महारानी देवरानी 021

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मेले में छेड़ छाड़
941 words
3
48
00

Part 21 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 21

मेले में छेड़ छाड़

नाविक: चलो तो फिर हमारे साथ गाये लो।

बलदेव: ठीक है भैया।

नाविक: ओ मांझी रे! मांझी रे! तोरे बिन ए दिल न लगी रे!

बलदेव अब पनी माँ को आंखों में देख दुहराता है ।

बलदेव: ओ मांझी रे! मांझी रे! तोरे बिना दिल न लगी रे!

नविक: बढिया गाए!

बलदेव देवरानी की तरफ देखता है तो पाता है वह उसे घूर रही है।

उसे ऐसे घूरते देख बलदेव उसके दूध में फिर खो जाता है और तभी नदी का किनारा आ जाता है तो देवरानी खामोशी से नाव से उतर कर दूसरी तरफ खड़ी हो जाती है।

नविक बलदेव को आवाज़ देता है और उसके कान में कुछ कहता है फिर बलदेव उसे कुछ सोने के सिक्के देता है और बलदेव रानी पास आ जाता है।

तभी नाविक चप्पू मारते हुए बोलता है "भैया अगले साल लगने तक आपके जुडवे बच्चे होंगे और उनके साथ तुम अगले मेले में आओगे।"

बलदेव और देवरानी चुप चाप धीरे-धीरे चल रहे थे...

देवरानी और बलदेव नाव से उतर कर रंग बिरंगी रोशनी से जगमग मेरे की तरफ चल रहे थे और अभी नाव में हुई घटना से दोनों का दिल ज़ोरो से धड़क रहा था। तभी बलदेव के पाँव एक छोटे से पत्थर से टकरा गए और उसके मुह "आह" निकल जाती है क्यू कि चोट बलदेव के अंगुठे पर लगी थी।

देवरानी: "उह!" करती है जैसे चोट बलदेव को और दर्द उसे हुआ हो।

देवरानी: "बलदेव! देख कर नहीं चल सकते।"

बलदेव: देख कर हे तो चल रहा हूँ।

देवरानी: रास्ता देख कर चलो मुझे नहीं। (या हल्का-सा शर्मा जाती है।)

बलदेव: जब तुम जैसी खूबसूरत स्त्री मेरे साथ हो तो मैं कहीं और कैसे देख सकता हूँ।

देवरानी: चुप कर बदमाश।

बलदेव: वह देखो माँ ऊपर चंद।

देवरानी: हाँ तो।

बलदेव: उसमें भी दाग है पर तुम में नहीं।

देवरानी: हट... पागल!

बलदेव थोड़ा गंभीर होते हुए।

"माँ तुम मानो या ना मानो पर सचाई छुप नहीं सकती।"

देवरानी अपनी प्रशंसा सुन कर अंदर ही अंदर खुश हो रही थी पर ऊपर से गुस्सा दिखाते हुए बलदेव के आगे चलने लगती है।

बलदेव उसके थिरकती गांड देख वही रुक जाता है तो देवरानी पलट कर देखती है

देवरानी: चल पागल, अब रुक कर देखता ही रहेगा।

(शर्मीली अंदाज़ में।)

बलदेव: माँ मैं तुम्हारे सुन्दरता में खो गया था।

देवरानी: तुम मुझे पीछे से घूर रहे थे ना।

बलदेव: वह बस।

देवरानी: क्यू क्या में आगे से सुंदर नहीं।

देवरानी नखरा कर के सर झुकए और अपने दूध उठाये हुई थी, बलदेव देवरानी को देखा बोला।

बलदेव: तुम्हारा तो हर अंग सुंदर है।

देवरानी: अब चुप कर हम मेले में आ गए हैं।

दोनो मेले की चहल कदमी देख खुश हो जाते हैं।

मेले में खड़े हर एक की नजर देवरानी के बड़े दूध और चुतदो पर पड़ रही थी। वही कुछ दूर खड़े लौंडे ने तो सीटी भी बजा दी जिसे सुन कर देवरानी को अंदर ही अंदर गुस्सा आता है।

बलदेव: चलो अब हम झूला झूलते हैं।

देवरानी: हम चक्री पर बैठेंगे।

चकरी के पास लोग भीड़ लगाये हुए थे और अलग-अलग जानवर के रूप में बने उस चक्री पर सवार हो कर सब घूम रहे थे, बलदेव और देवरानी भी कतार में लग गए और वही लडका जिसने थोडे देर पहले सिटी मारी थी आ कर बलदेव के पीछे खड़ा हो गया अब कतार धीरे-धीरे लम्बी होती जा रही थी।

तभी उस लड़के ने बदमाशी करते हुए एक धक्का दिया जिस से बलदेव के आगे खड़ी देवरानी के पीछे बलदेव चिपक गया।

बलदेव ने एक हाथ से देवरानी की नाभी पर हाथ रखा और दूसरा हाथ उसकी गांड पर रख दिया और धक्के का दबाब खुद झेल लिया अब बलदेव का लिंग देवरानी की गांड पर दबा पड़ा था।

अचानक इस हेमले से देवरानी स्तम्भ थी और अपने पेट और गांड पर बलदेव का हाथ देखा वह कुछ सोच पाती इस से पहले उस लड़के ने फिर से एक और धक्का दिया और इस बार बलदेव का खड़ा सीधा लंड देवरानी के चूतड़ों की दरार में घुस गया।

देवरानी: उह आह! " कर देवरानी ने आँख बंद कर ली।

बलदेव: अरे ओ बच्चे जरा ध्यान से आगे महिला है

लडका: चाचा! वह महिला है तो क्या हुआ! कतार में तो सबको धक्का लगता है, मैंने कुछ नहीं किया सब पीछे से धक्के दे रहे हैं।

बलदेव: (मन में) अभी दूध के दांत नहीं टूटे और आ गए मस्ती करने।

लडका: क्या कहा आपने?

बलदेव: यही के सीधा खड़े रहो।

लडका: अरे भाई क्यू इतना पागल हो रहा है।

तेरी बीवी को मैं छू भी नहीं रहा और धक्का कोई पर दे रहा है पर मजे तो तू ही ले रहा है।

इस बात को सुन देवरानी तो शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी और बलदेव भी चुप हो गया।

बलदेव: ओ कम उमर के लड़के तुम्हें माता पिता ने शिष्टाचार नहीं सिखाया!

लडका: मैंने नहीं सीखा (और हंसने लगा) ये सुन कर आसपास के लोग भी हंसने लगे।

देवरानी: चुप करो बलदेव! तुम मत बोलो। (देवरानी फुसफुसाई)

बलदेव: हम्म!

फिर बलदेव देवरानी से पूछता है " तुम किस जानवर पर बैठोगी? गधे पर?

"तुम बैठो गधी पर मैं तो घोड़े पर बैठूंगी।"

बलदेव: देखो कहीं गिर न जाओ मुह के बल।

देवरानी: मैं संभाल लुंगी तुम अपना ध्यान रखना और फिर दोनों झूला झूलने लगते है...

झूला झूल कर बड़ी मुश्किल से भीड़ को चीरते हुए दूसरी तरफ बढ़ते हैं, दोनों जहाँ पर बायोस्कोप वाला था।

बलदेव: भाई! ये बायोस्कोप का कितना सिक्के लोगे?

दुकानवाला: 10 सिक्के!

बलदेव को पास खड़े बुद्धे व्यक्ति कहते हैं!

व्यक्ति : बेटा तुम बायोस्कोप में क्या देखोगे? इसमें सिर्फ चित्र है। देखना है तो अंदर जा कर... नृत्य कला देखो।

जारी रहेगी

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