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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 18
सुबह भी देवरानी इन्हीं विचारो में खोई हुई थी " मैंने पिछले 7 दिनों से बलदेव से दूरी बनायी हुए थी फिर बलदेव में कोई बदला नहीं आया था, मैं जितना दूर भगती उतना ही बलदेव मेरे पास आ जाता है।
"बलदेव मुझ पर तो जान छिडकता है। कैसे मेरे हर छोटी-छोटी चीज का ख्याल रखता है और मेरे पास आने के लिए तड़पता रहता है।"
"कैसे मेरे दूध और नितम्बो को घुरता है। ऐसा लगता है मौका मिलते ही जैसे खा जाएगा, रोज देखता रहता है। मैं उसे नजर नदाज करने की कोशिश करती हूँ फिर भी वह मेरे पीछे लगा रहता है और मेरी आंखों में पता नहीं क्यों वह कुछ पढ़ने की कोशिश करता रहता है।"
"कही ये बलदेव वासना में आ कर ऐसा तो नहीं करता, अगर ऐसा होता तो... पर पिछले 7 दिनो से उसने मुझे छूआ भी नहीं है। मैंने उसे नजर अंदाज किया फिर भी वह मेरा कितना ख्याल रखता है।"
"अगर ये वासना नहीं तो क्या बलदेव मुझे चाहने लगा है, तो क्या उसे मझसे प्रेम हो गया है?"
"और ये कमला भी तो इशारो से कहती रहती है कुछ ना कुछ बलदेव को ले कर, तो क्या उसे बलदेव की सोच भांप ली है? अगर ऐसा है और वह किसी से कह दे तो क्या होगा?"
देवरानी ये सब बात सोचते हुए महल से निकल कर महल के पास के बाग में घूमने के लिए निकलती है, देवरानी आज काले रंग की साडी में अत्यंत सुंदर दिख रही थी।
जाते जाते उसके मन में कुछ ख्याल आता है और वह वैध जी के कक्ष की ओर घूम जाति है।
जहाँ पर पहुचते उसके कानो में "आह उह हाय!" "या जोर से!" "हाए मर गई!" कि आवाज आने लगती है। देवरानी की धड़कन तेज होने लगती है और वह बाहर से अंदर का नजारा देखने की कोशिश करती हैं।
तभी उसकी नज़र खुले हुए खिड़की के दो पट के बीच की दरार देखती है, क्योंकी वैध जी ने खिड़की को सिर्फ सता दिया था औरवहाँ जगह होने के कारण से अंदर का दृश्य पूरा साफ़ दिख रहा था।
देवरानी जैसे वह-वह आँख गडा कर अंदर देखती है उसके हाथ पैरो में कम्पन-सी होने लगती है, क्योंकि अंदर का नजारा ही कुछ ऐसा था। अंदर कमला झुकीहुई थी और वैध जी सटास्ट अपना लंबा तगडा लौड़ा पेले जा रहे थे जिसकी वजह से कमला की कराहो की आवाज गूंज रही थी।
"उह्ह आह!" "धीरे से वैध जी।" उफ़! और फिर वैध जी एक और जोर का झटका मरते हैं अपने लौड़े को पूरा बाहर खींच के एक और जोर धक्का दे अंदर पेल देते हैं।
कमला: आआआआआआ आह मार डाला!
ये दृश्य देख देवरानी की चूत का दाना फड़कने लगता है और उसकी चुत पनिया जाती है। आज कम से कम 17 वर्षो बाद देवरानी ने चुदाई देखी थी और वह वैध का लौड़ा देख कर अपना हाथ चुत के पास ले जा कर मसल देती है।
कमला: हाय वैध जी क्या जालिम चुदाई करते हो। "आआआआआह्ह्ह!"
तभी कमला की नज़र खिड़की पर जाती है और उसे आभास होता है कि कोई है वहा पर । कमला थोड़ा गौर से देखती है तो उसे साड़ी का रंग दिखता है और उसे समझने में देर नहीं लगती कि वहाँ कौन है।
कमला: मन में - ये तो देवरानी है।
उषर वैध जी हमच-हमच कमला की चुत चौद रहे थे अपने मोटे लौड़े से।
वैध: ले साली मेरा लंड बहुत खुजली है तुझे।
कमला: "उह आआआआह हाय! वैध जी! आपका लंड कितना बड़ा है।"
वैध: तू तो साली बहुत गर्म है! ना जाने कितने बड़े लंड लिए होंगे तूने! तुझे क्या है।
कमला: हाँ मैं बहुत लंड ले चुकी हूँ। पर एक का लौड़ा इतना बड़ा है जिसे मेरी योनि भी झेल ना पाएगी । इसके साथ ही वैध फच कर एक और शॉट मरता है "ऐसा किसका लौड़ा देख लिया तूने"
कमला: बलदेव का!
वैध: तू उसका भी लेगी क्या?
कमला: नहीं बाबा नहीं मेरी तो जान ही चली जाए उसका लौड़ा नहीं हल्लबी लौड़ा है।
वैध: तुझे कैसे मालुम रंडी?
कमला: बस एक बार स्नान करते हुए देख लिया था।
वैध: अगर तेरी इतनी बड़ी चूत उसके लौड़े को नहीं ले सकती तो दुनिया में उसका लौड़ा कोई नहीं ले सकती।
कमला: नहीं मैं तो छोटे कद काठी की महिला हूँ। एक है जो उसका ले सकती है पर भारी तो उसे भी पड़ेगा लेने में।
वैध: कौन "(और र अपना लौड़ा पेलता खांसते हुए है फिर से पटना जारी रखता है।"
कमला: "आह वैध जी" और कौन उसकी माँ देवरानी।
ये सुन कर देवरानी और वैध दोनों आश्चर्य चकित होते हैं।
वैध: तुम पागल हो कुछ भी कहती हो।
कमला: सम्बंधों का असली मजा तो पागल बन कर आता है। वह ले सकती है।
वैध: कोई माँ भले कैसे ऐसे अपने पुत्र से कर सकती है?
कमला: अगर मेरा पुत्र होता बलदेव तो अब तक में उसके बच्चों की माँ बन गई होती। में केवल अपनी खुशी देखती हूँ।
वैध: तू तो है ही रंडी।
देवरानी ने वर्षो बाद ऐसा लौड़ा, चुदाई देखि थी और ऊपर से कमला की उत्तेजना से भरी बात को सुन कर उसकी चुत पसीजने लगती है और गला सुखने लगता है।
वो पानी पीने के लिए रसोई में जाने लगती है और सामने से बलदेव को आता देख एक बार रुक जाती है। बलदेव की नज़र अपनी माँ से मिलती है। देवरानी के आंखों में वासना थी । उसे छुपाते हुए बस बलदेव को देख एक मुस्कान देती है।
बलदेव (मन में) आज माँ इतने दिनों बाद मुझे मुस्कान दे कर देख रही है। आज तो वह अप्सरा से कम नहीं लग रही है, क्या गोरा बदन है क्या पहाड़ जैसे वक्ष है।
अपने आप को घुरता देख आज पता नहीं क्यों, देवरानी ना लज्जती है और ना ही अपने पल्लू को ठीक करती है। वह आगे रखे मटके की तरफ घूम जाती है और फिर नीचे पलट कर देखती है तो पाती है कि बलदेव अब उसके चुतर निहार रहा था। वह उसे एक कातिल मुस्कान देती है।
ऐसे देवरानी के वक्ष और नितम्ब देख कर और फिर देवरानी की मुद्रा और जैसे वह मटकते हुए चल के पानी के मटके के पास जाती है तो उसके चुतड काली साडी में साफ तौर से दिख रहे थे और ये खूबसूरत दृश्य देख बलदेव का हथियार अपने रूप में आ जाता है और जैसे ही देवरानी ने पलट कर एक मुस्कान दी बलदेव का लंड जोर से धोती के अंदर हिलोरा मारने लगा, उससे अब रहा नहीं जाता और पानी पी रही अपनी माँ के पास जाता है।
बलदेव: माँ कैसी हो?
देवरानी: तुझे नहीं पता है के में कैसी हूँ! (हल्का-सा शर्मा कर ताना मारती है।)
बलदेव: मुझे पता है और दुनिया की सबसे हसीन लड़की तुम ही हो।
देवरानी: नहीं में अब लड़की नहीं अब तो मैं बूढ़ी स्त्री हो गई हूँ।
बलदेव: जो आपको बूढ़ी समझा समझो उसे खुद कोई मानसिक बीमारी है।
इस बात से देवरानी परेशान हो जाती है और परेशान नजर आती।
बलदेव: तुम्हारी ये हंसी कितनी प्यारी है।
देवरानी: चुप करो! (झूठा गुस्सा दिखाते हुए।)
बलदेव: उफ़! हैं तुम्हारे नाक पर ये गुस्सा!
देवरानी: उफ्फ! हाय! भगवान "मैं जाती हू!"
बलदेव झट से अपने दोनों हाथो सेउसके दोनों हाथो पकड़ लेता है। ऐसा करने से देवरानी की साड़ी का पल्लू नीचे गिर जाता है और उसके कड़क वक्ष देवरानी की गहरी सांस लेने से ऊपर नीचे हो रहे थे।
बलदेव: माँ रुको।
देवरानी पहले से उत्तेजित थी और बलदेव की ऐसी बाते सुन कर उसके सांस फुलने लगी।
देवरानी: हल्की आवाज में कहती है"हम्म! छोड़ो मुझे! मुझे जाने दो" या कहीं ना कहीं उसके मन में भी जाने की इच्छा नहीं थी।
बलदेव: माँ तुम कितनी सुंदर हो ये तो सुन लो।
फिर बलदेव अपना खड़ा लंड देवरानी के चूतड़ पर सटा देता है।
देवरानी: हम्म!
बलदेव: तुम्हारा ये गोरा रंग, तीखे नक्ष और तुम्हारा ये संगेमरमरी बदन, भगवान ने बड़ी फुर्सत से बनाया होगा।
फिर बलदेव कान के पास जा कर देवरानी को कहता है।
"मां भगवान ने आपको देव लोक के लिए बनाया था। पर तुम गलती से मनुष्यो की बीच आ गयी।"
"तुम एक अप्सरा हो।"
ये सुन कर देवरानी अपना आपा खो बैठती और उसके चुतड पर चुभ रहे बलदेव के लण्ड पर अपने बेशकीमती 44 के चुतडी पीछे करती है और एक लय में बलदेव के लौडे से देवरानी के चुतड रगड़ खा जाते हैं।
देवरानी के मुह से सिस्की निकल जाति है "आह! भगवान!"
तभी बलदेव आगे बढ़ कर अपने ओंठो को देवरानी के कान से दूर ले जा कर देवरानी के लाल हो चुके गाल पर ले जाता है।
"पुच्च पुच्च से साथ एक चुम्मा उसके गाल का ले लेता है।"
बलदेव: माँ!
देवरानी ने सोचा भी नहीं था कि बलदेव ऐसी हरकत करेगा वह झट से अपने चुतड वह पीछे से बलदेव के लंड से दूर करती है और आंखों फाड कर देख रही थी बलदेव को।
इस हमले से जैसे देवरानी का जैसे मोह भंग हो गया था और उत्तेजना से निकल कर उसने आपने आप पर काबू पा लिया था।
बलदेव मुस्कुराते हुए देवरानी को छोड़ बाहर चला जाता है।
देवरानी अपने आप को देखती है उसके बाल खुल गए थे और उसके पल्लू गिरने की वजह से उसके वक्ष साफ दिख रहे हैं।
देवरानी बलदेव के जाते वह सबसे पहले अपना पल्लू से अपने वक्ष ढकती है और अपने हाल देख कर सोचती है कैसे उसे अपना आपा खो कर अपना चुतड पीछे कर के लौड़े को मसला और बलदेव का उसके गाल पर चुम्मा से अभी तक उसके गाल लाल और गीला था, उसे लज्जा आ रही थी और एक अलग किस्म का मज़ा भी देवरानी को महसूस हुआ था, वह बस अपने आप पर मुस्कुरा देती है।
कहानी जारी रहेगी