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Click hereमेरी छोटी ननद गीता 1
हेमा नंदिनी
आज बहुत महीनों बाद मेरी आप सबसे मुलाक़ात हो रही है। आप सब को आपकी चहेती हेमा नन्दिनी का नव वर्ष का हार्दिक शुभाभिनन्दन। अभिनंदन।
Story infn.
Bhabhi nanad me dosti phir ek dusre se pyar
आज संडे था। आज सवेरे ही मेरे पति मोहन और मेरे सासुमा (सौतेली) ससुरजी नजदीकी रिश्तेदार की यहाँ शादी अटेंड करने गांव गए है। बोलके गयेथे की शाम तक आयेंगे। ससुरजी के घरमे मेरी छोटी ननद गीता अकेली है। कल ही बाबूजी (ससुरजी) बोलके रखे थे की फ़ोन पे गीताकी हाल चाल पूछलूं। मैं गीता को फ़ोन करि। "हेलो..कौन...?" उधर से गीता की स्वर सुनायी दी। वह मेरी आवाज को पहचान गयी। उसके स्वर में रुष्टता थी।
"हेलो...गीता.. मैंहूँ हेमा, हेमा भाभी..." में बोली।
"क्या है...?" वही तीक्षणता।
"कैसी हो...?"
"ठीक हूँ.. क्यों फ़ोन किया...?" रुष्टता से पूछी।
"देखो मेरी बात सुनो... वहां सासुमा और बाबूजी नहीं है... तुम अकेलि हो, इधर तुम्हरे भैया भी नहीं है.. और मैं अकेली हूँ.. सोचा तुम्हे बुलालूँ। यहाँ आजाओ" मैं बोली।
"नहीं... मैं नहीं आ रही हूँ..."
"गीता प्लीज.... यहाँ आजाओ.. मैं तुम्हरी पसंदीदा नाश्ता कर रही हूँ.." मेरे प्लीज कहनेपर वह थोडा नरम पड़ी।
"क्या...?"
"अरी आवोगी तो पता चलेगा न.. मैं तुम्हारी वेट कर रही हूँ.." मैं बोली। गीता अनमने स्वर में हाँ बोली।
दोस्तों; में हूँ हेमा, हेमा नंदिनी अबकी बार मेरी छोटी ननद की एक किस्सा आपके मनोरंजन के लिये.....
गीता मेरी छोटी ननद है। मेरे ससुरजी की दूसरी पत्नी की बेटी। 20 वर्ष की आयु है उसकी और B.Sc. सेकंड ईयर कर रही है। सासु माँ को मैं एक आंख नहीं भाती थी। वह ना जाने क्यों ससुरजी से भी चिढती है। वही चिढ वह अपनी सौतेली बेटी संगीता पर, मेरे पति मोहन पर भी दिखाती है। मेरी शादीके बाद वह मेरेसे भी चिड़ने लगी। आखिर में हम तंग आकर एक अपार्टमेंट किराये पर लिये और वहां रह रहे हैं। जबसे हम लोग (मैं और मेरे पति) अलग रह रहे हैं बाबूजी हमारे यहाँ ज्यादा समय बिताते है।
सासुमा को देख उसकी बेटी गीता भी मेरेसे चिढती है। सच मानो तो गीता अच्छी लड़की है, लेकिन माँ के तरफ से बिगड़ गयी है। वह एक 20 वर्षीय सुंदर लड़की है। गीता के नयन नक्श देखने लायक है। गोरा बदन कजरारी आंखे, लम्बी गर्दन, और लम्बे घने बाल, 34 B कप की ब्रैस्ट 28 की कमर और 33 के नितम्ब। बहुत मस्त लड़की है।
मैं सासुमा से और उसकी बेटी गीता से हमेशा से अच्छा सम्बन्ध रखने की कोशश करती हूँ। वह चाहे मुझे कितना भी अनादर करे में उनसे आदर से ही पेश अति हूँ।
कल शाम बाबूजी (ससुरजी, मैं उन्हें बाबूजी कहती हूँ) मेरेसे बोले थे की वह आज एक शादी में जा रहे है और गीता घर में अकेली रहेगी कभी कभी फ़ोन पे उनका हाल चाल पूछलूं।
ऊपर का वार्तालाप उसिका नतीजा है। मैं फ़ोन रखी और किचेंन में घुस गयी गीता की पसंदीदा नाश्ता बनाने के लिये। गीताको लिवर करी और पराठा बहुत पसंद है। यह बात मुझे मोहन ने बताई। बाबुजी जब गीता कि हाल चाल पूछने को बोले तो मैं सोची उसे ही यहाँ बुला लेते हैं और मैंने मोहन को कहकर कल ही बकरी का लिवर और चिकन विंग्स की लॉलीपॉप्स माँगा कर फ्रिज में रख लिया।
अब गीता आने से पहले नाश्ता तैयार करना था। सवेरे 9 बजे तक में नाश्ता तैयार करी और गीता की इंतज़ार करने लगी।
दरवाजे की घंटी बजी तो मैं दरवाजा खोली। सामने गीता खड़ी है। "हाय गीता... कैसी हो...?" मैं गले लगाकर मिली और पूछि। में उसे अंदर ले आयी और पूछी "गीता नाहा लिया..?"
"हाँ... हेमा.." वह कहि।
"चलो नाश्ता लगाती हूँ" कही और हम दोनो मिलकर नाश्ता करने लगे। लिवर करी देखते ही गीता के मुहं में मुस्कुराहट आयी। उसकी रुष्टता गायब होगयी। वह झट प्लेट को खींचि और खाने लगी। नाश्ते के बाद मैं उसे मेरे बैडरूम में लेगई इधर उधर की बातें करते अल्मारी खोली और एक महंगी ड्रेस मटेरियल निकालकर गीता को दिखाई। वह ड्रेस मटेरियल महँगी ही नहीं डिज़ाइनर वाली है। उसे देखकर गीता की आँखे चमके।
"गीता मुझे यहीं दस मिनिट के लिए जाना है, अपनी स्कूटी पर ले चलोगी?" मैं पूछी
उसके दिल में क्या है मालूम नहीं पर वह मान गयी और हम दोनो उस ड्रेस के साथ निचे आये और गीता की स्कूटर पर सवार हुये।
नजदीकी बुटीक शॉप पर हम रुके और कविता से मिले। कविता उस बुटीक शॉप की बॉब्ड हेयर वाली 50 साल की मालकिन है।
"हेमा कैसी हो...?" कविता ने पुछी।
"ठीक हूँ कविता जी, आप कैसे हैं?"
"एकदम बढ़िया.. कैसे आना हुआ..? और यह कौन है...?" गीता की ओर देखती पूछी।
"यह मेरी छोटी ननद गीता है... एक सूट सिलवाने का था कविता जी.." कहते मैं मेरा ड्रेस मटेरियल उसे दी। उसे परखने के बाद कविता बोली "हेमा यह तो बहुत महंगी है... सात आठ हजार की होगी... नो..." उसका दाम सुनकर गीता मुझे अचम्भे से देखने लगी।
"जी कविता जी... दुपट्टे के साथ आठ हजार हुए"
"आवो नाप लेती हूँ.." कविता टेप हाथ में लेती मुझसे बोली।
मैं गीता को सामने करते "मेरे लिए नहीं कविता जी.. मेरी ननद की नाप लीजिये.. इसी के लिए स्टिच करनी है.."
"हेमा..." गीता चकित होते बोली... "यह मेरे लिए...?"
"ऑफ़कोर्से...तुम्हरे लिए ही है.. चलो जल्दी नाप देदो.." में बोली।
"लेकिन इतना कॉस्टली...?."
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं... तुम कॉलेज जाने वाली लड़की हो... अच्छे ड्रेस तो होनी ही चाहिए.." कहती मैं गीता को आगे करि। कविता ने गीता के नाप लेते बोली.."कल शाम तक मिल जाएगी"
**********
हम घर वापस आगये। "हेमा ... भ ... भाभी वो...वो ड्रेस मुझे क्यों..?
"क्यों... क्या बात है.. अच्छी नहीं है...? पसंद नहीं आयी...?" मैं पूछी।
"बहुत अच्छी है...लेकिन उतना कॉस्टली..मेरे लिए..." वह रुक गयी।
"गीता तुम मेरी ननद हो... छोटी.. दुलारी... ननद हो..; क्या मैं मेरी ननद को ड्रेस नहीं दे सकती..?
गीता कुछ बोली नहीं; कुछ सोचने लगी।
फिर हम वही सोफे पर बैठेकर बतियाने लगे। में उसकी कॉलेज की बातें और उसके दोस्त और सहेलियों के बारे में पूछ रही थी।
बातें करते करते में गीता को ही देख रही थी। मेरे ऐसे देखने से गीता विचलित हुई और पूछी... हेमा... भाभी.. ऐसे क्या देख रहे हो...?" पूछी।
"गीता तुम अच्छी लड़की हो...तुम्हे देख कर मुझे मेरी बहन प्रेमा याद आयी। वह भी तुम्हरे जैसे ही इनोसेंट है, और ज़िद्दी भी, इधर आओ" मैं उसे मेरे पास बुलाई।
वह हीचकिचाते मेरे समीप आयी। मैं उसकी कलाई पकड़ कर मेरे गोद खींची और उसके गाल को चूमती बोली ... "तुम सुन्दर भी हो..."
मेरे ऐसे करने पर वह शर्मसे लाल हो गयी और वह अपने कपडे व्यवस्तित करने लगी। वह जीन पैंट और शर्ट में थी।
"चलो कमरे में चलते है... और सहूलियत के कपडे पहनेंगे... कुछ आराम रहेगी" में बोली और गीता कि कलाई पकड़ कर कमरे में ले आयी। अलमारी खोलकर दो सेट नाईट पजामा सूट निकली एक गीता को दी और दूसरा मैं ली।
"हे... भ .. भाभी... यह पजामा सूट कितना अच्छे है...ऐसे नाईट पजामा सूट खरीदने के लिए माँ को कब से पूछ रही हूँ लेकिन वह मान ही नहीं रही"
"गीता... मैं डियर...पहले यह निर्णय करो की मुझे हेमा बुलानी है या भाभी... हेमा बोलने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है.." मैं बोली कुछ रुक कर फिर बोली "तुम्हे चाहिए तो मेरे पास एक नया स्पेयर पजामा सूट है.. वह तुम लेजाओ.."
"नहीं भाभी.. माँ गुस्सा करेगी..."
मैं उस समय कुछ बोली नहीं... मुझे मालूम है... सासुमा को मेरे यहाँ से कोई चीज लेना पसंद नहीं है... बेकार में गीता को डांट पड़ेंगे..."
फिर हम दोनो पजामा सूट पहन लिए और मैं बिस्तर पर लेटी और गीता को भी लेटने के लिए बोली। वह हीच किचाने लगी तो में उसकी हाथ पकड़ क्र खींची तो वह मेरे बगल में लेट गयी।
दोनों पीटके बल लेटकर छतको देख रहेथे। कुछ देर बाद मैं बोली.. "प्रेमा..." गीता चुहुंक उठी और पूछी "प्रेमा....! भाभी यह प्रेमा कौन..?"
"ओह.. मैं.. पेमा बुलाई क्या...? प्रेमा मेरी छोटी बहन... अभी बोली थी न... तुम्हे देखकर उसकी याद आरही है.." बोलते मैं उसे मेरे ओर खींची और उसके गाल को चूमि। गीता कुछ बोली नहीं। मैं उठी और अलमारी से फोटो एल्बम निकाली और उसे दी।
गीता उसे देखने लगी। एक फोटो में मैं, मेरे पति, एक साइड तो दूसरी साइड संगीत और उसके पति थे और बीच में बाबुजी बैठे है.. वह एक एक करके फोटोस देख रही थी। एक फोटो देखकर वह रुक गयी। उस फोटो में संगीता; मेरी बड़ी ननद, अपनी पापा के गोद में बैठ कर अपने हाथ पपा के गले में डलकर उनके गाल को चूम रही है। उसे दखते गीता दूसरी पेज पलटी तो फोटो सेम है लेकिन अब बाबूजी संगीता के गाल को चूम रहे है।
गीता उस फोटो को ही देख रही थी।
"ऐसे क्या देख रही हो गीता...?" मैं पूछी।
"यह फोटो... पापा ने मुझे कभी भी ऐसे प्यार नहीं किये..." वह व्यथित मन से बोली।
"देखो गीता यह love and affection reciprocal है यानि give and take तुम भि तो अपने पापा से अच्छा व्यवहार नहीं करती हो। ठीक से बात नहीं करती हो.. तुम खुद सोचो.. लेकिन एक बात सच है.. बाबूजी तुम्हे बहुत चाहते है..."
"में नहीं मानती..." गीता तम तमाते चहरे से बोली।
"एक मिनिट" मैं बोली और फिर मेरी अलमारी खोल कर एक ज़िप वाला बैग निकला कर उसके सामने रखी।
"यह क्या है...?" गीता पूछी।
"खुद ही देखो मालूम पड़ेगा..."
गीता ने बैग खोली। अंदर जेवेलरी शॉप वले जेवेलरी बॉक्सेस चार पांच थे। उसे देखकर बोली.. यह क्या यह तो आभरणों के डिब्बे है..."
"हाँ खोलकर देखो..." मैं बोली और मैं खुद एक खोल कर उसे दिखाई। उसमे एक कीमती पत्तरों से जड़ा एक नेक्लेस और उस से मैच करते कान के बाले थे। चकित होते गीता ने दूसरी डिब्बा खोली। उसमे एक लंबासा दो लेयरों वाला सोने की चैन तो एक और में आधे डज़न सोने की चूडिया है। एक और बडासा बैग में चांदी की कमर बंद है। साथ में पांच लाख रूपये का एक FD certificate भी है।
"भाभी यह सब क्या है..? मुझे क्यों दिखा रहे हो...?" पूछी।
"यह सब तुम्हारे है.. तुम्हारे लिए तुम्हरे पापा ने जमा करके रखे है.. वह कह रहे थे की यह सब गीता कि शादी में देने है"
"Kyaaa?" वह चकित रह गयी। "
तम्हारी माँ को मालूम होगा तो वह यह सब जमा करने नहीं देगी। इसीलिए उन्हें छिपा कर रखना पड़ा। हम यह घर लेने से पहले तक यह गहने बैंक लाकर में थे। जब हम यह घर लिये है तो; यह गहने तुम्हारे भैय्या को देकर संभल कर रखने को दिए है"।
"क्या.. सच में...?"
"झूट बोलकर मुझे क्या लाभ है.. अच्छा एक बात बताओ... तुम प्राइवेट कालेज में पढ़ती हो.. फीस कितना है..?"
"सालाना पंद्रह हजार"
"यह फीस कौन भरते हैं?
"और कौन.. पापा ही..."
"इसके अलावा तुम्हरे अपना खर्च.. तुम्हारे स्कूटर का पेट्रोल का खर्च, तुहारा घर कैसे चलती है..?"
"कैसे बातें कर रही हो भाभी... पापा ही माँ को पैसे देते है"।
"सॉरी कुछ मत समझना... सासुमा कुछ नौकरी करती है क्या..?"
"माँ! और नौकरी.. उसे तो अपने सहेलियों से मिलनेसे ही पुरसत नहं मिलती.."
"तो गीता तुम मानती हो की तुम्हारा सारा घर का खर्चा तुम्हरी फीस, तुम्हरी और तुम्हारी माँ का खर्चा सब पापा देते हैं..."
"हाँ..." वह कुछ सोचती बोली।
"फिर तुम्हे, तुम्हारे पापा पर नाराजगी क्यों...? माँ की बात छोड़ो... वह तो मिया बीवी के बातें है... पर तुम्हारी नाराजगी क्यों...?"
गीता बहुत देर खामोश रही और फिर फफक कर रोपड़ी...
"ओह भाभी I am sorry में पापाको गलत समझी.." वह रोने लगी
"तुम्हारे पापा रोज रात को लेट आते हैं.. तुम्हे मालूम है क्यों...?" मैं पूछी।
गीता ने अनिभिग्नता से सर हिलायी।
"ऑफिस काम के बाद बाबूजी एक रियाल्टर के यहाँ प्रोमोटर के काम करते हैं। यानि की अपार्टमेंट बेचना... और उस पर उन्हें कमीशन मिलती है। उसी से उन्होंने यह सब खर्चा निकालते है" में उसे देखती बोली।
गीता और जोर से सुबक कर रोने लागि।
में बोली "मत रो.... अबसे तो उन्हें आदर करो.. प्यार करो, प्यार लो... that is life" मेरा बोलने का मतलब बस यही है.."
"थैंक्यू भाभी.. तुमने मेरी आंखे कोल दी;."
"मुहे मालूम है..तुम अच्छी लड़की हो... और इनोसेंट भी.." कह कर मैं उसे फिर से गोद में ली और उसके गाल को चूमि।
"मेरी भाभी भी अच्छी है... शी इस गोल्ड" गीता बोली और अब वह भी मेरे गाल को चूमि।
"गीता मैं तुम्हेँ प्यार करना चाहती हूँ..." उसके कमर के गिर्द हाथ डालके बोली।
"और क्या प्यार करोगी...?"
"बताती हूँ..." में कही और गीता को पीछे धकेल कर मैं उसके ऊपर चढ़ी और उसके होंठों को मेरे होंठों में ली।
"आअह्ह्ह..." गीता मेरे निचे चटपटा रही थी। में उसके होंठों को चूसी और बोली..."वॉव गीता.. तुम्हरे होंठ तो संतरे की फांक तरह juicy है..." कही और उस के होंठ फिर से चूसने लगी।
उसके गुलबी होंठों पर मेरी जीभ फिराते, गीता के मुहं में अंदर डालने की कोशिश कर रही थी। गीता कुछ देर बुत बनकर पड़ी रही, फिर वह भी सहयोग करने लगी। वह भी मेरे होंठों को चूम रहीथी और मेरे जीभ के लिए अपना मुहं खोल दी। मैं मेरे जीभ को गीता के मुहं के अंदर चरों ओर घुमा रही थी। चूमते चूसते मैंने उसकी एक चूची हाथ में लेकर जोर से दबायी।
"ssssssss...hhhhhh" गीता सीत्कार करि और पूछी "भाभी यह क्या कर रही हो..." पूछी।
"मेरी ननद को लव कर रही हूँ..." मैं कही और कपड़ों के ऊपर से ही मेरी योनि को उसके योनि पर दबा यी। ऊपर उसकी स्तन को दबायी।
"आआह्ह्ह्ह.. व्हाट टाइप ऑफ़ लव इस थिस...?" (What type of love is this?) वह बोलने को बोली लेकिन वह खुद मेरे से लिपटने लगी।
"दिस इस स्पेशल लव..." में बोली और उसके शर्ट के बटन खोल रही थी।
"shshshshshshshsh....naheeeeeeeeennn बटन मत खोलो..." कहती मेरे हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश करने लगी।
"ठहर... खोलने दे..."
"क्यों...?"
"अरि गीता ... देखने तो दे ..."
"देखना क्या है.. जो तुम्हरे पास है वही मेरे पास भी है..."
"फिर भी मुझे देखनी है... देखनी है की मेरी ननद की कैसी है..." कहती मैं उसके पूरे घुंडियां खोली और उसकी नंगी चूची देख कर दंग रह गयी। इतने सुंदर थे मेरे छोटी ननद के। एक दम गोल किसी बड़ी मोसम्बी की तरह, सेंटर में उसकी गोल रिंग्स लाइट ब्राउन कलर में.... और उस की निप्पल्स तो पिंक कलर में थे।
"आआह्ह्ह्ह... ममममम.... क्या मस्त है तेरे गीता...." में कही और उन पर दोनों हाथ फेरी। इतना चिकना जैसे मक्कन लेप किये हो.. और अंदर से बहुत ही घटीले थे।
"हहह.. भाभी यह क्या कर रही हो...?" वह तिल मिलाते कहि।
"अभी तो कही मैंने तुम्हे प्यार कर रही हूँ..." में बोली और अबकी बार उसकि एक चूची को चाटते दूसरे की घुंडी को पिंच करि।
"aaammmaaaa...maaaaaa....मेरी चूची..." वह चट पटाती बोली।
"क्या हुआ तेरी चूची को...." कही और उसके निप्पल को मेरे होंठों के बीच दबायी।
वह कुछ बोली नहीं... मेरे मुहं को अपने सीने पर दबायी। मैं ऊपर यह सब करते निचे उसकी जंघों के बीच मेरे जांघों से दबा रही थी। गीता ने अपनी जांघे खोल दी और मैं अब उसके जांघों के बीच जम गयी।
"गीता...."
"Vooonn"
"अच्छा लग रहा है...?"
"Voooomm" वह कही अपने दोनों हाथों को मेरे कमर के गिर्द लिपटकर मुझे अंदर की ओर दबाने लगी।
में उसकी चूची को छोड कर कुछ निचे को किसकी और उसके सपाट पेट को चाटने लगी। पूरा पेट को चाटते, चूमते मैं एक ओर उसकी मस्ती को दबाते और उसकी चूत पर मेरी चूत दबाने लगी। चाटते, चूमते मैं उसकी नाभी के पास आयी, उसमे अपनी टंग से पोक (poke) करने लगी।
नहीं भाभी ऐसा मत करो.. मुझे टिकल हो रही है..न.. न..प्लीज..."
"कहां टिकल हो रही रानी..." मैं अपना काम कंटिन्यू करते पूछी।
अब वह शरमाई... "छी ... मुझे नहीं मालूम.." वह लज्जा से लाल होती बोली...
"मुझे मालूम है तुझे टिकल कहाँ हो रही है...यहीं पर न..."मैं कही और गीता के बुर को अपने हाथ से जकड़ते बोली... "तेरी बुर में खुजली हो रही है.. है ना?"
"छी.... भाभी तुम कितनि गन्दी हो.. सब गन्दी बातें कर रही हो.." कहती गीता ने अपनी कमर उछाली।
"मजा तो गंदि बातें करने में और गंदे काम करने में ही है.. स्वीट हार्ट..." में कही और अपने काम में जुट गयी।
"भाभी...." वह बुलाई।
"क्या है ..गीता...?" मैं उसकी ओर देखती पूछी।
"क्या तुम अपनी बहन से ऐसे ही प्यार करती हो..?"
"हाँ..." मैं बोली... "मैं अपनी दोनों बहनोंसे ऐसे ही प्यार करती हूँ..." हम तीनों एक ही बिस्तर पर सोते थे और खूब मस्ती करते थे।
"How lucky you are..." गीता उदास स्वर में बोली।
"उदास मत हो..आजसे बल्कि अभिसे मैं तुम्हारी बहन भी हूँ और भाभी भी ..."
"थैंक्स.." वह मेरे से लिपट गयी।
"अच्छा एक बात बताओ.. तुंम्हारे कोई बॉय फ्रेंड है क्या...?" कही और उसकी एक बूब को मुहं में लेकर चूसी।
"ssssshhaaaa... वह एक मीठी सिसकी ली और बोली "एक था..."
"था... था क्या मतलब.. अब नहीं है...?"
"हाँ भाभी..."
"क्यों...? क्या हुआ...?"
मेरे साथ कुछ नहीं हुआ लेकिन.. में सोची की उस से सबक सीखना चाहिए... बस फ्रेंडशिप छोड़ दी..." वह उदास मन से बोली।
"क्यों...?"
"मेरी एक सहेली है... बहुत सुन्दर और आकर्षक... उसे एक लड़के ने पटाली.. वह उस से दोस्ती करने लगी... एक दिन साइंस (science) लैब में उस लड़के ने उस पर एसिड फेंकी।"
"अरे.. क्यों..." मैं चकित होकर पूछी।
"यह लड़का उसे फ़क (fuck) करना चाहता था... लड़की बोली.. शादी से पहले ऐस कुछ नहीं तो वह गुस्से में आगया और एसिड फ़ेंक दी।" उस घटना को याद करते गीता का शरीर झूर झरि ली। फिर बोली "लड़की लकी थी, उसे वहम हुआ था की कुछ अनिष्ट होने वाली है ... और वह झट पीछे को पलटी तो कुछ एसिड उसके कंधे पर गिरी और बाकि उसके लाब कोट (lab coat) पर गिरी।
"और लड़का.. उसका क्या हुआ...?"
"कॉलेज से निकाल दिए और उसे पुलिस ले गाई।"
मैं कुछ देर खामोश रही और पूछी "तुम्हरा बॉयफ्रेंड..?"
"उस घटना के बाद मुझे ढर सा लगा रहा था की कहीं मेरे साथ भी ऐसा नो हो.. समझी की बॉय फ्रेंड न होना ही बेटर है.. और मैं उसे दूर कर दी।"
हम दोनों के बीच कुछ देर ख़ामोशी रही.. फिर गीता मुझे बुलाई "भाभी...!"
"vooooonnn" में बोली।
"एक बात पूछूं...?"
"पूछना... क्या पूछने चाहती है..?" फिर भी वह खमोश रही तो मैंने फिर से बोली .....
"क्या बात है गीता.. कुछ असमंजस में हो..."
"सोच रही हूँ.. कहीं तुम बुरा न मानो..."
"ऐसी कुछ नहीं .... गीता.. अब हम फ्रेंड्स हैं .. मैं बुरा नहीं मानूंगी" में उसे आश्वासन दी।
"क्या तुम... तुम.. शादी से पहले..." वह रुक गयी। में उसकी बात को समझ गयी.. वह पूछना चाहती थी की मैं शादी से पहले चुद चुकी हूँ क्या..."
में कुछ देर साइलेंट रही और फिर धीरे से बोली... "हाँ गीता... मैं जब 17 वर्ष की थी तो मेरे शशांक भैय्या ने.. वह मेरे कजिन है.. बड़ी माँ का बेटा.."
"क्या.. तुम अपने कजिन ब्रदर से..." गीता रुकी।
"हाँ.. तब मैं पहली बार सोची की मेरा अपना भैया होते तो कितना अच्छा होता.."
मेरी बात सुकर गीता और सकते में आगयी... और बोली "क्या.. तुम अपनी सग्गे भय्यासे चुदवाती? क्या यह पाप नहीं है...?"
"देखो गीता.. यह मेरे अपने विचार है... पाप क्या है और पुण्य क्या है... मेरे हिसाब से तो तुम किसि का भला चाहो और भल करो तो वह पुण्य है और बुरा चाहो या बुरा करो तो पाप है। तुमसे किसी को दर्द न हो.. यह पुण्य है..." में रुकी!
फिर से बोलना शुरू करि... "अब रही स्वर्ग, नर्क की बात... यह सब कही सुनि बातें है... आज तक किसी ने देखा नहिं कि स्वर्ग कैसे होती है या नर्क ... अगर हम सुख शांति से रहे और लाइफ को एन्जॉय करे तो स्वर्ग है.. और इसके विपरीत नर्क। अब भैया से चुदाने की बात पर अति हूँ... एक प्यासी औरत जिसकी बुर चुदासी है उसे क्या चाहिये...?" मैं गीता को पूछी।
"पेनिस.." गीता बेहिचक बोली।
"पेनिस... यानि की लंड..क्या भाईयों के पास लंड नहीं होते ...?"
गीता मुझे अचम्भे से देख रही थी। देखो..भाइयों के पास लंड होते है, और ऐसे ही बहनों के पास बुर, चूत या कंट। बस एक ही बात कि ध्यान रखना है की कोई किसी को जबरदस्ती न करे... चुदाई दोनों की रजामंदी से हो.. बात ख़तम और आनंद ही आनंद" में बोली।
"ओह भाभी तुम.." गीता बोली।
"चलो अब बस करो.. बहुत हो गयी ज्ञान की बातें..." कहती मैं गीता की पजामा की नाडा खींचने वाली थी कि दरवजे की घंटी बजी। घण्टी की अवाज सून कर गीता गभरा गयी।
"गभराने वाली कोई बात नहीं है..! मैं खाना ऑनलाइन आर्डर करि थी... शायद डिलीवरी बॉय होगा... "जाओ जकर पार्सल लेलो..मुझे जोरों की पिशाब लगी है....मैं बाथरूम हो अति हूँ..." मैं बोली। गीता अपने शर्ट के घुंडीयां लगाती कमरे से बाहर गयी।
उसके पीछे, पीछे मैं भी बाहर की ओर चली और दवाजे की आड़ में ठहर कर गीता को देख रही थी। आने वला डिलीवरी बॉय नहीं है.. यह बात मुझे मालूम है। आनेवाली संगीता है, मेरी बड़ी ननद, गीता मेरी यहाँ है यह बात मैं संगीता को नहीं बताई वैसे ही सांगता की आने की बात मैं गीता को नहीं बताई। मैं उन दोनों की प्रतिक्रिया देखना चाहती थी उसी लिए में दरवाजे आड़ में ठहरकर बहार झांक रही थी।
दरवाजा खोलते ही एक दूसर को देखकर आचार्य चकित रह गए। "गीता... तुम यहाँ....?" संगीता की स्वर में आश्चर्य की पूट थी।
"क्यों संगीता दी... तुम अपनी भाभी के घर आसकती हो तो मैं क्यों नहीं..." गीता बोली।
गीता के स्म्भोधन सुन कर संगीता और हैरान होगयी। "गीता अभी तुमने मुझे क्या कहकर बुलायी...?" वह चकित होते पूछी।
"दीदी कहि..क्यों अच्छा नहीं लगा ...?"
"बहुत अच्छा लगा मेरी बहन... ऐसी बुलावे के लिए कितने दिनों से तरस रही थी। तुम तो मुझे हमेशा नाम लेकर ही सम्बोधन करती थी। फिर आज तुम्हारे में इतनी क्रन्तिकारी बदलाव.. कैसे और कब से..." संगीता गीता को गले लगाते पूछी।
"ममममम... तुम कह सकते हो.. आजसे ही... बल्कि अभी तीन घंटे पहले से..." वह भी अपनी बड़ी बहन को भींचते बोली और उसके गाल चूमि।
"हुम्म्म... तो साली ने तुम्हारा भी ब्रेन वाश (brain wash) कर ही दिया..."
"दी; 'भी' का मतलब क्या हुआ? क्या भाभी ने तुम्हरा भी ब्रेन वाश करि...?"
"हाँ साली जादूगरनी है... ब्रेन वाश करने में माहिर है।"
"दीदी शर्म करो.. वह हमारी भाभी है.. और तुम उन्हें साली कह रही हो..."गीता बोली।
"अरी बुद्दू .. वह मेरी भाभी है मानती हूँ.. लेकन वह मेरे से छोटी है.. उसिलिये में उसे नाम लेकर ही बुलाती हूँ और वह भी.. हम दोनों अच्छे सहेलियों जैसे रहते है..." संगीता बोल रही थी की मैं सामने आते बोली.. अबसे हम दोनों नहीं हम तीनों अच्छे सहेलियाँ है... बोलो मंजूर..."
दोनों एक साथ 'मंजूर' कह कर चिल्लाये। मैं संगीता के गले मिली और हम तीनों बैडरूम में आगये।
बेडरूम में आने के बाद संगीता पूछी "हेमा यह गीता तुम्हारी सेहेली कैसे बनी...?"
"सिर्फ सहेली नहीं.. बहुत अच्छी सहेलियां बनी... क्यों गीता...?"
"वो तो सही है..." गीता बोली।
"आवो.... तुम्हरे दीदी को दिखाओ की तुम कितनी अच्छी सहेली हो...?" कहती मैं अपने बाहें पैलाई। गीता बे हिचक मेरे बहो में आगयी, और मेरे गलोंको चूमने लगी। कुछ देर वह मेरे गलों को चूमने क बाद मैं अपनी टंग (tongue) उसे दिखाई। गीता मेरे टंग की को अपने होंठों में ली और चुभलाने लगी। गीता मेरे जीभ को चुभला रही थी और मैं शर्ट के ऊपर से ही उसकी एक बूब को पकड़ कर मसलने लगी।
"अच्छा तो तुम लोग मेरे आनेसे पहले मस्ती कर रहेथे.. ठहरो मुझे भि ज्वाइन होनी है.. मैं जरा सहूलियत के कपडे पहनूं..." कहती संगीता ने पहले अपना कमीज सर के ऊपर से निकल फेंकी और सलवार का नाडा खींछी... उसका सलवार उसके पैरों के पास. वह अब सिर्फ एक महीन सी ब्रा और पैंटी में थी।
"संगीता तुम वैसे ही सहूलियत से हो.. वैसे ही आजाओ..." मैं उसे बुलाई...
"तुम लोग कितने naughty हो..." संगीता बोली... तुम लोग पूरे कपड़ों में हो और मुझे वैसे ही आने को कह रहे हो..." बोलती वह मेरे पास आयी तो मैं उसे अपनी दूसरे जांघ पर बिठाई। अब मेरी दायीं जांघ पर गीता तो बायीं जांघ पर संगीता बैठे है। दोनों बहनें मिलकर मेरे दोनों गलों को चूम रहे थे तो में भी कभी इसको तो कभी उसको किस कर रही थी।