महारानी देवरानी 025

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देवरानी का असमंजस
2.8k words
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Part 25 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 25

असमंजस

महल वापस आ कर बलदेव अपने मंत्री के साथ बात करने लगता है और देवरानी अपने कक्ष में आ कर उल्टा लेट जाती है।

देवरानी का रोम-रोम आग में जल रहा था और दिल में बेहद खुशी थी। पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि इसे वह वासना समझे या प्रेम? बलदेव उसे दिन बा दिन अपनी ओर खीचे जा रहा था और वह भी ना चाहते हुए भी उसकी तरफ खीची चली जा रही थी।

पलंग पर लेटे हुए देवरानी सोच रही थी "हे राम! में ये किस चक्कर में पड़ गई हूँ एक तरफ मेरा बेटा है जो मुझे हर तरह से खुश रखता है और शायद अंदर ही अंदर वह मुझे एक स्त्री के रूप में देखने लगा है और दूसरी तरफ मेरा दीवाना शेर सिंह है जो मुझे अपनी रानी बनाना चाहता है।"

"अगर में शेर सिंह के साथ चली जाती हूँ तो पूरे राज्य में लोग क्या कहेंगे? राज परिवार की क्या इज्जत रहेगी और तो और मेरी अपने पुत्र से भी जीवन भर के लिए दूरी बन जाएगी और वह भी मुझसे घृणा करेगा। मैं अपने बेटे बलदेव के वजह से ही तो आज तक जीवित हूँ। जब मेरे पास जीने की कोई वजह नहीं थी तो उसने मेरे जीवन में आ कर मुझे एक नई दिशा दी, सिर्फ अपना शरीर की प्यास बुझाने के लिए उसे भला में कैसे छोड़ सकती हूँ?"

"और दूसरी तरफ अगर में शेर सिंह के साथ नहीं जाती हूँ तो कहीं बलदेव और मेरे बीच कुछ बहुत नीच कर्म न हो जाए. जिस तरह से वह मेरे पीछे पड़ा है और जितना मेरे दिल में उसके लिए स्नेह है और कहीं में उसे रोक ना पाई तो अनर्थ हो जाएगा और में अधर्मी बन जाऊंगी, ये समाज के लोग तो मुझे और मेरे बलदेव को मार ही देंगे। तो क्या में बलदेव के मरने की वजह बनू?"

देवरानी उठ कर अपने कक्ष में ही बने मंदिर के पास घुटने के बल बैठ जाती है।

देवरानी: भगवान! मुझे शक्ति दे के में इस दुविधा से बाहर निकल सकू । में दस दिन का व्रत रखूंगी प्रभु कुछ ऐसा करो की मैं उस इस मुश्किल से निकल जाऊँ और मेरे जान सम्मान और मेरे पुत्र बलदेव की जान और सम्मान बचा रहे, और मैं अपने जीवन भर किसी गरीब को अपने दरवाजे से खाली हाथ नहीं भेजूंगी। हर एक गरीब मजबूर का सहारा बनूंगी।

"पर कुछ ऐसा करो भगवान की बलदेव और मेरे सम्मान और जान को क्षती नहीं पहुचे और मेरी हर मनोकामना भी पुरी हो और मेरे पुत्र की भी मनोकामना पूरी हो! रक्षा करो!, कृपा करो!"

वो उठ कर छोटी-सी घण्टी बजाती है जो वही रखी हुई थी और फिर अपने आँखों से आसु पूंछ कर मुह धो कर भोजन की तयारी में जुट जाती है।

रसोई में कमला और देवरानी काम में लगे थे।

कमला: ये राधा कभी रसोई में कोई काम नहीं करती।

देवरानी: उसको छोड़ो कमला! वह महारानी सृष्टि की दासी है। हमें क्या?

कमला: हम्म! परन्तु हम ही जिम्मेदार हैं सबको भोजन समय पर देने के लिए ।

देवरानी: छोड ना! कमला!

कमला देवरानी का मन भाप कर।

कमला: आज आप उदास हो! किसी बात की चिंता खाए जा रही है आपको?

देवरानी: कमला तुम्हें तो पता ही है। के आज के बाद सिर्फ 4 दिन बाकी है मेरे और शेर सिंह के मिलने के लिए!

कमला: हाँ मुझे पता है।

देवरानी: में क्या करूं मुझे समझ नहीं आ रहा? मैं क्या करूं, कमला?

कमला: आप अपने दिल पर हाथ रख कर सोचो और जो आपका दिल करे वही करो!

देवरानी: अगर दिल कुछ ऐसा कहता हो जिसे समाज और धर्म कभी स्वीकार नहीं कर सकते । तो?

कमला: अच्छा तो ये बात है, महारानी आपको पता है में एक स्त्री हूँ और समाज के नियमो के अनुसार मेरा कोई हक नहीं के में अपने जिस्म की प्यास बुझाउ! और प्रेम पाउ!

देवरानी: हाँ!

कमला: पर मेरा दिल नहीं मानता । ये दिल जब नहीं माना तो मैं अपने धर्म और समाज के विरुद्ध उस वैध के गोद में जा बैठी, क्योंकि इस समाज को मेरे दिल का, मरी भावनाओ की कोई परवाह नहीं और उनका कोई अहसास नहीं है ।

अब मैं खूब मजे कर रही हूँ और खुश हूँ। किसी को पता नहीं चलता, पर जिस दिन पता चला उस दिन के लिए भी मैं और वैध जी तैयार है। हम समाज के सामने झुकेंगे नहीं।

अब हम स्त्रीयो को अपने हक के लिए लड़ना होगा। अपनी खुशी के लिए, अपने हिस्से के लिए तब हम इस समाज और इनकी पुरानी परंपराये जिस्मे लोग खून के आसु रो कर अपनी जिज्ञासा और अपने हक़ भुला कर मर जाते हैं, उस समाज से अपना हिस्सा ले पाएंगे ।

देवरानी: पर

कमला: महारानी आप तो खुद रानी हो आपको भला में कैसे लड़ना आपको सीखा सकती हूँ पर अगर आपको कुछ पाना है तो अपनी खुशी के लिए आपको लड़ना पड़ेगा।

देवरानी: शायद तुम सही कह रही हो!

कमला: हाँ ये लोग तो इसे अनातिक ही कहेंगे, आप अपनी इच्छा को देखो । ये अधर्मी कहेंगे, आप अपने खुशी को देखो ।

देवरानी: (मन में) बात तो ये सही कह रही है। ऐसे समाज और उसकी नैतिकता का क्या, जिसमे हम स्त्रीया खुश नहीं रह सकती ।

खाना बनने के बाद सब लोग भोजन करते हैं और बारी-बारी से सब अपने कक्ष में जा कर सो जाते हैं।

देवरानी के आखो से नींद कोसो दूर थी वह कुर्सी पर बैठी हुई थी और कमला की कहीं हुई बातो को सोचे जा रही थी।

बलदेव देवरानी के कक्ष पर आ कर खटखटा ता है "माँ! क्या तुम जाग रही हो?"

देवरानी झट से उठ कर दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोलती है और बलदेव अंदर आ जाता है।

देवरानी: इतने देर रात गए, यहा?

बलदेव: बस आप को खाने के समय चिन्तित देख कर आप से इसका कारण पूछने आया हूँ ।

देवानी: अच्छा!

बलदेव: अभी तक आप सोयी नहीं? आधी रात हो गई! मुझे लगा था के आप सो गयी हो।

देवरानी: नहीं बेटा बस आज नींद नहीं आ रही है ।

बलदेव: क्या सोच रही है, मेरी प्यारी मां, जो उसे नींद नहीं आ रही है ।

देवरानी: बस कभी-कभी ये कक्ष खाने को दौड़ता है। जब तुम छोटे थे तो यही मेरे साथ होते थे, जैसे ही तुम 7 वर्ष के हुए तुम्हें अलग कर दिया गया।

बलदेव: तो माँ को अकेलापन मेहसूस हो रहा है।

"आओ मेरा हाथ पकड़ो! " और बलदेव देवरानी को अपना हाथ पकड़ा कर उसे ले कर बिस्तर पर बैठ जाता है।

बलदेव: माँ! अब बताओ आपको चिंता क्यू हो रही है? जब तक में जीवित हूँ आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

देवरानी: हम्म! "बलदेव क्या इस समाज से लड़ने की शक्ति है मेरे अंदर?"

बलदेव: हाँ बहुत शक्तिशाली हो आप।

देवरानी: क्या में कोई बड़ा निर्णय लेने योग्य हूँ?

बलदेव: आप के अंदर हर एक योग्यता है। माँ आप को किसी और की सलाह की आवश्कयता नहीं है और इस समाज ही क्या, आप पूरी दुनिया से लड़ सकती है और जीत भी सकती है।

देवरानी को ये सुन कर अच्छा लगता है और उसका मन थोड़ा शांत होता है।

देवरानी: पर में अकेली हूँ।

बलदेव: ऐसा कभी न कहना, मैं सदैव, अपने आखिरी दम तक आपके साथ हूँ।

देवरानी: पर तुम्हें कोई अच्छी रानी मिल जाएगी तो फिर तुम उससे विवाह कर लोगे और मुझे तो भूल ही जाओगे।

बलदेव: मैं अपनी जान दे सकता हूँ पर कभी आपकी जान को तकलीफ में नहीं देख सकता। आपको कभी भी भूल नहीं सकता।

देवरानी: वादा करो के तुम कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ोगे।

बलदेव अपना हाथ देवरानी के हाथ पर रख देता है "मैं वादा करता हूँ माँ का आपका साथ कभी नहीं छोड़ूंगा।"

बलदेव: माँ आपकी आंखे लाल हो रही है आप सो जाए।

देवरानी बलदेव का हाथ पकड़ अपना सर बलदेव के सीने पर रख बात कर रही थी।

देवरानी सो जाउंगी । आज इस कक्ष में वर्षो बाद में कोई मुझसे वार्तालाप कर रहा है, मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।

बलदेव अपना एक हाथ देवरानी के सर पर रख के थोड़ा पीछे से पलंग पर टेक लगा लेता है।

देवरानी: बेटा तुम्हें पता है पिछले 5 साल में जब तुम शिक्षा ग्रहण करने आचार्य जी के यहाँ गए थे, मेंने तुम्हें दिन रात याद किया।

बलदेव: हाँ माँ मुझे याद है जिस दिन मैं गया था तुम उस दिन बहुत रो रही थी।

देवरानी: तब तुम केवल 13 वर्ष के और मेरे लिए तुम्हें वन में भेजना बहुत मुश्किल था।

बलदेव: हाँ माँ पर वह भी तो मेरे लिए जरूरी था, जीवन अच्छे जीने के लिए शिक्षा तो लेनी ही पड़ती है।

देवरानी: हाँ पुत्र! अब तो मेरा पुत्र बड़ी-बड़ी बात करने लगा है विद्वानों वाली बड़ी-बड़ी बाते! एक बच्चा अब इतना बड़ा हो गया है।

बलदेव: माँ ऐसी बात नहीं है। आपके लिए तो मैं सदा आपका बच्चा ही रहूँगा!

देवरानी: ऐसी ही बात है जब तुम गए थे तो एक दम दुबले पतले थे और आज किसी घोड़े की तरह मजबूत हो गए हो और हमे इतने मान हैं तुम्हारे शरीर पर।

बलदेव: ये सब खाने पीने और व्यायाम का नतीजा है।

देवरानी: ऐसा नतीजा... इन 5 वर्ष में ना सिर्फ तुम जवान हो गए बल्कि तुम ऐसे जवान हुए के तुम्हें देख तुम्हे सब 30 वर्ष का पुरुष कहते हैं। क्यूकी तुम इतने मांसल शरीर वाले और परिपाकव भी दिखते हो और बाते भी ऐसी ही करते हो।

बलदेव: हाँ माँ ये सब आचार्य जी के बदौलत हुआ है।

देवरानी: मैं आचार्य जी का धन्यवाद कहना चाहूंगी।

बलदेव: माँ में तो बदल गया पर माँ तुम आज भी वैसी ही हो जैसी मैं तुम्हे बचपन से देखते आ रहा हूँ।

देवरानी: हम्म!

बलदेव: तुम्हारे चेहरों की लाली अब भी उतनी ही है।

देवरानी: (मन में-इस लाली को चुसने वाला कोई भवरा नहीं था, जो इस फूल को चुस के इसको खिला दे।)

बलदेव: तुम आज भी 20 से 25 वर्ष की कन्या लगती हो।

देवरानी: हर बार तू ये झूठ बोल कर मुझे मत बहला देता है (जान बुझ कर नखरा करती है।)

बलदेव: माँ तुम्हें पता है जब मैं आचार्य जी पास था तो मैं हर दिन तुम्हें याद किया करता था और अपने दोस्तों को भी बताता था कि मेरी माँ कितनी अच्छी है। मेरे मित्र जो भी बने उनमे से सब से अच्छे मित्र बद्री और श्याम हैं, वह दोनों तो जिद कर रहे हैं आपसे मिलने के लिए ।, आप कहे तो उन्हें बुलवा लू?

बलदेव अपनी माँ को चुप पा कर उन्हें देखता है तो पाता है उसकी माँ तो सो चुकी थी।

बलदेव: माँ भी न, कब सोई, पता ही नहीं चला।

बलदेव के सीने पर सर रखे पैर आधे मोड देवरानी सो रही थी और बलदेव पलंग पर अपनी पीठ टिकाये बैठा था उसे समझ नहीं आरा था के वह उठे या बैठा रहे। फिर वह एकटक देवरानी के मासूम चेहरों को देखता है।

बलदेव: कितनी मासूम चेहरा है इनका!

फिर बलदेव ऐसे ही बैठा रह जाता है और देवरानी सोती रहती है

सुबह 5 बजे देवरानी की आँख खुलती है तो पाती है, के वह अब भी बलदेव की बाहो में बाहे डाल अपने सर को बलदेव के सीने पर रखे हुए सो रही थी और उसका बेटा आँखे खोल झपकी ले रहा था।

देवरानी: (मन में) हे भगवान! ये तो सारी रात ऐसे ही बैठा रहा और सोया भी नहीं, मेरी कितनी परवाह करता है ये लड़का!)

देवरानी थोड़ा उचक कर अपने होते धीरे से बलदेव के माथे को चुम लेती है।

"मेरी जान बलदेव!"

अधखुली आँख खोल कर बलदेव: "मां तुम उठ गई!"

देवरानी: तुम ऐसे ही बैठे रहे सोये नहीं?

बलदेव: अब मैं आपको छोड़ कर कैसे जाता और में हटता तो कहीं आपकी नींद टूट जाती तो!

देवरानी: बलदेव!...बेटा तूने अपने माँ के लिए रात भर जग के सवेरा कर दिया।

और बड़े प्यार से बलदेव को देखती है।

बलदेव: जी माँ!

देवरानी: अब जाओ और अपने कक्ष में आराम से सो जाओ!

फिर देवरानी बलदेव से अलग होती है। बलदेव उठ कर खड़ा हो जाने लगता है।

देवरानी: अरे हा तुम रात भर जागे हो, सोने से पहले वैध जी द्वारा दी गयी जड़ी बूटी खाना मत भुलना, फिर सोना! (देवरानी ये कह कर मुस्कुरा देती है।)

बलदेव नींद में खोया था और उसके दिमाग में ये प्रश्न आता है।

बलदेव मन में: ये माँ को वैध जी की जड़ी बूटी का कैसे पता है?

पर नीद जोरो से आने के वजह से उनके कक्ष से बाहर निकल जाता है जैसे वह-वह अपने कक्ष की सीढ़ियों से ऊपर जाने को होता है उसे उसकी दादी जीविका दिखती है।

हुआ ये की हर बार की तरह, वैध के कहने अनुसार, जीविका सुबह अपने बैसाखी ले कर चल रही थी और उसे सामने देवरानी के कक्ष से बाहर आता हुआ बलदेव दिखाई दिया।

जीविका: ये इतनी सुबह सवेरे बलदेव देवरानी के कक्षा से क्यों आ रहा है, इसका मतलब पूरी रात वह देवरानी के साथ था,

फिर जैसे ही जीविका की नजर बलदेव के लाल आंखो पर पड़ती है।

जीविका (मन में) : है राम इसके आखे लाल हैं मतलाब सारी रात देवरानी के साथ उसके कक्ष में जगा हुआ था । इसका साफ मतलब है कि लोग अपने जिस्म की भूख मिटा रहे थे और जीविका को ये सब देख आपनी आंखो पर विश्वास नहीं हो रहा था।

बलदेव झट से दादी के पैर छूता है।

जीविका: बलदेव जीते रहो पुत्र!

बलदेव: दादी मुझे नींद आ रही हैं। में जाता हूँ।

जीविका: (मन में) रात भर कार्यकर्म अपने माँ के साथ किया और दादी को कह रहा है नींद आ रही है सुबह सवेरे, शर्म बेच कर खा गए हो बलदेव तुम!

दोपहर को बलदेव उठता है और खाना खाने के लिए कमला को आवाज देता है।

कमला: क्या युवराज अभी तक सो रहे हो?

बलदेव: हाँ कमला कल थोडा।

बीच में बात काटते हुए

कमला: कल रात कुछ ऊंच-नीच तो नहीं कर थे महारानी के साथ, जो सो नहीं पाए!

बलदेव: अभी तक तो नहीं, पर तुम्हारी महारानी के साथ कुछ ऊंच नीच दोनों अवश्य करूंगा।

कमला: बड़े प्रेम पुजारी बन रहे हों।

बलदेव: हाँ! तुम्हारी महारानी है ही ऐसी मुझे जैसे को भी पिघला दी उसने!

कमला: इतना प्रेम करते हो?

बलदेव: हद से ज्यादा!

कमला: पर महारानी को पाना इतना आसन नहीं, बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे ।

बलदेव: हर पापड़ बेलूंगा पर आखिरी में तल कर तुम्हारी महारानी को मैं ही खाऊंगा और हसता है।

कमला: हाय दया, तुम भुलना मत आज चौथा दिन है दो दिन बाद उसकी शेर सिंह से मिलने की बात है।

बलदेव: मुझे अपने प्यार पर भरोसा है।

कमला: अगर वह सही में शेर सिंह से मिलने नदी तक पहुँच जाती है तो?

बलदेव: तो फिर जैसे वह-वह मेरे घोड़े पर बैठेगी इस राज्य को और मुझे छोड़ने के लिए, मैं थोडी दूर घुडसावरी करने के बाद उसे एक गुफा में ले जाऊंगा जहाँ पर पहले से एक आदमी होगा ।जिसे में कोई बहाना बना कर वहीं कहीं छुप जाऊंगा और वह आदमी उस घोड़े की कमान संभाल लेगा और माँ को ले जाएगा।

कमला: हाय दया वह आदमी कौन है और तुम ये क्या कह रहे हो?

बलदेव: कमला मैंने पता लगाया हमारे देश घाटराष्ट्र के बगल में एक राज्य है जहाँ पर एक आदमी है जिसका नाम शेर सिंह है और वह उस राज्य का युवराज है, उसकी आयु करीब 40 वर्ष है।

अपने मित्र के मदद से उसे गुफा में बुलवा लूंगा माँ को ले जाने के लिए ।

कमला: तुम पागल हो, अगर हम आदमी ने महारानी के साथ जबरदस्‍ती की।

बलदेव: मैंने मेरे मित्र बद्री के मदद से इस आदमी का चयन किया है, बद्री उज्जैन का युवराज है जिसके टुकड़ो पर शेर सिंह का राज्य चलता है। "हम उसे कहेंगे तुम्हें मौका है अगर तुमने माँ का दिल जीत लिया तो जो चाहे वह करना उसके पहले कुछ नहीं ।"

कमला: पर ऐसा हुआ तो राज्य में बड़ा हंगामा होगा, सब कहेंगे देवरानी अनजान पुरुष के साथ भाग गई ।

बलदेव: तों कमला प्राथना करो के उस दिन वह उस दिन, जब मैं घोड़े पर शेर सिंह बन के बैठूं तो वह घोड़े पर मेरे साथ नहीं आए ।...

कमला: तो क्या तुम खुश रह पाओगे युवराज बलदेव /

बलदेव: मैं जीते जी मर जाऊंगा अगर वह किसी और की हुई!

बलदेव: पर कमला हमने माँ को झूठ कहा है और अगर माँ खुद चाहती है और निर्णय ले लेती है कि उन्हें बाहर के पुरुष के साथ सम्बंध रखना है तो मेरा बेटे होने का फ़र्ज़ है कि उनके इस दुख भरे जीवन से आज़ादी दिलाऊँ और उनकी खुशी के लिए सब कुछ करू।

कमला: तू कितना सच्चा और अपनी माँ के लिए कितनी अच्छी सोच रखता है, ये वासना नहीं है, यही तो प्रेम है सच्चा प्यार है।

या बलदेव की आँखे भर जाती हैं

कमला: रोना नहीं तुम मेरे बच्चे जैसे हो। बचपन से मैंने तुम्हें देखा है, मेरे रहते हुए महारानी कभी गलत निर्णय नहीं ले सकती।

कमला वहा से चली जाति है।

जारी रहेगी...

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