एक नौजवान के कारनामे 136

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वीर्यदान के लिए संकल्प​
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Part 136 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

VOLUME II

विवाह

CHAPTER-1

PART 58

वीर्यदान के लिए संकल्प​

मैं त्यार हो कर भाई महाराज के पास गया तो वहाँ पर मेरी माँ, पिताजी और भाई महाराज और राजमाता के साथ हमारे कुलगुरु भी थे और वह बोले हमे दादागुरु महर्षि अमर मुनि जी के पास जा कर उनसे विवाह से पहले आशिर्बाद लेना है।

फिर हम सब दादागुरु महर्षि अमर मुनि जी के पास गए, उन्हें प्रणाम कर उनसे आशीर्वाद लिया और उन्होंने कहा अब कुमार (मुझे) गर्भादाब के लिए संकल्प लेना होगा और इसीलिए नयी रानी जिसके साथ भाई महाराज का विवाह हो रहा है उसका गर्भदान मेरे साथ होगा अन्यथा ये गर्भदान निष्फल रहेगा।

मेरी माँ को विश्वास नहीं हो रहा था कि महृषि ये क्या कह रही हैं। ये बात मेरी माता जी को अभी तक बताई नहीं गयी थी उन्होंने पिताजी की और देखा तो उन्होंने शांत रहने का संकेत दिया तो मात जी चुप रही। फिर कुल गुरु ने विधिवत मुझसे गर्भादाब के लिए संकल्प करवाया और फिर बोला की अब गर्भदान का कार्य पूजा समझ कर आरम्भ करूँ और शुद्ध ह्रदय से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करने से ये कार्य पवित्र रहेगा और उत्तम फल प्रदान करेगा l

उसके बाद जब हम वापिस आ गए तो मेरी माँ राज माता के पास गयी और बोली राजमाता जी ये कार्य कैसे होगा तो राजमाता ने मेरी माँ को गार्वधन की ने पूरी विधि और नियम विस्तार से समझाये। इन्हीं नियमो का पालन महाराज को, मेरे को उनकी सभी रानियों को और उस राजकुमारी को भी करना होगा जिससे महाराज का विवाह होना हैं।

और फिर राजमाता बोली देवरानी मुझे पता था कि मेरा बेटा नपुंसक था। फिर भी मैंने उसके कई विवाह करवाए और हर तरह का इलाज करवाया और जूनियर रानियों को भी चोदने की अनुमति दी ताकि शायद कोई चमत्कार हो जाए. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। वंश आगे बढ़ाने के लिए संतान आवश्यक है तो फिर कुलगुरु ने गर्भाधान का उपाय सुझाया। मैंने निश्चय किया की कोई ऐसा व्यक्ति गर्भादान करेगा जिसके खून में शाही वंश का अंश हो। वह विश्वसनीय और सक्षम होना चाहिए और फिर परिवार की वंशवली का निरीक्षण करने से देवर जी, देवरानी आपका और कुमार के बारे में पता चला। देवर जी और आप तो वस्तुता परिवार के ही हैं और आपका युवा बेटा इस के लिए बिलकुल सही विकल्प है। मैंने गुप्तचरों की मदद से आप सबका पता लगवाया और पता चला तुम्हारा पुत्र दीपक लंबा है, सुन्दर है, बुद्धिमान है उसके कंधे चौड़े हैं और मजबूत माँसपेशियाँ है। वह राजसी नियंत्रण के साथ समझदारी भरी बाते करता है और दादागुरु महर्षि अमर मुनि जी के आशीर्वाद से इस प्रयोग द्वारा उत्तम संताने प्राप्त होंगी।

तो मेरी माँ बोली बिलकुल ठीक है उसे देख कर मुझे भी गर्व की अनुभूति होती है।

राजमाता बोली यह आसान नहीं होने वाला था। महारानी और कुमार दोनों को इस बात के लिए सहमत करना पड़ा। भाई महाराज की पहली रानी एक शक्तिशाली सहयोगी और राजनेता की बेटी थी; अगर वह मना करती तो कुछ भी नहीं किया जा सकता था और अगर कुमार ने (आपके पुत्र) ने अपने अपके भाई की पत्नी के संग सोने से इन्कार कर दिया तो कैसे होगा। इसलिए मैंने कुलगुरु की सलाह से दादागुरु की मदद ली, जिन्हे मना करने की हिम्मत किसी ने नहीं की।

फिर राजमाता ने मेरी माँ से कहा कि दादागुरु के निर्देशानुसार यह विवाह संपन्न हो रहा है और रानी के साथ पहले सम्भोग के लिए तीसरी रात को एक शुभ समय चुना गया है।

मेरी माँ ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से निगरानी करेंगी कि यह काम सीमा के भीतर रहे। वह भावनाओं और यौन अन्वेषण की कोई जटिलता नहीं चाहती थी। मेरी अभी तक शादी नहीं हुई थी और वह चाहती थी कि गर्भाधान चिकित्सकीय रूप से संभाला जाए।

मेरी माँ ने कहा कि इस काम में अंतरंगता या सुस्ती के लिए कोई जगह नहीं थी। उनकी उपस्थिति यही सुनिश्चित करेगी।

मेरी माँ राजमाता से बोली मैं ये सुनिश्चित करूंगी कि मैं वह चोदने के दौरान न तो स्‍तन चूसेगा, न कोई दुलार होगा, न कोई चुम्बन होगा बीएस बाद केवल गर्भाधान किया जाएगा।

राजमाता बोली देवरानी ये कैसे होगा? मैं ये सोच नहीं सकती की बिना छुए, महसूस किए, चूमे और प्यार किए बिना ये काम कैसे होगा?

राजमाता सोच रही थी वह स्वयं अपने अंतिम चालीसवें वर्ष में थी और उसके पति महाराज की असामयिक मृत्यु ने उसकी इच्छाओं अधूरी रह गयी थी। रात में खाली बिस्तर में वह अपने पति को याद करती रहती थी लेकिन राज्य में राजमाता की उच्च स्थिति के कारण राजमाता ने वह खुद को सदैव ही विवेक से संचालित किया था।

मेरी माँ ने कहा कि मैं अपने बेटे से कहूंगी कि वह इसे विशेष अवसर के रूप में मत ले। ये एक कार्य है जो उसे करना। और अपने सारे अरमान और योजनाओं क को पूरे करने के लिए अपने वास्तविक विवाह के बाद अपनी सुहाग रात का इन्तजार करे जो की अब बहुत दूर नहीं है ।

मेरी माँ राजमाता की प्रतिक्रिया देखने के लिए इंतजार कर रही थीं और सोच रही थी वह प्रतिक्रिया में क्या कहेंगी।

कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया।

बेशक, उसे स्नान करने और उसके साथ इस मिलन के लिए विशेष रूप से तैयार होने की आवश्यकता है। मुझे पता है कि वह जानता है कि एक महिला को कैसे चोदना है, आखिरकार वह एक डॉक्टर है।

माता जी बोली राजमाता मैं कुमार से कहूँगी कि तुम महारानी को जब चोदोगे तो इस तरह से चोदोगे जैसे हैसमैथुन करते हैं । तुम इस नयी रानी को जब चोदोगे जब यही महसूस करना कि तुममें वैसी ही अनुभूति हो रही है जैसी हस्तमैथुन करते समय अनुभव होता है। जब आप अपने चरम पर पहुँचोगे, तो आप और भी तेजी और जोर से चुदाई करोगे । इस गर्भधान की प्रक्रिया को लंबी करने के लिए आपका धीमा नहीं होना है आप जोर से चुदाई करते हुए आप कामोन्माद में स्खलन कर वीर्य उत्सर्जन करेंगे और अपने बीज को आगे बढ़ाएंगे और जब आप वीर्य उत्सर्जन करेंगे तो आप खुद को उसके अंदर गहरे तक समाए रखेंगे। प्रत्येक उत्सर्जन में आपको को उसके गर्भ में छिड़काव करना है। उत्सर्जन के बीच वापस आप लिंग को खींच लें, ताकि आप अधिक से अधिक बीज निकाल सकें।

इस तरह से कुमार व रनिया आपस में कोई भी शरीरीक या भावनात्मनक जुड़ाव या आकर्षण महसूस नहीं करेंगे राजमाता मुझे आशा है कि आप समझ रही हैं? "

तभी उस कमरे में पिताजी, भाई महाराज और मैंने प्रवेश किया । तो मैंने और भाई महाराज ने माताओ को प्रणम्म किया और पिताजी ने राजमाता को प्रणाम किया ।

तो माताजी ने पिताजी और मुझ से कहा की आपने मुझे ये राज की बात पहले क्यों नहीं बतायी तो पिताजी बोले महृषि ने इस प्रस्ताव के चर्चा किसी से भी करने के लिए निषेद किया था और जब मैंने आपके लिए आज्ञा मांगी थी की आपको तो बताना हो पड़ेगा तो उन्होंने आज्ञा दी थी की वह समय आने पर स्वयं बता देंगे। इसलिए आप बिलकुल नाराज ना हो इसे छुपाने का हमारा कोई इरादा नहीं था ।

फिर महराज बोले काकी (चाची) जी आपको उस पौराणिक कथा का पता ही है जिसमे राजा निस्संतान ही असमय स्वर्ग सिधार गया तो राजमाता ने अपने विवाह पूर्व पुत्र जो की एक महर्षि थे उनके पास अपने पुत्रवधुओं को गर्भधान के लिए भेजा । गर्भधान की दौरान बड़ी रानी ने भय से आँखे बंद कर ली और इस युति से जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह नेत्रहीन था फिर दूसरी रानी को भेजा गया तो वह डर-सी पीली हो गयी इस कारण जो पुत्र हुआ वह भी रोगी हुआ । तीसरे बार बड़ी रानी ने अपनी जगह दासी को भेज दिया और उसने पूरा आंनद लेते हुए गर्भधान करवाया तो स्वस्थ पुत्र उत्पन्न हुआ । फिर दासी पुत्र को तो राजभार नहीं दिया जा सकता था इसी कारण फिर उस परिवार में आगे जाकर एक भयंकर महायुद्ध हुआ। हम चाहते हैं ऐसा कुछ हमारे परिवार में न हो हमारे परिवार में आगे जो भी वंशज हो वह सभी स्वस्थ हो । इसलिए हमने अपनी वरिष्ठ रानी, नयो होने वाली दुल्हन औरतीन अन्य रानिया कुल मिला कर पांचो रानियों और आपके पुत्र कुमार दीपक सबसे सहमति ले ली है ।

गर्भधान के नियम के अनुसार गर्भधान के लिए पति का छोटे भाई, या चचेरे भाई अपने बड़ों की अनुमति से संतान को पाने के उद्देश्य से अपने बड़े भाई की निःसंतान पत्नी के पास जा सकता है, परिवार में एक पुत्र और एक उत्तराधिकारी पैदा करने के लिए बहनोई या चचेरे भाई या एक ही गोत्र के व्यक्ति गर्भ धारण करने तक उस निस्संतान पुरुष की पत्नी के साथ संभोग भी कर सकते हैं। इस लिए कुमार मेरी प्रत्येक रानी के साथ तब तक सम्भोग करेगा जब तक वह गर्भवती न हो जाए ।

आप बिलकुल चिंता मत करे प्रभु की कृपा से और महृषि के आशीर्वाद से सब कुशल होगा और हमारे ये मनोरथ अवश्य पूरा होगा । अब कुमार को गर्भादान के मुहूर्त तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा ।

वैसे तो भाई महाराज के स्वसुर और मेरे होने वाले ससुर घनिष्ठ मित्र थे परन्तु चुकी मेरा विवाह राजकुमारी ज्योस्ना के साथ भाई महाराज के विवाह के एक सप्ताह के बाद ही होना था इसलिए वह लोग विवाह की तयारियो में व्यस्त थे इस कारण से भाई महाराज के विवाह में उनके परिवार से कोई भी सम्मिलित नहीं हुआ । उनके राज्य के महामंत्री क्षमा याचना के साथ उपस्थित हुए थे और उनके साथ मेरे विवाह के कार्यक्रम पर भाई महाराज, राजमाता, पिताजी और माताजी की परस्पर चर्चा हुई थी ।

तो फिर नियत समय पर महाराज का विवाह हो गया और फिर सबने एक बार फिर महर्षि से आशीर्वाद लिया और हम दुल्हन की डोली को लेकर भाई महाराज की राजधानी में लौट आये ।

भाई महाराज के विवाह के साथ उनके विवाह से पहले वाला अध्याय यहीं समाप्त होता है अब इसी क्रम में दूसरा अध्याय होगा "नयी भाभी की सुहागरात "।

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार

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