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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 33
देवरानी का फैसला!
बलदेव को जाते हुए देखते-देखते देवरानी वही अपने बिस्तर पर बैठ जाती है और पीछे बीते कुछ सप्ताह में बीती घाटनाऔ को याद करती रहती है।
उसके बाद बलदेव अपने काम से घाटराष्ट्र की सीमा सुरक्षा के लिए चला जाता है। ऐसे ही संध्या हो जाती है।
कमला: महारानी चांद निकल आया है ।
देवरानी: हाँ कमला!
कमला: तो क्या आप जाओगी ही महारानी?
देवरानी: हाँ मैंने वादा क्या था शेर सिंह को आज मिलने का।
कमला; मेरे को छोड़ो पर बलदेव के प्यार और वादे का क्या? बलदेव का क्या होगा ये आपने सोचा है?
देवरानी: कमला ये बताओ नदी के पास कैसे जाना है।
कमला देवरानी का मुह देखती रह जाती है। जो उसकी बातो को अनसुना कर रही थी।
कमला: मैं पीछे के रास्ते से आपको महल के बहार ले जाउंगी और नदी के रास्ता दिखा दूंगी । आपको वह रास्ता नदी जैसे तक ले जाएगा, जहाँ आपको शेर सिंह मिलेगा।
देवरानी: तो ठीक है। हम सही समय होती ही चलेंगे।
कमला: 9मन में) कामिनी कहीं की!
देवरानी: क्या कहा?
कमला: वह मैंने कहा, जरूर महारानी! पर क्या तुम किसी बेगाने के लिए अपनों का साथ छोड़ दोगी?
उधर बलदेव सीमा पर जा कर अपने घोडे को बाँध देता है और एक नई पोशाक पहन लेता है और एक दूसरे घोड़े पर बैठता है और अपने चेहरों पर सर पर बंधी पगड़ी के निकले हिस्से से ढक लेता है। जिस से उसको देवरानी पहचान नहीं पाए.
बलदेव गुस्से में था और घोड़ा की लगाम को ढीला देता हैऔर घोड़े को कहता है।
"चलो यार जरा अपनी मैया चुदवा ले।"
ये बलदेव के ऊपर मदिरा का असर था जो उसने इस गम में पि ली थी की उसकी माँ उसे छोड़ कर किसी और के पास जा रही थी।
वो घोड़े को भगाता हुआ नदी के तट पर ले जाता है और वहाँ जा कर बैठ जाता है।
इधर कमला के बार-बार समझने पर भी देवरानी नहीं मानती और अपने कक्ष से अपने भगवान की मूर्ति ले कर चलने को त्यार हो जाती है ।
कमला: अआप्को कुछ और साथ में नहीं चाहिए?
देवरानी: नहीं और कुछ नहीं चाहिए ।
कमला देवरानी को महल से ले कर बाहर आने लगती है और देवरानी भी अपने पल्लू से अपना मुँह ढक कर उसके साथ चलने लगती है।
दोनों छुपते हुए महल से बाहर निकलती हैं। वह दोनों सब सैनिकों की आखो में धूल झोंक कर और आखिरी कार नदी के रास्ते पर आ जाती हैं आखिरकार कमला के लिए देवरानी को अलविदा कहने का समय आ गया था।
कमला: (रोते हुए) महारानी ना जाओ!
देवरानी: कमला रोते नहीं!
कमला: तुम्हारे पास कोई है, तुम्हारा अपना, जो तुम्हारे इस नरक को स्वर्ग में बदल देगा। तुम उसे मत छोड़ो! और तुम इस बात को जानती हो की वह कितना शक्तिशाली है और तुम्हे कितना प्यार करता है।
देवरानी इस बात को भांप लेती है कि वह बलदेव के सिवा किसी और के संपर्क में नहीं है, इसलिए कमला ये बात तो बलदेव की ही कर रही है।
देवरानी (मन में) : "पर कैसे? वह मेरा बेटा है। धर्म और समाज कभी नहीं मानेगा।"
देवरानी: चुप करो कमला, फिर मिलेंगे।
दोनो गले मिलती हैं और देवरानी नदी के रास्ते की तरफ चली जाती है।
उधर नदी के किनारे बैठा बलदेव सोच रहा था कि ये साला शेर सिंह कितना भाग्य वाला है। उसे बैठे बिठाये देवरानी जैसी पत्नी मिल जाएंगी और वह भी मेरी गलती से।
"पर मेने माँ को एहसास दिलाया ही था अपने प्यार का, पर वह उसे धर्म के विरुद्ध मानती है। अब मुझे क्या करना चाहिए," आखिर उसकी भी अपनी चाहत है। तो क्या मुझे माँ को रोकना चाहिए? "
"उनके दिल में जब ये बात है कि वह किसी और पुरुष से सम्बंध रखे, तो हम कर ही क्या सकते हैं।"
देवरानी भी चलती जा रही थी और उसके मन में मंथन हो रहा था।
उसके कान में कमला की कहीं हुई एक बात बार-बार गूंज रही थी।
" कमला ने ठीक कहा मेरे चुप रहने के वजह से ही मैंने अपने पिता की बात मान कर विवाह क्या लिया, क्योंकि मैं येसमझती थी की पिता जी के फ़ैसले के विरुद्ध जाना सही नहीं है। फिर मेरे चुप रहने पर ही मेरे पति ने मेरा अधिकार मुझे नहीं दिया क्योंकि मैंने फिर यही सोचा की पति से बगावत करना जुर्म है। फिर अपने ससुराल की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए भी मैं ही चुप रही। मैंने कभी किसी के साथ कोई गलत कदम नहीं उठाया, पर अंत में मुझे क्या मिला?
आज में अपने ही घर से भाग रही हूँ और मेरे जाने के बाद भी वही होगा जिससे बचने के लिए आज तक चुप मैं रही और आज मिलेगी मुझे वह "बदनामी" जिससे बचने का मैं हमेशा प्रयास करती रही ।
"पर अगर में रुक गई तो भी मेरे लिए बलदेव के प्यार को कैसे रोकूंगी मैं । फिर मैं अधर्मी ही कहलाउंगी और तो और इसमें मेरी और मेरे बलदेव दोनों की जान ले ली जाएगी।"
"हे भगवान में तो इस जीवन से तंग आ गई हूँ।"
और वह ये सब सोचती हुई पगडंडियों से जल्दी-जल्दी नदी की ओर चले जा रही थी।
कुछ दूर चलने के बाद उसे नदी का तट दिखाई पड़ता है और वह वहाँ अपना चेहरा छुपाए एक पुरुष को बैठा हुआ देखती है।
देवरानी समझ जाती है, यही शेर सिंह है। फिर वह उसकी तरफ चलने लगती है।
बलदेव देखता है। की उसकी माँ भूखी प्यासी हाथ में मूर्ति लिए चली आ रही है। तो जल्दी से उठ कर अपना घोड़ा लेता है और उसपे बैठ जाता है।
बलदेव के आंखों से आसु नहीं रुक रहे थे ।
बलदेव जल्दी से अपनी आंखो को पोछता है।
देवरानी बलदेव के समीप आ कर।
देवरानी: तुम आ गए शेर सिंह!
शेर सिंह बना बलदेव अपना हाथ से देवरानी को इशारा करता है कि घोड़े पर बैठ जाओ.
देवरानी आगे की तरफ चलती है। तभी उसके पैर के अंगूठे में एक कांटा चुभता है। जिससे उसके कोमल पैर के अंगूठे से खून निकलने लगता है।
वो नीचे बैठ कर अपना पैर का अंगूठा देखती है।
और अपने पैर से कांटा निकलते हुए मन में सोचती है। ।" ये शेर सिंह देखो बैठा हुआ देख रहा है। अगर बलदेव होता तो अब तक मेरे पास आ जाता, कमला सही कह रही थी दूसरा पराया ही होता है, और उसे कमला की बात याद आती है।
"तुम डरपोक हो महारानी तुम में हिम्मत नहीं है । इसी डर के वजह से तुम्हारी जिंदगी खराब हुई है। तुम समाज से अपनी खुशी के लिए लड नहीं सकती हो।"
देवरानी उठती है।
"उसके आंखों में आसूं थे" एक दिन तो मरना ही है। भगवान मैं बुजदिल की तरह क्यों मरू! अगर मेरा बलदेव मुझे चाहता है और इस वजह से हमें मार भी दिया जाए तो क्या? वैसे भी हमे कौन-सा 1000 वर्ष जीना है। पर कुछ पल तो अपनी खुशी के मैं जी ही लुंगी"
और उसके मुह से निकलता है। "देवरानी डरपोक नहीं है देवरानी लड़ेगी।"
और वह पीछे मुद कर देखती है। रास्ता बहुत लंबा था वह मजबूती से अपनी मूर्ति को पकड़ लेतीं है।
"भगवान मुझे शक्ति दे!"
और ये देख के शेर सिंह उसकी तरफ बढ़ रहा है। देवरानी महल की और वापिस दौड़ने लगती है।
देवरानी अपनी लंबी टांगो से बहुत तेजी से दौड रही थी और शेर सिंह बना बलदेव उसे आश्चर्य से देख रहा था।
देवरानी कुछ ही पलो में शेरनी की तरह शेरसिंह के आंखों से ओझल हो जाती है।
देवरानी की पैर के अंगूठे से खून बह रहा था पर वह फिर भी भागे जा रही थी।
अपने माँ के द्वारा ऐसे अपना निर्णय बदलने परबलदेव जहाँ आश्चर्य चकित था और देवरानी की पैरो से बहते खून को देख थोड़ा परेशान था। वही उसे देवरानी के ऐसे भाग जाने से एक अलग ही प्रसनत्ता हो रही थी।
बलदेव तेजी से जा कर फिर से जा कर अपना वेश बदल लेता है और अपने असली अवतार में आता है और अपने घोडे से अपनी माँ के पैरो की चिंता लिए घोडे को दौड़ाने लगता है।
भागते भागते देवरानी भी थकी हारी महल पहुच जाती है और सबसे पहले रसोई में जा कर अपने आप को और वस्त्रो को ठीक कर और हल्दी ले कर अपने पैर के अंगूठे में लगाती है और मन में बोलती है।
देवरानी: "बलदेव में आ गयी तुम्हारे पास" । कहाँ हो बलदेव? "
मन में यही बोलते हुए बलदेव के कक्ष की ओर जाने लगती है।
देवरानी के जाने के बाद भविष्य में अपनी जान बचाने के लिए कमला और गुस्से में आकार बलदेव के कक्ष से हर पत्र जो देवरानी ने लिखा था उसे ढूँढती है और उन्हें एकत्रित कर जलाने लगती है।
बलदेव के कक्ष के पास पहुच कर देवरानी रुक जाती है और देखती है कि कमला बैठ के कुछ जला रही है। वह उसके करीब जाती है, तो देखती है कमला रो रही थी।
देवरानी की नज़र पत्र पर जाती है और वह अपनी लिखावट को देख समझ जाती है कि ये तो वही प्रेम पत्र है जैसे मैंने शेरसिंह को लिखा था।
"पर ये सब कमला ले कर कैसे जला रही है और वह भी बलदेव के कक्ष में?"
देवरानी को वह हर पुरानी बात याद आने लगती है। कैसे कमला उसे अपने बेटे के पास जाने के लिए उस पर जोर डालती थी और बलदेव का उतरा हुआ चेहरा!
देवरानी तूरंत वहा पर रखा गिलास का पानी उस पर डाल पत्रो को जलने से बचाती है।
कमला तो अचानक से देवरानी को वहाँ देख हिल जाती है।
"देवरानी तुम!"
देवरानी को समझाते देर नहीं लगती के शेर सिंह कोई और नहीं बलदेव ही था!
"हे भगवान!"
देवरानी एक जोर का चांटा कमला को मारती है और वह सब पत्र ले कर अपने कक्ष की और भागने लगती है।
कमला: महारानी रुको!
कमला आज मार खा के भी बहुत खुश थी क्योंकि उसकी महारानी देवरानी वापस आएगी थी।
बलदेव महल पहुँचता है और अपने कक्ष की अस्तव्यस्त हाल देख कर कमला से पूछता है।
कमला उसको पूरा हाल बता देती है।
वो दोनों देवरानी के कक्ष की ओर जाते हैं और उसका दरवाजा पीटते है।
बलदेव: माँ द्वार खोलो!
कमला: महारानी आप मुझे जितना मारना चाहो मार लो पर मेरी बात सुन लो।
बलदेव: हमें माफ़ कर दो मां!
कमला: आप चाहो तोमेरी जान ले लो, लेकिन देवरानी आप कोई गलत कदम मत उठाना!
देवरानी अंदर अपने बिस्तर पर लेटी हुई सुबक रही थी "भगवान मेरे ही जीवन में तुमने हर कष्ट दिए हैं । ये लोग मुझे इतने दिन से छल रहे और में..." या खूब रोती है।
कमला और बलदेव् देवरानी को कसम दे देते हैं कि वह रोना बंद करे।
तब जा कार देवरानी रोना बंद करती है।
आधी रात हो गई थी।
कमला: चलो बलदेव कल बात करेंगे! जाओ सो जाओ ।
बलदेव: तुम्हे। क्या लगता है। की तुम सो पाओगी?
कमला: तुम्हें कल फिर सीमा पर जाना है। तुम जाओ!
कमला बलदेव और देवरानी पुरी रात सोच में ही निकाल देते हैं और देवरानी की रो-रो कर आँख फूल जाती है।
कहानी जारी रहेगी