चूतड़ों को नचाते चलने लगी, और अपने चूचियों को अब जयादा ही दिखने लगी जैसे अनजाने में हुआ हो। में उसके इस अदा पर अचम्भा था और ख़ुशी भी हुयी।

एक शाम पांच बजे मैं उसके घर पहुंचा तो संगीता दरवाजा खोली और कही "अरे डाड आप.. आईये.. बहूत दिनों बाद आये हैं" कहती वाह इतनी जोरसे मेरे सीनेसे चिपक गयी की उसका दूध से भरी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे सीने के नीचे दबकर उसमे से दूध निकल आया, उसकी ब्लाउज और मेरे शर्ट भी गीला हो गये। संगीता के ब्लाउज मटेरियल इतना महीन था की जैसे ही उसकी ब्लाउज गीली हो गयी उसके काळा दब्बे और मोटा निप्पल साफ दिखने लगे।

मुझे उन उभारों की ओर देखता पाकर संगीता शर्मा गयी और लाज से अंदर चली गयी। उसके गाल एक दम लाल होगये। मैं अंदर जाकर सोफे पर बैठ गया। कुछ देर बाद संगीता चाय ले आयी और मुझे दी। उसने apni गीली ब्लाउज को चेंज करि, लेकिन अब वह एक डीप नैक वाली ब्लाउज पहनी, जिसकी वजह से मैं उसके उभारों के साथ साथ गहरी खायी को भी साफ देखने लगा। वह इतनी झुकी की मुझे उसके निप्पल तक दिख गए।

फिर उसने मेरी गीले शर्ट को देखि और बोली "सॉरी डैडी आपका शर्ट भी गीला होगया" कही और अपनी साड़ी के पल्लू को पानी में डुबोकर मेरे शर्ट को पोंछने लगी।

वह मेरी शर्ट को पोंछ रही थी लेकिन में उसका इरादा समझ चूका की में उसकी गोरी चूचियों का नजारा अच्छे से करूँ।

डैडी खाना खाकर जाईयेगा... मैं आपके लिए भी खाना बना रही हूँ, वह सात बजे तक आजायेंगे।" कहि और अपनी नितम्ब मटकाते किचन चली गई।

"नितम्ब मटकायी.. गांड नहीं...?" में अपने गांड को उनके लंड पर दबती पूछी।

"हेमा तू बहुत छिछोरी बनगयी हो.." मेरी नाक को मरोड़ते बोले...

'ठीक है... मुझे छिछोरापन पसंद है..आप अपनी कहानी जारी रखिये..." में उनके गाल को चूमती बोली।

उसी समय मैं समझ गया की तूने संगीता पर अपना जादू चलाया है। नहीं तो वह वैसे हरकते नहीं करती" ससुरजी मेरे नाक को खींचते बोले।

"अच्छा बाबूजी एक बात बताईये आपको किसके गेंद अच्छे है? मेरे या संगीता के...दोनों मे आप किसको ज्यादा चाहते हो...?" में भी उनके नाक को खींचती पूछी।

"ऐसे सवाल मत पूछो हेमा... जिसका उत्तर कठीन है... तुम्हारी स्पेशालिटी तुम्हे है और संगीता के.. उसके अपने..."

"ठीक है.. नहीं पूछूँगी.. फिर क्या हुआ..?" में उनके दूसरी हाथ को मेरे जांघों के बीच लेति पूछी। उनका एक हाथ पहले से ही मेरे गेंदों से खिलवाड़ कर रहे है।

खाना बनाने के बाद....ससुरजी फिर से बोलने लगे..... उसने अपने हाथ साड़ी से पोंछते मेरे पास आकर बैठ गयी। उस समय मैं उसके एक साल के बेटे को अपने गोद लेकर उसके साथ खेल रहा हूँ।

संगीता मेरे साइड में बैठते अपने बेटे देख कर उस से पूछी "अरे मुन्ना नाना के गोद में खेल रहे हो...अरे यह तो मेरी जगह है, मैं भी बचपन में इसी गोद में खेली थी " उसने मुझे देखते बच्चे से कही, और आगे झुक कर अपने लाडले को चूमि।

संगीता के बातें सुनकर उसे क्या चाहिए मैं समझ गया और मेरे पोते को देखते कहा "अरे मुन्ना... यह जगह अभी भी तेरी माँ का ही है, वह अभी भी अपने खेल के मैदान मे बैठकर खेल सकती है" मैं अर्थ पूरित नजरोंसे संगीता को देख कर कहा।

"सच डैडी..क्या मैं आपके गोद में बैठ सकती हूँ...?" उसके स्वर में जोश और उत्तेजना में पूछी।

"हाँ... हाँ... क्यों नहीं...?" जैसे हि मैं यह कहा संगीता अपने बच्चे को हाथ में लेकर अपनी भरी भरी नितम्बों को मेरी गोद में रख कर बैठ गयी।

वैसे भी मैं उनके हरकतों से उत्तेजित हूँ और ऊपर से उसने अपने दूध भरे मुम्मे दिखाकर और उत्तेजित करती अब अपनी चिकनी गांड रखकर बैठ गयी तो मेरा अप होगया। फिर उसने अपने बेटे क देखते मेरे गले में अपने हाथ को डालकर "मेरे डैडी' कही और मेरे गाल को चूमि। यह देखकर बच्चा भी मेरे गले में अपने नंन्हे हाथ डालकर मुझे चूमा। यह खेल पांच छह मिनिट तक चला। मेरा जोश बढ़ने का कारण अब मैं अपने आपको संभल नहीं पा रहा हूँ।

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एक दिन मैं संगीता के घर गया था। मुझे हाल में वह नही दिखी, शायद वह बैडरूम में थी। "बेटी संगीता..." मैंने उसे पुकारा "यहाँ.. बैडरूम में, यहाँ आजाओ डैडी" वह पुकारी तो मैं अंदर गया। वाआआव... जो मैने देखा, देखते ही मेरा तनकर खड़ा होगया। कमर के नीचे वह सिर्फ पेटीकोट में थी और ऊपर वह ब्रा और ब्लाउज पहनी। दोनों भि काले रंग के है। दोनों ही बैक ओपेन के थे और दोनोंके हि हुक्स नहीं लगे है।

आईने में से वह मुझे देखते ही बोली "ओह डैडी... प्लीज आप मेरा यह हुक्स लगा देंगे " कह कर वह मेरी तरफ पीट फेरी। मैं उसके पीछे ठहर कर हुक्स लगा रहा हूँ। वह थोडासा पीछे को हठी। वह हटते हि उसके गोल गोल नितम्ब मेरे डंडे को किस करने लगी। मैंने भी अपना उस पर रगड़ते मेरे डंडे को थोड़ा जोरसे दबाया। उसने मुझे आईने मे से देख कर एक मनमोहन मुस्कान दी।

"कहाँ जाने की सिंगार हो रही है?" मेरे पूछने पर वह बोली, वह एक पार्टी में जा रही है और उसने साड़ी पहन कर मुझे, उसे उनके पार्टी जे जगह ड्रॉप करने को बोली। स्कूटर पर पीछे बैठ अपने हाथों की मरे कमर के गिर्द लपेटी जिस से उसका हथेली सीधा मेरे जांघों के बीच उभार पर पड़ी। उसके दूध से भरे घाटीली दुद्दू मेरे पीठ पर रगड़ कर रही थी। उसे पार्टी के यहाँ छोड़ कर मैं घर आगया लेकिंn में सो नहीं पाया। सारी रात मैं उसी के बारे में सोचता रहा और उसकी शरीर की नजाकत के बारे में ही सोचता रहा।

"आप बहुत मतलबि है बाबूजी.. आपने अपने बेटी के बारे में सोचते रहे लेकिन बहु के बारे में नहीं सोचे.. और कहते हो की मैं तुम्हारी प्यारी गुड़िया हूँ.."मैं रूठने का बहाना कर ससुरजी के गोद से उठने की कोशिश की।

"मेरी प्यारी गुड़िया.. मेरी जान रूठ मत, मैं तुम्हारे बारे में सोचे बिना रह सकता हूँ क्या? सच पूछो तो मैं, संगीता के बारे में जो सपोर्ट तुमने दिए उसी के बारे में सोच रहा था तुम्हारे सपोर्ट के बिना मेरे प्रति संगीता का यह व्यवहार ऐसा नहीं हो सकता। तुमने संगीता से क्या बात की यह मैं नहीं जानता लेकिन तुम्हारे ही बातों का जादू का कमाल है जो उसके ऐसे व्यवहार का.. तुम तो मेरे डार्लिंग हो डिअर.... और प्लीज अब कभी भी मुझसे मत रूठो.. नहीं तो में रो लूंगा..." और ससुरजि ने सच में ही रुआंसे हो गये।

"ओह सॉरी बाबूजी... मेरा मतलब आप को दुःख पहुँचाना नहीं है .... मुझे मालूम है आप मुझे कितना प्यार करते है, दुलारते है.. मैं तो वैसे ही एक मजाक के तौर पर कहा है... आपसे रूठना मुझे अच्छा लगता है..." कह कर मैंने उन्हें जोरसे अपने से भींची और उनके होठों को चूमि, फिर बोली "चलो अब बाद में क्या हुआ सुनाओ" मैं तनाव को कम करते पूछी।

...... उस घटना के तीसरे दिन रविवार था। ससुरजि ने फिर कहना शुरू किया। ..... संगीता ने हमें लंच के लिए बुलाई। हमेश की तरह तुम्हारे सासुमा ने आने से इंकार कर दी और मैं अकेला ही वहां पहुंचा। उस समय कोई ग्यारह बजे थे। मालूम होता है, संगीता ने हेडबात (head bath) लिया है, पानी के बूंदे अभी भी उनके लम्बे बालों से टपक रहे है और उसके साड़ी और ब्लाउज को गीला बनारहे है। हल्दी चन्दन लगाया हुआ उसका चेहरा के साथ, बहुत ही प्यारी लग रही थी वह।

मैं मेरे दामाद और उनके अन्य सदस्यों से बातें कर कर रहा था। इतने में संगीता मेरे लिए चाय बना लायी। वह किचन में बिजी थि लंच तैयार करने मे। कोई एक बजेके ख़राब हमने लंच किये और उसके एक घंटे के बाद हरीश ड्यूटी पर चला गया। यह रेलवे में TTE है। चार दिन तक वह नहीं आने वाला था। इसके तुरंत बाद हरीश के घर के दूसरे सदस्य भी चले गए।

कोई ढाई बजेके करीब मैं और संगीता हल में बैठकर बातें कर रहे हे। हाल में मैं सोफे पर बैठा था और संगीता मेरे सामने नीचे कारपेट पर बैठ कर अपने बच्चे को दूध पिला रहि थी। उसके एक साइड का ब्लाउज ऊपर उठा है और अंदर ब्रा नहीं थी। मैं, मेरी बेटी संगीता के गोरे मुलायम चूची को एकटक देख रहा था। वह इतनी गोरी थी की उस चूचीपर के नीले नसे भी दिख रहे हे। बच्चा कभी कभी अपने मुहं से चूचि निकल देता तो संगीता के मोठे काळा निप्पल भी दिख जाता थे। जिनपर सफ़ेद दूध के बूंदे होती थी। वाह क्या नजारा था वह। में उत्तेजित होने लगा।

फिर संगीता ने बच्चे को दूसरी चूचि के तरफ करि। अब उसके दोनों दुद्दुऐं नंगे है। दूध पीते पीते, कभी कभी बच्चा अपनी मम्मी के दूध से खेल रहा था। एक को मुहं में चुभला रहा था दूसरे को अपने नंन्हे हाथों से थप थपा रहा था। फिर दस पन्दरह मिनिट बाद बच्चा मम्मी के गोद में ही सो गया। अपने ब्लौज को नीचे खींचे बिना ही संगीता ने बच्चे को बाजू में लिटादी और मेरी ओर देखि।

में अभी भी मेरी बेटी के नंगे चूचियों को ललचाये निगाहों से देख रहा हूँ और मेरे लुंगी के अंदर हलचल होने लगी। वह तब तक आधा कड़क हो चुकी थी और उसका उभार जांघों के बीच मेरे लुंगी के ऊपर दिखने लगी।

वास्तव में मैं तन्द्रा में था। "हे डैडी ऐसे घूर के क्या देख रहे हो....? बेटी का दुद्दू को चखना चाहोंगे...?" संगीता के इस बात से मेरी तन्द्रा टूटी। मैं उसे देखा। वह अपनी स्तन को एक हाथ में लेकर मुझे दिखते एक बार जोरसे निचोड़ी। वक्ष से दूध फोन्टेन की फुव्वारे की जी तरह छूटी। बह क्या सीन था...अब मैं अपने आपको संभाल नहीं सका। सगीता के व्यव्हार, उसका छिछोरापन के साथ मुस्कुराना इस से में समझ गया की संगीता को मेरे इरादों के बारे में मालूम है और वह यह चाहती भी है।

धड़कते दिल से मैं अपने घुटनों और पंजों के बल रेंग कर संगीत एके पास गया और उसके स्तन की निहारने लगा। उसने मुझे अपने गोद में खींचकर सुलाई, मेरे सर की अपने घुटने पर रख उस घटने को ऊपर उठायी। इस से संगीता के मोटा, काला निप्पल मेरे मुहं के सामने है। चाहत के साथ अपनी जीभ को अपने होंठोंपर फेरा। संगीता ने अपने बायाँ हाथ मेरे सर नीचे रख उसे ऊपर उठायी और दयाँ हाथ से अपना स्तन पकड़ कर उसके निपल मेरे होंठों पर रगड़ी।

आतुरता के साथ मैंने उसके कड़क चुचुक को मुहं में लिया और चूसने लगा। संगीता का मीठा, पतला दूध मेरे मुहं में बहने लगा जिसे मैं चाव के साथ मेरे गले के नीचे उतारा। वाह.. क्या स्वादिष्ट थी उसके दूध। उसके चुचुक को चूसते दूसरे बूब पर हाथ फेर रहा था। उसके चूची मक्कन के गेंद की तरह मुलायम है। तब तक संगीता ने मेरे शर्ट के सारे घुंडियां खोल डाली और मेरे छाती के बालों में हाथ फेरने लगी। कभी कभी एकाध बाल को खींच भी रही थी। ओह गॉड कितना टिंगलिंग सेंसटिव था... उफ़्फ़्फ़ो... नीचे मेरा मुस्तनड कड़क होकर तन गया।

संगीता के एक हाथ मेरे छाती पर फेरते, फेरते मेरे एक निपल पर ऊँगली फेरी, निपल के गिर्द काळा दब्बे पर ऊँगली घुमाई और चुचुक को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच पकड़ी और धीरेसे मसली। वह उसे मसलते पिंच करि तो मेरे सारे बदन मे करंट दौड़ गयी।और मेरे शरीर में हलकासा कंपन हुआ।

संगीता ने मुझे नीचे सुलाई और अपना दूसरा चूची मेरे मुहं में दी। पहले जैसे ही जोश में दूसरा भी चूस रहा था। जैसे जैसे में उसकी बूब्स की चूस रहा था संगीता ख़ुशी के मारे मरे चीखते कही "aaahhh dadddddyyyy aaahhh.. oh!ssshhh...चूसो ... चूसो अपनी बेटी के दूध पियो आआह्ह्ह्ह.. आपका खुरदरी जीभ मेरे स्तनों पर अपना जादू दिखा रहे है.... मेरे सारे शरीर में आग लगा रही है। कैसी है बेटी दूध टेस्टी है न... आपको पसंद आयी की नहीं...?"

"ओह ... संगीता ... मेरी प्यारी... कितनि सुन्दर हो तुम.... ओह मैं गॉड.. बिलकुल तुम्हारी माँ की तरह जब तुम छोटी थी, तब मैने तुम्हारे माँ के स्तन भी चूसे थे और उसका दूध पीता था.. उसके बाद अब फिर से स्तन का दूधः चखने को मिली है... आह...कितना मीठा है तुम्हारे दूध" में बोला और उसकी चूचिको चूसता रहा।

"क्यों। .. डैडी... अपने छोटी मम्मी के दूध नहीं पीये थे क्या... जब गीता, मेरी बहन का जन्म हुआ था...?" संगीता पूछी।

कहाँ बेटी... तुम्हारी छोटी मम्मी ने मुझे ऐसे अवसर ही नहीं दिया... पीना तो छोड़ो.. . छूने तक नहीं दी।" में एक आह भरते बोला।

तब तक मेरा लंड फुल ताव में आ चूका था और एक इस्पात की चढ़ बन कर मेरी लुंगी से बहार झाँकने लगी। संगीता ने मेरे छाती से अपना हाथ निकाल कर

मेरी लुंगी साइड को हटाई, मेरे नंगे जांघ पर फेरने लगी। मेरे जांघ पर अपनी ऊँगली से सर्कल्स बनाने लगी जिससे मुझे औसा लगा की हजारों चीटियाँ मेरे शरीर पर रेंग रहे हो। संगीता के हाथो के मुलायम स्पर्श से मेरे सारे शरीर में आग सी लगी और मेरा नन्हा और तन गया।

में अभी भी उसके एक वक्ष की चुभलाते मेरा एक हाथ उसके पेट प्र रेंगने लगा। उसका पेट और पेडू कितन मुलायम थे। उसके बदन से चन्दन के खुशबू आ रही थी। मैंने मेरे एक ऊँगली उसके गहरी नाभि में देकर घुमाया। "OH! Dadddyyyy ऊँगली नहीं आह..." वह सीत्कार करि।

"क्यों....? क्या हुआ....?" मैं उसकी आँखों में देखता पुछा।

"जाओ डैडी.... जैसे आपको कुछ मालूम ही नहीं..." वह शर्मा गयी। उसके गाल लाज से लाल हो गये।

"खुजली हो रही है...?" मैं शरारती से पूछा।

वह और ज्यादा शर्मा गयी और उसके गोरे गाल और लाल हो गए। "डैडी आपको मालूम ही है तो क्यों पूछते हो...?" शर्माते बोली।

मैंने उसके सर की नीचे खींच उसके कान में फूस फुसाया "बुर में खुजली हो रही ना। ...?"

"छी ..छी। ... डैडी... आप कितने गंदे है...." और अपने चेहरे को मेरे छाती में छुपाली और मेरे लंड को कच कचाकर जोरसे भींची और बोली "ओओओह्ह्ह्हह .. "डैडी आपका शिवलिंग तो तैयार है। अब तो इसे दूध से अभिषेक करना ही होगा" (OHHHH! DADDDYYY AAPKA SHIV LING THO THAYYAR HAI.. AB THO ISE DOODH SE ABHISHEK KARNA HI HOGA")

मेरी बेटी संगीता ने मुझे नीचे कारपेट पर सीधा लिटाई और मेरे लुंगी को मेरे शरीर से अलग करदी और शर्ट को ऊपर करि। अब मैं कमर के नीचे पूरा नंगा हूँ और मेरा लिंग सीधा छत को देख रही है। संगीता मेरे जांघों के तरफ सरक आयी, अपने घुटनो पर झुक कर अपनी एक चूचि को मेरे लण्ड के सुपाड़े पर रख एक हाथ से अपनी एक चूची को दबायी। दूध उसके बूब से निकला और धार बनकर मेरे लिंग को अभिषेक करने लगी। ऊपर सुपडे से लेकर नीचे मेरे वृषणों तक बहकर नीचे कार्पेट को गीली करने लगी। फिर उसने दूसरी चूची से व्वयसे ही किया और फिर झुक कर लिंग को अपने मुहं में लेकर सारा दूध को चाटने लगी। "GGrrrrraaahhh,... oohssss... aahh" मेरे मुहं से एक मद भरी सीत्कार निकल गयी।

"क्या हुआ daddddddyyyyy?"

"साली तुझे मालूम क्या...क्या हुआ.... " कहता उसके सर को पकड़ कर उसके मुहं में मेरा पूरा लौड़ा घसा दिया" और कहा "चल अब मुझे पार्वती देवी के भग का दर्शन दे, तूने तो शिवलिंग का दर्शन कर लिया..."

मेरे भगवान का दर्शन मैंने कर लिया। आप अगर भगवती का दर्शन करना चाहे तो खुद करलो" संगीता मुझे उकसा रही थी.... उसके इस तरह खेलना मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। मैंने उसे झट अपने ऊपर खींच लिया और उसका साड़ी खोलने की कोशिस की, वह खिल खिलाकर हँसते मुझे ऐसा करने से प्रतिरोध कर रही थी। मैंने जोर से उसकी साड़ी खींच दी। अब संगीता के शरीर पर पेटीकोट और स्तनों के ऊपर ब्लाउज है। एक अजीब मादक नशा हमदोनों पर छा गया। फिर मैंने उसका पेटीकोट भी निकाल फेंका। अब हम 69 पोजीशन में थे।

मैंने संगीता के पैर अपने दोनों तरफ ले लिया और उसकी जाँघों में सर रख दिया। दोपहर तीन बजे की उजाले में संगीता की बुर बहुत प्यारी लग यही थी। उसकी पत्तियां (Cuntlips) थिक हैं। खूब उबरी चूत और छोटे छोटे झांट एकदम मस्त थी। मैंने अपना खुरदरी जीभ उसकी पत्तियों पर नीचे से ऊपर तक घुमाया। "sssssiiiiiissssyeeeeeii" वह मजे से चिल्लायी। मेरे नथुनों मे उसका चूत रस का गहरा गंध समागई। अपने नाक को उसकी चूत पर रगड्ते मेरी जीभ को अंदर घुसेड़ा। वह ख़ुशी से एक बार फिर चीत्कार करि।

मैं संगीता के चूत को चूसता, चाटता और चुभलाता रहा। संगीता ने अपनी मुट्ठी मेरे लौड़े के गिर्द लपेटी और उसे ऊपर नीचे हिलाते बोली "बाबा.. आपका तो बहुत मोटा है...." और उसे प्यार से चूमि।

"क्यों.... तेरे पतिका इतना नहीं है...? अब तक तो अपनी पति से कमरे में चुदवाती ऐसी चीख रही थी।...." में उसके नितम्बों को दबाता पुछा।

संगीता ने सर घुमाकर मझे देखि.... और बोली "जाओ पापा.. आप बड़े वो है.... मैं क्या करूँ ड्यूटी पर जाने से पहले वेह हमेशा एक शो डालते है...." और फिर अपने मुहं से मेरे लंड को जकड़ी और चाटने लगी। में उसकी बुर को चाटते हुए उसकी मांसल नितम्बों को चौड़ा किया तो उसकी गोरी संकरी गांड का छेद दिखी। मैंने अपने नोकीले जीभ को वहां रख कर poke तो उसकी गांड धुप धूपने लगी।

"Oh Daddddyyyy.ooooohhhh oh!... अब मुझे बर्दश्त नहीं होता.. देखो अपनी बेटी की चूत (CHOOT) कैसे बाबा के लंड (LUND) के लिए तरस रही है... अपनी बेटी पर तरस खाओ और उसकी चूत की प्यास बुझाओ ...." और वह मेरे ऊपर से उतरकर, नीचे कारपेट पर चित लेट गयी, अपना लहंगा ऊपर कमर तक उठाकर जाँघों की फैलाई। अपनी रसीले और रस रिसते बुर को चौड़ा कर बोली "आजाओ डैडी आपकी बेटी के स्वर्ग द्धार खुल गए हैं.... अंदर प्रवेश करो और अपनी बेटी को पूरा आनंद दो..." उसने अपने उँगलियों से दोनों पुतियों को खोलकर दिखाई। उसकी बुर की लालिमा से भर कर गीला गीला है।

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