पड़ोस की भाभी बनी गर्लफ्रेंड भाग 02

Story Info
पड़ोंस की भाभी से गर्लफ्रेंड और पत्नी बनने का सफर
8.4k words
3.33
61
00

Part 2 of the 2 part series

Updated 06/16/2023
Created 06/09/2023
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कहानी के पहले भाग से आगे की कहानी -

****************************************

माँ ने पुछा कि बहू का जन्मदिन कैसा रहा तो उन्हें बताया कि बाहर से केक ला कर कटवा दिया था तथा भाई साहब उन के लिए साड़ी दे गये थे वह भी उन को दे दी थी। इस के बाद माँ ने पुछा कि तुम ने क्या दिया तो मैंने कहा कि उन्हें एक अच्छा सा पेन भेंट में दिया था। यह सुन कर माँ ने चैन की सांस ली नही तो उन को लग रहा था कि हमारी तरफ से कुछ भी नही दिया गया है। दूसरे दिन मेरी छुट्टी थी, मुझे अपनी फोटो खिचँवाने जानी थी मैंने माँ से कहा कि भाभी जी को भी कह दो कि तैयार हो जाये उन की भी फोटो खिचँवानी है यह सुन कर माँ ने उन्हें आवाज दे कर कहा कि बहू तैयार हो कर इस के साथ फोटो खिंचवाने के लिए चली जा।

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर आ गई मैं उन को साईकिल पर बिठा कर बाजार चल दिया। रास्ते में वह बोली कि कल तो आप ने मेरी जान ही निकाल दी थी। अभी तक दर्द हो रहा है। मैंने कहा कि मेरा भी ऐसा ही हाल है। कल काफी समय लगा था शायद इस लिए ऐसा हो रहा है। उन्होनें हँस कर कहा कि जब डबल ईनाम मिलेगा तो ऐसा तो होना ही था। मैं उन की बात सुन कर कुछ समझ नही सका। मुझे चुप देख कर उन्होने कहा कि आप को कभी आराम से इस बारे में बताऊँगी।

बाजार में फोटोग्राफर के पास हम दोनों फोटो खिचँवा कर ऐसे ही घुम रहे थे तो भाभी जी बोली कि आज आलु की टिक्की खाने का मन कर रहा है तो मैंने कहा कि यहाँ पर तो बहुत बढि़या टिक्की मिलती है।

हम दोनों दुकान पर टिक्की खाने लगे तो भाभी जी ने दो प्लेट घर के लिए भी बधँवा ली। जब घर लौट कर मां ने टिक्कीयाँ देखी तो मुझ से बोली कि मेरी बहू को मेरी याद रहती है एक तु है जो कभी कुछ भी नहीं लाता है। मैं इस पर चुप रहा। मेरी चुप्पी का भाभी जी साड़ी का कोना मुँह में दबा कर मुस्करा कर म़जा लेती रही। मैं नजर झुका कर कमरे में चला गया। एक दिन बाद जब फोटो आ गयी तो उन के फार्म पर उन को लगा कर उस को जमा करवा दिया। फीस तो भाई साहब मुझे दे ही गये थे। अब भाभी जी की पढाई शुरु हो गयी थी । मेरी पुरानी किताबें उन के काम आ रही थी। मैं भी रात में एक घन्टा उन को पढ़ा दिया करता था, वह पढ़ने में बहुत तेज थी। मैं भी अपनी पढाई में लगा हुआ था।

पहले मेरी परीक्षा शुरु हुई। जब मेरी परीक्षा खत्म हो गयी तब भाभी जी के पेपर शुरु हो गये। उन को परीक्षा केन्द लाना ले जाना मेरी जिम्मेदारी थी मैं भी खाली था। उन को परीक्षा भवन छोड़ कर मैं पार्क में बैठ कर पढ़ता रहता था। फिर परीक्षा के बाद उन को साईकिल पर बिठा कर वापस घर आता था। 15 दिन में उन के सारें पेपर खत्म हो गये। मैं खाली घर में बैठा था तो मेरी माँ ने मुझ से कहा कि मैं क्यों ना उन के भाई के घर जो गाँव में रहते थे, चला जाऊँ काफी दिनों से गया भी नही था। मेरे को यह विचार अच्छा लगा और मैं अगले दिन ही मामा के यहां चला गया।

गाँव में बड़ा सा घर था, काफी खेतीबाड़ी थी, ममेरें भाई और बहनें थी। भाभी जी से संबंध होने के बाद लड़कियों से बात करने की मेरी हिचक चली गयी थी अब मैं किसी भी लड़की से बिना हिचक बातचीत कर लिया करता था। इस से मेरा परिचय का दायरा बढ़ गया था। गाँव में भी बहनों की सहेलियों से मेरी मित्रता हो गयी। एक महीने रह कर मैं वापस घर आ गया।

कुछ दिनों बाद मेरा तथा भाभी जी दोनों की परीक्षा का परिणाम निकल गया। मैं तो सदा कि तरह अपनी कक्षा में प्रथम आया था, भाभी जी भी अच्छे अंक लायी थी। मेरी माँ ने उन्हें आवाज दे कर बुलाया और मिठाई खिलाई और कहा कि यह तुम दोनों के पास होने की खुशी में है तो वह बोली की यह तो देवर जी की मेहनत का फल है। मैंने तो जैसा इन्होनें कहा वैसा ही करा था। मैंने कहा कि मैं तो पढ़ा सकता था लेकिन पढ़ा तो आपने है याद भी आप ने ही किया तथा परीक्षा में लिखा भी आप ही ने है इस लिए मेरा योगदान आप की मेहनत के मुकाबले बहुत कम है। आप के अंक आप की मेहनत का फल है। इस सफलता की पुरी हकदार आप ही है।

मेरी बात सुन कर मेरी माँ ने कहा कि यह सही कह रहा है तेरी मेहनत का ही फल है। यह कह कर वह किसी काम से बाहर चली गयी। पीछे से भाभी जी ने कहा कि आप अपनी किताबें मुझे दे देना मैं अभी से पढ़ना शुरु कर देती हूँ मैंने कहा कि मैं आप को निकाल कर दे दुगाँ। मेरी बात सुन कर वह हँस कर बोली कि गुरु दक्षिणा भी तो मिलनी चाहिए, इस पर मैंने कहा कि जब आप बी.ए. कर लेगी तब एक साथ गुरुदक्षिणा लुँगा अभी से क्या लुँ? मेरी बात सुन कर वह मुस्करा कर बोली की देवर जी तेज होते जा रहे है। मैंने कहा कि सोहबत का असर हो रहा है। मेरी बात पर वह मुस्कराई और चली गयी।

समय अपनी गति से चल रहा था। कुछ दिनों में मेरा कॉलेज खुल गया मैं अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया। एक दिन कॉलेज से घर आ कर बैठा ही था कि माँ घबराई हुई सी आई और बोली की बहू की तबीयत खराब हो गयी है उसे अस्पताल ले जाना पड़ेगा। मैं कुछ समझा नहीं और माँ के साथ भाभी जी को लेकर सरकारी अस्पताल के लिए निकल पड़ा। अस्पताल में लेड़ी डाक्टर को भाभी जी को दिखाने ले गया तो माँ बाहर ही बैठी रही और मैं तथा भाभी जी ही अन्दर कमरे में डाक्टर से मिलने गये।

डाक्टर ने भाभी जी का परदे के पीछे ले जाकर परीक्षण किया और फिर बाहर आ कर उन से बोली कि आप बहुत कमजोर है ऐसी हालत में गर्भपात हुआ है पहले अपनी तबीयत सही करे इसके बाद बच्चे ही सोचना। उसने मेरी तरफ देख कर कहा कि इन में खुन की कमी है। इस लिए मैं कुछ दवाईयाँ लिख रही हूँ इन्हें खिलाईये, तीन महीने बाद फिर आ कर मुझे दिखाईयेगा। संबंध बनाने में सावधानी बरतियेगां। अभी गर्भ ठहरना इन की सेहत के लिए अच्छा नही है। मैं चुपचाप सब सुनता रहा, भाभी जी को क्या हूँआ था यह मुझे पता नही था। वह लेडी डाक्टर भी मुझे शायद भाभी जी का पति समझ कर बात कर रही थी।

उस ने कहा कि या तो निरोध का इस्तेमाल करे या कॉपर टी लगवा ले। हम दोनों दवा की पर्ची ले कर कमरे से बाहर आ गये। घर आने तक हम तीनों में कोई बात नही हूई। घर आ कर मैंने माँ को दवा की पर्ची थमा कर पुछा कि भाभी जी को हुआ क्या था? तो माँ ने बताया कि उस का गर्भपात हो गया था। डे़ढ-दो महीने से वह पेट से थी। आज अचानक खुन जाने लगा और गर्भपात हो गया। अब जा कर मुझे सारी कहानी समझ में आई। मैंने माँ को कहा कि डॉक्टर के अनुसार भाभीजी बहुत कमजोर है खुन की कमी है इस कारण से उन्हें ऐसा हुआ है। दवाईयां लिखी है उन्हें खाने के बाद तीन महीने बाद दिखाने को बोला है। बाकी बातें मैंने छुपा ली। जिस को जानना था वह सब सुन चुकी थी। मेरा माँ से यह सब कहना उचित नही था।

शाम को अकेला छत पर बैठा था तो भाभी जी अपनी छत पर आई तो मेरे पास आ कर बोली कि आप बाजार जाये तो दवाईयाँ ला देना। मैंने उन्हें पास बैठने का इशारा किया तो वह बैठ गयी। मैं कुछ देर तो चुपचाप बैठा रहा तो वह बोली कि बोल क्यों नही रहे है? मैंने कहा कि कुछ बोलने को बचा है क्या? वह बोली कि मैं समझी नही, मैंने कहा कि आप अपनी सेहत का ध्यान क्यों नही रखती है? इस पर वह बोली कि किस के लिए रखु? मैंने चेहरा उठा कर उन्हें देखा, मेरी आँखें देख कर वह बोली कि गल्ती हो गयी है आगे से ध्यान रखुँगी। यह कह कह वह दवाईयों का पर्चा मेरे हाथ में थमा कर चली गयी।

सुबह कॉलेज जा रहा था तो माँ ने याद दिलाया कि आते में बहू की दवाईयाँ जरुर लेते आना। मैंने हाँ में सर हिलाया। शाम को कॉलेज से निकल कर दवा की दुकान पर जा कर लिखी दवाईयाँ खरीदी और घर आ गया। माँ को दवाईयाँ दे कर कहा कि भाभी जी को बुला लो उन को समझा देता हूँ कि दवाईयों को कैसे-कैसे लेना है मेरी बात समझ कर माँ ने उन को आवाज लगा कर घर बुला लिया। जब वह आई तो बहुत बीमार लग रही थी। मैं यह देख कर बड़ा दुखी हूआ। मैंने उन को दवाईयाँ थमा कर पर्चे के अनुसार समझा दिया कि किस दवाईयों को दिन में कितनी बार और किस मात्रा में लेना है।

मैंने माँ से कहा कि मुझे लगता है कि आप की बहू आज कल खाना पीना पुरी तरह से नहीं खा रही है इस कारण से शरीर में खुन की मात्रा कम हो गयी है तथा खुन में हिमोग्लोबिन भी बहुत कम है इसी कारण से चक्कर आ रहे है। इन्हें समझाये कि सही मात्रा में खाना खाये और पालक तथा हरे साग सब्जियाँ ज्यादा खाये तभी जल्दी ठीक होगी। मेरी बात सुन कर उन्होनें सर हिला दिया।

मैं वहाँ से अन्दर चला गया कपड़ें बदलने और वह तथा माँ दोनों आपस में बातें करती रही। जब वह चली गयी तब अन्दर आ कर माँ ने मुझे बताया कि बहू किसी वजह से बहुत दूखी है इसी कारण से ढंग से खाना भी नही खा रही है। मैंने पुछा कि कही भाई साहब से झगड़ा तो नही हो गया? तो इस पर माँ बोली कि झगड़ा तो जब होगा जब वह इस के पास रहेगा। आज कल तो वह केवल एक-दो दिन के लिए ही आता है। यह अकेली ही रह रही है। यह सुन कर मुझे लगा कि कही ना कही कुछ तो गड़बड़ है। भाभी जी ही इस बारे में कुछ अधिक बता सकती थी। एकान्त मिल ही नही पा रहा था। जो माँ बता रही थी मैं उस से ज्यादा उन से पुछ भी नही सकता था।

एक दिन जब मैं घर पर था तो माँ किसी के यहाँ जा रही थी शायद रात तक आने का विचार था, जाने से पहले उन्होनें मुझ से कहा कि मैं बहू को यहाँ भेज कर जा रही हूँ वह खाना भी बना देगी और इन बहाने तु उस की देखभाल भी कर लेगा। मैं कुछ नही बोला, माँ ने जाते समय भाभी जी को आवाज दे कर आने के लिए कह गयी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खटखटाया तो भाभी जी थी वह अन्दर आ गयी और मैंने दरवाजा बन्द कर दिया। वह सीधी घर के अन्दर चली गयी। मैं जब अन्दर गया तो वह मेरे पीछे से आ कर लिपट गयी। काफी देर तक ऐसे ही लिपटी रही फिर मैंने धीरे से उन्हें आगे की तरफ किया तो देखा कि उन की आंखे भीगी हूई थी और चेहरा आंसुओं से सराबोर था। मैंने चुपचाप उन्हें गले से लगा लिया। कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही खड़े रहे।

फिर मैंने उन्हें बिस्तर पर बिठा दिया और उन की बगल में बैठ गया। सन्नाटा काफी देर तक पसरा रहा फिर मैंने ही इसे तोड़ा और उन से बोला कि कभी कभी बॉयफैन्ड की बात भी माननी पड़ती है मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। यह देख कर मुझे अच्छा लगा। मैं उन्हें बिस्तर पर बिठा कर खुद जमीन पर उनके पांवों के पास बैठ गया तथा मैंने उनसे पुछा कि क्या बात है, इस पर वह कुछ हिचकिचाई फिर बोली कि इनका व्यवहार बदल गया है अब दो-एक दिन के लिए ही घर पर रहते है और घर खर्च के पैसे दे कर चले जाते है कि बताते भी नही है। पिछले दिनों तबीयत खराब होने के बावजूद भी मेरे साथ नही रुके। मेरी कुछ समझ में नही आ रहा है कि क्या करुँ?

मेरा तो इनके सिवा कोई नही है। पुछने पर भी कुछ नही बताते। मन करता है कि मर जाऊं। तुम्हारें साथ कुछ बातचीत कर लेती हूँ इस लिए मन लग जाता है नही तो जीने की कोई वजह नजर नही आती। बच्चे के गिर जाने की भी इन्हें कोई चिन्ता नही है। बस पैसा दे कर चले जाते है। अब तो साथ में सोना भी बन्द कर दिया है। पहले डॉक्टर ने मना किया था लेकिन यह तो कुछ बताते नही है। मैंने पुछा कि आप को पता है कि कहाँ पर जाते है। उन्होनें सर हिला का मना किया। मैंने पुछा कि आप से कुछ पुछते नही है तो उस का जबाव भी नकारात्मक आया।

मेरी खुद समझ में नही आ रहा था कि भाभी जी को किस तरह से सांत्वना दूँ। कुछ देर में फिर सन्नाटा पसर गया। मैंने ही उसे तोड़ा और कहा कि अब जब आये तो मैं पिता जी से कहुँगा कि वह बात करके देखेगे। शायद उन्हें कुछ बताएँ। मेरी बात पर उन्होनें कहा कि मुझे लगता है कि किसी दूसरे शहर में इनका कोई रहता है यह जिस के पास जा कर रहते है। मेरे से पीछा छुड़ाना चाहते है। मैंने पुछा कि आप को ऐसा कैसे लगता है तो वह बोली कि पहले तो जब घर पर रहते थे तो मुझ से प्यार करते थे लेकिन अब तो हाथ भी नही लगाते मैं जबरदस्ती करुँ तो करते है।

मैंने कहा कि कही उन को हमारे बारे में पता तो नहीं चल गया है। इस पर वह बोली कि नही ऐसा कुछ नही है। आप के साथ की वजह से तो मैं अभी तक जीवित हूँ नही तो कब की मर जाती। शायद ये भी ऐसा ही चाहते है। मैंने उन के हाथ पकड़ कर कहा कि आप मुझे वचन दे कि आप ऐसा कुछ नही करेगी। मेरे लिये। वह बोली कि आप की वजह से तो मैं जिन्दा हूँ। मैंने कहा तो मेरी वजह से ही इस समस्या का सामना करे और देखते है कि इस का क्या हल निकलता है।

मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। मैंने उन से पुछा कि आप अपनी शादी के बारे में कुछ बताए तो वह बोली कि कुछ खास बताने को नही है, माता-पिता के गुजर जाने के बाद रिस्तेदारों ने परवरिश की थी। अपनी जिम्मेदारी पुरी करने के लिए कम उम्र में शादी कर दी। मेरी उम्र आप के बराबर है तथा ये मुझ से 10 साल बड़े है। नौकरी बढि़या थी केवल यही देखा गया था। शादी के समय भी टूर पर जाते थे लेकिन तब टूर हफ्ते पन्दह दिन का होता था लेकिन अब तो कई सालों से कुछ दिन के लिए ही घर पर आते है। तुम को तो सब मालूम है। मैंने सर हिलाया। उन को पति के रिस्तेदारों के बारे में भी कुछ पता नही था। बड़ी विकट समस्या थी, उन के मायके की तरफ से कोई भी सहायता करने वाला नही था। वह निपट अकेली थी।

मैंने उन्हें सांत्वना देते हूए कहा कि आप चिन्ता ना करे मैं इस का कुछ ना कुछ हल जरुर निकालुगाँ। इस पर वह हँस कर बोली कि आप तो अभी अपने पैरों पर भी खड़े नही हूँऐ है मेरी क्या सहायता कर पायेगे? मैंने कहा कि मेरी पढा़ई का आखिरी साल है तथा मैं प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहा हूँ। पेपर भी दे दिया है। कुछ दिनों में ही परिणाम आ जायेगा। अपने पांव पर खड़ा होने में ज्यादा समय नही लगेगा। आप की सहायता करने से मैं पीछे नही हटूँगा आप इस को लेकर निश्चित रहे।

मेरी बात सुन कर वह बोली कि बात तो आप सही करते हो लेकिन मुझे नौकरी लगने के बाद भुल तो नही जाओगे। मैंने हँस कर कहा कि गर्लफ्रेंड को कोई कैसे भुल सकता है। आप इस समय का सामना मजबुती से करो। मैं आप के साथ हूँ। आप पढ़ाई करना शुरु कर दो उस के ध्यान देने से आप का इस तरफ से ध्यान हट जायेगा। वैसे भी आप पढ़ाई में अच्छी हो। मन लगा कर पढ़ाई करे।

हमारी बात और देर तक चलती लेकिन उन को याद आया कि उन्हें अपने और मेरे लिए खाना भी बनाना है तो वह उठ कर किचन में चली गयी। मैं अकेला बैठा आने वाले भविष्य के बारे में सोचता रहा। थोड़ी देर में वह हम दोनों का खाना बना कर ले आयी। दोनों ने खाना खाया। इस के बाद मैंने उन से कहा कि वह अब आराम कर ले मैं ऊपर जा कर पढ़ लेता हूँ तो वह बोली कि मेरे साथ नही बैठेगे तो मैंने कहा कि अभी आप की सेहत सही नही है आप के सामने ही तो डॉक्टर ने मना किया था इस लिए अभी उस तरफ नही सोचते है। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि आप इतने सोचने वाले है यह आज ही पता चला नही तो जवानी में कौन ऐसे मौका छोड़ता है।

मैंने उन के हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि हम तो अपनी गर्लफ्रेंड की सेहत की चिन्ता सबसे पहले करते है बाकि बातें बाद में रखते है। यह कह कर मैं किताबें ले कर ऊपर छत पर पढ़ने चला गया। देर शाम को माँ वापस आई तो भाभी जी खाना बना रही थी। उन को देख कर माँ बोली कि तु आराम कर अब मैं बना लेती हूँ तो वह बोली कि इस तरह तो आप मुझे बीमार बना कर रहेगी। मैं अब बिल्कुल सही हूँ। उन की बात सुन कर माँ ने कहा कि वह एक औरत होने के कारण जानती है कि इस के बाद तबीयत कैसी रहती है और कब सही होती है लेकिन जब तक भाभी जी ने खाना बना दिया था। फिर हम तीनों ने मिल कर खाना खाया। खाने के बाद मैंने माँ से कहा कि इन से कहो कि और सब चिन्ता छोड़ कर पढ़ाई पर ध्यान दे। सब सही हो जायेगा। मेरी बात पर माँ ने उन से कहा कि सही तो कह रहा है सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दे। सब सही हो जायेगा। वह सर हिला कर चली गयी।

उन के जानेके बाद मैंने माँ से पुछा कि भाई साहब कहाँ पर काम करते है आप को पता है तो वह बोली कि तुम्हारें पिता जी बता रहे थे कि सही तरह से कुछ बताता नही है। अब काफी समय से तो घर पर रुकता ही नही है। मैंने कहा कि ऐसी कौन सी नौकरी है जो महीने में सारा समय बाहर ही रहते है अगर बाहर ही रहना है तो पत्नी को भी साथ ही ले जाये। इस पर माँ बोली कि मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है कुछ कहना नही किसी से लेकिन लगता है कि उस ने कही और घर बसा लिया है। नहीं तो कोई अपनी पत्नी से इतने दिनों तक दूर रहता है।

मैंने कहा कि भाभी जी की जिन्दगी तो खराब हो जायेगी अगर भाई साहब ने उन्हें छोड़ दिया तो शायद उन के मायके में भी कोई नही है। माँ ने कहा कि उस के परिवार में कोई नही है इसी लिए तो यह लड़का उस के साथ ऐसा कर रहा है नही तो कोई पुछता नही कि बीवी को साथ क्यों नही ले जाते। माँ बोली कि इतनी सुघड़ सुन्दर बहू है लेकिन लड़की के भाग्य में दुख लिखा है मुझे बड़ा बुरा लगता है उस के लिए। मैंने कहा कि हमें उन की सहायता करनी चाहिए। वह बोली कि हम तो उस के साथ है ही। आगे जैसा होगा देखा जायेगा बहू को ऐसे थोड़ा ना छोड़ देगे। माँ की बात सुन कर मेरे मन को चैन मिला।

आगे आने वाले कई महीनें कब बीत गये मुझे पता ही नही चला मेरी प्रशासनिक परीक्षा का रिजल्ट निकल आया था। मैं प्रदेश भर में दसवें नम्बर पर आया था। सारा परिवार बहुत खुश था। भाभी जी भी बहुत खुश थी। वह भी अपनी पढ़ाई पुरी लगन से कर रही थी अब उन के पति ने घर आना बन्द कर दिया था केवल मनीऑडर से घर खर्च भेज देते थे। समझ नही आ रहा था कि इस संबंध का अंत क्या होगा। बी.ए. की फाईनल परीक्षा के बाद मेरे पास पीसीएस के इन्टरव्यू का लेटर आ गया। मैं उस की तैयारी में लगा हूँआ था, और किसी और बात पर मेरा ध्यान ही नही था। इन्टरव्यू भी हो गया। अब उस के रिजल्ट का इन्तजार हो रहा था इसी बीच भाभी जी के पेपर भी शुरु हो गये मैं उन्हें पेपर दिलाने के लिए ले जाता था। पेपर के बाद वापस से आता था अब वह हमारे घर की एक सदस्य ही हो गयी थी।

माँ ही उन की हर बात का ध्यान रखती थी। घर में एकान्त ना मिल पाने के कारण मेरी उन से ज्यादा बात नही हो पाती थी। लेकिन वह मेरी नजरों के सामने ही रहती थी। मेरा चयन पीसीएस के लिए हो गया। घर में सब बहुत खुश थे प्रशासनिक सेवा में जाने का सम्मान बहुत बड़ा था। समाज में माता-पिता जी की इज्जत बहुत बढ़ गयी थी। मैं जल्दी ही ट्रेनिग के लिए प्रदेश की राजधानी चला गया। वहाँ से जब घर लौटा तो माँ बहुत खुश थी। रात को खाने के समय उस ने बताया कि बहू के पति की एक और पत्नी है जो दूसरे शहर में है तथा वह उसी के पास रहता है और इस को तलाक देना चाहता है बदले में यह घर इस के नाम कर देगा। मैंने कहा कि भाभी जी घर कैसे चलायेगी? इस पर वह बोली कि कह रहा है कि हर महीने कुछ रकम देता रहेगा।

मैंने कहा कि यह तो बहुत गलत हुआ। इस पर माँ बोली कि भगवान जो करता है सही करता है अभी पता चल गया बाद में पता चलता तो इस का क्या होता अभी तो पढ़ लिख कर शायद किसी नौकरी में लग जाये तो अपना जीवन काट लेगी। मेरी पोस्टिग शहर से थोड़ी दूर के शहर में हूई थी। रहने को मकान मिला था। पहले तो कुछ दिन मैं अकेला ही रहा फिर मैंने माता-पिता जी से कहा कि वह भी मेरे पास आ कर रहे तो वह तैयार तो हो गये लेकिन भाभी जी को अकेले छोड़ने को तैयार नही हूँऐ तब मैंने उन्हें राय दी कि भाभी जी को भी वह अपने साथ ही ले आये अब उन का वहाँ कौन है? जो कुछ है हम ही तो है मेरी राय दोनों को पसन्द आ गयी और शीघ्र ही तीनों जनें मेरे साथ रहने के लिए आ गये।

भाभी जी को तलाक मिल गया था, तथा महीने का खर्च भी मिलने लगा। घर के कागजात भी उन के नाम हो गये थे। समय बीत रहा था वह भी बी.ए. पास कर चुकी थी अच्छे नम्बरों से। मैंने एक दिन उन को राय दी कि वह भी पीसीएस के पेपर भर दे और तैयारी में लग जाये मैं उन की इस में सहायता कर दूँगा। मेरी बात सुन कर वह कुछ नही बोली।

मैंने फार्म मंगा लिये। एक दिन जब मैं अकेला बैठा था तो वह मेरे पास आ कर बोली कि मुझ से क्या गलती हो गयी है कि मेरी तरफ देखते भी नहीं हैं? मैंने कहा कि आप को ऐसा कैसे लगा?, तो वह बोली कि पहले तो कुछ पुछ भी लेते थे अब तो बात भी नही करते। मैंने कहा कि हर समय तो आप के बारे में ही सोचता रहता हूँ लेकिन आप तो फिर भी खफा है वह बोली कि मुझे कैसे पता चलेगा कि आप के मन में क्या चल रहा है? मैंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप जीवन में स्थापित हो जाये।

उन्होनें मेरी तरफ देख कर कहा कि कभी मुझ से भी पुछा है कि मुझे क्या चाहिए? मैंने कहा कि नहीं, इस पर वह बोली कि मेरी भी तो राय ले लिया करे कभी तो। मैंने हँस कर कहा कि अभी ले लेते है। बताईऐ आप क्या चाहती है तो वह बोली कि क्या आप को पता नही है कि मैं क्या चाहती हूँ? मैंने नजर ऊठा कर उन की आँखो में देखा तो समझ आया कि वहाँ तो प्यार ही प्यार है, आतुरता है मिलन की, विकलता है।

मैंने अपनी नजरें झुका ली। वह बोली कि आप की परिस्थिति मैं समझती हूँ लेकिन मेरा तो आप के सिवा कोई नही है मैं क्या करुँ। आप ही मेरी जिन्दगी के आधार है। मैंने उन के हाथ अपने हाथों में लेकर दबाये। मेरी इस संबंध को लेकर जो उलझन थी वह भाभी जी के तलाक के बाद खत्म हो गयी थी। सिर्फ लगता था कि मां-बाप की तरफ से विरोध हो सकता है उनके विचार पता करना कठिन काम था लेकिन किसी को तो यह करना ही था। अब इस बात को टाला नही जा सकता था।

एक दिन माँ ने बातचीत करते हुऐ पुछा कि अब तो तुझे शादी की बात सोचनी चाहिए तो मैंने कहा कि आप सही कहती है अब तो शादी की जा सकती है। मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। बोली हम दोनों तो तेरी पसन्द को ही मानेगे। मैं ने कहा कि माँ आप कुछ बातें जानती है लेकिन कह नही रही है अब कह भी डालिये। मेरी बात सुन कर वह बोली कि हम दोनों तो यह चाहते थे कि सरिता(भाभी जी) अब तो हमारे घर का ही हिस्सा है हम दोनों की बहुत सेवा करती है।

हमें तो बहू का पुरा सुख देती है अगर तुझे उस के तलाकशुदा होने से कोई परेशानी ना हो तो उस में कोई कमी नही है। मुझे एक बार तो अपने कानों पर विश्वास नही हुआ कि जिस बात के लिए मैं इतना परेशान था आज वह अपने आप सुलझ गयी थी। मैंने माँ से कहा कि आप उन से भी तो पुछ कर देख लो। वह बोली की पुछ कर देख लेती हूँ पहले तु तो हाँ बोल मैंने कहा कि मेरी तो हां है। बाकि आप देख लो।

मेरी बात सुन कर माँ ने भाभी जी को आवाज लगाई कि बहू इधर तो आना। उन की आवाज सुन कर भाभी जी कमरे में आ गई। माँ हम दोनों को देख कर मुस्कराती हुँई उन से बोली कि सरिता इस की अब उम्र शादी के लायक हो गयी इस लिये इस के लिए लड़की देखी है इस ने तो हाँ कह दी है अब लड़की की राय पुछनी है। माँ कि बात सुन कर सरिता के चेहरे पर हैरत के भाव आये।

लेकिन वह उन को छुपा कर बोली कि अगर इन्होनें हाँ कर दी है तो लड़की क्यों मना करेगी ऐसा लड़का तो मुश्किल से मिलता है देवर जी तो लाखों में एक है। उसे तो अपने जीवन को सराहना चाहिए कि ऐसा लड़का मिल रहा है। मेरी माँ ने हंस कर मेरी तरफ देखा, फिर उन की तरफ देख कर कहा कि सरिता मेरा लड़का तुझे पसन्द है या नही? यह बात सुन कर भाभी जी अचकचा गयी। उन की हालत देख कर माँ ने कहा कि मैं अपने लड़के के लिए तेरा हाथ चाहती हूँ तुझे यह रिश्ता पसन्द है या नही।

माँ कि यह बात सुन कर सरिता एक दम उन के पैरों में बैठ गयी और रोते हुंऐ बोली कि जरुर मैंने पिछले जन्म में कुछ अच्छे कर्म करे होगे जो आप सब मुझे मिले है। माँ ने उन्हें कंधों से पकड़ कर उठाया और गले से लगा कर कहा कि पगली ऐसा नही कहते तु तो इस घर का पहले से ही हिस्सा है बस उसे एक नया नाम दे रहे है। ताकि कोई तुझ पर ऊंगली ना ऊठा सके। फिर मेरी तरफ देख कर बोली कि तुम दोनों आपस में बात कर के पक्का कर लो फिर हमें बता देना। यह कह कर माँ कमरे से चली गयी।

हम दोनों कुछ पल जड़ से हो गये। जब चेतना लौटी तो लगा कि जिस बात के लिए इतनी चिन्ता कर रहे थे वह बात खत्म हो गयी है। अब तो भविष्य की रुपरेखा बनानी है। मैंने जा कर कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया और सरिता यानि की भाभी जी को अपने पास बिठा कर पुछा कि जो हो रहा है वह सही है या नही। सरिता के चेहरे पर लज्जा की लालिमा छाई हूई थी। उस से कुछ बोला नही जा रहा था, कुछ देर के बाद बोली कि मैं क्या बोलु माँ ने सब तो बोल दिया है। मेरी तो हाँ है आप कहो।

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