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Click hereदोस्तों मैं हूँ पूजा, पूजा मस्तानी एक बार फिरसे आपके समक्ष आपके मनोरंजनके लिए एक और अनुभव के साथ।
बात उन दिनों की है जब 18 वर्ष की थी और इंटर द्वितीय की छत्रा थी। आप सबको मालूम है की मैं 18 वे वर्ष में प्रवेश करते ही अपनी कुंवारापन हमारे पड़ोस के अंकल सो खोई। उस समय एक शादी अटेंड कारने के लिए पूरे घर वाले शहर से बाहर जा रहे थे, और मेरे इंटर की क्लासेज शुरू होने की वजह से मैंने उनके साथ जाने को मना किया। तब मम्मी ने मुझे पडोसी आंटी, अंकल के देख रेख में छोड़के ग यी। घरवाले जाने के दूसरी रात अंकल ने मेरी कुंवारापन लूटी जिसमे आंटी भी शामिल थी।
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वह मेरी पहली चुदाई थी तो मुझे भी खूब मजा आया। उसके बाद दो तीन बार आंटी ने किसी काम के बहाने मुझे अपने घर बुलाती थी और अंकल से मुझे चुदवाती थी। अब हालत मेरी यह हुयी की मैं हर समय लण्ड, चूत और चुदाई के खयालोमें खोजाती थी। इस घटना के बाद छह महीने गुजर गए। अब मुझे अंकल से उतना मजा नहीं मिल रही है जितना पहले दिनों में मिलती थी। मैं उनसे ऊबगयी और मैं अपनी मस्ती बुझाने के लये मेरे में एक नए लंड की चाहत नींव लेने लगी।
मेरी बुर में खुजली होने लगी और मेरे मस्तियाँ में ठीस उठने लगी। मैं किसी नए लंड से चुदवाना चाह रही थी। इसी समय कॉलेज में गणित में मेरे अंक (Marks) कम होने लगे। गणित मेरे दिमाग में बैठता ही नहीं था।
मम्मी पापा ने मुझे गणित सीखाने के लिए एक ट्यूशन मास्टर को रखे।
मेरे ट्यूशन मास्टर का नाम है रोहन सिंह, नार्थ इंडियन, कोई 35 साल की उम्र होगी। अच्छे तंदरुस्त शरीर वाले है। सिर के पिछले हिस्सा (तालू) से गंजे (bald) हैं। शादी शुदा है (यह बात मुझे बाद में मालूम हुई)। हमारा क्लासेस शुरू हो गये। हमारे घर के छतपर एक खली कमरा है जिसे मेरे ट्यूशन के लिए दिया गया है। शाम के छह बजे से रात के आठ बजे तक टूशन चलती थी। पहले एक महीने में घर के कोई न कोई सदस्य किसी न किसी बहाने कमरे में आते थे। वह इस लिए आते थे की एक मर्द एक जवान लड़की कमरे में अकेले है कुछ अन्होनी न होजाये।
दूसरे महीने से उनका डिस्टर्बन्स (disturbance) कम हुआ। एक और महीना गुजरते ही वह भी न के बराबर हुआ। पहले दो महीने ठीक से रहने वाले मेरे ट्यूशन मस्टर की नजरों में कुछ तब्दील आयी। मुझे लिप्सासे भरे आँखोंसे देखने लगे। मैं उनक आंखोमे मेरे प्रति कामतृष्णा को देख पायी। मैं जरा भी इधर उधर हुई तो मेरे उभरते स्तनों को देखने की कोशिश करने लगे। मैं ट्यूशन में ज्यादातर स्कर्ट, शर्ट पहनती थी। वह हमेशा ताक में रहते की कब मेरी स्कर्ट ऊपर उठे ताकि यह मेरे गोरे मुलायम जांघों का दर्शन कर सके।
कभी कभी मुझे किसी बहाने से टच करते तो कभी कलाई दबाते तो कभी कंधे को। ... मैं जान कर भी अंजान रहती थी, उपर से अपने शर्ट के बटन खोलकर या जांघों के बीच खुजलाते, उन्हें देख कर हँसते उन्हें प्रोत्साहन (Encourage) देने लगी। लगी। मामला यहाँ तक आया की वह कभी कभी मेरे स्कर्ट के ऊपरसे ही मेरे जांघों को पर हाथ रख देते थे। उनके हाथ रखते ही मेरे सारे शरीर में एक मीठी लहर दौड़ती थी।
ऐसे ही एक और महीन गुजर गया। युइशन मास्टर को मालूम पडचुकी है की मैं भी इंट्रेस्टेड हूँ, और मुझे तो मालूम है की उनका मुझ पर इरादा है। बस हम एक मौके की इन्तेजार मे थे।
मेरे टूशन शुरू होए चार महीने के ऊपर बीत गए है। जैसे की मैंने कहा हम एक मौके की इन्तेजार मे थे की कब मौका मिलेगी।
इस बीच मास्टरजी मेरे से आँख में देखते इशारों में पूछते की.. अपनी बुर दिखाओ... मैं नखरे करती, लाजाति 'न' में सर हिला देति थी। मास्टरजी मेरे 'न' का मतलब 'हाँ' समझ गए, और ऐसे ही एक दिन मुझे अपनी बुर दिखाने की इशारा करे और मुस्कुराते लजाते 'न' में सर हिलायी। मास्टरजी जी इधर उधार देखे की कहीं कोई तो नहीं, मेरे पास आकर मेरे कानों में फूस फसाये... "पूजा... तुम कितनी सुन्दर हो..." कहते मेरे कन्धों पर अपने दोनों हाथ लगाकर दबाने लगे ।
"सुसस्ससूऊउउ.. मास्टर जी.. यह क्या कर रहे है..आप..." मैं उनके समीप का आनंद लेती बोली।
"वही...जो तुम चाहती हो..." अपने हाथों का प्रेशर बढ़ाते बोले।
"में क्या चाहती हूँ.....?" मैं अपने दांतों से अपना निचला होंठ काटते पूछी।
"कहूँ...?" मास्टरजी.. मेरे कानों के पास मुहं लेकर बोले।
"कहिये.. मैं क्या चाहती हूँ..." में अपने आंखे नचाते बोली।
"तुम अपनी बुर...." वह कह रहे थे की बाहर कोई होने की आभास मिली। झट उन्होंने अपने कुर्सी पे बैठे। और मैं जल्दी से मेरे हाथ अपनी जांघों के बीचसे निकाल सीधी हुई। मेरे छोटे चाचा... अंदर आये और पूछे "मास्टर साहब हमारी पूजा कैसी पढ़ रही है...? मैथ्स कुछ सीख रही है या नहीं...?"
"वह तो बहुत अच्छी पढ रही है... और बहुत इंटरेस्टेड भी है..."
"अच्छा... किसमे इंटरेस्ट दिखाती है...?"
"वो... वो... मेरी ओर मुस्कुराते देखे और आँखों से इशारा करते पूछे... 'बोलूं...'
"हाँ... बोलदो.." मैंने मेरा सर हिलायी।
"वो... वो... तो अलजेब्रा (algebra) में इंटरेस्ट ले रही है..."
"गुड...." कहते चाचा बाहर निकल गए...
मास्टरजी मुझे देख कर मुस्कुराने लगे।
"क्या हुआ...? बोले क्यों नहीं...?" मैं मेरे होंठों को चबाते बोली।
"तुम्हारा लिहाज किया..."
"अच्छा... अबकी बार नहीं करना.. जो है वह बोलना..." में उसे रिझाते बोली।
मेरी इस बात पर वह सन्न रह गया....
"अच्छा बहुत होगयी... अब पढ़ाई शुरू करे...?" मास्टरजी अपने आपको सँभालते कहे।
"हाँ... हाँ... क्यों नहीं.. पढाईये न... क्या पढ़ाएंगे...? कहते मैं मेरे कुर्सी से उठी और उनके कुर्सी के पीछे ठहर कर... मेरे कोहनियां... उनके कंधे पर रख.... आगे झुकती... पूछी... "क्या पढ़ाएंगे बोलिये न; यही पढायेंगे न" मैं बोली और मेरे हाथों को निचे खिसका कर उनके जांघों के बीच की उभार को मुट्ठी में दबाती पूछी। "यही.. न..." मैं बोली और उनके कान के लौ को चुभलाई। चाचा आके गए हैं तो अभी और कोई आनेवाला नहीं.. मेरे में यह हिम्मत थी।
उस शाम ट्यूशन के बाद जब मैं निचे गयी तो चाचा पूछे... "पूजा.. ट्यूशन में क्या बातें चल रहीथी...?"
"कुछ तो नहीं चाचा..." मैं अपने दिल की धड़कन को काबू में करते बोली।
"मैंने तो तुम लोगों की बातें करते सुनी थी..." पूछे। मैंने नोट किया की चाचा की नजरें मेरे छाती के ओर थे। शर्ट के सामने के दो गुंडियां खुली थी जिसकी वजह से खुले में से मेरी ब्रा, और चूची की ऊपरी उभार की झलक दिख रही थी। मैं सकुचाते एक हाथ से में शर्ट को गुंडी लगते बोली "मास्टरजी एक प्रॉब्लम समझाए थे.. उसकी बारे में सवाल कर रहे थे तो मैं जवाब दे रहीथी... शायद आप वही बातें सुनी होगी..." मैं अपने आप को सँभालते बोली।
चाचा मेरी छाती की ओर ही घूरते.. "पढ़ाई से ध्यान बटने नहीं देना..." बोले।
"जी.... चाचाजी..." मैं कहीं और वहां से निकल भागी।
दूसरे दिन मैं ट्यूशन मास्टर से पूछी... "क्यों मास्टरजी.. कल बहुत धमका रहे थे की "बोलूं क्या...? बोले क्यों नहीं...?" में उन्हें चेढ़ते पूछी।
"पूजा छोड़ो वह किस्सा.. किताबें निकालो" कहते पढाने लगे।
मैं भी सब्जेक्ट पर ध्यान देने लगी। लेकिन यह किस्सा कोई आधा घंटेसे ज्यादा नहीं चला। मास्टरजी फिर अपने रूटीन पे आगये। फ्लाइंग किस्सेस देना.. आंख दबाना.. जैसे हरकते करते रहे। मैं भी उन्हें रिझाते, लजाते, मुस्कुराते, चेढ चाढ़ कर रही थी। यह सिलसिला पंद्रह दिन चला। जैसे की मैंने कहा मैं ज्यादा तर स्कर्ट और शर्ट पे रहती थी। जब भी में स्कर्ट पे होती हूँ तो मास्टरजी.. किसी न किसी बहने टेबल के निचे झुकते थे...
मुझे पक्का होगया की वह क्यों झुक रहे है.. वह मेरी स्कर्ट के अंदर झाँकना चाहते थे। जब भी वह निचे झुकते में अपने जाँघे बंद करती थी। जो वह देखना चाहते वह नहीं दिखती थी। एक लम्बी आह के साथ वह उठ जाते थे। कभी कभी तो वह होंठों में बुद बुदाते थे.. 'साली....'
मैं उनकी बुद बुदाना सुनकर अपने आप में हंसती थी। हम दोनों को मालूम है की हम एक दुसरे से चुदाना चाहते है...
"एक दिन उन्होंने पूछ भी लिया... "पूजा ऐसा कब तक चलेगा...?"
मैं अनिबघ्नता से कंधे झटकाते मुस्कुराकर रह जाती थी।
आखिर पंद्रह दिन बाद हम दोनों की इंतजार का दिन आया... इस बीच मैंने यह नोट किया की आज कल चाचा मेरी ओर कुछ ज्यादा ही ताकने लगे। जब भी मैं चलती हूँ तो मुझे मेरे नितम्बों पर एक चुभन सी महसूस होती थी। पलटकर देखती तो चाचा मेरी मटकती कूल्हों को ताकते पाती। इसके अलावा किसी न किसी बहाने चाचा मुझे छूने लगे। कभी मेर गाल को चिकोटी काटते तो कभी नाक को; कभी कंधे पर हाथ डालते तो कभी पीठ सहला देते थे। पहले कुछ अजीब लगता था मुझे, लेकिन अब मैं भी उनकी हरकतों का जायका लेने लगी। लेकिन कोई बात चीत नहीं होती थी। हर हरकत खामोशी से होजाता था।
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मेरे अर्ध वार्षिक परीक्षा (Half yearly) एक्साम्स का शेड्यूल आगया। मैं रेगुलर कॉलेज और ट्यूशन अटेंड करने लगी। इन्ही दिनों में मेरे मौसी (माँ की छोटी बहन) की बेटी की शादी का डेट आगया। मेरी परीक्षा के वजह से मैं नहीं जा सकी, घर की बाकि सदस्य जाने की तैयारी करने लगे। वैसे तो उन्हें दो दिन रुकना था.. लेकिन मेरी एग्जाम्स वजह से उस शाम को ही लौटने का विचार कर रहे थे। उस सवेरे, घर के सभी सदस्य शादी के लिए निकल पड़े और मैं कॉलेज के लिए।
शाम को जब वापस आया तो आईडिया आया की क्यों आज का मौका हमारी काम वासना मिठाने को सोची। शाम को वैसे ट्युशन मास्टर आएंगे ही..
में झट बातरूम में घुसी, पहले तो मैंने वहां पंद्रह दिनों स उगे झांटों को शेव किया फिर खूब मॉल मॉल कर पानि नहायी।
जब तक मास्टरजी आते मैं अपने बालों को दो पोनी टेल में बांध एक लाल रंग का rubber band लगायी। वूदा और येलो कलर की चेक स्कर्ट पहनी और सफेद हाफ स्लीव्स शर्ट पहनी। मेरी चमक धामक देख मास्टर जी का मुहं खुले खुला रह गया।
"पूजा.. घर सुन सान है.. कोई नहीं है क्या..." पूछे।
"जी मास्टर जी.. सब मैरिज को गए है... आठ बजे तक आजायेंगे..." में जान भूझ कर समय बताया। फिर हम हमेशा की तरह ऊपर मेरे स्टडी रूम में पहुंचे। मास्टरजी के मन में क्या है मालूम नहीं लेकिन उन्होंने मुझे पढाने के लिए किताबे नि काली।
"ओह.. मास्टरजी... आज पढ़ाई नहीं..."
"अरे.. तुम्हारे एक्साम्स चल रहे हैं... अंक कम आये तो तुम्हारे घर वाले मुझे कहेंगे की मैंने नहीं पढ़ाई।"
"वैसे कुछ नहीं होगा मास्टरजी... कल का सब्जेक्ट में परफेक्ट हूँ... पढ़ाई नहीं.. प्लीज.."
"फिर क्या करेंगे...?"
"कुछ भी...."
"कुछ भी क्या मतलब... अच्छा चलो चैस खेलते हैं..."
"ओह मास्टरजी.. चैस बोर है..." मैं बोली।
"तो फिर क्या करेंगे भाई... कुछ तो बोलो..." मैं समझगयी की मेरे मन में क्या है...मास्टरजी समझगए.. लेकिन मेरी ओर से पहल होने की वेट कर रहे है...
"मास्टरजी.. वह क्या है की.. हम..." मैं रुक गयी...
"वूं... हम क्या.." कुछ कहो तो..."
"हम बॉय फ्रेंड, गर्ल फ्रेंड का खेल खेलेंगे..."
मैं ऐसा बोलते ही उनके आँखों में चमक आगयी... फिर भी बोले... "पूजा यह क्या कह रही हो...?"
"वही जो आप चाहते है मास्टरजी.. वहीँ जो मैं भी चाहती हूँ..." कहते मैंने अपने शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिए। आज मैं ब्रा नहीं पहिनी थी। बटन खुलते ही.. मेरे स्वर्णिम वर्ण की उभारों को देख कर मरटजी के मुहं में पानी आगया।
में नाज नखरे करते मेरे सीट से उठी और मास्टरजी के सामने टेबल पर बौठि। मेरे हथेलियों पर ठेका लेकर पीछे को झुकी और मेरे टांग पर टांग चढ़ाई। जैसे ही मैंने टांग चढ़ाई मास्टरजी फिर से मेरे जांघों में झाँकने की कोशिश करे।
"लगता है बहुत खुजली हो रही है..."
"हाँ मास्टरजी... आप मेरी खुजली मिटायीये ना..." मैं मादकता से बोली।
मास्टरजी आगे बढे और मेरे शर्ट के बटन पर हाथ लगाए खोलने के लिए।
"वूं हूँ.. मस्टरजी... पहले आप..." में अपने होंठों को काटते बोली।
"अच्छा बाबा..पहले मैं ही.." कहे और अपने शर्ट उतार दिये। "वह भी..." में उनकी बनियन ओर आंख घुमाई... मास्टर जी ने बनियन भी निकाल फेंके... अब मास्टरजी कमर के ऊपर नंगे थे। "पूजा कहीं तुम्हार घर वाले न आजाये" वह कहे।
"एक मिनिट" मैं कही और मेरे फ़ोन पर घरवालों से बात करि। "वह रात के आठ बजे तक आएंगे..." मैं बोली।
"ओह बहुत समय है... अभी तो सिर्फ 5 ही बजे हैं" कहते उन्होंने मेरी शर्ट के गुंडियां खोलने आगे झुके।
मैं कोई जवाब नहीं दी पर उनके मेरे शर्ट खोलने लगे तो फिर से रोकी।
"अब क्या हुआ....?" मेरी ओर देखते पूछे।
"मास्टरजी अपने निचे का नहीं खोले..." मैं बोली।
यह लो.. यह भी खोल देता हुं..." कहे और एक साथ अपने पैंट और अंडरवियर निकाल दिए। मैं उनके जांघों के बीच मेरी नजर गढ़ाई। उनका लिंग फुल तनकर, रह रहकर सर हिला रहि है...
मास्टरजी का लंड भी मेरे नेबर अंकल कि लंड जैसे ही है। लगभग उतना ही लम्बा और मोटा.. उसे देखते ही मेरे मुहं में पानी आगयी। उनका कोई छह इंचकी लम्बाई होगी, मोटापा नार्मल है और उनके लिंग गोरा है। नास्टरजी खुद फेयर कलरके है। लिंग के इर्द गिर्द घने काले बाल।
"अब तो परमिस्शन है..." कहते मेरी शर्ट के बटन एक एक करके खोलने लगे। पहले से ही मैं दो गुंडियां खोली थी तो बाकि के गुंडियां खोलने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगा।
पूरे गुंडियां खोलकर, शर्ट को इधर उधर करे तो मेरी मध्यम साइज के मोसंबियाँ उनकी आँखों के सामने लहराई। "ओह ... मै गॉड पूजा कतने मदभरे हैं तम्हारे..." कहे और एक को मुहं में लेकर चूसते दूसरे पर हाथ फेरे।
"सससससममममम" मैं मस्ती में डूबती सिसकारी ली और उनके सर को मेरे छाती पे दबायी।
मास्टरजी मेरे दुद्दुओं को चूसते... चूसते एक बार निपल को दांतों तले दबायेतो; मेरीतो जान ही नकल गई। आखिर मैं भी तो चुदास थी, लंड की प्यासी थी। मेरी बुर में चुदास के कीड़े खलबलि मचाने लगे।
"मास्टरजी .. अब रहा नहीं जाता... आइए प्लीज.. मेरी खुजली मिठाइये..." मैं उन्हें अपने ऊपर खींचती बोली।
"पूजा डियर.. तुम मेरी गाजर नहीं चखोगी..." कहे वह अपने सर उठाये और अपने लंड को मेरे आँखों के सामने एक बार लाहराये।
पाठकों याद् रहे मैं मास्टरजी के सामने मेरी स्टडीटेबल परथी। मास्टरजी चखने को कहे तो झट मैं टेबल पर से उतरी और मास्टरजी के कुर्सी पर बैठी। अब मास्टरजी टेबल पर बैठे और अपने टाँगे खोल दिए। उनका मुस्सल छत को देख रही थी। मैं आगे झुकी और उन्हें मेरी मुट्ठी में बांधकर दो तीन बार हाथ चलायी और आगे झुक कर उसे किस करि। एक अजीब गंध मेरे नथुनों में बस गयी। उस गंध से मेरी चुदासी और बढ़ी।
उस मुस्सल के महक का आनंद लेती मैं अबकी बार उनका पूरा अग्र भाग मेरे मुहं में लेकर चूसी।
"आआआहहहहह....पूजा...."कहते मस्टरजी ने मेरे सर को जांघों में दबाये। इतना जोर से दबाये की मेरी सांसे चलना मुश्किल हो गई।
"चूसो.. पूजा.. चूसो.. कैसी है मास्टरजी का... लंड का स्वाद...?" कहते वह निचेसे मेरे मुहं में लंड को दबाने लगे। एक बार तो वह मेरे हलक में चली गयी। मैं उनपर अपना मुहं चला रही थी तो उन्होंने निचेसे मेरे मुहं को फ़क (fuck) कर रहे थे। चूसो.. चूसो.. आआह" मास्टरजी कह रहे थे... और मैं जोश मे मेरा मुहं ऊपर निचे करते उनके वृषणों से खिलवाड़ रहीथी।
बस कोई पांच छह मिनिट लंड को चूसती रही तो उन्होंने "mmmmm...aaaaaa... sssssss....choose.... ले मास्टरजी के गाजर को और अंदर ले... आआअह्ह्ह्हह...ले...आअह्ह्ह... मेरी होगई... हो..गयी..." कहे और मेरे मुहं अपना गर्म वीर्य से भरने लगे। एक बार तो उनके sudden शूट से में गभरा गयी.. लेकिन जल्दी ही संभल कर सारी मदन रस को चाहत के साथ मेरे गलेके निचे उतारने लगी।
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"आअह्ह्ह...मममम.. मास्टरजी.. चोदो मेर मुहं को.. और अंदर डालो आपके जीभ को... अहा.. अहा..." मैंने जोश में चिल्लाते मेरे कमर को ऊपर उठाते उनके मुहं पर दबा रही थी।
मास्टरजी मजे से अपने जीभ से चोदे जा रहे थे।
मास्टरजी का लस लसा से मेरा मुहं भरते ही मेरे आंखे बंद होने लागि। जब होश आकर आंखे खोली तो, मास्टरजी मेरी स्कर्ट और पैंटी उतार फेंके और मेरी चूत को चूमने लगे।
"आह्हः... मास्टरजी.. मैं कही।
"ओह पूजा होश आया.. वह क्या मॉल है तुम्हरा...." कहे और फिर अपना मुहं में मेरा भर लिए। मैं उनके चुम्मों का और चूसने का आनंद लेते मेरे कमर को उठारही थी। मेरी चूत चुदाने का कार्यकम का कोई 12/15 मिनिट से चल रही थी। तब तक में दो बार झड़ चुकी थी। अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रही है।
"मास्टरजी आईये.. प्लीज.." में उन्हें रिक्वेस्ट करने लगी।
"ठीक है चलो... तुम्हरी इच्छा भी पूरा करते हैं..." कहे और मेरे जांघों के बीच से अपना सर उठाये, मुझे देख कर एक बार हांसे... और अपना औजार पकड़कर मेरे जंघों में आये। मैंने अपनी जांघें पूरी तरह से पैलादि। अपने डिक हेड को मेरी गुलाबी फांकों पर चलाये तो में मस्ती में पागल हो गयी।
अपने मुस्सल फांकों के बीच फंसकर बोले "पूजा अंदर जा रहा हूँ..."
"जल्दी घुसेडो प्लीज..." में कमर उछाली।
मास्टरजी ने एक शॉट दिए... उनका आधेसे ज्यादा मेरे अंदर चली गयी। "मास्टरजी का लंड रगड़ मैं अपने चूत के दीवारों पर महसूस करि। "आअह्ह्ह्ह..." मैं खुशी से सीत्कार करते मेरी गांड उठायी।
उन्होंने अपना सुपडे तक बहार खींच फिर एक शॉट दिए। अब उनका मेरे अंदर जड़ तक चली गयी। उनका का पेडू (crotch) मेरे पेडू को टच करने लगी। फिर हमारी चुदाई शुरू हो गयी। धना धन उनका मेरे अंदर बहार हो रहा था। चुदाई की सुख से मैं चिल्ला रही थी तो उन्होंने गुर्राना शुरू करे।
कोई आठ दस मिनिट के चुदाई के बाद, उनका लंड मेरे अंदर सख्त होने लगी। मैं समझ गयी की अब वह झड़ने वाले हैं। तभी उन्होंने कहे "पूजा अब रहा नहीं जाता... मैं झड़ने वाल हूँ .. कहा झडूं..." पूछे।
तब जाके मुझे होश आया की में तो असुरक्षित हूँ... और peak पीरियड में हूँ। मास्टरजी के वीर्य से मैं प्रेग्नेंट हो सकती हूँ..."
"अंदर नहीं.. मस्टरजी अंदर नहीं.. बहार निकालो.." कहते मैं उन्हें मेरे ऊपर से धकेली। जैसे ही उनका बहार निकला यह मेरे ऊपर खलास होने लगे.. उनका घाढा, सफेद बूंदे मेरे पेटपर नाभिपर गिरने लगी। दो या तीन मिनिट तक उन वीर्य मेरे शरीर पर गिरी और उनका नरम पड़ने लगा...
बस उसके बाद मैं और मास्टरजी.. मौका देख कर चुदाई करते रहे.. और एक दिन मैं मस्टरजी जी को चूस रहीथी तो मेरे चाचा, मुझे देख लिए। मेरी तो जान ही निकल गयी... मास्टरजी भी ढर के मारे.. ख़ामोशी से बाहर चले गए...
उसके बाद क्या हुआ यह किस्सा अगली कड़ी में बताउंगी...
इस एपिसोड को पड़ने के लिए धन्यवाद... आपके कमेंट जरूर दे। फिर मिलेंगे अगली कड़ी में...
तब तक के लिए आपकी पूजा मस्तानी को इजाजत दीजिये।
आपकी पूजा मस्तानी
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