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VOLUME II- विवाह, और शुद्धिकरन
CHAPTER-4
सुहागरात
PART 5
मैं चुपचाप निहारता रहा
वो भी मेरे लिए एक ब्रेसलेट लायी थी। मैंने अपना पास रखा पर्स खोल कर ब्रेसलेट निकला और मेरी और बढ़ाते हुए कहा 'यह मेरी ओर से आपके लिए है!'
'ओह... बहुत खूबसूरत है...' मैं हंसते हुए बोला और अब इसे आपको ही पहनाना होगा! ' उसके हाथ कांपने लगे थे और कांपते हुए हाथो से उसने उस ब्रासलेट को मेरी कलाई में पहना दिया।
'इस अनुपम भेंट के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!' कहते हुए मैंने उस ब्रासलेट को चूम लिया। वह एक बार फिर लजा गई। मैं उस परम् सुंदरी को चुपचाप निहारता रहा।
मुझे ऐसे निहारता देख उसने शर्मा कर अपनी पीठ मेरी तरफ कर ली और मैंने उसके पतले बदन, उसके चौड़े कंधों और उसकी चिकनी, निर्दोष, हल्के दूधिया गुलाबी रंग की पीठ को देखा। इस बिंदु पर, मेरा लंड उत्तेजना से इतना कठोर हो गया था कि मुझे थोड़ा दर्द महसूस हुआ। मैंने उसे घुमाया और अपने होंठो से कस-कस के उसके स्तनों को देखने लगा । उसके पेट पतला और मैं उसके बिलकुल सुंदर सांचे में ढले हुए दृढ़ स्तनों को देख रहा था, वे कभी भी दूध से नहीं भरे थे पर भी-भी रस भरे लग रहे थे और उनकी गुलाब की कली और अंगूर जैसे निप्पल कभी भी चूसे गए थे।
मैं आगे हुआ और स्तनों को चूमने लगा और मेरे हाथ स्तन सहला और दबा रहे थे और वह भी मस्ती में चूर हो रही थी। उसकी देह के जिस भी-भी अंग पर मेरी उंगलियाँ छू जाती थि और फिर मैं उन्हें होंठो से चूम लेता मुझे लगता था वह अब मेरा बस मेरा हो गया और उसके बदन का स्पंदन भी यही बता रहा था की वह भी यही महसूस कर रही थी की उसका बदन अब उसका नहीं रहा था मेरा होता जा रहा था।
जब मैंने दोनों बूब्स के बीच ठीक उसके दिल के पास चूमा तो मुझे लगा कि अब दिल भी मेरा हो गया। पर दिल तो उसने मुझे जब पहली बार गुरूजी के सान्निध्य में देखा था तभी दे दिया था और फिर उसने भी यही सोच कर की जब दिल दिया तो देह देने में क्या है लेकिन उसके गुलाबी गाल उसकी शरम की दास्ताँ बयान कर रहे थे ।
जब मैंने दिल पर चुंबन किया तो उसने बेसाख्ता ही मेरे गले में बाहे कस दी और अपने स्तन मेरी नंगी छाती से चिपका दिये और जब मैंने उसे अलग किया और उसके स्तनों के बीच चुंबन करने लगा तो वह मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगी और जब मैंने उसकी नाभि में जीभ दाल कर घुमाई तो उसने नितम्ब उठा दिए जो की इस बात का संकेत था कि अब इस अब इस किशोर दुल्हनिया का अपनी देह पर राज ख़तम हो गया है और उसने असली मालिक के सामने समर्पण कर दिया है।
मैं इसी पल का इंतजार कर रहा था और जैसे ही उसने नितम्ब उठाये मेरे हाथ उसके लहँगे पर गए और मैंने लहंगे को नीचे सरका दिया और अब वह सिर्फ दो अंगुल की गुलाबी पट्टी वाली पेंटी में थी जो ढक कम दिखा ज्यादा रही थी और फिर जब मैंने उसे बाहों ले कर कस कर भींचा तो मेरा औजार अंडरवेअर के अंदर से उसके योनि क्षेत्र से छु गया एकदम कड़ा और सख़्त लंड जब स्पर्श हुआ तो उसकी । देह में एक झुरजुरी-सी दौड़ गयी और शरम से उसकी आँखे बंद हो गयी।
लेकिन उसकी गोरी, जांघे अभी भी नारी सुलभः शर्म के कारण अपने आप भींची रही, उसने अपनी टांगो को खूब कस के.सटा रखा था। मैंने एक बार उसे भींचा मेरे सीने से उसके मेरे उभार दब गए ा और मैंने उसे चूमना शुरू कर दिया तो वह अब काम रस का मजा लेने लगी और उसके अंगो ने समर्पण किया, उसकी टाँगे अब शिथिल हो गयी और उसके पैरो के बीच भी मेरा एक हाथ घुस गया ।
मेरा एक हाथ जो उसके पैरो के बीच था मैंने उससे सहलाना शुरू कर दिया और उसकी मुलायम जाँघो के बीच, आगे बढ़ता गया और फिर जांघो के अंदरूनी हिसे को सहलाया और जब तक वह अपनी जाँघे दुबारा भींचती मेरी उंगलिया उसकी पैंटी के उपर से ही उसकी योनि को सहलाने लगी और इस बीच मेरा दूसरा हाथ उसकी जवानी के कलशो पर था और उनके दृढ और गोलाकार स्तनों को सहला और चुचकों को छेद रहा था और दूसरा सीधे पैंटी के उपर । पहले तो मैं थोड़ी देर स्तनों को दबाता और सहलाता रहा, फिरमेरी एक ऊँगली साइड से पैंटी को हल्के से सरका कर अंदर जाने लगी तो मुझे वहाँ एक हुक महसूस हुआ और जब मैंने उसे ठोस छेड़ा ऑटो वह हुक खुल गया और फिर मेरी उंगलियों ने उस पेंटी को निकाल दिया और उसने शर्म से आँखे बंद की हुई थी। उसकी बिलकुल चिकनी थी, कही झांटो का कोई नामो निशाँ नहीं था और योनि ओंठ आपस में बिकुल चिपके हुए थे ।
कहानी जारी रहेगी