मेरी छोटी ननद गीता 02

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हेमा की छोटी ननद गीता की अपने बाबा से चुदाई ।
6.5k words
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Part 2 of the 2 part series

Updated 06/13/2023
Created 01/08/2023
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हेमा नन्दिनी

हेमा की छोटी ननद गीता की अपने बाबा से चुदाई ।

दोपहर के 2.30 बज चुके थे। किचन का काम पूरा करके मेरे हाथ पोंछते मेरे कमरे में दखिल हुई। मुझे देख कर, मेरे ससुरजी जो अंदर बेड पर बैठे थे बोले "आवो... मेरी जदू की छड़ी.. आवो... तुम्हारा सिंहासन तुम्हारा इंतजार कर रहा है.. आओ बैठो.."

मैं हँसते हुए उनके समीप पहुंची और मेरे गद्देदार नितम्बों को उनके गोद में रख कर बैठ गयी। बाबूजी ने (ससुरजी) मेरे कमर के गिर्द अपना बायां हाथ लपेट कर मुझे अपने ऊपर खींचते मेरे गालों चूमने लगे। मैंने महसूस किया की उनका सोल्जर सर उठा रहा है।

मुझे चूमते, एक हाथ को मेरे मम्मे पर रख कर उन्हें दबाते बोले "चलो अब शुरू हो जाओ.."

"क्या...?" मैं उनके हाथ पर अपने हाथ रख मेरी चूचियों पर दबाते पूछी।

"जैसे की तुम्हे मालूम नहीं...?" अब वह मेरी गाल को दांतों से दबाते बोले।

"सससससस...ह्ह्हआआ" बाबूजी ऐसे मत दबाइये..." मैं उनके हरकतों का जायका लेते पूछी... "आप किस बारे में बात कर रहे है.. मुझे कैसे पता...?" मैं पूछी।

मुझे मालूम है ससुरजी क्या पूछ रहें है.. लेकिन अंजान बन रहि थी।

दस दिन पहले मेरे पति, मेरे ससुरजी और मेरी ससुमा (सौतेली) एक रिश्तेदार की शादि अटेंड करने गांव गये थे। उस शादीसे दूसरे दिन आनेके बाद, उन्होंने मेरी ननद गीता के व्यवहार में बदलाव देखे होंगे... उसी के बारे में पूछ रहे है।

"बबुजी.. बोलिये तो सही बात क्या है...?" मैं मेरे कूल्हों को उनके मर्दानगी पर दबाते पूछी। वह तन कर चढ़ की तरह सख्त बनी और मेरे नितम्बों कि दरार में ठोकर मार रही है। तब तक बाबुजी ने मेरे कमीज की ज़िप; जो पीछे की तरफ थी निचे खींच कर ब्रा का हुक खोल चूके हैं। आगेसे अपने दूसरा हाथ अंदर दाल कर मेरे मम्मे के साथ खिलवाड़ करते मेरे सख्त निप्पल को ट्विस्ट कर रहे हैं।

उनकी हरकतों से मैं गर्माने लगी। मेरे जांघो की बीच दरार में कामरस उत्पन्न होने लगी। अंदर कहीं खुजली जैसे भी होने लगी।

"अच्छा सुनो क्या हुआ बताता हूँ.." मेरे बूबस को जोरसे दबाते बोले। "ठहरो बाबूजी ऐसे नहीं.. मुझे आपको देखना है..." मैं कही और उनकी गोद से उतरकर मेरी सलवार उतार फेंकी। अंदर पैंटी नहीं पहनी थी। बाबूजी की ओर पलटी और उनकी लुंगी निकाल दी। T shirt के निचे उनला डंडा अपना सर हिलाते मुझे बुला रही है।

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दोस्तों, मैं हूँ आपकी चहेती हेमा, हेमा नंदिनी, आपके समक्ष आपके मनोरंजन के लिए। यह दस दिन पहले की बात है; मेरे पति, बाबूजी और सासुमा (सौतेली) एक शादी अटेंड करने गाँव गए थे। बाबूजी मुझे बोलके गए थे की मैं गीता को फ़ोन पे उसका हाल चाल पूछूं। मैंने गीता को मेरे यहाँ बुला लिया और मैं गीता को अपना पाठ पढ़ाई। गीता समझदार लड़की है और वह समझ गयी कि वह क्या गलत कर रही है; और मेरे से वादा करि थी की अबसे वह अपने बाबा का अनादर नहीं करेगी। अब बाबुजी गीता में आये बदलाव का कारण पूछ रहे हैं। (पढ़िए .. मेरी छोटी ननद गीता - 1)

उस सवेरे लगभग ग्यारह बजे का समय में बाबूजी का फ़ोन आया... कह रहेथे की वह लंचके लिये मेरे यहाँ आ रहे हैं। गीता की तरह बाबूजी को भी लिवर फ्राई (fry) बहुत पसंद है। शायद बाबूजी से ही गीताको भी लिवर फ्राई बहुत पसंद है।

में झट फ्रिज में रखे लिवर निकली साफ करके उसका फ्राई बनायीं। बाबूजी जब भी दोपहर को आते हैंतो शाम तक हमारे यहाँ ही रहते है। मुझे मालूम है की वह आज भी शाम तक रुकने वाले है और मेरी बुर की शामत आगयी है। खाना तयार करके मैं बाथरूम में घुसी और मेरे झांटोंको साफ करि। बाबूजी को बिना बालों वाली, बिना रोयें वाली चूत पसंद है। जब तक मुझे दो बार चाटकर ही climax पर न पहुँचाते' मेरे उसमे उनका डंडा घुसाते ही नहीं। मैं बाबूजी का इंतजार करने लगी। बाबूजी के खयाल से ही मेरी बुर पानी छोड़ने लगी।

दरवाजे की घंटी बजी। मैं दौड़कर डोर खोली। सामने मेरे हैंडसम ससुरजी; मेरे पति के पिता अपने हंसमुख चेहरे के साथ ठहरे है।

"हेल्लो, मेरी बुल बुल.. मेरी दिलकी रानी... "कहते अपने बाहें पैलाये। "बाबूजी.." कहते मैं उनकी बाँहोंमें गयी और मेरे उरोजों को उनकी छाती पर रगड़ी। बाबूजी फ्रेश होने बाथरूम में गए.. मैं डाइनिंग टेबल पर खाना जमा रही थी। फिर हम दोनो इधर उधर की बातें करते, चेढ़ चाढ़ करते खाना खाये और बेडरूम मे पहुंचे। ऊपर जो मैंने लिखे है वह उसीका एक अंश है।

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मैं बाबूजी के कमरके गिर्द मेरे दोनों पैर रख कर उनके गोद में बैठी। बैठने से पहले मेरे कमीज को कमर तक उठाकर बाबूजी के लण्ड मुट्ठी में दबाकर फिर उसे मेरी बुर के मुहाँमे पर रगड़ी और धीरे धीरे उनके वस्ताद को अंदर डालने लगी। जैसे जैसे वह अंदर घुस समारही थी मेरी मस्ती बढ़ती जा रही थी। बाबूजी को देखते ही मेरे सारा शरीर पुलकित हो जाति है। "सससससस...हहहहह... बाबूजी... आप..का.. इतना मोटा क्यों है... इसे क्या खिलाते हो जो यह रोज रोज मोटा होता जारहा है ...मममममम.. ये तो मोहन से भी लंबा है.." कहते मैं उनके गले में मेरे हाथों का हार पहनाई।

"चुप साली..." कहे और मेरी एक चूची को जोरसे दबाये।

"सससससस...हहहहह.. इतना जोरसे क्यों दबा रहे हो... और मुझे साली क्यों कहे ...?"

"अरी.. लाड़ली, तूम तो मेरी दिलवाली है... दिलवाली को साली नकहूं तो और क्या कहूँ" मेरी नाक् को मरोड़ते बोले। ऐसी चेढ चाढ हम दोनों की बीच आम बात है।

"दिलवाली हूँ तो फिर ठीक...अब बोलो क्या हुआ..गीता के साथ..."

"दस दन पहले हम शादीसे आनेके दिन से शुरू हुई" बाबूजी बोलने लगे।

"उस दिन जैसेही हम घरमें कदम रखे गीता आयी और "हाय बाबा..." कहते मेरेसे लिपट गयी, मेरे गालको चूमि। उसकी माँ तो उसे चकित होकर देखते रह गयी। उसके बाद तो बस उसमे बहुत सा बदलाव आया। हर दिन सवेरे, शाम गुड मॉर्निंग गुड नाईट कहने लगी। वह सवेरे मेरे टूथ ब्रश पर पेस्ट लगाती, टवेल रेडी रखती, बाल्टीमें गर्म पानी चेक करती है। मैं ऑफिस जाते समय वह दरवाजे तक छोड़ने आती है और गुड बाई कहती। जब उसकी माँ आसपास न होतो वह मेरे गलोंको या माथे को भी चूमने लगी। यहाँ तक की वह कभी कभी अपनी माँ को भी डांटने लगी। सच बहुत आदर करने लगी मेरी बेटी ..उस में मैं ऐसी बदलाव कल्पना ही नहीं करा" बाबूजी चुप होगये।

"मुझे मालूम था..गीता एक अच्छी लड़की है...अबतो आप खुश होंगे.." मैं अपनी कमर दबाते बोली। उनका मेरे अंदर कॉर्क (cork) की तरह अड़सा था।

"हाँ.. बहुत खुश हूँ.. वैसे मेरे दोनों बेटियां सोना है सोना... खरा सोना..." बाबूजी के स्वरमें गर्वे का पुट था।

"अच्छा! आपकी बेटियां..खरा सोना तो मैं कुछ नहीं.... सच ही कहते है..की बहु हमेशा पराया ही होती है..." में रूठने का नाटक करती बोली। उन्हें ऐसा छेढ़ने में मुझे बहूत मजा मिलती है।

"आरी मेरे दिलकि रानी तू रूठ मत, मेरी बेटियां सोना है तो तुम पलटिनम हो, डॉयमण्ड हो... मेरी बहु तो हजारों में बल्कि लाखों में एक है... देख तूने क्या क्या किये मेरे लिए...सबसे पहले तुम मुझे एक नया ही जीवन दिया है, फिर संगीता को ..और अब गीताको एक रास्ते पर लाई..यह सब मेरी बहु ने ही किये है... सच हेमा तुम्हरी यह ऋण मैं कभी चूका नहीं पाउँगा..." कहते कहते बाबूजी का गला रूँघ गया.. और आंखे नाम हो गये।

"अरे यह क्या बाबूजी.. आप तो भावुक होरहे है.. मैंतो मजाक कर रही थी...आपकी दिलकी रानी होने के नाते मैं इतना मजाक नहीं कर सकती क्या...? सॉरी मेरेसे गलती होगयी..." में कही और उन्हें अपने से जोरसे भींची।

"हाँ हेमा..सचमे मैं भावुक हो गया हूँ..." कहे और अपने आंखे पोंछे "वैसे तूने झूट क्यों बोली...?" पूछे।

"बाबूजी... यह आप क्या कह रहे हैं.. मैं और झूट.. कब बोली..."

"अभी कुछ देर पहले... तू कहीथी न की मेरा मोहन से बड़ा है.." मेरी बूब को पकड़ते बोले।

"नहीं बाबूजी.. सच में ही आपका बड़ा है..."

"फिर झूट... मैंने एक बार तुम दोनों को द्ख चूका हूँ... मोहन का भी मेरा उतना ही है..."

मुझे उस दिन की घटना यद आयी। बाबूजी मुझे लेते बोले.. 'हेमा मुझे तुम पति पत्नी का खेल देखनी है; तो मैंने उस रात उसका इंतजाम करि !

उस रात जब मेरेपति मुझे ले रहे है तो बाबूजी खिड़की के पास ठहरकर हमें देखे... उस रात बाबूजी को वहां से हमारी चुदाई देखना देख कर तो मैं इतना गरमा गयी की मैं खुद मोहन के ऊपर चढ़कर चुदाई। वही बात वह अब कर रहे है...

"सच बाबूजी... लम्बाई में आप दोनों का बराबर है... लेकिन.. मोटापे में ...आपका तो... तौबा ... आप जब भी पेलते हो तो मुझे लगता है की मेरी फटी की फटी..." मैं अपनी निचली होंठ को दंतों से दबाते आंख मारते बोली।

"साली...तेरी चूत में लौड़ा..." कहे मेरे गाल को जोर से काटे...

"ममममममआ...." में सिसकारी भरी और बोली... "मेरी बुरमें तो आपका घुसा पड़ा है... अब चोदना ही रह गया... चलो चोदो अब... इतनी देरसे अंदर ही डाल के रखे हो... आओ अब जम कर चोदो अपनी बहु को..." कहती मैं उनके ऊपर से उतरी और बिस्तर पर अपने कोहनियों और घुटनों के बल झुकी, मेरे चूतड़ उठाकर, पीछे पलटकर बाबूजी को देख कर आंख मारी। मेरी इस अदा से बाबूजी फिदा होगये, अपना मुस्सल हाथ में पकड़ कर मेरे पीछे आये।

बाबूजी ने भी देरी न करते हुए अपना सूपाड़ा मेरे बुर कि फांकों पर रगड़ने लगे।

"बाबूजी अब देर मत करिये... मेरी सुलग रही है...पेलो.. अंदर...." मैं कही और मेरे कूल्हों को उनके मुस्सल पर दबायी। जैसे ही मैं मेरे कूल्हों को पीछे धकेली उन्होंने एक जोर का शॉट दिए।

"aaammmmmaaaaaa... mei ... mareeee.... आअह्ह्ह मेरी choot...ammmaaa मैं उनके निचे चट पटाने लगी। बाबूजी ने एक शॉट और दिए। उनका पूरा साढ़े आठ इंच लम्बा और तीन इंच मोटा (एक बार मैंने उत्सुकता वश उन्हें नापी थी) मेरे में जड़ तक समा गायी।

"अअअअअहहह" मैं कही और मेरी कमर पीछे को धकेली। बाबूजी मेरे पीठ पर झुककर मेरे गर्दन, गाल और पीठ चूम रहे थे और एक हाथ से वजन से लटकती मेरी चूची को पकड़ कर मसलने लगे। दूसरे हाथ से मेरे मुलायम कुल्हों पर थप्पड़ लगा रहे हे। शायद मेरी चूतड़ लाल हो गये होंगे.. मुझे सुर सुराहट सी होने लगि। साथ ही साथ अपना कमर आगे पीछे करते धना धन टोकर पे ठोकर मार रहे थे।

"अहा. वुहु..." कहते मैं मेरी गांड पीछे को धकेलती चुद रही थी।

कभी कभी तो मुझे उनकी चोदने की क्षमता पर ताजूब होती है.. इस उम्र में भी वह पूरा 20 मिनिट तक मुझे लिए और अपना गर्म लावा मेरे में भरकर मेरे पीठ पर निढाल होकर गिरे। मैं भी मेरे पेटके बल बिस्तर पर गीरी। मेरे चूचियां बिस्तर पर रगड़ खा रहे है। उनकी वजन से मैं दब रही थी।              

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मेरे माथे पर हाथ का स्पर्श पाकर मैं आंखे खोली। मैं अभी भी बिस्तर पर औंधी थी। मेरा मुहं एक ओर थी। मैं आंखे खोली तो देखि कि मेरे ससुरजी मेरे माथे पर पसीने की वजह से चिपकी बालों को हठा रहे थे।

मेरा आंखे खोलना देख कर बोले... "उठ गयी मेरी रानी..." और आगे झुक कर मेरी आँखों को चूमे। मैं उन्हें देख कर हलकी सी मुस्कुराई। फिर उन्होंने मुझे एक गुड़िया की तरह उठाकर बथरूम में घुसे, हम दोनो खूब चेढ़ चाढ़ करते पानी नहाये और वापिस वैसे ही नंगे, हाल मे आकर सोफे पर बैठे गए।

"बाबूजी होर्लिक्स पिनी है...?" मैं पूछी।

"हाँ बहु.. थकान महसूस कर रहा हूँ.." वह बोले।

"मेरे प्यारे बाबूजी.. कितना मेहनत करते है... बहु को खुश करने के लिए..." मैं बोली, एक बार फिर उन्हें चूम कर "अभी आयी..." कहि और ऐसे नंगे ही मेरी कूल्हे मटकाती किचन में गयी। पांच मिनिट बाद दो मगों में हार्लिक्स ले आयी और उन्हें एक देकर मैं एक ली।

मुझे देखकर तो बाबूजी का दिल ही नहीं भरता। उन्होंने फिर से मुझे अपने गोद में खींचे। मैं उनके गोद में जम गयी। एक ओर हार्लिक्स सिप करते दूसरी ओर मेरे निप्पल को टविस्ट करते बोले.. "चल हेमा अब शुरू होजा..."

"क्या...? अभी दिल नहीं भरा पूरा 20 मिनिट तो लेते रहे.. और क्या...अभी भी..." मैं बात को अधूरा छोड़ दी।

"अरे नहीं मेरी माँ..मुझे पूरा कहानी सुना क्यों करके गीता में इतना इन्किलाबी बदलाव आया है"

"ओह..." मैं कही और उन्हें गीता के बारे में पूरा पूरा बताई.. मेरा, गीता और संगीता के बारे में भी..कैसे हम नंगे होगये और कैसे हम एक दुसरेके साथ मस्ती करे.. सब... जब मैं गीता के बारे में बता रही थी तो देखि की बाबूजी का लंड उछाल लेने लगी।

"हे... बाबूजी.. यह क्या.. गीता के बारे में सुनकर आपका तन रहा है.. क्यों..? क्या बात है...? क्या उसे भी लेने का इरादा है क्या...?" में पूछी।

"क्या...?" बाबूजी लगभग चिल्लाये।

"अरे...इतना चिल्ला क्यों रहे है आप...? मैं तो महज एक सवाल पूछी" में बोली।

"लेकिन गीता.. गीता..वह मेरी बेटी है..."

"अच्छा... तो क्या संगीता आपकी बेटी नहीं है...?" यह बात मैं पूछते ही.. वह सकते में आगये।

वह मुझे देखते ही रह गए। में हंसी और बोली, "बाबूजी गीता का तो एकदम खिलती गुलाब जैसी है... सच उसका देखते ही मैंने तो मेरा मुहं वहां लगाए बीना न रह सकी... और गीता के चूची तो कमल के फूल जैसी... सच् उसे लेने वला बहुत ही लकी होगा..."

मेरी बातों का उनपर असर पड़ने लगी। उनका मेरे हाथों में और कड़क हो गयी।

"लेकिन.. लेकिन.. गीता मानेगी क्या..?" इस प्रश्न से मैं समझ गयी की बाबूजी के दिलमें गीताको (अपनी बड़ी बेटी संगीता को वह पहले ही ले चुके है) भी लेनेका मन बनगया है।

"वह क्यों मानेगी....? उसे मनाना पड़ेगा..."

"कैसे...?"

"ओफ्फो... मेरे बुद्दू ससुरजी..." मैं मेर चूची उनके मुहं में ठेलते बोली " बाबूजी...अब तो वह आपके गालों को चूम रही है... यह बात आप ही कहे हो... मेरे यहाँ उसने आप; संगीता को गोद में बिठाकर चूमने की फोटो देखि तो कह रही थी 'बाबा मुझसे ऐसे प्यार नहीं करते' समझ गये बात.. उसे गोद में बिठाओ... चूमो, चाटो, गाल काटो.. कभी कभी उसके शरीर पर हाथ फेरो..सबसे इम्पोर्टेन्ट मौका देख कर उसे अपना नंगापन दिखाओ...लंड को देखना लड़की पर बहुत असरदार होती है..." मैं बोली।

"क्या तुझ पर भी हुई थी...?"

"हाँ..."

किसकी देखि हो...?"

"मेरे कजिन शशांक भैया की..."

"क्या उस से करवाई हो..?"

"नहीं... लेकिन भैय्या का देख कर मेंरी कुंवारी बुर में सुर सूरी हुई" मैं यहाँ बाबूजी से झूट बोली। वैसे मेरी सील तोड़ने वाले शशांक भैय्या ही थे।

वह कुछ सोचते रहे.. फिर उस दिन उन्होंने मुझे एक बार फिर लिए शाम को मेरे पति आने तक रहे और फिर चले गए।

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दोस्तों यहाँ से कहानी बाहर वाले की दृष्टी लिख रही हूँ।

गीता अपने कमरे में आयी और एक महीने से उसके साथ हो रहे घटनाओं के बारेमें सोचने लगी। वह Flash back में चली गयी।

एक महीने पहले तक तो वह अपने बाबाका अनादर करती थी। कारण बस यहीथी की उसकी माँ बाबाको अनादर करती थी। माँ की देख देखी में बच्ची (गीता) भी अपने पापा को अनादर करना शुरू करदी। बाबाके नाम पर वह चिढ़ती थी और कुढ़ती भी थी।

डेड महीने पहले एक दिन और पूरी रात गीता अपनी भाभी हेमा के यहाँ रही। उसी समय हेमा ने गीता को समझाया की उसके बाबा उसके लिए क्या क्या करते हैं...तो गीता मे बदलाव आया और वह अपनी बाबाको आदर करने लगी। गुड मॉर्निंग, गुड नाईट के साथ वह बाबाके गालों को प्यार से चूम लेती थी। अब गीता में अपने बाबा के प्रति प्यार उभरने लगी। बाबाको हर रोज सवेरे उठाने भी लगी। बाबाको अपने बेटी की इस यवहार से बहुत संतुष्ट रहने लगे। ऐसे में.....

उस दिन, हर दिन की तरह गीता सवेरे छह बजे बाबा को उठाने गयी। जब वह दरवाजा ठेल कर अंदर गयी तो अंदरका दृश्य देखकर वह सकते आगयी।

उसका मुहं खुले का खुला ही रह गया। उसका गला सूख गया..और फिर उसके मुहं में इतना पानी आया की उसे निगलने के लिये उसे चार पांच बार गले के निचे उतारना पडा। अंदर बाबा बिस्तर पर चित लेटे थे और उनकी लुंगी खुलकर उनके नितम्बों के निचे दबी पड़ी। गीता ने देखा की बाबाका तन कर खडा है और रह रहकर अपना सर हिला रही है। आगे की चमड़ी पीछे को फिसल कर उनकी गुलबी टोपा बेड लाइट की रोशनी मे चमक रही है।

गीता गभराकर एक बार पीछे मुड़कर देखि कि कहीं उसके माँ तो नहीं है।

'बापरे कितना बड़ा है बाबा का और मोटा भी' वह सोची। अनायास ही वह उसकी तुलना अपने बॉयफ्रेंड से की जो उसे दो तीन बार अपना पकड़ा चूका था । "उसका तो इसमें आधा भी नहीं है' वह सोची.. गीता के दिल में एक अजीब सी हलचल हुई। उसका दिल चाह रहि थी की उसे ऐसे ही देखते रहने की ...लेकिन माँ न आजाये उसने झट बाबाके ऊपर एक चादर डाली और कंधे को हिलाते बाबा को उठायी।

सारा दिन गीता के मानस पटल पर बाबा का मर्दानगी ही घूमती रहि। उस दिन गीता ने अपने पाठ्यांश (classes) पर ध्यान ही नहीं दी।

उसके बाद उसकी जीवन में बदलाव आयी। बिचारि गीता को अनुमान ही नहीं थी की बाबाने उसे जान बूझकर अपना दिखाए हैं। उसके बाद बाबा जब कभी भी अपनी पत्नी आस पास न होतो गीता के साथ हंसी मजाक करने लगे। इसी हंसी मजाक में बाबाने उसके उरोजों और नितम्बों पर भी हल्कासा हाथ फेरने लगे। बाबा प्यारसे उसे गोदमें बिठाते थे। बिचारि गीता अपनी बाबासे अनादर के कारण बाबाके गोद से वंचित थी ख़ुशी ख़ुशी बैठ कर पापा को अपने गाल चूमने देती थी।

उसी समय गीता ने महसूस किया की अपने नितम्बों पर बाबा का चुभ रही है।

पहले के आठ दस दिन तो उसे अजीब लगा, और बाबा पर गुस्सा भी आता था। फिर धीरे धीरे वह अब बाबा के हरकतों को एन्जॉय करने लगी। फिर भी वह असमंजस में रहती थी। क्या करें वह समझ नहीं पायी।

कभी सोचती थी की बाबा को रोकूं, फिर इतने में उसका शरीर कहती की, पागल; मौज कर और वह खमोश रह जाती थी और अब बाबाके हरकते रोज रोज बढ़ने लगे। अब तो वह सीधेसे ही उसकी उरोजों को टटोलने लगे। कूल्हों पर थपकी लगे। कभी कभी तो कूल्हों कि दरारमें अपनी ऊँगली भी चलाने लगे। ऐसी हरकरतों से गीता को एक ओर आनन्द आता था तो दसरी ओर घृणा सी भी होती थी।

आखिर उसने अपने भाभी हेमा से; जिसके साथ उसकी घनिष्ठता बढ़ी है उनसे बताने को सोची। दूसरे दिन दोपहर को कॉलेज को बंक मार कर वह भाभी के घर पहुंची। अपने आने की बात वह पहले ही भाभी को मोबाइल पर बता चुकी है और भाभी उसीकी इंतज़ार कर रही थी।

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"अरे गीता.. आओ आओ में तुम्हरा ही इंतजार कर रही थी" भाभी हेमा बोली और गीता से गले लगाई। दोनों की चूचियां एक दूसरे से दब रहे थे।

"खाना खायी...?" हेमा पूछी।

"नहीं भाभी... कॉलेज से सीधा इधर ही आ रही हूँ..."

"चलो.. फ्रेश हो जाओ... पहले खाना खाते है.. मुझ तो बहुत भूख लगी है.." हेमा ने गीता से कही और खुद डाइनिंग पर खाना लगाने लगी। गीता भाभी की बेडरूम टॉयलेट में घुसी। पंद्रह मिनिट बाद गीता फ्रेश होकर भाभीका ही एक पजमा सूट पहन कर आयी। दोनों भाभी, ननद खाना खाने लगे। "भाभी..." गीता कुछ बोलना चाहती थी।

"पहले खाना तो खालो..बाद में बात करेंगे..." कही और फिर दोनों खाने में जुट गए। खाने के बाद दोनों बेडरूम में आये और अगल बगल लेट गए। दोनों एक दूसरे को देख रहे थे।

"चल अब बोल क्या बोलना चाहती है मेरी लाड़ली ननद रानी..." हेमा गीता के गालों को पिंच करती पूछी।

"भाभी... समझ मे नहीं आ रहा है की कैसे शुरू करूँ ..." गीता उदासीन स्वर में बोली।

हेमा अपनी ननद के गलों को चूमी और उसे सांत्वना देते बोली... "जैसे दिल में आये वैसे ही बोल... कुछ आगे पीछे होगी तो बाद में सुधार देना..."

गीता ने धीरे, धीरे इस 20, 25 दिनोंमे क्या हुआ बताई कैसे बाबा उसे गोद में बिठाते, और उनका अपने नितम्बों में चुभना... बहाने से चूची को टीपना, या पेंदे पर थपकी देना..सब कुछ अपने भाभी को बताई और फिर बोली.. "भाभी.. बाबा मेरे से, अपने बेटी से ऐसा कैसे कर सकते हैं...क्या यह गलत नहीं है...? अब मैं क्या करूँ ... बाबा को रोकूँ या नहीं... नहीं रोकूं तो उन्हें और हिम्मत आएगी और उनके हरकतें और बढ़ेंगी..." गीता रुकी।

हेमा कुछ देर खामोश रही और पूछी..."तेरे बाबा के हरकतों से तुझे कैसे लगता है.. अच्छा या बुरा...?"

"सच कहूँ...?"

"सच ही कहो.. झूट बोलने से समस्या का समाधान नहीं मिलेगी..."

"जब बाबा ऐसे हरकतें करते है तो मेरे सारे शरीर में एक अजीब सी तरंगें उठती है.. सारा शरीर हलका महसूस होती है...कभी कभी जी चाहता है की बाबा ऐसे ही करते रहे..."

"... तो मौज करना..परेशान किस बात की है..?"

"लेकिन भाभी वह मेरे डैडी हैं... और डैडी से..." वह रुक गयी।

देख गीता मैं जो कह रही हूँ..वह मेरे अपने विचार है.. मेरे विचार मैं तुमपर थोपना नहीं चाहती... मैं मेरे विचार बोलती हूँ.. लेकिन निर्णय तुम्हे ही लेना है..." हेमा बोली।

गीता ने 'हाँ'' में सर हिलायी।

"गीता सबसे पहल तो मेरे दृष्टी में दुनिया में सिर्फ दो लोग रहते है....एक मर्द और दूसरा औरत। औरत मर्द में आकर्षण एक सहज प्रक्रिया है, चाहे उन दोनों मे कोई भी रिश्ता हो। दूसरी बात यह है की हर पिता को अपनी बेटी में उसकी पत्नी दिखती है वैसे ही हर माँ को अपने बेटे में अपना पति दिखता है...लेकिन यह बात समाज के ढरसे कोई बाहर नहीं बोलते। अब बात यह है की जो भी योन सुख दोनों में होगी वह जोर जबरदस्ती नहीं होना चाहिए। दोनों की मर्जी से हुए तो उसमे कोई पाप, या गलती नहीं है... मेने एक कहानी पढ़ी है.. में उसे सुनती हूँ और एक प्रश्न पूछती हूँ... उसका जवाब देना ठीक है...?"

गीता ने 'हाँ'' में हामी भरी।

एक गांव में एक माली रहता है। उसका काम ही पौधे लगाना और उगाना था। एक दिन उसने एक फल के पौधे का बीज बोया, कुछ दिन बाद यह बीज एक पौधा के रूप में उगी... माली उसे संभालता है.. उसकी भेड़ बकरी से रक्षा करता है.. और देखता है कि उस पौधे को कोई चीड़ या कीड़ा न लगे। कुछ दिनों बाद वह पौधा पेड़ बनती है और फल भी देने लगती है... अब सवाल यह है की क्या माली को उस फल को खाने का हक़ है या नहीं...वह उसे खा सकता है या नहीं...? बोलो तुम क्या कहती हो..." हेमा पूछी।

"यकीनन उस फल पर मालि का हक़ होती है, वह उसे खा सकता है..." गीता निस्संकोच बोली।

"फिर संदेह किस बात का... तुमजो उत्तर दिए हो वही तुम्हारा समस्या का समाधान भी है.."

गीता को कुछ समझमे नहीं आया.. वह अपने भाभी को चकित होकर देखने लगी।

"आरी मेरी लाड़ली ननद रानी... तुम वह फल हो जो माली उगाया है... और माली है तुम्हारे बाबा.." हेमा गीता के उभारों को टीपते बोली।

गीता कुछ देर सोचति रही.. और वह अपने भाभी को अपने से भींचते बोली... "ओह भाभी यू आर ग्रेट... कितनी आसानी से तुमने समस्या का समाधान दिए हो... थैंक यू..."

"चलो अभी किसी बातका शंका तो नहीं है...?" भाभी पूछी।

"नहीं भाभी... लेकिन... मैं कैसे शरू करूँ ...?

भाभी ने उसे समझाया की उसे क्या करना है..."

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भाभी ननद के बातों के बाद एक महीना बीत गया। इस बीच बाप बेटी में घनिष्ठते खूब बड़ी। अब उन दोनों को ही मालूम है की एक दूसरे की दिलों में क्या है।

एक दिन ऐसे ही गीता की मम्मी कि गैरहाजिरी में पिता ने बेटी को अपने पास बुलाया... कुछ देर उसकी कॉलेज की बातें हुई और फिर बाबा ने अपना पन जताते बेटी को अपने गोद में खींचे और उसे चूमने लगे। बेटी अनजान बनकर बाबा की चुंबनों का मजा लेरही थी और ऐसे नाटक कर रहीथी की उसके साथ जो होरहा है उसे मालूम ही नहीं।

कुछ देर ऐसे ही आंख मिचैली खेलने का बाद बाबा ने बेटी के स्तनों को ऐसे दबाया की जैसे अनजाने में हुई हो।

बाबा का हाथों का स्पर्श गीता में मदहोशी भरी और वह "स्स्सस्स्स्स...मममममम.." की सिसकरी उसके मुहं से निकली।

"गीता बिटिया....क्या हुआ...?" हरामी बाप ने एक बार फिर हाथ चलाते पुछा।

"कुछ नहीं बाबा.. आप अपने काम जारी रखिये,..." छिनाल बेटी ने कही और अपने बाबा के हाथ को अपने सीने पर दबायी।

"गीता....." बाबा चकित रह गए।

बेटी ने एक चत्ताकर्षक मुस्कान दी और बोली... "बाबा आपके हाथों में जादू है.... आपके हाथ वहां छूते हि मेरे उसमे का ठीस पूरा गयब हो गयी... सच बाबा.. दबाइये...और जोरसे दबाइये,...कैसी है आपकी बेटी की मस्तियाँ...?" आंख मारते पूछी।

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