Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 30
बेहद खूबसूरत
राजमाता और दादी जीविका की आवाज सुन युवराज बलदेव अपनी माँ रानी देवरानी को छोड़ अपनी दादी के पास जाता है पर वह इस व्यवधान से बुरी तरह से चिढ़ा हुआ था।
युवराज बलदेव: क्या हुआ दादी?
राजमाता जीविकाः तुम कहा व्यस्त थे?
युवराज बलदेव: कहीं नहीं!
जीविका: तो मुझे ऐसा क्यों प्रतीत होता है जैसे मैंने तुम्हें किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के बीच में बुला लिया?
अब युवराज बलदेव उन्हें ये कैसे बताएँ के वह अपने माँ से प्यार करने में और देवरानी को रगड़ने में व्यस्त था!
युवराज बलदेव: मैं वह राज्य में हुए पिछले आक्रमणों के बारे में माँ से पुछ रहा था, जिससे आगे सावधान रहा जा सके! आप बताईये क्या काम है!
जीविका (मन में) : क्या आक्रमण हुए थे ये मुझे मत सिखाओ पुत्र!
राजमाता जीविका: अच्छा ठीक है तुम मेरी लिए वैध जी से कुछ जड़ बूटी वाली दवा ले आओ ।
बलदेव: जी दादी!
युवराज बलदेव वैध जी से जड़ बूटी ले आने चला जाता है।
इधर देवरानी उल्टी हो अपनी चुत को दबाये हुए लेटी हुई थी ।
रानी देवरानी: हे भगवान मेरी बूर फट जाएगी अब इतनी जलन हो रही है। "आह!" इतनी तडप! "हाय" ये बलदेव भी ना हमेशा खेल-खेल में, आग सुलगा के चला जाता है ।"
अपने छूट को मसलते हुए तड़पते हुए देवरानी सो जाती है, कुछ देर में बलदेव भी दादी का काम निपटा कर आता है और देवरानी का दरवाजा पर आकर बोलता है "माँ दरवाजा खोलो ।"
जब दरवाजा नहीं खुलता तो युवराज बलदेव बेतहास दरवाजा पीटता है पर उसकी माँ तो घोडे बेच कर सो रही थी।
युवराज बलदेव भी जा कर सो जाता है। शनिवार सुबह सब उठते है और अपने-अपने कार्य पर लग जाते हैं।
देवरानी आज जल्दी उठ जाती है और रोज़ की तरह पहले पूजा अर्चना करती है। फिर अपना योग कर कुछ जड़ बूटीया खाती है।
युवराज बलदेव को कल रात अच्छी नींद नहीं मिली थी और अभी भी अपनी माँ के छुवन की खुमारी में अब भी डूबा हुआ था।
कमला: हे युवराज अब उठ जाओ सूरज सर के ऊपर आ गया है ।
युवराज बलदेव "हमम।" और उठता है।
कमला: लगता है प्यार में दिन रात समझ नहीं आता है युवराज को।
युवराज बलदेव: अब तुम्हारे महारानी से पूछो सब उसकी गलती है।
कमला: ओहो! प्यार में डूबे तुम और गलती महारानी की!
युवराज बलदेव: अपने महारानी से कहो वह अपने हुस्न का जलवा न ऐसे दिखायें!
कमला: अब उनके रूप में ऐसी ही बात है तो वह क्या करें?
युवराज बलदेव: सिर्फ रूप की बात ही नहीं है ।
कमला; और क्या?
युवराज बलदेव; और अंग भी!
कमला: हाय महारानी के अंग सुंदर होना भी उनकी गलती नहीं है ।
युवराज बलदेव: चुप कर! साली! और हसता है ।
कमला ये सुन कर एक दम चौंक जाती है
कमला का मुरझाया हुआ चेहरा देख बलदेव मुस्कान देता है।
युवराज बलदेव: कमला तुम माँ को अपनी बहन मानती हो ना!
कमला: जी! युवराज!
युवराज बलदेव: तो पत्नी की बहन कौन हुई? साली!
कमला: हाय! और मुस्कुरा देती है।
युवराज बलदेव: और साली भी तो आधी घरवाली होती है।
कमला: चुप करो युवराज ऐसा मत कहो!
युवराज बलदेव कमला को ताड़ते हुए बोला वैसे तुम भी अपने बहनो से कम नहीं हो! साली जी!
कमला: युवराज! ऐसे वैसे ना देखो, नहीं तो मैं अपनी बहन का कान भर के, तुम्हारा पत्ता काट दूंगी!
युवराज बलदेव मुसकुराता है।
कमला "हुह! बड़े आए आधी घर वाली बनाने वाले" और चली जाती है।
युवराज बलदेव स्नान कर तैयार हो कर राज सभा में जाता है जहाँ महारानी सृष्टि प्रजा की बातों को सुन रही थी और समस्याऔ का समाधान दे रही थी।
मंत्री: आईये युवराज! पधारिये!
सृष्टि आसान ग्रहण करो! बलदेव!
बलदेव प्रणाम कर के महारानी सृष्टि की बगल में आसन ग्रहण करता है।
मंत्री: युवराज सेनापति का संदेश आया है हमारे सीमा पर घुसपैठ होने की संभावना है।
शुरुष्टि: हाँ ये सही बात है युवराज बलदेव और हम चाहते हैं कि आज से घाटराष्ट्र की सीमा तुम्हारी निगरानी में रहे।
बलदेव: (मन में) इसका अर्थ तो ये है के मुझे दिन रात कभी भी राष्ट्र की सीमा की सुरक्षा के लिए जाना होगा।
शुरुआत: तुम सही सोच रहे हो युवराज, दिन हो या रात तुम्हें वही पहरा देना है।
बलदेव: पर मां!
शुरू: तुम्हारा महल में आना जाना लगा रहेगा पर तुम सीमा की सुरक्षा में कोई कोताही नहीं बरतनी है।
बलदेव: जो आज्ञा महारानी!
सृष्टि के कान में राधा आ कर कुछ कहती है जिसे बलदेव सुन लेता है।
राधा: महारानी! ये तो आ गया पर इसकी माँ नहीं दिख रही है।
महारानी सृष्टि अपने सिंहासन से उठ का सभा समाप्त करते हुए राधा के साथ जाने लगती है।
बलदेव: मैं या मेरी माँ तुम सब की इतना आदर करते हैं परंतु बड़ी माँ तुम तो अपनी दासी से मेरी माँ की बेज्जती करवा रही हो।
बलदेव और मंत्री सैनिको से बात करते हैं और बलदेव सैनिकों को ले कर सीमा पर चला जाता है।
पारस में
शनिवार सुबह सब सो ही रहे थे पर पारस की महारानी हूरजहाँ उठ कर बागीचे की ओर जाने लगती है। शमशेरा अभी सो कर उठा था तथा वह अपनी खिड़की के पास कुर्सी रख कर बैठ जाता है।
शमशेरा के कमरे से महल के पास का बगीचा साफ नजर आ। रहा था ।
शमशेरा बैठा ताजा हवा ले रहा था के वह दूर किसी को बाग में देखता है और उसे पहचानने का प्रयास करता है और समझ जाता है कि वह कोई या नहीं उसकी माँ हुरिया है।
हुर जहाँ जो एक मज़हबीऔर बड़े सख्त मिजाज़ की औरत थी जिसका तालुक मिश्र (इजीप्ट) से था। कम उमर में शादी हो कर पारस आई हुरिया आज भी किसी हूर जैसी दिखती थी, वह आज 45 साल की थी पर उसके चेहरों पर अब भी सेबो जैसी लाली थी, चेहरा एक दम दूधा-सा गोरा और लंबाई चौड़ाई ऐसी के हिजाब में भी उसके बड़ी गांड और दूध छिपाये नहीं छिपते थे। हुरिया का जीवन तो खुशियों से भरा था पर कुछ सालो से उसका शौहर मीर वाहिद पूरी दुनिया के दौरे पर रहता था और उसकी जिनसी कमजोरी से हुरिया थोड़ी-सी फिकरमंद थी।
वैसे हुरिया की ख्वाइश उमर ढलने के साथ बढ़ रही थी पर सुल्तान मीर वाहिद की जिन्सी ख्वाहिशे कम हो रही थी, हुरिया की गांड कम अज काम 46 की थी और उसके दूध 40 के थे ।
शमशेरा जिसने अपनी माँ को बचपन में ही बिना हिजाब के सिर्फ सूट सलवार या राजसी पोशाक में ही में देखा था, कल दिन में बिना डरे अपने अब्बू को अम्मी को नंगी कर चुदाई करते देख थोड़ा हैरान था ।
शमशेरा: (मन मैं) आह! क्या गांड है आपकी अम्मी जान!
शमशेरा को याद आता है कि कल इस गांड को नंगी कर के सुल्तान कैसे तड़ातड़ पेल रहा था।
शमशेरा: (मन में) देखो अब कितनी शरीफ बन रही है ये और कल अपनी गांड कैसे उचक-उचक कर चुदवा रही थी ।
हुरिया के बड़े गोल बिताम अब जल्दी में चलने से ऊपर नीचे हो रहे थे ।
शमशेरा का हाथ खुद बा खुद अपने लंड पर चला जाता है और उसे मसलने लगता है।
हुरिया अपनी मस्ती से चल रही थी । उसे क्या पता था कि उसका अपना बेटा उसकी गांड को खा जाने वाली नज़र से देख रहा है ।
तभी हुरिया एक गुलाब का फूल तोडने के लिए थोड़ा रुकी और उसके रुकने से उसका हिजाब थोड़ा-सा उसकी बड़ी गांड की दरार में घुस जाता है।
शमशेरा अब अपना लंड ज़ोर से हिलाने लगता है और उसकी आखे बंद हो जाती है फिर वह जैसे ही आंखे खोलता है तो हुरिया को एक दूसरे फूल की तरफ जाते हुए देखता है तो की शमशेर की तरफ था ।
जैसे ही वह शमशेरा की तरफ मुड़ती है। शमशेर उसके दोनों फुटबॉल साइज के मम्मे हवा में लहराते हुए हिलते डुलते देखता है।
शमशेरा: आआह! अम्मी जान। " और वह पच्च से पानी छोड़ देता है।
वो महल बनाने वाले का शुक्रीया करता है जिसने बाग़ साथ में बनाया था जिसके कारण वह अपनी माँ की मटकती गांड और हिलते हुए स्तनों को देख मजे ले पाया था ।
शमशेरा उठ कर नहा धो कर अपनी माँ की ख्वाबगाह में जाता है।
शमशेरा: अम्मी! आप कहाँ हो?
हुरिया: यहा हूँ । बर्खुदार!
शमशेरा: अम्मी आप क्या कर रही हो?
हुरियाः बस अभी दुआ कर के उठी हूँ!
शमशेराः कैसी दुआ?
हुरिया: बेटे जानी तुम्हारे या तुम्हारे अब्बा के सलामती की दुआ!
शमशेरा: शुक्रीया! अम्मी दिन रात हमारे लिए दुआ कर के थकती नहीं हो आप?
हुरिया: भला कैसे थकूँगी! में तो खुदा से हमेशा ही तुम दोनों की सलामती की दुआ करती हूँ पर आज कल मेरा ये जंग की बात सुन कर मन घबरा रहा है।
शमशेरा: घबराए नहीं अम्मी!
हुरियाः पर क्या इतनी दूर हिंद पर हमला करना ठीक रहेगा?
शमशेरा: अम्मी कुछ ख़ास नहीं । हज़ार दो हज़ार को तो मैं अकेला ही निपटा लुंगा!
हुरिया: पगला!
शमशेरा: आप अपना ख्याल रखे अम्मी!
हुरियाः रखती तो हुं!
शमशेरा: क्या ख़ाक रखती हो! दिन रात इबादत गाह में रहती हो और ये झुब्बा पहनी रहती हो!
हुरिया: हाँ! किसी गैर मर्द की नजर से बचने के लिए ही पहनती हूँ!
शमशेरा: मैं क्या गैर मर्द हूँ? (अपने माँ के आखो में देखते हुए.)
हुरिया: पर तुम भी तो अब जवान हो गए हो।
शमशेरा: आपको ऐसा लगता है, पर मुझे मेरे बचपन वाली अम्मी चाहिए।
हुरिया अपने बच्चे की ऐसी जिद पर हुरिया पिघल जाती है और झट से अपना हिजाब निकल कर दूसरी तरफ रख देती है।
हुरिया अंदर से चुस्त समीज़ और सलवार पहने हुई थी जिसमे उसके दूध केसे हुए थे और उसकी मोटी गांड तो सलवार का दम तोड़ रही थी ।
हुरिया: मुस्कुरा कर "अब ठीक है?"
शमशेरा लगतार अपनी माँ को देख रहा था।
शमशेरा: अम्मी आप ऐसे ही रहा करें, बेहद खूबसूरत हो आप!
हुरिया: हाँ ऐसे रहूंगी पर घर में। बाहर नहीं, अब कहा? पहले में ज्यादा खूबसूरत थी।
शमशेरा: आप अब भी बेहद खूबसूरत हो।
हुरिया हसकर "चलो अब मैं पारसी फ़र्श कालीन लगवाती हूँ ।" फिर हुरिया जाने लगती है।
शमशेरा बस हुरिया की गांड को निहारते रह जाता है।
कहानी जारी रहेगी ।