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अपडेट 8
इश्क़ हुआ
बलदेव जब अपनी माँ से आँख लडा कर कमला के आने के बाद महल से बाहर निकला तो उसके दिमाग में वैध जी का ध्यान आया । उसे याद आया दादी के पैरो के इलाज के लिए उन्हें बुलवाना था। वह-वह सैनिक को आदेश देता है कि उस जंगल की ओर जाना है तैयारी करे, कुछ देर में दो सैनिक एक काले रंग का घोड़ा ले कर आते हैं जिस पर बड़े आसनी से सवार हो कर उन दोनों सैनिको के साथ बलदेव जंगल की ओर चल पड़ता है। घंटो के सफर के बाद एक कुटिया के पास वह सब रुकते है।
दोनों सैनिको को कुटिया के बाहर रहने का आदेश दे कर वह खुद दबे पाव कुटिया के भीतर प्रवेश करता है वह देखता है वैध जी योग आसन में बैठ ध्यान कर रहे। वह उन्हें प्रणाम कर चुपचाप वही उनके पास बैठा जाता है, कुछ देर बलदेव बैठा रहता हैं और फिर वैध जी आखे खोलते है।
वैधः बोलो बालक! कौन हो तुम?
बलदेव: वैध जी प्रणाम! मेरा नाम बलदेव सिंह है। मैं घटकराष्ट्र का राजकुमार हूँ।
वैध: आयुष्मान भव! बालक वही घाटराष्ट्र जो राज्य जंगलो और पहाड़ों से छुपा हुआ है और कोई राजाओ चाह कर भी वहा का रास्ता नहीं खोज सका है, इसलिए वहा किसी ने आक्रमण नहीं किया है । मैंने सुना है वहा बहुत सुकून है, वह कभी खून नहीं बहा है।
बलदेव: आप सही कह रहे हैं । वैध जी, आपके बारे में मुझे आचार्य जी ने बताया और उन्हें कहा था कि "तुम्हे संसार की सारी विद्या प्राप्त कर ली हैं और शरीर से शक्तिशाली हो गए हो पर आत्मा से और मन से शक्तिशाली बस वैध जी बना सकते हैं।"
वैध: ये तो उनका बदप्पन है, मैं ये समझता हूँ के जीवन को अच्छे से जीने के लिए शास्त्र की नहीं मन की शांति होनी अनिवर्या है।
बलदेव: आप की सोच को प्रणाम गुरु जी और उनके चरण स्पर्श कर के बैठ जाता है।
बलदेव: गुरु जी! मेरा निवेदन है आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।
वैध: हम तुम अपना शिष्य स्विकार करते हैं और वचन देते हैं तुम्हे हम अपनी हर कला से मलमाल कर देंगे और अपने आत्मा से खुश रहना सीख जाओगे।
बलदेवः धन्यवद गुरु जी। आप हमारे साथ हमारे महल चलिये और यदि आपको अच्छे लगे तो आप वही महल में रह सकते हैं।
वैध: नहीं बलदेव में महल में कतई नहीं रह सकता, वहाँ मैं अपनी साध्ना नहीं कर पाऊँगा / अगर मझे घाटराष्ट्र का वातावरण अनुकूल लगा तो भी मैं वहाँ कुटिया में ही रहूँगा।
बलदेव: जैसी आपकी इच्छा वैसी मेरी दादी महारानी जीविका अपने पैरो की बिमारी से मजबूर है उनको भी आपकी सहायता की आवश्यकता है।
वैध: ठीक है फिर हमें अति शीघ्र निकालना चाहिए।
फिर वह घोड़ो पर बैठ कर घाटराष्ट्र की ओर निकल पडते है, घाटराष्ट्र पहुचते-पहुचते संध्या हो जाती है और ऊँचे पहाड़ पर पहुच कर घोडा ज़ोर से हिनहिनता है और वैध निचे का नज़ारा देखते हैं।
वैध: वाह! क्या सुंदर दृश्य है घाटराष्ट्र दियो से जग मग कर रहा है इतनी रोशनी है ऐसा लग रहा है दिन है । हर जगह लालटेन और दिए जल रहे।
घोडे की आवाज़ सुन कर सीमा के सिपाही अपने लालटेन ले कर देखते हैं कि वहाँ कौन है और युवराज को देख फिर अपने स्थान पर जा कर खड़े हो जाते हैं।
इधर अपने कक्ष में लेटी हुई देवरानी के कानो में जैसे ही उन घोडो के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देती है, देवरानी जो पेट के बल लेटी हुई थी तुरत उठ जाती है।
देवरानी: आ गया मेरा घोड़ा! (युवराज बलदेव) और फिर देवरानी मुस्कुरा देती है।
पहाड़ से उतर कर बलदेव वैध जी को अतिथि गृह के तरफ ले कर जाता है।
राजकुमार बलदेव: गुरूजी आज आप इस अतिथि गृह में विश्राम करें कल सुबह आपके लिए कुटिया की व्यवस्था कर दी जाएगी और बलदेव घोडे से उतर कर स्वयं वैध जी का सारा सामान उठा कर अंदर रखता है।
बलदेव: गुरूजी! अब आप विश्राम करे में पिता जी से मिल कर आता हूँ फिर आप को मैं दादीजी के पास ले कर चलता हूँ।
वैध: ठीक है।
बलदेव सृष्टि यानी बड़ी माँ के भवन की ओर जाता है देखता है महाराज राजपाल और सृष्टि अभी दरबार से आ कर, अपना मुकुट सर से निकल कर, रख रहे हैं। राजा राजपाल का मुकुट कई रंग के जवाहरत के बना और सुसज्जित था जबकि महारानी शुष्टि का मुकुट सिर्फ सफेद रंग के हीरे के बना था, शुष्टि का मुकुट देख कर बलदेव को अपनी माँ की याद आती है।
बलदेव: प्रणाम पिता जी! और अपने पिता के चरण स्पर्श करता और फिर अपने बड़ी माँ के चरण स्पर्श करता है।
पिता: बेटा तुम आज कहाँ थे? । इतना देर कहाँ लगा दी?
बलदेव: पिताजी मैं दादी के इलाज के लिए वैध जी को लाने गया था, मुझे लगता है वह ठीक हो सकती है।
राजपाल: तुम्हारे तुम पर गर्व है बेटा! इतनी छोटी-सी उमर में तुमने जिमेदारी लेना सीख लिया है ।, अगर तुम चाहो तो, राजा रतन की मदद से मैं तुम्हे आगे की शिक्षा ग्रहण करने हेतू विदेश भी भेज सकता हूँ।
बलदेव: पिता जी मैंने अभी आगे का नहीं सोचा है, पहले में घर की मुश्किल हल करना चाहता हूँ और घाटराष्ट्र का और खास हमारे परिवार के दुख को दूर करना चाहता हूँ। ये कह कर वह पिता से आज्ञा ले कर फिर वैध के पास चला जाता है।
देवरानी अपने कक्ष में बैठ कर ताली बजाती है और ताली सुनते ही कमला अंदर आती है।
कमला: हुकम महारानी।
देवरानी: सैनिको से पता करो बलदेव आया है तो अभी कहाँ है?
कमला चली जाती है और पता लगा कर वापस आती है।
कमला: महारानी युवराज को आए अभी कुछ समय हुआ हैं वह वैध को लाए हैं। उनको भोजन करवा कर अपने पिता से मिलवाया । फिर वह वैध को ले कर महारानी जीविका को दिखाने ले जा रहे हैं।
देवरानी (मन में अब अपने प्रेमी से दूरी एक पल भी बर्दाश्त नहीं होती और कहती है पाप है। ये अनुचित है, वह है, महारानी तू तो प्रेम में धस्ती जा रही है और तुझे ये खुद ही नहीं पता है।)
महारानी: (मन में) आने दो इस घोड़े को बताती हूँ उसके लिए मेरे से ज्यादा महत्त्व अपने पिता का हो गया है। मैं दिन भर उसका इंतजार करती रही और वह मुझे छोड़ बाकी सब से मिलने चला गया ।
बलदेव इधर वैध जी को ले कर दादी के कक्ष में गया जहाँ वैध जी दादी के पैरो पर दासियो द्वारा लेप लगवते है और कहते हैं कि वह कल बैसाखिया बना कर देंगे जिनकी सहायता से राजमाता जीविका चल सकेंगे।
उधर इन्तजार करती हुई रानी देवरानी का संयम टूट जाता है और वह महल से निकल कर अतिथि गृह की तरफ जाती है। वहा कोई नहीं होता, तो वही बैठ जाती है कि कुछ समय में उसका पुत्र आएगा। तभी उसे सामने एक पोटली दिखती है जिसे वह हाथ लगाती है तो उसे ये समझते देर नहीं लगती कि उससे पुस्तके है। देवरानी ऊपर से दो किताब खींचती है और पोटली को पुनः बाँध देती है और वही कुर्सी पर बैठती है जैसे वह पहली पुशतक का पन्ना पलटती है उसमे एक पन्ने पर योग के आसन के चित्र और उसके सामने के पन्ने में आसन की विशेषताये लिखी हुई थी। फिर वह दूसरी पुस्तक को खोलती है। पुष्तक खोलते ही उसका मुंह खुला का खुला रह जाता है क्योंकि इस पुशतक में एक महिला और पुरुष नंगी अवस्था में चित्रित थे। पुरुष खड़ा हुआ था और उसका लिंग महिला की योनि में घुसा हुआ था जो उसके सर को पकड़ कर पुरुष की गोद में बैठी हुई थी।
ये देख कर देवरानी के माथे पर एक पसीना आ जाता है और वह चित्र के और उस आसन का विशेषण और विशेषताएँ पढ़े बिना दोनों पुस्तकों को ले कर अपने महल में तेजी से लौट जाती है, पर जैसे वह-वह अपने कक्ष में जाती है कमला की नजर उसके हाथ में पुश्ताको पर पड़ जाती है पर न तो कमला और नाही देवरानी इस बारे में कुछ कहती है।
इधर वैध जी जीविका का इलाज कर के सैनिको के साथ वापस महल से बाहर अतिथि गृह में आ जाते हैं परन्तु बलदेव अभी भी दादी के पास बैठा हुआ था।
बलदेव: अब आपको कैसा महसूस हो रहा है दादी मां?
दादी: बहुत अच्छा। बहुत आराम मिल रहा है पुत्र! बलदेव । तुम्हारा धन्यवाद पुत्र!
बलदेव: कल से आप बैसाखी की मदद से चलने लगोगी और मैं आपको झील भी दिखाने ले कर जाउंगा।
दादी: आखो में आसू ले कर तेरे हृदय में कितना प्रेम है पुत्र!
बलदेव: आप मुझे बता सकती हैं प्रेम क्या है।
दादी: जो तू मेरे लिय कर रहा है, मेरी खुशी के लिए कर रहा है, वह ही प्रेम है!
बलदेव: दादी माँ! तो क्या किसी को खुश करना प्रेम है?
दादी: अपने प्रेमी की खुशी से खुश होना भी प्रेम ही है पुत्र!
बलदेव: दादी तो क्या तुम्हें कभी प्रेम हुआ है?
दादी: (हस्ते हुए) जरूर हुआ बेटा तेरे दादा जी मेरे प्रेमी थे! जिसके वजह से आज तुम सब हो और तुम्हे भी तुम्हारी राजकुमारी मिलेगी! जिस से तुमको प्रेम होगा और तुम उसकी हर खुशी के लिए अपनी जान की बाजी लगा दोगे। तुम्हें उसका चलना, उसका बोलना, हसना, सब कुछ पुरी दुनिया से अलग लगेगा। जिसे पाकर तुम्हारा तन मन प्रसन्न होगा और मुझे भरोसा है तुम्हारा हृदय ऐसा है जो तुम्हारी राजकुमारी होगी वह भी पूरे तन मन से तुमसे प्रसन्न रहेगी और तुम्हे बहुत प्रेम करेगी।
बलदेव: तो क्या प्रेम किसी से भी हो सकता है। दादी!
दादी: हाँ पुत्र! किसी से भी, प्रेम कोई बंधन मर्यादा जाति या रंग नहीं देखता। बस हो जाता है, जब उसे देख कर और देखने का मन हो! और तुम्हे लगे दुनिया के ऊपर उड़ रहे हो तो समझो प्रेम है।
बलदेव को सुबह का अपने माँ देवरानी को देखना याद आता है और वह मुस्कान देता है!
बलदेव: और दादी ये प्रेम पाने के लिए क्या करना होता है?
दादी: प्रयास, उसके बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता! बस कोशिश से ही मिलता है प्रेम।
बलदेव: अगर समाज और धर्म प्रेम में बढ़ा बन जाए तो?
दादी: धर्म और ग्रंथ अनेक है! मनुष्यो के लिए नियम अनेक है! पर मनुष्य एक है। प्रेम एक है! इसलिए सभी नियम धरे के धरे रह जाते हैं। अगर समाज और मनुष्य खुश ना हो तो, अपने दिल की सुनो और दिल को खुश रखोगे तो खुद खुश रहेंगे। हमेशा!
बलदेव: धन्यवाद दादी माँ (मन में: मुझे मेरा उत्तर मिल गया दादी मां!)
इधर देवरानी आकर उन दो पुश्ताको को अपने पलंग के गद्दे के नीचे छुपा देती है तभी कमला अंदर आ जाती है।
कमला: आपने भोजन किया महारानी!
देवरानी: नहीं कमला।
कमला: पता है महारानी मेरी बहन की बेटी किसी के साथ भाग गई।
देवरानी: कहा भाग गई?
कमला: लो अब कर लो बात! अगर पता होता तो पकड़ न लेते हम!
देवरानी: मतलब क्या है?
कमला: महारानी आप न कुछ नहीं जानती! भागने का अर्थ ये है कि उसका किसी से प्रेम था! और वह उसके साथ घाटराष्ट्र छोड़ के चली गई।
देवरानी: क्या दंड मिलना चाहिए ऊसे? उसे भय नहीं लगा पकडे गए तो का होगा?
कमला: अरे महारानी प्रेम होता ही ऐसा है, दंड क्या? संसार भर से युद्ध कर लेते हैं लोग प्रेम पाने के लिए।
देवरानी: हाँ कमला तुम्हें सही कहा, मुझे प्रेम का क्या पता होगा! इतनी कम उमर में विवाह कर यहा आगयी और उसके बाद का तो तुम जानती ही हो।
कमला: प्रेम आपको पता हो या ना हो फिर भी आपको हो सकता है और हो सकता है हो भी गया हो, पर आपको पता ही ना हो, प्रेम वह होता जब एक औरत को एक मर्द की एक पल की दूरी भी बर्दाश्त नहीं होती। वह हर तरह से मर्द को खुश रखना चाहती है चाहे उसे कितना भी दर्द हो तकलीफ हो, जिसे देख कर दिल कांपने लगे और हाथ की जोड़ी ढीली पड़ जाए वह प्रेम होता है। महारानी!
देवरानी आज सुबह की बात याद करने लगी । कैसे आज सुबह उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था, उसे एक अलग-सा एहसास हुआ था और अपने मन में सोचती है।
देवरानी: (मन में) क्या यही प्यार है? अच्छा कमला अब तुम जाओ अब में आराम करूंगी।
जारी रहेगी