शालिनी बनी मेरी दूसरी पत्नी

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Mei apni patni ki saheli ko kaise pataya aur choda.
6k words
4.6
124
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Part 1 of the 2 part series

Updated 06/11/2023
Created 07/06/2022
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Mei apni patni ki saheli ko kaise pataya aur choda.

मैं हूँ राघव (राघवेंद्र) 32 साल एक हैंडसम, तंदुस्त, हट्टा कट्टा नवजवान। एक सरकारी दफतर में अकाउंटेंट की जॉब करता हूँ और साथ ही साथ एक बिल्डर के यहाँ भी उनके एकाउंट्स देखता हूँ। दोनों जगह से मुझे अच्छी कमाई होती है। बिल्डर के यहाँ काम करते मुझे पता लगा की असल मे बिल्डर को हर फ्लैट पर 40% से ज्यादा प्रॉफिट होती है पर मुझे ऑडिट के लिए सिर्फ 8 % या 10 % ही बताना पड़ता है। यह जान ने के बाद मैं अब उस कंपनी का सेल्स एजेंट भी बन गया और हर फ्लैट बिकने पर मुझे दो से ढाई लाख की मुनाफा मिलता है। दो, तीन महिने मे एक फ्लैट भी बिके तो मेरे हाथ में पैसा ही पैसा। मेरा अपना जाती घर है और एक कार भी है।

मुझे घर पर हर सुख सुविधा है लेकिन एक ही कमी है और वह है सेक्स। मैं सुन्दर होने के साथ साथ, मुझमे काम वासना कुछ ज्यादा ही है। कोई सुन्दर युवती या जवान कड़की को देखते ही मेरे में कामोत्तेजना बढ़ती है। और मेरी कामोत्तजना की पूर्ति मेरी पत्नी नहीं कर पाति है। मेरी पत्नी वैष्णवी 28 साल की बहुत ही सुन्दर युवती है। हमारी शादी के 4 साल बीते लेकिन अभी तक हमें कोई संतान नहीं है। होते भी कैसे? कारण यह है वह (फ्रिजिड) सर्द मिजाज की है। उसे सक्स के नाम पर घृणा होती है।

जब हमने डॉक्टर से मिले तो डॉक्टर ने कहा "कुछ औरतें ऐसे होते है लेकिन जैसे जैसे समय बीतता है वह ठीक होसकती है और ज्यादा तर उसे से सेक्स की बातें करे और उसे उत्तेजित करने की कोशिश करें। लेकिन इसमें समय लगता है और बहुत धीरज से काम लेना पड़ता है"।

एक समय ऐसा भी आया की मैं उसे डिवोर्स देने को सोचा, लेकिन वैष्णवी इतनी सुन्दर थी की मेरे से उसे छोड़ते नहीं बना। और वह मुझे हर संभव खुश रखने की कोशिश करती है।

मैं उसे गर्म और उत्तेजित करने की हर संभव कोशिश करता हूँ। अब मैं उसके बुर में लंड पेलने के अलावा हर काम करता हूँ। जैसे की चूत चाटना, चूची मींजना, गांड में ऊँगली करना और भी जो भी मेरे मन में आये। वह भी मेरा अपने मुहं में लेकर चूसते, मुझे झाड़ देती थी। सेक्स की मेरी तड़प उस से देखि नहीं जाती थी और एक दिन कही की अगर मैं चाहूँ तो दूसरी शादी करलूं। इतनी अच्छी थी वह। उस दिन बाद मैं उसे डिवोर्स की बात मेरे दिल से ही निकल दिया।

लेकिन मैं भी जवान हूँ और मेरे में सेक्स की कामना कुछ ज्यादा ही है। और मुझे औरत की चाहत सताती है। आखिर और कितने दिन मैं मूठ मरते रहूँगा। अखीर मैंने एक रंडी के दलाल से बाते चलायी। उसे मैंने पहले ही कह चूका ता की मुझे कोई रेगुलर धंधे वाली नहीं चाहिए। कुछ स्पेशल चाहिए।

"साहेब" उसने कहा "आप निश्चिन्त रहिये मैं आपको वो माल दूंगा जो रेगुलर धंधे वाली नहीं है। मेरे पास ऐसे ऐसे मॉल है की कुछ पूछो मत। कुछ घरेलू औरतेँ है जो अपने पतियों से तृप्ति न पाकर कभी कभार करवाती है तो कुछ शौकीन के खातिर। कुछ गरीब घरेलु औरते पैसे की तंगी से घर चलाने के लिए, जब पैसे की जरूरत होती है तो ऐसे करते है तो कुछ कॉलेज लड़कियां भी है जो अपनी कॉलेज की फीस भरने या परीक्षा के फीस भरने के लिए करवाती है" वह बोला।

"क्या कॉलेज के लड़कियां भी...?" में चकित होकर पुछा।

उसने हाँ में सिर हिलाया।

मैंने उस से कॉन्ट्रैक्ट कर लिया की वह जब भी मुझे जरूरत पड़े लड़की या औरत भेजे। और इस एक साल में सच में ही उसने ऐसी, ऐसी औरतें और लड़कियों को सप्लाई किया की पहली वाली फिर दूसरी बार नहीं दिखी। उनमे से कुछ मेरा 81/2 " हलब्बी लंड को पूरा का पूरा अपने में समालेती थी तो कुछ नहीं पर खूब मज़ा देता थी।

आज भी उसने ऐसे ही एक लड़की के बारे में बोला जो कॉलेज की आखरी सेमिस्टर की फीस भरनी है इसी लिए... लेकिन वह रुक गया।

"लेकिन क्या...?" मैं पुछा।

"3000/- चार्ज करेगी, आपके बाद कल एक और से भी कराएगी ..उसके बाद न जाने वह धंधा करेगी भी या नहिं" वह बोला और मैं हाँ कर दिया।

उसने मुझे एक मॉल का पता बताया और चार बजे उसके लिए वेट करने को बोला। लड़की खुद मेरे पास आजायेगी, उसे मेरा नाम और गाड़ी नंबर मालूम है! और हाँ साहेब लड़की आपके पास तीन घंटे ही रहेगी, शाम 7.30 बजे आप उसे फिर से उसे मॉल के पास छोड़ देंगे। उन तीन घंटेमें आपकी मर्ज़ी"

शाम चार बजे थे और मैं उस मॉल के सामने पार्किंग में अपनी गाड़ी रोक उस लड़की, जिसका नाम उसने रशमी बताया का वेट कर रहा था। इतनेमे "हेल्लो राघव भैय्या... कैसे हैं?" की आवाज़ सुन के मैं उस ओर सर घुमा या। मेरे आमने शालिनी खड़ी थी और कार की विंडो से मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उसकी हंसी से मेरे आंखे चकिया चौंघ हो उठी। वैसी थी उसकी हंसी।

"ओह शालिनी इधर किधर...? में पुछा।

"यहीं नजदीक में वीकली तरकारी मार्किट लगती है भैय्या वहां से तरकारी लेकर घर लौट ही रही थी तो आप दिखे" शालिनी कही और तरकारी बैग दिखाई।

मुझे घभराहट सी हो रही थी की कहीं वह रशमी, शालिनी के सामने न आये!

शालिनी मेरी पत्नी की अच्छी सहेली है। मेरी पत्नी की ही उम्र होगी कोई 26, 27 की होगी। वह दोनों इंटर में क्लास फेल्लोस थे। वह कभी कभी मेरे पत्नी से मिलने आया करती है। ऐसे ही एक दिन वैषणवी, मेरो पत्नी उस से मेरे से इंट्रो कराई।

जिस दिन मेरी पत्नी उसे परिचय किया उस दिन वह येल्लो रंग कलर की कुर्ता और सफ़ेद सलवार पहनी थी। कुर्ता उसके नितम्बों पर इतना टाइट था की उसके भरपूर साइज का नज़ारा होरहा था। 36C कप में समाने वाले उसकी चूची जब वह चलती तो इतने मादक ढंग से हिलते थे की देखने वालों का हाथ अपने आप उसके जांघो के बीच चली जति। उसके गधराये नितम्ब तो समुद्र की लहरें जैसे हिलते है। उसकी गुलाबी होंठों पर की मुस्कान तो तौबा... उसे जब भी देखता हूँ तो मेरा दिल मचल उठता था, लेकिन मैं क्या करता वह मेरी पत्नी की अच्छी सहेली जो ठहरी। मैं मन मसोस कर रह जता। .

जब मेरी पत्नी से उसे परिचय कराया ही वह मुझे भैय्या कहकर बुकने लगी। मेरी नजर उसकी जवानी को चखने का था तो वह मुझे भैय्या बुलाती तो अजीब लगता था। एक दिन ऐसे ही जब उसने मुझे भैय्या कह बुलाई तो मैं तुरंत बोला ... "आरी शालिनी मैं उतना बड़ा नहीं हूँ, तुम मुझे अपनी सहेली की तरह राघव कहकर नाम से बुला सकते हो" में बोला।

"नहीं भैय्या आप मेरे सहेली के पति हैं, मैं आप को भैय्या ही बुलावुंगी" वह बोली।

उसके बाद वह बहुत बार हमारे घर आयी और जब भी मुझे मिलती भैय्या ही कहती। लेकिन मैं उसे कभी भी बहन नहीं समझा। मेरी सोच तो हमेशा उसे पटाने की सोचती थी। उसकी सोच सेही मेरा लंड तनकर खड़ा हो जाता था।

शालिनी एक गरीब परिवार की लड़की है। दिखने में सांवली है लेकिन उसका अंग अंग एक दम फिट है। वह भी मेरो पत्नी की उम्र के ही है 26, 27 साल की होगी। बहुत सेक्सी दिखती है। उसने इंटर में एक लड़के की चक्क्रर में पड़ी और इंटर होते ही घरमे न करने के बाद भी उस लड़के से शादी करली। दोनों तरफ के घर वाले ने उन्हें नकारा! उस के एक तीन साल का बच्चा भी है। लेकिन एक बच्चे की माँ जैसे नहीं दिखती। उसका पति एक निजी कंपनी में काम करता था। और सैलरी कम थी। घर तंगी से चल रहै है। इसी बीच न जाने कैसा उसका पति ब्लड कैंसर का मरीज बन गया। जो छोटा मोटा नौकरी करता था, बीमारी कारण वह भी छूट गयी।

आजके दिन उसकी हालत यह है की उसे पैसों की तंगी सताती है। पति के इलाज और बच्चे की देख बाल। वह डिग्री भी नहीं करि। अब वह एक प्राइमरी स्कूल में किंडर गार्डन बच्चों को पढ़ाती है जो पांच छह हजार सैलरी मिलती उसी से उसे घर संभालना पड़ता है और पति के ट्रीटमेंट भी।

एक अच्छी सहेली होने की नाते विष्णु, मेरी पत्नी उसे पैसों से सहायता करती है। यह बात मुझे मालूम है लेकिन यह पता नहीं की उसने उस पैसे को कभी लौटाया भी है या नहीं। यह सब बातें मुझे विष्णु से हि मालूम पड़ी और उसे शालिनी पर सिम्पथी है। उसी शालिनी आज मुझे मॉल के सामने मिली। मेरी यह घभराहट है की, कहीं वह लड़की शालिनी के मौजूदगी में न आये.... लेकिन बिलकुल वैसा ही हुआ।

शालिनी मुझ से वैष्णवी के बारे में पूछ रही थी और में उसे जवाब दे रहा था की वह लड़की आ गयी और मेरे से पूछी "आप राघव जी है क्या...?"

शालिनी मुझे आष्चर्य से देख रही थी। उसके मुख पर असमंजस के भाव थे।

"हाँ, कार में बैठो... घर छोड़ देता हूँ..." मैं उस लड़की से कहा.

शालिनी की ओर मुड़कर बोला "यह मेरी फ्रेंड की बहन है, इसे घर तक छोड़ने के लिए मेरे फ्रेंड ने कहा है... फिर मिलेंगे, कभी घर आजाना" कह कर मैं गाड़ी स्टार्ट किया और वहां से जल्दी चल दिया।

*************************

इस घटना के दो महीने बाद एकदिन मेरे मोबाइल पर एक फ़ोन आया। नंबर जना पहचाना नहिं थी, मैंने सावधानी से से कहा "हेलो..."

"भैय्या मैं हूँ शालिनी..." उधर से आवाज आयी। मेरा नंबर शालिनी के पास.. शायद मेरी पत्नी ने दिया होगा यह सोच कर कहा "ओह शालिनी कैसे हो.. क्या बात है...?"

'बस यूहीं भैय्या, आप से बात करनी थी..."

"घर आजाओ..."

"नहीं... विष्णु के सामने यह बात नहीं हो सकती... अलग से बात करनी है..."

"तुम मेरा ऑफिस आ सकती हो?"

"हाँ..."

"ठीक है, शाम साडे चार बजे ऑफिस आजाना, वहां कैंटीन में उस समय कोई नहीं रहते वहां बात करेंगे ..." मैं बोला।

"ठीक है..." वह फ़ोन कट करि।

'क्यों बुला रही है... शायद कुछ पैसे की तंगी आ गयी होगी...' में सोचा लेकिन ऐसी बात है तो वह मेरी पत्नी से पूछ सकती है... खैर देख ते है' और में काम में जुट गया।

4.30 जब मैं बहार आया तो वह वहां थी। उसने मैरून कलर की कुर्ता पहन कर सफ़ेद सलवार और काली दुपट्टे में थी। उसके उन्नत वक्ष मेरे आंखोमे चुभ रहे है। में उसे कैंटीन की ओर ले चला। मैंने चाय और बिस्कुट का आर्डर दिया और चाय आने के बाद उसकी ओर देखा। वह धीरेसे चाय चूसक रहीथी। में भी ख़ामोशी से चाय पिया।

"भैय्या उस दिन मॉल के सामने वह लड़की..." वह रुक गयी।

"कहा तो था... वह मेरी फ्रेंड की बहेन है... कहो क्या बात करनी है...?"

"भैय्या मुझे कुछ रूपये चाहिए थी..."

"वैष्णवी पूछो...वह तो तुम्हे हेल्प करती ही है"

"छोटा मोटा अमाउंट से मेरा काम नहीं निकलेगा.. मुझे मेरे पति की हॉस्पिटल में जॉइन करना है..." वह रिक्वेस्ट कर रही है।

"कितना रूपये चाहिए..."?

"बीस हजार..."

"बीस हजार.. यह तो बहुत ज्यादा है...फिर कैसे लौटावोगी ...?"

"किसी तरह लौटावूंगी प्लीज ..."

"ठीक है.. लेकिन मझे क्या मिलेगा...?"

वह मुझे आश्चर्य से देख रही थी।

"देखो शालिनी.. वह रूपये मैं देता हूँ... उसे फिर से लौटना भी नहीं.. लेकिन उसके बदले में..." मै रुक गया।

"वूं.. उसके बदले में... क्या..... क्या चाहिए...?

"देने के लिए तुम्हारे पास बहुत कुछ है..." मैं उसके उन्नत उभारों को देख ते बोला।

वह मेरी बात को और मेरे नजरों को समझ गयी और लाज़ से लाल होती बोली "में वैसी औरत नहीं हूँ..और मैं आपको भैय्या बुलाती हूँ.." ग़ुस्से मे वह तम तमा रही थी.

"केसी औरत नहीं हो... और कौन कहा है कि तुम वैसी औरत हो..? मैंने तो नहीं कहा... और तुम मझे भैय्या कहती हो लेकिन में कभी तुम्हे बहन नहीं समझा"

वह कुछ क्षण साइलेंट रही... फिर धीरे से बोली... "उस लड़की को मै जानती हूँ...और वह कैसी कड़की है यह भी मालूम... अगर यह बात विष्णु को मालूम हो गया तो..."

"ओह तो यह ब्लैकमेल है..."

"................" वह ख़ामोश रही।

में कुछ देर खामोश रहा और फिर स्पष्ट रूप से कहा... "ठीक है... बोलदो विष्णु से..."

वह चकित होकर मुझे देख रही थी। मैं ऐसा कहूंगा वह नहीं सोची थी। "बोलोगी तो क्या होगा..." मैं फिर से बोलना शरू किया "हम दोनों में लड़ाई होगी..चार छह महीने बात नहीं करेंगे.. इतना ही है ना... डिवोर्स तो नहीं देगी। अगर देती है तो अच्छा ही हैं... वह इतनी सर्द औरत है की मुझे मजबूरन उस लड़की जैसा, जिससे तुम कहती हो कि जनती हो--- सहारा लेना पड़ता है। अगर विष्णु डाइवोर्स देतीहै तो मैं दूसरी शादी कर सकता हूँ। दूसरी बात अगर यह बात तुम उसे कहोगी तो उसके बाद मैं निश्चय करूंगा की उस से तुम्हे कोई हेल्प नहीं पहुंचे...' मैं रुका।

शालिनी को क्या बोलना समझ में नहीं आया। वह खामोश बेठी रही।

"देखो शालिनी, तुम बहुत सुन्दर औरत हो, जबसे में तुम्हे देखा हूँ तुम्हे चाहने लगा हूँ। तुम अगर मेरी बात मान गयी तो तो जो रुपये तुम मुझसे लिए है उसे लौटना नहीं पड़ेगा...और मेरी बात पर विश्वास रखो तुम्हारी यह बात विष्णु को मालूम नहीं पड़ेगी।

"लेकिन भैय्या मैं वैसी नहीं हूँ।...."

"फिर वही बात... कौन कह रहा ही तुम वैसी ही... मुझे मालूम है तुम वैसी औरत नहीं हो... इसलिए तो मैं तुम्हे चाहता हूँ "

"............" वह कुछ देर खामोश रही और कुछ सोचने लगी।

"सोच लो.." मैं तपते लोहे पर एक चोट देते बोला "और सही निर्णय लो... अगर तुम्हारा जवाब हाँ में है तो अगले हप्ते विष्णु एक हप्ते के लिए अपने माईके जा रही है..उस समय...' मैं अधूरा छोड़ दिया। हम दोनों खामोश बाहर आगये। में उसे ऑटो चढ़कर मेरी कार की ओर बढ़ा।

उस दिन गुरुवार था शनि वर शाम मेरी पत्नी अपना मइके जाने वाली थी। शालिनी से कोई आंसर नहीं मिला। उस शाम चार बजे मुझे शालिनी फ़ोन करि। मैं फ़ोन उठाकर "हेलो" कहा।

"राघव भैय्या में शालिनी बात कर रही हूँ.." उधर से शालिनी ने कहा।

"कहो क्या बात है...?" क्या वह मानेगी या नहीं मेरे अंदर एक उथल पुथल थी।

"मुझे आप की प्रस्ताव मंजूर है..." वह धीरेसे बोली "लेकिन मुझे पैसे आज ही चाहिए, मेरे पति को हॉस्पिटल जॉइन कराना है..."

"ओके! मिलजाएँगे तुम आवोगी या मैं लादूँ....?

"प्लीज आप आ जाईये" और वह अपना पता बोली।

उस शाम उसे पैसे देकर साथ ही साथ उसके पति को हॉस्पिटल में जॉइन करवा ने में सहायत की। दूसरे दिन शाम वह मेरे घर आई। मेरी पत्नी से कुछ देर बात करने के बाद वह मेरी पत्नी से बोली "विष्णु एक सहायता करोगी..?" वह सकुचाते पूछी।

"आरी पूछना.. क्या बात है..?"

कल शाम मेरे पति को हॉस्पिटल में ज्वाइन कराया..."

"अच्छा.. यह तो अच्छा हुआ... पैसे का इंतजाम होगया...?"

"हाँ.. मेरे एक वेल विशर ने सहायता की है.. शालिनी मेरे ओर देखते बोली "लेकिन..." वह फिर रुकी।

"बोलो क्या बात है.. ऐसे क्यों सकुचा रही है.." विष्णु बोली।

"विष्णु तुम्हे मालूम है जहाँ में रहती हूँ कितना गन्दी बस्ती है। मेरे पति के अनुपस्थिति में मैं वहां अकेली नहीं रह सकती। तुम्हे अगर कोई आपत्ति न हो तो कुछ दिनों के लिए तुम्हारा आउट हाउस में रहना चाहती हूँ, जो भी रेंट होगा मैं देदूंगी" वह बोली। यह सुझाव मैंने ही उसे दिया था।

"शालिनी वास्तव में यह बात मैं कई दिनों से बोलना चाहती थी, लेकिन तुम्हारी अभिमान को ठेस न पहुंचे मैं नहीं पूछी.. तूम जब चाहो तब घर शिफ्ट करलो....और रेंट की बात भूलजाओ...." मेरी पत्नी बोली। उसी दिन शालनी हमारे घर के आउट हाउस में शिफ्ट करि।

बाकि दो दिन वह मेरी पत्नी को पैक करने में और कुछ जरूरी काम में सहायता कि। शनि वर शाम हम मेरो पत्नी को गाड़ी चढाने बाद वापिस लौट रहे थे! शाम के 8 बजे थे। हमने रस्ते में एक होटल में डिनर करे और वापिस लौटे। उसके तीन साल का बेटा पीछे सीट पर सो गया है। शालिनी सामने पैसेंजर सीट पर बैठी थी।

गाडी चलाते समय उसके उभरते उभारों पर या उसके जाँघों हाथ फेरने का का मेरे इच्छा को मैं जबरदस्त रोके था। वह खामोश मेरे बगल में बैठी थी।

घर के पहुँचते ही हैब वह main डोर बंद कर रही थी तो मैं उसे पिछेसे दबोच लिया और मेरे उभर को उसके नितम्बों पर रगड़ते उसके गर्दन को चूम रहा था। मैं बहुत एक्ससिटेड (excited) था।

अरे रुको तो... कपडे तो बदलने दो..." वह बोली में उसे छोड़ दिया और अपने कमरे में आकर फ्रेश होकर कपडे बदला और उसका वेट कर रहा था।

15 मिनिट बाद वह मेरे कमरे मे आयी। में उसे मेरे अगोश में लेकर उसे चूमते पलंग पर खींचा. उसके यहाँ से कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। मैं उसके होंठों को अपने में लेकर चुभलाने लगा.. फिर भी उसके यहाँ से कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। मैंने उसके ब्लाउज खोला उसके नंगे चूची मेरे सामने थे। आअह्ह्ह.. क्या चूची है उसके, एकदम मस्त, वजनी, हमेशा ब्लॉउस के अंदर खैद रहने की का कारण एकदम गोरे थे, शिखर पर बीच में उसके काले अंगूर जैसे घुँइयाँ, देखते ही महँ में पानी आगया।

आगे झुक कर एक को हाथ से दबाता दुसरे को मुहं में लिया और चूसा। उसके शरीर में एक छोटीसी सिहरन महसूस किया। लेकिन उसके मुहं पर किसी तरह की उत्तेजना नहीं दिखी। मैं उसके पूरे बूब (boob) को चाटने लगा। चाटते उसके मुलायम कमर पर हथ फेर रहा था। कड़क होचुके घुंडियों को मसल रहा था। फिर भी वह खमोश थी। उसकी साड़ी खोल उसे नंगा किया उसकी चूत खूब फूली थी...फांके मोटे थे। मैं उसकी बुर में ऊँगली घुमाया.. फिर भी उसमे कोई प्रतिक्रया नहि आयी। सिर्फ बुत बनकर बैठी थी।

मैं उसे छोड़ कर लुंगी बांध कर बाहर हॉल में आगया और सोफे पर बैठ काट TV ऑन किया।

दस मिनिट बाद वह बाहर आई, वह अपना साड़ी बांधकर ब्लाउज पहन चुकी है।

"यह क्या आप यहाँ बैठे है...? मैं वहाँ आपके लिए देख रहीथी.." वह बोली।

"क्यों...? मैं उस से पुछा। वह मेरी ओर आश्चर्य से देखने लगी।

"देखो शालिनी, तुम सुन्दर हो, लेकिन विष्णु से ज्यादा नहीं.... मैं इस लिए तुम्हे चाहा की तुम एक गर्म मिजाज की औरत होगी.. और सेक्स की संवेदन से भरी होगी... और मुझे वह ख़ुशी दे सकती हो जो मेरी पत्नी नहीं दे सकती। मैं एक ऐसी औरत से सम्भोग करना चाहा की वह मुझ से सहयोग करें, कोई पुतले से या बूत से नहीं। तुम इस तरह बूत बन के रहोगी तो मुझे सुकून और सेक्स की तृप्ति कैसे मिलेगी.... छोड़ो... जाओ जाके सो जाओ..." मैं उसे देखता बोला।

"लेकीन..."

"लेकिन क्या...? जो पैसे मैं तुम्हे दिए थे उसके बारे में। मैं समझूंगा की वह रूपये मैंने किसी व्यापार में खो दिए..." मैं रिमोट से TV बदलते बोला।

"राघव जी, प्लीज ऐसा मत कहिये ... चलिए बैडरूम में चलते है..." वह मेरे हाथ पकड़ते बोली। मैं उसे देखा पर वहां से उठने का कोई प्रयास नहीं किया। "चलो बैडरूम में नहीं चलना है तो न सही.. यही.." कहते शालनी मेरे ऊपर झुकी और मरे लुंगी खोल दी। मेरे मुरझाये लैंड को आपने मुट्टीमें बंद दबाने लगी और ऊपर नीचे करने लगी।

"क्या तुम सच में अपनी मर्जी से सहयोग करोगी...?"

"हाँ राघव जी... मुझसे भूल होगयी... आखिर में क्या करूँ .. मेरे पति हॉस्पिटल में है.... तो मेरा ध्यान इधर नहीं था..."

"देखो शालिनी मैं क्रूर नहीं हूँ... मैं तुम्हे दिल से चाहता हूँ... इसीलिए मुझे जबरदस्ती करना पड़ा... अगर तुम वादा करो तो मैं तुम्हारे पति के ठीक होने तक वेट कर सकता हूँ..."

मेरे इस बात का उस पर बहुत बड़ा असर पड़ा।

"ओह राघवजी.. आप बहुत अच्छे है... मैं ही आप को गलत सनझ बैठी... मुझे क्षमा करदो .. आओ अंदर चलते है..."वह मेरी हाथ पकड़ कर सोफे पर से उठाते बोली।

अब मैं भी उसे ज्यादा तंग न कर उठगया और उसके साथ बेडूम में चला। मेरी लुंगी हॉल में सोफे पर पड़ी है। अंदर उसने मुझे बिस्तर पर बिठाई और खुद अपने घुटनों पर बैठ फिरसे मी लिंग को पकड़ कर ऊपर निचे करने लगी। वह मेरे सामने घुटनोंपर बैठी थी। मैंने उसका साड़ी उसके कंधे से निकल दिया अउ रउस्के उन्नत उरोजों को दोनों हाथों में पकड़ा।"आअह्ह्ह्ह... कितने घटिले थे उसकी बूब्स.. सच में मजा आगया... तब तक मेरे लंड तन ने लगा।

में उसके ब्लाउज के हुक खोलने लगा.. लेकन उद्वेग में मेरे से हुक्स नहीं खुल रहे हैं।

"राघव भैय्या ठहरिये..." वह बोली।

"शालू तुमने फिर से मुझे भैय्या बोली..."

"ओह सॉरी.. मैं आदत से मजबूर थी..आपको मैं हमेशा से भैय्या ही बुलाती थी.." कहते उसने अपने ब्लाउज के सारे हुक्स खोल दिए. उसके बड़े बड़े चूचियां उसके ब्रा से बहार खूदने को थे। मइँ उसकी गोरी चूचियों को लालच भरे नजरों से देख रहा था...

मेरा ऐसा देखना देख कर वह शर्म से लाल हो गयी... "राघवजी.. प्लीज ऐसा मत देखिये.. मुझे लाज आरही है..." कहते उसने अपने दोनों हाथों से अपने चूचियां छुपाने कि कोशिश करि।

जाब वह लजारहि थी तो बहुत ही सुन्दर लगने लगी। मैं उसे उठाकर अपने गोद में बिठाया और "शालू तुम लजाते हो तो इतना सुन्दर हो की मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता..." कहते मैं उसके मुलयम गुलाबि होठों को मेरेमे लेकर चूसने लगा।

"ओह राघवजी... आप भी तो बहुत हैंडसम हैं... कहते वह मेरी सहयोग करने लगी। उसके होंठ इतना रसीले थे की मैं जितना चूस रहा हूँ उसमे से उतना मकरंद आ रहा है... चूसते चूसते मैं उसे उठाकर बिस्तर पर पीठ के बल लिटाया..

ऊपर से वह बिलकुल नंगी थी. कमर के निचे साड़ी और पेटीकोट है। अंदर पैंटी है या नहीं यह तो साड़ी खोलने पर ही मालूम होगा। में उसके साइड में लेट कर उसके जांघों पर मेरा पैर चढ़ाया और उसकी ओर झुक कर उसके चूची को चाटने लगा। चूची की बेस से लेकर उसके शिखर तक जीभ चलाया... जैसे ही मेरी जीभ उसकी कड़क निप्पल को टच करि वह सिहर उ ठी और मेरे सर को वहां दबाते "ओह.. राघवजी..." कही।

"क्या हुआ शालिनी...?" अब मैं उसकी टीट को होंठों में दबाया।

"कुछ नहीं.. आप अपना काम चालू रखिये..."

"क्या काम चालू रखूँ.. शालिनी..."

"वही जिसे अपने शुरू किये है...?"

"क्या शुरू किया था मैंने..." मैं इसके निप्पल पर होंठो का दबाव बढ़ाते पुछा...

वह शर्म से लाल हो गयी और नखरे करते बोली... "जाओ..में आपसे बात नहीं करने वाली...." मेंरी ऐसे बातों का अब उसे मजा आ रहा है।

"बात मत करो डार्लिंग... लेकिन वह तो करने दोगी ना..."

"क्या....?" मुझे उसके आँखों में शरारत दिखी।

"चोदने दोगी ना..." मैं उसके कानों के पास मेरा मुहं ले जाकर उसके कान में फूस फसाया।

"छी... छी.. आप कितने गंदे है ..."

मैं उसके बातों का मजा लेते उसके स्तनों पर जीभ चलाना चालू रखा... एक के बाद एक को चाट रहा था निप्पल को चुभला रहा था... और वह... "आह..उफ़.. ममम ...आहहहह" कहते सिसकार रहि थी।

तब तक मैंने उसके साड़ी के फ्रिल्स खींचकर उसके साड़ी खोल दिया और साथ ही उसके पेटीकोट भी। वह अपनी मस्तानी गांड उठकर मुझे पेटीकोट निकालने में सहयोग करि। अंदर एक फ्लोरल पैंटी पहनी थी। मैं उसके जांघों पर हाथ फेर रहा था। उसके जांघें एकदम मल मल की तरह मुलायम है।

मैं जब हाथ फेरा तो ऐसा लगा की मैं किसी संगमरमर पर हाथ फेर रहा हूँ। जांघों पर हाथ फेरते में उसकी उभार की ओर हाथ बढ़ाया। वह मेरे हाथ के लिए टाँगें खोल दी।

मैं उसकी बुर की उभार पर हथेली राखी। एकदम मस्त फूली हुई थी उसकी चूत। पैंटी के ऊपर से हि मै उसकी बूर की दरार पर ऊँगली फेरी।

"उफ्फ्फ ...राघवजी.. यह क्या कर रहे है.. फफ्फु... मेरी सुलग रही हूँ..." कहते कमर उछालने लगी।

"ठहरो मेरी जान... अभी तो शुरू हुआ है..."

"क्या अब शुरू हुआ है.....?" वह चकित होते पूछी।

"हाँ ...क्यों....?"

"बस युहीं.. मेरी पति की याद आगयी..."

"क्या....?"

"जितने समय से आप खेल रहे है..तब तक वह दो बार स्खलित हो जाते थे।"

"तुम्हे मजा आ रहा है की नहीं...?"

"बहुत मजा आ रहा है.. राघव जी... मुझे मालूम ही नहीं कि ऐसा खेल भी खेला जा सकता है..."

तब तक मेरा पूरा तन चुका था.... और छत को देख रहा था... अपना लंड शालिनी से चुसवने का खयाल आया।

"शालिनी...." मैं उसे बुलाया।

"हाँ..." वह सर घुमाकर की मेरी ओर देखते बोली।

"मेरी मुठ मारोगी...? मैं पुछा।

वह झट उठकर मरे कमर के पस बैठ गयी। वह अभी भी सिर्फ पैंटी में है। जैसे वह झूकी उसके वजनी चूचियां लटकने लगी। मै मेरा हाथ बढाकर उसकी एक चूची को हाथ में पकड़ा उस से खिलवाड़ करने लगा।

शालिनी मेरे ऊपर झुक कर मेरे मर्दनगी को मुट्टीमे जकड़ी और ऊपर निचे करने लगी। जैसे जैसी वह ऊपर निचे कर रही थी, मेरा टोपा भी अंदर बाहार हो रहा था। मेरा पूरा कड़क हो चूका था। "शालू.. उस पर थूककर ऊपर निचे करो..." मेरे से एक रंडी कैसे करि यद् करते बोला।

यह ढेर सारा थूक मेर लंड पर थूकि और मूठ मरने लगी। थूक की चिकनाहट की वजह से उसका मुट्ठी आसानी से हिलने लगी।

"राघवजी.... आपका बहुत लम्बा है.. और मोटा भी..." यह हाथ चलाते बोली।

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