होली की शरारतें

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होली में साली की शरारत और बाद में प्यार
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मेरी शादी के बाद पहली होली ससुराल में थी। हम दोनों पति पत्नी एक सप्ताह की छूट्टी पर मेरी ससुराल आये हुए थे। पहली होली होने के कारण सारी ससुराल में बड़ी चहलपहल थी। मेरी एक कुँवारी साली तथा एक साला था। चुहल बाजी चलती ही रहती थी। मैं तो सारे दिन साले-सालियों से घिरा रहता था। सब को होली का इन्जार था कि किस तरह जीजा जी को रंगा जाए। हम भी सोच के बैठे थे कि ये सब कितना सोचे मेरे आगे होली में कोई नहीं हो सकता। बचपन से होली में मेरा अलग ही रुप नजर आता था। एक ये ही तो त्यौहार है जिस में सजने की चिन्ता नहीं करनी पड़ती। पत्नी की सहेलियाँ भी मेरे साथ होली मनाने को लेकर उत्साहित थी। मैं भी सोच रहा था कि मुझें भी इतनी सारी सालियों से होली खेलने को मिलेगा।

होली का दिन भी आ गया। उत्तर प्रदेश में होली की सुबह पहले होली को जलाते है, इसके बाद होली के रंग खेलते है। सो इस लिए होली के दिन पहले हम ने होली जलाई और एक-दूसरे को बधाईयां दी। इसके बाद ही मुहल्ले के लड़के आदि होली लगाने के लिए आ गए। इस में सब ने गाल और माथे पर रंग लगा कर होली की शुभकामना दी। गीले रंग की शुरुआत अभी नही हुई थी। थोड़ी देर के बाद मेरे साले ने मुझें बाहर बुला करा मैंने गालों पर गुलाल लगा दिया। मैं अभी उस के गालों पर गुलाल लगा ही रहा था कि छत पर से किसी ने मेरे ऊपर बाल्टी से पानी डाल दिया।

मैंने ऊपर देखा तो पता चला कि पत्नी ही मेरे पर पानी डाल रही थी। मैं पानी का आनंद ले ही रहा था कि फिर से पानी की बौछार मुझ पर गिरी, इस बार मेरी साली छाया ऊपर से पाईप से पानी डाल रही थी। मैंने मजाक में कहा कि खाली पानी से ही काम चला रही हो। यह सुन कर वो बोली की आप को तैयार कर रहे है। रंगों का भी नम्बर आयेगा। मैने उसे नीचे उतरने को कहा तो वह बोली की आप क्यों नही ऊपर आ जाते, मैने कहा कि आता हूँ। मेरे साले ने इस मौके पर कहा कि जीजा जी मै अपने दोस्तों के साथ होली खेलने जा रहा हूँ। आप अब इन से अकेले निबटो। मैंने मन ही मन कहा कि इसी मौके के इन्तजार में तो मैं था।

साले के जाते ही मैं सीढ़ीयाँ चढ कर छत पर चला गया। वहां पहुंचने ही मेरा स्वागत रंगीन पानी से हुआ। मैं पुरा लाल रंग के पानी से लथपथ हो गया। छत पर मेरे स्वागत में पुरी स्वागत समिति बैठी थी। साली की और मेरी पत्नी की सहेलियां खड़ी हुई थी। कुछ को मैं जानता था, कुछ मेरे लिए अजनबी थी। मैंने कहा कि आज तो मेरी हालात खराब होने की पुरी तैयारी है तो छाया बोली की आज ही तो आप हमारे हाथ लगे हो, हम तो मनमानी करेंगी। उस के बाद तो मेरे पर रंग लगाने वालों की झड़ी लग गई।

मेरी पत्नी अलग खड़े हो कर मेरी हालत देख रही थी ये देख कर मैने उसे अपने पास आने का इशारा किया तो उसने कहा कि मैं बाद में रंग लगाऊगी पहले इन सब को लगा लेने दो। मेरा चेहरा लाल, नीले, पीले रंगों से पुता पड़ा था। कपड़े भी लाल रंग से गीले हो रहे थे। मैने अपने हाथों में भी जेब में रखे पक्के रंग निकाल कर लगा लिया था, छाया जब पास आई तो उस को पकड़ कर उस के गोरे रंग को नीले रंग से पोत दिया, उस को बचाने जो भी उस की सहेली आयी उस की हालत भी छाया जैसी हो गई।

इस पर छाया भी अपने हाथों में रंग लगा कर मेरे पीछे से आ कर मेरे चेहरे पर रंग लगाने लगी, मै बचने के लिए आगे की तरफ बढा तो उस ने पीछे से एक हाथ ने मुझें जकड़ा और दूसरे हाथ से चेहरे पर रंग लगाने लगी। इस में उस के स्तन मेरी पीठ पर गढ़ गये। उस का शरीर मांसल था इस लिए उरोज भी भरे हुए थे। मैं उस से बचने के लिए पत्नी की तरफ बढ़ा तो वो भी मेरे साथ घसीटती हुई साथ चली, इस से वो पीछे से मेरे से चिपक गई। मुझें पीठ पर उस के तने हुए निप्पल चुभे।

पत्नी के पास पहुचा तो उस ने भी मुझें रंग लगाने के लिए सामने से पकड़ लिया सामने से बीवी के उरोज और पीछे से छाया के उरोजों के बीच में फँस गया था। मैंने भी अपने हाथों से पत्नी के चेहरे गरदन पर रंग मल दिया। वह तो मेरे कब्जे से निकलने के लिए कसमसाई लेकिन मैंने उस को छोड़ा नही। किसी ने मेरी इस स्थिति का फायदा उठा कर मेरे ऊपर रंग से भरी बाल्टी उलिच दी। अब तो छाया की सहेलियां और पत्नी की सहेलियाँ मुझें रंग लगाने के लिए मेरे चारों तरफ इकठ्ठी हो गयी।

सब के हाथों ने मेरे शरीर पर जहां मौका लगा रंग लगा दिया इस दौरान मैंने हाथ बचाव में चलाए तो किसी के पुष्ट उरोजों से टकरा गए मैंने अपने आप को रोका कि ऐसी हरकत फिर ना हो जाए, लेकिन किसी का कोई ना कोई अंग इस घमाचौकड़ी में मुझ से टकरा ही रहा था। बीवी तो अलग हट कर खड़ी हो गयी थी मैदान में केवल मैं ही था। सब लड़कियों ने अपने मन की कर ली। थोड़ी देर के बाद जब सब थक गई तब मैने पुछा कि अब सब मुझें अपना परिचय तो दे तो ताकि मुझें पता तो चले की किस किस ने रंग लगाया है।

सब ने हंस कर अपना परिचय दिया। इतने में मेरी सास खाने का सामान ले कर ऊपर आ गई और उन्होनें सब से कहा कि बैठ कर कुछ खा पी लो। जीजा जी कही नही जा रहे है। यह सुन कर मैं मुस्करा दिया। उन की बात सुन कर सब मिठाईयों पर टुट पड़ी। मैंने पत्नी को इशारों में कहा कि तुम को तो मैं बाद में देखुगा। उस ने आँखे तरेर कर मुझ को देखा। छाया कि तरफ घुमा तो उस ने कहा कि यह तो पहला दौर था। मैं यह सुन कर मुस्करा दिया।

धुप में गीले खड़े होने के कारण कांप तो रहा था लेकिन धुप अच्छी लग रही थी। फिर कुरसी पर बैठ कर गुझियों का आनंद लेने लगा। छाया भी पास बैठ कर खा रही थी। उस का चेहरा तो रंगा था पर गरदन और नीचे का हिस्सा साफ था, मैंने तय किया कि उस की गरदन और छाती पर भरपुर रंग लगना चाहिए जो मुश्किल से छुटे। रंग तो मैने पास था बस कमी थी तो उसे लगाने की। नाश्ता करने के बाद सब सहेलियाँ तो नीचे चली गई थी। छाया अकेली थी मैंने हाथों में रंग लगाया और पीछे से छाया को पकड़ लिया।

उस ने कहा कि मेरे चहरे पर अब रंग लगाने का फायदा नही है वह पहले से ही रंगीला है। मैंने हाथ उस की गरदन पर रंग मला और मेरे हाथ उस की खुली छाती के ऊपर रंग लगाने लगे इस पर वह पलट गई और बोली कि यह तो बेईमानी है, मैंने कहा कि होली में सब कुछ चलता है। सामने आने के बाद मैंने हाथो से उस की खुली छाती पर रंग लगा दिया उस ने बचने की कोशिश की तो हलचल में हाथ ब्रा के अन्दर चले गये और उरोजों को भी रंग आये मैंने हड़बड़ा कर हाथ पीछे खीच लिये। वह बोली की अब क्यों रुक गये जीजा जी, जहाँ मन करे रंग लगा लो, आप भी क्या याद करोगे की क्या साली मिली है। मैं झैप कर हट कर खड़ा हो गया। इस हरकत से मैं पीछे की तरफ हो गया। अपनी सीमा का मुझें ध्यान था।

तब तक पत्नी जी भी आ गई मैं उन की तरफ चल दिया और कहा कि कहा जाती हो अभी तो तुम्हारा नम्बर बाकी है मेरी मंशा भांप कर वह पीछे हट गयी। मैंने आगे बढ़ कर उस के चेहरे, गरदन और सारे खुले शरीर पर रंग लगाना शुरु कर दिया था इतनी ही देर में छाया हाथों पर नया रंग लगा कर आ गई और अपनी बहन और मेरी बीवी से कहा कि आप इन को पकड़ के रखों अभी तो जीजा जी के पुरे बदन पर रंग लगाना है। मेरी बीवी और साली ने मिल कर मेरा कुरता उतार कर मेरे पुरे बदन पर रंग मल दिया। छिना छपटी में दोनों के अंगों से टकराहट होती रही।

मैंने भी फिर दोनों के शरीर पर जहाँ तक हाथ गया रंग लगा डाला। पानी से हम तीनों ही सराबोर ही थे। सुखने के लिए हम तीनों धुप में बैठ गये। थोड़ी देर में पत्नी किसी काम से नीचे चली गई। मुझें अकेला पा कर छाया मुझ से बोली कि जीजा जी आप तो छुपे रुस्तम हो। पुरे रंग रसिया हो। आप से तो मेरी अच्छी बनेगी। मेरे को यह बात समझ में नही आई। मैने कहा की होली मनाने का तो मैं चेम्पियन हूँ। मेरे हाथ से किसी का बचना सम्भव नही है।

अपनी तरफ से पहले मैं किसी को रंग लगाता नही, लेकिन अगर किसी ने रंग लगा दिया तो फिर उस की खैर नही। यह ही तुम्हारे साथ हुआ है। वो हँस कर बोली की देखते है, होली तो बढिया मन ही रही है। शरारत तो इस का हिस्सा है। छाया ने कहा कि जीजा जी आप ने तो ऐसी जगह भी रंग लगा दिया है कि उसे छुडाने में परेशानी होगी, मैंने शरारत से कहा कि लेकिन रंग किसी को दिखेगा तो नही। वो भी मुस्कराई। मुझें पता नही था कि मैंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया था। आगे आगे देखिए होता है क्या?

दोपहर बाद नहा धोकर जब बैठा तो छाया ने आ कर कहा कि कहाँ से ऐसा पक्का रंग लाये है कि छुठता ही नही है। मैं शरारत से हँस दिया, बोला छुठेगा लेकिन समय लेगा, तब तक बन्द गले के कपड़े पहनने पड़ेगे। वैसे भी वहाँ कौन देखता है। वो बोली कि ऐसी बात नही है। मैंने अचरज से उसे देखा तो उस ने शरारत से आँख दबा दी।

पत्नी ने भी यही शिकायत कि की रंग बहुत पक्का है छुठ नही रहा है। मैंने कहा होली का रंग है धीरे-धीरे ही छुठेगा। पता तो चलना चाहिए कि होली खेली है। वो मुस्करा कर रह गई।

पानी से भीगने के कारण नहाने के बाद नींद आ रही थी मैं कमरे में जा कर बिस्तर पर लेट गया। थोड़ी देर के बाद पत्नी भी मेरे साथ आ कर लेट गयी। मैं कब सो गया मुझें पता ही नही चला। नीद में करवट बदली तो हाथ पत्नी की कमर से होकर उस के उरोजो तक पहुच गये। हाथों ने उन्हें कस लिया, उन से खेलने लगा। नींद में ही लगा कि जिन से खेल रहा हूँ वह कुछ ज्यादा ही मोटे है। मेरे परिचित उरोज तो कठोर है। नींद से हड़बड़ा कर उठा तो देखा कि बिस्तर पर मेरी बगल में छाया सो रही थी।

मैं अचकचा कर बिस्तर पर से ऊछल कर खड़ा हो गया। मेरी इस हरकत से बैगानी छाया सोई रही। मैं कमरे से बाहर निकल गया, पुरे घर में घुम कर देखा तो पता चला कि हम दोनों के सिवा घर में कोई नही है। मुझें अपने पर बड़ी शरम आ रही थी कि मैं अपनी साली के उरोजों से खेल रहा था। नींद खुल गई नही तो पता नहीं क्या हो जाता।

इतनी देर में छाया भी उठ गयी थी। मैंने कमरे में आ कर उस से पुछा कि सब लोग कहाँ है तथा वह मेरे बिस्तर में क्या कर रही थी। उस ने कहा कि सब लोग किसी के यहाँ गये है, मैं सो रहा था इस लिए किसी ने मुझें उठाया नही, और मेरे सोने के कारण घर की देखभाल के लिए उसे रुकना पड़ा।

मैंने पुछा कि मेरे साथ सोने का क्या कारण था। वह बोली की आप तो बड़े बहादूर बनते थे मेरे बगल में लेटने से क्या आफत आ गई। मैंने कहा कि यह गलत तो है ही। वो बोली कि गलत हुआ नही तो गलत कहाँ हुआ। वह शरारत से मुस्करा कर बोली की मैं तो यह देखना चाहती थी कि सोते में आप क्या शरारत करते हो? मुझें पता चल गया कि आप तो बहुत शरारती हो।

आप ही शरारत कर सकते हो मैं नहीं ऐसा कैसे चलेगा।

मैं शर्म से चुप रहा।

उस को इस से शय मिल गयी और वह मेरे से लिपट कर बोली कि माफी के लिए एक बार चुम्बन देना पड़ेगा

मैंने कहा कि बदमाशी मत कर

उस ने मेरे नजदीक आ कर कहा की ये जो थोड़ी सी दूरी है वो भी किसी दिन दूर कर दूँगी। आप मेरे से बच नही सकते।

मैंने उस के सामने हाथ जोडे़ तो उस ने मेरे हाथों को पकड़ कर चुम लिया।

मैं इस से धबरा कर कमरे से बाहर निकल गया और जब तक सब लोग घर नही आ गये घर के अन्दर नही गया। मुझें बाहर खड़ा देख कर पत्नी ने पुछा कि आप कब जगे?। मैंने कहा कि अभी ही जगा हूँ और इसी लिये बाहर खड़ा हुआ हूँ। पत्नी ने अन्दर आ कर कहा कि किसी के यहाँ जाना था आप गहरी नींद में थे इस लिए आप को किसी ने जगाना उचित नही समझा। आप अकेले ना रहे इसी के लिए छाया को छोड़ गये थे। वह भी सोने जा रही थी। इस लिए आप दोनों को छोड़ गये।

होली के बाद नींद भी बहुत आती है। उस की बात सुन कर मुझें कुछ याद आया कि मैं रात में सोते में ही पत्नी से संभोग कर लेता हूँ। यह याद आते ही मैं बाथरुम की तरफ भागा, वहाँ जा कर मैंने अपनी ब्रीफ उतार कर रोशनी में अच्छी तरह देखी की क्या उस पर वीर्य के दाग तो नही लगे है। ब्रीफ साफ पड़ी थी उस पर कोई दाग नही था यह तो साफ था कि मैंने सिर्फ हाथ ही चलाये थे और कुछ नहीं, यह देख कर मेरे मन को चैन आया कि छाया के साथ शारीरिक सपंर्क नही हुआ था, शायद वह भी थोड़े समय पहले ही आ कर मेरे साथ लेटी थी। मैं जब बाथरुम में से निकला तो मेरे चेहरे पर संतोष के भाव थे। मेरी बहुत बड़ी चिन्ता दूर हो गई थी।

सोने तक मेरी छाया से मुलाकात नही हुयी। रात को बिस्तर पर लेटते ही पत्नी ने मुझ से लिपट कर चुम्बन ले कर पुछा कि अभी तक नाराज हो।

मैंने कहा कि नाराज नहीं हूँ। उसका कोई कारण नही है।

वो बोली कि तुम्हे मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। आज की बात से तुम परेशान हो, यह मुझें दिख रहा है। मैंने उसे मना किया और उस को कस कर अपने से लिपटा लिया। वो तो इस के लिए तैयार बैठी थी उस ने मुझ पर चुम्बनों की बौछार कर दी। उसका एक हाथ कपड़ों के ऊपर से लिंग को सहलाने लगा। मेरे हाथ ने भी उस की योनि को सहलाना शुरु किया। मैंने उस के ब्लाउज के हूक खोल कर उसे उतार दिया और ब्रा के उपर से ही उरोजो को मसलना शुरु कर दिया, इस पर वह बोली की आज होली में तुम ने इन पर भी रंग लगा दिया है।

उस ने ब्रा निकाल कर अपने उरोजों को मेरे सामने कर दिया उस की बात सही थी उरोजो पर भी काफी रंग लगा हुआ था। मैंने कहा कि ये रंग से कैसे बच सकते है। वह बोली कि अब जीभ से चाट कर इन्हें साफ करो, मेरे होंठों ने उरोजो को मुँह में भरने की कोशिश करनी शुरु की। एक हाथ से पेटीकोट का नाड़ा खोल कर हाथ पेंटी में डाल कर योनि में ऊंगली कर दी और उसे अन्दर बाहर करना शुरु किया।

उस के होंठों से आहहहह उईईईई निकलने लगी। पेंटी नीचे कर के पेटीकोट को ऊपर कर के अपने लिंग को निकाल कर उस की योनि में घुसेड़ दिया. योनि तो उस के लिए गीली हो कर तैयार थी। धीरे धीरे संभोग चलता रहा। बीवी के मुँह से आह निकलती रही। थोड़ी देर बाद तुफान अपने जोर पर आ कर चला गया। मैं उस की बगल में लेटा था वह बोली की आज इतने नाराज हो कि मुझें कुछ करने का मौका ही नही दिया। खुद ही सारा मजा लुट लिया। अच्छी बात नही है, उस को भी नीद आ रही थी यह कह कर वह करवट बदल कर खर्राटे भरने लगी। मैं भी सोने की कोशिश करने लगा।

हम तीन दिनों तक और ससुराल रहे लेकिन मैंने कोशिश कि की मेरी छाया से अकेले में मुलाकात न हो। उस के व्यवहार से मैं परेशान था। अपनी बीवी से मुझें बहुत प्यार था और मैं ऐसा कुछ नही करना चाहता था जिस से उसे दुख पहुचे।

हम घर वापस आ गये। हमारे बीच उस दिन को लेकर फिर कोई बात नही हुई।

लेकिन मैं अपनी बीवी को और ज्यादा प्यार करने लगा।

कुछ दिन बाद ससुराल से संदेश आया कि एक शादी के लिए अगले हफ्ते ससुराल आना पड़ेगा। शादी किसी खास रिस्तेदार की है इस लिए आना जरुरी है। तय समय पर हम दोनों ससुराल पहुँच गये। दूसरे दिन शादी में सब लोग शामिल होने के लिए चल पड़े, समारोह स्थल शहर से दूर था इस लिए सब अपनी गाड़ीयों से आये थे। शादी में कई रिस्तेदारों से मिलना होता है इस लिए हम दोनों काफी व्यस्त हो गये। बारात आई और बारात के स्वागत के बाद सब लोग दुल्हा दुल्हन के साथ फोटो खिचाने में लग गये।

हम भी परिवार के साथ फोटो खिचवाँ कर खाना खाने के लिए चल ही रहे थे कि मेरी सास ने मुझ से कहा कि दामाद जी खाना खाने के बाद आप छाया को साथ ले कर गाड़ी से घर चले जाना, कुछ जरुरी सामान मैं घर पर ही भुल आयी हूं। मैं मना कर ही नहीं सकता था, लेकिन छाया के साथ अकेले जाना कुछ अच्छा नही लग रहा था। करता क्या ना करता, खाने के बाद मैंने कोशिश कि की अपनी पत्नी को भी साथ ले चलु लेकिन उस को ढुढ़ ही नही सका, तभी छाया गाड़ी की चाबी ले कर आई और बोली कि जीजा जी चलिए घर चलना है।

मैं उसे गाड़ी में बैठा कर घर की तरफ चल दिया। रास्ते में छाया बोली कि जीजा जी मुझ से बचने की कोशिश क्यों कर रहे है, ऐसा मैंने क्या कर दिया है? मैं चुप रहा, वह बोली की मेरी बात का जबाव तो देना पड़ेगा चुप रहने से काम नही चलेगा। मैंने कहा कि अपने मन से पुछों इस का कारण, मेरे से क्यों पुछ रही हो, क्या तुम्हें नही पता मैं क्यों नाराज हूं। वह हँस कर बोली इतनी छोटी सी बात का आप पतगड़ बना रहे है। मैं तो उसे कब का भुल गई हूँ। परेशान करना तो मेरा अधिकार है उस से आप नही बच सकते, मैं भी मुस्करा दिया वो बोली अब अच्छे लग रहे है। आप की मेरी तो यह लड़ाई चलती रहेगी, मेरे तो एक ही जीजा जी है।

घर पहुच कर उस ने कुछ सामान निकाल कर बैग में रखा और फिर बोली की जीजा जी मैं कपड़े बदल लेती हूँ, इन में बैठना मुश्किल है, आप थोड़ी देर वेट कर लो। मैं डाईगरुम में बैठ गया। कुछ देर के बाद उस की आवाज आई कि जीजा जी जरा यहाँ आईये। मैं अन्दर उस के कमरे में गया तो वो लहंगे में ही खड़ी थी, वो बोली मेरा ब्लाउज उतर नही रहा है आप जरा इसे उतारने में मेरी मदद करो। उसका ब्लाउज पीछे से डोरी से बधां था उसे बिना किसी की सहायता के न पहना जा सकता था और न ही उतारा जा सकता था। इस लिए उसे मेरी जरुरत थी मैंने उस के ब्लाउज की डोरी को खोल कर उसे लुपों में से निकाल का अलग कर दिया अब ब्लाउज पुरा खुल गया था।

मै वहाँ से चलने लगा तो उस ने कहा कि कहाँ जा रहे है होली पर जिन के ऊपर रंग लगाने में लिए मरे जा रहे थे उन को देख कर जाईये। ये कह कर उस ने ब्लाउज उतार कर अलग कर दिया और मेरे सामने घुम गई। मेरी आखों के सामने उस के भरे हुए मांसल उरोज तने खड़े थे। मेरी जबान सुख गई, मैं मुड़ा और कमरे से निकल गया। मैं उलझन में था, ये लड़की तो शरारत से बाज नही आ रही थी। फिर उस की आवाज आई तो मुझें फिर कमरे में जाना पड़ा वह पहले जैसी ही खड़ी थी, बोली की अधुरा काम छोड़ कर क्यों चले गये अभी इस को भी तो पहनाना है, इस की भी डोरी है, मैंने उस से कहा की इसे पहन तो ले, उस के बाद ही तो डोरी डालुगाँ। वो बोली की आप इसे पहनने में मेरी मदद करो मै आप को खा नही जाऊगी।

मैंने ब्लाउज पकड़ कर उस की बाहों के सामने किया तो उस ने झट से मेरे को आलिंगन में कस लिया और मेरे गाल पर किस कर दिया। मेरी तो हालत और खराब हो गई। मैने उस से कहा कि जल्दी कर के ब्लाउज पहन ले, इस बात के लिए समय नही है। उस ने शराफत ने ब्लाउज पहन लिया इस के बाद मैंने उसकी डोरी डाल कर कस दी। मैंने उस से कहा कि मैं यही खड़ा हूँ वो साड़ी पहन ले। वो बोली की अब डर नही लग रहा मैंने कहा कि डर मुझें किसी बात का नही है रिस्तों की मर्यादा रखनी पड़ती है, भावनाओं में बह जाना आसान है लेकिन बाद में परेशान होना पड़ता है।

उस ने जल्दी से साड़ी पहन ली। साड़ी में वो बहुत सुन्दर लग रही थी, मैंने कहा कि आज शादी में तो ना जाने कितनों की जान जायेगी, वो हँस कर बोली कि आप पर तो कोई असर नही होगा। मैंने कहा कि मेरे पर तो असर हो ही गया है तभी तो तुम्हारी प्रशंसा कर रहा हूं। इस पर वो बोली की इस पर तो आप को इनाम मिलना चाहिए, मैंने कहा कि बातें कम कर जल्दी से तैयार हो जा। उस ने मेरे पास आ कर कहा कि आप को मेरे से भागने की जरुरत नही है। मैंने उस के माथे पर चुम्बन अकिंत कर दिया।

उस को शांत करना जरुरी था, इस पर उस ने झट से मेरे होंठों पर अपने लब रख दिये उस के जलते होंठ मेरे होंठों से चुपक गये। उन के मीठेपन का स्वाद मैंने भी भरपुर लिया। जब वह सन्तुष्ट हो गयी तब हम अलग हुऐ। अब शायद उस को थोड़ी शान्ति मिली थी। वह चुपचाप घर बन्द कर के गाड़ी में बैठ गयी।

रास्ते में उस ने बताया कि उसे उस की दीदी ने ही बताया था कि मैं सोते में उस के उरोजों को नींद में भी दबाता रहता हूँ। इस लिए ही वह मेरे साथ लेटी थी कि इस बहाने ही मैं उस के उरोजों का मसल दूगाँ। मैंने हँस कर पुछा कि तुम्हारी दीदी ने यह नही बताया कि इस के बाद क्या होता है तो वह बोली कि उसे पता है, वह उस के लिए भी तैयार थी। मैं हैरान था उस की इस बात पर। मैंने कहा कि उसे पता है इस तरह के संबंधों का अन्त कैसा होता है। इन संबंधों में कोई भी खुश नही रहता है। मैं तुम्हारा दोस्त हो सकता हूं, लेकिन तुम्हें किसी से शादी करनी है इस लिए ऐसा करना गलत होगा।

तुम्हारी बहन मेरी पत्नी है उस के और मेरे संबंधों पर बुरा प्रभाव होगा। परिवार में भी कोई इस को नही मानेगा। इस पर उस ने ऐसी बात बताई कि एक बार तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उस ने कहा कि मेरी बीवी और उस के बीच लेस्बियन संबंध थे। दोनों हर बात एक दूसरे को बताती है। इसी कारण से उस का किसी लड़के से संबंध नही है लेकिन मेरे को देख कर उसे मुझ से प्रेम हो गया है।

इस बात पर फिर कभी बात करेगे, आज की बात तो खत्म हो गई, उस ने गर्दन हिलायी।

सुबह शादी से सब लोग घर आ गये। मेरी सांस बोली कि दामाद जी आप की बात मान कर छाया ने कल साड़ी पहनी नही तो उस को साड़ी पहनाना असंभव था। साड़ी में कितनी अच्छी लग रही थी। मैंने कहा यह बात तो सही है। साड़ी उस पर जंच रही थी।

बाद में बीवी ने बताया कि हमारे साथ छाया भी चल रही है उस कि छुट्टीयाँ है, इस लिए मेरा भी मन लग जायेगा। मैंने सर हिलाया। मन में सोचा कि अब तेरा क्या होगा इन दोनों बहनों के बीच। हम तीनों जनें घर पहुच गये। मेरे को तो दूसरे दिन काम पर जाना था मैं तो सुबह उठ कर चला गया। सारे दिन व्यस्त रहा, शाम को जब घर लौटा तो पत्नी परेशान दिखी। मैंने पुछा कि क्या परेशानी है तो उस ने कहा कि कुछ खास बात नही है। हम सब ने एक साथ बैठ कर खाना खाया, उस के बाद मैंने छाया से पुछा कि उस का दिन कैसे बिता तो उस ने कहा कि वह दीदी के साथ शॅापिग करने गयी थी। उसी में समय बीत गया।

मै सोने के लिए बेडरुम में चला गया तो मेरी पत्नी मेरे पास आ कर बोली की आप से एक बात करनी है, मैंने पुछा क्या? तो वह बोली कि क्या छाया आज हमारे साथ सो सकती है। मैंने आश्चर्य से उस को देखा उस की आँखों में याचना थी। मैंने उसे पास में बिठा कर उस से पुछा कि मुझें सारी बात बताओं। उस ने कहा कि हम दोनों में बचपन से संबंध है हमें नही पता था कि इस का क्या असर पड़ेगा, आप से शादी के बाद मैं तो आप के प्यार में खो गई हूँ। मुझें तो इस की जरुरत नही लगती, लेकिन इस को कैसे इस संबंध से निकाला जाए यह समझ नही आ रहा है। शायद हम दोनों के साथ रहने से यह लेस्बियन संबंध से बाहर निकल कर सामान्य जीवन जी सके।

मै सोचने लगा कि इस का क्या जबाव दुँ।

मैंने कहा कि तुम्हारे घर में इस बात का पता है वो बोली कि किसी को पता नही है। मैंने कहा कि कोशिश कर के देखते है तुम दोनों का यह संबंध दो बहनों की ज्यादा निकटता है और कुछ नही, छाया भी सामान्य ही है चिन्ता मत करो। आज तो ऐसे ही सोते है मुझें भी इस बात के लिए समय चाहिए। उस के चेहरे से चिन्ता की लकीरें कुछ कम हुई। मैने कहा कि मुझें अच्छा लगा कि तुमने मुझें यह सब कुछ बता दिया। हम तीनों इस को सुलझा लेगें। मैंने छाया को आवाज दे कर बुलाया और उसे बताया कि उस की बहन ने मुझें सब कुछ बता दिया है, उस को चिन्ता करने की जरुरत नही है।

मैंने पत्नी से कहा कि इस के लिए कोई कोन्ट्रासेप्टिक लाना पड़ेगा ताकि यह गर्भवती ना हो जाये। तुम तो लेती ही हो, डाक्टर से पुछ कर इस के लिये ले आना, ये कहना कि मेरी किसी रिस्तेदार को चाहिए। इस के बाद ही कुछ करेगे। तुम अगर छाया के साथ सोना चाहती हो तो सो जाओ। मेरी इस बात से छाया के चेहरे पर खुशी छा गई। मेरी पत्नी मेरे से लिपट कर बोली की आप के इस अहसान को मैं कभी नही उतार पाऊगी। मैंने कहा कि छाया मेरी भी तो कुछ है। इस लिए मुझ से जो हो सकेगा वो मैं करुँगा।

उस रात मैं अकेला सोया। मेरे दिमाग में यही चलता रहा कि आगे क्या होगा। और कैसे करना पड़ेगा?

सुबह मैं तो काम पर चला गया। शाम को घर लौटा तो पत्नी ने चाय दे कर कहा कि उसे छाया के लिए मेडीसन नही मिल पायी। मैंने कहा कि मैं ही जा कर तुम्हारी दवा ले आता हूँ मैंने फोन कर के डाक्टर से पता कर लिया था। मैं चाय पी कर दवा लेने चला गया। दवा ले कर लौटा तो मैंने कहा कि इसे छाया को ऐसे ही दे जैसे वह खुद लेती है। मैंने उस के बाद छाया को पास बुलाया और उस को और बीवी को एक साथ बाहों में लेकर दोनों को चुमा। दोनों के चेहरों पर हैरानी और खुशी के भाव थे। पत्नी बोली की दवा तो सुबह ही लेनी पड़ती है, मैंने कहा कल से शुरु करना। इस के बाद हम तीनों लोग एक ही बेड पर सो गये। रात को कुछ नही हुआ। मैं किसी तरह का खतरा नही उठाना चाहता था।

दुसरे दिन शनिवार होने के कारण मेरी छुट्टी थी हम तीनों शहर घुमने चले गये। दिन भर शहर देखते रहे।

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