सुधीर व मुमताज - एक नया अनुभव

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मुमताज अपने हथेलियों से सुधीर के लिंग की जांच करते हुए उसके बहते वीर्यद्रव्य (PRECUM) को अपनी अँगुलियों में चाशनी की भांति बटोरती व सुधीर की नितम्बों की दरार में ले जाकर किसी लेप की भांति मल रही थी, जैसे-जैसे सुधीर के दरारों में ऊँगली दवाब के साथ घूमती उसका चूषण और तेज हो जात। सुधीर ने भी मुमताज का अनुसरण किया व उसके लिंग से वीर्यद्रव्य (PRECUM) को समेटकर मुमताज की गुदा में किसी मरहम की भांति लेपना प्रारम्भ कर दिया। मुमताज़ ने अपने वक्ष को सुधीर की छाती से चिपका लिया व पुनः मुख चुम्बन करते हुए एक दूसरे की नितम्बो को सहलाते और विर्यद्रव्य का गुदा के दरारों में लेपते रहे।

जब मुमताज़ की उँगलियाँ सुधीर की गुदा में सहजता से फिरने लगी तो उसने मंद मंद दवाब की साथ सुधीर के गुदाछिद्र में धकेलने का प्रयास किया, असफल होने पर उसने अपने हथेली पर थूका व उसे सुधीर के गुदाछिद्र पर मल दिया। पुनः प्रयास से सम्भवतः थूक की चिकनाहट के कारण इस प्रयास में वो सुधीर की गुदा में अपनी एक ऊँगली कुछ गहराई तक प्रविष्ट करने में सफल हो गई, ऊँगली के अंदर प्रविष्ट होते ही सुधीर की मुँह से आह के स्वर व शरीर को ऐंठन से ऊँगली बाहर आ गई। इस पुरे कर्म में उनका चुम्बन जारी रहा फिर कुछ और प्रयासो के पश्चात मुमताज अपनी एक ऊँगली को पूरा भीतर प्रविष्ट कराने में सफल हो गई, जैसे जैसे ऊँगली गहराई को चीरते हुए भीतर सरकती सुधीर के लिंग का तनाव बढ़ जाता। अब स्थिति यह थी कि मुमताज की पूरी ऊँगली सुधीर के गुदाछिद्र में थी व उसका लिंग पुरे तनाव में मुमताज की नाभि पर वीर्यद्रव्य (PRECUM) भर रहा था।

कामुकता में उत्साहित सुधीर ने अपनी हथेली में थूका व मुमताज की पुर्नावृति करते हुए मुमताज के गुदाछिद्र से छेड़खानी करने लगा, उसके एक प्रयास से ही उसकी ऊँगली मुमताज की गुदा की गहराई में सरलता से फिसलती चली गयी। दोनों एक दूसरे के गुदाछिद्रों में अपनी उंगलियां धसाये हुए अपने लिंगो को एक-दूसरे के लिंग से रगड़ने लगे। उनके इस लिंग रगड़ से लिंगों के नसें फूल गई व लिंग तनाव के साथ अपने पूर्ण आकर में एक दूसरे से गुथने लगे।

सुधीर के लिंग तीव्र झटकों के साथ वीर्य उड़ेलने लगा, उसके वीर्य के वेग में इतनी त्रीवता थी की वो मुमताज़ की चूचियों व चेहरे पर किसी वर्षा की बूंदों के प्रकार टपकने लगे किन्तु उसके लिंग में तनिक भी ढीलापन नहीं आया, अपितु उसके लिंग की सुरक्षा त्वचा खिंच कर निचे चली गयी व उसका लिंगमुण्ड अपने गुलाबी रंग के साथ किसी सूर्य की भांति चमक कर उदय हुआ। मुमताज अपने आप को संभाल नहीं पाई व सुधीर के वीर्य से लगभग भीग गई, उसने रजाई को बिछोने से निचे फेंक दिया व अपने शरीर व चेहरे पर गिरे वीर्य को अंगुली में लपेट कर माखन की भांति चाटने लगी।

सुधीर की श्वांस तेज चल रही थी वो अपनी पीठ के बल लेट कर अपने को सहेजने का प्रयास करता हुआ अपनी आँखों के सामने अपने लिंग की बलिष्ठ तनाव व लिंगमुण्ड के गुलाबी रंग जो की वीर्य से सना हुआ था, दरारों से आ रहे प्रकाश में देख कर अचंभित व् गौरवांतित हुआ। यह उसके जीवन का प्रथम स्खलन / वीर्यस्राव है जो बिना हस्तमैथुन के हुआ है। प्रथम बार ही उसने अपने लिंगमुण्ड को भी देखा। उसके चेहरे के भाव से स्पष्ट पता चल रहा था की वो थक भी गया है और तृप्त भी हुआ है, किन्तु लिंग के तनाव से यह प्रतीत हो रहा था की अभी उसमे और कामवासना शेष है।

मुमताज़ ने झुककर सुधीर के लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसा व उसकी झांघो पर गिरे हुए वीर्य को अपनी जिव्हा से चाटा, सुधीर ऐसे ही निढाल पड़ा रहा किन्तु मुमताज के लिंग से रिस्ते हुए वीर्यद्रव्य व तनाव से समझ आ रहा था की उसके अनुभव के सामने उसे संतुष्ट करना या चर्म बिंदु पर ले जाना इतना आसान नहीं है। मुमताज़ पुरे मन से सुधीर के साथ यौनक्रीड़ाओं का आनंद ले रही थी तो सुधीर को अनुभूति हुई की उसे भी सहभाग करना चाहिए, मुमताज के लिंग ठीक से देखने व आभासित करने के उद्देश्य से वो उठा कर बैठ गया तो अनुभवी मुमताज लेट गई। ध्यानपूर्वक देखने पर प्रथम बार उसने पाया की मुमताज का लिंग उसके लिंग से भिन्न है व उसके लिंगमुण्ड का कोई आवरण नहीं है, उसका लिंग सुधीर के लिंग से बड़ा व मोटा भी हैं, लिंग पर बाल भी नहीं हैं, जबकि उसका लिंग तो झांटो से भरा हुआ है। सुधीर मुमताज़ के लिंग को मुंह में लेने का साहस नहीं कर पा रहा है अतः उसने उसके लिंग की अपने हाथो से मालिश की व प्रयास किया की वो हस्तमैथुन से मुमताज़ का भी वीर्यपात करवा दे।

मुमताज ने सुधीर की झिझक को भांप लिया व तुरंत उसे इशारा किया की वो लेट जाए, सुधीर के लेटते ही मुमताज ने रजाई उठा कर दोनों को ओढ़ा दी व घूमकर अपनी पीठ सुधीर की और कर के अपनी गुदा को सुधीर के लिंग के ऊपर घिसने लगी। सुधीर का अबतक का ज्ञान केवल चित्रों व कहानियों तक ही सिमित था उसे गुदा मैथुन का कतई अनुभव नहीं, परन्तु गुदा मैथुन की चाह व कामुकता वश वह अपने पुरे प्रयास से पाने लिंग को मुमताज की गांड की दरारों में घिसने लगा, इसी प्रक्रम में उसका लिंग और होता हुआ अपने पूर्ण आकर में आने लगा। सुधीर ने अपने अब तक सब ज्ञान व अनुभव को समेटा व अपने हथेली में थूक कर उसे गुदाछिद्र में मलते हुए अंगुली से खोलने लगा, मुमताज का गुदाछिद्र पहले से ही नरम पड़ा हुआ था व उसमे से थूक रिस रहा था, सुधीर ने उचित अवसर देखकर अपने लिंगमुंड को मुमताज के गुदाछिद्र पर टिकाया व मंद मंद उसमे प्रविष्ट करने की चेष्टा करने लगा।

सुधीर ने एक तीव्र झटके के साथ अपने अग्र भाग को मुमताज के नितम्बो से चिपका लिया, उसके इस झटके से सुधीर का लिंग फिसलता हुआ मुमताज की गुदा में पूरा समा गया। सुधीर को तो यह भी ज्ञान नहीं की उसे अपने लिंग को मुमताज की गुदा में आगे पीछे करना होगा तभी मैथुन संभव होगा, वह ऐसे ही अपने लिंग को पूर्ण भीतर डालकर पड़ा रहा तो मुमताज ने अपने आप को आगे पीछे धकेलकर सुधीर को सन्देश दिया को ऐसे ही करे। अब सुधीर और मुमताज लयबद्ध हो कर गुदा मैथुन का आनंद ले रहे थे, दोनों कामुक परन्तु मंद स्वर में आह ओह कर रहे थे। मुमताज ने सुधीर के हाथ पकड़कर अपने चुचकों पर रख दिया तो सुधीर उसके चुचकों को सहलाने लगा, मुमताज ह्ह्हम्मम्मम हम्म्म्म ह्म्म्मम्म्म्म करती हुई अपनी हथेली से सुधीर के नितम्बो को सहलाती व कभी धक्का लगा कर अपने नितम्बो पर पटकती हुई हांफ रही थी, सुधीर की गति व श्वांस तीव्र और तीव्र होती गई।

रजाई के भीतर क्या चल रहा है अगर कोई इसका अनुमान लगाना चाहे तो भी उसे ये ज्ञात नहीं होता की वो दोनों कामक्रीड़ा में मग्न हैं, सुधीर ने अपनी मुमताज के चुचकों को सहलाने के बदले उनको मसलना आरम्भ कर दिया व अपने धक्को को तेज करने लगा। मुमताज आह आहे हम्म मां मर गई हम्म्म्म्म ओह्ह कामुक स्वर निकालती रही व सुधीर धक्के देता रहा। अचानक से मुमताज का शरीर अकडने लगा व टाँगे ऐंठकर सीधी हो गई सुधीर का लिंग फिसलकर उसकी गुदा से बाहर निकल गया, किन्तु सुधीर किसी मंझे हुए खिलाडी के तरह अपने लिंग को पकड़ कर मुमताज के गुदा में पुनः धकेल लिया व उसकी कमर को कस का पकड़ लिया। सुधीर के तेज धक्को से प्रतीत हुआ की वो अब चर्म पर पहुँच गया है व किसी भी पल उसका वीर्यपात हो सकता है। अपनी पकड़ को और मजबूत करने के लिए सुधीर ने मुमताज के लिंग को पकड़ना चाहा तो पाया की उसका लिंग शिथिल पड़ा है व वीर्य से सना हुआ है, उसने उसी शिथिल लिंग व अंडकोषों को हथेली में समेटकर कर एक मजबूत पकड़ बना ली।

पसीने से तरोबतर सुधीर सुगमता व लयबद्ध होकर मुमताज की गुदा में अपनी लिंग को जड़ तक ले जाता व खींच कर तब तक बाहर लाता जब तक उसके लिंगमुण्ड दिखाई न देता, शरीर में ऐंठन से उसके लिंग ने झटको के साथ मुमताज की गुदा में वीर्य भरने लगा, दोनों के शरीर से पसीने से भीगे हुए और शरीर चिपके रहे। कुछ समय पश्चात सुधीर का लिंग शिथिल हो कर किसी मांस के लोथड़े की भांति मुमताज की गुदा से छिटक कर बाहर गिरा, मुमताज का गुदाछिद्र फैलता सिकुड़ता हुआ ऐसे प्रतीत हो रहा ही की वो भी श्वांस ले रहा हो, गुदा से सुधीर के टपकते वीर्य को मुमताज अपनी हथेली से समेटती व अपने चुचकों पर मलती कब सो गई दोनों को इसका आभास ही नहीं हुआ। भोर के ५ बजे का समय हो गया था और मंद मंद वर्षा अभी भी हो रही है और ये दोनों किसी नवमाता व नव जात शिशु की तरह निवृस्त्र होकर एक दूसरे के आलिंगन में रजाई ओढ़े सोये हुए थे।

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