विपिन भईया ने सिखाये यौन संबंध

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विपिन भईया ने सिखाये यौन संबंधों में समझौते के लाभ | Gay Boy
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मैं अपने जीवन चक्र में धीमे धीमे बढ़ रहा था, विद्यालय की शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् मेरे पिताजी जी ने उच्चशिक्षा के लिए हमारे ग्राम के समीप एक उपनगर में मेरा एक महाविद्यालय में प्रवेश अंग्रेजी आनर्स में करा दिया। अपने एक मित्र के यहाँ मासिक शुल्क देय पर रहने का स्थान निश्चित कर दिय। भोजन की व्यवस्था भी वहीँ हो गयी व उनके मित्र उस उपनगर में मेरे अभिभावक बन गए। मैं बहुत आकर्षक या सुडोल नहीं था (हूँ) मेरी तव्चा का रंग भी किसी आकर्षण का केंद्र नहीं था, मेरी छोटी बनावट व चेहरे की कोमलता से मैं लगभग हर तरह के आयु वर्ग व समूह का अंग बन जाता था।

मुझ में अभी भी चित्रित पुस्तके (कॉमिक्स) पढ़ने में रूचि थी उनकी उपलब्धि अधिकतर नगर से लाई जाती थी| विपिन भईया जो मेरे पिताजी के एक अन्य मित्र के २६ वर्षीय पुत्र थे, वह नगर से रूपये २ प्रतिदिन की दर से लेकर आते और इच्छुकों को ५० पैसे की दर से अपने घर में ही पढ़ने के लिए देते थे, प्रतीत होता है इसी भांति विपिन भईया नगर में अपनी कोचिंगशिक्षा की लागत का वहन करते थे|

किन्तु सभी पुस्तकों का दाम दे कर पढ़ना संभव नहीं था ऐसे ही एक दिवस ऐसा भी आया जब वेताल की एक नई पुस्तक आयी थी जिसे पढ़ने का मेरा मन था किन्तु दाम देना संभव नहीं था, बाकी जब वो पुस्तक पढ़ते में उन्हें ललचाई आँखों से देखता| जिन्होंने पुस्तक पढ़ी वो ना पढ़ने वालो के सम्मुख बढ़ाचढ़ा कर व्याख्यान करते| कोई और पुस्तक होती तो संभवत कथा सुन कर भी मन को शांति मिलती किन्तु यह चित्रों वाली वेताल की पुस्तक (Phantom Comics) थी, मन इसे पढ़ने को लालायित| मन कोई जोड़तोड़ कर के कैसे यह पुस्तक पढ़ी जाए इस उधेड़बुन में था|

मुझे स्मरण है, संध्या के अँधेरे के पश्चात गृह से बाहर रहने पर परिवार क्रोधित हो जाता था, किन्तु वो पुस्तकों को पढ़ने पर प्रशसंतीत होते, पिताजी एक बड़े नगर में वाहन चालाक का कार्य करते थे और जब भी कभी हमें वह नगर विचरण के लिए अपने वाहन में ले जाते सदा मुझे नगर में पटे विज्ञापन, कार्यालयों व दुकानों पर लगे प्रचार / सुचना पट्ट पढ़ने के लिए उत्साहित करते थे, सम्भवत इसी कारण मैं अंग्रेजी व हिंदी को बाकी सब से अधिक अच्छे से पढ़ व समझ पाता था।

मुझे वहां बैठे बैठे अधिक देर हो गयी और मेरे मन की लालसा मेरे चेहरे से झलकने लगी. विपिन भईया ने कहा अगर धन नहीं है तो फिर यहाँ बैठ कर क्यों समय व्यर्थ कर रहे हो, अपने घर लौट जाओ| अब सब जा चुके थे मैं भी अधमने मन से बाहर आकर बैठ गया| पीछे से विपिन भईया ने मुझे पुकारा व आग्रह किया की यदि मैं उनका कथन मानूंगा तो वह मुझे मेरी इच्छा की एक पुस्तक घर के लिए दे देंगे| मुझे जैसे की कोई न मिलने वाली ख़ुशी मिल गई हो ३ घंटे का श्रम व्यर्थ नहीं गया|

मैंने उनके पीछे पीछे उनके कक्ष की ओर प्रस्थान किया| वहां भईया की विद्यालय / प्रतियोगिता परीक्षाओं कि पुस्तकों के साथ साथ कुछ खिलाडियों, अभिनेत्रियों के चित्रों के साथ कुछ मस्तराम की कहानियां पुस्तकें भी थी | किन्तु मेरा आकर्षण तो केवल उन चित्रित पुस्तकों (comics) पर था।

मैं विपिन भईया के आने की बाट देख रहा था की वो आएंगे व मुझे पुस्तकें देंगे| वह वापिस आये ओर किवाड़ बंद कर के बोले जो पुस्तकें चाहिए वह में छांट लूँ ताकि वो उन्हें मुझे ले जाने दें, मैंने अपने श्रम का उचित दाम लेना सही समझा ओर ३ चित्रित पुस्तकों के साथ क्रिकेट सम्राट पत्रिका दिखा कर उन्हें ले जाने की अनुमति मांगी।

भईया बोले ४ पुस्तके तो अधिक हैं ओर मैं दाम भी नहीं चूका रहा हूँ अतः मुझे भी भईया को प्रसन्न करना होगा। मैं सहर्ष तैयार हो गया ओर कहा, "बताइये क्या करूँ?"। वो बोले, " कुछ नहीं बस किसी को बताना नहीं यह हम दोनों के मध्य का रहस्य है अगर मुझे पीड़ा हो या आपत्ति हो तो मैं इस समझौते से निकल सकता हूँ, जब तक यह समझौता रहेगा मैं प्रतिदिवस एक पुस्तक अपने घर ले जा के पढ़ सकता हूँ बिना किसी शुल्क के"।

मुझे समझौते के नियम सही लगे व घर ले जाने के लिए पुस्तकें पुरस्कार ही थीं।

मैंने कहा, "भईया आप बड़े हैं जैसा आप उचित समझें"।

भईया न मेरी हथेलियों को अपनी हथेलियों में थाम कर कहा, "नहीं समझौता है तो दोनों की सहमति होनी चाहिए", इस स्पर्श से मेरे शरीर में एक अजब सरसरी सी कम्पन हुई, मैं भईया की आँखों में ऑंखें डाल कर पहली बार वार्तालाप नहीं कर पा रहा था। खड़े खड़े धरातल को घूर रहा था। भईया ने फिर पूछा,"तुझे स्वीकार है"।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था मेरे मन में पुस्तक को पढ़ने की शीघ्रता थीं, शुल्क की जानकारी नहीं थीं, मन में संदेह था किन्तु झुके सर को हिला कर सहमित दे दी।

अब लगभग अन्धकार हो चूका था भईया ने मेरे गाल में एक चुम्बन दिया ओर कहा "धरातल में पेट के बल लेट जाओ।" मैंने अधिक समय सोच विचार में व्यर्थ करने से अच्छा जल्दी से पुस्तकें घर ले जाना उचित समझा ओर बिना एक क्षण व्यर्थ किये लेट गया (अब प्रतीत होता है उस समय शायद विपिन ने इसे मेरी व्याकुलता या कामुकता समझा होगा तभी आगे जो हुआ वो संभवत न होता)।

विपिन भईया मेरे ऊपर लेट गए ओर मेरे गालों को चूसते हुए गिला करने लगे| मैं किसी भी क्षण को व्यर्थ नहीं करना चाहता था मुझे पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता सहयोग करने के लिए प्रेरित कर रही थीं| कुछ देर बाद उन्होंने ने मेरी निकर उतार दी ओर स्वयं भी नग्न हो कर अपने लिंग को मेरी गुदा की दरारों में रगड़ते हुए मेरी ऊपर लेट गए|

जब मुझे उनके लिंग के तनाव का अनुभव अपने गुदा में हुआ मुझे अपने से अधिक भार मेरे ऊपर एक सुखद अनुभूति दे रहा था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई मेरी मालिश कर रहा है| मैंने अपने दोनों हथेलियों का सरहाना बनाया ओर आँखे बंद कर के अपनी फेंटम वाली यादों में खो गया| कुछ देर पश्चात विपिन ने मेरी गुदा में थूकना शुरू कर दिया उसने इतना थूका की उनका थूक मेरी झांघो से बह कर मेरे पेट को भी भिगोने लगा| विपिन ने अपने थूक से अपने लिंग को भी भिगोया ओर मेरे पुन: ऊपर लेट गया| अब वो मेरे गुदा की दरारों में ऊपर निचे करते हुए अपने लिंग को रगड़ने लगा|

उनका लिंग लगभग दुगने आकार का हो गया वो उतर कर मेरे बगल में लेट गए और अपनी हथेली में थूक लगाकर मेरी मांसल गुदा को सहलाते| मुझे अपने बचपन में घर के बड़ो द्वारा की गयी मालिश की अनुभति होने लगी अंतर केवल तेल और थूक का था| मैं वैसे ही निश्चिन्त होकर लेटा रहा और घर लौट जाने के विपिन के आदेश की बाट देखने लगा|

विपिन ने अपनी ऊँगली से गुदाछिद्र को धीरे धीरे रगड़ना शुरू किया किन्तु भरसक प्रयास के बाद भी वो गुदा में अपनी ऊँगली नहीं डाल पाया (आज जब मैं इस घटना का स्मरण करता हूँ तो इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूँ कि मस्तराम की पुस्तके उत्तेजित तो कर देती हैं किन्तु न ही वो घटनाओ का उचित ब्यौरा देती हैं, न ही विधि का ज्ञान और न ही उनसे होने वाली समस्याओं की चेतावनी या सुझाव)|

विपिन की श्वांस तेज चल रहीं थी और मेरी मांसल गुदाओं पर उसकी हथेलियाँ अब ज्यादा दवाब दे रहीं थी| प्रतीत होता है कामुकता वश व पकडे जाने की भय से विपिन ने अधिक विलम्ब करना उचित नहीं समझा और मेरे ३५ किलो की शरीर के ऊपर अपना ६५ किलो का शरीर डालकर मेरे ५" के आकर को अपने ५'५" के आकर में लगभग निगल कर लेट गया| मैं इस पुरे घटनक्रम में आंखे मूंदे औंधे मुँह लेटा रहा|

इस बार विपिन ने अपने शरीर के भार से फिर मेरी मालिश करनी शुरू कर दी| पुन: मेरे गालो को चूसते हुए मेरे नितम्बो के मध्य अपने लिंग से कमर उठा उठा कर धकलने लगा, हर धक्के से उसका लिंग नितम्बो के मध्य खाई को जबरन पाटते हुए मेरे गुदाछिद्र पर आकर थम जाता|

विपिन भैया ने मेरे टाँगे मोड़कर मेरे नितम्बो को उठा दिया व स्वयं मेरे पीछे घुटनो के बल बैठ गए। उन्होंने ने अपने लिंग को मेरे गुदाछिद्र से सटाया व बलपूवर्क उसे प्रविष्ट करने का असफल प्रयास जारी रखा। उनका उत्तेजित लिंग मेरे गुदाछिद्र से हारकर नितम्बों के मध्य दरार से होकर मेरे मेरी कमर से बाहर आकर लिंगमुंड को जब दिखाता उस समय उसके अंडकोष मेरे गुदाद्वार को हलके हलके थपेड़े मारते।

हर धक्के के साथ मेरे शरीर पर विपिन और अधिक दवाब डालता, उसकी साँसे और अधिक त्रीवता से चलती और कभी आह आह का स्वर निकलता कभी झुक कर मेरे गाल चूसता। मेरे गालों से उनकी टपकती लार से मैं असहज हो गया तो उन्होंने ने मुझे धकेलकर पुनः पेट के बाद लेता दिया और कभी थोड़ा रुकता और फिर लेट जाता फिर लेटे लेटे ही केवल कमर उचका उचका कर अपना लिंग मेरे नितम्बो की मध्य गहराई पर रगड़ता. कुछ समय पश्चात विपिन का शरीर कम्पन करने लगा और वो निढाल हो कर मेरे ऊपर लेट गया| अब उसका ६५ किलो का वजन मुझे १०० किलो का प्रतीत हो रहा था|

मैंने सोचा सम्भवत विपिन अधिक व्यायाम से थक गया है इसीलिए विश्राम कर रहा है मुझे तनिक भी आभास नहीं था की यह भी यौन सम्बन्ध अथवा एक यौन क्रिया है| अचानक ही फिर विपिन के शरीर पर एक विधुत तरंग की भांति हलचल हुई और उसका लिंग फड़फड़ाने लगा| मुझे अपने नितम्बो की गहराई में किसी गुनगुने रिसते हुए द्रव्य का अनुभव हुआ| जब भी विपिन के लिंग में फड़फड़ाहट होती तभी रिसते द्रव्य के त्रीवता तेज हो जाती| रिसते हुए द्रव्य मेरी नितम्बो के पाट से रिस्ता हुआ एक कूप में एकत्रित होते हुए वर्षा जल के धाराओं सामान मेरे गुदा द्वार की गहराई में सिमट जाता और फिर वहां से बूंद बूंद टपकता|

इधर विपिन की धड़कने सामान्य हो रही थी और वजन भी १०० से काम होता प्रतीत हो रहा था की लगभग ५० का हो गया है| इस धक्का मुक्की में मेरे शिथिल लिंग को धरातल की रगड़ से जलन होने लगी. किन्तु तभी मेरी गुदा से बूँद बूँद टपकता हुआ विपिन का वीर्य मेरी कमर और जांघो को भोगता हुआ मेरे पेट के पास ऐसे सिमट रहा था जैसे कोई वर्षाधारा चारो और से बहती हुई किसी तालाब में सिमटती चली जाती हैं|

इस एकत्रित हुए वीर्य और थूक के मिश्रण ने आहित हुए मेरे शिथिल लिंग पर किसी औषोधिक लेप का काम किया और जलन में राहत अनुभव हुई| विपिन उठा और मुझे हाथ दे कर उठाया में निचे से नग्न था किन्तु विपिन पूरा नग्न था, मैं चोरी चोरी निगाहों से विपिन के सिकुड़ते लिंग को देख रहा था, वो अभी भी रुक रुक कर झटक रहा था और अभी भी किसी शिशु के मुहँ से टपकी लार की भांति उसके लिंग से टपक रहा था|

इस घटनाक्रम को अब लगभग १५-२० मिनिट हो चुके थे, मैंने पहली बार विपिन से आँखें मिलाई व निवेदन किया, " भैया, मैं पुस्तके ले जाऊं", वो बोला, "रुक"|

विपिन ने अपने जाँघियां से मेरे पेट और मेरे नितम्बो को पोछा और गुदा को हथेली से रगड़ता हुआ मेरे गुदा द्वार में दवाब से रिस्ता हुआ वीर्य ठूस दिया| कहा की अब तू जा और समझौता याद रखना.

हालाँकि मेरा शरीर बुरी तरह से थूक, वीर्य और पसीने से दुर्गन्धित था किन्तु मैं दुगनी गति से घर की और भाग रहा था, मन में अपने निश्चय और संयम की विजय का संतोष था, पुरस्कार में पुस्तकें थी और आज ही पढ़कर लौटने की एक विवशता भी थी| मैं जितनी तेज कदम बढ़ाता ऐसा प्रतीत होता जैसे की मेरा गुदा ने एक कूप की भांति विपिन का वीर्य अपने अंदर समाहित कर लिया है हर चार कदम पर वीर्य या थूक गुदा से रिस्ता हुआ प्रतीत होता|

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