मेरी छोटी ननद गीता 01

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संगीता सिर्फ ब्रा में होने से उसकी उरोजों की उभार खूब दिख रही थी। मैं एक हाथ बढ़कर संगीता की चूची पकड़कर मींजी।

"सससस... हेमा..ओह .." कहते संगीता मेरे हाथ को अपने सीने पर दबा रही थी। इतने मे गीता भी अपना हाथ बढ़ाकर अपनी दीदी की दूसरी चूची को प्रेस करि।

"ओये गीता तू नहीं.. पहले तो अपनी दिखा तब जाकर मेरी देख.." संगीता बोली।

गीता कुछ बोली नहीं, ख़ामोशी से अपने शर्ट के बटन खोलने लगी। देखते ही देखते उसने सारी घुंडियां खोली और शर्ट उतर फेंकी। अपनी छोटी बहन के दुद्दू देखता ही संगीता बोली... "ओह हेमा यह देखो कितने अच्छे है गीता के... एक दम रस भरे संतरे की तरह..." कहतीं उन पर अपना हाथ फेरी और फिर बोली ... "How snooth and tempting it is" कही और एक निप्पल को पिंच करि।

"ह्ह्हह्हआआ... संजू दीदी... (गीता संगीता को संजू कहती है) यह क्या कर रही हो... ममम..." गीता बोली। उसकी आँखे आनंद से बंद हो रहे थे।

"क्या हुआ... गीता.. अच्छा नहीं लगा...?" अब संगीता,, गीता की दूसरी चूचुक को मसलते बोली। "चल अब नीचे का दिखा..." गीता की waist band पर हाथ रखती बोली। गीता मेरी गोद से निचे उतरी और नाडा खोलने लगी। तभी फिर से घंटी बजी। गीता अपना नाडा खोलना रोकी और शर्ट की ओर हाथ बढाई।

"डिलीवरी वाला होगा" मैं बोली "गीता तुम रुको.. में ही देखती हूँ..."कहते मैं बाहर निकली। डेलिवरी वला ही था। में पार्सल लेकर दरवाजा बंद करि। जब मैं अंदर आकर देखि तो गीता बिलकुल नंगी थी और अपने बहन की गोद में बैठ कर अपने होंठ संगीता की होंठो में दे रखी है।

दोनों एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे। संगीता के होंठ चूसते गीता ने अपनी दीदी की चूची जोरसे मसली।

"आआआह्ह्ह्ह... गीता... इतनी जोर से नहीं... दूध निकलते हैं..." संगीता, गीता के हाथ पकड़ कर कहि।

"ओह गॉड.... दीदी..मैं भूल गई कि तुम माँ हो... बच्चे को दूध पिलाती हो.... मुझे तुम्हारे दूध पीना है... इसकी स्वाद चखनी है..."

"क्यों मम्मी की दूध नहीं पीयी थी क्या...?" संगीता अपनी छोटी बहन की जांघों के बीच हाथ घुसाते पूछी।

"तब मैं छोटी बच्ची थी ... क्या पता कैसी स्वाद थी..." कहते वह अपनी दीदी के हाथों के लिए जाँघे खोल दी।

"hey.... लड़कियों... खाना आगया है .. चलो खाना खाले, फिर सब मिलके मस्ती करते हैं.." बोली.

'नहीं भाभी अभी भूख नहीं है.. पहले दीदी के दूध चखने है.." गीता बोल रही थी की संगीता भी.. हाँ हेमा.. मुझे भी भूख नहीं है..."

"ठीक है मैं भी तुम्हे ज्वाइन करती हूँ" कहते मैंने पार्सल साइड में रखी और उन दोनों बहनोंके पास पहुंची। मैंने संगीता के दूसरी बगल में लेट गयी और एक चूची मेरे मुहं में ली। गीता उस ओर से दूसरी चूची को मुहं में लेकर दूध पिने लगी। संगीता के दूध फुव्वारे की तरह हमारे मुहं में गिर रही थी।

कुछ देर दूध पिने के बाद गीता बोली..."दीदी कितना स्वादिष्ट और जायकेदार है तुम्हारे दूध..." कही।

तब तक मैं संगीता के दूध चूसते मेरे बाएं हाथ की बीच की ऊँगली जड़ तक संगीता के बुर में घसेड दी।

"ओये हेमा यह क्या कर रही है तू.." संगीता बोली।

मैं क्या कर रही थी.. गीता ने नहीं देखि थी .. गीता पूछी.. "क्या हुआ दी... भाभी क्या कर रही है...?"

"तूही देख क्या कर रही है तेरी भाभी..."

"मेरी भाभी.. तुम्हारी नहीं...?" गीता अब अपना एक हाथ सगीता के जांघों पर फेरती बोली "दी... कितने सॉफ्ट और स्मूथ है.. तुम्हारे thighs बिलकुल मक्कन के तरह..." कहति अपना काम कर रही थी।

पांच छह मिनिट तक हम एक दूसरे से ऐसे ही उलझे रहे। गीता एक बूब को चूस रही थी मैं दूसरे को चूसते उसकी चूत में ऊँगली से चोद रही थी।

"ममममम.. हेमा.. वैसे ही कर मेरी रानी...सससस... और अंदर तक पेल अपनी ऊँगली.." संगीता कह रही थी।

"नहीं... अब मैं नहीं करूंगी... अब तुम्हे तुम्हारी बहन चोदेगी ..." कहते मैं अपनी ऊँगली बाहर खींची। मेरा सारी ऊँगली संगीता के बुर के मदन रस चिपुड़ी थी। मैं उस ऊँगली को चाटने लगी।

"छी ....छी ... यह क्या कर रही हो भाभी... कितनि गन्दी.. हो... उस गलीज को चाट रही हो... छी.." गीता कही। तब तक सगीता बहुत जोश में आगयी..और कही... कोई तो मेरे बुर को चोदो आअह अम्मा..." वह अपनी कमर उछालने लगी।

"चल गीता.. अब तेरी बारी है.. चोद अपनी दी को.." मैं कही और उसके हाथ पकड़ कर संगीता के जांघों के बीच लगायी। गीता हीच किचाने लगी। यह देख संगीता बोली... "गीता डाल अपनी ऊँगली मेरे चूतमे.." कही और स्वयं गीता के हाथ पकड़ कर बुर पे रखी। गीता अपनी तर्जनी ऊँगली अंदर डाली... और फिर जल्दी से बहार खींचते बोली... "बापरे.. कितना गरम है दीदी का उफ़.. अंगारे की तरह..." कही।

"जब चूत में चुदास लगती है तो वैसे ही भट्टी की तरह रहती है... चल गीता डाल अपनी ऊँगली दी कि बूर में और उसकी तपती आग को शांत कर..." मैं बोली, फिर गीता की ऊँगली सांगिता के बुर की ओर खींची। गीता अभी भी असमंजस में मुझे देख रही थी। में अपना सर नवाकर शुरू होजाने को कही। गीता अब संगीता के बुर में ऊँगली से डालना लगी।

"आअह्ह्ह... गीता डाल अपनी उंगलि पूरा डालदे मेरी बुर में..." संगीता कहते अपनी कमर उछालने लगी। अब गीता को भी जोश आने लगी और वह अपनी ऊँगली से अपनी दीदी की चूत को चोदने लगी। "मममम.. गीता... गुड... वैसे ही... और अंदर डाल...चोद अपनी दी को...हेमा तू भी एक ऊँगली डालना.."

मैं भी अपनी बिच वाली उंगली उसके बुर में घुसेड़ी। "आआह्ह्ह्ह.. अब मजा आ रहा है.. चोदो..दोनों मिलकर ..aaammmmaaa..." संगीता बड बड़ा रही थी। मैं और गीता अब अपनी गती बढ़ाई है। एक हाथ से संगीता के चूची को टीपते, निप्पल लो पिंच करते संगीता के बुर में ऊँगली कर रही थी। मुझे देख कर अब गीता भी अपनी गति बढ़ाकर, मेरे जैस ही वह भी संगीता कि दूसरी चूची को प्रेस करते घुंडी को ट्विस्ट कर राहि थी।

"आअह्ह्ह...ममम... उफ़्फ़्फ़ो..ससस... अम्ममाआ.... मैं खलास हो रही हूँ.. हो गयी.. haaaaaa" कहते वह झड़ गयी। उसकी बुरसे कामरस टूटे बांध की तरह बहने लगी।

जैसे ही वह झड़ी में अपने मुहं उसके बहते बुर पर लगाई और सारा रस को चाटते मेरे गले के निचे उतारने लगी। यह देखकर गीता एक अजीब सा मुहं बनाकर "छी...छी... यह आप क्या कर रही है..छी.. कितने गंदे हो.. उस गलीज में मुहं लगायी..." कही। में उसकी बातों का अनसुनी कर बस संगीता को चाटते रही थी। पूरे पंच मिनिट बाद कहीं संगीता ठंडा पड़ी और उठ बैठी।

हम सब थके थे लेकिन हमारे चेहरे ख़ुशी से चमक रही थी।

"थैंक्स गीता एंड थैंक्स हेमा.. सच बहुत मजा आया तुम्हरे उँगलियों से चुदाने में" कही और हम दोनों को किस करि।

गीता कुछ बोल नहीं रही थी लेकिन उसकी आँखों में भी चमक थी। यह सब गीता के लिए नया है... फिर भी उसने हमारे साथ दे रही थी।

"अब....?" संगीता पूछी।

"अब गीता कि बारी...." मैं गीता को देखकर बोली।

"हाँ हेमा यह सही होगा.." बोली संगीता।

हमारे बातें सुनते ही गीता गभरा गयी और बोली..... "नहीं... प्लीज मेरे पास मत आना... यह गन्दी चीजों को चटाना चूमना मुझसे नहीं होगा... छी.. तुम लोग कितने गंदे हो..." कह रही थी। वह यह भूल गयी है वह अभी भी नंगी है।

"चल गीता.... अजा..." संगीता उसे नुलाई।

"नहीं दी... नहीं..." वह कह रही थी की संगीता ने उसे पकड़ कर जबरदस्त उसके पीठ के बल लिटाई और उसके ऊपर चढ़ गयी। "नहीं..न.. नो.. दी... प्लीज.." गीता हाथ पैर पटकने लगी और अपने जांघों को बंद करि।

"गीता तू ऐसे नहीं मानेगी.. हेमा इधर आना इसे पकड़ो तो सही...आज इसे हम मजा चखाएंगे..." मैं एक ओर थी तो संगीता गीता की दूसरी ओर दोनों उसके एक एक हाथ पकड़ कर उस बेड पर दबाते मैं एक चूची को अपने मुहं में ली तो संगीता उसकी दूसरी बूब को। हमारे पकड़ से गीता छुड़ा नहीं पायी और निस्तेज पड़ी रही। उसे क्या बोलना समझ में नहीं आ रही है।

"हेमा देखो तो गीता के चुचुक कैसे सख्त हो गए है... साली मजा तो ले रही है.. और नखरे कर रही है.."

उसे साली कहने से वह नाराज हो गयी.. और बोली.. जाओ.. मैं तुम लोगों से बात नहीं करूंगी.. दी... मैं तुम्हारी बहन हूँ और तुम मुझे साली कह रही है..." वह रूठते बोली।

"अरे मेरी रानी.. मेरी दुलरी बहन..." संगीता अब गीता की आँखों को चूमते बोली... "यह सब तो गेम है... और गेम में साली, छिनाल या चुड़क्कड़ बोलना लाजमी है.. तभी तो इस गेम में मजा अति है... चाहो तो तुम भी हमे ऐसे ही कह सकती हो" कही और अबकी बार वह गीता के चूचि को चाटने लगी..." जैसे ही संगीता के जीभ उसको चाटी "ससससस....हहहहह" गीता के मुहं से एक सिसकारी निकली।

"क्यों मजा या न..." बड़ी बहन छोटी बहन को चुटकी काटते पूछी।

गीता शर्म से लाल होगई और मन्द्रस्वर में बोली "हूँ....."

"तो शुरू करें..." अब वाह गीता के नाक पकड़ कर खींची। "जाओ... मुझे नहीं मालूम .." हल्की सी मुस्कराहट के साथ वह अपनी मुहं को दुसरी ओर पलटा ली।

फिर क्या थी मै और संगीता गीता पर टूट पड़े। गीता कि मुहं कोचूमते रहे। उसके सुन्दर आँखें, सतुवा नाक, मककन सा गाल... गुलाबी होंठ.. उसके शरीर में हर जगह हमारी होठों की निशान पड़ने लगे। गीता कुछ देर तो खामोश रही और फिर जैसे ही उसमे गर्मी बढ़ने लगी वह भी हमारे से कोआपरेट करने लगी। वह खुद हमें किस कर रही थी, हमारे गुब्बारों पर हाथ फेर रही थी, और हहहहह...ससस...मम्मा.." कहते सीत्कार कर रहीथी।

ऊपर उसे चूमते मैं अपना एक ऊँगली उसकी बुर की ओर लेगयी और उसकी फांकों को ऊँगली से trace करि..." "ममममम.. bhaaa..bh...iiiii..." वह चटपटाने लगी। मैं मेरी ऊँगली को हल्कासा अंदर दबायी...

"बोलो गीता.... लेकिन मुझे रोकि नहीं... तर्जनी ऊँगली का एक टकना उसके टाइट अनचुदी बुर में। उसकी बुर नम हो चुकी है।

"संगीता, इधर देख तेरी छोटी बहन की बुर पानी छोड़ रही है..."

"क्या सच में..." और गीता की दूसरी ओर से संगीता ने भी अपनी ऊँगली अपनी बहन की बुर पर चलायी। "आआह्ह्ह्हह्ह...मममममममम... यह क्या कर रही हो तुम दोनों..." वह कही लेकिन उसके कमर ऊपर को उछाली।

"गीता क़्या मस्त है.. तेरी. वैसे यहाँ के झांटे कब सफ करि...?" संगीता उसके चिकनी उबार पर हाथ फेरती पूछी। गीता शरमाते, लजाते बोली.. "कल ही निकली थी दी..."

"हेमा चल अब शुरू होजा.. निचे का तुम देखोगी या मैं दिखूँ" संगीता पूछी। हम क्या बातें कर रहे हैं गीता समझ नहीं पायी।

"यह क्या बातें कर रहे हो तुम लोग..." वह पूछी।

"तुम्हे प्यार करने की..." बोलते मैं अपना मुहं गीता के बुर पर लगाई। इस से वह समझ गयी की मैं उसे चाटने वाली हूँ... वह अपनी जाँघों को बंद करने के साथ साथ अपनी हथेलियों से भी अपनी कुंवारी बुर को ढकने की कोशिश की और बोली.. नहीं भाभी....प्लीज..वह गन्दी है.. मुहं मत लगाओ.. उधर..." कह रही थी।

"ठहर मेरी ननद रानी... इतनी प्यारी है.. यह... एकबार तो चूमने दे ..तुम मेरी प्यारी ननद हो.. हो की नहीं..." मैं उसकी मोटे फांकों को ओपन करती पूछी।

"voooonnnn... लेकिन भाभी.. वह गन्दी चीज है..."

"मुझे तो यह बादाम हलवा लग रही है.." कही और अपना मुहँ वहां लगाई। उधर संगीता ने भी अपनी चमकृत दिखाने लगी। वह गीता की होंठों को चूसते अपनी जीभ गीता के मुहं में देदी। वह भी अपनि दीदी के लिए अपना मुहं खोल स्वागत करने लगी और "आह...हमहम...ससस" कहते सिसकारीयां लेने लगी।

इधर निचे मै गीता की दोनो फांकों को चौड़ा कर अपनी टंग निचे से ऊपर को और चलने लगी...

जैसे मेरी जीभ वहां टच करि... गीता एक फुट ऊँची उछली। "hhhhhh......bha....bheeeee...." उसके मुहं से निकली।

"क्या हुआ.. अच्छा नहीं लगा..?" में उसे आँख मारते पूछी।

गीता अपने मुहं से कुछ बोली नहीं लेकिन मेरे सर पर अपने दोनों हाथ रख कर मेरे मुहं को उसके बुर पर दबई। फिर क्या... हमारे... भाभी और दो दो ननदों का गेम शुरी हुआ। हम तीनों एक दूसरे से गुत्तम गुत्ता होते रहे। इतने में संगीता अपनी जगह से उठ कर अपनी रिसते चूत गीता के मुहं पर रख कर बैठ गयी।

गीता के नथनों में एक गाढ़ा गंध समागयी... उस मस्ति भरे गंध को सूँघते गीता ने अपनी जीभ अपनी बहन संगीता के बुर की फांकों के बीच चलने लगी।

"आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह..... गीता मेरी बहन.. चाट... मेरी बुर को.. अंदर तक दाल तुम्हरी जीभ को" कहते अपनी कमर गीता के मुहं पर दबाने लगी।

गीत ने भी जोश में आकर अपनी बहन की बुर को चाट रही थी और मेरे से अपनी बुर चटवा रही थी।

सरा कमरा हमरी आआअह्ह्ह्ह... होहोहोहोम्मम्मम्म...जैसी सिसकरों से भरी थी। यह हमरे खेल पूरा आधा घंटे के ऊपर चली.. और हम सब ने दो दो बार झड़ चुके हे। हम तीनों अब निढाल होकर एक दूसरे चिपके पड़े रहे।

कोई 40 मिनिट बाद हम सब उठे तीनों मिलकर बथरूम में घुसे... अंदर एक दूसरे को छेड़ते, एक दूसरे पर पनि छिड़कते... पानी नाहये और फिर बाहर आकर वैसे नंगे ही खाना खाये। कुछ देर सुस्ताने के बाद हम फिर अपनी मस्ती भरे गेम में शामिल होगये। उस रात मेरे पति और ससुरजी, सासुमां नहीं आ रहे है। यह बात मेरे पति ने फ़ोन करके बोले थे। उस रात संगीता और गीता मेरे यहाँ ही रहे और उस सारी रात हम फिर से....

अब गीता मेरी और संगीता कि अच्छी सहेली बन गयी।

तो दोस्तों यह थी मेरी छोटी ननद गीता की कहानी... इसका किस्सा एक और है... वह फिर कभी ... अब मैं थक चुकी हूँ ... मेरे पति ने मुझे रौंद डाला... फिर मिलते हैं.... तब तक के लिए अलविदा....

"mmmmmmm....mmmmm..." my love to you.......

आपकी चहेती हेमा (हेमा नंदिनी)

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