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Click hereपति पत्नी में तकरार
मेरी शादी को दो साल हुये थे। पिछले दो साल बहुत खुशी से बीते थे। समय कैसे बीत गया हम दोनों पति-पत्नी को पता ही नहीं चला। तीसरे साल मुझे तरक्की मिली और ऑफिस में मेरी जिम्मेदारी बहुत बढ़ गयी, इस कारण से मेरा ध्यान अपनी पत्नी पर कम हो गया। हम दोनों का बाहर घुमने जाना, खाना खाने जाना कम हो गया। मैं भी ऑफिस का काम घर लाने लगा ताकि उसे पुरा कर बास से शाबासी पा सकुँ। हम पति-पत्नी के मध्य कब दरार आ गयी मुझे पता ही नहीं चला। काम के बोझ के कारण मेरे व्यवहार में चिड़चिड़ा पन आ गया था।
मैं छोटी-छोटी बात पर उखड़ जाता था। पत्नी से भी आये दिन किसी ना किसी बात पर खटराग होने लगी थी। पहले तो वह जबाव नहीं देती थी, चुप रह जाती थी। लेकिन आज कल वह हर बात का जबाव दे रही थी और छोटी-छोटी बातों पर हम दोनों झगड़ने लगते थे। मुझे पता था कि यह गलत हो रहा है लेकिन मैं इसे रोकने में असमर्थ था। मैं पुरी कोशिश कर रहा था कि यह झगड़ें हमारे संबंध को खराब ना करे लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था। दोनों का एक-दूसरे से आये दिन नाराज रहना बढ़ रहा था। हम दोनों अकेले रहते थे इस लिये किसी तीसरे से सहायता भी नही मांग सकते थे और कोई सहायता कर भी नहीं सकता था।
झगड़े का बढ़ना
एक दिन में शाम को घर लेट आया क्योकि ऑफिस में बहुत काम था। सुबह पत्नी जिसका नाम ममता है घर के लिये सामान लाने की लिस्ट दी थी, ऑफिस के काम के चक्कर में सामान लाना मुझे ध्यान ही नहीं रहा, घर में जब ममता ने सामान के बारें में पुछा तो मुझे ध्यान आया कि मुझे घर का सामान लाना था। मैंने कहा कि काम के चक्कर में भुल गया हूँ तो वह बोली कि फिर आज भुखे रहो क्योकि घर में बनाने को कुछ नहीं है। अगर मुझे बता देते तो मैं खुद खरीद लाती। उस की यह बात मुझे चुभ गयी और मैंने कहा कि घर चलाने के लिये ही सारे दिन मरता रहता हूँ अब भुखे पेट भी रह लेता हूँ। तुम से शादी करके मैंने यही पाया है। मेरी यह बात उसे चुभ गयी और वह कोप भवन में चली गयी। रात हो चुकी थी अब कुछ करा नहीं जा सकता था सो दोनों जने उस रात बिना कुछ खाये सो गये। सुबह भी नाश्ता नहीं बना।
ममता नाराज थी। मैं किचन में चाय बनाने गया तो वहाँ चीनी वगैरहा सब कुछ खत्म था। मुझे ऑफिस जाना था सो मैं ऐसे ही ऑफिस के लिये निकल गया। काम में फंसा होने के कारण दिन में कुछ नहीं कर पाया। शाम को लौटते में सारा सामान ले कर आया तो देखा कि ममता भुखी प्यासी बिस्तर पर पड़ी थी। उस की यह हालात देख कर मुझे अपने आप पर बड़ी शर्म आयी, लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता था। उसे बताया तो उस ने उठ कर खाना बनाया तो मैंने उस से पुछा कि वह खुद जा कर सामान क्यों नहीं ले आयी तो वह बोली कि तुम ने मुझ से कहा कहाँ था कि मैं जा कर सामान ले आऊं?
उस की बात सही थी सुबह मैं गुस्से में उस से बात करना ही भुल गया था। नहीं तो वह दोपहर में जा कर सामान ला सकती थी। मेरे गुस्से की वजह से वह भी भुखी रही थी। मैंने भी सारे दिन कुछ नहीं खाया था। मैंने मजाक में माहौल हल्का करने के लिये कहा कि आज तो हम दोनों ने व्रत रख लिया तो मेरी इस बात पर वह बुरी तरह से चिढ़ गयी। बात बनने की बजाए और बिगड़ गयी। मेरे को समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे उस का गुस्सा दूर करुँ? रात को सोते समय देखा कि वह अपना बिस्तर बेड से नीचे लगा कर लेटी थी। उसे उपर आने को कहा तो उसने कहा कि वह यही पर सही है। मैं झगड़ा ना बढ़ जाये इस लिये चुप रहा लेकिन बात तो बिगड़ गयी और वह रोज नीचे ही सोने लगी।
इस कारण से हम दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी खत्म हो गये। ऑफिस में काम का बोझ और घर में पत्नी से झगड़ा मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इन सब चीजों का सामना कैसे करुँ? नौकरी में लापरवाही नहीं की जा सकती थी। पत्नी को मनाना भी जरुरी था। शनिवार को छुट्टी थी सो कही बाहर घुमने का प्रोग्राम बनाया लेकिन ममता ने मेरे साथ जाने से मना कर दिया। मैनें उसे बहुत समझाया कि ऑफिस में काम का बोझ ज्यादा होने के कारण गल्ती हो गयी थी आगे से ऐसा नहीं होगा लेकिन वह टस से मस नहीं हुई।
इसी तनाव में शनिवार निकल गया।रात को उसे अपने साथ सोने के लिये बोला तो वह बोली कि तुम्हें तो मेरी जरुरत केवल बिस्तर पर ही याद आती है। मैंने उसे समझाया कि हम दोनों के बीच यह झगड़ें नहीं आने चाहिये लेकिन वह कुछ सुनने समझने को तैयार नहीं थी। मैंने भी जबरदस्ती करना उचित नहीं समझा। आज कल वैसे ही ऑफिस की व्यस्तता के कारण हम दोनों संभोग सप्ताहंत पर ही कर पाते थे। उस में भी कभी वह थकी होती थी और कभी मैं थका होता था। सो हम दोनों शारीरिक संबंधों का आनंद नहीं ले पा रहे थे। मन में जब तक शान्ति ना हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। रविवार भी ऐसे ही गुजर गया। मैं अपने कपड़ें वगैरहा धो कर उन्हें आने वाले सप्ताह के लिये तैयार करने में लगा रहा।
तलाक की तरफ कदम
हम दोनों के बीच झगड़ें बढ़ गये। ममता मेरा कोई भी काम करने के लिये तैयार नहीं थी। हर बात पर उस का उलाहना था कि तुम्हारी मां ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया है। मुझे सब कुछ बर्दास्त था लेकिन झगड़ें में अपनी मां को घसीटा जाना मंजुर नहीं था। मैंने उसे समझया कि झगड़ा हम दोनों के बीच है इस में वह मेरी मां को ना घसीटे लेकिन वह हर बात पर उन को बीच में घसीट लेती थी। एक दिन तो बात इतनी बढ़ी की मैं उसे मारने के लिये दौड़ा, यह देख कर वह और भी गुस्सा हो गयी और बोली कि तुम्हारी मां ने तुम में कोई संस्कार नहीं डाले है तभी तो पत्नी पर हाथ उठा रहे हो।
मेरे क्रोध की सीमा ना रही और मैंने कहा कि अगर मैं इतना ही बुरा हुँ तो मेरे साथ रह क्यों रही हो, अलग क्यों नहीं हो जाती। मेरी बात सुन कर वह बोली कि तुम यही चाहते हो तो यही होगा। यह कह कर वह कमरा बंद करके रोने बैठ गयी। मैंने बहुत दरवाजा खटखटाया लेकिन उस ने दरवाजा नहीं खोला। मुझे बाहर ड्राइग रुम में सोफे पर सोना पड़ा। सुबह उठा तो देखा कि वह अपना बैग लेकर खड़ी थी। मैंने पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि मैं तुम्हें छोड़ कर जा रही हूँ, मैंने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह बैग लेकर घर से चली गयी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करुं? मैंने अपनी ससुराल फोन किया तो साली ने उठाया, मैंने उसे बताया कि तुम्हारी बहन अकेले आ रही है उसे लेने चले जाना तो वह बोली कि किस से आ रही है बस से या ट्रेन से? इस सवाल को तो उत्तर मुझे भी बता नहीं था।
मैं जल्दी से कपड़े पहन कर उस के पीछे भागा वह रिक्शे में बैठ कर बस अड्डे जा रही थी। उस के पीछे-पीछे मैं भी बस अडडे चला गया। वह जिस बस में बैठी उस का नंबर नोट करके फोन करके ससुराल में बता दिया कि वह इस नंबर की बस से आ रही है। इस के बाद ऑफिस चला गया। शाम को घर लौटा को खाली घर काटने को हो रहा था लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था। बात हाथ से निकल गयी थी। ममता ने अकेले घर से जा कर अपनी मर्यादा को पार कर दिया था। उस की यह गल्ती माफ करने लायक नहीं थी।
इस लिये मैंने उससे बात करने के लिये ससुराल फोन नहीं किया। एक हफ्ता गुजर गया लेकिन ना ममता ने कोई फोन किया ना ही उस के मायके से कोई फोन आया। मुझे लगा कि यह संबंध अब खत्म ही हो गया है। अगर उसे मेरी चिन्ता नहीं है तो मैं क्यो उस की चिन्ता करुँ, इसी कारण से मैंने भी किसी को फोन नहीं किया। समय गुजरने लगा, मैं अपने ऑफिस में काम में व्यस्त होने के कारण दिन में तो कुछ सोच नहीं पाता था लेकिन रात को जब घर आता और अकेला होता तो ममता की याद बहुत आती थी और सोचता था कि क्या मेरी गल्ती इतनी बढ़ी थी कि उस ने रिश्ता तोड़ने का फैसला कर लिया है।
धीरे-धीरे मुझे भी लगने लगा कि हमारें दोनों के बीच जो कुछ था वह खत्म हो गया है और अब इस रिश्ते को खत्म कर देना ही दोनों के लिये सही रहेगा। किसी को जबरदस्ती किसी संबंध में नहीं बाधा जा सकता है। मैं भी किसी से बात नहीं कर पा रहा था ताकि मुझे कोई सलाह मिल सके। जो मन में आ रहा था उसे ही सच्चाई समझ रहा था। एक महीना बीत गया लेकिन कोई खबर नहीं आयी। फिर दूसरा महीना बीत गया। तीसरा महीना भी बीत ही रहा था कि मुझे लगा कि इस संबंध को एक मौका देना चाहिये। विवाह ऐसे नहीं तोड़े जा सकते, अगर ममता ने बचपना दिखाया है तो मैंने कौन सा बड़क्कपन दिखाया है। मैं भी तो गुस्सा हो कर बैठा हूँ। उस की कोई खोज खबर नहीं ली है।
पत्नी को ससुराल से लेने जाना
यही सब सोच कर एक दिन मैंने अपनी ससुराल फोन किया। फोन मेरी सास ने उठाया मेरी आवाज सुन कर वह बोली कि दामाद जी आप कैसे है? मैंने कहा कि सही हूँ। फिर वह बोली कि हम सब आप के फोन का इन्तजार कर रहे थे। मुझे लगा कि शायद सब चाहते है कि मैं ही झुकू। मेरे को चुप देख कर वह बोली कि आप से कुछ बात करनी है फोन पर नहीं हो सकती है। आप समय निकाल कर यहाँ आ जाइये। मैंने उन्हें बताया कि इस हफ्ते तो मैं बहुत बिजी हूँ अगले हफ्ते आने की कोशिश करता हूं मेरी यह बात सुन कर वह बोली कि कोई बात नहीं है जहां इतना इंतजार किया है वहाँ एक हफ्ता क्या है?
ना उन्होनें मुझ से ममता से बात करने को बोला ना मैंने ही ममता से बात करने के लिये उन से कहा। फोन कट गया। अगले हफ्ते की शुरुआत में मैं अपनी ससुराल पहुंच गया। वहाँ जाते समय मेरे मन में बहुत से विचार चल रहे थे लेकिन उन सब को दरकिनार करके मैं अपनी ससुराल पहुँच गया। वहां मेरा वैसा ही स्वागत किया गया जैसा पहले किया जाता था। साली ने उलाहना दिया कि बड़ी जल्दी हमारी याद आ गयी तो मैंने उस से कहा कि उस ने भी कहा मुझे याद किया? वह कुछ नहीं बोली फिर वह मेरे लिये खाना लेने चली गयी। ममता के दर्शन मुझे अभी तक नहीं हुये थे। ससुर जी ऑफिस गये हुये थे। घर में सास, साली और ममता ही थी।
खाने के बाद जब मैं अकेला था तो ममता मेरे पास आयी। वह काफी कमजोर लग रही थी। उसे देख कर मुझ से रहा नहीं गया और उस से पुछा कि क्या वह बीमार है तो उस ने गरदन हिला कर ना कहा। हम दोनों में और कोई बात नहीं हुई और वह खाने के बरतन ले कर वापस चली गयी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करुँ? किस से बात करुं? कमरे में मैं काफी देर अकेला बैठा रहा। फिर कुछ देर बाद सास मेरे पास आ कर बैठ गयी और सामान्य बातें करने लगी। मुझ से बोली कि आप भी कमजोर लग रहे है। क्या कारण है? बीमार तो नहीं है? मैंने कहा कि मेरी बीमारी का कारण तो ममता है जो आप के यहां बैठी है।
सास बोली कि अगर यही वजह है तो आप उसे अपने घर क्यों नहीं ले जाते? मैंने कहा कि मैंने कब मना किया है वह स्वयं ही आयी तो उसे ही वापस आना चाहिये था। लेकिन अब मैं उसे बुलाने आया हूँ अगर आप को और उसे मेरी चिन्ता है तो उसे मेरे साथ भेज दे। वह बोली कि आप की पत्नी है आप कभी भी ले जा सकते है हमारी तरफ से कोई रोक नहीं है। मिया बीबी में झगड़ें होते रहते है लेकिन कोई घर छोड़ कर नहीं आता। उन की बात सुन कर मुझे लगा कि वह भी चाहते है कि ममता मेरे साथ वापस जाये। मैंने कहा कि ममता से पुछ लिजिये कि वह मेरे साथ घर वापस जाना चाहती है या नहीं उस दिन मेरे मना करने के बाद भी वह अचानक चली आयी थी, यह बात मुझे बहुत बुरी लगी थी।
इसी लिये मैं अब तक उसे लिवाने नहीं आया था, लेकिन बचपने की कोई हद होती है या नहीं? उस ने अब तक मुझे एक बार भी फोन नहीं किया ना अपने किये की माफी मांगी है। सास मेरी बात सुन कर बोली कि आप समझदार है इस लिये आज उसे लेने के लिये आये है यह अच्छी बात है उस का बचपना समझ कर माफ कर दिजिये। पति-पत्नी के झगड़ों को इतना तूल देना सही नहीं है। मैंने उन्हें बताया कि हम बात में मेरी मां को घसीटा जाना मुझे बुरा लगता है, इसी लिये उस दिन मेरा गुस्सा काबू से बाहर निकल गया था। लेकिन इस ने भी हद कर दी थी। सास ने मुझ से कहा कि जो बीत गया है उसे भुल जाईये और भविष्य की तरफ देखिये।
मैं चुप बैठा रहा तो वह उठ कर चली गयी और ममता को मेरे पास भेज दिया। ममता आ कर मेरे पास खड़ी हो गयी। मैंने उस की तरफ देख कर पुछा कि घर चलना है तो उस ने सर हिला दिया। मैंने कहा कि तुम्हें फोन करने का भी समय नहीं है तो वह बोली कि आप ने भी तो मेरी सुध नहीं ली कि मैं सही-सलामत पहुंच गयी थी या नहीं? यह सुन कर मैंने उसे हाथ से पकड़ कर अपने पास बिठाया और बताया कि तुम्हारे घर से जाते ही मैं तुम्हारे पीछे गया था और बस अडडे पर तुम्हारी बस का नंबर नोट कर के सपना को फोन पर बता दिया था तभी तो यह लोग तुम्हें लेने बस अड्डे पर पहुँच गये थे।
इस से ज्यादा क्या करता। मैंने सपना को आवाज दी, जब वह आ गयी तो उस से कहा कि अपनी दीदी को बता कि मैंने उस दिन क्या करा था। सपना ने ममता को बताया कि तुम्हारे जाते ही जीजा जी ने यहाँ फोन किया था कि तुम घर आ रही हो जब मैंने पुछा कि किस से बस से या रेल से तो यह तुम्हारें पीछे गये और चुपचाप तुम्हारे पीछे लगे रहे, और बस का नंबर मुझे बता दिया था। नहीं तो तुम्हें लेने हम वहाँ कैसे पहुँच गये थे सोचा है तुम ने? ममता यह सुन कर चुप चाप बैठी रही।
सपना चली गयी। मैंने ममता का हाथ पकड़ कर कहा कि जो हुआ उसे भुल जाओ और अपने घर चलों। वह मेरी शक्ल देख कर बोली कि आप मुझ से गुस्सा नहीं हो? बहुत गुस्सा था लेकिन अब समझ आया कि मेरा व्यवहार भी गलत था सो दो गलत मिल कर एक सही नहीं हो सकते। और एक गल्ती के लिये हम अपना जीवन खराब नहीं कर सकते, ऐसा मेरा मानना है अगर मेरी बात तुम्हें सही लगता है तो तुम घर चल सकती हो। वह तुम्हारा भी घर है। वह हां में सर हिला कर चली गयी। इस के बाद कुछ खास नहीं हुआ। शाम को ससुर आये तो उन से बातचीत होती रही। फिर सब लोग खाना खाने बैठ गये।
रात में खाना खा कर बैठा था कि मेरी सास मेरे पास आ कर बैठ गयी और मुझ से बात करने लगी। फिर वह बोली कि ममता के साथ क्या लड़ाई है आप की? मैंने कहा कि कोई लड़ाई नहीं है हम दोनों शायद एक दूसरें से बोर हो गये है इस लिये झगड़ने लगें है पहले तो ऐसा नहीं था। वह मेरी बात सुन कर बोली कि बेटा शादी के शुरु के साल तो बीत जाते है लेकिन दो एक साल बाद हर विवाह में ऐसी समस्यायें आती है लेकिन इन्हें पति-पत्नी को ही सुलझाना पड़ता है कोई तीसरा इस में कुछ नहीं कर सकता है।
मेरी जितनी बात ममता से हुई है उस से लगता है कि तुम दोनों अब एक दूसरे से प्यार नहीं करते हो। मैंने कहा कि मैं तो पहले की तरह ममता से प्यार करता हूँ। मेरी बात सुन कर वह बोली कि बेटा वैसा प्यार नहीं जैसा तुम समझ रहे है पति पत्नी वाला प्यार। तुम शायद काम में ज्यादा बिजी रहते हो इस कारण से इस बात को नजरअंदाज कर रहे हो। मुझे उन का इशारा समझ आया तो मैं बोला कि प्यार एक तरफा नहीं हो सकता दूसरे पक्ष को भी भाग लेना पड़ता है। मेरी बात सुन कर मेरी सास बोली कि आप मेरी यह बात गांठ बांध लो कि औरत अपनी तरफ से ना ही करती रहेगी अगर आप ने उस की सुनना शुरु कर दिया तो यही हाल होगा जैसा आप दोनों का अब है।
वह एक तरफ तड़पती सी रहती है ना खाना खाती है ना किसी काम में मन लगता है, और आप को देख कर भी लग रहा है कि जैसे बीमार से है। ऐसा कब तक चलेगा? रात में बीवी की सुनोगें तो ऐसे ही उस से दूर हो जाओगे। उन के मुख से यह बात सुन कर मैं चौक कर उन के चेहरे की तरफ देखने लगा तो वह नजरें हटा कर बोली कि आप समझदार है, इशारा ही काफी है। अनुभव की बात बता रही हूँ। आप ममता को कल ले जाये और उस का ध्यान रखें मैंने उसे काफी समझाया है। अब वह ऐसा बचपना नहीं करेगी। आप भी मेरी बात को समझ कर व्यवहार किजियेगा। सब ठीक हो जायेगा। यह कह कर वह मेरे पास से उठ कर चली गयी।
रात को तो ममता मेरे पास नहीं आयी लेकिन सुबह उसे लेकर मैं अपने घर वापस आ गया। हमारे आते समय उस के घर वालों के चेहरों पर संतोष के भाव धे। सफर में भी हम दोनों में ज्यादा बात नहीं हुई। घर आ कर ममता घर की सफाई में लग गयी और मैं बाजार से घर के लिये सामान लेने चला गया। वहाँ मेरे दिमाग में आया कि ममता से साथ प्यार में कुछ नया किया जाये। मन में डर तो था लेकिन उसे दबा कर मैंने मेडिकल स्टोर से बढ़िया किस्म के कंडोम का पैकेट और लुब्रिकेटिग जैल खरीदा। यह तो नहीं पता था कि इन का क्या करना है लेकिन मन को सही लगा तो खरीद लिया।
दोनों सामान घर आ कर अलमारी में रख दिये। घर का सामान ममता को थमा दिया तो वह बोली कि पीछे से कैसे काम चलाया?
जो सामान पड़ा था वह जब खत्म हो गया तो बाहर से खाना खाने लगा। बेड और बटर से नाश्ते का काम चल गया।
मेरी बात सुन कर ममता बोली कि तभी तो इतने कमजोर हो गये हो। उस की बात सुन कर मैंने पुछा कि मेरी कमजोरी का कारण तो तुम ने बता दिया लेकिन तुम भी तो कमजोर हो गयी हो तो वह कुछ नहीं बोली। दूबारा पुछा तो वह बोली कि तुम्हारी वजह से ही कमजोर हुई हूँ। मैंने यह सुन कर कहा कि अब मैं ही तुम्हें मोटा करुंगा तो वह मेरी तरफ नजर उठा कर बोली कि कैसे? मैंने कहा कि जैसे शादी के बाद तुम्हें मोटा किया था ठीक वैसे ही।
मेरी बात सुन कर वह मुस्करा कर बोली कि अब तुम में ताकत कहाँ है? उस की बात सुन कर मेरे दिमाग की घंटी बजी की मेरी सास सही कह रही थी, मामला शारीरिक भुख के ना बुझने का है। मुझें अपनी गल्ती महसुस हुई। मैं हंस कर कहा कि एक मौका तो दो तो वह ताना सा मार कर बोली कि मौकों की क्या कमी है? उस की यह बात सुन कर मन को तसल्ली हुई की अभी भी ममता के मन में मेरे लिये जगह है।
मैंने उस का हाथ पकड़ कर उसे अपने से चिपका लिया तो वह कसमसायी लेकिन मैंने कस कर उसे आलिंगन में ले लिया और उस के होठों पर अपने होंठ रख दिये। उस के होंठ इसी क्षण के लिये तरस रहे थे मेरे होंठों से बुरी तरह चुपक गये। हम दोनों गहन चुम्बन में डुब गये। कोई चार महीने बाद मुझें अपनी पत्नी के लबों को स्वाद मिला था। उस के बदन की सुगंध मेरे नथुनों में भर रही थी। मैंने जल्दीबाजी ना कर के उसे आलिंगन से मुक्त कर दिया। वह ऐसी ही खड़ी रही। फिर घुम कर किचन में चली गयी।
कुछ देर बाद वह खाना ले कर आ गयी। हम दोनों खाना खाने बैठ गये। इस दौरान ज्यादा बातें नहीं हुई। दोनों के मध्य की बर्फ पिघलने में समय ले रही थी। लेकिन उस का पिघलना बहुत जरुरी था।
रात को जब सोने का समय हुआ तो ममता चुपचाप बेड के साथ नीचे चद्दर बिछाने लगी तो मैंने कहा कि नीचे नहीं बेड पर सोओ तो वह मेरे को देख कर बोली कि मेरे साथ सोने में तुम्हें परेशानी नहीं है। मैंने अपने कानों को पकड़ा और ममता से कहा कि मैं तुम से अपनी कही हुई हर बात की माफी मांगता हूँ और चाहता हूँ कि तुम मुझे माफ कर दो। मेरी यह हरकत देख कर ममता पहले तो हंसी फिर बोली कि आप इतने कैसे बदल गये हो? क्या कोई जादू हो गया है?
मैंने उसे दोनों बाहों से पकड़ कर कहा कि कोई जादू नहीं है मुझें अपनी गल्ती पता लग गयी है और मैं तुम से वायदा करता हूँ कि भविष्य में ऐसी गल्ती दूबारा नहीं करुँगा। तुम भी अब मुझें माफ कर दो। मेरी बात सुन कर ममता कुछ क्षण चुपचाप खड़ी रही फिर बोली कि गल्ती सिर्फ आप की ही नहीं थी मैंने भी बहुत गल्तियाँ करी थी और गल्तियाँ करती ही जा रही थी। तुम भी मुझे माफ कर दो। यह कह कर उस की आंखों से आसुं टपक पड़ें।
उस की आँखों में आँसु देख कर मैंने उस का चेहरा अपनी हथेलियों में ले लिया और अपने होंठों से उस के गालों पर पड़ें आँसु चाट लिये। यह करते मैं मेरा शरीर कांप सा रहा था। मैंने महसुस किया कि ममता भी कांप रही थी। हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे थे जो पहले नहीं किया था लेकिन पता नहीं आज कुछ अलग सा महसुस हो रहा था। विरह ने हमें तपाया था और हम उस में से निखर कर निकले है यह हम दोनों को दिखाना था।
मुझे साड़ी में ममता बहुत मादक लगती थी, साड़ी में ही उस से संभोग करने की मन में पुरानी इच्छा थी उस के सामने कई बार व्यक्त भी करी थी लेकिन उस ने मना कर दिया था। आज वह साड़ी ही में थी, मेरे मन में झिझक तो थी लेकिन मैं उस से रुकने वाला नहीं था। मेरी हर झिझक मेरी सास के शब्दों से हट गयी थी। आज में अपनी पुरानी कामना को पुरा करना चाहता था लेकिन मन के एक कोने में डर भी था कि जोर-जबरदस्ती से कहीं बनती बात ना बिगड़ जाये लेकिन तभी ध्यान आता था कि सास जी ने अगर मुझे समझाया है तो अपनी बेटी को भी समझाया होगा।
ममता के आँसु चाटने के बाद मेरे होंठ अपनी मन पसन्द जगह उस के होंठों पर आ गये और उन्हें अपने मुँह में लेकर चुसने लगे। कुछ क्षण बाद ममता के होंठ भी इसी काम में लग गये। हम दोनों एक-दूसरें को चुमने लगे। मैंने ममता के गाल, आखें चुमने के बाद उस की गरदन पर अपने होठों से चुमना शुरु किया। पहले तो वह लव बाईट के लिये मना कर देती थी लेकिन आज तो मैंने इतनी गहराई से चुमा कि उस की गरदन पर कई लव बाइट के निशान पड़ गये लेकिन ममता कुछ नहीं बोली।
मैंने ही अपने आप पर काबु किया। गरदन से नीचे उस के वक्ष के मध्य चुम्बन लिया। उस के निप्पलों की घुंडि़यों को चुमना चुसना तो मेरा मन पसन्द काम था। ब्लाउज के ऊपर से ही उस के उरोजों को चुमना शुरु कर दिया। वह कोई विरोध नहीं कर रही थी। शायद उसे भी इस में मजा आ रहा था। इस के बाद मैंने अपने हाथ पीछे कर के उस के ब्लाउज के हुक खोल कर ब्लाउज को उतार दिया, अंदर वह लाल रंग की नेट वाली ब्रा पहने हुई थी जैसी उस ने सुहागरात के समय पहनी थी उस में कसे गोरे स्तन मुझे लुभा रहे थे।
आज मैं किसी तरह की जल्दी में नहीं था। इसी लिये मैंने ब्रा के उपर से उस के उरोजों को सहलाया और दबाया। उरोजों का कसाव कुछ कम सा लग रहा था यह शायद उस का वजन घटने के कारण था। हाथ पीछे कर के ब्रा का हुक भी खोल दिया और ब्रा उतार कर एक किनारे रख दी। मुझे पता था कि मेरे कपड़ों को इधर-उधर फैकने की आदत से ममता को बड़ी चिढ़ थी, मैं उसे चिढ़ने का मौका नहीं देना चाहता था। उस के उरोजों की भुरे रगं की घुंड़िया तन कर आधें इंच से ज्यादा फुल गयी थी। मेरे होठ उन्हें चुमने और चुसने में लग गये। ममता इस से खड़ी खड़ी कांप रही थी। मेरी जीभ उस के दोनों कुचाग्रों के गोल चक्कर लगा रही थी।
इस के बाद मैंने अपना मुँह खोल कर उस का एक उरोज उस में भरने की कोशिश की तो उस की सिसकी निकल गयी। उस ने मेरे बालों को पकड़ कर कहा कि आराम से करो। एक तो मन भर कर चुसने के बाद दूसरे का नंबर आया और उस के बाद उस की चिकनी कमर को चुम कर मैं उस की नाभी चुमने लगा। ममता से उत्तेजना के कारण खड़ा नहीं हुआ जा रहा था सो उसे गोद में उठा कर बेड पर लिया दिया। वह चुपचाप बेड पर लेटी थी। मेरा उत्तेजना के कारण बुरा हाल था।
लिंग तन कर ब्रीफ में अड़ रहा था सो मैंने अपने सारे कपड़ें उतार दिये अब मैं नंगा बेड के किनारे पर खड़ा था। मुझे खड़ा देख कर ममता ने कहा कि ऐसे ही खडे़ं रहोगे? यह सुन कर मैं कुद कर उस के उपर आ गया। लेकिन मेरी निगाह तो कही और थी सो मैं 69 की पोजिशन में आ कर ममता के उपर बैठ गया। अब मेरा मुँह उस के पैरों की तरफ था और पांव उस के मुख की तरफ। साड़ी अभी भी कमर में बंधी थी। उस को पेटीकोट से निकाल कर अलग रख दिया और पेटिकोट का नाड़ा खोल कर उसे घुटनों से नीचे कर के उतार कर एक तरफ कपड़ों के साथ रख दिया।
अब ममता पेंटी में मेरे सामने थी। ममता को मैने सैकड़ों बार नंगा देखा था लेकिन आज की बात कुछ और ही थी। मैंने अपनी ऊगलियों की सहायता से उस की पेंटी भी उतार कर रख दी। अब वह बिल्कुल नंगी थी। मैंने अपना मुँह उस की जाँघों के जोड़ के मध्य किया और उस की योनि को चुमा। मेरे होंठ नमी से भर गये। ममता भी पुरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी लेकिन मैं उसे और उत्तेजित करना चाहता था ताकि वह इतने समय के बाद संभोग करे तो उसे सम्पुर्ण आनंद मिले।
मेरी जीभ उस की योनि को चाटने लगी। फिर मैंने ऊँगलियों से उस के योनि के होंठों को अलग किया और अपनी जीभ योनि के अंदर घुसा दी। ममता को इस में बहुत मजा आता था। यह मुझे पता था। अंदर नमी तो थी लेकिन अभी कुछ कमी सी लग रही थी सो मैं उस कमी को दूर करने में लग गया। उस की भग को होठों में दबा कर चुसना शुरु किया तो ममता आहहहहहहहह अइइइइइइ उईईईई करने लगी। उस ने उत्तेजना से मेरे सर के बाल पकड़ कर मेरे सर को योनि से चिपका दिया। अब मुझे पता चल गया था कि वह संभोग के लिये तैयार है। मैं भी तैयार था।
मैं उठ कर उस की जाँघों के मध्य आ गया और अपने तने लिंग से उस की योनि को सहलाने लगा। कुछ पल बाद मैंने लिंग को योनि में डाल दिया लिंग धीरे-धीरे योनि की गहराई में उतर गया। ममता ने लिंग को रास्ता देने के लिये अपने पाँव फैला दिये। मैं कुछ पल के लिये रुका और फिर जोर-जोर से धक्कें लगाने शुरु कर दिये। मेरे धक्कों की रफ्तार बढ़ती गयी। ममता के नाखुन मेरी पीठ के मांस में घसने लगे। लेकिन मेरी गति कम नहीं हो रही थी। करीब पांच मिनट बाद मैं नीचे आ गया और ममता को अपने ऊपर आने के लिये कहा। वह उठ कर मेरे उपर बैठ गयी और मैंने अपने लिंग को हाथ से उस की योनि में घुसेड़ दिया।