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Click hereमेरी ननद संगीता हेमा नंदिनी
मेरी ननद संगीता की पहली चुदाई अपने भैय्या से....
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"aaaahhhh...mmm...sss....हेमा ... आआअह्ह्ह ... यार और जोर से दबा मेरी चूची को... उफ्फ्फ क्या ठीस उठ रही है.. रगड़ अपनी बुर को मेरी बुर पर.... अम्मामा मेरी छूटने वाली है..." कहती संगीता मुझे चूम रही थी और वह भी मेरे स्तनों के साथ खिलवाड़ कर रही थी।
दोस्तों.... मैं हूँ हेमा, हेमा नंदिनी ... एक और रंगीन अनुभव के साथ आप के समक्ष।
संगीता मेरी ननद मेरे से दो वर्ष बड़ी और एक बच्चे की माँ भी है। जब से हम दोनों ने एक साथ मिलकर मेरे ससुरजी से यानि के संगीता के पापा से चुद्वाये है हमारी घनिष्ठता और बढ़ी। उस घटना के बारे में मैं फिर कभी लिख कर आपका मनोरंजम करूंगी।
संगीता के पति हरीश रेलवे में TTE है, और जब भी वह ड्यूटीपर जाताहै तो संगीता मेरे यहाँ आजाती है या मुझे अपने यहाँ बुला लेती है, और फिर हम खूब मौज मस्ती करते है, जैसे आज कर रहे है।
आज संगीता मुझे अपने यहाँ बुलाई और मैं दिन के ग्यारह बजे यहाँ संगीता के पास आगयी। मैं जब आ पहुंचि तो व्ह खाना पका रहीथी। मैं वहीँ किचन में उसके साइड में थी। खाना पकाते हम इधर उधर की बातें करे और और फिर कुछ देर TV देखे, दोपहर के एक बजे हम खाना खाये, और बेडरूम में आकर बेड पर गिरे। वह अपने बच्चे को दूध पिलाने के बाद हम अपने काम में जुट गए।
हम दोनों ही हमारे अंगों को चूमना, चाटना, चूसना, चूची दबाना एक दूसरों की बुरों में ऊँगली से चोदना यह सब काम करने लगे। ऐसे कामों में हम जुटे थे की संगीता खल्लास होते ऊपर के शब्द बड बडाने लगी और अपने climax पर पहुंची। जैसे ही यह खल्लास होगयी वह मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे बुर पर अपनी रिसती बुर रगड़ने लगी। पूरे आठ नौ मिनिट बाद मैं भी अपने ऑर्गास्म (orgasm) पर पहुंची।
हम दोनों थक गए थे और थोड़ी देर सुस्ता चुके थे।
हेमा एक बात बोलनी थी...बोलूं..." संगीता मेरे टीट (teat) को पिंच करती बोली।
"अरी बोलना... क्या बात है...?" मैं भी उसके चूची को मेरे हाथों में लेती बोली।
"हेमा... तुमने मेरे भैया पर क्या जादू चलाया...?" वह मेरे आँखों में देखते बोली।
"संगीता यह क्या बात है... मैंने ऐसा क्या कर दिया....?" मैं चकित होकर पूछी।
"तुम सच में ही जादूगरनी है.... मेरे बबा पर अपना जादू चलायी खुद मौज मस्ती करि और फिर मेरे पर भी तुम्हरा जादू चलायी तो मैं भी अपने बाबा से चुद गयी...." वह फिर से अपनी चूत मेरे बुर के होंठों से रगड़ती बोली।
"तुम घर वालों को मैं ही मिली क्या..? अपने बाबा से चुदाना तुम्हरा इच्छा था; ख्वाईश था और तुम्हारे बबाको तुम्हे पेलेने का शौक था.... तुम लोग बस एक मौके की तलाश मे थे... वैसे भी अब क्या हो गया है जो तम मुझे कोस रही हो....?" मैं पूछी।
तुम्हारा भैयासे शादी होकर डेड साल हो गया.... तुम्हारे से शादी के बाद भैय्या मेरी ओर मुड़कर नहीं देखे...यह तो तुम्हारा ही जादू का असर है ना..." संगीता बोली।
"संगीता यह क्या बात कर रही हो.... हप्ते में दो बार तो तुम भाई बहन मिलते ही रहे हो ... गप्पे मारते हो, हंसी मजाक कर लेते हो....एक दूसरे की हाल चाल पूछते ही हो... और तुम बोल रही हो की तुम्हारे भैय्या तुम्हे मुड़ कर भी नहीं देख रहे है...?"
"मेरा मतलब वैसे मिलन से नहीं है..."
"तो.....?" मैं उसे चकित हो कर देख रही थी।
"जब से भैय्या तुम्हारे सुंदरता का और तुम्हारी इस मुनिया के दीवाने हो गए है, वह मेरी ओर देख नहीं रहे हैं.. कितने दिन होगये भैय्या से करवाके..." संगीता बोली।
"क्या...या...या...:?" मैं सकते में आगयी "तु....तु... तुम...अपने भैय्या से.. मेरा मुहं से शब्द नहीं निकल रही थी। मैं हकलाती रही।
संगीता ने हाँ में सिर हिलायी। "कब और कैसे... " यह प्रश्न अनायास ही मेरे मुहं से निकले।
"जब मैं 18 साल की थी और इंटर कर रही थी...".
तब तक मैं संभल चुकी थी। "वाह मेरे पति तो छुपे रुस्तम निकले" मैं सोची।
यही बात मैं संगीता से कही..."वाह तुम्हारे भैय्या तो छुपे रुस्तम निकले... मुझे विस्तार जान ना है... विस्तार से बोलो.. कैसे हुआ क्यों हुआ... सब पूरा डिटेल में बोलो..." मैं पूछी।
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संगीता की कहानी
संगीता बोलने लगी
जून के महीने में इंटर सेकंड ईयर की क्लासेज स्टार्ट भी हो गये। क्लासेज स्टार्ट होने एक महीने के अंदर मैं बीमार पड़गयी। बुखार की गोली लेने से बुखार कम हो जाएगी यह समझ कर बाबा ने बुखार की गोलियां लेकर दिए। लेकिन दो दिन उस गोली खाने के बाद भी बुखार कम नहीं हुयी बल्कि और जयदा होगयी।
जब हॉस्पिटल गए तो डॉक्टरों ने बताया की मुझे टाइफाइड हो गया है और मुझे कमसे कम दो हप्ते हॉस्पिटल में रहना है। दो हप्ते मैं हॉस्पिटल में थी और जब डिस्चार्ज करते डॉक्टरों ने कहा 'यह पेशेंट बहुत कमज़ोर (weak) है और इसे एक माह और बेड से नहीं उठना है। यहां तक की पिशाब, टट्टी भी बेड में ही होना चाहिए।
मैं डिस्चार्ज होकर घर आगयी। मेरे मम्मी (सौतेली) ने मेरे जिम्मेदारी लेने से साफ मना करदी। बाबा ने एक फीमेल नर्स को मेरी देखबाल के लिए रखे। लेकिन वह भी दो दिनों में मम्मी की बातों में आगयी और पर्टिक्यूलरली जब टट्टी के बाद या पिशाब के बाद मुझे साफ करने से तकरार करने लगी। घर में माँ और मेरी छोटी बहन (सौतेली) गीता के सिवाय कोई नहीं रहते थे। भैय्या और बाबा तो मर्द थे। में मन मसोस कर उस नर्स की ताने सुनती थी। कोई विकल्प नहीं था।
एक दिन नुर्से ने मुझे डांटते भैय्या ने सुन लिया और उसे चलता कर दिए। पूछने पर बोले 'मेरि बहन की देखबाल में करता हूँ' बाबा को भैय्या ने मनाली। मेरे पूछने पर बोले "संजू..." (भैय्या मुझे संजू ही कहते है) तू मेरी छोटी बहन है... जब तुम छोटी थी तो कितने बार मैं डायपर चेंज करता था। तुम्हे साफ सफाई और पानी भी नहलाता था। जैसे तब करा वैसे ही अब करलूँगा, तू मेरी प्यारी बहन है..." कह कर मेरे माथे को चूमे और में खामोश हो गयी।
उसके बाद भैय्या ही मेरा देखभाल करने लगे। मेरे मुहं को ब्रश करते मुझे नास्ता, खाना खिलाते जब भी जरूरत हो तो बेड पैन (bed pan) लगाना निकालना और साफ करने के साथ साथ वह मुझे स्पॉन्ज बाथ बी देने लगे।
पहले दो तीन दिन तो मैं यह सब भैय्या से करवाने हीच किचाई लेकिन दुसरा कोई चारा नहीं था। उन तीन चार दिन में मैं भैय्या के सर्विस की अदि हो गयी।
अब मुझे हिच कीचाहट या un-easy नहीं होती थी। दो हप्ते गुजर गए। मैं ज्यादा तर नार्मल होगयी। लेकिन मेरे शरीर में कमजोरी (weakness) और भी थी।
ईसि समय एक नई बात यह हुयी की जब कभी भी भैय्या स्पॉन्ज बाथ देने के बाद मेरे शरीर को टॉवल से पोंछते थे मेरे शरीर में एक सुर सूरी सी होने लगी। पर्टिक्यूलरली जब वह मेरे स्तनों को या मेरे जाँघों के बीच ड्राई (dry) करने के लिए टॉवल चलाते समय। तीन दिन और गुजर गए। मैंने नोट किया की जब भैय्या मुझे dry करते मेरे स्तन उभार ले रहे थे और मेरी निप्पल्स में कडा पन आ गया हो।
मैं क्या करूँ, क्या बोलूं समझमे नहीं आ रहा था। बोलूं तो किसको बोलूं...? माँ तो सुनती नहीं... ऊपर से डांट भी लगाती। लज्जा के मारे बाबा से बोल नहीं सकती।
फिर मेरी हालात यह होगयी की अब मैं भैय्या के हाथों का स्पर्श मेरे शरीर पर एन्जॉय करने लागि। मैंने महसूस किया की जब कभी भी भैय्या से यह सब करवती हूँ, मेरा शरीर पुलकित होने लगी। स्तनों में भारी पन के साथ घुंडियां (nipples) स्टिफ होने लगे। और तो और मेरे जाँघों के बीच की उभार.. वहां... मेरे बुर के फांके भी संवेदन शील होने लगी। भैय्या का अपना काम ख़तम होते ही में चाहती थी की कुछ देर और करे।
दो और दिन बाद मैं बेशर्म होकर बोली "भैय्या तुम्हारा टॉवल से पोंछना कुछ देर और करो... मुझे राहत सी मिलती है...टॉवल की रगड़ से मुझे राहत मिलती है.. खास कर तब आप मेरे छाती या जांघों के बीच वाइप (wipe) करते तो मुझे अच्छा लगता है..."
भैय्या ऐसे ही करने लगे और मैं एन्जॉय करने लगी।
एक दिन भैय्या मुझे स्पॉन्ज बात देनेके बाद टॉवल से पोंछते पोंछते जाने में हुआ या अनजाने में भैय्या की उँगलियाँ मेरे निप्पल को पिंच करे।
भैय्या का ऐसा करते ही "sss...haaaahhh" कर मैं सीत्कार करि।
"क्या हुआ संजू....?" भैय्या पूछे।
"कुछ नहीं भैय्या ... आप अपना काम जारी रखो..." मैं बोली। उस दिन, चार पांच बार और मेरे निप्पल्स को पिंच करते या ट्विस्ट करते रहे। मैं चाहकर भी उन्हें रोक नहीं पायी। घर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं नहीं रहते थे।
बाबा ऑफिस; बहन गीता स्कूल चली जति थी। वह उस समय दसवीं पढ़ रही थी। मम्मी तो मुझसे बचने के लिए, अपना काम ख़तम करते ही किसी सहेली के यहाँ चली जति थी। झगड़ालू माँ से बचने के लिए बाबा कुछ नहीं बोलते थे। तब तक भैय्या का डिप्लोमा ख़तम होगया और वह नौकरी की तलाश में थे और घरपर ही रहते थे।
उसके बाद मैंने यह नोट किया की भैय्या अब किसी न किसी बहाने मेरे यहाँ; मेरे मुहं धोनेके बहाने या और कुछ और बहाना लेके मेरे चूचियों से खिलवाड़ करते रहे। अब मुझे इनकी हरक़तों का जायका मिलने लगी तो मैंने भी उन्हें टोकाती नहीं थी।
आखिर मैं क्या करूँ... मैं भी तो जवान हो चुकु थी। 18 साल की भरी जवानी में हूँ और जवानी की उमंगें मेरे में भी उमड़ने लगे। मैं चाहती थी की मेरा भी कोई बॉय फ्रेंड हो ... में उनके साथ मौज मस्ती करूँ जैसे की ज्यादा तर लड्कियाँ करते हैं। मेरे कुछ सहेलियों से मैंने सुन चुकी थी की कैसे उनके बॉय फ्रेंड्स लेते थे और उन्हें कितना मजा अता था।
यह सब सुनकर मेरे में भी इच्छा होती थी की मैंभी उन सहेलियों जैसे रहूँ। लेकिन ढरती थी की कहीं बदनाम न हो जावूं।
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एक दिन भैया मुझे स्पॉन्ज बात देने के बाद मेरे शरीर को अछि तरह पोंछते मेरे मस्तियों से खेले और मेरी जांघों में भी रगड़ रगड कर वहां पूरा लाल कर दिये। उसके बाद वह अपने कमरे में चले गए। मैं अकेली बैठे बैठे बोर हो रही थी तो सोची भैय्या से कुछ देर बातें करले, मैं उनके कमरे की ओर बढ़ी।
उनके रूम का दरवाजा बिड़का के थी और मैं उसे ढकेल कर अंदर गयी। भैय्या वहां नहीं थे। लेकिन अटैच्ड बाथ से कुछ आवाजें आ रहीथी। मैं भैय्या को बुलाने को सोची फिर सोची की सुने यह आवाजें कैसी है और मैं दरवाजे को थोडा सा दक्का दिया तो वह थोडीसी खुलकर एक छोटासा झिरी बनी। मैं आंख लगाकर अंदर देखि तो स्तब्ध रह गयी।
अंदर भैय्या कुण्डी पर बैठे है और उनके शरीर पर सिर्फ बनियान थी। कमर के निचे वह नंगे थे और वह अपने मुट्ठी में अपना पकड़कर ऊपर निचे हिलाते कुछ बड बडा रहे थे। मैं अपने कान झिरी के पास रख कर ध्यान से सुनी तो मैं चकित रह गयी। भैय्या मेरे नाम से यानि की संजू... संजू... कहते मूठ मार रहे थे। भय्या का मुट्ठी में बंद थी तो मुझे उनका लम्बाई का पता नहीं चला लेकिन उनका गुलाबी सुपाड़ा (cock head) लाइट की रोशिनि में चमक रही थि।
मैं पहले तो स्तब्ध रह गयी, लेकिन जल्दी ही होश ने आगयी और ध्यान से भैय्या को देखने लगी। उन्हें देखते देखते मेरे में आग लगी... मेरी बुर से ऐसे लगी जैसे मेरे चूत से भाप निकल रहा हो। अनजाने में ही मैं अपनी उँगलियों को मेरे बुर पर लेगयी और लागि दबाने, मसलने। कोई पांच मिनिट बाद भैया मूठ मारते रहे और "आआह्ह्ह... संजू.. ममम.. संजू.. मै लवली सिस्टर... कहते झड़ गए। भैय्या का लंडसे ढेर सारा वीर्य निकला। उस सफ़ेद घाड़ा वीर्य देख कर मेर मुहं में ढेर सरा पानी (saliva) आया।
उसके बाद मैं खामोश अपने कमरे में आयी और भैय्या के बारे में सोचने लगी। बिचारे भैय्या....मेरे लिए इतना कुछ करें है... बिचारे मेरे नग्न शरीर को देखने पर ही उनका यह हाल हुआ होगा। उनका इस परेशान का कारण मैं ही थी। उस रात मुझे नींद नहीं आयी। रात भर मेरे आँखों के सामने भैय्या का वह हरकत .... और भैय्या मेरे लिए जो कुछ किये हैं वही घूम रही थी।
आखिर में मै सोची की भैय्या का यह ख्वाइश मैं पूरी करूंगी। एक तो उनकी यह अवस्था मेरे कारण हुई जिसका भरपाई करना मेरी ड्यूटी है तो दूसरा जब मैं बीमार थी तो भैय्या का मेरे प्रति जिम्मेदारी और प्रेम। मैं भैय्या का ऋणी बनी। मुझे इस ऋण को किसी भी कीमत पर चुकानी है। जब मैं इस निश्चय पर आयी की मैं भैया का मुराद पूरी करूंगी तो तब मुझे आराम की नींद आयी।
दूसरे दिन हमेशा की तरह भैय्या मुझे नहलाये और फिर बाकि के काम करके मुझे दवा (मेडिसिन) दिए और मुझे नाश्ता करवये। खुद भी मेरे स साथ नाश्ता किये। वह फिर बाहर जाकर हॉल में बैठे गए। में बहुत देर तक कमरे में रही और भैय्या को तृप्ति देने का प्लान बनायीं फिर हिम्मत जुटाई की क्या करूँ और कैसे...
कोई 10.30 बजे का समय था। में धीरेसे उठकर बहार हाल में आयी। भैय्या TV के सामने सोफे पर बैठ कर टीवी के चैनल बदल रहे थे। मुहे देख कर बोले। ... "आरी संजू...तू क्यों बाहर आयी तुम्हें तो आराम करनी थी... कुछ चाहिए क्या..? मुझे बुलालिया होति...?"
"कमरे में बैठकर बोर हो रही थी भइया...TV का साउंड आया तो सोची तुम्हरे साथ कुछ देर TV देखूं..."
"आवो.... बैठो...." और अपने समीप सोफे पर थप थपाये। मैं उनकी बगल में बैठ गयी। कोई पांच छह मिनिट TV देखने के बाद मैं धीरेसे भैय्या को बुलाई "भैय्या.."
"हाँ संजू... कुछ चाहिए काया...?"
"चाय पीने का मन कर रहा है..."
"तू बैठ, मैं अभी चाय बनाता हूँ..." और भैय्या किचन चले गये। में अपने प्लान को फिर से पुनश्चरण करने लगी।
पांच मिनिट बाद भैय्या दो मग में चाय लेकर आये, एक मुझे दिए, एक खुद लेकर मेरे साइड में बैठ गए। मैं तीन बार चाय की चुस्की ली और भैय्या को देखती बोली "भैय्या आप बहुत अच्छे हैं..." और आगे झक कर उनके गाल को चूमि।
"पगली कहीं की..." बोले और मेरे सर पर हाथ फेरे। एक दो सिप और लेने क बाद मैं फिर से उन्हें बुलाई... "भैय्या..."
"voon.." कहते मेरी ओर देखे।
"मैं आपके गोद में बैठना चाहती हूँ... जैसे मेरे बचपन में बैठती थी" में बोली।
भैय्या कुछ क्षण मुझे देखे और फिर बोले "आरी बैठ ना ...तुम तो मेरी प्यारी गुड़िया है... अब तू बड़ी होगयी तो क्या है तो मेरी गुड़िया ही न.."
में उठी और उनकी गोदमे बैठते अपनी कुल्हों को अच्छी से जमाई।
"अब खुश...?" पूछे।
"हाँ भैय्या बहुत खुश.." में कही "और मुझे सुकून भी मिल रही है" कहते एक बार फिर उनके ।गाल को चूमि और मेरे चाय के कप उनके मुहं के पास रखी। मेरा आशय समझ कर भैय्या ने मेरे मग से चाय की चुस्की ली।
इस बीच मैने मेरे नितम्बों को भैय्या की गोद में दबा रही थी। कुछ पल में ही मेरा मन चाहा रिजल्ट आने लगी। मेरे मांसल नितम्बों के निचे, भैय्या का उभार आने लगी।
मैं मेरे दोनों हाथ भैय्या के गले में डाल कर पूछी "भैय्या आप मुझे बहुत चाहते हैं...?"
भैय्या मेरि ओर ऐसा देखे की यह कैसा प्रश्न है; फिर से बोले "हाँ संजू... में तुम्हे बहुत चाहता हूँ.. तुम मेरी प्यारी बहन हो.."
"तो आप मुझे प्यार क्यों नहीं करते...?" में पूछी।
"संजू... तू पागल हो गयी क्या...? ऐसे कैसे समझ लिया की मैं प्यार नहीं करता हूँ... सच पूछे तो मैं तुमसे बेतहाशा प्यार करता हूँ" कह कर भैय्या मेरे माथे चूमे फिर मेरी आंखों को।
"मैं उस प्यार की बात नहीं कर रहीं हूँ भैय्या" में उनकी आँखों में देखती बोली।
".... तो फिर किस बात की... और प्यार क्या है..? मेरी समझ में कुछ यहीं आ रहा है संजू..." भैय्या बोले।
"मैं इस प्यार की बात कर रही हूँ..." मैं कही और भैय्या का एक हाथ को मेरे उरोज पर राख कर दबायी और उनके होंठों को मेरे में लेकर चूसने लगी।
भैय्या एक क्षण सकते में आगये और मेरे से छुड़ाकर ... "संगीता.. यह तुम क्या कर रही हो... यह गलत है...." कहते मुझे अपने गोद से उतारने की कोशिश करने लगे।
में उनसे और जोर से चिपक गयी और पूछी... "अगर यहसब गलत है तो आप मेरे नाम लेकर मुट्ठी क्यों मार रहे थे...?"
"क्याआआआ....?"
"हाँ... भैय्या, मैं आपको कल कुछ बड़ बडाते मूठ मारते देखि थी.... जब ध्यान से सुनी तो आप मेरे नाम लेकट अपना आगे पीछे कर रहे थे। आज अभी जो मैंने किया वह गलत है तो .. एक भाई को अपने बहन की नाम पर मुट्ठी मारना सही है क्या..? मैं मेरे स्तनों को उनके छाती पर रगड़ते पूछी।
मेरा ऐसा पूछते ही भैय्या का सर शर्म से झुक गया.. वह मुझसे आंख नहीं मिला पारहे थे।
"It is alright भैय्या.. अब हम दोनों जवान होगये हैं.... एक जवान लड़की को देख कर लड़के को और लड़के को देख कर लड़की को दिल धड़कना; और कुछ करनेकी जी चाहना आम बात है... अब में 18 की होगयी हूँ और मुझमे भी जवानी के उमंगें उभरती है... मेरे मन में कई बार आया की मेरा भी एक बॉय फ्रेंड हो.... लेकिन एक बदनामी का ढर तो दूसरा मम्मी की नाराजगी... मैं किसी को मेरा बॉय फ्रेंड नहीं बना पायी।"
मैं कुछ क्षण रुकी और फिर बोलने लगी "कल आपको वैसे करते देख मेरे में मी ख्याल आया कि क्यों न हम एक दूसरे को बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड बनजाये जिस से हम दोनों की इच्छाएँ पूरे हो जायेंगे। और बदनामी का ढर भी नहीं रहेगा...." में रुकी और भैय्या को ही देख रही थी की उनका क्या प्रतिक्रिया होगी..
भैय्या कुछ देर साइलेंट रहे और धीरेसे पूछे... "क्या सच में तुम मेरी गर्लफ्रेंड बनोगी....?"
"हाँ भैय्या..मैं आपकी GF और आप मेरे BF.... कैसी रहेगी यह अंडरस्टैंडिंग....?"
"ओह...संजू... मै डियर सिस्टर.... मेरी प्यारी बहना..." कहते मेरा सारा मुहंपर चुम्बनों का भौचार (showering kisses) करने लगे।
"अरे भैय्या... रुको...रुको....इतनी भी क्या उतावली .. मैं भाग नहीं जा रही हूँ..." मैं बोली।
संजू... I am very happy... मैं अपने आपको संभाल नहीं पा रहा हूँ" कहे और फिर से किस करने लगे। अबकी बार उनका एक हाथ मेरे स्तनों पर टिकी और जोर से दबाये।
वह तो दिख ही रहा है... देखो तो तुम्हरा प्रिंस (Prince) मेरे वहां कैसे ठोकर मार रहा है..." मैं अपनी नितम्बों को उनके उभार पर दबाती बोली।
"प्रिंस... वह कौन हुआ...? और कहाँ ठोकर मार रहा है...? संजू जरा खुलकर बताना" भैया के आँखों में मैं शरारत देखि। मैं समझ गयी की भैय्या को गन्दी बातें करना और सुनना पसंद है।
भैया की बातों से मैं इतना उत्तेजित हुई की मैं अपना लाज लज्जा सब भूल गयी और भैय्या कान के पास मुहं लेजाकर बोली "आपका लंड भैया.... आपका लंड मेरे गांड पर ठोकर मार रही है... जरा देखूं तो तुम्हरा प्रिन्स ऐसा क्यों कर रहा है " कहती भैय्या के गोद से उतरी, उनके पजामा की नाडा खींची।
अब भैय्या के शरीर पर सिर्फ बनियान ही रह गयी। मेरे आँखों के सामने भैय्या का तलवार आक्रमण करने को तैयार खड़ी है।
"ओह्ह्ह... भैय्या कितना प्यारा है तुम्हारा यह प्रिंस.... (how lovely your prince is...) जी भर कर प्यार करने को मन कर रहा है..." में उसे हाथ में लेते कही।
"तो करोना प्यार कौन रोक रहा है तुझे.... अब तो वह तुम्हारा भी प्रिंस है... चाहे जो करो..." भैय्या ऐसा कहते ही मैं उस सुपाडे को चूमि। जैसे ही मेरे होठ भैय्या के लैंड को चूमि भैय्या का सरा शरीर एक बार सिहर उठी।
"आआह्ह्ह्हआआ.... संजू...मममम..." कहते मेरे मुहं को वहां दबाये।
"क्या हुआ भैय्या" में अपने आंखे उठाके पूछी।
"बस कुछ पूछ मत.... तू अपना काम कर..." आनंद से भैय्या के आंखे बंद हो गए। भैय्या का मेरी मुट्ठी में गर्म थी। लग भग 7 इंच होगी... मैं फिर से उसे चूमि और फिर उसके सारे cock head की इर्द गिर्द मेरी जीभ घुमाई, फिर मेरी जीभ की नोक से सुपडे के बीच की छेद में टंग पोके करने लगी। "मममम.. संजू क्या मस्त है तुम्हारा चूसना..उफ्फ्फ...इससे पहले किसी का चूसी क्या..?" पूछे।
"नहीं... भय्या"
फिर तू इतना अच्छा कैसे चूस रही है..?"
मेरे सहेलियां अपने अपने बॉय फ्रेंड के साथ क्या क्या करती है.. बोलते है... वह उन्हें कैसे लेते है... किसका कितना लम्बा और मोटा है सब ..."
मैं अब पूरी लैंड को मेरे मुहं में लेकर चूस रही थी। उनके लंड से प्री कम (pre cum) ooze हो रहा था जिसका स्वाद मेरे जीभ को मिलने लगी। वह स्वाद में नमकीन थी।
थोड़ी देर चूसने के बाद जब पूरी लंबई मेरि झूटन (spit) से चिकनी होगयी तो अब मैं मेरे हाथ ऊपर निचे करते हैंड जॉब देने लगी।
"संज... संजू..." भैय्या बड़ बड़ाने लगे। जैसे ही मैं फिरसे उसे मुहं में ली तो भैय्या मेरे सर को अपने लण्ड पर दबाते बोले "आह्हः... संजू... my darling sister ऐसे ही करो... उफ़ तम्हारा मुहं तो भट्टी की तरह गर्म है..." कहते निचेसे अपनी कमर उठा उठाकर मेरे मुहं को चोदने लगे।
एक बार तो इतना जोर से मेरे मुहं में पेले की उनका सूपड़ा मेरे गले में अटक गयी... "आह भैया... धीरे करो.. हलक में चुभ रही है...मममम..." कही लेकिन मेरा चूसना चुभलाना बंद नहीं करि।
"संजू...संजू...अम्मा..." कितना अच्छा है...आअह्ह . डार्लिंग... में खल्लास हो रहा हूँ.. मेरी गिरने वाली है.. निकालो.. अपने मुहं से निकालो मेरे लण्ड को..."
"नहीं... भैय्या मेरे मुहं में ही छोड़ो.. मेरी सहेलियां कहती है कि इसका स्वाद बहुत अच्छी होती है। मुझे उसे चखना है और उसका स्वाद का आनंद लेनी है..." कहती मैं अपना सर और जोर से ऊपर निचे करने लगी और भैय्या के वृषणों (testis) को हथेली में लेकर सहलाने लगी।
"संजू आर यू शूर" पूछे।
"हाँ भैय्या 100 % शूर मेरे मुहं में ही रिलीज़ कर दो..." में बोलने की देरी थी की भैय्या "आअह्हह्हह्हह्ह" कहते एक लम्बा गुर्राहट करे और अपना गर्म लावा से मेरा महँ भरने लगे।
सच में बहुत स्वादिष्ट था भैय्या का वीर्य... भैय्या जेट के पीछे जेट पूरे चार मिनिट तक अपना लावा मेरे मुहं में छोड़ते रहे। कुछ ही देर में वह सिकुड़ कर मेरे मुहं से अपने आप ही निकला पड़ी। उसे देख कर मुझे हंसी आने लगी। वह पूरा सिकुड़ कर छोटा और सॉफ्ट होगया। थैंक यू मैं डियर सिसटर.. थैंक यू ..." कहते मुझे उठाकर अपने गोद में बिठाये और मरे मुहं को चाटने लगे। मेरे होंठों पर जो थोड़ा बहुत वीर्य था भैया उसे चाट गए। मैं उनके गोद में निढाल पड़ी रही।
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मेरे माथे को चूमने का स्पर्श से मैं आंखे खोली। मेरा सर भय्या कि कंधों पर थी और मेरा हाथ भैय्या छाती से लिपटी। मेरा एक घुटना मुड कर भइया की जांघों के बीच थी। भैय्या मेंरे माथे को चूम रहे थे।
भैया अभी भी पूरे नंगे है जब की में अभी भी मेरे शर्ट और स्कर्ट में हूँ। मेरी आंखे खोलना देख कर "उठ गयी मेरी गुड़िया रानी ..."
में उनकी आंखोमे देखते हलके से मुस्कुराई। "थक गयी..." पूछे।
"हाँ भैय्या कुछ थकावट महसूस हो रही है..."
"अभी तुम पूरी तरह से तंदरुस्त नहिं हो... शायद इसि लिए.. कुछ पियोगी हार्लिक्स, बूस्ट या दूध..." मेरे गाल को चूमते पूछे।
"नहीं भैय्या अभी नहीं...कुछ देर बाद..." में बोली तो उन्होंने मुझे उठकर मेरी कमरे की और चले। मुझे बस्तर पर एक नाजुक गुड़िया की तरह लिटाये और मेरे बगल में लेटकर अपने समीप खींचे। मैं भैया की तन से चिपक गयी। कुछ देर हम खामोश रहे। "भैय्या आप बहुत अच्छे हैं..." में कही और एक बार फिरसे उन्हें चूमि।
"पगली कहीं की की.." मेरे गाल को सहलाने लगे। कुछ ही देर में मेरे शरीर में फिरसे गर्मी बढ़ने लगी।
"भैया.. आप को कैसा लगा...?" मैं उनके लंड को चूसने के बारे में पूछी।
"बहुत अच्छा संजू... सचमे तुम एक एक्सपर्ट की तरह चूसी हो..." अबकी बार भैय्या का एक हाथ शर्ट के ऊपर से ही मेरा एक उरोज पर रख बोले।
तब तक मेरे घुटने के निचे भैय्या का उभार लेकर हलचल कर रही है...
"भैय्या .... लगता है आपका प्रिंस बहुत से तालाबों में तैर चुका है....."
"बहुत नहीं संजू सिर्फ दो में..."
"अच्छा वह कौन हुए..."
"एक मेरी कॉलेज की सहेली और दूसरी..." रुके फिर बोले छोड़ो वह किस्सा..."
"कौन थी भैया... बताओ ना.."
"नहीं... तुम बुरा मानोगी..."
"मैं क्यों बुरा मानूँ .. चुदाने वाली वह थी और चोदने वाले तुम..." इसमें मैं क्यों बुरा मनु..?"
"बुरा से मेरा मतलब थी की तुम बिलीव नहीं करोगी.." जब भैया यह बोले तो मेरे में उत्सुकता और जागी, पूछी... "बोलोना भैय्या प्लीज.. आप मेरे अच्छे भाई हो...है की नहीं..."