पहली पहली बार

Story Info
गार्ड ने फंसा लिया – मम्मी को क्या कहु.
4.6k words
4.07
85
2
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here
momcom
momcom
9 Followers

मै 18 वर्ष की हो चुकी थी और 18 वर्ष की आयु मे ही मेरा शरीर औरतों की तरह भर गया था, पर दिमाग से मै अभी भी भोली थी। मेरी अपनी हमउम्र लड़कियो या लड़को से दोस्ती ज्यादा नहीं थी, मै जिस सोसाइटी मे रहती थी वही मै अपने से छोटी लड़कियो के साथ शाम को खेलती रहती थी। लड़को और आदमियो की अपने प्रति नज़र को मै थोड़ा थोड़ा पहचानने लगी थी और इंटरनेट पर पॉर्न देख के सेक्स के प्रति मेरी रुचि बढ्ने लगी थी, पर जब कभी मेरे हमउम्र लड़के मुझसे दोस्ती करने या लाइन मारने की कोशिश करते तो मै उन्हे लिफ्ट नहीं देती थी। मुझे तो हट्टे कट्टे बड़ी उम्र के आदमीयो को देख के उत्तेजना होती थी।

हमारी सोसाइटी मे कई गार्ड्स थे और उन्ही गार्ड्स मे से एक गार्ड था मोहन जो की करीब 50-52 साल का होगा और देखने मे वो मजबूत मर्द लगता था। वो मेरे को ताड़ता भी रहता था और उसके ताड़ने से मेरे अंदर सनसनी होने लगती थी। वैसे तो वो मेरे को बेटी बेटी कहता था पर उसकी नजरे मेरे गदराते जिस्म पे थी। एक बार मै ट्रैक पैंट और टीशर्ट पहन के नीचे घूम रही थी तो वो अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ मुझे निहार रहा था। मुझे पता था की टाइट ट्रैक पैंट मे मेरे चौड़े हिप्स का उभार साफ दिख रहा है और टीशर्ट मे मेरे तने हुए उरोज उसे लुभा रहे थे। मै जानबूझ के उसके आस पास घूमती रही और झुक झुक के उसे अपने उभारो का दर्शन भी कराती रही। वो वासना भरी दृष्टि से मुझे देखता रहा और फिर मुझे अकेला देख मेरे पास चला आया।

"अरे चिंकी आज तुम अकेली तुम्हारे दोस्त नज़र नहीं आ रहे," वो बोला।

"वो सब तो ग्राउंड के खेल रही है, मै आज साइकिल चलना सीख रही हूँ," मै बोली।

"हे हे, तुम तो अब बड़ी हो गयी हो अभी तक साइकिल चलना नहीं आता, चलो मै पकड़ता हूँ साइकिल।"

मै गद्दी पर बैठ गयी और वो साइकिल पकड़ के मुझ से चलवाने लगा। वो एक हाथ से गद्दी पकड़े हुए था तो बार बार मेरी गांड पर हाथ लगा देता। एक दो बार तो मै उसके हाथ के ऊपर ही बैठ गयी। वो कई बार मेरे गर्दन और पीठ पर हाथ फेर दिया। थोड़ी देर बाद अंधेरा होने लगा तो मै घर वापस आ गयी। उस दिन के बाद से जब भी मिलता तो कुछ न कुछ मेरे से बात करता और कहता रहता की साइकिल चलना नहीं आया हो तो वो सीखा देगा। जब भी अकेले मे होता तो जरूर मेरी पीठ पे हाथ रख के बात करता। मुझे भी उसे साथ इस लुका छिपी मे मज़ा आने लगा।

एक बार सहेलियों के साथ छुपन छुपाई खेल रही थी और गार्ड हमेशा की तरह मुझे निहार रहा था। मै छुपने के लिए बेसमेंट के चली गयी तो गार्ड भी पीछे पीछे आ गया।

"चिंकी यहाँ आ जाओ," वो सीढ़ियो के पीछे इशारा किया तो मै चली गयी।

"कितना अंधेरा है यहाँ तो," मै बोली।

"कोई बात नहीं मै हूँ न," वो मेरे पीठ पे हाथ रखता हुआ बोला, "यहाँ कोई ढूंढ नहीं पाएगा।"

एक तो अंधेरा और उस पे वो बिलकुल मेरे से सट के खड़ा था, मुझे रोमांच हो आया। धीरे धीरे वो मेरी पीठ पे हाथ फिसलता हुआ मेरे को अपनी बाहो मे समेट सा लिया।

"क्या, क्या।"

"श श, बोलो मत बच्चे सुन लेगे," वो बोला, तो मै चुप हो गयी, पर मेरी साँसे तेज हो गयी। वो मेरी कमर मे हाथ डाल मे मुझे अपने से कस कर सटा लिया।

बेसमेंट मे सारे बच्चे मुझे ढूंढते हुए जा रहे थे और मै चुपचाप उसकी बाहो मे दबी खड़ी रही। मेरे दिल की धड़कन बढ्ने लगी जब वो मुझे पूरी तरह अपने अंदर ही समेटने लगा। उसकी साँसे मेरी गर्दन पर पड़ रही थी।

"छोड़ो, अब सब चले गए," मै फुसफुसाई।

"अभी रुको बेटी, नहीं तो वापस आ जाएगे," वो फुसफुसाया और एक हाथ से मेरे बालो को सहलाने लगा। मेरा पूरा बदन सन सन करने लगा।

"चिंकी बेटा, तुम्हे पता है न की तुम कितनी प्यारी हो, यहाँ सोसाइटी मे सबसे सुंदर लड़की हो," वो मेरे को फुसलाने लगा।

"अच्छा," मेरे को समझ नहीं आया की क्या बोलू।

"सच्ची, कसम से," वो एसे बोला की मेरी हंसी निकाल गयी। मुझे हँसता देख वो और शेर हो गया।

"अच्छा अंकल अब छोड़ो, अब तो सब बच्चे चले गए।"

"अरे इतनी जल्दी क्या है मै तो कितने दिनो से तुम्हें अपनी बाहों मे लेने के लिए मचल रहा था, अब एक पप्पी तो देनी पड़ेगी।"

"हौ अंकल, क्या कह रह हो," मै एक बार को सकपका गयी।

"एक पप्पी सिर्फ, कभी बोयफ्रेंड को नहीं दी क्या," वो बोला।

"धत अंकल कैसी बाते करते हो, मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है," मै शर्मा गयी।

"अरे इतनी सुंदर लड़की का कोई बॉयफ्रेंड नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है।"

"मेरा कोई नहीं है, अब छोड़ो।"

पर वो मुझे पकड़े रहा, वहाँ बेसमेंट मे अंधेरे कोने मे कोई देखने वाला नहीं था। मेरा पूरा बदन सनसनाने लगा और वो मुझे जकड़े सिर्फ एक पप्पी, सिर्फ एक पप्पी की जिद लगाए रहा। मै उसकी बाहो मे कसमसाती रही।

वो खेला खाया हारामी आदमी था और समझ रहा था की लड़की ढीली पड रही है। मै कभी सेक्स तो क्या किसी लड़के को किस तक नहीं की थी। पहली बार किसी मर्द की बांहों के आई थी और मेरे पूरे बदन मे सनसनी दौड़ने लगी थी। जब गार्ड मुझे पकड़ के पप्पी की जिद करने लगा तो मुझे पॉर्न फिल्मे याद आने लगी की कैसे उसमे लड़का लड़की किस करते है, कैसे एक दूसरे के होंटो को चूसते है। अंदर से मन कर रहा था की एक बार करके देखना चाहिए। मुझे क्या पता था की 'एक पप्पी' तो सिर्फ शुरुवात होती है।

"अंकल, प्लीज बच्चे मुझे खोज रहे होंगे," बड़ी मुश्किल से मेरी आवाज निकली, पर वो मुझे कहाँ छोड़ने वाला था वो मुझे अपने सीने से जकड़े रहा, तो मै काँपते हुए बोल पड़ी, "अच्छा बस एक।"

गार्ड को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी और वो मेरे बालो को मजबूती से पकड़ के मेरा सर अपनी तरफ घूमा दिया। उसके गरम गरम होंट मेरे फड़फड़ाते होंटो पर चिपक गए।

मेरी दिल की धड़कने एकदम से तेज हो गयी और पूरे बदन मे जैसे करंट दौड़ने लगा। मै जड़ सी खड़ी रह गयी और वो मेरे होंटो को चूमने और चूसने लगा। ऐसा अजीब तरह का रोमांच हो रहा था जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। वो हौले हौले मेरे बालो को सहलाते हुए कभी मेरे निचले होंट को चूसता तो कभी ऊपर वाले को।

"तुम भी किस करो," वो फुसफुसाया तो मै स्वचालित सी उसके होंट को अपने होंटो मे दबा के चूमने लगी। मुझे किस का कोई तजुर्बा नहीं था तो जैसे वो कर रहा था मै भी वैसे ही उसके होंटो को चूसने लगी। मै अपने होंट खोल के किस कर रही थी और वो अपनी जीभ मेरे मुह के अंदर तक घुसा दिया और मेरी जीभ के साथ रगड़ने लगा।

मेरी आंखे मुँदी हुई थी और मै अपनी जीभ उसकी जीभ पर फिराते हुए अपने होंटो को चुसवा रही थी। मै अपनी सुधबुध भूल के उसकी बाहों मे खोई हुई थी, मुझे पता ही नहीं चला कब मेरी शर्ट का पहले एक बटन खुला और फिर दूसरा। पता तो तब चला जब उसका हाथ मेरे गले को सहलाता हुआ अचानक से मेरी ब्रा मे घुस गया। पहली बार मेरे कोमल स्तन को किसी मर्द ने दबोचा था।

"अंकल अहह अहह," उसकी मजबूत हथेली मेरी चुचो पर जम गयी।

"अहह अंकल, अहह, क्या कर रहे हो," मै धीमे धीमे करहाने लगी।

"पुच, पुच, प्यार कर रहा हूँ अपनी प्यारी चिंकी बेटी को," वो मेरी चोचियों को भोपू की तरह दबाता हुआ बोला।

मेरी साँसे तेज तेज चल रही थी और मै अजीब तरह के रोमांच मे कुछ सोच समझ नहीं पा रही थी। मेरा सर अब उसके सीने पर टिका हुआ था और मेरे पेट मे तितलिया नाचने लगी थी। वो मेरे उरोजों को मसलने के साथ साथ मेरे होंटो को भी चूसता रहा और मै मीठे मीठे दर्द भरे एहसास मे डूब गयी।

तभी बेसमेंट मे कुछ शोर सा हुआ, जो बच्चे मेरे साथ खेल रहे थे वो मुझे खोजते हुए आ रहे थे। अचानक मै होश मे आयी, "अंकल छोड़ो," मै ज़ोर से कसमसाई।

"रुको न चिंकी," वो फुसफुसाया।

"नहीं बच्चे आ रहे है वो देख लेंगे।"

मै उसकी पकड़ से अपने को छुड़ा ली और शर्ट के बटन बंद करने लगी। गार्ड फिर भी कोशिश करता रहा की मै उसके साथ रुकी रहूँ पर मै अब घबरा रही थी की कहीं कोई देख न ले। मै वहाँ से भाग के सीधा बेसमेंट से बाहर चली आयी।

उस रात जब मै बिस्तर पर सोने के लिए लेटी तो मुझे गार्ड की हरकते याद आने लगी और मै उत्तेजित होने लगी। मै अपनी टाँगो के बीच तकिया घुसा के अपनी चूत उस पे घिसने लगी। मै सोचने लगी की अगर बच्चे नहीं आते तो वो और क्या क्या करता।

अगली शाम जब मै नीचे गयी तो गार्ड मेरे को देख के मुस्कुराने लगा। मेरे को बड़ी शर्म आई याद करके की कल ये कैसे मेरे मोम्मे पकड़ लिया था।

"चिंकी आज तो तुम बहुत सुंदर लग रही हो," मै जब उसके पास से गुजरी तो वो फुसफुसाया।

"धत," मै इठलाती हुई बोली।

"सच मे कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही हो," वो जानभूझ के कल का जिक्र करने लगा, "आज भी कल की तरह बेसमेंट के आना, मै तुम्हें एसा छुपा दूँगा की कोई खोज नहीं पाएगा।"

"मै नहीं, तुम बदमाशी करते हो।" मै उसे कुछ बोलने का मौका दिये बिना अपनी सहेलियों के पास भाग गयी।

पर सहेलियों के साथ मेरा मन नहीं लगा, मै कनखियो से देखी की गार्ड सीढ़ियो के मुहाने पर खड़ा हुआ मेरी ओर अर्थ भरी नजरों से देख रहा था। मेरे मन मे गुदगुदी सी होने लगी। मन करने लगा की कल की तरह ही थोड़ी बहुत मस्ती करू।

थोड़ी देर बाद मै सहेलियों से बहाना बना के सीढ़ियो की तरफ आने लगी। गार्ड मेरे को देख के बेसेमेंट मे उतारने लगा और मेरे को भी आने का इशारा करने लगा। मै एक अजीब सी कशीश मे खिची चली जा रही थी और सोच रही थी की कल की तरह ये आज भी मेरे चुचे मसल देगा, पर ज्यादा नहीं करने दूँगी और शर्ट तो बिलकुल नहीं खोलने दूँगी। मुझे अपनी चूत मे गीलापन महसूस हो रहा था।

मै उसके पीछे पीछे चलते हुए बेसमेंट मे बने एक कमरे मे आ गयी। उसने झट से दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और मुझे अपनी मजबूत बाहो मे ले जकड़ लिया।

"चिंकी कितनी प्यारी हो तुम," वो मेरे बदन पे हाथ फेरता हुआ फुसफुसाया।

"अंकल आप फिर से बदमाशी करने लगे," मै नखरा दिखाती हुई बोली, जबकि मेरा मन तो कर रहा था की को मुझे कस के भीच दे।

उसका एक हाथ मेरे निचली पीठ पर और दूसरा मेरे सर के बालो को सहलाने लगा। मेरी छाती उसकी छाती से दब कर पिसने लगी।

"मेरी शर्ट नहीं खोलना सिर्फ ऊपर ऊपर से ही," मै बोली तो वो मुस्कुराने लगा।

"अच्छा, सिर्फ ऊपर ऊपर से, पर ज़ोर ज़ोर से तो दबा दू ना,"

"धत।"

इस बार वो बहुत धीरे धीरे और इतमीनान से मुझे लाइन पर ला रहा था। मेरी पीठ और बालो को सहलाते सहलाते वो मेरे गालो को किस करने लगा।

"उहु, अह," मै कसमसाई, पर जब वो मेरे होंटो पर अपने होंट रक्खा तो मै आतुरता से होंट खोल दी। वो मेरे होंटो को ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा और अपनी जीभ मेरे मुह मे डाल दी।

वो मेरी चूचियो को जकड़ लिया और भोपू की तरह बजाने लगा। उसकी उंगलिया गोलाइयों पर फिसलते हुए मेरी चूचि की घुंडी को पकड़ के मरोड़ने लगा।

"ऊ आ अहह।"

"एसे ठीक है ना," वो फुसफुसाया, "देख शर्ट के ऊपर से ही कर रहा हूँ, अब शर्ट खोल दू।"

"नहीं ना अंकल, कोई देख लेगा।"

"कमरा बंद है, आज यहा कोई परेशान करने नहीं आयेगा, आज इतमीनान से तेरे को प्यार करूंगा," वो बोला और मेरी शर्ट के बटन खोलने लगा।

मेरे को भी एहसास हुआ की मै बंद कमरे मे उस गार्ड के साथ बिलकुल अकेली हूँ और वो मेरे साथ कुछ भी कर सकता है, ये सोच के मेरी दिल की धड़कने और बढ़ गयी पर सब कुछ इतना अच्छा लग रहा था की मै चुपचाप उसकी बाहो मे चिपकी रही और वो मेरी शर्ट उतार के बेड पर रख दिया।

"तेरी छातीया तो बहुत मस्त है, औरतों से भी बड़ी है," वो मेरे उरोजों को ब्रा के ऊपर से ही मसलता हुआ बोला।

"ईश्श्श, अहह, अंकल," मै कराहने लगी, वो मेरी दोनों गोलाइयों को अपनी हथेली मे भर के निचोड़ने लगा।

"आई, अहह, आई, नहीं, ईश्श्स, अहह, अंकल इतनी ज़ोर से मत करो, दर्द हो रही है।"

पर मै इतना ज्यादाह उत्तेजित हो चुकी थी की मै दर्द को सहते हुए भी उसके होंटो को चूमती रही। उसने देखा की लड़की लाइन पर आ गयी है तो वो जल्दी जल्दी मेरे कपड़े उतारने लगा और मै शर्म, झिझक और उतेजना के मारे कसमसाती रही और उसका हाथ पकड़ के रोकने की कोशिश करती रही, पर उसे रोक नहीं पायी।

बार बार मै शर्म से "क्या कर रहे हो, मत करो न, क्या कर रहे हो," ही कहती रह गयी। मै थोड़ी सी मस्ती करने की नियत से आई थी पर अब मेरे कंट्रोल मे कुछ नहीं रह गया था।

पहली बार किसी मर्द के सामने नंगी हुई थी, मै सी सी करने लगी और मेरी आंखे मुँदी जा रही थी। मेरी नंगी चूचियो को वो अपने मुह मे लेकर चूसने लगा। पहले सनसनाहट फिर एक टीस सी मेरी छातियो मे भर गयी।

"अहह, अहह, अहह, आई, आई, अहह, ओहह, ऑफ, ओफफो।"

मै उत्तेजना मे डूबी हुई कुछ भी सोचने समझने के काबिल नहीं रह गयी थी। मेरी नयी नयी खिलती हुई जवानी को वो लूटने लगा और मुझे कमसिन कली से औरत बनाने मे जुट गया। वो मेरे नंगे जिस्म को पलंग पर पटक दिया और मै गहरी गहरी साँसे लेते हुए उसे अपने कपड़े उतारते हुए देखने लगी। वो जब अपना कच्छा उतारा तो उसका मोटा काला लन्ड तन कर खड़ा हो गया, मै पहली बार किसी मर्द का लन्ड देख रही थी तो मै कहुतूल से उसे देखने लगी। वो तुरंत मेरे ऊपर चढ़ गया।

गार्ड आज बहुत खुश था, जिस लड़की को वो दिन भर मैडम मैडम कह के सलाम करता था आज उसी को नंगा करके उसके ऊपर चढ़ा हुआ था। वो मेरे को भभोडने लगा, उसके होंट मेरे होंटो के ऊपर जम गए और सख्त हाथ मेरी नंगे बदन को नोचने मसलने लगा। मेरे बदन मे मीठा मीठा दर्द होने लगा जो बढ़ता ही जा रहा था।

"आई, आई, अंकल, अहह," मै कराहने लगी पर वो जुटा रहा, "दर्द हो रही है।"

"पुच पुच, चिंकी, आज मै तुझे पूरा प्यार करूंगा, तू भी अंकल को प्यार करेगी ना," वो बोला तो मै हाँ मे सर हिला दी।

"एसे नहीं, मुह से बोलो की अंकल से प्यार करोगी।"

"अहह मै नी," मै शर्मा गयी पर वो शातिर खिलाड़ी था,

"बोलो ना करोगी ना प्यार अंकल से,"

"हाँ अंकल मै भी प्यार करूंगी," मै धीरे से फुसफुसाई तो गार्ड की बाछे खिल गयी।

"शाबाश चिंकी।"

कभी वो मेरे चूतड को मसल देता तो कभी मेरे मोमो को निचोड़ देता। मै अब पूरी तरह उसके काबू मे थी और सबकुछ भूल के बेसमेंट के उस कमरे मे, उस गार्ड के बिस्तर पर, नंगी लेटी हुई अपनी जवानी लुटवा रही थी। रह रह के मेरे मुह से कराहे निकली जा रही थी। उसका मूसल जैसा लन्ड मेरी चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।

वो अपना एक हाथ मेरी जांघों के बीच घुसा दिया और मेरी टाँगे फैलाने लगा।

"वाह, कितनी चिकनी और गदराई हुई टाँगे है तेरी," वो फुसफुसाया और मेरी जांघों को मसलते हुए मेरी फूली हुई चूत की फाँको के बीच अपनी उंगली फिराने लगा।

"अहह, अंकल, ओह, आह," मेरी साँसे तेज होने लगी। मन कर रहा था ये मुझे एसे ही अपने नीचे रगड़ डाले, मै आज चुदाई का पूरा मज़ा लेना चाहती थी, पर थोड़ी थोड़ी घबराहट भी हो रही थी, ये मेरा पहला अनुभव था।

"अंकल मुझे डर लग रहा है, कही दर्द तो नहीं होगा," मै बोली।

"पुच, पुच, चिंकी मेरी जान, घबरा मत बहुत मज़ा आयेगा," वो भर्राई आवाज़ के बोला और मेरे दोनों हाथ अपनी पीठ पर ले गया, "बस मुझे कस के पकड़ ले, ये तेरा पहली बार है न?"

"हाँ।"

"पहली पहली बार थोड़ा दर्द होता पर फिर बहुत मज़ा आता है," वो फुसफुसाया, "तू चिंता मत कर मै तेल लगा के चोदूँगा।"

वो मेरे चूत को रगड़ रगड़ के तैयार करने लगा और फिर बेड के पास से तेल की बोतल उठा लिया।

"चल, टाँगे चौड़ी कर ले," वो फुसफुसाया तो मै अपनी टाँगे फैला ली। वो अपनी उँगलियो पर तेल ले कर अच्छी तरह से चूत की मालिश करने लगा।

"अहह चिंकी, मस्त चिकनी चूत है तेरी," वो फुसफुसाया, "आज पूरा खोल दूँगा तुझे।" वो मेरी टाँगे उठा के अपने कंधे पर रख लिया और अपना डंडा मेरे छेद पर अड़ा दिया।

"तैयार है न मेरी जान," वो बोला। जैसे ही उसने पहला धक्का मारा तो मेरी आंखे दर्द के मारे चौड़ी हो गयी,

"आयी आहह आयी मम्मी, छोड़ो," मै बिलबिलने लगी।

"पुच पुच," वो मुझे पुचकारने लगा जबकि मै उसके शरीर के नीचे दब के छटपटाती रही। उसके लन्ड का तो अभी सिर्फ सुपाडा ही अंदर हुआ था।

"छोड़ो अंकल, छोड़ो,"

"शबबाश, बस बस, थोड़ा सा ही दर्द होगा," वो मुझे बहलाने लगा।

"नहीं, नहीं," मै छटपटाती रही और वो मुझे बहलाता रहा। उसका मोटा लन्ड डंडे सा मेरी चूत मे फिट हो रखा था और वो मेरे दर्द की परवाह किए बगैर धीरे धीरे लन्ड अंदर घुसाता रहा।

"अहह नहीं, अंकल मर जाऊँगी," मै तदफाड़ती रही। उसका लन्ड मेरी चूत मे धीरे धीरे पूरा समा गया और वो अपना पूरा वजन मेरे ऊपर डाल के पसर गया।

"चिंकी," वो भर्राई आवाज मे बोला, "बहुत टाइट है, पुच पुच, बस हो गया, घुस गया," वो मेरे होंटो को चूमते हुए बड़बड़ाने लगा जबकि मै दर्द के मारे कराहती रही।

"अंकल दर्द हो रही है,"

"शबबाश मेरी जान, पुच, पुच, बस हो गया," वो मेरे को पुचकारने लगा और मेरे गालो और होंटो को चूमने लगा।

"ऊ, ऊ, स्स अहह अंकल, ईस्शश, अहह," मेरी टाँगो के बीच जो दर्द हो रहा था मै वो बरदास्त करने को मजबूर थी। वो मुझे उसी तरह दबाय हुए लेटा रहा और मुझे चूमता बहलाता रहा।

बहुत धीरे से वो अपनी कमर हिला के मेरी चूत पर हल्का से धक्का मारा तो मेरे पूरे बदन मे दर्द की एक लहर सी दौड़ गयी,

"आई अंकल, अहह, नहीं, हिलाओ मत," मै कस के उसे जकड़ ली, "एसे ही लेटे रहो, प्लीज।"

"आपने तो पूरा अंदर घुसा दिया, ऊह, मै नी," मै शिकायती लहजे मे बोली और उसकी पीठ नोच ली।

"पुच, चिंकी मेरी जान, पुच, पुच," वो बार बार मेरे होंटो को चूमने लगा, "तू बहुत ही प्यारी है," वो मेरे पूरे शरीर को अपने नीचे समेट लिया और हौले हौले धक्के लगाने लगा। उसका चेहरा वासना से लाल हो रहा था।

"अहह, ओहह, अहह, अंकल।" मै उसकी पीठ पर हाथ मारने लगी, "नहीं धक्का मत मारो।"

"घबरा मत चिंकी, बहुत प्यार से करूंगा।"

"नहीं नहीं अंकल, आई, श्श्शशी, उफ़्फ़," मै उसकी पीठ को कस के जकड़ ली, मेरे को मोटा सा डांडा अपनी चूत मे फिसलता हुआ महसूस हुआ। मै आई आई करती रही और वो धीरे धीरे लन्ड अंदर बाहर करने लगा। उसका मोटा मूसल जरा सा भी मेरे चूत के अंदर हिलता तो मेरे पूरे बदन मे दर्द भरी सनसनी दौड़ जाती।

"आह, ओहह, मम्मी, अहह, अहह, आई, आई, अहह," मै लगातार कराहने लगी और कस के उसको लिपट गयी।

"गुड गर्ल, गुड गर्ल, पुच, पुच," वो धीरे धीरे धक्के तेज करता गया। उसका लन्ड अब मेरी चूत मे बिना रोक टोक के अंदर बाहर होने लगा और मै उत्तेजना मे सिसकरिया भर्ती हुई अपनी कुँवारी जवानी लुटाने लगी।

वो मेरी टाँगो को पकड़ के हुमच हुमच के मुझे कितनी ही देर तक रगड़ता रहा और फिर अपना माल मेरी चूत के अंदर ही भरने लगा। माल मेरी चूत मे गिराने के बाद वो हाँफता हुआ मेरे ऊपर गिर गया। मै उस दिन झड़ी नहीं थी लेकिन धीरे धीरे मेरी उत्तेजना भी शांत हो गयी पर मेरा पूरा बदन दर्द से टूटा जा रहा था।

जब वो मेरे ऊपर से हटा तो मैंने देखा की मेरी चूत मे थोड़ा खून आ गया था, वो मेरे को समझाया की पहली पहली बार ऐसा ही होता है और फिर मेरे को कपड़े पहना के घर जाने के लिए बोला। उस दिन जब मै चूदी पिटी घर पहुंची तो सीधा अपने बिस्तर पर पड़ गयी।

धीरे धीरे मुझे एहसास होने लगा की ये मै क्या कर आई। गार्ड के साथ चुम्मे तक तो ठीक था, या फिर थोड़ा बहुत हाथ लगाने तक, पर मै तो पूरी चुद आई थी। मेरी चूत मे दर्द हो रहा था और मै मन ही मन मे घबराने लगी की कहीं कुछ उल्टा सीधा न हो जाए। कहीं मै प्रेग्नेंट हो गयी तो? अब मेरा सारा मज़ा काफ़ुर हो चुका था और मै घबराने लगी। मै अपनी दर्द करती चूत को दबाये और घुटनो को पेट मे दिये लेटी हुई थी तभी मम्मी कमरे के आ गयी।

"ऐ चिंकी, क्या हुआ एसे क्यो लेटी है," मम्मी मेरे को लेटे देख बोली। मै कुछ जवाब नहीं दी पर वो मेरे चेहरे को देख समझ गयी की कुछ गड़बड़ है।

"क्या हुआ बेटी," वो मेरे पास बैठती हुई बोली, "पेट मे दर्द हो रहा है क्या।"

"नहीं,' मै रुवासे स्वर मे बोली।

"तो फिर," वो प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली, "एसे क्यो लेटी है।"

मेरी आंखो से आँसू निकाल आए, "मम्मी आप नाराज़ मत होना।"

"क्या हुआ बेटी," वो अब चिंतित लगने लगी।

"यहाँ दर्द हो रही है," मै टाँगो के बीच अपनी चूत की तरफ इशारा करते हुए बोली।

"अरे क्यो, तुम्हारे महावरी तो अभी 5 दिन पहले ही खत्म हुई थी।"

मै हाँ मे गर्दन हिला दी।

"तो फिर," वो आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगी, "कहीं कुछ किया तो नहीं।"

मै फिर हाँ मे गर्दन हिला दी।

"हे भगवान क्या कर आई," वो तेज आवाज मे बोली तो मै डर गयी।

"मम्मी... मम्मी,"

"क्या मम्मी मम्मी कर रही है, हे भगवान, किसके साथ मुह काला कर आई," मम्मी तो जैसे स्यापा करने लगी।

"बता... बता... क्या किया, कौन है वो।"

मै और घबरा गयी की अगर मैंने इनको गार्ड के बारे मे बताया तो ये और नाराज़ हो जाएंगी, तो मै झूठ बोल दी,

"पता नहीं मम्मी कौन था... वो... वो... मेरे साथ जबर्दस्ती कर दिया।"

मम्मी एकदम हड्बड़ा गयी, उनके चेहरे से गुस्से के भाव एकदम से गायब हो गए,

"हे राम," वो मेरे को अपनी बाहो मे समेट ली, "चुप, चुप, रोते नहीं।" वो मेरे सर को सहलाने लगी।

"ये कैसे... कहा हो गया," वो धीरे से बोली, "पुच पुच घबरा मत मुझे बता।"

मै झूठ पर झूठ बोलने लगी, "मै छुपन छुपाई खेल रही थी और बेसमेंट मे छुपी हुई थी तो एक आदमी मेरे को पकड़ लिया।"

"तू इतनी बड़ी हो गयी है अभी भी बच्चो के साथ बच्चो वाला गेम खेलती है, बेसमेंट के अकेले क्यो गयी थी," वो बेबसी मे मुझे सुनाने लगी, "जब वो आदमी तेरे को पकड़ा तो तू चिल्लाई नहीं।"

"नहीं, मै डर गयी थी।" मम्मी मेरे को अपनी बांहों के कस के दबा ली और मेरे को पुचकारने लगी, "मेरी बच्ची।"

वो थोड़ी देर चुप हो गयी और मेरे को पुचकारती रही। मेरे को अपने ऊपर ग्लानि हो रही थी की मै झूठ बोल कर मम्मी को कितना परेशान कर दी।

"तेरे को मारा तो नहीं," थोड़ी देर बाद वो धीरे से बोली।

"नहीं मारा नहीं पर बोल रहा था की मारूँगा अगर शोर मचाया तो।"

"तेरे को... तुझे... क्या वही जमीन पर..."

"वहाँ कमरा है... वहाँ बिस्तर पर..."

"साला हरामी, जरूर तेरे पे पहले से नज़र रखे हुए था, तुझे पता नहीं की कौन था।"

मै न मे गर्दन हिला दी।

"जरूर सोसाइटी स्टाफ का कोई आदमी होगा, तभी उसके पास बेसमेंट के कमरे की चाभी होगी।"

"तू वहाँ गयी क्यो... मैंने कितनी बार कहा है की तू अब बड़ी हो गयी है, ये छोटी छोटी स्कर्ट पहन के बाहर जाएगी तो ये हरामी आदमी पीछे पड जाएंगे," मम्मी बेबसी मे बोली।

"मम्मी, पापा की प्लीज मत बताना," मै बोली।

"सिर्फ पापा को ही नहीं, किसी को भी नहीं बताना, समझी, किसी को भी नहीं," वो एक एक शब्द पर ज़ोर देती हुई बोली।

"तू उसके साथ कमरे मे क्यो चली गयी," वो झल्लाती हुई बोली।

"मम्मी जबर्दस्ती पकड़ के ले गया था," मै झूठ पे झूठ बोलने को मजबूर थी। वो मेरे को फिर अपने सीने से लगा ली।

"चल," थोड़ी देर मे वो मेरे को उठा के बाथरूम मे ले गयी, "कपड़े उतार।"

मै झिझकती हुई कपड़े उतारने लगी। जैसे ही मम्मी को मेरी चूचियो पे नील का और दाँत का निशान दिखाई पड़ा वो गुस्सा होने लगी,

"साला कुत्ता, हरामी, कैसे मेरी फूल जैसी बच्ची को नोचा है, साला," मम्मी कलपने लगी।

मैंने कच्छी उतारी तो उसपर एक दो बूंद खून की लगी हुई थी, "मम्मी खून निकल रहा था।"

"कच्छी को धोने डाल दे, पहली बार मे खून निकाल जाता है, फिक्र मत कर ठीक हो जाएगा, और गरम पानी से नहा ले और गरम पानी मे कपड़े को भीगा के चूत की सिकाई भी कर ले।"

मै नहाने लगी और मम्मी मेरे को अच्छे से देखने लगी।

"कितनी देर तक किया।"

"एक घंटा करीब।"

"हे भगवान, एक घंटा क्या करता रहा, कितनी बार किया।"

"एक बार।"

"पीछे से तो नहीं किया," वो बोली तो मै उनकी तरफ देखने लगी।

"अरे मेरा मतलब वो अपना डंडा कहाँ कहाँ घुसाया था... अच्छा तू मेरे को सब कुछ बता शुरू से।"

मै नहाते नहाते अपनी चुदाई की सारी बाते सच और झूठ मिला के बताने लगी, की कैसे वो मेरे को बेसमेंट के पकड़ा, कैसे कमरे मे ले गया। फिर मेरे कपड़े उतारे, मेरे होंटो को चूमा और मेरे उरोजों को मसला।

मम्मी बीच बीच मे टोक टोक के सवाल करती रही।

"उस साले के तो मज़े आ गये, मेरी बेटी तो बेवकूफो की तरह उससे अपनी मरवा आई, कहीं तू भी तो मज़े नहीं लेने लगी थी।" मम्मी मेरी बाते सुन सुन के गुस्सा भी हो जाती और फिर मुझे सांत्वना भी देने लगती, "साला कितना हरामी था, कमीना कहीं का, कुत्ता," मम्मी बेबसी मे गलिया देने लगी।

momcom
momcom
9 Followers
12