Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 19
राजा रतन और राजा राजपाल ने मिलकर "कुबेरी" राज्य, जो की राजा रतन ने सोने और जवाहरात से भर के अपने राज्य को हिंदुस्तान का सबसे धनी राज्य बना दिया था। राजा रतन को आशा थी कि उन पर कोई हमला कर लूट पाट न मचा दे।
यही वजाह थी के राजा रतन हर एक प्रयास कर रहा था कि आपने सैनिक बढ़ा ले और कई दिनो तक सबने मिल कर हमले का कैसे उत्तर देना उसकी योजना बना ली।
पर सबसे ज्यादा अगर डर किसी का था तो वह राजा रतन को था,
एक तो दिल्ली के तख्त पर बैठे बादशाह शाहजेब का डर।
दुसरा अरब और फारस या पारस पर अपना सिक्का जमाये हुए सुल्तान मीर वाहिद का, वह मीर वाहिद जो आधी दुनिया से ज्यादा पर अब तक फतेह कर चुका था।
राजा रतन ने सबसे निपटने के लिए अपने सहयोगी हर राज्य से मदद मांगी और सबने उसकी मदद भी की, इस प्रकार अपने राज्य को राजा रतन ने 50000 से ज़्यादा सैनिकों से घेर दिया था।
राजा राजपाल वैसे तो अपने मित्र राजा रतन की मदद करना चाहते थे पर दूसरी वजह ये भी थी कि कई वर्षो से रतन सिंह का साथ देने से विदेशो में लोगों ने राजपाल पर भी निशाना बनाना शुरू कर दिया था।
राजपाल इस बात से भभित था कि सिर्फ 5000 की आबादी वाले उसका राज्य जिसमे मुश्किल से 1000 सैनिक बल था उन बिहारी आक्रमण का सामना कैसे करेंगा, इसलिए ना चाहते हुए भी युद्ध में राजा रतन का साथ देना उनकी मजबूरी था।
राजपाल: रतन सिंह, आज सप्ताह बीत गया परहमे किसी के हमला करने की कोई सूचना नहीं मिली।
रतन: राजपाल तुम जानते ही हो के वह कितने शातिर है वह तब कभी भी हमले नहीं करते जब उनके दुश्मन तैयार हो।
राजपाल: आप सही हो, वैसे यहाँ हमने अच्छी तयारी कर ली है उनके स्वागत के लिए।
रतन: वह आए तो याद रहे कोई जिंदा वापस ना जाए।
राजपाल: वह सब तो ठीक है पर आपको नहीं लगता है कि वह आपको कमजोर करने के लिए आपके सहयोगियों पर हमला कर सकते हैं।
रतन: तुम कहना क्या चाहते हो।
राजपाल: आप तो जानते है के मेरे राज्य घटकराष्ट्र में आपके राज्य कुबेरी से बहुत कम सैनिक है और कहीं वह हमला हम पर हुआ तो?
रतन: सोचते हुए तुम ठीक कहते हो।
राजपाल: हमें कुछ न कुछ वहा के लिए भी तैयारी कर लेनी चाहिए।
रतन: राजपाल घटराष्ट्र तक तो बस वही पहुँच सकता है अगर कोई घाटराष्ट्र का व्यक्ति मदद करे। नहीं तो मैंने सुना है वहा लोग जाने से पहले ही जंगल में रास्ता भूल जाते हैं।
राजपाल: हाँ ये सत्य है ये हमारे पूर्वज की बुद्धिमानी है जो हमारे राज्य को ऐसे जगह बसाया है।
दोनो ऐसे वह बात चीत करते-करते मयखाने कि और चल देते है जहाँ बैठ के दोनों जी भर शराब का लुत्फ उठाते है।
एक घोड़ा घाटराष्ट्र की दिशा में बहुत तेजी से दौड़ता जा रहा था और उसपे बैठा व्यक्ति घोडे को लगाम दिए बिना घाटराष्ट्र के बाज़ार तक पहुँचा । वह अपना घोड़ा पास के खेत में बाँध कर, बाज़ार का सामान देखने लगता है।
"अरे ये अमरूद कैसे दिये?"
दुकानदार: एक सोने का सिक्का में 4 अमरूद पाओ।
व्यक्ति: बाप रे "इतना महंगा!"
दुकानदार: ये तो सस्ते हैं श्रीमान पर आपको घाटराष्ट्र में पहले नहीं देखा।
व्यक्ति: मस्कुराते हुए "हो सकता है!"
दुकानदार: तुम बाहरी तो नहीं।
व्यक्ति: ऐसा ही समझ लो, तुम मुझे 4 अमरूद देदो बदले में तुम्हे सोने एक सिक्के देता हूँ।
दुकानदार: हाँ क्यों नहीं!
व्यक्ति और हाँ क्या ये सिक्के बाहरी हो सकते हैं।
दुकानदार: केवल स्वर्ण का सिक्का चलेगा।
व्यक्ति अमरूद को उठाकर खाने लगता है और सिक्का अमरूद वाले को देता है।
दुकानदार: ये तो पारसी सिक्के है। तुम पारसी हो?
व्यक्ति: हाँ हु।
दुकानदार: तुमने घाटराष्ट्र कैसे ढूँढ लिया?
व्यक्ति: घाटराष्ट्र कोई ढूँढ नहीं सकता बच्चे मैं तो बस अपनी बुआ के बेटे की बेटी के घर आया हूँ।
दुकानदार कुछ समझ नहीं पता और उसे छोड़ देता है। वह व्यक्ति रात का इंतजार करने लगता है।
रात होते ही वह रस्सी की मदद से महल पर चढ़ जाता है।
उसने घाटराष्ट्र के सैनिक का भेस धारण कर लिया था वह सीधा देवरानी के कक्ष में घुस जाता है।
व्यक्ति: आप ही पारसी रानी देवरानी हो?
देवरानी एक नए चेहरे को देख कर समझ नहीं पाती के ये क्या हो रहा है तुरंत वह पास रखी तलवार को उठा लेती है।
देवरानी: तुम कौन हो?
व्यक्ति: घबराए नहीं मेरे हाथ में कोई हथियार नहीं है। (वो अपना खाली दोनों हाथ दिखाता है।)
देवरानी चैन की सांस ले कर तलवार निचे करते हुए।
देवरानी: कौन हो बहुरुपिये?
व्यक्ति: आपका कोई गुप्तचर था रामेश्वर?
देवरानी फिर से अपनी तलवार उठा लेती है।
देवरानी: हाँ बोलो क्या हुआ उसे?
व्यक्ति: वह बेचारा मारा गया।
देवरानी हल्का गुस्सा होते हुए।
व्यक्ति: अहा आप गुस्सा न होईये में उसका कातिल नहीं हूँ।
देवरानी: पहेलिया न बुझाओ बोलो क्या काम है।
व्यक्ति अपने चेहरे से नकाब हटाता है।
व्यक्ति: में शमशेरा हूँ, मीर वाहिद का एकलौता वारिस चिराग और पारस के साथ उन तमाम मुल्को का युवराज जिसपे हम कबीज है।
देवरानी ये बात सुनते ही समझ जाती है कि वह पारस से आया है और वह मीर वाहिद का शहजादा है।
शमशेराः हाँ और तुम्हारा गुप्तचार रामेश्वर घोचू था मारा गया। जासूसी नहीं आती थी उसे।
देवरानी अब समझ गई थी के उसको इस से कोई खतरा नहीं है, उसे वह शमशेरा को एक तरफ कुर्सी पर बैठने का इशारा करती है और खुद भी पास ही रखी कुर्सी पर बैठ जाती है।
शमशेरा: वह मरते वक्त मुझसे वादा करवा गया कि मैं ये सुकना तुम तक पहुँचा दू।
देवरानी: पर उसको मारा किसने।
शमशेरा: अबे बात छोड़ो। तुम्हें तो पता ही होगा दूसरे के देश में जा कर जासूसी करने का अंजाम देवरानी: क्या सूचना दी थी उसे।
शमशेरा: देवरानी वह कह रहा था कि तुम्हारे पिता और अपने भाई जिन्हे तुम तलाश रही हो, तो तुम्हारे लिए एक दुख की बात है, तुम्हारे पिता जी अब नहीं रहे।
और तुम्हारा भाई देवराज अब हमारे पारस की देखभाल करता है और वह है भी अच्छा। इसलिए हमने उसे अभी भी पारस के एक राज्य का राजा कायम रखा हुआ है। पर वैसे वह अक्सर हमारे साथ जंगो में भी शामिल होता है।
देवरानी ये बात सुन कर खुश हो जाती है कि उसका भाई अभी तक जिंदा है।
देवरानी: तुम्हारे सैनिकों ने रामेश्वर को मार दिया जासूसी करते हुए और ये तुम यहa क्या कर रहे हो?
शमशेरा: तुम सही में एक पारसी की तरह ही सोचती हो, वैसे में भी जासूसी ही ह कर रहा हूँ और मुझे इसका बचपन से शौक है।
देवरानी: और में तुम्हे मारवा दू तो?
इतने में पूरे महल में हाहाकार मच जाता है और सेना के सभी सैनिक दौड़ने लगते हैं भागने लगते हैं।
देवरानी: उन्हें तुम्हारा पता चल गया है, निकलो यहाँ से और संदेश पहुचाने के लिए धन्यवाद।
शमशेरा एक मुस्कान के साथ अपना चेहरा ढकता है और उलटेपैरो जाने लगता है तभी उसके सामने से एक सैनिक आता है,
सैनिक: यहा घुसपैठिया है छान मारो सारे महल को।
शमशेरा: उफ हो! में फिर से रस्सी गिराना भूल गया और पकड़ा गया।
और वह एक खिड़की से कूद कर एक कक्ष में घुस जाता है। शमशेरा बस वहाँ का दृश्य देखते ही रह जाता है।
जहाँ पर महारानी सृष्टि आईने के सामने अपने नंगे बदन को निहार रही थी,
सृष्टि: मेरे दिन अब काटे नहीं कटते महाराज अब वह सुख नहीं दे पाते मुझे। अब तो कितने दिन हो गए, पता नहीं कब आएंगे।
इतने में उसे किसी के खड़े रहने का आभास होता है और पीछे मुड़ती है, शमशेरा महल के बाहर की खिड़की की तरफ खड़ा था।
सृष्टि: कौन?
शमशेरा: "माफ़ किजियेगा मुझे ऐसे आना पडा और हाँ मैंने कुछ नहीं सुना" और मुस्कुरा कर खिड़की से बाहर छलंग मार कर घोड़े पर बैठ भाग जाता है।
सैनिक उसका पीछा करते हैं पर वह उसे पकड़ नहीं पाते । वहीँ देवरानी को इस बात की बहुत खुशी थी कि उसका भाई देवराज सही सलामत है।
बलदेव जो वैध जी के साथ पास के जंगल में गया था उसे घुसपैठिये के आने की बात का पता बाद में चलता है। दोपहर को वह वैध को ले कर महल में आता है और फिर निर्णय करता है वह एक आखिरी पत्र शेरसिंह के रूप में लिखेगा और वह पत्र लिखता लेता है और कमला को बुला उसे दे देता है। फिर बलदेव थक हार कर सो जाता है।
दोपहर बलदेव सोया ही था कि उसके सर पर कोई हाथ फरता है और वह नींद से जागता है तो देखता है कि उसकी माँ देवरानी है।
बलदेव: क्या बात है माँ आज बहुत खुश हो?
देवरानी: हाँ बहुत ज्यादा!
बलदेव: पर ऐसा क्या हो गया?
देवरानी बलदेव कोअपने भाई के जिंदा होने की खबर सुनाती है।
बलदेव: क्या मामा जिंदा है?
देवरानी: हाँ और वह पारस में ही है। काश मैं उनसे मिल पाती।
बलदेव: मैं आप को जरूर उनसे मिलवाउंगा।
"मां क्यों ना इस बात पर हम कहीं घूमने चलें?"
देवरानी: कहा?
बलदेव: आज हम बाज़ार जाएंगे और मैंने सुना है वह मेला भी लगा है।
आप शाम को तैयार रहना माँ "ये कह कर वह उठ कर स्नान करने चला जाता है।"
कहानी जारी रहेगी