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अपडेट 29
हूरिया और सुल्तान, आम दशहरी या मालदा
पारस में
हुरिया: बेटा चलो में तुम्हें खाना खिलाती हूँ नहीं तो ये तुम्हारे अब्बा तुम्हें भुखा ही फिर से जंग पर भेज देंगे।
हुरिया अपने बेटे को ले कर अंदर चली जाती है उसे खाना खिलाने के लिए।
आज शुक्रवार का दिन था और पारस में मल्लिका ए जहाँ हूर-ए-जहाँ अपने बेटे शमशेरा के आने पर आज बहुत खुश थी।
शमशेरा: अम्मी आज खाने में क्या-क्या है?
हुरिया अपनी दासियों से बुलवा कर कई बड़ी थालियो में अलग-अलग किस्म का खाना परोस देती है।
शमशेरा: अम्मी इतनी अच्छी खुशबू और इतना सारा खाना बनाने की क्या जरूरत थी? मैं कौन-सा मेहमान हूँ!
हुरिया: मेरे लाल एक वक्फा बीत गया था तुझे देखे हुए ये सब मेरे लाल के घर आने की खुशी में है।
शमशेरा: शुक्रीया अम्मी जान!
हुरियाः पहले तुम खाना खा लो फिर आज तुम्हें इबादत के लिए भी जाना है। दिन तो याद है ना तुम्हें!
शमशेरा: जरूर अम्मी जान! आज जुमा है!
हुरिया और हाँ अपने अब्बा हुजूर को भी ले कर जाना उन्हें खुदा की मेहरबानी की बहुत जरूरत है।
हुरिया वहा से अपने कमरे में आ जाती है और नहाने जाने के लिए झट से अपना हिजाब निकालने लगती है।
हुरिया अपने आप को आईने में देखती है। उसका लंबा बदन उसपे 42 की छाती और उसके 46 की गांड कयामत ढा रही थी और वह नहा कर एक अलग किस्म का हिजाब पहन लेती है।
फिर वह खुद को इबादत के लिए तैयार करने लगती है। बाहर हुरिया हमेशा हिजाब में ही जाती थी, हुरिया का चेहरा उसके दासियों और उसके परिवार के अलावा किसी ने नहीं देखा था।
घाटराष्ट्र में
शुक्रवार दोपहर के भोजन के बाद बद्री और श्याम के अपने घर वापसी की तैयारी होने लगती है।
देवरानी अपने राज्य के हर प्रसिद्ध चीज अपने पुत्र बलदेव के मित्रो को बाँध कर देने लगती है।
श्याम: अरे मौसी जी इतना कष्ट करने की क्या जरूरत है?
देवरानी: तुम लोग घाटराष्ट्र से जाओ और हम तुम्हे खाली हाथ भेज दे! ऐसा नहीं हो सकता!
बलदेव: (मन में) साले श्याम मौसी नहीं भाभी बोल देगा तो और ज्यादा मान दान होगा।
बद्री: पर फिर भी क्या इतना अधिक सामान हम अपने घोड़े पर ले जा सकेंगे।
देवरानी: आराम से चले जाएंगे, कृपया बहाने न बनाएँ।
बलदेव: (मन में) देखो ऐसे जबरदस्ती कर रही है, जैसे के ये दोनों इनके देवर ही हो!
देवरानी: तू उधर क्यू खड़ा है। बलदेव इधर आ कर मदद करो!
बलदेव: हाँ माँ!
श्याम: बलदेव देखो तुम्हारी माँ कितनी काम करती है।, अब इनकी ये भारी भरकम काम करने की उम्र नहीं है। तुम तो विवाह कर लो!
बलदेव: नहीं माँ इतनी कमजोर नहीं हुई है ।
बलदेव (मन में) अबे सालो तुम्हें क्या पता मैं इनसे ही विवाह करने के फिराक में हूँ और तुम्हारी भाभी देवरानी में इतनी शक्ति है, के तुम दोनों को एक साथ पछाड़ दे।
देवरानी मौक़े का फ़ायदा उठा के, बलदेव को चिढ़ाते हुए।
देवरानी: हाँ तुम दोनों, तुम्हारे राज्य में एक अच्छी-सी लड़की देखो इसके लिए (या हल्की मुस्कान देती है।)
बलदेव का ये सुन कर अपना मुह उतर जाता है और रूठ जाता है।
श्याम: क्यू नहीं हम तो यही कोशिश करेंगे के जैसी इसकी चाहत है, उसी अनुसार कोई कन्या मिल जाए।
बलदेव: ऐसी आज कल मिलनी मुश्किल है, मैं तो कहता हूँ तुम्हे वह नहीं मिलेगी ।
श्याम: भाई। हमें पता है। तुम्हें संस्कार के साथ-साथ नए सोच रखने वाली कन्या चाहिए।
बलदेव: हाँ ऐसे कन्याए एक दुक्की ही मिलती है।
फिर देवरानी की ओर देख कर बोलता है "या मिलती भी है। तो उनके हजार नखरे होते हैं।"
बद्री: भाई। अब तुम्हें वैसे तेवर वाली मजबूत लड़की चाहिए तो कुछ सहन तो करना ही पड़ेगा।
देवरानी इस बात पर चुटकी लेते हुए ।
देवरानी: हाँ बद्री और वैसी कन्या को संभाल लेना भी किसी ऐरे गैरे नाथू खैरे के बस की बात नहीं है ।
(वो बलदेव को देख मुस्कुराती है।)
बलदेव (जोश में आ कर) बद्री तुम तो जाने हो मेरे को में एक क्या ऐसी 10 को संभाल लूगा । ये एक किस खेत की मूली है।
अब देवरानी को ताना सुनने की बारी थी।
देवरानी इस बात पर बलदेव को ना देख, अंदर से खुश हो कर मुस्कुरा कर अपने को देखती है।
देवरानी: (मन में) इस मूली को खाने के लिए तुम्हें दिन रात ज़मीन की सिंचाईभी तो करनी पड़ेगी बलदेव और ये सोच कर देवरानी की चूत पनिया जाती है।
इन्हीं बातों के बीच सारी तैयारी हो जाती है और वह दोनों अपने-अपने घर को निकलते हैं।
बद्री और श्याम वादा करते हैं की जब भी बलदेव को किसी भी प्रकार की जरूरत होगी वह सहायता करेंगे और घाटराष्ट्र बहुत जल्दी वापस आएंगे।
पारस में
शाम के 4 बजे अपनी खुदा की इबादत कर हुरजहाँ अपने सुल्तान को खोजने निकालती है, उसकी दासी उसे कहती है के वह बैठे कोई किताब पढ़ रहे हैं। हुरिया वहा पहुँचती है।
हुरिया: सुल्तान!
मीर वाहिद: आईये मोहतरमा!
हुरिया: आपने आज इबादत की या बस?
हुरियाः तुम्हारे जैसे इबादतगर बीवी के रहते हुए भला सुल्तान की क्या मजाल के वह इबादत में हिस्सेदारी ना ले।
हुरिया: खुदा आप पर अपनी रहमत बनाए रखे।
सुल्तान: तो बतायें मल्लिका ए जहाँ । ये सुल्तान मीर वाहिद आपकी क्या खिदमत कर सकता है।
हुरिया: आज कल मेरे सुल्तान जंग में मशरूफ होते है। मल्लिका ए जहान को भला कौन पूछता है।
सुल्तान: आप के हुस्न के तो हम अब भी कायल हैं और जब आप देखे काले हिजाब में खुद को ढक कर आई थी तब भी जब हमने आपकी लचकती हुई इस बड़ी गांड को देखा और आपको हिलते दूध को देखा तो मेरा बुरा हाल हो गया था।
हुरिया: बुढे हो गए हो आप अब से 60 के ऊपर हो गए हो ।
सुल्तान: पर मेरी बीवी तो जवान है।
सुल्तान हुरिया के करीब जा कर खड़ा होता है।
45 वर्ष हुरिया मिश्र की रानी थी जिसे मीर वाहिद ने मिश्र फतेह करने के बाद अपने साथ लाया था ।
सुल्तान अपने दहिने हाथ से उसके बड़े ने दूध को पकड़ लेता है और सहलाता है।
हुरिया: सच में आपको मुझे देख कुछ करने का दिल हुआ तो आप मुझे इशारा कर देते, मैं कहीं कोने में ही आप से मिल लेती।
सुल्तान: कोई बात नहीं अभी सारी कसर निकल देता हूँ और सुलतान उसके दूध को जोर से दबाने लगा।
सुल्तान: आह तुम्हारे ये दूध कितने बड़े और शानदार हैं। हुरिया बेगम!
हुरिया सुल्तान का हाथ पकड़ कर अपने हाथ से दूध को दबवाने लगती है।
कुछ देर खूब अच्छे से दोनों बड़े गेंदो को अच्छे मसलने के बाद सुल्तान से रहा नहीं जाता और वह अपने कपडे उतार फेंकता है।
सुल्तान: अब जल्दी करो हुरिया जान!
हुरिया झट से नीचे बैठ के सुल्तान के आधे खड़े लंड को मुह में ले कर पहले उसके टोपी को चाटती है। फिर उसे अपने मुह में ले लेती है।
सुल्तान: आआह हुरिया! आआ! ऐसे ही चूसो!
हुरिया: उहम्म-उहम्म उहम्म!
सुल्तान अब हुरिया को उठाता है और ऊपर से उसकी कमीज को उठा कर उसके भारी स्तनों को नंगा कर देता है और उन्हें दबोच लेता हैं।
सुल्तान: क्या कसे हुए और भारी मम्मे है। तुम्हारे मेरी जान!
हुरिया: आप इसे दबा के दबा के सख्त से नरम कर दो।
अब सुल्तान हुरिया को नीचे कर के हुरिया के दूध के बीच अपने लौड़े को डाल उसके भारी मम्मे चौदने लगता है।
सुल्तान: आह हुरिया!
सुल्तान अब अपना लौड़ा अपने हाथ से पकड़ कर ज़ोर से एक दूध पर लौड़ा "थप" से मारता है।
हुरिया आखे बंद कर "आह सुल्तान!"
अब सुल्तान पास में राखी मेज के ऊपर हुरिया को झुकने का इशारा करता है और हुरिया अपनी बड़ी गांड को हिला कर झुक जाती है।
सुल्तान: उसकी गांड पर एक लप्पड़ मरता है। "क्या मोटी गांड है। तुम्हारी मल्लिका ए जहान"
हुरिया: आह! नहीं सुल्तान...!
सुल्तान: इस पर फतेह कर के मुझे जितना मजा आया उतना तो मुझे पूरी दुनिया पर फतेह कर के नहीं आया!
अब सुल्तान अपना लंड झुकी हुई हुरिया की चूत में डाल देता है।
सुल्तान: ये लो अब बूढ़े का लंड!
हुरिया: आआआह" सुल्तान धीरे!
हुरिया: आआह बास सुल्तान धीरे से करो! मुझे बहुत दर्द हो रहा है।
सुल्तान: तो सीधा लेट जा मेरी जान!
हुरिया अब पलट जाती है।
हुरिया के दूध हवा में किसी बड़े गेंद की तरह हिल रहे थे और सुल्तान एक बार फिर से अंदर घुसा कर धक्का लगाना शुरू करता है।
हुरिया: इस्श्श आह सुल्तान!
सुल्तान और ले, ये ले, और "फच फच" कर लौड़ा पेलते जाता है।
हुरियाः नहीं सुल्तान अभी मत पानी छोडना आराम से करो, करते रहो 1
हुरिया समझ जाती है की सुल्तान का पानी निकालने वाला है।
उनकी ये सब हरकत इन मिया बीवी के अलावा कोई और भी देख रहा था । वह था उनका शहज़ादा शमशेरा! जो अपनी माँ के ये रूप देख वही रुक गया था दरसल वह अपने अब्बा से किसी जंगी किताब को लेने आया था पर जैसे वह वहा पहुचा तो उसकी माँ हुरिया चिल्ला रही थी।
हुरिया मिन्नते कर रही थी पानी न छोड़ना पर 6 7 धक्के लगा कर सुल्तान निढाल हो जाता है।
हुरिया: आह! नहीं सुल्तान!
फिर वह नीचे सुल्तान के लौडे को देखती है। जो अब मुरझाने लगा था।
शमशेरा: अपनी माँ के बड़ी गांड और दूध देख पागल हो गया था।
"अम्मी जान इतनी इबादतगर होने के बाद भी कैसे अपने शौहर से बिना डरे दिन में ही चुदवा रही है और बचपना के बाद, मैंने आज तक कभी अम्मी को बिना हिजाब नहीं देखा था । और आज इनके बड़े दूध और गांड देख यकीन नहीं होता के इतने बड़ी चीज अम्मी ने कैसे छुपा रखी थी।" और शमशेरा वह से चुपचाप निकल जाता है।
घाटराष्ट्र मे
रात के भोजन के बाद देवरानी जा कर स्नान करती है और खूब सजती संवरती है। फिर अपने कक्ष के मंदिर से थोड़ा सिंदूर उठा कर लगाती है और अपना मंगल सूत्र पहन लेती है।
देवरानी: (मन में) आज तो बलदेव तो मुझे देख पागल हो जाएगा, दिन में बहुत बक-बक कर रहा था ना।
बलदेव अपने कक्ष से निकल कर देवरानी की कक्ष की ओर जा रहा था।
बलदेव: (मन में) ये मेरे मित्र भी ऐसे समय पर आगये जब में उनकी भाभी को उनके लिए तैयार कर रहा हूँ। ये दो दिन बद्री और श्याम के वजह से खराब हो गए ।
बलदेव तेजी में चल रहा था कि उसके कानो में आवाज आती है।
जीविका: बलदेव!
बलदेव: दादी आप!
जीविका: हाँ कहा जा रहे हो पुत्र!
बलदेव: वह माँ कक्ष में!
जीविका: क्यू!
बलदेव के पास इसका जवाब नहीं था और जीविका घूर कर बलदेव को देख रही थी।
बलदेव: वह दादी कुछ राज्य की स्थिति के बारे में कुछ बात करनी थी ।
जीविका: अच्छा बेटा (मन में राज्य की या तुम्हारे अपने दिल की) ।
बलदेव: ठीक है। दादी आशीर्वाद दो!
जीविका: जीते रहो ।
बलदेव: (मन में) कोई ना कोई आ ही जाता है। काम में बाधा बनने, पर कोई बात नहीं ।आज सारी कसर निकल लूंगा इस देवरानी की ।
बलदेव देवरानी का कक्ष में आता है।
देवरानी मेज़ पर रखे आम को काट उसका रस बना रही थी । बलदेव की आहट उसे समझ में आ जाती है।
बलदेव देखता है। उसकी माँ हल्का-सा झुक कर कुछ काट रही है।
बलदेव: मन में) आज तो माँ दुल्हन की तरह तैयार जैसे ये आज मेरी सुहागरात हो और उसकी गांड को निहारता है।
देवरानी को दरवाजा की चिटकनी लगने की आवाज कानो में आती है और वह पीछे मुड़ कर देखती है।
बलदेव उसके गांड को खा जाने वाली नजरो से देख रहा था जिसे देख देवरानी की चुत में चींटिया दौड़ने लगती है।
देवरानी: तुमने ये चिटकनी क्यू लगा दी बलदेव?
बलदेव: वह बस हम दोनों को थोड़ा-सा एकांत जगह चाहिए और वैसे भी दो दिनों से हमने ढंग से बातचीत नहीं की हैं।
देवरानी: बेटा बलदेव में तुम्हारी माँ हूँ, पत्नी नहीं, जो बातचीत करने के लिए एकांत जगह चाहिए और तुमने ये चिटकनी लगा दी। (मुस्कुराती है।)
बलदेव: माँ दिन में तुम ही कह रही थी न विवाह करना है। मेरी समझ से में पत्नी के साथ रहने का अभ्यास कर रहा हूँ ।
देवरानी: मैं आम रस बना लू।
और देवरानी झुकती हैऔर बलदेव अपनी माँ से जा कर चिपक जाता है।
देवरानी: तुम पियोगे न आम रस।
बलदेव: हाँ पहले दबाऊंगा फिर निचोड़कर रस पीउंगा।
देवरानी: अगर में तुम्हें बिना मेहनत किए रस निकल के दू।
बलदेव: तो आपका रस भी पीउंगा ।
बलदेव अब अपना लंड देवरानी की गांड पर टिका देता है और मजे लेने लगता है।
बलदेव: (मन में) हाय! क्या गद्देदार गांड है।
देवरानी: आह! " और उसकी आँखे बंद हो जाती है।
देवरानी अपने आप पर काबू कर किसी भी तरह आम रस बना लेती है और घूम कर बलदेव को देती है।
दोनो पास में सोफे पर बैठ आमरस खाते हैं।
देवरानी: कैसा लगा आम रस?
बलदेव: क्या ये दशहरी आम है और देवरानी के दूध की तरफ देखता। देवरानी के दूध के बीच मंगलसूत्र लटक रहा था जिससे उसके उभार और अधिक सुंदर लग रहे थे।
देवरानी: नहीं ये मालदा आम का रस है।
बलदेव के आखो में झाक के-
बलदेव: अगर मालदा का आम रस ऐसा है। तो दशहरी का कैसा होगा।
बलदेव देवरानी के 38के उभारो को देख कहता है।
देवरानी अपनी आखे शर्म से नीचे कर लेती है।
बलदेव: एक बात कहू।
देवरानी: हाँ कहो।
बलदेव देवरानी के चुचो को मस्ती से देख देवरानी के कान के पास जा कर उसके कान में बोलता है ।
"माँ ये दोनों तो दशहरी से भी बड़े हैं।"
या फिर अपने माँ के दूध के तरफ इशारा करता है।
देवरानी: हलके से उसके कांधे पर चांटा मारती है। "हट बदमाश ।"
और उठ कर जाने लगती है, बलदेव उसका हाथ पकड कर ।
"माँ मैंने सच कहा है।"
देवरानी: सिस्की लेते हुए "बलदेव!"
बलदेवः छुपाए नहीं छुपते मां।
ये सुनना था के देवरानी के दूध पर से उसका दुपट्टा हट जाता है और उसकी बाहो को पकड़कर बलदेव उसे थाम लेता है।
देवरानी: (मुस्कुरा कर) तू सच नहीं कहता तू झूठा है।
और जब वह बलदेव अब भी उसके दूध को ताड़ते देखती है तो फिर लज्जा कर अपना सर झुका लेती है।
बलदेव मौके का फायदा उठा का देवरानी को अपने गोद में उठाता है और बिस्तर की ओर चलने लगता है।
बलदेव: माँ क्या कहा था तुम्हे दिन में के सब के बस की बात नहीं के संभाल ले!
देवरानी: हम्म मैंने ये तुम्हारी पत्नी के लिए कहा था।
बलदेव: देखो में तुम्हें संभाले खड़ा हूँ और तुम किसी बच्चे की तरह लटकी हुई हो । क्या फ़ायदा तुम्हारे इस भारी शरीर का?
देवरानी उसके छाती पर मुक्का मारती है।
"बड़े महाबली बनते हो ।"
बलदेव: माँ अगर में तुम्हें संभल सकता हूँ तो सोच लो किसी को भी संभल सकता हूँ।
देवरानी: हाँ बाबा तुम ने मुझे जैसी भारी भरकम को संभल लिया तो किसी को भी संभल लोगे ।
बलदेवः पर मुझे किसी और को नहीं संभलना।
देवरानी: तो किस को संभलना है। जबकि इस समय तक देवरानी की चूत पानी छोड-छोड कर लाल हो गई थी। फिर अपनी गांड के निचेले हिस्से पर उसे बलदेव का लंड भी मेहसूस हो रहा था।
बलदेव: बस तुम्हें संभलना है।
देवरानी: सोच लो।
बलदेव: सोच लिया।
देवरानी: भारी पड़ सकता है।
बलदेव: मैं सब सहने के लिये त्यार हूँ।
इतने में बलदेव देवरानी को पलंग पर लिटाता है।
जीविकाः बलदेव ओ बलदेव!
बलदेव गुस्सा होता है और चिढ कर ।
"जी दादी!"
देवरानी हस देती है।
देवरानी: मन में) बड़ा आया बच्चे की तरह चिढ गया जैसे मैं इसकी पत्नी हूँ और इसके कार्यक्रम के बीच में कोई विघ्न आ गया हो ।
देवरानी को हस्ते हुए देख!
बलदेव: तुन्हे तो मैं बाद में देख लूंगा
बलदेव: आया दादी!
फिर बलदेव देवरानी को छोड़ दादी के पास चला जाता है...।
कहानी जारी रहेगी ।