गणित के शिक्षक बने मेरे यौन शिक्षक

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Reluctant boy turned consensual with Teacher.
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विपिन भईया के साथ उस अनुभव की पुर्नावृति लगभग चार-पांच बार और हुई, मेरी पहल का प्रश्न ही नहीं था क्योंकि विपिन भईया ने समझौते के तहत मुझे पुस्तकें घर ले जाकर पढ़ने का अपना वचन जारी रखा और मेने उस अनुभव को समझौते का एक भाग बूझकर उसे पूरा किया. जैसा मैंने पहले वर्णित किया था वो अनुभव मुझे यौन सम्बन्ध से अधिक दो नौसिखियों के मध्य कोई खेल लगा | विपिन संभवत मेरे असहयोगी व्यवहार से या लिंग को गुदा में प्रविष्ट न कर पाने की विफलता से निराश था, किन्तु फिर भी हमारे बीच का समझौता जारी था या यह भी हो सकता है की उसे कोई और बेहतर विकल्प मिल गया होगा|

स्नातक शिक्षा का प्रथम वर्ष था व पढ़ने में सामान्य से अधिक था किन्तु सर्वश्रेष्ठ छात्रों से १९ ही था| मेरे पिता इस बात से चिंतित थे की प्रतिभावान होते हुए भी मैं परीक्षा में सर्वश्रेष्ता की दौड़ में भाग नहीं लेता था| मैं अंगेज़ी में कहावत है "Jack of all, master of none"| को चरितार्थ करता था| मैं खेल-कूद, नाट्य, सामान्य ज्ञान, कुश्ती, साइकल से भ्रमण करने को भी उसी संजीदगी से लेता था जैसे अपनी शिक्षा को| गणित को छोड़ मैं सभी विषयों में आत्मनिर्भर था|

एक दिवस मेरे पिताजी घर से नगर आये हुए थे और उन्हें हमारे विद्यालय के अंग्रेजी के प्राध्यापक मिले और पिताजी से मेरी प्रशंसा करते हुए मुझे गणित पर और अधिक परिश्रम करने का सुझाव दिया| पिताजी ने मेरे गणित के शिक्षक से मिलने का मन बनाया ताकि वो कोई उचित निर्णय ले सकें| मुझे पिताजी का इतना मेरे प्रति रूचि लेना तनिक भी नहीं भाया, ऐसा प्रतीत हो रहा था की मुझ पर अब आशाओं का भार रखा जा रहा है व मेरे स्वछंद स्वभाव को नियंत्रित किया जा रहा है| घर पर पिताजी ने मुझे कहा के वह मेरे अध्यापक से मिले थे और मेरे लिए एक प्रस्ताव है|

यद्द्पि किसी भी अध्यापक को मेरी शिक्षा या मेरे ज्ञान को लेकर कोई संदेह नहीं है किन्तु बलविंदर जी का मानना है की अगर मैं गणित के लिए विशेष प्रयत्न करूँ तो आगे जाकर मेरे लिए वो लाभप्रद होगा| इसलिए पिताजी ने निर्णय लिया है क्यूंकि अभी दशहरे के अवकाश में विश्व विद्यालय बंद रहेगा व बलविंदर जी की पत्नी मायके जा रहीं है मैं उनके घर इन ७ दिवस के लिए उनके पास रहकर गणित का उचित मार्गदर्शन पाते हुए अभ्यास कर सकता हूँ| मेरे मन में अलग उलझन थी की अवकाश के समय जो खेल प्रतियोगिताएं व आवारागर्दी के मेरे प्रायोजित कार्यक्रम थे वो सब बेकार हो जाएंगे, मैं पढाई में ठीक ही हूँ व सरलता से अपनी परीक्षाओं में उत्रिण हो जाता हूँ तो क्या आवश्यकता है अलग से कोई प्रयास करने की, किन्तु पिताजी की इच्छा थी तो मैंने अपनी सहमति दे दी|

अंततः वह दिवस भी आ गया जब पिताजी मुझे अपने वाहन में बैठा कर अध्यापक के निवास पर ले कर गए, उनका निवास हमारे गांव से लगभग १५ किलोमीटर दूर एक छोटे से नगर में था| पूरी यात्रा के मध्य में मैं गांव के खेतो को हटते हुए छोटी छोटी सी झुगी झोपड़ियों में बदलते हुए देख रहा था| अब मिट्टी की राहें टूटी फूटी सड़कों में बदल रही थी, वृक्षों व खेतों के स्थान पर ईंट के भट्टे व कूड़ा घरों में बदल रही थी, पालतू पशुओं सी अधिक आवारा पशु दिख रहें थे| पिताजी ने एक पुराने दिखने वाले पक्के घर के आगे अपने वाहन को रोका और मुझे अपना सामन ले कर उतर जाने को कहा| मैंने अपनी कपडे के थैले में ही अपने कुछ कपडे व पुस्तके रखीं हुई थी| मैंने अपना थैला व अचार की मिट्टी की हांडी उठाई व पिताजी के पीछे पीछे चलने लगा| एक संकरी गली सी गुजरते हुए हम एक घर के सामने रुके, पिताजी ने सांकल को खटखटाया तो अंदर सी किसी महिला ने द्वार खोला| मुझे द्वार खुलते ही आँगन में अपने गुरूजी का दो पहिया वाहन दिख गया, मन ही मन संतुष्टि हुई चलो पहुँच तो गए| भीतर से मैं प्रसन्न भी था यह सोचकर की अगर मन नहीं लगा तो वापिस गांव चला जाऊँगा अधिक दूर नहीं है पैदल भी जाऊँगा तो ३-४ घंटे में पहुँच जाऊँगा, वैसे कुछ समय रहने के लिया यह स्थान बुरा भी नहीं है, यहाँ लगभग विध्युत आपूर्ति भी ठीक है| इसी उधेड़बुन में पता ही नहीं चला कब हम लोग अंदर प्रविष्ट कर गए और कब मेरे आगे एक गिलास जल का रखा गया| मेरे पिताजी व गुरूजी आपस में वार्तालाप करने लगे और मुझे ऊपर वाले कक्ष में बैठाकर टीवी चला दिया गया|

कुछ समय पश्चात पिताजी ने मेरा नाम ले कर पुकारा, मैं नीचे गया तो देखा पिताजी जाने की तैयारी कर रहे थे और उनके साथ गुरूजी की पत्नी व पुत्री भी कुछ सामान ले कर कहीं जाने को तैयार थे| पिताजी ने कहा वो एक सप्ताह उपरान्त आएंगे व मुझे वापिस गांव छोड़ देंगें अभी वो जा रहें है, रास्ते में गुरूजी की पत्नी व बालिका को बस अड्डे पर छोड़ देंगे| इतना कहकर पिताजी ने मुझसे और गुरु जी सी यह कहते हुए विदा ली, " चलता हूँ बलविंदर भाई, इसे अच्छे सी रगडिये गए ताकि यह एक अच्छा जीवन जी सके|"

सब लोग चले गए तो गुरु जी कहा यहाँ पर मैं तुम्हारा शिक्षक नहीं अपितु बलविंदर हूँ मुझे अपना मित्र समझो तभी तुम जो भी करोगे उसे अच्छे सी करोगे व उसका आनंद भी ले पाओगे| मैंने उतर में कहा जी गुरु जी और तभी मेरे नितम्बो पर एक जोरदार चटाक के साथ गुरु का थप्पड़ पड़ा व एक चेतावनी भी - नंदन, गुरूजी नहीं बलविंदर, समझे| गुरूजी ने किवाड़ पर सांकल लगाई और मुझे लेकर अंदर आ गए| अंदर आकर उन्होंने कहा, रूप खाना बना कर गयी है और रात्रि का भोजन हम दोनों मिल कर बनाएंगे तब तक हम दोनों सहज हो जाते है व एक मित्र की भांति एक दूसरे सी घुलने मिलने का प्रयास करते हैं|

हम दोनों वहीँ बैठ गए और हमारे मध्य वार्तालाप आरम्भ हो गया|

गुरूजी बोले, "नंदन, अपना घर समझो और आराम से रहो किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो कहना" (कहते कहते उन्होंने अपना कुर्ता उतार दिया व अपनी श्वेत श्याम रंगो वाली केशों से भरी छाती का प्रदर्शन करने लगे), तुम चाहो तो तुम भी उतार सकते हो| चलो अपना सामान दिखाओ क्या क्या लाये हो|"

इसी तरह इधर उधर की बाते करते हुए गुरूजी ने बीच बीच में धमकाते हुए मुझे उन्हें बलविंदर कह कर पुकारने में परांगत कर दिया| बातो बातो मैं मैं भूल ही गया की मैं गुरूजी के आवास में हूँ व यहाँ गणित का अभ्यास करने आया हूँ| कुछ समय पश्चात गुरूजी मुझे अपने दुपहिया वाहन में बैठाकर किसी दूकान पर ले कर गए व कुछ सामान खरीदकर झोले में डालकर मुझे दिया| हम लोग आम का रस पीते हुए वापिस घर आ गए|

घर पहुँच कर मैंने पूछा, "बलविंदर मूत्र कहाँ करुँ"

तो उन्होंने हँसते हुए कहा "मेरे मुँह में कर दे" मैं झेंप गया और बिना कुछ बोले आँगन में नाली में मूत्र करने लगा| वापिस कक्ष में पहुँचने पर बलविंदर ने बताया "शौचालय पीछे की तरफ है और ऊपर भी है जहाँ चाहो जा कर मूत्र त्याग सकते हो",

किन्तु हाँ दोनों के मध्य तय हुआ की आज का दिवस विश्राम व मनोरजन में व्यतीत करते हैं व कल से गणित का अभ्यास आरम्भ करेंगें| मैंने कहा "बलविंदर मेरे पास अधिक वस्त्र नहीं हैं अतः मैं प्रतिदिन अपने वस्त्र धोता हूँ और मुझे शौचालय में स्नान करने में व वस्त्र धोने में असुविधा होती है|"

बलविंदर ने मुझे कहा की अपने गंदे वस्त्र मैं उस टोकरी में रख दूँ व पहनने के लिए घर पर तो झंघिया ही प्रयाप्त है| यह कह कर बलविंदर ने अलमारी से एक श्वेत रंग की मुलायम सी झंघिया दी जो की मुझे किसी कन्या की प्रतीत हो रही थी, पता चला उसने अपनी पुत्री की चड्डी दी है जो की लगभग नाप की थी किन्तु वो मेरे कुलहो को ढकने की जगह मध्य धंसी हुई थी व अग्रभाग ने मेरे लिंग को समेट कर ऊपर की दिशा में मोड़ दिया था, कुछ समय थोड़ा सा असामान्य लगा किन्तु जल्द ही मैं अभ्यस्त हो गया व पूरी तरह से उसके अनुकूल हो गया| हम बात करते रहे तो बलविंदर ने कहा चलो अब तुम्हे हल्का सा मादक द्रव्य पिलाते हैं मेने कहा "बलविंदर, यदि यह मदिरा है तो क्षमा करना और यदि बियर है तो अवश्य पियूँगा सुना है इससे हानि नहीं होती व विदेशी लोग तो इसे खाने के साथ भी पीते हैं क्योंकि यह द्रव्य स्वास्थ्यप्रदक है|"

हम दोनों बियर पीने लगे मेरे लिए तो केवल एक पात्र ही उचित था| मैंने उसे ख़त्म किया और शौचालय चला गया, इस चड्डी का एक लाभ तो था बिना झंघिया उत्तारे बस लिंग को टेढ़ा कर बहार निकल लो| एक अलग से अनुभव था यहाँ गांव के विपरीत सब कुछ बंद बंद सा रहस्य्मय लग रहा था किन्तु एक पूर्ण स्वतंत्रता भी थी कहीं भी बाहर जाने की आवश्यक नहीं सब कुछ बंद कमरों में ही मिल जाता है, मेरे मन में यह विचार आ रहे थे पीछे से बलविंदर आया उसने अपने झंघिया घुटनो तक निकाल दिया और मूतने लगा| मैंने उसके लिंग के तरफ देखा तो कुछ अलग सा लगा व मेरे विपरीत उसका लिंग श्वेत श्याम बालो के गुच्छे में था व् उसका लिंग मुंड भूरे रंग से चमक रहा था| हम ने एक दुसरे को कुछ नहीं कहा किन्तु बलविंदर ने अपने मूत्र की धार से मेरे लिंग को भिगोना शुरू कर दिया और बोला नंदन, "पेचे लगाएगा, जिसकी धार का पहले अंत होगा समझो उसकी पतंग कट गई", मुझे अपने बाल मित्रो वाले खेल स्मरण हो गए और मैंने भी अपने लिंग से मूत्र धार को उसकी धार से काटना प्रारंभ कर दिया अंतत विजय मेरी हुई| मैंने कहा, "बलविंदर तुम्हारे लिंग को व्यायाम की आवश्यकता है, हमसे न जीत पाओगे" कहकर मैं कक्ष में लौट गया |

अपने कक्ष में आने के बाद बलविंदर ने मुझे एक पात्र बियर और दी और खुद एक पात्र मदिरा का लेकर पीने लगा| पीते-पीते बलविंदर ने कहा, " यार नंदन, कुछ करतें है ऐसे तो बोर हो जाएंगे और कल से तेरी शिक्षा भी प्रारम्भ करनी है, चल शीघ्रः समाप्त कर हम दोनों मिल के वस्त्र धो लेते हैं|" हमने तुरंत ही अपने पात्र को खाली किया और कार्य समापन की और अग्रसर हो गए|

वाशिंग मशीन के समीप पहुंचने पर बलविंदर ने सारे वस्त्र निकाल कर बाहर फेंक दिए और अंदर जाकर कुछ और वस्त्र ले कर आया| हम दोनों को मध्यम मध्यम सा नशा सा होंगे लगा, बलविंदर एक वस्त्र को उठता और सूंघता व उनका विभाजन करता, उसने मुझे भी सहायता के लिए पुकारा व निर्देश दिया की जिस वस्त्र में से शरीर की गंध आ रही हो वो उसे अलग रख दे उन्हें धोना है बाकि सब को वापिस तय कर कर अलमारी में रखना है! वो अलमारी के वस्त्रों को तय करने लगा और में चिन्हित करने लगा| मेरे शरीर में एक मादकता सी छाने लगी क्योंकि मुझे न केवल बलविंदर अपितु उसकी पत्नी रुपिंदर व पुत्री डॉली के भी वस्त्र व उनके अंतर्वस्त्र भी सूंघ कर चिन्हित करने थे| मैं जानबूझ कर अंतर्वस्त्रों को अधिक सूंघने लगा व स्वयं ही उत्तेजित होता रहा, रूप की कच्छी न केवल डॉली से अधिक आकर्षक थी वरन अधिक मादक भी थी, डॉली की कच्छी में न ही उस मात्रा में गंध थी और न ही मादकता हालंकि गंधित वो भी थी, रूप के निचले अंतर्वस्त्र न केवल मादक गंधित थे अपितु उसके मध्य में जो पेडिंग थी वो मूत्र व किसी अन्य चिपचिपे पदार्थ से गीली भी थी. मुझे उसकी मादकता और अधिक विचलित कर रही थी। बलविंदर मेरी तरफ देखते हुए बोला, "चाट कर देख और बता क्या है", मैंने उत्तर दिया "छि"। बलविंदर आया और मेरे से दोनों कच्छी छीनकर चाटने लता और बोला, "इसमें छी क्या है?, अगर सामर्थ्य है तो क्या तू बता सकता है ये गीली क्यों है और किस चीज से है और इसमें से रूप की कौन से है और डोली की कौन सी।"

मैं उत्साहपूर्वक दोनों कच्छीयों को चाट गया और बोला ले इसमें क्या है इतने में बलविंदर हँसते हुए कहने लगा पागल तूने रूप का और डॉली का मूत्र चाटा है, ये मूत्र के ही चिन्ह हैं और तो और तूने तो रूप की कच्छी से जो चिपचपा पदार्थ चाटा है वो मेरा वीर्य था। मैं कुछ देर शून्य हो गया - मादक अवस्था, अंतर्वस्त्र सूंघना व मूत्र चाटना और वीर्य चाटना सब एक साथ मस्तिष्क में घूमने लगे| मेरे अवस्था अब किसी ऐसी वैश्या जैसे हो गई थी जो थी तो नग्न पर आभास वस्त्र पहने हुए का था|

मेरी इस विचित्र परिस्थिति को बलविंदर न भाँप लिया व मुझे सहज करने के लिए उसने कहा, "इसमे कुछ भी बुरा नही है, तूने कुछ ग़लत नही किया जो किया वो करने के लिए मैने ही तुझे कहा था"| उसने मेरा हाथ पकड़ा और भीतर वाले कक्ष मे ले गया| मुझे वाकाई समझ नही आ रहा था कि ये सब हो क्या रहा है बस मैं बहाव मे एक पत्ते की तरह बहा जा रहा था| भीतर कक्ष मे उसने मुझे अपनी छाती से चिपका लिया और मेरी पीठ पर हाथ फिरा कर मुझे सहज करने लगा| बलविंदर की श्वेत-श्याम (grey) बालों से भरी छाती के बाल मेरे मुँह को जैसे कुदेर रहे थे व उसके पसीने की गंध विचलित कर रही थी, पीठ पर हाथ सहलाते सहालते कब वो हाथ मेरे नितंबो तक पहुँचे ज्ञात ही नही हुआ|

जैसा की पहले बलविंदर ने अलमारी से एक श्वेत रंग की मुलायम सी झंघिया (panty) दी थी जो उसकी पुत्री की थी, किन्तु वो मेरे कूल्हों को ढकने की जगह मध्य धंसी हुई थी व अग्रभाग ने मेरे लिंग को समेट कर ऊपर की दिशा में मोड़ दिया था| बलविंदर के स्पर्श व मेरा उसकी बालो भरी छाती मे धंसा हुआ मुँह आश्वासित तो करा रहा था किंतु उसमे वो मार्मिकता नहीं थी अपितु एक मादकता (lust) थी. बलविंदर के लिंग का तनाव मुझे उसके कच्छे के भीतर से अपने पेट पर आभासित हो रहा था, जैसे के वो बार बार मेरे पेट पर कोई थपकी मार रहा हो| मुझे आनंद हो रहा था और इसी आनंद मे मैने कब आँखे बंद की और कितने समय तक की उसका आभास ही नही था, किंतु जैसे ही मुझे अपने नाथूनों पर बलविंदर की मूछों के बाल चुभने पर आँखे खुली तो पाया बलविंदर मेरे होठों को चाटने का प्रयास रहा था और कहा रहा था| मेरे होंठों को चाटते हुए बुदबुदाया "ले बस मैने तेरा मुँह साफ कर दिया|"

मैं हतप्रभ था, आनंदित व विचलित था कारण कई थे, कुछ भी हो थे तो वो मेरे गणित के शिक्षक, पिताजी के मित्र व आदरणीय सबसे बलपूर्वक तथ्य था पिताजी का वो निर्देश की मैं पूर्ण सहयोग करूँ बलविंदर के साथ| मुझे उसकी दाढ़ी व मूँछ के बाल चुभ रहे थे आर वो मेरे होठों को चाट रहा था, चाटते चाटते उसने मेरे होंठो को चूसना आरंभ कर दिया इसी प्रक्रिया मे उसने अपनी जिव्हा मेरे मुँह के भीतर डालकर मेरी जिव्हा को भी चूसना आरंभ कर दिया, मैं इस पूरे प्राकरण मे कहीं भी सहयोग नही कर रहा था किंतु सम्मिलित था| इस प्रक्रिया मे मेरे भीतर से स्वत ही जैसे कोई रासायनिक प्रतिरोघ हुआ व मेरे शिथिल शिशु लिंग (sissy dick) मे कसाव होने लगा मेरे जिव्हा (toungue) स्वत ही बलविंदर की जिव्हा को छूने लगी व शरीर मे भय से जो रोए खड़े हुए थे वो स्थिर हो गये| बलविंदर मेरे कुल्हों से चड्डी को सरका चुका था व मेरे नग्न नितंबो को अपनी बड़ी हथेलियों से सहला रहा था मेरा शरीर ढीला पड रहा था ओर बलविंदर का कसाव व मुख चुंबन बलशाली होता जा रहा था|

मैं मानसिक या शारारिक रूप से तैयार नहीं था अपितु ये भी सत्य है कि अपनी इच्छा के विपरीत अपनी शारारिक उत्तेजना से वशीभूत होकर इस कामक्रीड़ा मे सहयोग करने लगा| बलविंदर के चुंबन अब इतने मादक हो गये थे की हम दोनो की मुँह से दोनो की लार चीनी की चासनी की भाँति घुल कर हमारे मुँह से टपकने लगी| मेरे हाथ स्वत ही बलविंदर के कुल्हों को टटोलने लगे उसका लिंग बलिष्ठ होकर मेरे पेट मे मानो छेद करने का प्रयास कर रहा था| मैं काम मादकता मे सहयोग की और बढ़ रहा था व एक आनंद की अनुभूति कर रहा था|

चुंबन करते करते बलविंदर ने मेरी कच्छी उतार दी तो मेरे नग्न नितम्बो को सहलाने लगा इसी प्रक्रम मे मैने भी उसकी कच्छे को खींच कर नीचे कर दिया| अब हम दोनो पूर्ण रूप से नग्न थे, बलविंदर ने मेरे लिंग को हाथ मे लेकर उसे खींच रहा था मैं भी इस क्रम को दोहराया और जीवन मे पहली बार अपने लिंग के अलावा किसी ओर लिंग का आभास किया| इस पूरे घटनाक्रम मे हम दोनो मौन थे| अब बलविंदर मेरे लिंग को खींच कर पता नही क्या करने का प्रयास कर रहा था जिससे मुझे पीड़ा हो रही थी मैने भी बदले की भावना से उसकी लिंग को खींचा तो सहजता से उसके लिंग की मांसपेशिया खींच कर पीछे हो गई और उसके लिंगमुख जो की भूरे रंग का था चमकने लगा| मैने अपने जीवन मे पहली बार लिंग का यह रूप देखा था अन्यथा मुझ सहित मेरे सभी मित्रोंका लिंग एक समान ही था, (विपिन भईया का तो मैं कभी देख ही नही पाया था क्योंकि वह सदैव मुझे औंधे मुँह लेटाकार मेरे उपर लेट जाते थे ओर तभी उठते थे जब वो स्खलित हो जाते थे)|

मैने जिज्ञासावश अपने लिंग को देखा जो किसी नन्हे बालक सा प्रतीत हो रहा था बलविंदर के बलिष्ठ लिंग के तुलना मे, मुझे अपने आप पर संकोच हुआ| बलविंदर झूककर बैठ गया ओर मेरे लिंग को मुँह मे लेकर चूसने लगा, मेरे लिंग ने प्रतिक्रिया स्वरूप तन गया था| जब भी बलविंदर मेरे लिंग की त्वचा को पीछे की ओर खींचता मुझे पीड़ा होती| अंतंत बलविंदर ने पहली बार मेरी और देखा ओर कहा, "मैं सब ठीक कर दूँगा, देख मेरे लंड (penis) नू, एक मर्द दा लन एन्वा होना चाहिए लन दा टोपा ऐसा बड़ा ओर चमकदार होना चाहिए, तेरे जैसे छुईमुई नहीं, तू तो रुपल से भी ज़्यादा मुलायम है, (रुपल उसकी पुत्री थी)| हम दोनो की आँख मिली ओर उसने कहा, 'ले मेरे लंड को मुँह मे ले कर देख, एदा स्वाद चख होर दस"|

मैं संकोच वश वहाँ से भागकर उपर अपने कक्ष मे जाकर अपने वस्त्र पहन कर सोने चला गया| भूख के कारण नींद भी नहीं आ रही थी फिर भी दुविधा व थकान के कारण कब पेट के बल अपना चेहरा तकिये मे छुपाकर सो गया कुछ ज्ञात नही जब मध्य रात्रि मे मेरी नींद भंग हुई तो प्रतीत हुआ जैसे की कोई मेरे शरीर से खेल रहा है, मैं नीचे से पूर्ण नग्न था, मेरे लिंग मे कसावट थी व मेरी गुदा गीली थी, मैने आँखे बंद ही रखी ओर सोने के अभिनय करता रहा| बलविन्दर मेरे नितम्बों को चाट रहा था संभवत: उसकी लार से ही मेरी गुदा गीली हुई थी| उसने धीरे से मेरी टांगे फैला दी और उनके मध्य मे लेटकर मेरी गुदा को चाटना (ass licking) प्रारम्भ कर दिया| मेरी साँसे तेज होने लगी व स्वत: ही टांगे फैलने लगी| अचानक से बलविन्दर ने मेरे गुदा द्वार मे थूका व तब तक थूकता रहा जब तक की वह बह-बह कर मेरी जाँघो से रिसने नहीं लगा| उसने मेरे नितंबो को अपनी हाथों से फैलाया तो अपने जिव्हा से मेरे गुदाद्वार को चाटने (rimming) लगा| मेरी साँसे और तेज हो गई लिंग से तरल वीर्यद्रव्य रिसने लगा हालाँकि लिंग मे पर्याप्त तनाव नही था|

अचानक ही मेरे मुँह से 'आह' का स्वर निकला किंतु ना ही मैने और ना ही बलविंदर ने कोई प्रतिक्रिया दी व इस तरह का व्यवहार किया जैसे कुछ हुआ ही ना हो| वो किसी मदमस्त जानवर की भाँति मेरे गुदाछिद्र मे थूकता व अपनी जिव्हा से उस थूक को मेरे गुदा के भीतर धकेल देता कभी कभी जिव्हा से गुदा के अंदर जिव्हा डालकर उसे खोदता और छिद्र को और फैलाता| मेरे शिथिर लिंग से तरल वीर्यद्रव्य (precum) रिसने लगा मैं स्वत ही अपनी गुदा को ऊँचा उठा कर उसके चहरे पर धकलने लगा| संभवत: बलविंदर को आभास हो गया था की मैं भी उसकी भाँति मदमय हो गया हूँ व अपने मौन से उसकी इस कामक्रीड़ा मे मूक भाग ले रहा हूँ| उसने मुझे पलट दिया व मेरी टांगे उठा कर हवा मे लहरा दी व खुद घूमकर मेरे मुँह के उपर आ गया| मैने आँखे बंद ही रखी ताकि ये भ्रम बना सकूँ की मैं निंद्रा मे हूँ और जो हो रहा है मुझे उसका ज्ञान नहीं| किंतु बलविंदर के लिंग की पुरजोर गंध आ रही थी जो अपनी सभी लिंग की नसो की प्रबलता के साथ यौवन की चरम सीमा पर पहुँच चुका था| उसके लिंग से तरल द्रव्य एक लार की तरह टपक रहा था| जैसे ही वो लार वाला द्रव्य मेरे होंठों पर गिरा मेरी आँख खुल गई, उसकी द्रव्य-धारा ने मेरे मुख और उसके लिंग के मध्य एक सेतु भाँति सम्बन्ध कायम कर लिया था| मैने उसके लिंग से निकली द्रव्य धारा को मुँह खोलकर टपकने दिया, स्वाद बुरा नही था| इतने मे ही बलविंदर और मेरी आँखे मिली और उसने धपाक से अपने लिंग को मेरे मुँह मे धकेल दिया| इस क्षण को व्याखित करना कठीन है|

कुछ सूझ नही रहा था आँखे मिल चुकी थी और अभिनय कदापि संभव नही था उपर से बलविंदर का बलपूर्वक मेरे गुदाछिद्र (asshole) को चाटना व फैलाना मुझे मादित कर रहा था, उसकी आँखों मे मानो किसी मदमस्त जानवर के भाँति यौन चर्म पर था| उसने मेरे मुख मे अपने लिंग को उपर- नीचे धकेलना जारी रखा व बीच बीच मे अपने शरीर का पूरा भार मेरे मुँह पर रखकर लिंग को पूरी तरह से मेरे मुख मे प्रविष्ट कर थम जाता| थूक बह बह कर मेरी छाती पर एकत्रित होने लगा किंतु उसके जिव्हा मेरे गुदा छिद्र को किसी साँप की भाँति अंदर तक सिहारने लगी| जैसे ही बलविंदर अपने लिंग को मेरे मुख के भीतर पूरी तरह से प्रविष्ट करा कर रुक जाता मैं भी अपनी गुदा (arse) को और ऊठा कर उसके होंठों पर चिपका देता| मेरी मादकता भी चर्म पर आ गई थी और मैने बिना कोई देर किए उसके लिंग को चूसना आरम्भ कर दिया| कुछ समय पश्चात जब उसने लिंग को खींच कर मुख से निकाला तो अब उसका लिंग मेरी लार व उसके लिंगद्रव्य (precum) से भीग गया था| बलविंदर के लिंग से अब लार मेरे मुँह पर टपकने लगी और अब उसके लिंग से निकलता द्रव्य गाढ़ा होता गया, उसने फिर से एकबार बलपूर्वक अपना लिंग पूरा मेरे मुख मे समाहित कर दिया और मेरे नितंबो को चूसने लगा|

उसका लिंग मेरे मुख के भीतर मत्स्य की तरह फड़फड़ाया और वीर्य उडेलेने लगा| कुछ समय पश्चात पुरा कमरा मादक गंध से भर गया| हम दोनो पसीने से तर-बतर हो गये थे| अब बलविंदर का लिंग मेरे मुख के अंदर शांत होने लगा और उसका मेरे नितंबो को चूसते चूसते, काटना आरंभ हो गया उसने आख़िरी बार मेरे नितंबो की इतनी ज़ोर से काटा की मैं कराह उठा, स्वर इसलिए नही निकाल सका क्योंकि उसने अपने लिंग से मेरे मुख को बंद कर रखा था| जब तक उसके वीर्य की आखरी बूँद मेरे मुख मे नही समाहित हो गई उसने अपने बल से मेरे मुख को बंद ही रखा| मेरी आँखो से आँसू बह रहे थे मुख से वीर्य बह रहा था, गुदा थूक से भरी हुई थी| जब बलविंदर का लिंग थोड़ा शांत हुआ तो उसने आराम से उसे बाहर खींचा उसका लिंग किसी उस सर्प की भाँति चमक रहा था जिसने अभी अभी अपनी केंचुली बदली हो| उसका लिंग जैसे किसी घी के पात्र से डूबा कर निकला हो उस भाँति चमक रहा था उसमे जगह जगह वीर्य किसी माखन की तरह पिघल कर टपक रहा था|

अब मेरी सब लाज जा चुकी थी बचाने या छुपाने के लिए कुछ नही था, बलविंदर ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और मेरे भी उतार दिए और मुझे अपनी गोद मे बैठा कर मुझे किसी शिशु की भाँति निहारने और सहलाने (caresing) लगा| मैं भी मदमय होकर उसकी पीठ पर हाथ फिराने लगा, बलविंदर का बलिष्ठ शरीर किसी भालू जैसा था, श्वेत-श्याम रंग के केशों से भरा हुआ। उसके चेहरे से लेकर टांगो तक केशो से भरे हुए थे, नितम्बो व पेट पर भी बाल थे उन बालो को छूने का एक अलग ही आनंद था मानो किसी कपास के गठ्ठर में हाथ फैरा रहें हो। उसकी झांटे, कांख छाती व दाढ़ी के बाल 50% श्वेत हो चुके थे। सर भी 50% से काम केश रह गए थे जो की पगड़ी पहने के कारण पता नहीं चलते थे।

उसके और मेरे लिंग से अभी भी द्रव्य बह रहा था हम दोनो के लिंग हम दोनो के मध्य हमारी भाँति ही एक दूसरे के आलिंगन मे थे| अब बलविंदर ने मेरे होठों को चूसना आरंभ किया व अपनी हथेलियों से मेरे नितंबो के मालिश करने लगा| उसका लिंग दोबारा पुन: अपने आकार को बढ़ाने लगा, उसके लिंग की त्वचा स्वत: ही खींच कर नीचे चली गई और उसका लिंगमुंड (सुपाड़ा/ dickhead) फिर से जैसे मेरी और देखने लगा| हम दोनो अभी भी यौन चर्म पर थे और बलविंदर ने उत्साहपूर्वक मुझे खींच कर अपनी छाती से भींच लिया व जबरन जिव्हा से मेरे मुख का रसापान करने लगा| मैने भी सहयोग करते हुए साथ दिया और अपनी जिव्हा से उसके मुख का रसापन किया, हालाँकि उसकी दाढ़ी-मुँझे चुभ रही थी किंतु मादकता के चर्म पर वो भी कपास (cotton) लग रही थी| जैसे ही मैने सहयोग पूर्वक उचकर उसके होंठो को चूसा बलविंदर के बढ़ते हुए लिंग ने रूठ कर मेरे लिंग के आलिंगन को छोड़कर मेरे नितंबो (asscheeks) के मध्य से होते हुए हल्के हल्के थपेड़े मेरी गुदा पर मारने आरंभ कर दिए| उसके मुख से मेरी लार टपकने लगी व मेरे मुख से उसकी लार टपकने लगी|

बलविंदर ने मुझे धकेल कर लेटा दिया व मेरे मुँह के सामने अपने लिंग को लाकर कहने लगा, "इस पर थूक"| मैने उसके लिंग पर थूक कर उसे पूरा गीला कर दिया, बलविंदर ने मेरे नितंबो को सहलाते हुए मेरी गुदाछिद्र को फैलाया और फिर उसमे थूक भरने लगा| जब मेरे गुदाछिद्र से उसका थूक बहने लगा तो उसने तपाक से मेरे पीछे आकर अपने लिंग मुख को मेरे गुदाछिद्र पर रगड़ना प्रारम्भ कर दिया| धीरे-धीरे से वो अपने लिंग को मेरे गुदाछिद्र से गुदा के अंदर प्रविष्ट करने का प्रयास करने लगा व मेरे कानो को चूसने (earlobes sucking) लगा व पेट को सहलाने लगा| जैसे जैसे उसका लिंग भीतर होता गया मेरी पीड़ा बढ़ती गई, उसके आधे लिंग ने अभी प्रवेश किया होगा की पीड़ा असहनीय हो गई मैने बलविंदर को हटने के लिया कहा व धकेला भी किंतु सब व्यर्थ गया| वो किसी ड्रेगन की भाँति मुझ पर पूरी तरह से हावी था उसने मुझे खींच कर अपने और समीप कर लिया व एक ज़ोर के धक्के के साथ पूरा लिंग मेरी गुदा मे प्रविष्ट कर दिया| उसके एक हाथ ने मेरे मुँह को भीच रखा था व दूसरे हाथ ने मेरी कमर को कस कर उसके लिंग के साथ चिपका रखा था| सब कुछ शांत हो गया था उसके साँसे थम गई थी, मेरे शरीर अकड़ गया था व पीड़ा असहनीय (unbearable pain) थी| मेरी आँखो से अश्रु बह रहे थे साँसे तेज थी व शरीर अकड़ा हुआ था...

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