गंगाराम और स्नेहा Ch. 02

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गंगाराम की क्लाइंट से स्नेहा की चुदाई...
4.6k words
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2

Part 2 of the 12 part series

Updated 11/29/2023
Created 06/03/2022
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गंगाराम की क्लाइंट से स्नेहा की चुदाई...

उस दिन संडे था। सुबह के दस बजकर पंद्रह मिनिट हुए हैं। स्नेहा किचन में खाना बना रही थी और उसकी माँ कुछ कपडे सिलवाई कर रही थी। स्नेहा ने दिल में सोचि थी की वह आज कहीं नहीं जाएगी, और घर में आराम करेगी। इतने में उसकी मोबाइल बजती है। स्नेहा ने देखा कि वह कॉल गंगाराम का था।वह एक क्षण हीच किचाई और फ़ोन उठाकर बोली "हेलो... कौन...?"

"अच्छा अब मैं कौन होगया...?" उधर से गंगारम की आवाज शिकायत भरे स्वर में आयी।

"ओह, अंकल.. आप... सॉरी.. में खाना बनारहि थी तो आपकी फ़ोन बजी जल्दबाजी में मैं आपका नाम नहीं देखि... सॉरी" वह मृदु स्वर में बोली। वह गंगारम को कुपित नहीं करना चाहती थी।

"डार्लिंग.. कितने दिन होगये तुम मुझसे मिलकर.. आज मिलोगी...?"

'सच में ही एक महिने के ऊपर होगये गंगाराम अंकल से मिलकर' स्नेहा सोची और बोली "बोलिये अंकल..."

"डार्लिंग... बोलना क्या है.. कोई तुमसे मिलने तड़प रहा है...?"

स्नेह को मालूम है की कौन तड़प रहा है.. मुस्कुराते पूछी.. "कौन तड़प रहा है अंकल...?"

"डार्लिंग आजाओ तो उस से मिलवा देता हु... बेचारा बहुत एक्ससिटेड है तुमसे मिलने के लिए..."

"अंकल फ़ोन पर डार्लिंग या डियर मत बोलो... मेरे साइड में ही माँ ठहरी है... हाँ आज मिलते है.. कहाँ मिलना है...?" फिर फ़ोन पे बोली... "कोई नहीं माँ.. मेरी सहेली है.. पिक्चर देखने चलने को कह रही है..." उधर से गंगाराम समझ गया की वह माँ से बहाना बनारही है.. और "घर आजाओ..." वह फूस फुसाया।

"ठीक है.. एक घंटे में अति हूँ..." कही और माँ की ओर घूम कर बोली... "माँ... मेरी सहेली पिक्चर के लिए बुला रही है.. मै चलती हूँ.. सब खाना बन गया है..."

अरे बेटी खाना तो खाके जाओ..." उसकी माँ बोली।

"नहीं माँ.. मेरी सहेली के साथ खालूंगी..."

फिर वह तैयार होकर पहले वह लेग्गिंग्स और कुर्ती पहन ने को सोची, लेकिन कुछ सोचकर उसने सलवार सूट पहनी और माँ की bye .. bye.. कहकर निकल पड़ी।

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घंटी की बजने पर जब गंगराम ने डोर खोली तो सामने स्नेहा को पाया।

"ओह स्नेहा... डार्लिंग.. वेलकम..." वह कहा और स्नेहा को अपने आलिंगन में लेकर उसके गालों को चूमा।

"ओह अंकल.. हाउ स्वीट ऑफ़ यू..." कही, अपने बाँहों को गंगारम के छाती के गिर्द लपेटकर अपने नन्ही चूचीयों को छाति पर दबाते उसके गाल को चूमि।

"और तुम भी बहुत स्वीट हो डियर..." गंगाराम कहते स्नेहा के कमर के गिर्द हांथ लपेट उसे अंदर ले चला। दोनों हाल में आकर सोफे पर बैठे।

"स्नेहा तुमने एक महीने तक तड़पाया..." गंगाराम उसे देखता बोला ।

"सॉरी अंकल... बीच मे दो संडे को भी डॉक्टर साब ने आने को बोले.. उसिलिये... और एक संडे को मेरी मेंसेस चल रही थी... वैसे आप कह रहे थे की कोई मेरे लिए तड़प रहा है..कौन है वह..." मुस्कुराते पूछी।

"मेरे पास आओ बताता हूँ..." वह सिंगल सोफे पर बैठे हे जब की स्नेहा 2 सीटर सोफे पर। वह अपने जगह से उठी और गंगाराम के पास गयी। वह उसकी कलाई पकड़ कर खींच अपने गोद में बिठाया...

"ओह तो यह है जो मुझसे मिलने तड़प रहा है..चलो .. मैं आज उसकी तड़प को मिठा देति हूँ...." वह अपने कूल्हे गंगाराम के उभरते डंडे पर दबाती बोली।

गंगाराम उसके कमर में हाथ डाल उसे ऊपर ठीक से खींचा और उसके होठ चूमते पूछा.. "क्या लोगी..?" पहली बार जब वह चुदी तो गंगाराम ने उसकी दर्द कम करने के लिए उसे एक पेग व्हिस्की पिलायी थी... तब से वह कभी भी गंगाराम से मिली गंगाराम उसे एक, डेढ़ पेग पिला देता था। इसीलिए पुछा।

"अभी नहीं अंकल बाद में देखते है..."

"अरे... व्हिस्की नहीं तो चाय तो चलेगा न..?"

"हाँ.. चाय चलेगी... लेकिन चाय मैं बनावूँगी ..."

"ठीक है बाबा...चलो ..." दोनों उठकर किचेन की ओर चलते हैं।

स्नेहा किचेन प्लेटफार्म के पास ठहर कर चाय बना रही थी और गंगाराम स्नेहा की कमर में हाथ डालकर उसकी गर्दन पर चूम रहा था।

"आआह्ह्ह्ह.. अंकल.. हाहा। .. वहां मत चूमिए..." वह तड़पते बोली।

"क्यों...? क्या हुआ...?" अपना चूमना जारी रखते; अब उसने स्नेहा की छोटी चूची की अपने हथेली के नीचे दबाते पुछा..."

"नहीं.. ऐसा मत करिये प्लीज....गुद गुदी होती है.."

"गुद गुदी ही तो होती है न.. कुछ और तो नहीं...?"

"कुछ और भी होती है..."

"अच्छा.... क्या...?" उसकी पूरी breast को टीपते पूछा..."

स्नेहा लाज से शरमाने का नखरे करते बोली... "जाओ अंकल मैं आपसे बात नहीं करूंगी... आप बहुत बेशरम हो गए है.. चलो चाय बनगयी है हॉल में चलते है..." कही और एक कप अंकल को थमाकर खुद एक ली और हाल में आकर सोफे पर बैठ गये। पहले की तरह गंगाराम ने स्नेहा को फिर अपने गोद में बिठाया...

दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नज़रों से देखते चाय पी रहे थे। पूरे एक महीने के बाद मिलने से स्नेहा में भी excitement थी। चाय पीकर कप साइड में रखे और गंगाराम ने स्नेहा की कमीज ऊपर उठाया और पहले उसकी ब्रा की चूचियों के ऊपर खींच कर उसके छोटे छोटे चूची पर हाथ फेरा।

"आआअह्हह्हह" अंकल कहते वह चटपटा रही थी। गंगाराम अपने सर झुका कर स्नेहा की चूची को पूरा मुहं में लिया और चुसकने लगा... स्नेहा ने अंकल की सर को अपने सीने से दबा रही है।

"क्यों जानू.... कैसी लग रही है...?" वह एक को चूसता दूसरे की घुंडी को उँगलियों में मसलता पूछा। स्नेहा ने कोई जवाब नहि दिया बल्कि सिसकने लगी।

जैसे जैसे गंगाराम उसे चूस रहा था.. उसका डंडा स्नेहा के नितम्बों के निचे उभर कर उसे ठोकर मार रही थी। जब अंकल का उस्ताद अपने गांड में चुभते ही अब स्नेहा से रहा नहीं गया। वह गंगारम के गोद से उतरी अपने घुटनों पर निचे कार्पेट पर बैठ कर अंकल की लुंगी हटा दी। गंगाराम अंदर कुछ पहना नहीं था तो उसका नाग सिर उठाकर फुफकार रह थी। पूरा तनकर छत को देख रहीथी। उसका सामने की चमड़ी पीछे को रोल होकर हलब्बी गुलाबी सुपाड़ा tube light की रौशनी में चमक रही थी।

स्नेहा उसकी गोद में झुक उस नाग को मुट्टीमे जकड़ी.. उसे एक दो बार प्यार से चूमि और फिर अपने जीभ उस सुपाडे की गिर्द चलाते एक बार तो उसने उस पिशाब वाली नन्हे छेद में कुरेदी।

"स्स्स्सस्स्स्स...स्नेहा..डियर..मममम...हहहहह..." कहते गंगाराम चटपटाया...

"क्या हुआ अंकल...?" कहती स्नेहा ने उसकी वृषणों को हथेलि में लेकर मसलने लगी।

"Saleeeeeeeee...." गंगाराम एक बार फिर गुर्राया।

उसने अपने ऊपर झुके स्नेहा के सलवार का नाडा खींचा तो सलवार उसके घुटन पर गिरी। फिर उसने उसकी पैंटी का भी वही हाल कर दिया। वह भी सलवार के साथ उसके घुटनों और तिरस्कृत पड़ी है गंगाराम ने पहले उसके नन्हे कूल्हों पर दोनों हाथ फेरा और फिर एक हाथ की ऊँगली पीछे से उसकी बुर पेल दिया।

"आआह्ह्ह्ह..." स्नेहा ने अपने कूल्हे और पैलाई। अब गंगाराम की दायां हाथ की ऊँगली स्नेहा की बुर को खुरेद रही तो बायां हाथ की तर्जनी ऊँगली से वह उसकी अन चुदी गांड को कुरेद रहा था।

गंगाराम की नजर उसकी छोटी नितंबो वाली गांड पर पहले से ही थी। दो तीन बार उसे लेने की भी कोशिश किया लेकिन हर बार स्नेहा ने ढर के मारे मना करती रही। वह स्नेह को रुष्ट नहीं करना चाहता था। कारण उसके मन में लम्बे दिनों तक चुदने लायक स्नेहा के साथ साथ स्नेहा की बहन पूजा जो 18 वर्ष की है और उसकी सहेली सरोज को भी चोदने का इरादा बना लिया था। इसी लिये वह स्नेहा को कुपित होते नहीं देखना चाहता था।

अपने ऊपर चल रही दोहरे आक्रमण से स्नेहा उत्तेजित होने लगी और अपनी गांड और चूत को गंगाराम की उंगलियों पर दबाने लगी।

अब गांगाराम की ऊंगली उसकी बुर को चोदने लगे.. वह उसे फिंगर फ़क कर रहा था... इधर स्नेहा गंगारम की लंड को जोर जोर से चूस रही थी।

वह एक दूसरों पर भावविहल्व हो रहे है की... दरवाजे की घंटी बजी।

दोनों घभरा कर अलग हुए और एक दूसरे को देखने लगे।

"इस समाय कौन आ गया...?" गंगाराम होंठों में बुद बुदाया; और फिर स्नेहा को अंदर जाने का ईशारा करा। स्नेहा अपनी सलवर उठाकर नाडा बांधते अंदर को भागी। गांगाराम भी अपने आप को व्यवस्तित करा और अपनी लुंगी को सीधा किया बालों मे उँगलियों का कंघा फिराते दरवाजे की और बढ़ा। इतने मे एक बार फिर घंटी बजी।

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गंगाराम ने दरवाजा खोला और सामने ठहरे आदमी को देख कर बोला। "...अरे राव साब ... आप.. आईये.. अंदर आईये.." कहते उसे अंदर बुलाया।

दोनों अंदर आकर बैठे। टू सीटर सोफे पर आने वाला बैठा तो उसके दायां तरफ के सिंगल सीट सोफ़े पर गंगाराम बैठा था।

"बोलिये राव साब कैसे आना हुआ....?" गंगाराम ने उसे देखते पुछा। उनकी बातें अंदर से स्नेहा सुन रही थी।

"वही गंगाराम जी.. वह डील फाइनल करना था... बस इसीलिए चला आया..." आने वाला जिसे रावसाब करके गंगाराम बुला रहा था कहा।

"लेकिन राव साब रेट वही रहेगा..."

"ठीक है.. जब तुम उसी रेट पर अड़े हो तो वैसे ही सही..." राव साब एक लम्बा सांस लेते बोला।

"दीपा बेटी...." गंगाराम ने अंदर की ओर देखते बुलाया। अंदर ठहरी स्नेहा समझ गयी की अंकल उन्हें ही बुला रहे हैं! वह यह भी समझ गयी की अंकल नहीं चाहते की आनेवाले को उसका असली नाम न मालूम हो...

"आयी अंकल..." कहती स्नेहा बाहर आयी और सामने वाले को देख कर नमस्ते कहि और गंगाराम की ओर देखकर पूछी "क्या है अंकल..."

"बेटी .. दो कप चाय बना देना..."

"जी अंकल..." स्नेहा कही और किचेन की ओर चली।

दस मिनिट बाद वह एक ट्रे में दो कप चाय और दो ग्लासों में पानी, कुछ बिस्कुट लायी, सेंटर टेबल पर रखी।

"दीपा बैठो बेटी खड़ी क्यों हो..." गंगाराम बोला। स्नेहा ख़ामोशी से सामने के सोफे पर सिमिट कर बैठगयी।

राव साब को एक कप चाय थमाता बोला "राव साब यह मेरी भांजी है.. मेरी छोटी बहन की लड़की.... इंटर हो गया है.. अब यह यहीं से ग्रेजुएशन करेगी..." स्नेहा का परिचय कराया; और स्नेहा की ओर मुड़ कर बोला "दीपा बेटी.. यह राव साब है.. कारोबारी (business man) है..."

स्नेहा ने एक बार फिर 'नामसे' कही और राव साब को परखने लगी। वह एक लग भाग 50 के उम्र का आदमी लगता है। सर से गांजा है... सिर्फ साइड और पीछे पतले बाल है... आदमी गोरा है और तोंद भी है। महँगी ड्रेस पहना ही.. शर्ट को टक करा है.. बयां हाथ के दो उंगलियों मे सोने की अंगूठियां है।

कुछ देर वही बैठ कर फिर पूछी "अंकल मैं अंदर जाये क्या...?'

"हाँ बेटी जाओ..." स्नेहा उठकर अंदर चली गयी।

पूरा पंद्रह मिनिट बाद गंगाराम अंदर आया और स्नेहा से कहा.. "स्नेहा.. एक अच्छा डील आया है ... मैं डॉक्यूमॉन्ट बनवाने बाहर जा रहा हूँ... एक डेढ़ घंटे में आजाऊंगा... यह आदमी बहुत बिजी रहता है... मेरा आने तक इसे रोक के रखना... डॉक्यूमेंट पर इसके दस्तखत जरूरी है.... यह बातूनी है.. उसके साथ बैठकर उस से बातें करो और उसे मेरे आने तक रोके रखो...उसे कुछ देदेना... चाय.. व्हिस्की.. कुछ भी... लेकिन रोक के रखना... वह चला गया तो उसे फिर से पकड़ना मुश्किल... समझ गयी" स्नेहा कि कन्धा तप तपाता बोला।

"जी अंकल..." स्नेहा बोली। दोनों बाहर आये और गंगाराम रावसाब की ओर देख कर बोला " रावसाब मैं डॉक्यूमेंट बनाकर लाता हूँ, रुकिए.. दीपा आप को कंपनी देगी.. अगर कुछ चाहिए तो निस्संकोच पूछियेगा..." कहा और स्नेहा की ओर देख सर हिलाकर चला गया।

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राव और स्नेहा एक दूसरे के आमने सामने बैठ है। कुछ देरी के ख़ामोशी के बाद स्नेहा ने ही पूछी "आप क्या करते है अंकल...?"

"मेरा गारमेंट्स की बिज़नेस है..." राव बोला और फिर स्नेहा है से पुछा "क्या नाम है बेटी तुम्हारा...?"

"मैं दीपा हूँ अंकल..." एक क्षण रुकी और बोली "गंगाराम जी मेरे मामा है.. मेरी माँ का बड़ा भाई...:" गंगाराम ने क्या कही उसे याद करती बोली।

"कहां तक पड़ी हो...?"

"इंटर हो गया है.. अब डिग्री करना चाहती हूँ..."

"घर में कौन कौन रहते है...?" राव फिर से पुछा...

"मम्मी, बाबा, मेरी एक छोटी बहन और एक छोटा भाई..."

"तुम्हरे पिताजी क्या करते है...?" उसके पूछने पर स्नेहा सोची... 'बाप रे सच में यह तो बहुत बातूनी है' सोचते बोली..."पिताजी एक फैक्ट्री में काम करते है... और मम्मी हाउस वाइफ है..." वह पूछने से पहले बोली।

राव ने अपने फॅमिली के बारे मे भी बोला। उसके एक पत्नी और चार बच्चे है... पहले एक लड़का और लड़की फिर एक लड़का और लड़की। पहले लड़का और लड़की की शादी हो गयी और बाकि के दो पढ़ रहे है।

उसके बाद दोनों के पास क्या बात करना समझ मे नहीं आया... कुछ देर बाद वह बोला "मैं चलता हूँ..." वह उठने लगा.. तो स्नेहा बोली.. अरे रुकिए अंकल.. मामाजी आते ही होंगे.. तब तक आप कुछ लीजिये... चाय, कॉफी या कुछ ठंडा ..." वह रुकी।

"यह चाय, कॉफ़ी का समय नहीं अगर व्हिस्की होता तो..." वह भी हिचकिचा रहा था...

"घर में है.. अंकल; (मामाजी) घर में रखते है... अभी लायी.. और स्नेहा जल्दी से गयी और एक ट्रे में व्हिस्की बोतल एक गिलास एक कटोरी में ice cubes और कुछ नमकीन ले आयी और टेबल पर रखि।

राव गिलास में व्हिस्की डालते पुछा.. "दीपा तुम...?"

"ओह नो अंकल.. में नहीं पीती..." वह नाटक करती बोली।

"अरे... आज कल तो middle class ke हर घर में लड़कियां भी लेती है.. मेरे घर में भी मेरी दोनों बेटिया और मेरी बड़ी बहु भी लेती है.. खैर .. कम से कम कोई ठंडा ही लो.. मुझे कंपनी देने के लिए।"

स्नेहा अंदर गोई और एक गिलास में फ्रूटी ले आयी और बैठने लगी तो बोला "दीपा वहां नहीं; मेरे यहाँ बैठो.." राव ने अपनी बगल में सोफा तप तपाया।

स्नेहा एक क्षण के लिए असमंजस में रही और धीरे से आकर राव् के बगल में बैठ गयी। दोनों इधर उधर की बातें करते अपने अपने ड्रिंक्स सिप कर रहे थे। राव अपना आधा पेग खतम करके स्नेहा से बोला ... "दीपा डियर. एक गिलास पानी चाहिए थी"। दीपा अपनी गिलास टेबल पर रखी और पानी लाने किचेन की ओर गयी। राव ने जल्दी से अपने गिलास का व्हिस्की स्नेहा के गिलास में उंडेला और फिर अपने गिलास में व्हिसकी डालने लगा। तब तक स्नेहा पानी ले आयी।

अपने गिलास की व्हिस्की में पानी मिलाकर एक सिप करा और चटकार लेते बोला .. "उम्दा शराब है.. तुम्हारे मामा तो उम्दा शराब की शौकीन है..." कहा... कहते कहते उसने ठहाका लगाकर हंसा और स्नेहा कि कांधों को धीरे से दबाया।

"स्नेहा कुछ बोली नहीं.. ख़ामोशी से अपना फ्रूटी सिप करने लगी। उसे फ्रूटी का स्वाद कुछ अलग लगी लेकिन वह समझी की यह स्वाद कूलिंग के वजह से होगी और सिप करने लगी।

राव स्नेहा से इधर उधर के बातें करते अपना हाथ निचे खिसकाया और उसके पीठ को सहलाने लगा.. "अंकल हाथ निकालिये..." वह धीरे से बोली।

"क्यों क्या हुआ डियर...?" वह काम जारी रखते पुछा...

"मुझे अच्छा नहीं लग रहा है..." बोली।

राव कुछ देर ख़ामोशी से रहा और फिर से बोला ... "लगता है तुम्हारे मामाजी तो अभी नहीं आएंगे, मैं चलता हूँ..."

"नहीं अंकल रुकिए तो.. मामाजी आजायेंगे..." स्नेहा कही...

"अच्छी बात है.. तुम्हरे बात पर ठहरता हूँ..." कहा एक क्षण रुका और फिर बोला.. "दीपा.. तुम बहतु सुंदर लड़की हो..." कहते वह झट स्नेहा की ओर झुका और उसके गलों को चूम लिया।

"ओह.. अंकल यह क्या कर रहे है...आप..." कहती स्नेहा ने अपने गाल पोंछी।

"क्या कर रहा हूँ..? प्यार ही तो कर रहा हूँ... क्यों यह भी पसंद नहीं...?"

"स्नेहा को क्या बोले समझमें नहीं आ रहा था... अंकल ने उससे, उसे रोकने को कहे... कहरहे थे डील बड़ा है.. हाथ से न निकले... लेकन यह है की बार बार उठ रह है...' सोच रही थी।

"सच में तुम बहतु सुन्दर हो..." वह फिर उसे चूमा। अबकी बार स्नेहा ने अपने गाल नहीं पोंछी और राव को बातों में रखने के लिए बोली..."आप झूट बोल रहे है अंकल.... मैं उतना सुन्दर नहीं हूँ... यह मुझे मालूम है.. मैं दुबली पतली हूँ.. और..." वह रुक गयी।

"हाँ... हाँ.. बोलो और क्या...?"

"जी.. कुछ नहीं..."

"मुझे मालूम है तुम क्या कहना चाहती हो.. यहि न की तुम्हारी चूचियां छोटी है.. अरु तुम्हारे कूल्हे छोटे है.. यही न..."

स्नेहा सहमकर रह गयी।

"पगली.. तुम अच्छी लड़की हो... तुम्हारे breasts छोटे है तो क्या हुआ.. बहूत लुभावनी है.. और तुम्हारे कूल्हे भी... देखो कितना प्यारे हैं..." कहते राव ने स्नेहा को एक गुड़िया की तरह उठाकर अपनी गोद में बिठाया..."

"ओह अंकल छोड़ो मुझे... नहीं तो में मामाजी से कहूँगी..." स्नेहा ने उसे ढराने की कोशिश करि।

"बोलो.. उस से क्या होगा.. में तुम्हारे मामा का कस्टमर हूँ... यह तो पक्का है की वह मुझे पुलिस में नहीं देंगे.. उल्टा मैं यह जो सौदा करने वाला हूँ.. उसे कैंसिल कर दूंगा..."

राव के आखरी शब्द सुनते ही.. वह गभरा गयी। अंकल ने उसे रोकने के लिए कहे और वह है की डील ही कैंसिल करने को कह रहा है... वह सोचमे पड गयी। जैसे गंगाराम स्नेहा को कुपित नहीं देखना चाहता वैसे ही स्नेहा भी अंकल को तकलीफ नहीं पहुंचना चाहती... अंकल के मिलने से.. उसे ज़िन्दगी के मजे मिल रहे है.. पैसे को पैसा.. और ऊपर से कीमती वस्तुएं... गिफ्ट में... वस्तव में वह किसी को नहीं बताई और न दिखाई लेकिन गंगारामने उसके लिए एक सोने की चैन भी दिलाया है...

यह बात ख्याल में आते ही स्नेह ने राव के साथ प्रतिघटना छोड़ दी और अपने आप को ढीला छोड़ दी।

जैसे ही स्नेहा ने अपने शरीर को ढीला छोडी तो राव समझ गया की यह लड़की अब प्रतिरोध नहीं करेगी तो वह जोश में आगया और उसके होंठों को अपने में लेकर चूसने लगा।

स्नेहा ने फिर भी कुछ रेसिस्ट करने को सोची लेकिन फिर चुप हो गयी। अब उसे भी मजा आने लगा और वह खुद गरम होने लगी। इसके दो कारण थे। एक राव ने उसकी फ्रूटी में व्हिस्की मिलायी थी उसका असर पड रहा है और दूसरा... राव के आने से पहले गंगाराम और वह मस्ती के आलम में थे... राव ने आकर उन्हें डिस्टर्ब कर दिया।

"अंकल नहीं.. प्लीज ऐसा मत करो..."

"क्यों मेरी जान...? अच्छा नहीं लग रहा है क्या..? अरे तुम जवान हो.. मजे लूटो..." उसने स्नेह के छोटे चूची को पूरी हथेली के निचे लेकर दबाते बोला।

"अंकल नाराज हो जायेंगे..."

"हर चीज अंकल मालूम हने की क्या जरूरत है... स्वीटी यह राज़ हम दोनों की बीच की राज़ है.. ओके..."

"फिर भी अंकल को मालूम होगया तो...?"

"कैसे मालूम होगा... क्या तुम बोलने जाओगी की मैं चुद गयी हूँ..."

"छी .... आप कैसे बात करते हैं ..."

वह कुछ बोला नहीं.. उसकी कमीज़ उसके सर के ऊपर से निकल दिया।

चूत में आग की धधक के कारण स्नेहा ने भी... न...न... कहते अपनी कमिज उतरवाली।

राव ने उसे वहीँ हॉल में कारपेट पर निचे पीट का बल सुलाया और उसकी सलवार भी खोलने लगा।

"ओह नहीं... मुझे शर्म अति है..." वाह सच में ही शर्माने लगी।

"पागल हो गयी क्या.. बगैर इसे उतारे असली काम कैसे होगा..." कहते स्नेहा ना....ना.. कहने पर भी उसकि सलवार और पैंटी उतार दिया।

राव खुद अपनी पैंट उतर फेंका और सिर्फ बॉक्सर में रह गया। स्नेहा बॉक्सर के अंदर उसके उफनते औजार की उभार दिख रही थी। उस उभार को देखते ही स्नेहा एक बार सिहर उठी। वह ललचायी नजरों से उसे ही देख रही थी।

"क्यों दीपा डार्लिंग देखोगी..." पूछा...

स्नेहा शरम से लाल होगयी।

राव उसके दोनों पैरों को चौड़ा कर उसके जांघों के बीच आगया और सीधा उसकी बुर पर झपट पड़ा।

राव अपना मुहं वहां लगा कर स्नेहा की रिसती बुर को चाटा तो.... स्नेहा "हहहहहहहह.. अंकल.. कहती कमर उठायी।

फिर उसे कुछ अनुमान हुआ और बोली... "अंकल... मेरे मामाजी आ गये तो...?"

राव ने 'एक मिनिट' कहकर उसने गंगाराम को फ़ोन लगाया और कुछ देर उधर की बातें सुनता रहा और फिर बोला ... "दीपा तुम बेफिक्र रहो.. तेरे मामा एक घंटे से पहले नहीं आने वाले हैं..."

"ooooooooohhhhh" स्नेहा निश्चिंत हो गयी।

"अब शुरू करें...?" वह उसकी गाल को चिकोटी काटता पुछा। गर्म हुई स्नेहा ने 'हाँ' में सर हिलायी।

"बोलो पहले चूची या चूत ...?"

"आपकी मर्जी..." वह लजायी

राव ने अबकी बार उसके नन्हे चूची पर नजर डाला और फिर झुक कर उसे चाटने लगा। उसके चाटने से स्नेहा की शरीर में 440 W करंट दौड़ी। उसका सारा शरीर में एक हल्का सा कंपन हुआ और वह राव के सर को अपने सीने से दबायीं। राव ने पहले कुछ देर चूची को एक के बाद एक को चाटते रहा और फिर उसकी छोटी घुंडी को मुहं में लेकर चूसा..

""मममममममम.... ह्ह्ह्हआआ..." वह सीत्कार करि। राव पहले निप्पल को.. फिर धीरे धीरे पूरे चूची को मुहं में लिया। स्नेहा की चूची इतनी छोटी है की उसका पूरा चूची उसके मुहं में आगया।

चूची चूसने का असर स्नेहा पर पड़ी... वह पानी से निकाले गए मछली की तरह तड़पने लगी। अपना एक हाथ से वह राव की बॉक्सर को नीचे खींची और उसके डंडे को पकड़ी। उसे पकड़ कर ही उसने महसूस किय की उसका गंगाराम का उतना लम्बा नहीं है फिर भी उसकी मुट्ठी में समा गायी। एक हाथ से वह उसके लण्ड को हिलाती दूसरी हाथ को वह अपनी चूत पर ले आयी।

"क्यों दीपा.. खुजली हो रही है..." कहते राव् ने उसकी बुर में अपनी बीच वाली ऊँगली घुसादी।

एक ही झटके में उसकी ऊंगली पूरा का पूरा स्नेहा की बुर निगल गयी।

'साली..नखरे कर रही थी... यह तो पहले ही चूदी है...' सोचा और पुछा भी.. "दीपा डार्लिंग तुम तो चूदचुकी हो.. किसने चोदा .. कहीं तुम्हारा मामा तो नहीं...?" वह ऊँगली को अंदर तक घुसाते पुछा।

स्नेहा समझ गयी उसकी उँगली घुसाने से उसे अपनी चूदी चूत कहानी अपने आप मालूम हो गयी और... अनजाने में 'हाँ' कहते रुकी ... और बोली.. "छी... मेरे मामा ऐसे नहीं हैं..."

"तो किसने चोदा ..?"

"इंटर में मेरा बॉय फ्रेंड ने...." वह धीरे से बोली।

मैं तो समझ रहा था की तुम्हारी कुंवारी होगी... और तंग होगी... अब ढ़र नहीं..." कहकर राव स्नेहा को औंधे घुमाया।

"अंकल.. यह क्या कर रहे है...?" स्नेहा गभराकर बोली।

"कुछ नहीं स्वीटी ... में तुम्हे पिछेसे लेना चाहता हूँ..."

"पर क्यों...?"

"आरी पगली... मेरी तोंद के वजह से सीधे में मेरा पूरा अंदर नहीं घुसेगा.. इसिलिये.... पिछेसे..." कहा और स्नेहा को अपने कोहनियों पर और घुटनों पर झुकाया। कोहनियों पर होने वजह से उसकी गांड ऊपर उठकर बुर सामने दिखने लगी। वह अपने लण्ड के सुपाडे को स्नेहा की खुली फांकों पर रगड़ा।

लंड के स्पर्श से स्नेहा का शरीर एक बार फिर सिहर उठी। दिल थाम के राव को अंदर प्रवेश होने का वेट कर रही थी।

राव ने और एक बार अपनी डिक हेड उसकी फांकों पर चलाया... "ममममम...." कहती स्नेहा ने कमर को पीछे ठेली।

राव ने अपना कमर का दबाव दिया... 'फक' की आवाज़ के साथ उसका लंड का टोपा अंदर चली गयी। Sudden आक्रमण से स्नेहा एक बार तडपडाई...

राव ने कमर को पीछे किया एक और शॉट दिया...

"अम्म्मा..." वह चिल्लाई।

फिर उसके बाद दोनों में खूब चुदाई हुई...स्नेहा ने भी कमर को पीछे ढकेल ढकेल कर चुदने लगी। पूरा दस मिनिट की मेहनत के बाद उसने पुछा.. "मैं खल्लास होने वाला हूँ..." वह बोल रहा था की स्नेहा बोली.. "अंकल अंदर नही...प्लीज..." वह बोल ही रही थी की वहअपना गरम लावा से उसकी बुर को भर ने लगा।

"ओह अंकल यह क्या किये आपने.. मैं अब unsafe पीरियड में हूँ..."

"डोंट वोर्री दीपा.. मेरी नसे बहुत पहले ही बंद होचुके है.. मेरा वीर्य से तुम्हे कुछ नहीं होगा..." उसके ऐसे कहने से स्नेहा ने एक लम्बी सांस ली।

फिर दोनों सुस्त होकर अगल बगल पड़े रहे।

फ़ोन कि घंटी बजे तो दोनों को होश आया। स्नेहा की फोने बज रही थी। यह फ़ोन देखि... गंगाराम का था। "हाँ अंकल.. में दीपा .." बोली।

"मेरा काम हो गया है... 10 मिनिट में घर पहुँचता हूँ...." बोलकर फ़ोन काट दिया।

अंकल दस मिनिट में आ रहे है.. कहती वह उठी अपने कपडे लेकर अंदर चली गयी।

"कॉमन bathroom किधर है...?" राव पुछा तो उसने बताया और वह भी उधर बढ़ा।

दस मिनिट बाद दोनों फेश होकर बाहर अये और सोफे पर बैठे।

पांच मिनिट बाद गंगाराम पहुँच कर डॉक्युमेंट्स पर राव का दस्तखत लिया और बोला ... "राव साब .. बुधवार यानि की दो दिन बाद आपकी लैण्ड (Land) रजिस्ट्रेशन है..."

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