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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 26
देवरानी की उलझन
अब देवरानी और शेरसिंह के मिलने के लिए केवल 3 दिन थे जिसमे बलदेव अपनी पूरी कोशिश कर रहा था कि वह अपनी माँ को अपने प्यार का। अपनी मौजुदगी का अहसास दिला दे और किसी और पुरुष के साथ जाने से रोक ले। यदी शेर सिंह बने बलदेव के साथ रविवार की रात को देवरानी चली जाति है तो बलदेव ने अपने मित्र के मदद से एक राजा खोज लिया था जिसका नाम सच में शेर सिंह था उसके साथ छोड़ देगा और बलदेव ने शेर सिंह नमक राजा को अपने मित्र द्वारा ये समझा दिया था के जब तक के रानी तुमसे विवाह करने तैयार नहीं हो तुम कुछ कर नहीं सकते । बद्री ने उसे ऐसी सख्त हिदायत दे दी थी ।
अब देखना ये था कि बलदेव अपनी माँ की कुर्बानी देता है या वह अपनी माँ का प्यार जीत लेता है और अगर जीत भी लेता है तो उसके बाद अपने प्यार को कैसे सब के नजरों से बचा पाएगा!
बलदेव को ये खबर नहीं थी के पहले ही उसकी दादी जीविका और रानी सृष्टि और उसकी दासी राधा देवरानी के हर एक कदम पर नजर रख रही थी की आखिर देवरानी की खुशी का राज क्या है?
इन सब से बेखबर राज राजपाल कुबेरी में अपने मित्र रतन सिंह के साथ अय्याशी में लगा हुआ था और उनको गुप्तचरो से सूचना प्राप्त होती है के दिल्ली के बादशाह शाहज़ेब कभी भी कुबेरी या घाटराष्ट्र पर हमला कर सकते हैं। पारस के सुल्तान मीर वाहिद और शमशेरा के लिए दूरी के वजह से घाटराष्ट्र या कुबेरी पर हमला करना नामुमकिन था।
राजपाल: रतन सिंह मुझे अपने राज्य की याद सता रही है।
रतन: वहा पर ऐसा क्या है जो यहाँ पर नहीं है मित्र?
राजपाल: हाँ वहा तो बस एक चूत मारता हूँ यहा तो हजारो मिल जाती है और दिन रात अय्याशी करता हूँ और माँ जीविका भी नहीं जो मुझे डांटे ।
या दोनों हसने लगते हैं।
घाटराष्ट्र में सब लोग भोजन की तैयारी कर रहे हैं इतने में महल के दरवाजे पर से दरबान आता है।
दरबान: युवराज बलदेव!
बलदेव झट से दरबान को अंदर आने को कहता है।
बलदेव: कहो क्या बात है।
दरबान: सूचना मिली है के दो राजा कुछ सैनिको के साथ घाटराष्ट्र की सीमा लांघ चुके है।
ये सुनते ही बलदेव खुश हो जाता है।
दरबान: क्या हुआ आप खुश हो रहे हैं?
बलदेव: घबराने की बात नहीं है वह दोनों मेरे मित्रगण हैं। मैंने ही उन्हें न्योता दिया है सबतक ये बात पहुचा दे कि राज दरबार में उनका धूम धाम से स्वागत हो!
दरबान: जी युवराज! जैसी आपकी आज्ञा!
बलदेव: (मन में) आखिरकार बद्री और श्याम आ ही गए!
बलदेव रसोई में अंदर जाता है और सबको कहता है।
बलदेव: आज जितने हो सके अच्छे पकवान बनाओ. मेरे दोनों परम मित्र पधार रहे हैं।
फिर बलदेव भी तैयार हो कर राज दरबार की ओर चल देता है और उन दोनों की प्रतीक्षा करने लगता है।
बद्री और श्याम दोनों ही राजकुमार बलदेव के आयु के थे । जहाँ राजकुमार बद्री जी की सांवला था वह उज्जैन का युवराज था और गोरा चिट्टा राजकुमार श्याम मेवाड़ का युवराज था ।
तेज़ गति से दो घुससावर राज दरबार के सामने आ कर रुक जाते हैं तथा उनके सैनिक पीछे वही रुक जाते हैं।
दासियो चारो ओर खड़ी उनके घोडे से उतारते ही उनपर फूलों की बारिश कर देती है और एक दासी उनके स्वागत में घाटराष्ट्र का मंगल गीत गाती है ।
बद्री या श्याम मस्कुरते हुए उनका धन्यवाद करते हैं फिर एक दासी उनका स्वागत कर बोलती है
दासी: आप दोनों का स्वागत है! आप दोनों यहाँ आसन ग्रहण करे ।
दोनो को एक आसान पर बिठाकर के उनके पैरो के नीचे पानी से भरी थाली रख देते हैं फिर दोनों को उनके चरण थाली में रखने के लिए कहते हैं। दोनों जब अपने चरण वहाँ रख देते हैं तो उनके चरण शुद्ध खुशबुदार जल धोते है। फिर दोनों अपनी जूती पहन कर राज दरबार में चलने लगते हैं । उनके पीछे घाटराष्ट्र के सैनिक बल धीमी गति से चल रहे थे।
राजभवन के दरबार में सब मंत्री गण के साथ-साथ बलदेव, देवरानी, महारानी सृष्टि भी बैठे थे।
जैसे वह बलदेव को दोनों आते हुए दिखाते हैं वह खड़ा हो जाता है उसके साथ ही सभी मंत्री गण भी खड़े हो जाते हैं।
बलदेव: स्वागत है आप दोनों युवराजो का घाटराष्ट्र के इस पवित्र धरती पे। आप दोनों से भेट कर मुझे बहुत प्रसनत्ता हो रही है ।
बद्री: धन्यवाद मित्र! तुम से यही आशा थी। हमे भी आपसे मिल कर अच्छा लग रहा है । मित्र!
श्याम: बहुत हे खूबसूरत भवन है! और हाँ! बलदेव! इतने भव्य स्वागत की क्या आवश्यकता थी हमें तो मित्र है!
बलदेव: ये मेरा प्रेम है तुम दोनों के लिए! आ जाओ मित्र!
बलदेव अपनी बाहे फेलाता है और तीनो मित्र एक दूसरे से मिलते हैं फिर बलदेव अपने साथ उन दोनों को बैठने को कहता है।
सृष्टि: स्वागत है युवराज आप दोनों का!
देवरानी: आपका स्वागत है बद्री और श्याम!
बलदेव: ये मेरी बड़ी माँ सृष्टि है या ये माँ देवरानी है।
श्याम और बद्री उन दोनों का हाथ जोड़ कर प्रणाम करते है।
अब राज दरबार की करवाई शुरू होती है और सब अपने-अपने दुख, समस्याएँ और राज्य की दिक्कत महारानी सृष्टि के सामने रखते हैं।
अभी कुछ देर बाद बलदेव बद्री और श्याम को इशारा करता है।
बलदेव: माँ शुष्टि मैं इन दोनों को इनके कक्ष में ले जाता हूँ। ये लम्बी यात्रा के बाद थक गए होंगे। आज्ञा दीजिए!
शुरू: ठीक है बलदेव तुम लोग जा सकते हो। आप दोनों अब विश्राम कीजिये!
बलदेव: जी बड़ी मां!
बलदेव उन दोनों को ले कर अपने कक्ष के बगल में उनके कक्ष में ले जाता है।
बलदेव: ये रहा तुम दोनों का कक्ष।
श्याम: मित्र! ऐसा लगता है यहाँ पर कई वर्षो से कोई नहीं आया है ।
बलदेव: ऊपर के एक कक्ष में सिर्फ में रहता हूँ बाकी सब कक्ष खाली है। वैसे भी मैं अकेला ही रहता हूँ तो तुम दोनों जहाँ चाहो वहाँ रह सकते हो।
श्याम: अकेले क्यू हो दुकेले हो जाओ!
बलदेव हसकर बोलता है चल हट! नटखट!
बद्री: श्याम सही तो कह रहा है । तुमने शरीर हाथी जैसा बना लिया है। तुम्हारे सामने तो हम बच्चे ही लगते हैं।
बलदेव: इसका क्या मतलब है
बद्री: इसका अर्थ ये है कि अब आप शादी कर ले युवराज!
या तीनो हसने लगते हैं।
बलदेव उन दोनों के लिए भोजन का प्रबंध करवाता है।
श्याम और बद्री स्नान कर के अपने लाये हुए वस्त्रो में वस्त्र पहन कर भोजन कक्ष में आ कर भोजन करने के लिए सब के साथ बैठते है।
श्याम: क्या स्वादिष्ट पनीर है।
बद्री: हाँ मैंने तो आज तक इतना स्वादिष्ठ पनीर कभी नहीं खाया है ।
बलदेव: ये सब माँ देवरानी ने बनाया है।
श्याम और बद्री देवरानी जो रसोई में थी उनको धन्यवाद बोलते हैं ।
श्याम और बद्री: "धन्यवाद महारानी! आपने हमारे लिए इतना स्वादिष्ट व्यंजन बनाया!"
देवरानी बस मुस्कुरा के रह जाती है।
ऐसे ही श्याम और बद्री को पूरा महल दिखाते हुए रात हो जाति है। बलदेव या देवरानी को आपस में मिलने का समय बिलकुल मिल नहीं पाटा । देवरानी बलदेव से मिलने के लिए अंदर ही अंदर तड़प रही थी। आखिरी कार हार कर। वह सोने की तयारी करने लगती है।
युवराज बलदेव अपने मित्रो के साथ समय गुजार कर और बाते कर के बहुत खुश था।
श्यामः मित्र! याद है जब हम छुप-छुप कर कामसूत्र और सेक्स कहानियो की पुस्तके पढ़ते थे।
बद्री: आर हाँ एक दिन तो मैं पुस्तक को छुपाना ही भूल गया था । ये तो अच्छा हुआ की आचार्य जी ने नहीं देखा, नहीं तो!
बलदेव: नहीं तो हमें उसी दिन वहा से निकाल दिया जाता ।
बद्री: बलदेव तुम तो इस विषय पर बात ही मत करो रात-रात भर जग के पढ़ते थे।
श्यामः हाँ और महाराज सुबह में उठ भी जाते थे और फिर सब हसने लगते हैं।
बद्री: ये बलदेव तो बस सम्बन्धियों से सेक्स की कहानीया अधिक पढ़ता था।
बलदेव: श-श श मित्रो! ये वन में आचार्य की पाठशाला नहीं बल्कि ये महल है और दीवारों के भी कान होते हैं!
बद्री: अच्छा छोड़ो, तुम ये दुसरो के विवाह करवाने के लिए कब से आतुर हो गए, कोई नया व्यवसाय शुरू किया है क्या!
श्याम हस देता है।
बलदेव: बात ये है कि किसी को दुख है उसे बस मुक्ति प्रद्दन करनी है।
बद्री: पर वह है कौन जिसे तुम मेरे सम्बंधी राजा शेर सिंह के पास छोड़ कर आओगे।
क्या उसे भी ये ज्ञात है?
बलदेव: उस स्त्री को बस इतना पता है कि वह अपने पापी पति को छोड़ कर किसी की शरण में जाएगी अगर वह उससे सही बर्ताव करता है तो वह शायद उससे विवाह कर ले।
बद्री: हाँ मैंने उसे तैयार रहने को कहा था और चेतावनी दे दी के उसकी मर्जी के बिना तुम उसे छू भी नहीं सकते।
बलदेव: धन्यवाद बद्री!
बद्री: पर वह है कौन जिसे घाटराष्ट्र छोड़ कर जाना है?
बलदेव: समय आने पर पता चल जाएगा और हाँ उस स्त्री को अभी आखिरी निर्णय लेना है।
अब तुम दोनों सो जाओ लम्बी यात्रा के बाद तक गए होंगे! मैं भी जा कर विश्राम करता हूँ । सुबह आप दोनों से पुनः भेंट होगी ।
बलदेव ये कह कर अपने कक्ष से नीचे उतारता है और देवरानी के कक्ष में घुस जाता है। आज फिर उसे देवरानी के कक्ष में जाते हुए उसकी दादी जीविका देख लेती है।
देवरानी सोच में डूबी हुई थी।
बलदेव: माँ!
देवरानी चुप रहती है।
बलदेव: माँ क्या हुआ कुछ तो बोलो।
देवरानी अभी भी चुप थी।
बलदेव जा कर देवरानी का हाथ पकड़ कर "क्या हुआ है माँ"
देवरानी: तुम जाओ! मुझसे बात मत करो!
बलदेव: क्यू ना करू?
देवरानी: तुम्हारा कोई हक नहीं है।
बलदेव: सब हक है मेरा।
देवरानी: जाओ अपने मित्रो के पास।
बलदेव: तो ये बात है, क्षमा कर दो माँ आज मेरे मित्रो के कारण से आपको समय नहीं दे पाया।
देवरानी का गुस्सा थोड़ा ठंडा होता हैऔर वह बलदेव को देख कहती है ।
देवरानी: बलदेव तुम कहते हो, जीवन भर साथ रहोगे । लेकिन तुम तो आज ही मुझे भूल गए और सुबह से अब अपना मुह दिखा रहे हो!
बलदेव: माँ आपको पता है। मेरे मित्र पधारे है । ये श्याम और बद्री तो मुझे छोड़ नहीं रहे थे । मैंने बहुत प्रयास किया और रही भुलने की बात। तो मेरी हर सांस में तुम बसती हो।
देवरानी ये बात सुन कर बलदेव से गले लग जाती है।
देवरानी: (मन में) मेरे लाल! मैं तुम्हें कैसे बताउ की में किस दुविधा में हूँ?
बलदेव (मन में) माँ! मुझे पता है के तुम कि हाल से गुजर रही हो।
देवरानी: आज के बाद मुझे कभी नजर अंदाज किया तो?
बलदेव: तो आपकी चप्पल मेरा सर!
देवरानी हस देती है।
बलदेव: आपको मेरे मित्र कैसे लगे?
देवरानी: कैसे लगेंगे बच्चे है!
बलदेव: वह मेरे ही आयु के है।
देवरानी: पर तुम जैसे तो नहीं हैं वो।
बलदेवः मैं कैसा हूँ?
देवरानी बलदेव का आंखो में देखती है ।
देवरानी: तुम...उनसे बहुत बड़े लगते हो।
बलदेव: इतने भी नहीं है मां!
देवरानी: चुप कर मुझे पता है कितने बड़े हो ।
बलदेव हस देता है।
देवरानी: अगर उन दोनों को हमारे साथ खड़े कर दो तो वह हमारे बच्चे लगेंगे ।
ये सुन कर बलदेव अपनी आंखे चौडी कर देवरानी को देखता है।
अब देवरानी भी अपने कही हुए बात को समझ कर लजा जाती है।
देवरानी: मेरे कहने का अर्थ...
बलदेव: अर्थ को छोड़ो माँ होता है। जो बात सही है वह है।
देवरानी: और वैसे भी हम अब माँ बेटे बढ़ कर मित्र है।
बलदेवः ये मित्रता कब हुई?
ये सुन कर देवरानी बलदेव की मोटी बाजू पर एक थप्पड़ मारती है।
बलदेव: माँ में मजाक कर रहा था।
देवरानी: लो मित्रता भी नहीं है और अपनी माँ से मजाक कर रहे हो।
अब लजाने की बारी बलदेव की थी।
देवरानी: कल शुक्रवार है बलदेव!
बलदेव: हाँ मां!
देवरानी: में सूर्य पूजन के लिए नदी के तट पर जाना चाहती हूँ।
बलदेव: तुम कितना पूजा पाठ करती हो मां!
देवरानी: ऐसा नहीं कहते भगवान को बुरा लगता है।
बलदेव: भगवान ने तुम्हें दुख ही दुःख दिया है । क्या उन्हें इतने सालों का तुम्हारा बलिदान भगवान को नहीं दिखता है, इस बलिदान से क्या मिला आपको मां!
देवरानी: बेटा बलदेव मेरे जीवन में कुछ नहीं है पर तुम तो हो मेरे तुम्हारे लिए वह जीवित हूँ या तुम्हारे सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिए.
बलदेव ये सुन कर माँ को गले लगा लेता है।
बलदेव: (मन में) माँ मैं तुम्हारा हर दुख सुख में बदल दूंगा।
देवरानी: (मन में) कल शुक्रवार है फिर शनिवार फिर रविवार, इन्हीं तीन दिनों में मुझे तुम में से या शेरसिंह में से एक का चयन करना है, और मैंने तुम्हारे आंखों में वह प्रेम देख लिया है। अगर मैं तुम्हें चुनती हूँ तो भी अधर्मी कहलाउंगी जिसने समाज के नियम तोड़े हैं। अगर शेर सिंह के साथ जाती हूँ तो भी लोग वही बात कहेंगे, इसलिए किसी भी रूप से मेरे आगे वाले जीवन में भुचाल तो आने ही वाला है।
फिर बलदेव अपनी माँ को शुभ रात्री कह कर चला जाता है।
जारी रहेगी