उषा की कहानी

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उषा की उफनती जवानी के किस्से।
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उषा अपने मां बाप की एकलौती लड़की है, दिल्ली में रहती है। उषा के पिताजी जीवन शर्मा दिल्ली में ही एल आई सी में ऑफ़िसर थे और चार साल पहले स्वर्गवासी हो गये थे.

उषा की मां श्रीमती रजनी हाऊस वाईफ़ है। उषा के और दो भाई भी है और उनकी शादी भी हो गई है।

उषा ने पिछले साल ही एम ए इंगलिश में पास किया है। उषा का रंग बहुत ही गोरा है और उसका फ़िगर 36-25-38 है। वो जब चलती है तो उसके कमार एक अजीब सी बल खाती है और चलते समय उसके चूतड़ बहुत हिलते हैं।

उसके हिलते हुए चूतड़ को देख कर पड़ोस के कई नौजवान, और बूढे आदमियों का दिल मचल जाता है और उनके लंड खड़े हो जाते है। पड़ोस के कई लड़कों ने काफ़ी कोशिश की लेकिन उषा उनके हाथ नहीं आई।

उषा अपनी पढ़ाई और युनिवरसिटी के संगी साथी में ही व्यस्त रहती थी।

थोड़े दिनो के बाद उषा की शादी उसी शहर के रहने वाले एक पुलिस ऑफ़िसर से तय हो गई।

उस लड़के के नाम रमेश था और उसके पिताजी का नाम गोविन्द था और सब उनको गोविन्दजी कहकर बुलाते थे। गोविन्द जी कि पत्नी का नाम स्नेहलता है और वो एक लेखिका है। अब तब गिरिजा जी ने करीब 8-10 किताबे लिख चुकी है।

गोविन्द जी अपनी जवानी के दिनो में और अपनी शादी के बाद भी हर औरत को अपनी नज़र से चोदते थे और जब कभी मौका मिलता था तो उनको अपनी लौड़े से भी चोदते थे।

गोविन्द जी बहुत चोदू है और अब तक वो अपने घर में कई लड़कियों और औरतों को चोद चुके थे और अब जब कि उनकी काफ़ी उमर हो गई थी मौका पाते ही कोई ना कोई औरत को पटा कर अपना बिस्तर गर्म कराते थे।

गोविंदजी का लंड की लम्बाई करीब साढे आठ इन्च लम्बा और मोटाई करीब साढे तीन इन्च है और वो जब कोई औरत की चूत में अपना लंड डालते थे तो 25-30 मिनट के पहले वो झड़ते नहीं है। इसलिये जो औरत उनसे अपनी चूत चुदवा लेती है फिर दोबारा मौका पाते ही उनका लंड अपनी चूत में पिलवा लेती है।

आज उषा का सुहागरात है। परसों ही उसकी शादी रमेश के साथ हुई थी। उषा इस समय अपने कमरे में सज धज कर बैठी अपनी पति का इन्तज़ार कर रही है। उसकी पति कैसे उसके साथ पेश आयेगा, ये सोच सोच कर उषा का दिल जोर जोर से धड़क रहा है। सुहागरात में क्या क्या होता है, यह उसको उसकी भाभी और सहेलियों ने सब बता दिया था।

उषा को मालूम है कि आज रात को उसके पति कमरे में आ कर उसको चूमेगा, उसकी चुची को दबायेगा, मसलेगा और फिर उसके कपड़ों को उतार कर उसको नंगी करेगा। फिर खुद अपने कपड़े उतर कर नंगा हो जायेगा। इसके बाद, उसका पति अपने खड़े लंड से उसकी चूत की चटनी बनते हुए उसको चोदेगा।

वैसे तो उषा को चुदवाने का तजुरबा शादी के पहले से ही है। उषा अपने कॉलेज के दिनो में अपने क्लास के कई लड़कों का लंड अपने चूत में उतरवा चुकी है। एक लड़के ने तो उषा को उसकी सहेली के घर ले जा कर सहेली के सामने ही चोदा था और फिर सहेली कि गांड भी मारी थी।

एक बार तो उषा अपने एक सहेली के घर पर शादी में गई हुई थी। वहाँ उस सहेली के भाई, सुरेश, ने उसको अकेले में छेड़ दिया था और उषा की चुची दबा दिया। उषा ने तो सिर्फ़ मुसकुरा दिया था। फिर सहेली के भाई ने आगे बढ कर उषा को पकड़ लिया और चूम लिया। तब उषा ने भी बढ कर सहेली के भाई को चूम लिया।

तब सुरेश ने उषा के ब्लाऊज के अन्दर हाथ डाल उसकी चुची मसलने लगा और उषा भी गर्म हो कर अपनी चुची मसलवाने लगी और एक हाथ से उसके पेण्ट के ऊपर से उसके लंड पर रख दिया। तब सुरेश ने उषा को पकड़ कर छत पर ले गया। छत पर कोई नहीं था, क्योंकि सारे घर के लोग नीचे शादी में व्यस्त थे।

छत पर जा कर सुरेश ने उषा को छत कि दीवार के सहारे खड़े कर दिया और उषा से लिपट गया। सुरेश एक हाथ से उषा कि चुची दबा रहा था और दूसरा हाथ साड़ी के अन्दर डाल कर उसकी बुर को सहला रहा था। थोड़ी देर में ही उषा गर्मा गई और उसके मुंह से तरह तरह कि आवाज निकलने लगी।

फिर जब सुरेश ने उषा कि साड़ी उतरना चाहा तो उषा ने मना कर दिया और बोली- नहीं सुरेश हमको एकदम से नंगी मत करो। तुम मेरी साड़ी उठा कर, पीछे से अपना गधे जैसा लंड मेरी चूत में पेल कर मुझे चोद दो।'

लेकिन सुरेश ना माना और उसने उषा को पूरी तरह नंगी करके उसको छत के मुंडेर से खड़े करके उसके पीछे जा कर अपना लंड उसकी चूत में पेल कर उसको खूब रगड़ रगड़ कर चोदा। चोदते समय सुरेश अपने हाथो से उषा कि चुची को भी मसल रहा था। उषा अपनी चूत कि चुदाई का बहुत मजा ले रही थी और सुरेश के हर धक्के के साथ साथ अपनी कमार हिला हिला कर सुरेश का लंड अपनी चूत में खा रही थी।

थोड़ी देर के बाद सुरेश उषा कि चूत चोदते चोदते झड़ गया। सुरेश के झड़ते ही उषा ने अपनी चूत से सुरेश का लंड निकल दिया और खुद सुरेश के सामने बैठ कर उसका लंड अपने मुंह में ले कर चाट चाट कर साफ़ कर दिया। थोड़ी देर के बाद उषा और सुरेश दोनों छत से नीचे आ गये।

आज उषा अपनी सुहागरात कि सेज पर अपनी कई बार की चुदी हुई चूत लेकर अपने पति के लिये बैठी थी। उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था क्योंकि उषा को डर था कि कहीं उसके पति को यह ना पता चल जाये कि उषा पहले ही चुदाई का आनन्द ले चुकी है। थोड़ी देर के बाद कमरे का दरवाजा खुला। उषा ने अपनी आंख तिरछी करके देखा कि उसके ससुरजी, गोविन्द जी, कमरे में आये हुए है। उषा का माथा ठनका, कि सुहागरात के दिन ससुरजी को क्या काम आ गया है।

खैर उषा चुपचप अपने आप को सिकोड़े हुये बैठी रही। थोड़ी देर के बाद गोविन्द जी सुहाग की सेज के पास आये और उषा के तरफ़ देख कर बोला- बेटी मैं जानता हूं कि तुम अपने पति के लिये इनतजार कर रही हो। आज के सब लड़के अपने पति का इन्तजार कराती है। इस दिन के लिये सब लड़कियों का बहुत दिनो से इन्तजार रहता है। लेकिन तुम्हारा पति, रमेश, आज तुमसे सुहागरात मनाने नहीं आ पायेगा। अभी अभी थाने से फोन आया था और वह अपनी यूनिफ़ार्म पहन कर थाने चला गया। जाते जाते, रमेश यह कह गया कि शहर के कई भाग में डकैती पड़ी है और वोह उसकी छानबीन करने जा रहा है। लेकिन बेटी तू बिल्कुल चिन्ता मत करना। मैं तेरी सुहागरात खाली नहीं जाने दूंगा।'

उषा अपने ससुरजी की बात सुन तो लिया पर अपने ससुर कि बात उसके दिमाग में नहीं घुसी, और उषा अपना चेहरा उठा कर अपने ससुर को देखाने लगी। गोविन्द जी ने आगे बढ कर उषा को पलंग पर से उठा लिया और जमीन पर खड़े कर दिया।

तब गोविन्द जी मुसकुरा कर उषा से बोले- घबराना नहीं, मैं तुम्हारा सुहागरात बेकार जाने नहीं दूंगा, कोई बात नहीं, रमेश नहीं तो क्या हुआ मैं तो हूं।'

इतना कह कर गोविन्द जी आगे बढ कर उषा को अपने बाहों में भर कर उसकी होठों पर चूम्मा दे दिया।

जैसे ही गोविन्द जी ने उषा के होठों पर चूम्मा दिया, उषा चौंक गई और अपने ससुरजी से बोली- यह आप क्या कर रहे है। मैं तो आपके बेटे कि पत्नी हूं और उस लिहाज से मैं आप कि बेटी लगती हूं और आप मुझको चूम रहे है?'

गोविन्द जी ने तब उषा से कह- पागल लड़की, अरे मैं तो तुम्हारी सुहागरात बेकार ना जाये इसालीये तुमको चूमा। अरे लड़कियाँ जब शादी के पहले जब शिव लिंग पर पानी चढाते है तब वो क्या मांगती है? वो मांगती है कि शादी के बाद उसका पति उसको सुहागरात में खूब रगड़े। समझी?

उषा ने अपना चेहरा नीचे करके पूछा- मैं तो सब समझ गई, लेकिन सुहागरात और रगड़ने वाली बात नहीं समझी।' गोविन्द जी मुसकुरा कर बोले- अरे बेटी इसमे ना समझने कि क्या बात है? तू क्या नहीं जानती कि सुहागरात में पति और पत्नी क्या क्या करते है? क्या तुझे यह नहीं मालूम कि सुहागरात में पति अपने पत्नी को कैसे रगड़ता है?'

उषा अपनी सिर को नीचे रखती हुइ बोली- हाँ, मालूम तो है कि पहली रात को पति और पत्नी क्या क्या करते और करवाते हैं। लेकिन, आप ऐसा क्यों कह रहे है?

तब गोविन्द जी ने आगे बढ कर उषा को अपनी बांहो में भर लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोले- अरे बहू, तेरा सुहागरात खाली ना जाये, इसलीये मैं तेरे साथ वो सब काम करुंगा जो एक आदमी और औरत सुहागरात में कराते हैं।

उषा अपनी ससुर के मुंह से उनकी बात सुन कर शर्मा गई और अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया और अपने ससुर से बोली- यह बात आप कह रहे है। मैं आपके बेटे कि पत्नी हूं और इस नाते से मैं अपकी बेटी समान हूं और मुझसे आप ये क्या कह रहे है?

तब गोविन्द जी अपने हाथो से उषा कि चुची को पकड़ कर दबाते हुए बोले- हाँ, मैं जानता हूं कि तू मेरी बेटी के समान है। लेकिन मैं तुझे अपने सुहागरात में तड़पते नहीं देख सकता और इसलिये मैं तेरे पास आया हूं।

तब उषा अपने चेहेरे से अपना हाथ हटा कर बोली- ठीक है बाबूजी, आप मेरे से उमर में बड़े है। आप जो ही कह रहे है, ठीक ही कह रहे है। लेकिन घर में आप और मेरे सिवा और भी तो लोग है।

उषा का इशारा अपने सासू मां के लिये था।

तब गोविन्द जी ने उषा कि चुची को अपने हाथो से ब्लाऊज के उपर से मलते हुए कह- उषा तुम चिंता मत करो। तुम्हारी सासू मां को सोने से पहले दूध पीने कि आदत है, और आज मैंने उनको दूध में दो नींद की गोली मिला कर उनको पिला दिया है। अब रात भर वो आरम से सोती रहेंगी।

तब उषा ने अपने हाथो से अपने ससुरजी की कमर पकड़ते हुए बोली- अब आप जो भी करना है कीजिए, मैं मना नहीं करुंगी।

तब गोविन्द जी उषा को अपने बाहों में भींच लिया और उसके मुंह को बेतहाशा चूमने लगे और अपने दोनों हाथों से उसकी चुची को पकड़ कर दबाने लगे। उषा भी चुप नहीं थी। वो अपने हाथो से अपने ससुर का लंड उनके कपड़े के ऊपर से पकड़ कर मुठ मार रही थी।

गोविन्द जी अब रुकने के मूड में नहीं थे, उन्होंने उषा को अपने से अलग किया और उसकी साड़ी का पल्लू को कंधे से नीचे गिरा दिया। पल्लू को नीचे गिराते ही उषा की दो बड़ी बड़ी चुची उसके ब्लाऊज के ऊपर से गोल गोल दिखाने लगी। उन चुची को देखते ही गोविन्द जी उन पर टूट पड़े और अपना मुंह उस पर रगड़ने लगे।

उषा कि मुंह से ओह! ओह! अह! क्या कर रहे हो की आवाजे आने लगी।

थोड़ी देर के बाद गोविन्द जी ने उषा कि साड़ी उतार दिया और तब उषा अपने पेटीकोट पहने ही दौड़ कर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। लेकिन जब उषा कमरे कि लाईट बुझाना चाहा तो गोविन्द जी ने मना कर दिया और बोले- नहीं बत्ती मत बंद करो। पहले दिन रोशनी में तुम्हारी चूत चोदने में बहुत मजा आयेगा।'

उषा शर्मा कर बोली- ठीक है मैं बत्ती बंद नहीं करती, लेकिन आप भी मुझको बिल्कुल नंगी मत कीजियेगा।'

'अरे जब थोड़ी देर के बाद तुम मेरा लंड अपनी चूत में पिलवाओगी तब नंगी होने में शरम कैसी। चलो इधर मेरे पास आओ, मैं अभी तुमको नंगी कर देता हूं।' उषा चुपचाप अपना सर नीचे किये अपने ससुर के पास चली आई।

जैसे ही उषा नज़दीक आई, गोविन्द जी ने उसको पकड़ लिया और उसके ब्लाऊज के बटन खोलने लगे। बटन खुलते ही उषा कि बड़ी बड़ी गोल गोल चुची उसके ब्रा के उपर से दिखाने लगी। गोविन्द जी अब अपना हाथ उषा के पीछे ले जकर उषा कि ब्रा का हुक भी खोल दिया। हुक खुलते ही उषा कि चुची बाहर गोविन्द जी के मुंह के सामने झूलने लगी। गोविन्द जी ने तुरंत उन चुची को अपने मुंह में भर लिया और उनको चूसने लगे। उषा कि चुची को चूसते चूसते वो उषा कि पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और पेटीकोट उषा के नितम्बों से सरकते हुए उषा के पैर के पास जा गिरा। अब उषा अपने ससुर के समने सिर्फ़ अपने पेण्टी पहने खड़ी थी। गोविन्द जी ने झट से उषा कि पेण्टी भी उतर दी और उषा बिल्कुल नंगी हो गई। नंगी होते ही उषा ने अपनी चूत अपने हाथो से छुपा लिया और शरमा कर अपने ससुर को कनखियों से देखाने लगी। गोविन्द जी नंगी उषा के सामने जमीन पर बैठ गये और उषा कि चूत पर अपना मुंह लगा दिया। पहले गोविन्द जी अपने बहू कि चूत को खूब सूंघा। उषा कि चूत से निकलती सौंधी सौंधी खुशबु गोविन्द जी के नाक में भर गई। वो बड़े चाव से उषा कि चूत को सूंघने लगे। थोड़ी देर के बाद उन्होंने अपना जीव निकल कर उषा कि चूत को चाटना शुरु कर दिया। जैसे ही उनका जीव उषा कि चूत में घुसा, तो उषा जो कि पलंग के सहारे खड़ी थी, पलंग पर अपनी चूतड़ टिका दिया और अपने पैर फ़ैला कर अपनी चूत अपनी ससुर से चटवाने लगी। थोड़ी देर तक उषा कि चूत चाटने के बाद गोविन्द जी अपना जीव उषा कि चूत के अन्दर डाल दिया और अपनी जीव को घुमा घुमा कर चूत को चूसने लगे। अपनी चूत चाटने से उषा बहुत गर्म हो गई और उसने अपने हाथो से अपनी ससुर का सिर पकड़ कर अपनी चूत में दबाने लगी और उसके मुंह से सी सी की आवाजे निकलने लगी।

अब गोविन्द जी उठ कर उषा को पलंग पर पीठ के बल लेटा दिया। जैसे ही उषा पलंग पर लेटी, गोविन्द जी झपट कर उषा पर चढ कर बैठ गये और अपने दोनों हाथो से उषा कि चुची को पकड़ कर मसलने लगे। गोविन्द जी अपने हाथों से उषा कि चुची को मसाल रहे थे और मुंह से बोल रहे थे- मुझे मालूम था कि तेरी चुची इतनी मस्त होगी। मैं जब पहली बार तुझको देखाने गया था तो मेरा नज़र तेरी चुची पर ही थी और मैंने उसी दिन सोच लिया था इन चुची पर मैं एक ना एक दिन जरूर अपना हाथ रखूंगा और इनको रगड़ रगड़ कर दबाऊँगा। 'हाय! अह! ओह! यह आप क्या कह रहे है? एक बाप होकर अपने लड़के के लिये लड़की देखते वक्त आप उसकी सिरफ़ चुची को घूर रहे थे। छीः कितने गन्दे है आप' उषा मचलती हुई बोली। तब गोविन्द जी उषा को चूमते हुए बोले- अरे मैं तो गन्दा हूं ही, लेकिन तू क्या कम गन्दी है? अपने ससुर के सामने बिल्कुल नंगी पड़ी हुई है और अपनी चुची को ससुर से मसलवा रही है? अब बाता कौन ज्यादा गन्दा है, मैं या तू?' फिर गोविन्द जी ने उषा से पूछा- अच्छा यह बाता कि चुची मसलने से तेरा क्या हाल हो रहा है?' उषा अपने ससुर से लिपट कर बोली- 'ऊऊह्हह्हह और जोर से हाँ, ससुरजी और जोर से दबाओ बड़ा मजा आ रहा है मुझे, अपका हाथ औरतों की चुची से खेलने में बहुत ही माहीर है। आपको पता है कि औरतों की चुची कैसे दबाया जाता है। और जोर से दबाईये, मुझे बहुत मजा आ रहा है।

फिर उषा अपने ससुर को अपने हाथों से बांधते हुए बोली- अब बहुत हो गया है चुची से खेलना। आपको इसके आगे जो भी करने वाले हैन जल्दी कीजिये, कहीं रमेश ना आ जाये और मेरी भी चूत में खुजली हो रही है।' 'अभी लो, मैं अभी तुझको अपने इस मोटे लंड से चोदता हूं। आज तुझको मैं ऐसा चोदुंगा कि तु जिंदगी भर याद रखेगी' इतना कह कर गोविन्द जी उठकर उषा के पैरों के बीच उकड़ू हो कर बैठ गये।

ससुर जी को अपने ऊपर से उठते ही उषा ने अपनी दोनों टांगों को फ़ैला कर ऊपर उठा लिया और उनको घुटने से मोड़ कर अपना घुटना अपने चुची पर लगा लिया। इसासे उषा कि चूत पूरी तरह से खुल कर ऊपर आ गई और अपने ससुर के लंड अपनी चूत को खिलाने के लिये तैयार हो गई। गोविन्द जी भी उठ कर अपना धोiति उतार, चड्डी, कुरता और बनियान उतार कर नंगे हो गये और फिर से उषा के खुले हुए पैरो के बीच में आकर बैठ गये। तब उषा उठ कर अपने ससुर का तनतनाया हुअ लंड अपने नाज़ुक हाथों से पकड़ लिया और बोली- ऊओह्हह्हह ससुरजी कितना मोटा और सख्त है अपका यह।' गोविन्द जी तब उषा के कान से अपना मुंह लगा कर बोले- मेरा क्या? बोल ना उषा, बोल' गोविन्द जी अपने हाथों से उषा कि गदराई हुई चुची को अपने दोनों हाथों से मसाल रहे थी और उषा अपने ससुर का लंड पकड़ कर मुट्ठी में बांधते हुए बोली- आआअह्ह ऊओफ़्फ़फ़ ऊईईइम्म म्ममाआ ऊऊह्हह्ह ऊऊउह्ह! आपका यह पेनिस स्सास्सह्ह ऊऊम्माआह।' गोविन्द जी फिर से उषा के कान पर धीरे से बोले- उषा हिन्दी में बोलो ना इसका नाम प्लीज'। उषा ससुर के लंड को अपने हाथों में भर कर अपनी नज़र नीची कर के अपने ससुर से बोली- मैं नहीं जानती, आप ही बोलीए ना, हिन्दी में इसको क्या कहते हैं।' गोविन्द जी ने हंस कर उषा कि चुची को चूसते हुए बोले- अरे ससुर के सामने नंगी बैठी है और यह नहीं जानती कि अपने हाथ में क्या पकड़ रखी है? बोल बेटी बोल इसको हिन्दी में क्या कहते और इसासे अभी हम तेरे साथ क्या करेंगे।'

तब उषा ने शर्मा कर अपने ससुर के नगी छती में मुंह छुपाते हुए बोली- ससुर जी मैं अपने हाथों से आपका खड़ा हुआ मोटा लंड पकड़ रखा है, और थोड़ी देर के बाद आप इस लंड को मेरी चूत के अन्दर डाल कर मेरी चुदाई करेंगे। बस अब तो खुश है न आप। अब मैं बिल्कुल बेशरम होकर आपसे बात करुंगी।

इतना सुन कर गोविन्द जी ने तब उषा को फिर से पलंग पर पीठ के बल लेटा दिया और अपने बहू की टांगो को अपने हाथों से खोल कर खुद उन खुली टांगो के बीच बैठ गये। बैठने के बाद उन्होंने झुक कर उषा कि चूत पर दो तीन चूम्मा दिया और फिर अपना लंड अपने हाथों से पकड़ कर अपनी बहू कि चूत के दरवाजे पर रख दिया।

चूत पर लंड रखते ही उषा अपनी कमार उठा उठा कर अपनी ससुर के लंड को अपनी चूत में लेने की कोशिश करने लगी। उषा कि बेताबी देख कर गोविन्द जी अपने बहू से बोले- रुक छिनाल रुक, चूत के सामने लंड आते ही अपनी कमार उचका रही है। मैं अभी तेरे चूत कि खुजली दूर करता हूं।

उषा तब अपने ससुर के छाती पर हाथ रख कर उनकी निप्पले के अपने अंगुलियों से मसलते हुए बोली- ऊऊह्हह ससुरजी बहुत हो गया है। अब बार्दाश्त नहीं हो रहा है आओ ना ऊऊओह्हह प्लीज ससुरजी, आओ ना, आओ और जल्दी से मुझको चोदो। अब देर मत करो अब मुझे चोदो ना और कितनी देर करेंगे ससुरजी। ससुर जी जल्दी से अपना यह मोटा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दीजिये। मैं अपनी चूत कि खुजली से पागल हुए जा रही हूं। जल्दी से मुझे अपने लंड से चोदिये। अह! ओह! क्या मस्त लंड है आपका।

गोविन्द जी अपना लंड अपने बहू कि चूत में ठेलते हुए बोले- वाह रे मेरी छिनाल बहू, तू तो बड़ी चुद्दकड़ है। अपने मुंह से ही अपने ससुर के लंड की तारीफ़ कर रही है और अपनी चूत को मेरा लंड खिलाने के लिये अपनी कमार उचका रही है। देख मैं आज रात को तेरे चूत कि क्या हालत बनाता हूं। साली तुझको चोद चोद कर तेरी चूत को भोसड़ा बना दूंगा!

और उन्होंने एक ही झटके के साथ अपना लंड उषा कि चूत में डाल दिया।

चूत में अपने ससुर का लंड घुसते ही उषा कि मुंह से एक हलकी सी चीख निकल गई और उसने अपने हाथों से अपने ससुर को पकड़ उनका सर अपनी चुची से लगा दिया और बोलने लगी- वाह! वह ससुर जी क्या मस्त लंड है आपका। मेरी तो चूत पूरी तरह से भर गई। अब जोर जोर से धक्का मार कर मेरी चूत कि खुजली मिटा दो। चूत में बहुत खुजली हो रही है।'

'अभी लो मेरे चिनल चुद्दकड़ बहू, अभी मैं तेरी चूत कि सारी कि सारी खुजली अपने लंड के धक्के के साथ मिटाता हूं' गोविन्द जी कमार हिला कर झटके के साथ धक्का मारते हुए बोले।

उषा भी अपने ससुर के धक्के के साथ अपनी कमर उछाल उछाल कर अपनी चूत में अपने ससुर का लंड लेते बोली- ओह! अह! अह! ससुरजी मजा आ गया। मुझे तो तारे नज़र आ रहे हैं। आपको वाकई में औरत कि चूत चोदने कि कला आती है। चोदिए चोदिए अपने बहू कि मस्त चूत में अपना लंड डाल कर खूब चोदिए। बहुत मजा मिल रहा है। अब मैं तो आपसे रोज़ अपनी चूत चुदवाऊँगी। बोलीये चोदेंगे ना मेरी चूत?

गोविन्द जी अपनी बहू की बात सुन कर मुसकुरा दिये और अपना लंड उसकी चूत के अन्दर बाहर करना जारी रखा। उषा अपनी ससुर के लंड से अपनी चूत चुदवा कर बेहाल हो रही थी और बड़बड़ा रही थी- आआह्हह्हह ससुरजीईए जोरर सीई। हन्नन्न सासयरजीए जूर्रर्रर जूर्रर्र से धक्कक्काअ लगीईई, औरर जोर्रर सीई चोदिईईए अपनी बहू की चूत्त को। मुझीई बहुत्तत्त अस्सह्ह्हाअ लाअग्ग रह्हह्हाअ हैईइ, ऊऊओह्ह्ह और जोर से चोदो मुझे आआहह्ह सौऊउर्रर्रजीए और जोर से करो आआह्हह और अन्दर जोर से। ऊऊओह्हह्ह दीआर्रर ऊऊओह्हह ऊऊफ़्फ़ आआह्ह आआह्हह ऊउईई आअह्हहह ऊम्मम्माआह्ह्ह ऊऊह्ह।'

थोड़ी देर तक जोर जोर के धक्को से अपने बहू की चूत चोदने के बाद गोविन्द जी ने अपना धक्को की रफ़्तार धीमी कर दिया और उषा की चुची को फिर से अपने हाथों में पकड़ कर उषा से पूछा- बहू कैसा लग रहा है अपने ससुर का लंड अपनी चूत में पिलवा कर?

तब उषा अपनी कमर उठा उठा कर चूत में लंड की चोट लेती हुइ बोली- ससुरजी अपसे चूत चुदवा कर मैं और मेरी चूत दोनों का हाल ही बेहाल हो गया है। आप चूत चोदने में बहुत एक्सपर्ट है बड़ा मजा आ रहा है मुझे ससुरजी, ऊओह्हह्हह ससुरजी आप बहुत अच्छा चोदते है आआह्हह ऊऊह्हह। ऊऊओफ़्फ़ ससुरजी आप बहुत ही एक्सपर्ट है और आपको औरतों कि चूत चोद कर औरतों को सुख देना बहुत अच्छी तरह से आता है। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है यूं ही हाँ, ससुर जी यूं ही चोदो मुझे आप बहुत अच्छे हो बस यू ही चुदाई करो मेरी ऊओह्हह्ह खूब चोदो मुझे।

गोविन्द जी भी उषा की बातों को सुन कर बोले- ले रण्डी, छिनाल ले अपने चूत में अपने ससुर का लंड का ठोक कर ले। आज देखते है कि तू कितनी बड़ी छिनाल चुद्दकड़ है। आज मैं तेरी चूत को अपने हलवी लंड से चोद चोद कर भोसड़ा बना दूंगा। ले मेरी चुदक्कड़ बहू ले मेरा लंड अपनी चूत में खा।

गोविंद जी इतना कह कर फिर से उषा कि चूत में अपना लंड जोर जोर से पेलने लगे और थोड़ी देर के बाद अपना लंड जड़ तक ठूंस कर अपनी बहू कि चूत के अन्दर झड़ गये।

उषा भी अपने ससुर कि लंड को चूत को उठा कर अपनी चूत में खाती खाती झड़ गई। थोड़ी देर तक दोनों ससुर और बहू अपनी चुदाई से थक कर सुस्त पड़े रहे।

थोड़ी देर के बाद उषा ने अपनी आंखे खोली और अपने ससुर और खुद को नंगी देख कर शर्मा कर अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया। तब गोविन्द जी उठ कर पहले बाथरूम में जा कर अपना लंड धो कर साफ़ करने के बाद फिर से उषा के पास बैठ गये और उसके शरीर से खेलने लगे। गोविन्द जी ने अपने हाथों से उषा का हाथ उसके चेहरे से हटा कर अपने बहू से पूछा- क्यों, छिनाल चुद्दकड़ रण्डी उषा मजा आया अपने ससुर के लंड से अपनी चूत चुदवा कर? बोल कैसा लगा मेरा लंड और उसके धक्के?

उषा अपने हाथों से अपने ससुर को बांध कर उनको चूमते हुए बोली- बाबूजी अपका लंड बहुत शानदार है और इसको किसी भी औरत कि चूत को चोद कर मजा देने कि कला आती है। लेकिन, सबसे अच्छा मुझे आपका चोदते हुए गन्दी बात करना लगा। सच जब आप गन्दी बात कराते है और चोदते है तो बहुत अच्छा लगता है।

गोविन्द जी ने अपने हाथों से उषा कि चुची को पकड़ कर मसलते हुए बोले- अरे छिनाल, जब हम गन्दा कम कर रहे है तो गन्दी बात करने में क्या फ़रक पड़ता है और मुझको तो चुदाई के समय गाली बकने कि आदत है। अच्छा अब बोल तुझे मेरा चुदाई कैसी लगी? मजा आया कि नहीं, चूत कि खुजली मिटी कि नहीं?' उषा ने तब अपने हाथों से अपने ससुर का लंड पकड़ कर सहलाते हुए बोली- ससुरजी आपका लंड बहुत ही शानदार है और मुझे अपसे अपनी चूत चुदवा कर बहुत मजा आया। लगता है कि आपके लंड को भी मेरी चूत बहुत पसंद आई। देखिये ना, आपका लंड फिर से खड़ा हो रहा है। क्या बात है एक बार और मेरी चूत में घुसना चहता है क्या?

गोविंदजी ने तब अपने हाथ उषा कि चूत पर फेराते हुए बोले- साली कुतिया, एक बार अपने ससुर का लंड खा कर तेरी चूत का मन नहीं भरा, फिर से मेरा लंड खाना चाहती है? ठीक है मैं तुझको अभी एक बार फिर से चोदता हूं।'

गोविन्द जी कि बात सुन कर उषा झट से उठ कर बैठ गई और अपने ससुर के समने झुक कर अपने हाथ और पैर के बल बैठ कर अपने ससुर से बोली- बाबू जी, अब मेरी चूत में पीछे से अपना लंड डाल कर चोदिये। मुझे पीछे से चूत में लंड डलवाने में बहुत मजा आता है।' गोविन्द जी ने तब अपने सामने झुकी हुई उषा की चूतड़ पर हाथ फेराते हुए उषा से बोले- साली कुत्ती तुझको पीछे से लंड डलवाने में बहुत मजा आता है? ऐसा तो कुतिया चुदवाती है, क्या तू कुतिया है?' उषा अपना सिर पीछे घुमा कर बोली- हाँ मेरे चोदू ससुरजी मैं कुतिया हूं और इस समय आप मुझे कुत्ता बन कर मेरी चूत चोदेंगे। अब जल्दी भी करिये और शुरु हो जाओ जल्दी से मेरी चूत में अपना लंड डालिये।' गोविन्द जी अपने लंड पर थूक लगाते हुए बोले- ले मेरी रण्डी बहू ले, मैं अभी तेरी फुदकती चूत में अपना लंड डाल कर उसकी खबार लेता हूं। साली तू बहुत चुद्दकड़ है। पता नहीं मेरा बेटा तुझको शान्त कर पायेगा कि नहीं।' और इतना कहकर गोविन्द जी अपने बहू के पीछे जाकर उसकी चूत अपने अंगुलियों से फैला कर उसमे अपना लंड डाल कर चोदने लगे। चोदते चोदते कभी कभी गोविन्द जी अपना अंगुली उषा कि गांड में घुसा रहे थे और उषा अपनी कमार हिला हिला अपनी चूत में ससुर के लंड को अन्दर भर कर करवा रही थी। थोड़ी देर के चोदने के बाद दोनों बहू और ससुर जी झड़ गये। तब उषा उठ कर बाथरूम में जाकर अपना चूत और जांघे धोकर अपने बिस्तर पर आकर लेट गई और गोविन्द जी भी अपने कमरे जाकर सो गये।

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