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Click hereशशांक भैय्या दूल्हा बने स्वीट सुधा 26
उस दिन शशांक भैय्या को दूल्हा बनाने का प्रोग्राम था। ग्यारह बजे प्रोग्राम थी। इस प्रोग्राम में दूल्हे को हल्दी, चंदन और दूसरे सुगंध दव्यो को शरीर पर लेप कर फिर निहलाया जाता है। यही विधि दुल्हन बनानेके लिए भी होता है। इस में घर के औरतें और दुल्हन की घर से मिनिमम पांच औरतें होतो है। सुबह दस बजे तक दुल्हन के घर से पांच औरतें आयी है।
उनके देखबाल का जिम्मेदारी बड़ी माँ ने मुझे सौंपी। मैंने उन्हें ऊपर छत पर एक बड़ा सा हॉल जैसा कमरा है, उसके साइड में बाथरूम/टॉयलेट है। मैंने दुल्हन के घर वालों को इस में रहने को कही। उन्हें तैयार होने को कह मैं मार्किट गयी और 6 मैट्रेस्सेस (mattresses) किराये पर ले आई।
ग्यारह बजते भैय्या को हॉल में बिठाया गया! और औरतें उन्हें हल्दी, चन्दन लगाने लगे। सबसे पहले बड़ी माँ (भैय्या के मम्मी) ने लगाया! उसके बाद सब लगाने लगे। भैय्या के शरीर पर एक छोटा सा पतला टॉवल था जो घुटनों तक ही आ रहा था। उस टॉवल में भैय्या शर्मा रहे थे। सब औरतें खिला खिलाकर हँसते भैय्या को चन्दन, हल्दी लगा रहे थे। वह रस्म ख़त्म होने के बाद उन्हें बाथरूम भेजा गया और दुल्हन के तरफ से पांचो औरतें भी अंदर घुस गए उन्हें नहलाने।
भैय्या ना, ना कर रहे थे लेकिन उनका कोई नहीं सुन रहा था। मैं एक दो दुसरे औरतें भी वही थी। सब ने मैं, मैं कहते भैय्या पर पानी दाल रहे थे और उन्हें रीटा की झाग से शरीर को मल रहे हे। इस अपरा धपरी में औरतों का किसी का साडी फिसल रहा है तो, किसीकी चूची दिख रहीथी। मैंने देखा की भैय्या यह सब देख कर शरमा रहे थे और उनका ट्यूब में हवा भरने लगा... यह देख कर कुछ औरतें मुस्कुरा रही थी और एक दुसरे को इशारा भी कर रही थी। । भैय्या की दशा देख कर मुझे भी हंसी आ रही थी। इतने मे एक 40 की उम्र वाली औरत जो दुल्हन के तरफ से आयी है उन्होंने हलके से भैय्या टॉवल हटाने की कोशिश की और भैय्या झट अपना टॉवल सीधा करे।
ऐसे ही हंसी मजाक में पानी नहलाना हो गया, और भैय्या अब शादी के पीले पजामा और कुर्ता पहने थे। उसके बाद हम सबने खाना खाया और आराम करने चले। दुल्हन के घर से आए पांचों औरतें अपने कमरे में गए। कुछ देर बाद मैं उनके कमरे में पहुंची उनके कुछ जरूरत हो तो मालूम करने।। एक बुजर्ग महिला ने मुझे बुलाया और बैठने को कही। में वही पर्श पर बिछाये मैट्रेस्स पर उनके साथ बैठ गयी।
"तुम्हारा नाम क्या है बेटी?" एक बुजुर्ग महिला ने पुछा।
"जी... हेमा, हेमा नंदिनी.." मैं बोली।
"लड़का तुम्हारा भाई है क्या?" दूसरी औरत ने पुछा।
"हाँ! सागा नहीं, कजिन है, मेरे बड़ी माँ के बेटे.."
"उसका कोई भाई बहन..." एक और महिला ने पोछा।
"हाँ, एक छोटी बहन और भाई है। श्वेता और अरुण है..."
फिर उन्होंने अपना परिचय दिया। "यह है कौसल्या, दुलहन की बड़ी बहन, और यह है राशि, उसकी भाभी, इन दोनों की शदी लग भग 6 महीना के अंतर में हुआ है। शदी होकर दो साल हुए है। अभी किसी को कोई बच्छा नहीं है" मैंने उन दोनों को देखा, दोनों की उम्र लग भाग एक जैसी ही है, कोई 25-26 की होंगे। फिर उस औरत ने जिसने भैय्या के टॉवल हटने की कोशिश की थी, कोई 40 के लग भग रहने वाली औरत को बताकर बोली "यह है.. सुमित्रा; कौसल्या और दुल्हन की मौसी" इस औरत बहुत ही सुन्दर थी इस उम्र में ऐसी है तो जवानी में तो गजब ढायी होगी मैंने सोचा। "और हम दोनो दूर के रिश्तेदार है... कोई हमे काकी बूलाता है तो कोई मौसी ..."
"तुम्हार मैरिज हो गयी क्या?" कौसल्या ने मेरे गले में मंगलसूत्र देख पूछी।
"हाँ! डेढ़ साल पहले मेरि शादी हुई है।"
"तुम्हारी शादी बहतु जल्दी होगयी है"
"हाँ! रिश्ता हमे ढूंढता आया है तो.. मम्मी पापा ने शादी करदी।" मैं बोली।
उसके बाद हम लोग शाम के पांच बजे तक इधर उधर के बातें करते बिताये। बातों में मालूम हुआ की वह खम्मम टाउन से है। यह विजयवाड़ा से बस में या ट्रैन में दो, ढाई घण्टे का सफर (journey) है। मैं उठकर सब को चाय पिलाई।
****************
रत के नौ बजे थे। हम सब ने खाना झया और सब ने आराम करने अपने अपने कमरे में चले गए। मैं घर अये मेहमानों के साथ उपर छत वाले कमरे में थी। सबने मैट्रेस्स बिछाकर आराम से बैठे। "चलो एक रस्म तो पूरा हुआ..." उन बुजुर्गों में से एक महिला कही। "हाँ यह तो सही है.." दुसरे ने कहा।
"बोर हो रहा है.. कोई गेम खेलेंगे..." राशि बोली।
"क्या..."
"ताश हो तो ताश खेलेंगे..अच्छा टाइम पास होगा.." सुमित्रा ने कहा।
"में लाती हूँ.." कहकर मैं नीचे गयी और ताश के दो सेट लेकर आयी। सब ने ताश बाँटकर खेलने लगे... पॉइंट्स गेम था। मजा आ रहा था।
इतने में एक बुजुर्ग औरत ने दुसरे को देखते पूछी... "दीदी क्या ख्याल है तम्हारा... सब ठीक ठ!क है..." मुझे समझ में नहीं आ रहा था की वह किस बारे में बात कर रहे है।
"मस्त है.. कोई प्रोब्लेम नहीं होना चाहिए... देखा नहीं, कपडा भीगते ही उसका इतना मोटा दिख रहा था।" "हाँ मैंने भी देखा था.. सच में बहूत ही लाजवाब है..." कौसल्या बोली।
"वोतो है... मैंने भी देखा है.. देखा नहीं कैसे हम सब को घूर रहा था.. और अपना छुपाने की प्रयास कर रहा था.." राशि बोली। फिर मुझे देख कर पूछी "क्यों हेमा तुमने भी देखा है ना...:" यह बातें सुन कर मैं शर्म से लाल हो गई।
"ओये मेरी बहन की पति पर नजर मत डाल..." कौसल्या अपनी भाभी पर तंज कसते बोली।
"क्यों कहीं तुम्हारा नजर तो नहीं है.. उस पर..." सुमित्रा पूछी। सब खिल खिलाकर हँसे। इन बातों के बीच खेल रुक गया।
अब मैं समझ गयी की वह लोग किस बारे में बात कर कर रह है। वह सब लोग शशांक भैया की मर्दानगी के बारे में बातें कर रहे है।
असल में दुल्हन या दूल्हा बनाना नाम के लिए ही रस्म है.. वास्तव में यह सब अंदरूनी जानकरी लेने करते है... दूल्हन के घर वाले हल्दी, चन्दन लेप के बहाने और पानी नहलाने के बहाने दूल्हे का मर्दानगी का अंदाजा लगाते है की दूल्हा काम वाला है की नहीं। ऐसे ही दूल्हे की घर वालो दुल्हन के बारे में जान ने की कोशिश करते है। जब मुझे दुल्हन बना रहे तो भी ऐसे ही हुआ। मुझे नहलाते औरतें तरह तरह के बाते कर... चुदाई के बारे में मेरी जानकारी ले रहे हे। और मुझ से हसी मजाक कर रहे थे। मेरी ननद संगीता ने मेरी एक चुची को हँसते हुए दबायी और बोली.." हाय भाभी.. क्या मस्त है तुम्हरे.. भैया के तो होश उड़ जायेंगे.." कहते मेरे गलों को चूमि. फिर बोली " काश में मर्द होता...
तब तक मैं भी उस हंसी मजाक आनंद ले रहीथी तो पूछी.. "मर्द होती तो क्या करती?"
"अरे यह भी कोई पूछने की बात है क्या.. भैया के जगह मैं तुमसे शादी करता" कह एक बार फिर से मेरी उरोजोंको दबायी।
इतने मे एक औरत पूछी.. "ओये लड़की.. तुझे इस (चुदाई) बारे में कुछ मालूम है की नहीं..."
मैं सर और नीचे झुकाली।
"अरे बोलना ऐसी क्या शर्माती है... ऐसी शरमाओ तो पति के साथ रात कैसे बीतेगी।
जब तक में जवाब नहीं देती वह लोग मुझे छोड़े नही... अखिर लाजते बोली...
"हूँ..."
"किसी से करवाई है क्या..." एक और औरत पूछी।
"छी..छी। .." मैं शर्म से बोली।
"आरी लड़कियों.. ऐसे कोई बोलता है क्या... साड़ी उठके देख लो... मालूम हो जायेगा.."
मैं न न कहने पर भी दो औरतें जबरदस्ती मेरी साडी उठाये और लगे देख ने मेरो बुर को... में अपने आप को ढकने की कोशिश की लेकिन सब बेकार।
"वह.. मौसी.. देखो तो कितना चिकना और मुलायम है यह... " मेरी सफाचट बुर को देख कर बोली।
दो तीन औरतें मेरी बुर को अच्छा तरह से निहारे और एक ने हलके से ऊँगली भी की और कही... "बहुत तंग है.. लगता है लड़की सच कह रही है. शुक्र है मम्मी का उन्होंने मुझे पिटकारी पानी से अच्छी तरह से धोने की सलाह दी। नहीं तो मेरी.... वैसे मेरी कुंवारापन तो शशांक भैय्या ने ही ली थी।."
उसके बाद मेरे कमरे में कुछ औरतें मेरे होने वाले पति के बारे में भी ऐसी बातें कर रहे थे।
मैंने यह सब याद किया। इसी बातों मे गेम फिर से चालू हो गया। सुमित्रा नाम की उस ४० साल की औरत मुझ में कुछ ज्यादा ही रूचि ले रहि थी। वह बार बार मुहे ही देख रही थी। में भी उसे बेखि।
जैसे की मैंने कहा वह 40 की होगी गोरा बदन, साटन जैसी त्वचा, मुख पर एक अजीब चमक, उसके बाल लम्बे। उन बालों को उसने जुड़ा बनाया और एक जाली लगाई।
स्टार्च से इस्री के गयी साड़ी पहनी और मैचिंग ब्लाउज भी। आंखों पर सोने की फ्रेम वला चश्मा लगाई. एक हाथ के एक ऊँगली में सोने की अंगूठी, लेफ्ट हैंड को एक सोने की चैन वाली घडी और राइट हैंड में 4 सोने की कंगन। साड़ी इतनी सलीके से बांधी की उसका शरीर का कोई अंग बहार दिख नहीं रहां है! साड़ी उसके शरीर को पूरा ढकने के बाद भी साडी के नीचे से चूचियां बड़े बड़े दिख रहे है।
अरे एह सब खेल बंद करो... शादी का माहौल है.. मौज मस्ती करो.. चलो सब अपने अपने अनुभव बोलो..." एक बुजुर्ग औरत ने कहा।
"कैसा अनुभव...?" राशि पूछी।
"अरे वही.. शादी के सम्भदित यानि की अपनी अपनी सेक्स के अनुभव..."
"छी। आंटी.. कैसे बात कर रही हो..." कौसल्या ने कहा।
"क्यों.. क्या बुरी है मेरी बातों मे.. क्या तुम्हे अपनी पतियों से नहीं कर रहे हो क्या...?.. चलो.. सब शर्मा रह है.. मई ही मेरा अनुभव बोलती हूँ... मेरी चुदाई जब मैं टेंथ में थी तब हुआ..."
"अच्छा..तू किस से चुदगयी। .." दूसरी औरत ने पुछा।
"मेरे ही मोहल्ले वाला एक लड़का था..शायद इंटर कर रहा था.. मेरे पीछे पड़ा तो तरस खाकर एक दिन घर में बुलाई और.. खूब मजा ली।
"यह तेरे पीछे पड़ा या तू उसके पीछे...?"
"मरे पीछे पड़ा था..मेरे मटकते गांड देख कर फ़िदा हो गया था.. चल अब तू बता.. तेरा किस्सा.." वह दूसरी औरत से पूछी।'
यह सब मुझे तमाशा दिख रहा था... इतने बड़े उम्र के औरतें.. लेकिन फिर भी में उन्हें तारीफ करि क्यों की वह छोटों से मिल झूल गए।
"मुझे तो मेरे पापा के फ्रेंड ने ही पटाली। मेरे मम्मी पापा दो दिन के लिए बहार जा रहे थे तो उन्होंने अपने फ्रेंड को मेरे ख्याल रखने को कही, और उसने मेरी ऐसी रखी ख्याल।
"आरी लड़कियों.. तुम भी तो कुछ बोलो... क्यों सुमित्रा तुम्ही बोलो..." एक औरत बोली। लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। "लगता है यह जवान लड़कियां हम से शर्मा रहे है.. चल भाई.. हम नीचे सोते है.. इनको मजा करने दो..." और वह दोनों अपने चादर और तकिया लेकर नीचे हाल में सोने चले गए।
हम चरोंने भी यानिकि में, कौसल्या, राशि, और सुमित्रा लाइट ऑफ करे और बिस्तर पर पड़े। में उस दिन की घटना के बारे में सोच रहीथी। दिल में सोच रही थी की एक बार शशांक भैया से करवाए..
लेकिन कैसे.... शादी के बाद तो भैया, भाभी के हो जाएंगे.. फिर न जाने कब मौका मिले या न मिले...'यहीं सोच रहीथी।
मेरी एक ओर सुमित्रा थी तो दूसरी ओर राशि और कौसल्या अगल बगल सो गये थे। इतने में मी कानों में फुस फसाहट की आवाज आयी। रात के अँधेरा और बिलकुल निशब्द वातावरण मे ये आवाजें साफ़ सुनी जा रहीथी।
"भाभी..." कौसल्या कह रही थी "क्या भैया की याद आ रही है...?"
"हाँ कौसल्या..घरमे रहती तो अब तक एक राउंड होजाता था वैसे तुम्हारा पति यद् नहीं आ रहा है क्या...?" राशि की आवाज थी।
"क्यों नहीं भाभी...मेरी तो नीचे गीली भी हो गयी है.. उनकी याद मे..."
"अच्छा कौसल्या.. हर रोज करते हो क्या ..? कितनी बार..?" राशि पूछी।
"वैसे कभी कभी नागा हो जाता है... लेकिन जब लेते है तो दो बार तो करते ही है... और तुम...?"
"हम भी दो बार तो करते हि है.. कभी कभी सुबह के चार बजे भी..." राशि की आवाज थी।
फिर उस नीम अँधेरे में मैंने देखा की भाभी ननद एक दुसरे से लिपट गयी है.. और एक दुसरे को चूमने, चाटने लगे। उनके 'ooo ..aaaah' की आवाज़ों से मैं समझ गयी की भाभी ननद एक दुसरे के चूची मींज रहे है।
"भाभी एक बात पूछूं बुरा न माने तो...?"
"अरे तेरी क्या बुरा मान न..पूछ न..."
"भैया.. का कैसा है...?"
"तगड़ा..एकदुम मस्त... पूरा भर जायेगा... क्या तुमने अपने भैया का नहीं देखि..?"
"छी.. भैया का कोई देखता है भला...?" कौसल्या शर्म से बोली !
"क्यों नहीं... मैंने तो अपना बड़े भैय्या का बहुत बार देखि हूँ... भाभी को करते हुए ..."
"अच्छा.. कैसा था तुम्हारा भैया का...?"
"वह भी मस्त थी..बिलकुल तुम्हारे भैया की तरह... आह.. जरा जोर से दबाना...उम्म्म्म..."
कौसल्या एक बात बोलूं... तू बुरा मत मान ना..."
"बोलो न भाभी..."
"तुमने तुम्हारा भैया का नहीं देखि लेकिन तुम्हरे भैया तुम्हे बहुत बार नग्न देख चुके है..."
"क्या.. कब...? और तुम्हे कैसे मालूम की भैय्या मुझे देखे है..?"
"तुम्हारे भैया खुद बोले है.. कह रहे थे कौसल्या का देख ने लायक है.. उन्होंने तुझे नहाते, कपडे बदलते देखे है.. और तो और... उन्होंने कहा है की वह तुम्हारी पैंटी अपने लणड को लपेटकर मुठ मारते थे।"
अँधेरे में उसका मुहं नहीं दिख रहाथा लेकिन बिचारि का मुहं लज्जा से लाल हो गयी होगी।
"भाभी तुम्हे गुस्सा नहीं आया यह सब सुनकर...आअह. भाभी आह ऐसे मत खुरेदो" कौसल्या बोली।
"अरे गुस्से की क्या बात है.. मैं भी तो अपनी भैय्या का देखि हूँ ना..."
यह सब सुनकर मैं उत्तेजित होने लगी... और मेरी जांघों के बीच रस रिसने लगा और मेरी चूची में ठीस उठने लगी। मैं अपना हाथ मेरी चूची पर रखने की सोच ही रही थी की मेरी कमर पर एक हाथ गिरा। वह सुमित्रा के हाथ था जो मेरे बागल में सोई थी। पहले तो मई यही सोचा की उसका हाथ नींद में गिरी होगी! लेकिंन जल्दी ही मालूम पड गया की ऐसा नहीं था। मेरे कमर से उसका हाथ मेरे छाती की ओर रेंगने लगी। में खामोश सोने नाटक कर रही थी। सुमित्रा के हाथ मेरे उरोजों पर अ!ए और उसे एक के बाद एक दबाने लगी।
फिर उसने मेरे कमीज के अंदर हाथ दाल कर मेरी चूची पकड़ली और मेरे निप्पल को पिंच करने लगी। मेरे मुहं से एक आह निकलते निकलते रुकी। सोते समय में ब्रा और पैंटी नहीं पहनती। कुछ देर उसे दबाना और पिंच कारने के बाद उसका हाथ नीचे को आयी, मेरे नाभि में ऊँगली करने लगी। बहुत कठिनाई से मई अपने आप को रोकी थी।
फिर उसका हाथ और नीचे आया और मेरे सलवार की नाडा खींची। अब उसका हाथ अंदर घुसी और सीधा मेरे सफाचट बूर पर आ गिरी। तब भी मेंरे में कुछ हरकत न पाकर उसे मालूम होगया की मैं जगी हूँ। सुमित्रा ने मेरी गीली बुर में अपनी बीच वलि ऊँगली घुसाते मेरे कान में फूस फुसाई "हेमा.." !
"वोऊन' में भी धीरे से बोली।
"उनकी बाते सुन रही ही...?" "हाँ..."
उसने मुझे अपने पीठ पर घुमाई। मैं अब अपने पीठ पर सीधा लेटी थी। उस मद्दिम रोशिनी मी में उसे देख कर चकित रह गयी। सुमित्रा अपनी साड़ी खोल कर साइड में फेंकी और अपने ब्लाउज के हुक्स पूरा खुले थे। उसके वजनी और बड़े चूचियां मेरे आँखों के सामने लटके है। मेरे ऊपर झुकते उसने अपना एक दुद्दू मेर मुहं के पास लायी। एक भूखे बिल्ली की तरह में उस चूची को मुहं में लेकर जोरसे चूसी...!
"आअह ...इस्सस... ममम.. ओह..." उसके मुहं से एक मीठी कराह निकली। यह आवाज़ सुनते ही कौसल्या और राशि हमारे ओर देखे। उस नीम अँधेरे में भी हम किस स्तिथि में है वह जान गए।
"मौसी..." कौसल्या बुलाई।
"आंटी..." राशि बुलाई।
आरी कौसल्या, राशि इधर आना, देखो हेमा के कितने अच्छे है..." वह कही और मुझे कुरेदते ही रही।
सुमित्रा की आवाज सुनकै वह दोनों उठे, राशि "अभी आयी" कह कर बाहर गई। उसके शरीर पर सिर्फ कमीज थी, सलवार वहां साइड मे पड़ी है। कौसल्या भी सिर्फ पेटीकोट में थी और उसकी साड़ी राशि के सलवार के पास पड़ी है। उसके ब्लाउज के सारे हुक खुले थे और उसके चूचियां ब्लाउज के नीचे आँख मिचौली खेल रहे है। कौसल्या वैसे ही घुटनोंके बल रेंगते हमारा पास आयी और मुझे देख क्रर हंसने लगी। उस अंधेरेमे भी मई उसकी मुस्कराहट देख पायी।
इतने में राशि अंदर आयी और दरवाजा बंद कर लाइट ऑन करदी। "ओये, राशि यह क्या कर रही है? लाइट क्यों ऑन करि बंद कर..." सुमित्रा बोली।
"गभराओ नहीं आंटी, सीढ़ियों के पास का दरवाजा मैंने अंदर से सांकल लगायी है और कमरे का door भी बंद है। अब यह लाइट या आवाजें बहार नहीं जायेंगे। वैसे सब गहरी नींद में है" कहती हमरे पास आयी। उसने मेरे पैरों के बैठ कर मेरी सलवार खींचने लगी। सुमित्रा ने पहले ही मेरी नाडा खोली थी तो सलवार सररर कके साथ खींच गयी। सुमित्रा ने मेरी कमीज भी मेरी सर के ऊपर से उतरने लगी। मैंने उठकर बैठ गयी और उन्हें मेरी कमीज उतरने में हेल्प की।
"राशि, कौसल्या. तुम भी अपने कपडे उतारो..." सुमित्रा कही और वह खुद अपना पेटीकोट और ब्लाउज उतार फेंकी। साडी तो उसने पहले ही उतारी थी।
जैसे ही राशि ने लाइट डाली मेरी आंखे चौङ्घीया गए। 9 w की LED बल्ब की रोशिनी में में चारो खाने चित पड़ी हूँ। मरे सामने तीन नंगी औरतें, दो जवान और एक प्रौढावस्था में, हर एक के छातियाँ मस्ती में ऊपर नीचे हो रहे थे। मेरी टांगों के बिच सुमित्रा आकर अपने घुटनों पर बैठि है, जबकि राशि और कौसलया मी दोनों साइड खड़े थे। राशि की चूत एकदम सफाचट है तो कौसल्या की चूत पर 8 - 10 दिन के बाल है।
"लड़कियों, देखो इस जवान लड़की की बुर कोसो फुली फुली है...एक दम विक्सित गुलब की तरह..." सुमित्रा आंटी बोली और मेरे फांकों को चौड़ा कर फिर बोली ..
"देखो खोलके देखने पर..अंदर लालिमा थोडासा नमी पन...आआह... खाजाओ तो कितना स्वादिष्ट होगा..." उसने एक आह भरी।
"तो खाजाओ न मौसी.. कौन रोक रहा है.. इतना स्वादिष्ठ पकवान सामने ही पड़ी है... तुम इसे चखो, हम इस रस भरे आमों का रसपान करते है" कौसल्या बोली।
फिर तीनों ने एक ही बार में मुझ पर आक्रमण कर दिए। सुमित्रा आंटी आगे झुक कर मेरी गीली बुर को चाटने लगी तो दोनों औरतें अपने घुटनों पर आए और मेरी एक एक चूची कौ मुहं में भर लिए और चूसने लगे ।
"MmmmMmmmmaaaaaa...isssss..mmmm" मेरी मुहं से एक मादक चीत्कार निकली। राशि मेरी एक चूची को चूसते अपने एक ऊँगली मेरी मुहं में डाली जिसे मैं चाव से चुभलाने लगी। एक ओर कौसल्या ने मेरी दूसरी चूची को निप्पल काटते, मेरी नाभि में ऊँगली कर रही है। मेरे टांगों के बीच सुमित्रा अपनी खुरदुरी जीभ से मेरी मदन पुष्प को नीचेसे ऊपर तक चाट रही है। दोस्तों उस समय मुझे मिल रहि आनंद के बारे में मैं कैसे समझावूं मेरी समझ में नहीं आ रहा है। कोई औरत ऐसी दशा में गुजरी हो तो उसे ही मालूम होगा की मेरी दशा क्या थी।
मैं भी कुछ काम नहीं थी, मैंने भी मेरे दोनों हाथो को आगे बढाकर दोनों की मस्तियाँ जकड़ी और जोर से मींजी। "aaaaaahhhhhhh" दोनों की मुहं से ऐसे ही मीठी कराह निकली।
इधर सुमित्रा आंटी भी अपना होंठ मेरे बुर पर रख दिया। उसकी टंग (tongue) एक rough file की तरह मुझे घिस रही है, साथ ही साथ उसके दोनों हाथ मेरे नितम्बों पर राखी और जोर से दबाने लगी।
"ओह आंटी...उम्म्म्म ..अच्छा लग रह है.. और अंदर डालो अपनी टंग को और अंदर.. कह कर मैं अपनी कमर उछली और एक हाथ से उसके सर को मेरी खुजलाती बुर पर दबायी।
मेरे साथ यह खेल लोई पंद्रह मिनिट चला... वह तीनों औरतें अपनी अपनी जगह बदल बदल कर मेरे ऊपर आक्रमण करते मुझे एक अनोखा सुख दे रहे थे। फिर बरी आयी राशि की... और फिर कौसल्या की... फिर आखिर में सुमित्रा आंटी की... उन सब के साथ भी जैसे मेरे साथ हुआ वैसे ही हुआ। हम चरों एक दुसरे अंगोंसे खेलते और चूमते, चाटते, चुभलाते मौज मस्ती करे। सच में बहुत मज़ा आया... शशांक भैय्या लकी है की वह ऐसे मदमस्त औरतों का साथ मिल रहा है।
फिर आखिर में राशि और कौसल्या एक दुसरे से चिपक कर सो गए तो मैं और सुमित्रा आंटी एक दुसरे से। मुझे देख कर तो सुमित्रा आंटी का दिल ही नहीं भर रहा है। वह मुझे फिर अपने आगोष में लेकर फिरसे वही हरकते करने लगी।
"हेमा मेरो चूत चटोगी..?" उसने मेरो गलों को चूमती पूछी।
मैं खमोशी से उठ कर उनके टांगों के बेच आयी। आंटी ने अपने टाँगें फैलाई। आंटी की चूत भी एकदम साफ़ बिना बालों रहित है। खूब फुली फुली है। में अपना जीभ निकल कर उसे टंग फ़क करने लगी। वह ''आआह्ह्हह्ह्ह्ह...उम्म्म...इस.. ऊफ्फ..." कर कराह रही थी। मैं भी उसके बड़े बड़े चूतड़ों को मसल रही थी। मेरे मुहं से निकला आंटी की चूत से निकला रस बहकर आंटी के चूतड़ों की दरार में बहने लगी।
"हेमा डार्लिंग मेरी गांड में ऊँगली करो..." आंटी अपनी कमर उछालते बोली। मेरी उंगलियां आंटी के नितम्बों के दरार में फँसी। में धीरे से उनकी गांड की छेद को कुरेदने लगी.. चिकना पन के करण मेरी ऊँगली जल्दी ही आंटी की गांड की छेद में घुस गयी। अब मैं उसे टंग फ़क और ऊँगली से गांड फ़क कर रही थी।
हमारा यह खेल फिर एक घंटा चला.. आंटी ने भो मुझे एक बार ऊँगली से चोदी।
हम ने रात के ढाई बजे तक इस कार्य में लगे रहे। बाकि के दोनों औरतें कबकी नींद के हवाले थे। हम दोनों ने भी एक दुसरे लिपट कर सोगये।
जब मेरी आँख खुली तो सुबह के पांच बज चुके थे। में हड बढ़ाकर उठी और देखि तो बाकि के तीनों नंगी अवस्था में अस्थ्व्यस्थ पड़े थे। मैंने उन्हें उठाया और बोली की उठके कपडे पहन कर सो जावो .. और मैं नीचे जा रही हूँ।
मैं कपडे पहनकर, अपने आप को व्यवस्तिथ कर नीच आयी तो बड़ी माँ उठ चुकु थी। मुझे देख कर बोली "आरी हेमा बेटी..उठ गयी.गुड मॉर्निंग.. बहुत सा काम है.. जरा जल्दी से सब कमरों में गीज़र ऑन कर दो बेटा... आज शाम हम दुल्हन वालों के साथ ही उनके यहाँ जायेंगे.. लड़की को दुल्हन बनाना जो है... "
फिर उस दिन पूरा हम व्यस्त रहे। तीन बजे जब मैं ऊपर गयी तो सुमित्रा आंटी मुझ से बोली..."थैंक यू हेमा... रात बहुत मजा आया..." बोली और फिर पूछी "हेमा तुम यही रहती हो क्या..?"
"नहीं आंटी, मम्मी, पापा और मेरी दो बहनें वरंगल में रहते है। में शादी के बाद हैदराबाद में रहती हूँ।'
"हैदराबाद में... किधर...?" चकित होकर पूछी।
मैंने जगह का नाम बताया तो बोली... "अरे हम भी उसी एरिया के है.." और उसने अपना एरिया का नाम बतया और बोली "हमारे यहाँ से तुम्हारा घर मुश्किल से दो या तीन मील की दूरी पर है... जब हैदराबाद मे हो तो हमरा घर आया कर.. मौज करेंगे..." कही और अपना पता बोली फिर हमने अपना मोबाइल नंबर भी एक्सचेंज किये।
उस शाम मम्मी, बड़ी मा और मौसी, और दुसरे दो तीन औरतें खम्मम के लिए निकले।
उसके बाद क्या हुआ... क्या मै सुमित्रा से मिलि ... भय्या के शादी में क्या हुआ था.. यह सब के लिए आपको मेरी अगली एपिसोड के लिए वेट करना पड़ेगा। तब तक के लिए..अलविदा .. गुड बाई ...
आपका कमेंट जरूर लिखना.. आपकी हेमा...'
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