पड़ोस की भाभी बनी गर्लफ्रेंड भाग 02

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मैंने कहा कि मेरे मुँह से कितनी बार हाँ सुनना चाहती है आप। इस पर वह बोली कि समाज के तानें सुनने पड़ेगें। मैंने कहा कि समाज की मुझे कोई परवाह नही है जब तुम साथ हो तो किसी की बात से क्या फर्क पड़ता है। मिया-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी। मेरी बात सुन कर उन के मुँह से निकला कि आप तो किसी भी समस्या को क्षण में हल कर देते हो। मैंने उन्हें बांहों में लेना चाहा तो वह हँसती हुई कमरे से बाहर चली गयी। मैं मां-पिता जी के कमरे में पहुंचा तो पिता जी ने कहा कि बेटा शादी की तारीख निकलवा लेते है फिर अपने शहर चल कर शादी की तैयारियाँ करते है इस पर मैंने कहा कि शादी तो यही करेगे। वहाँ पर तैयारी करना आसान नही रहेगा। यहाँ पर सब कुछ आसानी से हो जायेगा। आप जिन को भी बुलाना चाहे उन को बुला ले। मेरी बात उन की समझ में आ गयी।

अगले महीने हम दोनों की शादी विधि-विधान से हो गयी। रिस्तेदारों ने नाक-मुँह सिकोड़े लेकिन सब शादी में शरीक हुऐं। जब घर से सब मेहमान विदा हो गये तो माँ ने कहा कि दो दिन बाद तुम दोनों की सुहागरात होगी। उस से पहले मिलना मना है। मैंने हाँ में सर हिला दिया। सुहागरात के दिन मेरा कमरा फुलों से सजा हूआ था। गुलाब की महक से सारा कमरा महक रहा था। रात को जब हम दोनों कमरे में गये तो उस से पहले माँ में मुझे अपनी दो चुडि़या दे कर कहा कि इन्हें बहू को पहना देना।

सरिता के लिए मैंने भी एक उपहार लिया था। मैंने जब कमरे का दरवाजा बन्द किया तो वह पलंग से उठ कर खड़ी हो गयी। लाल साड़ी में बहुत सुन्दर लग रही थी आज तक मैंने कभी उन्हें नजर भर कर देखा ही नही था। उन्होने झुक कर मेरे पांव छुये तो मैं अचकचा गया मैंने उसे उठा कर गले से लगा लिया वह भी मुझ से ऐसे लिपट गयी जैसे किसी पेड़ से कोई लता। हम दोनों को प्यासे होंठ भी आपस में मिल गये। चुम्बन लम्बा चला जब सांस फुल गयी तब जा कर दोनों के होठ अलग हुऐ।

मैंने माँ कि दी हुई दोनों चुड़ियाँ उन के हाथों में पहना दी फिर जेब से एक अंगुठी निकाल कर उस की ऊंगली में डाल दी,और कहा कि यह आज के दिन के लिए मेरा उपहार है। हम दोनों के शरीर मिलना चाहते थे लेकिन मन जल्दी नही करना चाहते थे आखिरकार चली मन की ही। हम दोनों पलंग पर बैठ गये। मैंने सरिता का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि मुझे तो गुरुदक्षिणा मिलनी चाहिए तो वह बोली कि सब कुछ मिलेगा लेकिन घीरे-घीरे। मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला तो उस ने अपनी ऊंगली से मेरे होंठ बन्द कर दिये और कहा कि पहले तो आप मेरे को आगे से मेरे नाम से पुकारेगे।

आप बताओ कि मैं आप को किस नाम से पुकारुँ, मैंने कहा कि इस मामले में मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता तुम्हें ही निर्णय लेना होगा कि किस नाम से पुकारोगी। मेरी बात पर वह बोली की मेरी सहायता तो करनी पड़ेगी, गर्लफ्रेंड की हर बात माननी पड़ती है। मैंने कहा कि अब गर्लफ्रेड की तरक्की हो गयी है और वह पत्नी बन गयी है इस लिये अब उस को पति की बात माननी पड़ेगी तो सरिता बोली कि मैं तो अब तक आप की ही तो हर बात मान रही हूँ।

फिर बोली की सुनते हो जी ही सही रहेगा। मैंने कहा कि इस से बढ़िया हो ही नही सकता। यह कह कर मैंने उसे अपने गोद में ऊठा लिया और उस के माथे को चुम लिया, फिर उस की दोनों आंखों को चुमने के बाद उसके लरजते होंठों पर अपने कांपते होंठ रख दिये। चुम्बन चल ही रहा था कि सरिता बोली कि आप तो छुपे रुस्तम निकले मुझ से कहा कि अपने संबंध के बारे में सोचुगाँ और शादी की बात तक कर ली। मैंने कहा कि सब कुछ माँ ने किया है मैं तो माँ से बात करने की सोच ही रहा था तब तक उन्होने स्वयं ही बात कर ली। वह फिर उठ कर बैठ गयी।

मैंने सरिता से कहा कि आज तो साड़ी में बहुत सुन्दर लग रही हो तो वह बोली कि मैं तो हमेशा साड़ी में ही रहती हूँ। मैंने कहा कि आप को आज से पहले बीवी की नजर से नही देखा था इस लिए इतनी सुन्दर नही लगी। मेरी बात सुन पर वह शर्मा कर मुझ से लिपट गयी। उस के भरे हुए स्तन मेरी छाती में गढ़ रहे थे। अब रुकना मुश्किल हो रहा था वह भी मिलन की प्यासी थी। मैंने उस की साड़ी उतार दी फिर उस के ब्लाउज को उतार कर लाल ब्रा के हुक भी खोल दिये। भरे हुए स्तन संतरे की बजाए उलटे कटोरे से लग रहे थे। गहरे रंग के निप्पल ललचा रहे थे। होंठ उनका स्वाद लेने लग गये।

हाथ कमर से नीचे पेटीकोट के अन्दर घुस गया। उस का नाड़ा भी खुल गया और वह भी घुटनों से नीचे हो गया। पेंटी को उतार कर उगलियां योनि में प्रवेश कर गयी। वहां की नरमी और गरमी ने उन्हें अन्दर बाहर होने को मजबुर कर दिया। सरिता के मुँह से आहहहहहह उईईईईईईईईई उहहहहहहहहहहह निकलने लगा। मेरे हाथ सरिता के सारे शरीर को नांप रहे थे। उस के हाथ भी मेरे शरीर को सहला रहे थे। उस ने मेरे कपड़ें भी उतार दिये।

हम दोनों एक दूसरें में समाने के लिए तड़प रहे थे मैं उस के ऊपर आ गया और अपना लिंग उसकी योनि के मुख पर लगा दिया उस के हाथ ने उसे राह दिखाई और वह अपने सफर पर चल दिया हम दोनों इस सफर के पुराने खिलाड़ी थे इस लिए जल्दी ही घुलमिल गये। कमरे में आह उईईईईईई फच फच की आवाज भर गयी। दोनों के शरीर एक दूसरे में समा जाने का प्रयत्न कर रहे थे। कमरे में भुचाल आया हुआ था फिर एक दम सब कुछ थम गया गुबार बैठ गया। हम दोनों भी थक कर चुर हो गये थे। अगल-बगल लेटकर हांफ रहे थे।

सरिता ने मुँह मेरे कान के पास ले जाकर कहा कि गुरुदक्षिणा मिली की नही मैंने कहा कि हाँ पुरी मिल गयी है। थोड़ी देर बाद ही वह मेरे उपर लेट कर मेरे स्तनों का पान कर रही थी। उस के ऐसा करने से मेरे शरीर में करंट सा भर रहा था। थोड़ी देर में ही मेरा लिंग फिर तनाव में था इस बार सरिता मेरे उपर थी और वह लिंग को अन्दर ले कर कुल्हों के धक्के लगा रही थी। काफी देर बाद दोनों स्खलित हूऐ। इस बार तो शरीर थक कर चुर-चुर थे। पसीने से नहा गये थे। मैंने सरिता के स्तनों को काट कर उन पर निशान बना दिये थे उस ने भी मेरे कन्धो पर दातों के निशान छोड़ दिये थे।

संभोग के बाद मैंने सरिता को अपने से चिपका कर कहा कि कल दर्द के मारे बुरा हाल हो जायेगा। इस पर वह बोली कि यह दर्द तो दिखाया जा सकता है। मैंने उस के स्तनों का चुम्बन लेते हुऐ कहा कि ये तो सन्तरों से खरबुजे हो गये है। इस पर वह बोली कि मन में खुशी हो तो शरीर भी भर जाता है। ऐसें बातें करते करते हम दोनों कब सो गये पता ही नहीं चला। सुबह उठा तो सरिता पहले ही उठ चुकी थी। यह तो उस की रोज की दिनचर्या।

चाय बना कर वह नहाने चली गयी थी। मैं भी उठ कर बैठ गया। तभी वह नहा कर बाथरुम से निकली तो मैं उसे देखता रह गया इस पर वह बोली कि नजरों से खाने का इरादा है। मैंने कहा कि नहीं बस नजर भर देखना चाहता हूँ। वह मुझे दिखाते हुए पुरा घुम गयी और बोली कि ध्यान से देख लो कही कुछ छुट ना जाये। फिर हंस कर बोली कि चाय पीनी है या नहाने जाना है। मैंने कहा कि चाय पीनी है। इस पर वह चाय लेने चली गयी।

उस के जाने के बाद मैनें सोचा कि कुछ दिन सरोज के साथ एकान्त में बिताने चाहिये तभी दोनों के बीच नया संबंध मजबुत होगा। यह सोच ही रहा था कि वह चाय लेकर आ गयी, मुझे सोचता देख कर बोली कि कहीं चलने का प्रोग्राम बना रहे है? मैंने चौक कर उसे देखा तो वह बोली कि आप के मन की बात पढ़ लेती हूँ। यह सुन कर मैंने पुछा कि उस दिन ऐसा क्यों नहीं किया था जब मुझ से बात करने आयी थी। वह मुस्करा कर बोली कि बहुत परेशान थी सो अपनी परेशानी तुम्हारें पर लादने आयी थी मुझे पता था कि तुम मुझे चाहते हो लेकिन कुछ कर क्यो नहीं रहे इस लिये परेशान थी।

अपनी परेशानी तुम से ही कह सकती थी, तुम मुझ से ज्यादा बातचीत नहीं कर रहे थे। मेरे जीवन का तो आधार ही तुम हो अगर तुम ही नहीं बोलोंगें तो मैं क्या करुंगी? मैनें कहा कि मेरी गल्ती है मुझे तुम से ज्यादा बात करनी चाहिये थी लेकिन एकान्त ना मिल पाने के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा था। अब मैनें सोचा है कि हम कुछ दिनों के लिये कही बाहर चलते है हनीमून मना कर आते है। कहाँ चलना चाहोगी, पहाड़ पर या समुद्र किनारे? उस ने कहा कि पहाड़ों पर, वहाँ की तस्वीरें ही देखी है, वहाँ जाने की बड़ी इच्छा है।

हम दोनों ने तय किया की किसी पहाड़ी एकान्त जगह पर कुछ दिन साथ बिता कर आते है। माता पिता जी को जब यह बात बतायी तो वह बहुत खुश हुये और पिता जी बोले की तुम तो कभी बाहर नहीं गये हो अपनी पढ़ाई में ही लगे रहे। कुछ दिन घुम कर आयों, बहू का मन भी लग जाएगा। मैं जगह की तलाश करने लगा। एक दिन पता चला कि हिमाचल प्रदेश में ऐसी जगह है, फोन करके एक हफ्ते के लिये कमरा बुक करा लिया। पहाड़ों पर जाने के लिये तैयारी करना जरुरी था सो एक दिन सरोज के साथ बाजार जा कर उस के लिये और अपने लिये गरम कपड़ें खरीदें तथा सरोज के लिये कुछ सामान्य खरीदारी करी। वह भी पहली बार कहीं घुमने जा रही थी सो यात्रा के सामान की खरीदारी भी करी।

फिर निश्चित समय पर हम दोनों अपने हनीमून पर निकल गये। लम्बी यात्रा के बाद जब होटल पहुंचे तो प्राकृतिक सुन्दरता को देख कर सारी थकान दूर हो गयी। हम दोनों ने ही पहाड़ पहली बार देखे थे, सो बहुत खुश थे। शाम का अंधेरा छा रहा था दूर पर्वतों की चोटियों पर बादल घिर रहे थे। कुछ देर बाद जोरजार बारिश होने लगी। कुछ देर तक तो हम दोनों कमरें के बाहर खड़े हो कर बारिश का मजा लेते रहे फिर ठंड़ लगने पर कमरें में आ गये। सरोज बोली कि ठंड़ लग रही है गरम कपड़ें पहन लेते है।

यह सुन कर मैंने उसे अपनी बांहों में लपेट लिया और उस के होंठ चुम कर कहा कि प्यार करके ठंड़ को भगा देतें है। मेरी बात सुन कर सरोज बोली कि हर समय शैतानी सूझती रहती है। मैंने हँस कर कहा कि बहुत इंतजार करने के बाद तो यह समय आया है। उस ने हँस कर मेरे गाल पर चुटकी काटी और भाग गयी। जब आयी तो उस के हाथों में अपने तथा मेरे लिये गरम कपड़ें थे मुझे थमा कर बोली कि अगर बीमार पड़ गये तो प्यार कैसे करोंगें? उस की बात सही थी। प्यार करने के लिये सही रहना जरुरी था। हम लोगों नें गरम कपड़ें पहन लिये।

कपड़ें पहनने के बाद कुछ आराम मिला। चाय का ऑडर करके बैठ गये। कुछ देर बाद चाय आयी तो उसे रात के लिये खाने का ऑडर दे दिया। चाय पीने बैठे तो सरोज बोली कि मुझे तो सब कुछ सपना सा लग रहा है, कुछ दिन पहले मैं अपने भविष्य को लेकर शंकित थी और आज तुम्हारें साथ पहाड़ों पर बैठी हूँ। उस दिन तो पता ही नहीं था कि तुम क्या करोगें? मेरा क्या होगा?, आज तुम्हारी पत्नी बन कर यहां तुम्हारें साथ हूँ। मैंने उस की बात सुन कर उस का हाथ अपने हाथ में लेकर दबाया और कहा कि पुरानी बातें याद मत करों, वह भी मेरी गलती थी कि मैं नें कोई कदम नहीं बढ़ाया था, शायद माता-पिता जी से शर्म के कारण ऐसा हुआ था, लेकिन तुम्हारें को लेकर मन में कोई शंका नहीं थी।

माता-पिता जी को जब अपने पास बुलाया था तब यह सवाल ऊठा था कि तुम्हारा क्या होगा तभी उन से कह दिया था कि तुम्हें भी साथ लेकर आये, तुम भी परिवार का ही हिस्सा हो, सो कभी कोई शंका नहीं थी। माता-पिता जी तो तुम्हें अकेले छोड़ने को तैयार ही नहीं थे। हाँ मेरी गल्ती है कि घर में एकान्त न मिलने के कारण मैं तुम से दिन की बात न कह सका, इस के लिये तुम जो सजा देना चाहों दे सकती हो। तुम्हें खाली देख कर ही मन भर लेता था।

मेरी बात सुन कर वह बोली कि सजा तो तुम्हें मिलनी चाहिये की गर्लफ्रेड़ को इतना रुलाया है। क्या सजा दूँ? मैंने उस के आगे सर झुका कर कहा कि जो आप की मर्जी। वह हँस कर बोली कि तुम्हारी सजा यही है कि तुम अब मेरे दिल में रहो। मैं हँस कर बोला कि वहां तो मैं कब से रह रहा हूँ। उस ने जबाव दिया कि अपने दिल में थोड़ी सी जगह दे दो। यह सुन कर मैंने उसे सीने से लगा लिया और कहा कि वहाँ जो ना जाने कब से तुम्ही बसी हो, यह तुम्हें पता नहीं है। वह मेरी छाती में छुपी हुई बोली कि

तुम ने कभी बताया नहीं।

कई बातें कभी बतायी नहीं जाती समझी जाती है।

कुछ तो इशारा किया होता

तुम्ही तो शिकायत करती थी कि मैं कुछ बोलता ही नहीं हूँ, तुम तो हर बात जान जाती हो, तो यह बात कैसे नहीं जान पायी?

जानती थी लेकिन किसी के मुँह से सुनना चाहती थी।

गल्ती हो गयी थी, अब माफ कर दो

माफ तो कर दिया है लेकिन प्यार जताया करो, मैं प्यार की भूखी हूँ

आगे से घ्यान रखुँगा की मेरी जान को किसी तरह का कष्ट मेरी वजह से ना हो।

तुम्हारें सिवा मेरा कोई नहीं है। तुम मेरे लिये सब कुछ हो

तुम भी मेरे लिये सब कुछ हो, यह सब तुम्हारें लिये ही किया है

कभी कहा तो नहीं

पुरानी आदत है, बदलने की कोशिश करुँगा

मुझे शिकायत करने का मौका तो दो, पत्नी के नाते यह मेरा हक है

हम तो सारे के सारे तुम्हारें है शिकायत करो या प्रशंसा

पहली बार दोनों में ढे़र सारी बातें होती रही। चाय पी कर कुछ देर आराम करने बैठ गये। सरोज बोली कि मेरी कोई बात सही ना लगे तो पुछे बता देना। मैंने कहा कि जरुर बता दूगा, ऐसा ही तुम भी करना। वह बोली कि हम दोनों एक दूसरें को इतने सालों से जानते है लेकिन लगता है कि एक-दूसरे के बारें में कितना कम जानते है। मैंने कहा कि पुरानी जान पहचान की एक सीमा थी।

पति पत्नी के बीच कोई सीमा नहीं होती। अब हम पति-पत्नी है इस लिये हमें एक दूसरें को और अधिक जानना चाहिये। तुम्हें क्या पसंद नापसंद है मुझे क्या पसंद नापसंद है यह तुम्हें पता होना चाहिये। सरोज बोली कि कई सालों से मैं तो वही कर रही हूँ जो तुम ने चाहा है या कहा है। तुम अगर नहीं रोकते तो मैं ना जाने कब की मर गयी होती। जीने की इच्छा मर गयी थी लेकिन उस दिन तुम ने ऐसी नजरों से देखा तो मुझे लगा कि मुझ किस्मत की मारी का भी कोई तो है जो उसे दिल से चाहता है और चाहता है कि मैं सही रहूँ उस दिन यह सकल्प किया कि अब आगे की जिन्दगी उसी के लिये जीनी है चाहे उस से दूर रह कर या उस के पास रह कर।

तुम्हें कभी बताया नहीं लेकिन तुम्हारी उस नजर नें मुझे जीवन दान दे दिया था। तुम ने कहा कि पढ़ों तो पढ़ाई कर ली। लेकिन जब तुम ने कहा कि परीक्षा की तैयारी करों तो लगा कि तुम इस बहाने अपने से दूर करना चाहते हो, यह बर्दाश्त नहीं हुआ और तुम्हारें पास पहुँच गयी। मैंने कहा कि अच्छा किया कि उस दिन मेरे पास आ गयी नहीं तो ना जाने कितने दिन तक तुम से दूर रहना पड़ता। माँ को भी शायद हमारी तुम्हारी बात की भनक लग गयी थी, तभी वह शादी की बात करने आयी थी।

सरोज ने बताया कि माता जी ने तो कई बार कहा था कि अब तो तु इस घर की बहू है तुझे चिन्ता करने की जरुरत नही है। हम सब है ना तेरी चिन्ता करने के लिये। लेकिन मुझे इस पर विश्वास नहीं होता था। उस दिन माता जी की बात सुन कर लगा कि मैंने जरुर कोई पुण्य किया होगा जो ऐसें सांस-ससुर मिले। मैंने मजाक में पुछा कि पति कैसा मिला? तो वह हँस कर बोली कि उसे तो जबरदस्ती पकड़ कर पति बनाया है। पास ही नहीं आता था।

यह सुन कर हम दोनों हँसने लगे। मैंने सरोज से कहा कि तुम से पढ़ाई करने की इस लिये कहता था क्योकि मैं चाहता था कि तुम भी पीसीएस की तैयारी कर के प्रशासनिक सेवा में आ जाओं। मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं तुम से दूर कहीं नही जाना चाहती। तुम्हारें पास रह कर कितनी भी पढ़ायी कर लुगीं लेकिन अपने से दूर करने की बात मत करना। मैं उस की बात सुन कर बोला कि अब नहीं कहुँगा, पहले लगता था कि तुम्हें आत्मनिर्भर कैसे बनाऊँ।

अब वह बात खत्म हो गयी है। मन करें तो पढ़ों नहीं तो मत पढ़ों। लेकिन अपने को तो मुझे पढ़ने दो। वह हँस कर बोली कि मैंने कब मना किया है तुम्ही डर कर पास नहीं आते थे। मैंने कहा कि तुम्हारें मान की चिन्ता थी, वह मेरे लिये सबसे बड़ा था और है। सरोज बोली कि पता है लेकिन तुम से शिकायत तो कर सकती हूँ। मैंने कहा कि अब किस बात की शिकायत, हर समय तुम्हारें पास ही तो हूँ। वह बोली कि देखते है कितना मेरे पास रहते हो। मैंने कहा कि काम के बाद तुम्हारें कंट्रोल में ही हूँ। यह सुन कर वह जोर से हँसी और बोली कि मेरे पास तुम कब नहीं थे। कितने सालों से मेरे आसपास ही हो लेकिन फिर भी मैं प्यासी ही रही हूँ।

मैंने कहा कि समाज की मर्यादा का पालन भी करना पड़ता है। तुम्हें सब पता है। उस समय सामने एक धेय था, उसे पाना था, तुम ने ही तो कहा था कि अभी तो आप कुछ करते नहीं हो, मेरी क्या सहायता कर पायोगें, यह बात लग गयी थी। जब सहायता करने लायक हुआ तो सबसे पहले तुम्हें ही अपने पास बुला लिया। हाँ यह बात अलग है कि कभी अपने मन की बात का तुम्हारें सामने इजहार नहीं कर पाया। इस का दोषी हूँ। आज कह सकता हूँ कि तुम्हारें लायक बन गया हूँ और तुम्हारी देखभाल कर सकता हूँ।

सरोज बोली कि मेरा कहा सुना माफ कर दो मैं तो अकेली बावली हो गयी थी, कुछ भी बोल देती हूँ। अब सही हो जाऊँगी। मैंने कहा कि तुम्हें तो सुनना चाहता हूँ काफी समय तक अकेला ही रहा हूँ तो सिर्फ अपनी ही गाता हूँ अब तो किसी और की सुनने का समय मिला है सो सब कुछ कहो, खुब सारी बातें करों मुझ से ताकि मेरा अकेलापन खत्म हो और हम तुम एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ पाये। वह बोली कि सब कुछ मेरे पर ही डाल रहे हो।

मैंने हँस कर उसे छेड़ा की अब अर्धागिनी हो, इस लिये आधा काम तो करना पड़ेगा, आधा में करुँगा। मेरी बात पर वह बोली कि मैं सही कहती थी कि तुम छुपे रुस्तम हो, मैंने कहा कि अगर नहीं होते तो यह हीरा कैसे ढुढ़ कर लाता। मेरी बात पर वह हँस कर दोहरी हो गयी और बोली कि अगर अभी तुम्हें माता पिता जी देखे तो उन्हें विश्वास नहीं होगा कि तुम उन के बेटे हो। सीधा-साधा बेटा, मैंने कहा जैसी सीधी साधी बहु वैसा ही सीधा-साधा बेटा।

तभी कमरे की वेल बजी, दरवाजा खोला तो वेटर खाना ले कर खड़ा था वह खाना लगा कर चला गया। उस के जाने के बाद दरवाजा बंद करने के बाद हम दोनों खाना खाने बैठ गये। बहुत जोर से भुख लग रही थी सो सारा खाना खत्म कर दिया। खाने के बाद कपड़ें बदल कर सोने की तैयारी करने लगे। सरोज बोली कि रात के कपड़ें बदलना जरुरी है, मैंने कहा कि हाँ तुम्हें बाद में पता चलेगा। वह हँस कर कपड़ें बदलने चली गयी। मैं भी कपड़ें बदलने लगा। जब सरोज कपड़ें बदल कर आयी तो मैं उसे देखता रह गया। लाल रंग के नाईट सुट में वह बहुत सुन्दर लग रही थी, मुझे देख कर बोली कि अब खा मत जाना। मैंने कहा कि खाना तो बनता है। वह बोली कि थोड़ा सब्र करों, सब कुछ मिलेगा। तुम भी तो जँच रहे हो। मैंने कहा कि तुम्हारें बराबर तो लगना पड़ेगा। हम दोनों बिस्तर में घुस गये।

मैंने सरोज को अपने से लिपटा लिया, वह तो मानों इस के लिये तैयार बैठी थी फोरन मुझ से चिपट गयी उस की गर्म सांसें मेरी छाती पर लग रही थी। मैंने उस का मुँह ऊपर उठाया तो वह सिर झुकाये ही चिपटी रही। यह देख कर मैंने पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि कुछ नहीं, ऐसे ही। मुझे लगा कि वह मजाक कर रही है, मैंने जब उस का चेहरा उस की ढोड़ी पकड़ कर उठाया तो वह रो रही थी। यह देख कर मैंने पुछा कि यह क्या है तो वह बोली कि खुशी के है, बहने दो। मैंने उस के चेहरे पर बह रहें आंसु चाट कर पी लिये और उस की आंखें चुम कर बोला कि रानी ऐसा मत करों यह सुन कर वह मुझे ध्यान से देख कर बोली कि मेरे कान क्या सुन रहे है। मैंने कहा कि मैं अपने दिल की रानी को आवाज दे रहा हूँ वह जरुर सुनेगी।

सरोज नें मेरे कान में कहा कि अब से आप मुझे इसी नाम से पुकारेगें। मैंने पुछा कि हमारा नाम भी बता दो। वह बोली कि हंसोंगें तो नहीं, मैंने कहा नहीं, वह बोली कि गुरु जी सही रहेगा। मैं हँस कर बोला कि मेरी गुरु तो तुम हो। वह बोली कि समझ ही नहीं आ रहा कि क्या कहूँ? जान कहा करुँ? मैंने कहा कि जो मन करे कहो, वह बोली कि जान ही कहा करुँगी। मैंने उस के होंठों पर अपने होंठों की छाप लगा दी।

~~~ समाप्त ~~~

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