गंगाराम और स्नेहा Ch. 04

Story Info
स्नेहा समीर खान के यहाँ से गंगाराम की फाइल ले आती है।
4.4k words
5
130
1
0

Part 4 of the 12 part series

Updated 11/29/2023
Created 06/03/2022
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

स्नेहा समीर खान के यहाँ से गंगाराम की फाइल ले आती है। कैसे जानिए...

दोपहर के एक बज रहे थे। स्नेहा इधर उधर देखते उस कार्यालय में पहुंची। उस समय वह घुटनों के ऊपर आने वाली स्कर्ट और गोल गले वाली टॉप पहनी है। उसके टाइट टॉप से उसके छोटे छोटे मुम्मे समाने वाले के आँखों में चुभने जैसे है। अपने बालों को वह दो ponytail में बांध, उस ponytail में लाल रंग की hair band लगाई है। स्कर्ट ऊपर को होने की वजह से उसके पतले जाँघे नुमाया हो रहे थे। उसके जांघें और पिंडलियाँ बहुत स्मूथ दिखकर देखने वालों की मुहं में पानी ला रहे हैं। एक बात में बोला जाये तो 21 वर्ष की यह लड़की एक पंद्रह सोलह वर्ष की लड़कीजैसे दिख रही है।

ऑफिस के अंदर कॉरिडोर में दोनों तरफ क़तार से चार कमरे थे और हर कमरे के सामने दीवार पर उस अधिकारी का नाम प्लेट है। दीवार के साथ लगकर ही कमरे के सामने तीन कुर्सियां बिछे है ताकि आने वाले वहां बैठे। दरवाजे के पास एक स्टूल था लेकिन उस पर कोई नहीं था। दो कमरों के आगे एक स्टूल पर एक चपरासी बैठा है। लगता है उधर के चार अधिकारीयों का एक ही चपरासी है।

'समीर खान' नाम पढ़कर स्नेहा वहां रुकी और इधर उधर देखने लगी। वहां से दो कमरे के आगे जो चपरासी बैठा था, स्नेहा के पास आया और काम पुछा।

"साहब से मिलना है..." स्नेहा नाम प्लेट कीओर इशारा करते बोली।

"आपके पास अपॉइंटमेंट है...?" उस चपरासी ने पुछा।

"नहीं... लेकिन मिलना जरूरी है... साहेब से मिलवादो प्लीज..." कही और उस चपरासी के हाथ में एक सौ का नोट थमादि।

सौ का नोट देखते ही उसके बांचे खिल गयी। क्यों की सौ का नोट देने वाले कोई आता ही नहीं। 20 से ज्यादे से ज्यादा उसे 50 की नोट थमाने वाले ही आते है। वह भी कभी कभी।

"आप बैठिये" उसे अदब से कुर्सी दिखाते बोला दरवाजे ठेल कर अंदर गया और 2 मिनिट में बाहर आया और स्नेहा से कहा... "साहब कुछ फाइल्स देख रहे है... आधे घंटे तक किसी को न भेजने को कहे है... आप इंतजार करिये.. या नहीं तो नजदीक के कैंटीन में चाय पीकर आईये..."

"नहीं मैं यहाँ बैठती हूँ..." कहते स्नेहा ने एक कुर्सी पर जम गयी।

पूरे चालीस मिनिट बाद घंटी बजने पर चपरासी फिर अंदर गया और अधिकारी जिसका नाम है समीर खान से बोला "साहेब आपसे मिलने कोई लड़की आयी है..."

"लड़की...?" उसने आश्चर्य से पुछा....

"हाँ साहब..."

"लड़की या औरत..."

"लड़की है साहेब... सांवली है लेकिन एक दम कड़क..." चपरासी जिसे समीर खान के आदत मालूम है... दांतें दिखाते बोला।

"पागल कहीं के... उसे अंदर क्यों नहीं भेजा...?"

"साहेब आपही तो कहेथे की किसी भी विजिटर को कम से कम आधा घण्टा बिठाने को..." चपरसी ढरते, झिझकते बोला।

"ब्लडी फूल...." समीर खान रुका और फिर बोला "खैर.... उसे अंदर बेजो..."

चपरासी बहार आया और स्नेहा को अंदर भिजवाया...

"सर नमस्ते..." स्नेहा ने सर झुकाकर नमस्ते कही और उसे देखने लगी।

समीर खान ने सर नवाकर कहा "प्लीज कम; टेक युवर सीट..." उसके सामने पड़े कुर्सियों की तरफ इशारा करते बोला।

स्नेहा बैठ गयी और अपने हाथ मलने लगी।

'वाह, साली क्या मॉल है...' यह सोचते समीर ने उसे परखा जब वह अंदर आ रहीथी तो ही उसके खुले जांघें देख कर ही उसकी पैंट में खलबलि मची।

चमकती आंखे, सतुवा नाक्, पतले गुलाबी होंठ, छोटीसी ठोढ़ी (chin), गर्दन लम्बी.. और उसकी छोटी छोटी चूचियां... देख कर 'मस्त मॉल है' सोचते पुछा..."यस...."

"सर... मेरा नाम दीपा है... आपके पास एक फाइल है... उसे लेन के लिए मेरे मामा ने मुझे बेझे हैं.."

समीर स्नेहा की चमकती आँखों को देखते पुछा..."क्या नाम है तुम्हरा मामा का...?"

"गंगाराम जी है.. वह रियल्टार हैं..."

समीर अपने सीट से उठा और फाइलिंग कैबिनेट के अंदर से एक फाइल निकला और अपने आप् में बुद बुदाया... 'यस हियर इट ईस' वह फाइल लेकर वापिस अपने सीट पर बैठा और फाइल खोल कर देखने लगा ।

कोई दस मिनिट तक फाइल देखने का बहाना कर वह स्नेहा कीओर देखता बोला ... "इसमें कुछ खामियां है... उसे पूरा करने के लिए कहा था उनसे..."

"यस सर.. उसे पूरा करने के लिए ही मैं यहाँ हूँ..."

"अच्छा.. तुम्हे मालूम है.. क्या करना है...?"

"नो सर... मामाजी कह रहे थे की आप मुझे समझायेंगे..."

समीर एक बार फिर स्नेहा को परखा और अपने आप में सोचा... 'क्या यह लड़की मुझे झेल पायेगी...?' वह अपने हलब्बी लंड के बारे में सोचते स्नेहा से बोला "बाहर कार पार्किंग के पास ठहरना... मैं अता हूँ..."

"सर वह फाइल..." स्नेहा रुक गयी।

"मैं ले आता हूँ..."

"थैंक्यू सर..." कह कर स्नेहा बहार आगयी और कार पार्किंग की ओर बढ़ी।

-x-x-x-x-x-

दस मिनिट बाद समीर खान अपने हाथ में एक फाइल लेकर पार्किंग पर आया, और स्नेहा को देख क्र कहा "चलो..." और वह अपनी कारकी ओर चला। स्नेहा उसके पीछे पिछे चलने लगी। समीर एक एस्टीम कार कि डोर (door) खोल कर अंदर बैठते स्नेहा से कहा "बैठो..." कहते सामने का पैसेंजर सीटकि ओर दरवाजा खोला। स्नेहा झिझकते अंदर बैठी। समीर खान ख़ामोशी से कार चलाने लगा। दोनों खामोश बैठे थे। कुछ देर बाद....

"सर हम कहाँ जा रहे है...?" स्नेहा पूछी।

"हमारे घर..."

"क्यों...?"

तुम्हारे मामा के फाइल के खामियां दूर करने..." उसके बाद स्नेहा खामोश बैठी रही।

दो तीन मिनिट बाद समीर पुछा..."क्या नाम है तुम्हारा...?"

"दीपा...." स्नेहा जवाब दी। दीपा वह नाम है जब राव (गंगाराम और स्नेहा 2) के सामने गंगाराम ने स्नेहा का पिरचय कराया था। स्नेहा वही नाम का उपयोग कर रही है।

"क्या कर रही हो...?"

"इंटर हो गया.. अब डिग्री में एडमिशन लेनी है..."

"इंटर...." वह चकित होते उस से बोला "क्या उम्र है तुम्हारी...?"

"उन्नीस... वर्ष... 19 years"

"तुम तो उन्नीस वर्ष की और इंटर कर चुकी लड़की दिखती ही नहीं हो... तुम्हे देख कर कोई भी यही कहेगा की कोई नवीं या दसवीं की लड़की होगी और उम्र तो १६ से ज्यादा दिखती नहीं हो तुम" कहते उसने उसके नंगे घुटने पर हाथ लगाया।

स्नेहा सकुचाते "मेरा बॉडी ही वैसा है सर..." बोली और फिर पूछी... हम आपके घर क्यों जारहे हैं...?"

"मालूम पड जायेगा... जल्दी क्याहै...?' कहते उसने अपना हाथ ऊपर करते जांघ पर घुमाया। स्नेहा के शरीर में एक सुर सूरी हुई। वह समीर के हाथ को रोकने का प्रयास करती बोली।

"सर नहीं...." समीर अपना हाथ निकाल नहीं वहीँ रख के रखा। स्नेहा ने दुबारा प्रतिरोध नहीं किया।

पंद्रह मिनिट बाद वह लोग समीर के घर पहुंचे। समीर दरवाजे का ताला खोलने लगताहै तो स्नेहा पूछी... "घर में कोई नहीं है क्या...?"

"नहीं...फिलहाल मैं अकेला हूँ.. मेरी पत्नी डेलिवरी के लिए मइके गयी है... एक बेटा है 5 साल का.. वह भी उसीके साथ..."

दरवाजा खोल कर दोनों अंदर आते है और समीर स्नेहा को सोफे पर बिठाता बोला "दस मिनिट; मैं फ्रेश होकर आता हुं.." कहा और अंदर चला गया। कोई 15 मिनिट बाद यह लुंगी और कुर्ता पह्ने हॉल में आया और साइड सोफे पर बैठ गया। दो तीन मिनिट बाद वह फिर किचेन की ओर चला। स्नेहा खमोशी से बैठ के घर को देख रही थी। घर बड़ा है.. और सलीक़े से सजी है। हॉल में कुछ तस्वीरें और कुछ पेंटिंग्स भी लगे है । उन तस्वीरों में, एक तस्वीर में एक 30, 32. वर्ष की सुन्दर युवती और उसे साथ एक छोटा बच्चे का भी है। 'शायब इनकी पत्नी और बेटा होंगे' स्नेहा सोची।

"दीपा यह लो चाय..." समीर उसे एक कप थमाते बोला।

"इसकी क्या जरूरत थी सर..." वह सकुचाते बोली और कप लेली। फिर दोनों के बीच कोई वार्तालाप नहीं हुई। ख़ामोशी से चाय सिप कर रहे थे।

दोनों ने चाय ख़तम किये और कप साइड टेबल पर रखे।

"तुम्हारे मामा ने वास्तव में नहीं कहे काम के बारे में...?"

"नो सर..."

"hooooon" समीर बोला और उसे अपने यहाँ बुलाया "दीपा यहाँ आना..."

स्नेहा झकते अपने यहाँ से उठी और समीर खान के पास आयी।

समीरने स्नेहाको एकबार ऊपरसे निछे तक देखा और उसका कलाई पकड़ कर अपने साइड में बिठाया... और उसके कंधे के गिर्द अपना हाथ लपेटकर उसके गाल को चूमा।

"सर, यह क्या क्र रहे है आप...?" स्नेहा बोली।

"वही.. जो काम अधूरा रह गया था...जिस से फाइल की खामियां दूर हो..."

"लेकिन...: स्नेह कुछ बोल रही थी की समीरने उसे झट अपने ऊपर खींचा, जिस से स्नेहा के छोटे नितम्ब उसके गोद में जम गए।

"सर.. छोड़िये.. यह सब गलत है..." स्नेहा बोली, लेकिन अपने आप को छुड़ाने की कोशिश नहीं की।

"अच्छा..दीपा एक बात बताओ.." वह अपने हाथ स्नेहा कन्धों पर रख कर पूसा।

स्नेहा सिर उठाकर उसे देखि।

"तुम्हारे मामा ने तुमसे क्या कहे...?"

"यहीकी आप एक फाइल देंगे.. उसे लेआना.. और उस फाइलकी जो खामियां है उसे ठीक करने में मुझे आपकी सहायता करनी है। मैं जब पूछीकि कैसे तो उन्होंने कहा आपको मालूम है और मुझे आप जैसा बोले वैसे करना है..."

"यही कहे है या और कुछ"

"जी नहीं...और कुछ नहीं कहे..."

"तो तुम तुम्हारे मामा जैसे बोले वैसे करोगी..."

"हाँ...."

"तो जब मैं कुछ कर रहा हूँ तो तुम मुझे क्यों रोक रही हो...?

"लेकिन सर यह गलत है..."

"देखो यही एक तारीखा है तुम्हारे मामा के फाइल को दुरुस्त करने का... अब तुम सोचलो फाइल दुरुस्त करना या नहीं..."

"सर लेकिन..."

"देखो दीपा; इसमें जोर जबरदस्ती नहीं है... तुम चाहो तो फाइल तुम्हे अभी देदेता हूँ... without signature तुम फाइल लेजा सकती हो" समीर स्नेहा के आँखों में देखता बोला।

"सर मैं ऐसा कभी नहीं की है..."

"हर काम का एक पहल होती है.. समझो ये तुम्हारा पहल है..."

स्नेहा खामोश रही। समीर खान समझ गया की लड़की मानेगी। हुआ भी यही... स्नेहा सिर झुका कर धीमें स्वर में बोली..."ठीक है..."

"क्या ठीक है...?"

"में आप जैसा बोले वैसा करूंगी..."

"शाबाश यह हुई न बात.. चलो जरा हंसकर दिखाओ..."

स्नेहा समीर की ओर देखकर एक चित्ताकर्षक ढंगसे मुस्कुरायी। समीर अपने हाथ पैलाया.. और स्नेहा शर्मसे लाल होती उसके बाँहोमें आगयी। वह उसे गोदमें बिठाकर उसे चूमने और चाटने लगा... स्नेहा शर्माने का नाटक करते उसके चुम्बनों का आनंद ले रहीथी। समीर उसके गर्दनपर किस करते, एक हाथ से अपने गोद में बैठे स्नेहा कि स्कर्ट ऊपर उठा रहा था तो दूसरे हाथ को उसके छोटे छोटे गुटली पर फेर रहा था। इतनी जवान लड़की के साथ यह सब करते समीर अपने आप में नहीं था।

"दीपा.. वूं..." कहते समीर अपने होंठों को आगे बढाया... तो स्नेहा ने उसे अपने होंठों में लेकर चूमने लगी। फिर कुछ देर बाद समीर अपना जीभ उसकी होंठों पर फेरा... स्नेहा के होंठ समीर के जीभ के स्वागत के लिए खुल गए हैं। समीर का जीभ स्नेहा की मुहं के अंदर explore करने लगी। उसे इस खेल में मजा आरहा था। उत्तेजना में वह समीर को जोरसे लिपटने लगी।

"उसका लिपटना देख ते ही समीर समझ गया की लड़की अब जो बोले वह करेगी।

"दीपा कैसी है...?" उसके नन्हे चूची को हाथ निचे दबाता पुछा।

स्नेहा ने कोई जवाब नहीं दी सिर्फ उस से जोरसे लिपटने लगी।

"यह क्या है...?" उसकी चूची को दबाता पुछा... वह इस लड़की से जी भर कर खेलने को सोचा।

स्नेहा शर्म से लाल होती अपना सर झुकाली।

"अरे भाई कुछ तो बोलो.. यह क्या है...?" उसने चूची को जोरसे दबाते पुछा।

"च.... चू ....च...ची...." धीरे से बोली।

"अच्छा..तो यह क्या है...?" सनीर ने स्नेह कि स्कर्ट के निचे हाथ डालकर उसकी उभार को जकड़ते पुछा...

"छी... सर... आप गंदे है..." वह उसके हाथ को निकालने की कोशिश करते बोली।

समीर और जोर से उसके बुर को जकड़ा और उसके कान में फूस फुसाया ... "बोलो..यह क्या है...?"

"छी... मुझे नहीं मालूम..." वह सर दुसरी ओर करके कही।

"जब तक तुम बोलोगी नहीं मैं यह नहीं छोडूंगा..." उसकी बुर को पकड़कर गाल को चूमता बोला। स्नेहा कुछ देर नखरे करती रही और फिर मन्द्र स्वर में बोली..."चू...त.... बुर..." स्नेहा को भी इस खेलमे मजा आने लगी। गंगाराम के साथ मौजमस्ती करने पर भी वह ऐसा खेल कभी नहीं खेला।

"गुड...अंग्रेजी में क्या कहते हैं मालूम...?"

स्नेहा अपनी नितम्ब उसके अकड़ रहे डंडे पर दबाती बोली "पूसी, कंट, वजिना...."

समीर को भी लड़की से ऐसे खेल खेलने में मजा आने लगा...वह स्नेहा का सारा मुहं को चाटने लगा। दोनों हाथों से उसके चूची दबाता पुछा... "लंड क्या होती है मालुम.. कभी देखि हो....?"

स्नेहा ने शर्माने का नाटक करते सर झुकाली।

"अच्छा तो देखि हो... किसकी देखि...?"

"मेरे बड़े भैया को..." वह झूट बोलदी।

"कैसे....?" अब समीर का हाथ फिर से स्नेहा के स्कर्ट के निचे घुसी और पैंटी के साइड से उसकी नंगे दरार पर ऊँगली चलाता पुछा...

स्नेहा ने उसकी ऊँगली के लिए अपने जाँघे खोल ते बोली "एक रात भैय्या भाभी को...." वह रुक गयी।

"भाभी को करते देखि हो...?" उसने 'हाँ...' में सर हिलायी।

"क्या कर रहे थे...?" ऊँगली को अंदर डालने की कोशिश करते पुछा।

"स्स्स्सह्ह्ह्हआआ... द... र्द...सससस..." वह दर्द से तिल मिलायी।

समीर को आश्चर्य हुआ की उसकी बुर इतनी तंग होगी की ऊँगली से भी उसे दर्द होने लगा। "दीपा ... तुम.. तुम... कुँअरि हो...?" पुछा।

दर्द से तिल मिलाते उसने 'हाँ' में सर हिलायी समीर को आश्चर्य हुआ की उसकी बुर इतनी तंग होगी की ऊँगलीसे भी उसे दर्द होने लगा। "दीपा ... तुम.. तम... कुँअरि हो...?" पुछा। उसे मालूम है की आज कल लड़कियां जवान होते ही, चौदह, पंद्रह की होते होते ही स्कूल में हि अपने क्लास मेट्स से अपना सील तुडवते है...

स्नेहने धीरे से 'हाँ'' में अपना सर हिलायी। "My God I got a virgin cunt" वह बोला! स्नेहा खामोश रही, कुछ बोली नहीं...

"तो बोलो क्या कर रहे थे तुम्हारे भइया और भाभी?" अपना ऊँगली चलना जारी रखते कहा।

"सर, मैं 19 की हूँ और मैं वैसे काम करि नहिं लेकिन...लेकिन सेक्स के बारे में थोड़ा बहुत जानती हूँ" वह नाज नखरे करते बोली।

"तो बोलना... क्या कर रहे थे...?"

"भैया भाभी के टांगे पसारकर अपना डंडा भाभी की चूतमें घुसा रहेथे..." वहभी अब समीर को ख़ुश करने के लिए बोली।

"अब तक कितने लंड दीखि हो...?" वह बात को घुमाकर पुछा।

"कितने क्या.. एक ही, मेरे भैय्या का... मेरा छोटे भाई का भी देखि हूँ.. लेकिन उसका बहुत छोटा है.. और नरम भी थी... भैय्या की तरह उसका कड़क नहीं थी।

"मेरा देखोगी..." उसे अपने गोद से उठाकर अपने सामने खड़े करते पुछा।

स्नेहा की आँखों में एक चमक आयी लकिन जल्दी ही लुप्त होगयी। उसने शर्म से ना में सर हिलायी।

"क्यों....?"

"मुझे शर्म अति है..."

"अरे... इस शर्म को दूर करने के लिए तो देखना है..." कहते उसने झट अपना लुंगी खींच डाला।

सहज ही (Automatically) स्नेहा के नजरें उसके जाँघों के बीच गयी। समीर का फन फनाते लंड को देखते ही उसकी सांसे एक क्षण के लिए रुक गए। उतना लम्बा था उसका.... 'यह तो लग भाग गंगाराम अंकल के जैसे ही है...' वह दिल में सोच रही थी।

समीर ने उसे अपने लंड को देखते पाया और पुछा "पसंद आया...?"

"यह तो बहुत बड़ा है..." वह सीने पर अपना हाथ रखती बोली।

"तुम्हे कैसा मालूम की यह बड़ा है.. किसी का देखि हो...?" अपने औजार को मुट्ठी में दबाते पुछा।

"अभीतो कहीं हूँ.. मैं मेरे भैया का देखि हूँ..."

"इसे चूसोगी...?"

"मुझे नहीं मालूम, मैंने ऐसे कभी नहीं किया..."

"मैं सिखादूँगा..." स्नेहा ऎसे नखरे करि की वह असमंजस में है.. सर हिलादी।

"आओ... मेरे घुटनों के बीच बैठो..."उसने अपने घुटने चौड़ा करते बोला।

स्नेहा अपने घुटनों पर बैठने जा रहिथी तो बोला "ठहरो..." नेहा रुककर उसे दखने लगी। समीर ने उसे समीप खींचा और एक झटके में उसका स्कर्ट और टॉप निकल फेंका।स्नेहा अब उस चुड़क्कड़ के सामने सिर्फ पैंटी और ब्रा में रह गयी। समीर ने लालसा भरे नजरों से स्नेहा की पतले जांघो को देखता उसे घुटनों पर बिठाया और अपना उसके मुट्ठी में थमा दिया।

स्नेहा महसूस करि की समीर का उसके मुट्ठी में फुल है और गर्म भी है। "इसे मुहंमें लेलो और चूमो, चाटो"

स्नेहा ने पहले उसके सुपाडे को चूमि और फिर झिझकने का नाटक कर उसे जीभसे टच करि।

"uuzzzzsssss...." समीर के मुहंसे एक मीठी सिसकारी निकली। "शाबाश.. वैसे हि करो.. जो तुम्हारे दिल में आया वो करो..." कहा और उसके ब्रा के हुक खोल् कर उस नन्ही, नंगी चूची पर हाथ फेरा।

"ममममममअअअअ..." स्नेहा बोली।

"क्या हुआ....?"

"अच्छा लग रहा है..."कही और अबकी बार जीभ को समीर के सारे लम्बाई पर चलाने लगी।

फिर उसने समीर के डंडे को मुहं में ली और चूसने लगी। समीर निचे से उसके मुहं में दकके देने लगा। हर दकके के साथ उसका मुस्सल थोड़ा थोड़ा स्नेह की मुहं में जा रही है। चूसते, चूसते स्नेहा ने उसके अंडकोषों को भी सहलाने लगी।

"शाबाश.. बहुत अच्छे जल्दी ही सिख गयी... करो.. वैसे ही करो.. और अंदर लेलो.. मैं क्या कर रहा हूँ मलूम...?" समीर उसके मुहं में अपना मुस्सल पेलते पुछा...

"क्या कर रहे है...?" मासूमियत से पूछी। उसकी मासूमियत पर समीर फ़िदा होगया और बोला "मैं मुहं को चोद रला हूँ..."

"छी... मुहं भी कहीं चोदने के लिए है क्या...?" वह आंखे मिचकाते पूछी।

"तुम कितनी भोली हो दीपा.... चूत के साथ साथ मुहं को और गांड को भी चोदाजाता है..."

"हाय राम.. यह क्या....? गांड तो हगने की जगह है.. क्या उसे भी..."

"हाँ उसे भी... तुम गांड मरवावोगी...?" ऐसे बातों में दोनों ही बहुत उत्तेजित होने लजे। अब दोनों ही चरम सीमा पर पहुंचे। "चूसो...और चूसो... वेरु गुड... तुम तो बहुत अच्छी चूसती हो...हहहहहहह.. मेरा हो गया.. बस होगया..." कहते उसने स्नेहा की मुहं में उंडेलने लगा...

एक दम से हुई इस आक्रमण से स्नेहा confuse हो गयी... गरम गरम गाढ़ा वीर्य से उसका मुहं भरने लगा... उसका मॉल इतना जयदा था की स्नेहा पूरा निगल न सकी.. ज्यादा सा भाग मुहं से बाहर उसके लबों पर वहां से उसकी बदन पर बहने लगी।

"यह क्या सर अपने मेरे मुहं में ही....." बोलते बोलते उसने अपने शरीर परसे उस वीर्य को ऊँगली से पोंछने लगी।

"कैसा है...? टेस्टी है ना?"

"नमकीन है और थोडासा कसैला पैन भी..." जीभ से होंठों को चाटते बोली।

चलो बहुत देर हो गयी है.. अब मुझे चोदने दो..."

"ओह नो.. सर..."

"क्यों क्या हुआ...?" जब चोदुँगा तो और अच्छा लगेगा..." इसके निप्पल को उँगलियों में लेकर मसलता बोला।

"नहीं...." वह गभराने का नाटक करते बोली। लेकिन एक ओर उसके बुर में खुजली हो रहीथी और वह चुदाने को बेसब्री से इंतजार कर यही थी।

"क्यों....?"

"आपका बहुत लम्बा और मोटा है.. मेरी फट जाएगी.."

"धत पगली... ऐसा कुछ नहीं होता..."

"नहीं... मुझे ढर लग रहा है..."

"इधर आओ कमरे में चलते हैं..." समीर कहा और उसे गुड़िया कि तरह उठाकर कमरे में चला। उसे पलंग पर चित लिटाकर उसका पांटी भी निकाल दिया। उसकी चिकनी चूत फूली फूली थी। स्नेहा अब उसके सामने मादरजात नंगी पड़ी थी। इतनी देर से उस से खेलने की वजह से अब समीर भी अपने आपको रोक नहीं पा रहा है।

वह अपना लवड़ा मुट्ठीमें पकड़कर उसे नेहाकी बुरकी फांकों पर रगड़ा। स्नेह कि सारी शरीर में चींटी रेंगे जैसे अनुभव हो रहे थे। "mmmaaaammma' उसका बदन में एक हल्का से कम्पन हुआ। "सर... मुझे ढर लग रहा है... आपका बहुत बड़ा है... मैंने ऐसे कभी नहीं किया..." वह अपनी खूब चुदी चूत को हथली के निचे छुपाते बोली।

"अच्छा एक काम करते है.. इसे चुदने की काबिल बनाते है..."

"कैसे....?"

समीर ने उसके जांघों में अपना सर दिया और उसके फांकों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा..."

"ससससस.....ह्ह्हआआ...सर...." स्नेहा तिल मिलायी और उसके सिर को अपने बुर पर दबायी।

"अच्छा लग रहा है...?" चाटते पुछा...

स्नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन अपने कमर उछाली। समीर अपना काम जारी रखा... अपना खुरदरी जीभको उसने स्नेहा की फांकों के बिच चलाते अंदर तक अपना जीभ घुसेड़ा...जब तक स्नेहा कि बुर पानि छोड़ने लगी।

"हाँ..सर..हाँ.. ऐसे ही... ओफ्फो यह क्या कर रहे है.. मुझे कुछ हो रहा है.. और अंदर डालिये अपना जीभ को..ववाह.. कितना अच्छा है.. चूसो.. सर..चूसो... अम्म्मा" वह उसके चूसन से, बिना पानीके मछलीकी तरह तड़पने लगी।

उसे चूसते चूसते ही समीर ने उसके नितम्बों के बिच उंगलि करने लगा...

"ओह सर यह क्या कर रहे है....आप..." वह अपने गांड की मांसपेशियों को टाइट करती पूछी।

"क्यों अच्छ नहीं लगा...?"

"बहुत अच्छ अहइ ee..ee..eeeee....."

"जस्ट रिलैक्स..और मस्ती करो.." कहते वह उसके बुरको चाटने लगा। पूरा दस मिनिट तक वह उसे चूमता चाटता और चूसता रहा.. कभी कभी उसके भगनासे (clit) को भी दांतों से काटने लगा...

स्नेहा तो अब स्वर्गमें थी..सर..सर... अहःअहः... कहती वह झड़ चुकी थी। उसके अंदरसे बहने वाली उस नमकीन रस को छाव के साथ चख रहाथा समीर...

स्नेहा उसके मुहं के ऊपर अपने बुर उछालते बोली... सर.. सर.. प्लीज.. कुछ करिये... यह क्या खूजली है.. सर बहुत खुजली हो रही अंदर..." यह बोली।

"दीपा उस खुजलीको मिठाने का एक ही तरीखा है...?"

"क्या है.. जल्दी करिये..." वह अपनी कूल्हे उछालती बोली।

"तुम्हे चोदना ही उस खुजली की दवा है..."

"तो चोदिये न...."

"तुम तो ढर रही हो...."

"नहीं...चाहे कुछ होजये...मेरी फटती है तो फटने दो...पहले चोदो; यह खुजली मेरे से बर्दास्त नहिं होती..." कही और समीरके सर को पकड़ कर अपने उपर खींची।

समीर अपना मुश्तण्ड लेके स्नेहा की जांघों में आया.. और अपना डंडे का सूपाड़ा... स्नेहा की उभरे फांकों पर रगड़ा..."

"आअह्हह्हह्ह..... सससस.. मामममम.. चोदो चोदो कहते कमर उछालने लगी। समीरने मौका देख कर अपने लंड को अंदर धकेला..."

"faaaaakkkkkk..." के अवाज के साथ उसका लाल टोपा उसके फांकों के बिच फंस गयी।

"सस्ससम्मम्मा" स्नेहा तिल मिलाने का नखरे करि। सचमें भी उसका बुर कुछ तंग होगयी है.. वह यहाँ आनेसे एक दिन पहले एक आयुर्वेदिक लेडी डॉक्टरके पास गयी और बोली... "डॉक्टर...मेरा मंगेतर (fiance); मेरा लूज है कहकर मझसे शादी करनेसे इंकार कर रहा है...प्लीज...मेरी शादी बचाइए कोई अच्छा मेडिसिन दीजिये की वह थोडासा टाइट होजाये,," कही... डॉक्टर ने उसे एक ऑइंटमेंट की tube दी और बोली... सम्भोग से एक घंटा पहले इसे अंदर बाहर लेपन करना...

अब स्नेहा उसि लेपनको लेप कर आयी है..और उसका चूत कुंवारी चूत की तरह तंग हो चुकी है।

जब स्नेहा की मोटे फांकों के बीच अपना सुपाड़ा फंसी तो समीर को भी जन्नत दिखने लगी। 'वाह क्या टाइट चूत है इतना टाइट चूत तो मैं पहले कभी नहीं चोदा' सोचते उसने अपना कमर ऊपर खींचा और एक जोर का शॉट दिया। 8 इंच लम्बा लवड़ा आधे से ज्यादा स्नेहा कि तंग बुर में चली गयी।

"आमममममायआ.... mareeeee...re... हाय ,,, हाय। . meree phateeee आहा निकालो.. नहीं... नहीं .. मुझे नहीं चुदाना....जालिम कहिं के.. छोड़ो.. मुझे..." स्नेहा दर्द से तड पडाती बोल ही रही थी की समीर ने एक और जोर का शॉट दिया।

उस शॉट से समीर का पूरा का पूरा स्नेहा के चूत में जड़ तक चली गयी।

"aaaaaaaahhhhhh ..... बास्टर्ड... छोड़ो मुझे.. मार डालोगे क्या... आअह्हह ..."दर्द के मारे चिल्लाती समीर को अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। लेकिन समीर के बलिष्ट शरीर के सामने उसका एक भी नहीं चली।

समीर ने अब अपना मूवमेंट रोका एक हाथ स्नेहा की मुहं पर रखा.. और एक चूची को पूरा अपने मुहं में लेकर चूसते दूसरे की निप्पल को मसल रहा था। स्नेहा उसके निचे छटपटाते उधर इधर हिल रही थी। उसकी ऐसे हिलने से उसका लंड और अंदर समागयी।

दोनों शांत पड़े राहे। कोई तीन चार मिनिट बाद जब दोनों की सांसे कुछ थमी तो समीर ने सर उठाकर उसे देखा। तभी स्नेहा ने भी उसे देखि। उसके आंखे आंसू से भरे थे। समीर उस आँसू भरे आँखों को चूमते आंसू चाट गया। फिर उसेके पतले होंठ अपने में लेकर चूसने लगा... उसका छाती मसलना जारी रहा। स्नेहा शांत पड़ी रही।

पांच छह मिनिट के ऐसे हरकतों के बाद स्नेहा में थोडा सा चलन आया। उसे महसूस हुआ की उसके चूत के अंदर चिकना पानी छूट रहा है.. और वह पानी एक दवा की तरह काम करते उसे राहत देने लगी। यह अहसास समीर को भी हुआ।

12