पार्क में मुलाकात

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एक महिला से पार्क में मुलाकात और दोस्ती का गहरा जाना
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पार्क में मुलाकात

भूमिका

वजन घटाने के लिये मैं काफी दिनों से सुबह घुमने के बारे में सोचता था लेकिन रात में लेट सोने के कारण सुबह इतनी जल्दी उठ कर घुमनें जाना संभव नहीं हो पाता था। इस बात को लेकर दिल में एक कसक ही रहती थी। एक दिन सुबह जब अलार्म बजा तो सारे बहाने छोड़ कर बिस्तर से बाहर निकल गया और कपड़ें जुतें पहन कर दरवाजें को ताला लगा कर घुमने निकल गया। सड़क पर ठंड़ पुरे शबाब पर थी, हल्का कोहरा सा छा रहा था सो घीरे-घीरे रोड़ के किनारें चलने लगा। मुझे चलने की आदत तो है लेकिन दौड़ पाने का दम नहीं था, सो एक निश्चित गति से चलना ही बेहतर लगा। अपने बनाये लक्ष्य तक जा कर लौट रहा था तो रास्तें में एक पार्क पड़ा। पार्क में जाने का मन तो नहीं था लेकिन अंदर चला गया।

सुबह कम ही लोग दिखाई दे रहे थे। सो में भी बनें हुऐ ट्रेक पर तेज चलने लगा। पार्क आधा ही पार किया था कि मेरे पीछे से आ कर एक महीला आगे निकल गयी। लम्बी छहररी महिला तेज कदमों सें मेरे आगे चल रही थी। मैं तो अपनी गति से चल रहा था, जब एक चक्कर पुरा कर रहा था तब उन से फिर सामना हुआ। दोनों एक दूसरें को देखते हुये अपनी राह पर चल दिये। दो फिर से हम दोनों का आमना सामना हुआ, इसके बाद में पार्क से निकल कर घर के लिये चल दिया।

दूसरें दिन भी यही रुटिन रहा, इस बार जब हम एक-दूसरें के सामनें आये तो चेहरें पर मंदिम मुस्कान नें अनजानें पर की जगह ले ली। आज भी चार बार हम नें एक-दूसरे का सामना किया और अपने अपने रास्तें चल दिये। ऐसा कई दिनों तक होता रहा। शनिवार और रविवार के में घुमने नहीं गया।

सोमवार को जब घुमनें गया तो फिर से उन्हीं महिला से सामना हुया। वह मुझे देख कर हल्कें से मुस्करायी और में उत्तर में मुस्कराया और अपने रास्ते चल दिये। अब यह रोज का रुटिन हो गया। मुझे भी अच्छा लगता था जब में उन महिला को देखता था। इस से ज्यादा कुछ करने की इच्छा नहीं थी। किसी और चीज की कामना भी नहीं थी। समय गुजर रहा था। ठंड़ भी बढ़ रही थी। पार्क घने कोहरे से ढ़का रहता था। मुझे इस कोहरे की फोटो खींचनें में मजा आता था इस लिये मैं जब भी मौका मिलता, फोटो ले लेता था। यह मेरे रुटिन में शामिल हो गया था। वह मुझे फोटो लेते देख कर मुस्कराती हुई बगल से निकल जाती थी।

परिचय

एक दिन मैं घुमने जाने में लेट हो गया। जब पार्क में पहुंचा तो वह मुझे दिखाई नहीं दी। अगले दिन जब में घुम रहा था तो वह सामने पड़ी और मुस्कराई और बोली कि आप रेगुलर नहीं है। मैनें कहा कि रेगुलर तो हुं लेकिन समय का पाबंद नहीं हुं। कल लेट आया था। यह सुन कर वह बोली कि मुझे लगा कि ज्यादा ठंड़ होने के कारण आप ने आना बंद कर दिया है। मैंनें कहा कि ठंड़ में आना तो अच्छा लगता है, लेकिन किसी किसी दिन उठनें में देर हो जाती है। वह बोली कि यह बात तो सही है सुबह उठना मुश्किल होता है लेकिन मुझे तो ऑफिस जाना होता है इस लिये कोई और चारा नहीं है।

मैंनें उन्हें बताया कि मैं तो अपना काम करता हूँ इस लिये मेरे साथ ऐसी कोई बंदिश नहीं है लेकिन मुझे सुबह पूजा करनी होती है इस लिये मैं भी समय से उठता हूँ। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि आप भक्त तो नहीं लगते। मैंनें कहा कि भक्ति कोई ओड़ने की चीज थोड़ी ना है जो किसी को दिखायी जाये। काफी सालों से यही सिलसिला चला आ रहा है जब नौकरी करता था तब साढ़े पांच बजे उठ कर तैयार होता था, पूजा करता था और साढ़ें सात बजे घर से बाहर निकल जाता था। वह मेरी तरह आश्चर्य से देखती हुई बोली कि अब क्या हुआ? मैनें उन्हें बताया कि कई सालों पहले सेहत की वजह से नौकरी छोड़ दी, लेकिन रुटिन को वैसा ही रखने की कोशिश की है।

हमारी बातचीत के कारण लोगों को परेशानी हो रही थी सो हम दोनों ट्रेक से हट कर पार्क में एक बेंच पर बैठ गये। वह बोली कि मैं सरकारी नौकरी में हुँ। इस लिये चल्दी उठना और तैयार हो कर नौकरी पर जाना अब आदत बन गया है। इस लिये यहां पर समय से आ जाती हूँ। अगर कहीं बाहर जाती हूँ तभी यह रुटिन टुटता है। मैनें कहा कि आप को देख कर लग रहा है कि सेहत को लेकर आप बहुत जागरुक हैं तो वह मुस्कराई और बोली कि ऐसा क्या नोटिस किया आप ने मुझ में? मैंनें उन्हें बताया कि मैं फोटोग्राफी का शौक भी रखता हूँ तो वह बोली कि यह तो पता चल गया है। मैंनें अपनी बात आगे बढ़ाते हुये कहा कि आप की उम्र को जो अन्दाजा में लगा पा रहा हूँ उस में शरीर को इतना छहछरा रख पाना कठिन है, इस का मतलब एक ही है कि आप इस पर बहुत मेहनत करती होगी। वह यह सुन कर मुस्करायी और बोली कि इस से बेहतर टिप्पणी में नहीं सुनी है। फ्लर्ट भी ऐसा नहीं देखा।

मैं मुस्कराया और बोला कि अगर सच्चाई बयान करना फ्लर्ट करना है तो आप ऐसा ही समझ ले। वह बोली कि शब्दों का चयन बड़ी कुशलता है किया है आप नें। मैंनें कहा कि शब्द दूधारी तलवार होते है। वह बोली कि बातों के मास्टर है। मैं चुप रहा। वह बोली कि इतनी बातचीत कर ली लेकिन एक-दूसरे का परिचय नही जाना। मैनें कहा मुझे मुकेश कहते है तो वह बोली कि मेरा नाम माधुरी है। उन्होनें अपनी घड़ी देखी और बोली कि अब मैं चलती हूँ कल मिलते है। यह कह कर वह उठ कर चली गयी। मैं भी इस के बाद एक चक्कर लगा कर घर के लिये निकल गया। आज की बात वही खत्म हो गयी। मैं घर आ कर कामों में उलझ गया और सुबह की घटना के बारें में भुल गया। दूसरे दिन फिर हम दोनों मिले और मुस्करा कर एक-दूसरें से हाय हैलो करके निकल गये। इस से ज्यादा कुछ होने की गुंजाइस भी नहीं थी।

घनिष्टता

कुछ ऐसा चक्कर पड़ा कि मुझे अचानक बाहर जाना पड़ा और इस कारण से चार एक दिन में पार्क घुमने नहीं जा पाया। जब पार्क घुमने गया तो एक चक्कर लगाने के बाद माधुरी के दर्शन हुये, मुझे देखते ही वह पुछने लगी कि कहां गायब हो गये थे। फिर हम बात करने के लिये एक बेंच पर बैठ गये। वह बोली की कई दिनों से आप दिखाई नहीं दिये तो चिन्ता सी हो रही थी, आप के बारें में कुछ पता भी नहीं कर सकती थी। सबसे पहले तो आप अपना नंबर दिजिये। मैंनें उन्हें अपना नंबर बताया तो उन्होनें उसे अपने फोन से डायल कर दिया, मेरे फोन की घंटी बजी। वह बोली कि अब आप से बात तो हो सकेगी।

मैनें सर हिलाया तो वह बोली कि अब बताइये कि इतने दिन कहाँ थे? मैंनें कहा कि जिस दिन मैं और आप मिले थे उस के बाद अगले दिन जब घुमने के लिये निकल ही रहा था कि तभी किसी रिश्तेदार का फोन आ गया, उन के पिता जी का देहांत हो गया था सो उसी समय उन के अन्तिम संस्कार में भाग लेने के लिये निकल गया। वहां जा कर कुछ जरुरी काम निकल आया तो तीन दिन और लग गये। कल ही वापस आया हूँ। मेरी बात सुन कर माधरी जी बोली कि मुझे चिन्ता हो रही थी कि आप इतने दिनों तक तो गैरहाजिर नहीं रहते है। लेकिन कुछ कर नहीं पायी। आज आपको देख कर चैन आया।

हमारी उम्र में कब क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता? उनकी बात सुन कर मैं हंस दिया। यह देख कर वह बोली कि आप को हँसी आ रही है और मैं जो इतने दिन परेशान सहीं उसका कुछ नहीं। मैं बोला कि कुछ बोलुगाँ तो आप कहेगी कि फ्लर्ट कर रहा हूँ तो वह बोली कि अब बोल भी लिजिये मन में मत रखिये। मैंनें कहा कि यह जान कर अच्छा लगा कि आप को मेरी चिन्ता थी, मुझे लगा नहीं कि आप मेरी चिन्ता करती होगी।

वह बोली कि आप पुरुषों को यह बात कभी समझ नहीं आ सकती कि औरत किस की कितनी चिन्ता करती है। मैं चुप रहा तो वह बोली कि हाँ आप का मेरा कोई रिश्ता तो है नहीं तो मैं चिन्ता करने वाली कौन होती हूँ? मैंने कहा कि बुरा मत मानिये। एक सामान्य बात कही थी, मैं तो यह जान कर बहुत खुश हुँ कि कोई तो है जो चार दिन मुझे ना देख कर मेरी चिन्ता कर रहा है। हो सकता है कि मेरे पास सही शब्दों की कमी हो। वह कुछ देर चुप रही, फिर बोली कि मुझे यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि पहले दिन से ही आप मुझे आकर्षक लगे। और जब बात होने लगी तो चाहत बढ़ गयी। इस से अधिक में कुछ नही कह सकती। आप को सही लगे या गलत।

मैनें कहा कि दोस्ती तो अच्छी चीज है इस में गलत लगने की बात कहाँ से आ गयी। वह बोली कि हो सकता है कि आप सोचते हो कि यह तो पीछे पड़ गयी है। मैंनें कहा कि ऐसा मैं कैसे कह सकता हूँ दोस्ती तो दो तरफा रास्ता है। आप भी मुझे अच्छी लगती है, इसी लिये तो आप से बातचीत करनी शुरु की है। वह मुस्कराई और बोली कि लेकिन कुछ कहना उचित नहीं समझा। मैंने जबाव दिया कि हो सकता है अगर यह बात मेरे साथ होती तो शायद मेरा रियेक्शन भी आप जैसा ही होता। हम दोनों इतने बड़े तो है कि अपने विचारों को सही तरीके से व्यक्त कर सकते है। माधुरी बोली कि आप में कोई बात अलग है तभी मेरा मन आप से बात करने के लिये करा नहीं तो आदमी की निगाह देख कर ही हम औरतों की छठी इंद्रिय सक्रिय हो जाती है।

मैं बोला कि मुझे देख कर वह सक्रिय नहीं हुई तो वह बोली कि यहीं तो मैं कह रही थी। मेरी बातें आप को बुरी तो नहीं लगी? मैंनें कहा नहीं। वह बोली कि इतनी मुंह फट्ट तो मैं हुँ। मैनें कहा कि दोस्ती की मुबारकबाद और चलिये अपने रुटिन को पुरा करते है। वह बोली कि किसी दिन आप मेरे घर आये यहीं पास में है। मैंनें कहा कि अवश्य आयुँगा। यह कह कर हम दोनों फिर से ट्रेक पर लौट आये और घुमने लगे। चार चक्कर लगाने के बाद मैं पार्क से बाहर निकल आया। घर आते में मैंनें माधुरी के फोन नंबर को मोबाइल में सेव कर लिया। घर आने के बाद काम में लग जाने के बाद सुबह हुई घटना मेरी स्मृति से मिट सी गयी। रात को सोते समय सुबह की घटना नजरों के सामने घुम गयी। सोचा कि कभी-कभी किस तरह कोई अचानक किसी मोड़ पर मिल जाता है और उस से गहरा नाता बन जाता है। माधुरी के साथ दोस्ती भी कुछ ऐसी ही घटना थी।

प्रेम लगाव

दूसरें दिन जब सुबह घुमने के लिये निकल रहा था तभी माधुरी का फोन आया, उस नें कहा कहा चैक कर रही थी कि नंबर सही है या नहीं? मैंनें पुछा कि क्या पता चला तो वह बोली कि कुछ खास पता नहीं चला है। तुम आ रहे हो या नहीं? मैंनें उसे बताया कि निकल ही रहा हूँ।मेरी बात सुन कर फोन कट गया। जब पार्क पहुँचा तो चक्कर लगाना शुरु कर दिया। रास्ते में जब माधुरी से सामना हुआ तो वह हल्का सा मुस्करा कर पास से निकल गयी। दूसरी बार सामना होने के बाद वह ट्रेक से निकल कर बेंच पर बैठ गयी। मैंनें भी उन का अनुसरण किया और उन की बगल में बैठ गया। वह बोली कि सुबह आप को फोन किया तो कोई परेशानी तो नहीं हुई? मैनें कहा कि परेशानी कैसी? तो वह बोली कि पत्नी को जबाव तो नहीं देना पड़ा।

मैंने बताया कि वह तो सो रही होती है।

हम लोग रात को लेट सोते है इस लिये सुबह जब मैं आता हुँ तब वह सोई पड़ी होती है। मैं जा कर उसे जगाता हूँ। मेरे जबाव से उन के चेहरे पर संतोष झलका। माधुरी बोली कि इतनी सुबह फोन करते में संकोच हो रहा था, लेकिन फिर मन नहीं माना तो फोन कर ही लिया। मैंने कहा कि जब मैं नौकरी करता था तो मेरा फोन दिन-रात बजता रहता था सो मुझे इसकी आदत है। वह बोली कि मेरे पास तो ज्यादा फोन नहीं आते, इस लिये इतनी सुबह फोन आये तो परेशान हो जाती हूँ। इस पर मैंनें कहा कि अब इतनी सुबह मैं आप को परेशान किया करुंगा तो वह बोली कि मुझे अच्छा लगेगा।

उन्होनें मुझ से पुछा कि अगर आप के पास समय है तो शाम को मेरे घर आये मैंनें नया केमरा खरीदा है आप को दिखाना है तथा आप को उसे चलाना सीखाना पड़ेगा। मैंनें कहा कि शाम को आप के घर आता हूँ अपना पता भेज दिजियेगा तो वह बोली कि मैं रुट आप को भेज दूंगी। मैंनें कहा कि फिर तो कोई परेशानी नहीं होगी। वह बोली कि आप को मेरे घर आने में संकोच तो नहीं होगा, तो मैनें पुछा कि संकोच कि क्या बात है तो वह बोली कि वैसे ही पुछ रही हूँ?

मैंनें कहा कि मैं अपने व्यवहार को पारदर्शी रखता हूँ इस लिये पत्नी से कुछ छुपाने की आज तक तो आवश्यकता नहीं पड़ी है। वह मेरी बात सुन कर चुप रही। मैं दौड़ने के लिये उठ गया और मेरे को देख कर वह भी उठ खड़ी हुई और बोली कि शाम को आपका इंतजार रहेगा। हम दोनों ट्रेक पर अपना चक्कर पुरा करने चल दिये। घर आ कर मैनें पत्नी को बताया कि पार्क में मिली एक महिला के घर शाम को जाना है। वह बोली कि वहाँ भी दोस्त मिल गयी, मैंनें कहा हाँ दोस्त ही समझो। वह कुछ नहीं बोली।

शाम को छः बजे माधुरी का फोन आया कि आप आ रहे है तो मैंने कहा कि निकल रहा हूँ, उन्होनें अपनी लोकेशन भेज दी थी। लोकेशन के अनुसार पहुंच कर कार सोसाइटी के बाहर खड़ी कर के उनके फ्लैट पर पहुंच कर घंटी बजाई। फौरन दरवाजा खुल गया, मुझे लगा कि वह दरवाजे के पास ही खड़ी थी। घर में अंदर आ कर उन्होनें बैठने के लिये कहा तो सोफे पर बैठ गया। घर सुरुचिपुर्ण तरीके से सजा था। मेरे बैठने के बाद वह पानी ले कर आ गयी और बोली कि चाय पीयेगे या कॉफी? मैनें कहा कि जो आप को पसन्द हो वही बना ले, मैं दोनों पी लेता हूँ। मेरी बात सुन कर वह चली गयी। फिर कुछ देर बाद लौटी तो उन के हाथ में डीएसएलआर कैमरा था, उसे मुझे थमा कर वह फिर से चली गयी।

जब लौटी तो उन के हाथ में कॉफी और नमकीन से भरी ट्रें थी। हम दोनों चुपचाप कॉफी पीने लगे। कॉफी पीने के बाद मैंनें कैमरा हाथ में ले कर देखा और उस की बैटरी डाल कर उसे स्टार्ट किया और उस को चैक करने लगा। फिर ज्यादा जानने के लिये उस के साथ आये मैनुअल को पढ़ने लगा। कुछ देर बाद मैंनें कैमरा ले कर उन की दो-चार फोटो ली और उन्हें कैमरे में उन को दिखाया तो वह बोली कि अच्छी आयी है। मैंनें उन्हें बताया कि बढ़िया कैमरा है, विडियों भी बना सकते है। लेंस भी अच्छा है। फिर मैं उन्हें कैमरें के फक्शन समझाने लगा। उन्हें शायद मेरी बात पुरी तरह से समझ नहीं आयी तो बोली कि मैं स्लो लर्नर हुँ, समय लगेगा मुझे इसे समझनें में।

मैंनें कहा कि इसे ऑटो मोड़ पर रख कर फोटो खीचें बढ़िया फोटो आयेगें। मेरी यह बात समझ में आ गयी। उन्होनें कैमरा हाथ में लेकर मेरी कुछ फोटो खींची फिर कैमरा मुझे थमा दिया। मैनें फोटोस को देखा तो वह अच्छी आयी थी। उन को फोटो खीचनें की मूल चीज की समझ थी। इस काम में काफी समय लग गया। रात हो रही थी सो मैंनें उन से चलने की अनुमति मांगी तो वह बोली कि खाना खा कर जाइयेगा। मैनें कहा कि आज तो संभव नहीं है फिर किसी दिन दैखेगें। मेरी बात सुन कर वह निराश सी दिखी तो मैंनें उन्हें समझाया कि आज में घर पर कुछ कह कर नहीं आया हुँ इस लिये घर पर बना खाना बेकार चला जायेगा। उन को मेरी बात समझ में आ गयी। मैं उन से विदा ले कर अपने घर के लिये निकल गया।

समागम

माधुरी की आंखें कुछ कह रही थी लेकिन मैं उस में जो था उसे देख कर अनदेखा कर रहा था। वह चुपचाप मेरे साथ बैठ गयी। कुछ देर बाद मैंने उसे अपने पास करना चाहा तो वह छिटक कर दूर हो गयी। मैं पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं है? मैंने कहा कि क्या पता नहीं हैं? वह बोली कि मुझ से प्यार करने में तुम्हें परेशानी क्यों है। मैंने कहा कि तुम्हें सब बताया था फिर भी तुम कुछ नहीं समझ रही हो। वह बोली कि मैंनें तो कुछ माँगा ही नहीं है केवल तुम्हारा प्यार माँगा था वह भी तुम देतें नहीं हो। मैंनें कहा कि अगर तुम सन्तुष्ट नहीं हुई तो परेशान तो नहीं होऊंगी। वह बोली कि तुम प्यार तो करो, मैं कोई शिकायत नहीं करुंगी। लेकिन तुम मुझे मौका ही नहीं दे रहे हो।

मैंनें उसे जबरदस्ती अपने पास घसीटा और अपने से सटा कर कहा कि नाराज तो मत होओ। वह बोली कि क्या करुं तुम मेरी कोई बात सुनते ही नहीं हो। मैंनें उसे आलिंगन में ले कर उस के होठों पर चुम्बन दे दिया। चुम्बन का प्रतिउत्तर ठंड़ा सा था। मुझे पता था कि वह सही में नाराज है मैं उसे कुछ नहीं दे पा रहा हूँ। वह ज्यादा कुछ नहीं चाहती है। मेरे मन में असफल होने का डर ऐसा बैठ गया था कि मैं आगे बढ़ नही नहीं पाता था। लेकिन आज मैंनें सोचा कि आज रुकना नहीं है, देखते है क्या होता है। दूसरी बार बांहों का कसाब बढ़ा कर फिर से उस के होठों पर अपने होठ रखे तो वह उन्हें चुमने लगी और उसकी जीभ मेरे मुँह में अठखेलियां करने के लिये घुस गयी। कुछ देर तक यही चलता रहा।

साँस फुल जाने पर चुम्बन से अलग हुये। इसके बाद मेरे होंठ उसकी गरदन का स्वाद लेने के लिये चेहरे से नीचे उतर गये। गहरे चुम्बन के कारण दाग सा बन रहा था लेकिन दोनों में से किसी को इसकी चिन्ता नहीं थी। दोनों प्यार के सफर पर चलने को तैयार थे सो अब कुछ और सोचने का वक्त नहीं था। गरदन के बाद मेरे होंठ उसकी छाती के मध्य आ गये और वक्ष के बीच की रेखा पर अपनी गरमी छोड़ने लगे। वह कोई प्रतिरोध नहीं कर रही थी। ब्रा के कारण और नीचे जाना संभव नहीं था।

मैं अभी उसका ब्लाउज उतारना नहीं चाहता था, उसको और अपने को पुरा गरम करना चाहता था सो उसके ब्लाउज के ऊपर से चुम्बन ले कर उस के पेट पर आ कर चुम्बन लेने शुरु कर दिये। फिर उस की नाभी पर गहरा चुम कर नीचे की संधिरेखा पर जीभ से चांटा। इस से माधुरी के शरीर में छुरछुरी सी उत्पन्न हुई। उस के बाद साड़ी पर से ही उस की जाँघों के मध्य चुम कर उस की जाँघों को सहलाते हुये पंजों तक पहुंच गया। उस की कोमल ऊंगलियों को होठों के मध्य लेकर चुसा और पंजों को हाथ से सहलाया। इस के बाद दूसरे पंजें के साथ भी यही किया। इस से मेरे शरीर में गर्मी बढ़ती जा रही थी। यह मैंरें जांघों के मध्य भी महसुस हो रही थी। हाथों से पंजों को सहला कर पेटीकोट के अंदर से जांघों को सहलाया। चिकनी जांघों पर मेरे हाथ फैरते ही माधुरी के शरीर में कंपकंपी होने लगी। मैंनें हाथ पेटीकोट से बाहर निकाल लिये।

अब ऊपर आ कर फिर से उस के उरोजों को ब्लाउज के ऊपर से ही मसलना शुरु कर दिया। वह कराहने लगी। फिर उसे पलट कर उस की पीठ पर चुम्बन लिये। कमर को चुम्बनों से भर दिया। हाथों से उस की कुल्हों को कस कर सहलाया। कुल्हों की गहराई में ऊगंली ऊपर से नीचे करी। फिर उसे पलटा और उस के होठों पर अपने होठ कस दिये। उस की बांहें मेरी पीठ पर कस गयी। मेरी जीभ उस के मुह में घुस गयी। जोरदार चुमा चाटी होने लगी। अब दोनों के शरीर गर्म हो चुके थे। वासना का तुफान दोनों के शरीर में पुरी तरह से भड़क गया था।

मैं यही चाहता था वह अपनी बांहों का कसाब कम नहीं कर रही थी। मैंनें उस के कानों में कहा कि सब कुछ मैं ही करुंगा वह क्या करेगी तो वह बोली कि मुझे अनुभव नहीं है, मैनें कहा यह कोई बहाना नहीं है उसे अपनी शर्म छोड़नी पड़ेगी तभी इस में मज़ा आयेगा तो वह बोली कि मैं क्या करुं? मैंनें कहा कि जो मैं कर रहा हूँ तुम भी वही करो। उस ने भी मेरी गरदन पर चुम्बन ले कर मेरी कमीज के बटन खोल कर छाती पर चुम्बन लिया और फिर निप्पलों को दातों में ले कर काटा, मेरी कराह निकल गयी अब वह मेरे पेट पर चुम्बन करती हुई नाभी को चुम कर पेंट तक पहुंच गयी। फिर पेंट की बेल्ट खोल कर उसे नीचे कर के ब्रीफ के ऊपर होंठ रख दिये। इस समय तक मेरे महाराज पुरी मस्ती में आ गये थे।

उस नें हाथ बढ़ा कर पेट को पंजों से निकाल कर नीचे डाल दिया। अब वह मेरी टांगों पर चुम्बन लेने लगी और पंजों को चुम कर फिर से ऊपर आ कर मेरे माथे पर चुम्बन लिया। मैंनें हाथ खोल कर कमीज को उतार दिया अब मैं केवल ब्रीफ में था। मैनें माधुरी की साड़ी को उतार कर बगल में रख दिया फिर उस के ब्लाउज के हुकों को खोल कर उसे माधुरी की बांहों को ऊपर करके उतार दिया अब वह स्कीन कलर की ब्रा में थी स्तन ब्रा में समा नहीं रहे थे। फिर हाथ उस की पीठ पर ले जा कर ब्रा के हुक खोल कर उसे भी उतार दिया उस ने उसे उतार कर एक तरफ रख दिया अब उस के उरोज मेरे सामने थे। इस उम्र में इतने भरे और पुष्ट स्तन मैनें तो देखे नहीं थे। मैनें हाथ बढ़ा कर एक स्तन को सहलाया तथा दूसरे को अपने मुहं में ले लिया। वह आहहहहहहहहहह आहहह उईई करने लगी।

मेरे हाथ उस के उरोज को बुरी तरह से मसल रहे थे। वह बोली कि इतनी जोर से मत करे दर्द हो रहा है। मैंने अपने पर काबु किया, फिर दूसरे उरोज को मुँह में लिया और पहले वाले को सहलाना शुरु कर दिया। उस के निप्पल तन कर लम्बें हो गये थे। मैं उन्हें होठों में ले कर चुसने लगा। काफी देर तक उस के उरोजों से यह होता रहा फिर मैनें हाथ नीचे कर के उस के पेटीकोट का नाड़ा खोल कर नीचे खिसका दिया और हाथ पेंटी में डाल कर उस की योनि को सहलाया। माधुरी अब बुरी तरह से कांप रही थी। मेरा ध्यान अब पुरी तरह से नीचे जाँघों के मध्य में था। पेटीकोट खिसका कर नीचे से उतार दिया। फिर उस की पेंटी को भी उतार दिया, अब माधुरी मेरे सामने बिल्कुल नंगी थी।

मुझ से अब रहा नहीं गया और उस की जाँघों को चौड़ा कर के उस की योनि को चाटना शुरु कर दिया। योनि पर नमी थी। जब एक ऊंगली योनि के अंदर डाली तो पता चला कि अंदर नमी ही नमी थी। कुछ देर योनि में ऊंगली अंदर बाहर करी ताकि माधुरी तैयार हो सके। अब अपनी ब्रीफ उतार कर उसकी जांघों के बीच बैठ कर हाथ से लिंग को पकड़ कर योनि के मुह पर लगाया और उस से योनि को सहलाया, फिर लिंग के सुपारे को योनि के अंदर डालने के लिये जोर लगाया, लिंग पहली बार में योनि में घुसा नही। दूबारा से लिंग को योनि के मुह पर लगा कर घक्का दिया तो वह योनि में चला गया। योनि में नमी के साथ कसाब भी था। माधुरी ने हल्की सी आह करी मैनें अब जोर से धक्का दिया तो लिंग पुरा अंदर घुस गया, दर्द के कारण माधुरी आहहहहहहहह आहहहहहहहह उहहहहहह करने लगी।

मुझे लगा कि लिंग को बाहर निकाल लु तो मेरी बात समझ कर माधुरी ने अपने हाथों से मेरे कुल्हें जकड़ लिये। मैं धीरे-धीरे घक्कें लगाने लगा। कुछ देर बाद माधुरी भी नीचे से कुल्हें उछाल कर जबाव देने लगी। काफी देर तक ऐसा ही चलता रहा। मैंनें माधुरी को अपने से चुपका कर करवट बदल ली और माधुरी अब मेरे ऊपर आ गयी वह कुछ देर ऐसे ही खड़ी रही फिर कुल्हें उठा कर लिंग को अंदर बाहर करने लगी। मैं उस के उरोजों के साथ खेलने लगा। मैंने उस के कुल्हों को अपने हाथों से दबोच रखा था। कुछ देर बाद वह थक कर रुक गयी। अब मैनें उसे नीचे कर दिया और उस के ऊपर आ कर लिंग को अंदर बाहर करने लगा।

गरमी में शरीर चल सा रहा था पसीने से सारा बदन नहा गया था। जोर जोर से धक्कें लगानें शुरु कर दिये वह भी नीचे से साथ दे रही थी। कुछ देर बाद मुझे लगा कि मैं अब चरम पर पहुंचने वाला हुँ तो गति और बढ़ा दी। फिर आंखों के आगें अधेरा छा गया और में स्खलित हो गया। थक कर माधुरी के ऊपर ही लुढक गया। जब होश आया तो उठ कर उस की बगल में लेट गया। करवट ले कर देखा तो माधुरी भी हांफ सी रही थी उस की छातियां ऊपर नीचे हो रही थी। मैनें हाथ से उस के पेट को सहलाया।

उस ने मैनें हाथ को थाम लिया। उस ने मेरी तरफ मुह कर के कहा कि जान निकली ही बाकि रह गयी थी। इसी बात के लिये तुम डर रहे थे। पच्चीस मिनट से ज्यादा टाईम लगा है, और कितनी देर का इरादा था? मैनें कहा कि पता नहीं क्या हुआ है पत्नी के साथ तो मिनट भी नहीं चलता है। वह बोली कि मुझे नहीं पता लेकिन आज तो काफी समय लगा है। इतनी देर में तो कोई भी औरत तुम्हारी कायल हो जायेगी। मैंनें कहा कि अगर इतनी देर टिक सकता हूँ तो चिन्ता की कोई बात ही नहीं है। माधुरी ने उठ कर मेरे होठं चुमें और मेरे ऊपर लेट गयी और बोली कि बहाने बनाना बंद करो। जान निकाल देते हो। बहाना करते हो कि समागम में मज़ा नहीं आयेगा।

मुझे तो बहुत मज़ा आया। तुम से कोई शिकायत नही है। मैंने उसे बाहों में कस लिया और कहा कि चलों कोई तो सन्तुष्ट हुआ। यह सुन कर उस ने पुछा कि और कौन है? मैनें कहा कि जलो नहीं, कोई और नहीं है। वह नीचे उतर कर बोली कि कपड़ें पहन लो, लेकिन पहले शरीर साफ कर लो, मैं टॉवल लाती हूँ यह कह कर वह वाशरुम में चली गयी। जब आयी तो उस के हाथ में गिली टॉवल थी। मैनें उसे ले कर अपने लिंग को और शरीर को साफ किया। फिर उस को पास करके उस के अंगों की भी सफाई कर दी। वह कपड़ें पहननें लगी और मैं भी उठ कर कपड़ें पहनने लगा।

इस के बाद वह चाय बनाने चली गयी। चाय लेकर आयी तो मुझे चाय देकर बोली कि तुम झुठ मत बोला करों तुम्हें बोलना आता नहीं है। मैनें कहा कि तुम औरतों के साथ बड़ी मुश्किल है अगर सच बोलों तो उस पर यकीन नहीं करती हो? अगर इतना समय संबंध में लगता होता तो तुम्हें इतना क्यों तरसाता। क्या मेरा प्यार करने का मन नहीं था। इसी डर की वजह से झिझक रहा था, आज जो हुआ है वह मेरी समझ से बाहर है। जल्दी स्खलित होने की वजह से मैं हमेशा परेशान रहता था। तुम्हारें साथ क्या हुआ है मुझे नहीं पता। जो हुआ अच्छा हुआ है।

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