महारानी देवरानी 009

Story Info
प्रेम का भेद​
1.4k words
4.5
46
00

Part 9 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 9

दादी से बात कर के बलदेव सीधा अपनी माँ देवरानी के कक्षा की ओर जाता है और जैसे ही वह कक्ष के अंदर जाता है सामने से कमला बाहर आ रही होती है, बलदेव को देख कमला हाथ जोड़ कर साइड में खड़ी हो जाती है और कहती है "युवराज!" और युवराज बलदेव पास में खड़ी माँ को एक सफ़ेद आभूषण पहने देख वही खड़ा देखता रह जाता है।

बलदेव: (मन में) वाह कितनी सुंदर हो तुम।

ये सब देख कर कमला अपने नीचे होठ दबा कर मुस्कुराने लगती है, तभी देवरानी भी मुड़ कर बलदेव को देखती है।

देवरानी: (मन में) वाह! कितना सुंदर है कुमार! इसे देखते हैं मेरा दिल शांत हो गया।

बलदेव अपने हाथो से कमला को जाने का इशारा करता है और कमला शर्मा कर और खुशी के मारे जल्दी से कक्ष से बाहर निकलने लगती है पर उसका दिल नहीं मानता और रुक कर दरवाजे पर परदे के पीछे खड़ी होकर छूप कर देखने लगती है।

बलदेव: धीर धीरे माँ के आखो में देखते हुए माँ के करीब जाता है और वह उसको अपने आलिंगन में पीछे से ले लेता है।

बलदेव: माँ। ।

देवरानी: बेटा। । कितनी देर लगा दी तुमने?

बलदेव: कहीं नहीं!

देवरानी: झूठा!

बलदेव: आपने मुझे अपने दिल में नहीं खोजा मां, मैं आपको वहीँ मिल जाता।

देवरानी ये बात सुन कर मुस्कुरा कर बलदेव को जोर से अपनी बाहों में जकड लेती है।

देवरानी: बेटा!

देवरानी के बड़े दूध बलदेव के कठोर छाती से चिपक जाती है और दोनों को बेहिसाब गरमी का एहसास होता है।

वही दूर खड़ी कमला "महारानी और युवराज तो प्रेम में पागल होते देख रही थी और सोचती है ये अगर ऐसे ही लापरवाही करेंगे तो इनका प्रेम शुरू होने से पहले खत्म हो जाएगा। ऐसे तो ये महाराज दुवारा ये जल्द ही पकडे जाएंगे, कुछ करना पड़ेगा!" और वह अपने घर जाने के लिए महल से बाहर आ जाती है।

देवरानी और बलदेव एक दूसरे को बाहो में ले कर बाते करते रहते हैं और बलदेव देवरानी को अपनी पुरी दिन चर्या बताता हैं और ये भी बताता है कि उसे इतनी देर क्यों हुई।

देवरानी: बेटा! तुझे मेरी तो चिंता ही नहीं है। सब से आखिरी में मेरे पास आया।

बलदेव: चिंता है इसे तो तुम मेरी बाहो में हो और यही मेरा असली स्थान है चाहे में पूरा संसार घूम लू आखिरी में मुझे तो यही आकर सुकून मिलना है।

बलदेव की बात सुन कर वह अपना सर उसके कांधे पर रख कर शर्माते हुये मुस्कुराती है।

देवरानी: अब खाना खाते हैं।

बलदेव: हाँ खाना खाते हैं।

देवरानी: चलो।

बलदेव: हाँ।

देवरानी: बेटा।

बलदेव: जी मां।

देवरानी: तू मुझे छोड़ेगा तभी हम खाना खा सकते हैं ना!

ये सुन कर बलदेव झट से अपनी माँ को बंधन से मुक्त कर के मुस्कान देता है और देवरानी बलदेव की बेवकुफी पर हंसती है, देवरानी को हसता देख बलदेव भी हंसने लगता है, फिर दोनों साथ खाना खाकर अपने कक्ष में सोने चले जाते है।

नई सुबह बलदेव कोयल की कूको से उठता है और अपनी दादी की कही हुई बात और अपना हाल को मिलाते हुए समझने कि कोशिश करता है के क्या यही प्यार है और अंत में मान लेता है कि वह अपने माँ को एक स्त्री के रूप में देखने लगा है, फिर वह इस प्रेम से आने वाले तूफ़ान का सोचता है क्या वह उन सब से मुक़ाबला कर पायेगा? फिर उसे दादी की बात याद आती है और वह निर्णय करता है के वह अपने दिल की सुनेगा और अपने प्रेम को पा कर वह रहेगा।

बलदेव: (मन में) दुनिया के सारे नियम प्रेम से बढ़ कर नहीं है और हमारी खुशी से बढ़ कर कुछ भी नहीं है। "और बलदेव प्रतिज्ञा लेता है और कहता है" मैं यानी के महाराजा बलदेव सिंह अपना प्रेम हासिल करूंगा औरअपनी प्रेमिका यानी की रानी देवरानी को महारानी देवरानी बनाऊंगा और मेरी हर बात पत्थर की लकीर है। " और बलदेव की आंखो के नसें लाल पड़ जाती हैं।

आज बलदेव थोड़ी देरी से उठा था और वैध जी सवेरे ही उठ कर अपनी विद्या की कलाकारी दिखा कर महारानी जीविका को वैसाखी ला कर दे देते हैं, जिसे ले कर वह खुशी से फूली नहीं-नहीं समाती और कहती है " में सबसे पहले इस वैसाखी से चल कर अपने पोते से मिलने जाऊंगी जिस्के वजह से आज में कई वर्षो के बाद चल सकती हु और वह बलदेव के कक्ष के पास पहुँच जाती है जैसे ही वह राजकुमार बलदेव के कक्ष के पास पहुँचती है तो उसके कान में बलदेव की प्रतिज्ञा सुनाई देती है।

अपनी पोते के मुख से अपनी बहू को अपनी महारानी बनाने की बात सुन कर उन्हें ऐसा लगता है जैसे आसमान फट गया हो और वह चुपके से अपने कक्ष में लौट आती है।

उधर देवरानी अपने बिस्तर पर उठती उसके बदन की ख़ुमारी में पलट कर तकिए को अपने सीने से लगाए सोचने लगती है।

देवरानी: (मन में) अगर कमला की बात मानी जाए तो मेरे बेटे मेरे प्रेम की शुरुआत हो गई है और उसमें मैं इसे चाह कर भी नहीं रोक नहीं सकती हूँ। पर अगर ये खबर राज दरबार में पहुच गई तो यहाँ के नियम के हिसाब से मुझे और मेरे पुत्र को मौत के घाट उतार दिया जाएगा, पर मैं क्या करूं? वह मेरे पुत्र है! में उसे भूल भी नहीं सकती। मुझे पहली बार प्रेम हुआ है, तो क्या दो जानो को खतरे में डालना सही है? अगर सिर्फ मेरी जान की बात होती तो कोई बात नहीं थी क्योंकि मैं तो मरी जैसी हूँ। इस प्रेम में मैं मेरे युवराज से जी भर के प्रेम करती और उसके लिए ख़ुशी से अपने प्राण त्याग देती पर इसमे तो बलदेव की जान को भी खतरा है, में ऐसा नहीं होने दे सकती, अगर वासना की भूख ने इस प्रेम को जन्म दिया है तो मैं किसी ना किसी से सम्बंध बना लुंगी और तब हो स्कता है मेरे हृदय से ये प्रेम निकल जाए, मुझे इस बारे में कमला से बात करनी चाहिए.

आज राज परिवार कुश्ती का खेल देखने जा रहा था सब तैयार हो कर देवरानी का इंतजार कर रहे थे तभी राजा राजपाल कहते हैं।

राजा राजपाल: कमला जाओ देवरानी को बुला कर लाओ!

कमला: जी महाराज।

कमला जैसे वह देवरानी के कक्ष में जाती है उसे सामने से तैयार हो कर एक हरे रंग की साड़ी में आती हुई दिखती है। वह साडी ऐसी थी जिसमे उसके छाती तो छिपी हुई थी पर उसके दोनों नितम्ब हिलते हुए साफ दिख रहे-रहे थे।

कमला: आइये महारानी सब आपका इन्तजार कर रहे हैं।

देवरानी: कमला और एक बात करनी थी तुम से।

कमलाः बोलिए महारानी।

देवरानी: मझे लगता है तम सही कहती हो मुझे कोई ऐसा ढूँढ लेना चाहिए जो मेरी इच्छा पूरी करें और मैं तुमपे सबसे ज्यादा भरोसा करती हूँ क्या तुम मेरे लिए कोई ऐसा ढूँढ सकती हो? और मुस्कुराती है।

कमला: (मन में-कामिनी प्यार का खेल किसी और से और इच्छा किसी और से पूरी करने की सोच रही है पर मैंने युवराज का आंखो में सच्चा प्यार देखा है।)

देवरानी: कुछ कहा तुमने कमला?

कमला: नहीं तो। । मैं पक्का एक कसाई ढूँढूंगी जो आपकी बोटी-बोटी को खा जाए और हसने लगती है।

देवरानी: देख लो पर मझे पसंद आना चाहिए।

कमला: आपको पसंद आएगा!...

कमला बोल तो देती है पर मन ही मन रानी को कोसती हैं। (ये करमजलि है युवराज का प्यार छोड़ किसी और को देख रही है पर में युवराज के साथ ऐसा धोखा होने नहीं दूंगी)

सब महल से निकल कर बारी-बारी से रथ में बैठने लगते हैं, जब देवरानी की बैठने की बारी आती है तो राजकुमार बलदेव आगे बढ़ कर उसके दोनों हाथो से पकड़ कर देवरानी को ऊपर खीचता है और वह भी रथ में बैठ जाती है। ये सब कमला और खासकर के बलदेव की दादी देख रही थी और उसके चेहरे का रंग भी उड़ जाता है।

रास्ते भर बलदेव और देवरानी एक दूसरे से चिपकाने की कोशिश करते रहते हैं और आखिरी कर एक बड़े मैदान के पास रथ रोका जाता है जहाँ पर चारो ओर से लोग ekहोते हैं और एकत्रित थे और कुर्सिया रखी हुई थी। राज परिवार जा कर कुर्सियों पर विराजमान हो जाता है। इस बार भी देवरानी की बगल में राजकुमार बलदेव जा कर बैठ जाता है और उसका बायीं हथेली पर अपना दाया हाथ रख कर सहलाते हुए कुश्ती का मज़ा लेने लगता है। उनकी इन सब हरकतों पर बलदेव की दादी की नजर होती है, फिर कुश्ती खत्म होती है और विजेताओं को उपहार देकर सब राज महल वापस लौट आते हैं।

कहानी जारी रहेगी

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