महारानी देवरानी 032

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महत्वपूर्ण भावुक निर्णय का दिन
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Part 32 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 32

महत्वपूर्ण भावुक निर्णय का दिन

आज रविवार का दिन बलदेव और देवरानी की जिंदगी के लिए बहुत अहम दिन था और निर्नायक भी था । आज उन्हें वह निर्णय लेना था जिसपे उनकी आगे की जिंदगी निर्भर होने वाली थी और उसी निर्णय से ये तय होने वाला था कि उनकी आगे की जिंदगी किस रुख को अपनाती है...बीते हुए कुछ हफ्ते जो इस खेल का हिसा थे वह बखूबी ये जानते थे के कुछ रोमांटिक और कुछ नाटकीय होने वाला है जिसका असर ना सिर्फ मा बेटे के रिश्ते पर बल्कि घाटराष्ट्र के भविष्य पर भी होने वाला था।

देवरानी ने बलदेव का मन भी टटोल लिया था कि उसकी चाहत क्या है और बलदेव भी सफ़लतापुर्वक देवरानी को ये एहसास दिलाने में कामयाब रहा की उसके दिल में क्या था और कमला ने भी काफी हद्द तक उसकी मदद ज़रूर की थी। वही जीविका भी आत्मा चिंतन में थी कि वह क्या करे जीविका को अपने पुत्र द्वारा और अपनी बड़ी बहू सृष्टि का बर्ताव और आचरण, जो बीते 18 वर्ष से देवरानी के प्रति था, उससे कहीं न कहीं जीविका भी दुखी थी, पर जीविका तो पहले राजपाल की माँ थी बाद में अपनी बहू देवरानी की सास। इसलिए उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और अंतता सदैव की भांति उसने चुप रहना ही पसंद किया था ।

उधर पारस में देवरानी का भाई देवराज जो अब सुल्तान वाहिद की कृपा पर अपने राज्य को संभाल रहा था। उसे भी ये एहसास था कि उसे भी मजबूरन अपनी बहन देवरानी के राज्य घाटराष्ट्र पर हमला करना पड़ सकता था क्योंकि शमशेरा जो की मीर वाहिद का एकलौता वारिस था उसने कुबेरी को लूथे का ठान लिया था और चूँकि कुबेरी के राजा रतन सिंह को राजा राजपाल सहयोग दे कर उसकी मदद कर रहे थे और साथ ही उससे सहयोग ले अपनी सेना बढ़ा रहे थे। कुबेरी के सहयोगी राज्य होने के कारण, वर्षो से उनका साथ दे रहे घाटराष्ट्र के राजा राजपाल और देवरानी के पति राजपाल या कह लीजिए बलदेव के पिता का राज्य घाटराष्ट्र को भी अब युद्ध का सामना करना पद सकता था। कुबेरी के राजा रतन को ना सिर्फ सुल्तान मीर वाहिद से खतरा था बल्कि उसे उम्मीद थी की दिल्ली के बादशाह शाहजेब भी कुबेरी पर हमला कर सकते हैं।

सब के बीच बलदेव और देवरानी के दो दिल लगभाग जुड चुके थे वही पारस में भी युवराज शमशेरा अपनी माँ को अपने पिता के साथ सम्भोग करते देख अब एक मर्द की नजर से ही अपनी माँ हूरजहाँ या हुरिया को देखने लगा था, पर हुरिया को पाने का वह सोच भी नहीं सकता था क्यूकी बेगम हुरिया एक परहेजगर और इबादतगर औरत थी जिसके नाखून भी बाहर के लोगों ने कभी नहीं देखे थे, पारस के मर्द ने तो क्या औरतो ने भी उनको कभी नहीं देखा था, केवल घरवाले और राज दरबार वाले दास दासियो और कुछ सैनिको ने ही सिर्फ हुरिया को चेहरा भर देखा था, हुरिया महल में भी सिर्फ अपना चेहरा खुला रखती थी और बाहर जाने पर उसे भी हिजाब और आबय में छुपा लेती थी और हर मायने में एक पर्दानशीन खातून थी।

घाटराष्ट्र में

आज रविवार का दिन था देवरानी उठ कर नए जोड़े को पहन खुद को तैयार करती है। खूब दिल से अपने लिए और बाकी सब के लिये खाना बनाती है।

कमला: महारानी क्या बात है। आज तो बड़ा सज संवर रही हो और चूड़िया भी पहनी जा रही है।

देवरानी: हाँ आज रविवार है ना।

कमला: तो आपने निर्णय ले लिया है ।

देवरानी: हाँ कुछ हद तक ।

कमला: इसका मतलब?

(कमला थोड़ी रुवांसी हो जाती है।)

देवरानी: अरे! क्या हुआ कमला?

कमला: मतलब आज रात को आप हमें छोड़ कर चली जाओगी उस शेरसिंह के साथ!

देवरानी: हसती हुई " सुनो तो!'

कमला: अब और क्या सुनना है!

देवरानी: मैंने ये निर्णय लिया है कि मैं शेर सिंह को देखना चाहती हूँ और कुछ दिन उसके साथ रहूंगी, उसका बर्ताव सही रहा तो ठीक, नहीं तो वापिस चली आउंगी!

कमला: महारानी तुम पागल हो!

देवरानी: क्यों?

कमला: एक बार जब तुम चली जाओगी तो कौन तुम्हें वापस इस राज्य में रखेगा? महाराज राजपाल को तो जनती हो आप!

देवरानी: कमला मेरी बहन तुम्हें क्या लगता है। इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है । मेरा भाई देवराज जिंदा है। मैं उसके यहाँ चली जाऊंगी। पर अब मुझे इस नरक से निकलना है। इस नरक ने मुझे बहुत कष्ट दिए हैं । बस अब और नहीं।

देवरानी का आखो में आसू आ जाते है।

कमला भी रोने लगती है।

कमला: मेरा तो ठीक है। पर बलदेव का क्या?

देवरानी चुप होते हुए अपने आंखो को पोंछती है और "बलदेव तो सदैव से मेरे दिल में बसता है।"

कमला गुस्सा हो जाती है।

कमला: "तुम सही में सिर्फ अपना सोच रही हो और तुम ये बहुत बड़ी बेवकूफी कर रही हो"

देवरानी: मुझे ये बेवकूफी बहुत वर्ष पहले कर देनी चाहिए थी और बलदेव का ख्याल तुम रखोगी और उसे जब भी किसी चीज की जरूरत होगी तब मैं उसका साथ दूंगी ।

कमला: एक बात कहू बहन तुम बिल्कुल ठीक निर्णय नहीं ले रही हो । तुम ये निर्णय दिल से नहीं ले रही हो।

देवरानी ये बात सुनती है और उसके दिल में बलदेव की बात याद आने लगती है, और उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा सामने आजाता है।

कमला: तुम्हारा जब विवाह हुआ तो तुम्हारे पिता ने एक अधेड़ उमर के राजा के साथ तुमसे बिना पूछे तुम्हारा विवाह कर दिया और तुम चुप रही!

तुम्हारे पति ने तुमसे विवाद किया और तुम चुप रही!

तुम्हारे सौतन ने तुमसे दुश्मनी की पर तुम चुप रही!

तुम्हारे महारानी बनने के सपनों को चकनाचूर कर दिया गया पर तुम चुप रही!

क्यू बोलो

देवरानी: क्यू के मैं इस समाज और धर्म के विरुद्ध में नहीं जा सकती थी ।

कमला: नहीं, क्योंकि तुम डरपोक हो महारानी। तुम्हें लड़ने से डरती हो, तुम मरने से डरती हो! आज में खुश हूँ । क्योंकि एक स्त्री हो कर भी मैंने समाज नहीं, अपनी खुशी देखी और क्योंकि मैं इस समाज से लड़ सकती हूँ, इतनी हिम्मत है मेरे में । तुम्हारे इस डर के वजह से तुम अपनी जिंदगी शुरू से अब तक खराब करती आई हो।

देवरानी: बस करो कमला! तुम चुप ही नहीं रहती हो!

कमला: इस नरक से भागने से कुछ नहीं होगा । देवरानी! इस नरक को स्वर्ग बनाओ । समाज को मत देखो, अपने दिल की सुनो, आज शेर सिंह की सुन रही हो, कल अपने पिता की सुन कर अपना भविष्य खराब कर लिया था। अपने दिल की सुनो दूसरों की मत सुनो।

और कमला रोती हुई चली जाती है।

देवरानी वही बैठ कर एक गहरी सोच में चली जाती है।

तभी बलदेव उनकी आवाज़े सुन कर कक्ष में आता है। तो देखता है कि उसकी माँ एक गहरी सोच में डूबी हुई है।

बलदेव: क्या हुआ माँ आप मायूस लग रही हो?

देवरानी बलदेव का आंखो में झाकती है। बलदेव की आखे जैसे कुछ ये कह रही थी ।

"मां! मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ किसी के साथ मत जाओ!"

देवरानी: बेटा! एक दिन तुम कह रहे थे, क्या मैं सही में अच्छा निर्णय ले लेती हूँ?

बलदेव: तुम जो भी निर्णय लोगी माँ! वह सही ही होगा।

बलदेव हल्का-सा मुस्कुराता है और देवरानी के. माथे पर एक हल्का-सा चुम्मा लेता है।

बलदेव: माँ तुम्हारा हर निर्णय ठीक है।

देवरानी समझ रही थी की इस बात का अर्थ शायद बलदेव नहीं समझ रहा था।

देवरानी बलदेव से गले लगने के लिए उठती है। बलदेव उसे अपने में समा लेता है, इस तरह जैसे कभी छोड़ेगा ही नहीं।

देवरानी: (मन में) बलदेव! में समझ सकती हूँ पर क्या करूं में मजबूर हूँ।

बलदेव (मन में) " मां तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है। तुम्हारे लिए मैं अपनी कुर्बानी दे सकता हूँ।

देवरानी से विदा ले कर बलदेव चला जाता है।

देवरानी उसे दूर तक जाते हुए देखती रहती है और मन में आशीर्वाद देती है।

"जीते रहो बेटा!"

बलदेव मन में"माँ अगर तुझे किसी और से ब्याह रचाना है। और शेरसिंह से मिलने के लिए तुम आज तैयार हुई हो तो मैं तुझे उस इंसान के पास पहुँचा दूंगा"

कहानी जारी रहेगी

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