महारानी देवरानी 014

Story Info
दुविधा, प्राथना
1.4k words
3.8
37
00

Part 14 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 14

दुविधा

रात भर चुदाई के बाद जब सुबह कमला की आँख खुलती है वह अपने आप को नग्न पाती है। उसके दोनों दूध वैध जी के सीने में दबे हुए थे और गांड पर उनका हाथ रखा हुआ था। ये देख कमला शर्म से पानी-पानी हो जाती है और जल्दी से उठ कर स्नान घर में घुस के स्नान कर तैयार होती है और आ कर वैध जी को उठाती है।

कमला: उठिए जी।

वैध: हम्म।

कमला: श्रीमन उठिए सर पर सूरज आ गया हैं।

वैध जैसे नींद से जगते हुए आंखे खोलता है और कमला को देखता है उसके चेहरों की चमक देखते ही वैध का लिंग खड़ा होने लगता है। वह कमला को खा जाने वाली नज़र से ऊपर से नीचे देखता है। कमला की छोटे कद काठी पर उसके बड़े स्तन और चुतड़ कहर ढा रहे थे और वैध उठ कर कमला को पकड़ने के लिए आगे बढ़ता है। कमला फुर्ती दिखाते हुए पीछे हो जाती हैं।

कमला: रात भर चोद के मन नहीं भरा आपका।

वैध: तुझे दिन भर चौदु तो भी मेरा मन ना भरे।

कमला: आपको मैं जब दिन रात दूंगी तभी दिन रात पेलोगे।

वैध: देखते हैं, तुम खुद आओगी मेरे पास।

कमला: पर अभी महल में मेरी हाजिरी का वक्त है। और उदास होते हुए कहती हैं अभी नहीं फिर कभी।

वैध: ठीक है जाओ कमला जी।

कमला देवरानी से मिलने निकल पड़ती है।

इधर महारानी सुबह सवरे उठ कर तैयार होती है और पीले रंग की साडी पहन कर पूजा समग्री इक्कठी कर जो उसके कक्ष में छोटा-सा मंदिर था उसमे पूजा करने लगती है।।

हाथ जोड़े वंदना करती हुई देवरानी किसी देवी से कम नहीं लग रही थी । वह देवी जिसका जीवन सम्मान, मर्यादा और जीवन में ईश्वर से प्रेम और उसके चलने के रास्ते पर चलने के अलावा कुछ नहीं है। ये वही देवरानी है जो हर दर्द सह कर भी अपने परिवार का साथ देती रही और कभी उफ तक नहीं की।

महारानी पूजा भजन समाप्त कर अब भगवान से धीरे-धीरे बात करने लगती है।

देवरानी: बलदेव को पांच वर्ष बाद देखने पर मैंने दुलार दिया, मेरे साथ झील के किनारे, खेल-खेल में वह मेरे गले लग गया था, फिर एक दूसरे से हंसी मजाक हुआ और-और कुश्ती मैदान में तो वह मेरा हाथ थामे बैठा रहा। इस सब से मैं हल्का उत्तेजित-सी हो गई थी क्योंकि में एक माँ के साथ स्त्री भी तो हूँ। मुझे माफ़ कर दो। क्षमा कर दो, भगवान!

महारानी: भगवान में बड़ी दुविधा में हूँ, मेरा धर्म मेरी मर्यादा मुझे इस बात का आज्ञा नहीं देती कि मैं अपने पति को छोड़ किसी और से सम्बंध रखूं पर में क्या करूं? भगवान अब मुझ से ये पीड़ा बर्दाश्त नहीं होती (रोने लगती है) ।

भगवान शेर सिंह मझे बहुत चाहता है और में उसका दिल नहीं तोड़ सकती। मुझे माफ़ कर देना भगवान पर में आज उसे पत्र दूंगी और रोते हुए अपना माथा टेकती है। "मेरी इच्छा पूरी हो जाए, तभी एक फूल नीचे भगवान के चरणों में देवरानी के सर के पास गिरा"

इधर दरवाज़े के पीछे कमला देवरानी की हर बात सुन रही थी, जैसे कमला अंदर आने लगी वह कमला की आहट देवरानी सुन चुप गई थी।

कमला: (मन में) हाय राम ये महारानी! अपने पुत्र को अपनी सुंदर दिखा कर उसका लंड खड़ा कर दिया और अब शेर सिंह के लिए भगवान को मना रही है।

उस दिन कैसे बिना साडी के ब्लाउज में ही अपने पुत्र के सामने आ गई थी, इस से पूछूंगी ये बात तो यही कहेगी कि मेरा बेटा ही तो हैं इसीलिए ब्लाउज में बाहर आई। कोई गैर तो नहीं ।

"हाये राम अब तो बलदेव के लिए चुनौती और बढ़ गई है" कमीनी की सुंदरता और चाल ऐसी है कि इसे देख कर तो मैंने हर किसी को आहे भरते हुए देखा है। भला इसका बेटे को जो अभी कच्चा कुवारा है कभी स्त्री को छूवा भी नहीं वह भला कैसे ना इस जैसी घोड़ी के प्रेम में पड़ जाए। "

कमला तभी महारानी! महारानी कहाँ हो! कह कर कक्ष में अंदर आती है।

कमला को देख देवरानी अपने आसु पोंछ कर खड़ी हो जाती है और मस्कुराते हुए।

महारानीः "बोलो कमला"

कमला: कैसी हो महारानी?

महारानीः में खुश हूँ।

कमला: (मन में-तुझे तो लंड चाहिए पर तेरे बेटे का क्या जो तेरे प्यार में पागल हुआ है)

कमला: आपने पत्र का कुछ उत्तर देने का सोचा।

देवरानी: हाँ मुझे कुछ समय दो में उत्तर लिख देती हूँ।

कमला: वैसे आज इस पीली साडी में जच रही हो आप! बिलकुल देवी जैसी लग रही हो।

देवरानीः धन्यवाद।

कमला: (मन में तुम महारानी पत्र दो! शेर सिंह को पर वह तो मिलेगा बलदेव को ही और मेरे रहते हुए बलदेव का दिल टूट नहीं सकता और तुम किसी और की नहीं हो सकती और कातिल मुस्कान देती है।)

देवरानी: मुस्कुरा क्यों रही हो?

कमला: बस ऐसे ही कुछ याद आ गया।

देवरानी: वैसे आज तुम बड़े सवेरे आगयी।

कमला (मन में सोचती है कि वो बता दे की वह आज वैध से चुद कर आई है फिर कहती है नहीं अभी नहीं।)

कमला वहा से विदा लेती है और देवरानी सबको घर में प्रसाद देने लगती है पर उसे बलदेव नहीं दिखता।

देवरानी प्रसाद की थाली ले कर ऊपर बलदेव के कक्ष में जाति है जहाँ बलदेव अपनी तलवार को देख रहा था। जैसे ही वह अपने माता को आते हुए देखता है झट से तलवार को रख कर अपनी माता के चरण स्पर्श करता है।

बलदेव: माते!

देवरानी चाह तो यही थी के वह उसे गले लगाये पर वह कुछ सोच कर ऐसा नहीं करती।

देवरानी: बेटा ये लो प्रसाद।

बलदेव प्रसाद लेते हुए।

बलदेव: माँ ये बहुत स्वादिष्ट है। माँ आज इस पीली साडी में देवी लग रही हो।

देवरानी बस मुस्कुरा देती है और अपने दोनों हाथो से थाली पकड़े घूम के बाहर जाने लगती है।

देवरानी की खुशी की चाल में उसके बड़े दोनों नितांब के पट अलग ही थिरकन पैदा कर रहे थे। एक दूजे से लड़ रहे थे और धक्का मुक्की कर के एक दूसरे को बाहर फेक रहे थे और ये सब बलदेव बड़े गौर से देख रहा था।

देवरानी को यू मटकते देख बलदेव का लंड खड़ा हो जाता है वह झट से अपने लैंड पर हाथ रख कर मसल देता है "आह! माँ कब देखने को मिलेगी मुझे तेरी रस की गगरी?"

बलदेव: (मन में कोई बात नहीं माँ तुम शेर सिंह से कभी मिलाप नहीं कर सकोगी क्यू के शेर सिंह में ही हूँ और तुम जब तक ये तय लोगी के तुम्हे उसके साथ जाना है मैं तुम्हे अपने प्यार में दीवाना कर दूंगा और मुस्कुरा देता है।

राज दरबार लगा हुआ था और राजा राजपाल के पास सेनापति आ कर एक संदेश सुनाता है।

सेनापति: महाराज राजा रतन सिंह का संदेश आया है उनको कहा है कि उनके राज्य "कुबेरी" पर बाहरी आक्रमण का अंदेशा है । इसलिए हमें सैनिक एकत्रित कर वहा सैनिक बल बढ़ाने के लिए कहा गया है।

राजपाल: अवश्य हम राजा रतन के साथ हमेशा से हैं और इस कठित परिस्थति में भी हम उनके साथ रहेंगे।

सेनापति: जी महाराज।

राजपाल: सेनापति तुम सेना तैयार करो हमें अतिशिघ्र "कुबेरी" कूच करना होगा।

बात ये थी राजा रतन ने अपने लोभ के लिए उनके राज्यों को जीत लिया था और अपने राज्य को सोने और जवाहरत से भर दिया था । जिसकी भनक बहारी राजाओ तक पहुँच गई थी और सब चाह रहे थे के वे कुबेरी राज्य को लूट ले।

इधर दोपहर के भोजन के बाद देवरानी पत्र लिख लेती है और अपने पास संभल के रख लेती है और खुशी के मारे कमला को बुलाने के लिए वह तेजी से चलते हुए अपने कक्ष से बाहर आ रही होती है उसका पैर फिसल जाता है और वह मुह के बल गिरने वाली ही कि किसि का हाथ उसकी कमर पर लगता है।

वो हाथ देवरानी के नाभी के पास से दबोच लेते हैं और दूसरा हाथ उसकी बांह पकड़ लेता हैं । ऐसे अचानक गिरने से डरके और अपने आप को किसी के द्वारा पकड़े जाने से देवरानी आश्चर्य चकित हो कर पहले अपने सांसों को संभलती है फिर पीछे देखती है।

पिछले बलदेव खड़ा था उसे देख देवरानी मुस्कुरा देती है।

देवरानी: धन्यवाद बेटा मुझे बच लिया तुमने (अपने कमर के पकड़ने जाने से थोड़ा शर्मा जाती है अंदर से।)

बलदेव: माँ धन्यवाद किस लिए? । आपकी रक्षा तो मेरा फ़र्ज़ है।

फिर बलदेव मुस्कुराते हुए वह से चला जाता है।

बलदेव मन में"आप एक बार धन्यवाद बोल दोगी पर में तो आपको जीवन भर संभालने के लिए बेकरार हूं। "

कहानी जारी रहेगी

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