महारानी देवरानी 039

Story Info
बाल बाल बचे
1.3k words
4
22
00

Part 39 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

महारानी देवरानी

अपडेट 39

बाल बाल बचे

राजपाल उसका पत्र को हाथ में लेते हैं और अपनी तरफ करता है।

राजपाल अभी पत्र खोलने वाले ही थे कि कोई जोर से चिल्लाता है।

"राआआजजपाल!"

"हे राम!"

ये आवाज सुन कर राजपाल समझ जाता है। ये कोई नहीं उसकी माँ जीविका ही है जो उसे इस तरह से पुकार रही है।

सामने से भागती हुई राधा आती है। "महाराज! वह राजमाता महारानी जीविका चौखट पर गिर गई हैं"

राधा ने जीविका के कक्ष के सामने राजमाता जीविका अपनी बैसाखी से आती हुई दिखाई दी और अचानक अपने दरवाजे से बाहर निकलते हुए उसका एक पैर अटक गया और दूर पैर जो बिल्कुल नाकाम था, वह वैशाखी से संभल नहीं सकी और उलझ कर गिर गई. ऐसे आपातकाल में उसके मुंह से उसके बेटे का नाम फूटा पड़ा।

राधा के मुँह से जीविका के गिरने की खबर सुन राजपाल वह "प्रेम पत्र!" वही कुर्सी पर फेंक देता है।

जीविका की आवाज आने के बाद भी, बलदेव कमला और विशेषतौर पर देवरानी डरे हुए चेहरे से राजा राजपाल की ओर देख रहे थे और जैसे ही वहाँ राजपाल अपने हाथ से वह "प्रेम पत्र" फेकता है।, तीनों राहत की सांस लेते हैं।

राजपाल: बलदेव, आप जरा देखो तुम्हारी दादी को क्या हुआ!

बलदेव: जी-जी पिता जी!

घबराई हुई कमला वह पत्र झट से उठा लेती है, अपने सामने से, और देवरानी वहाँ से ये मंज़र देख कर दौड़ते हुए अपने साडी के पल्लू को लहराते हुए अपने कमरे में पहुँचती है।

देवरानी अपने कक्ष के मंदिर की घंटी बजा कर वही घुटने के बल और अपने आखे बंद किये हुए हाथ जोड़ कर बैठ जाती है।

"भगवान! तूने मेरी लाज रख ली! धन्यवाद भगवान!"

देवरानीकुछ श्लोक बुदबुदाती है और उठती है, तो देखती है। उसके सामने कमला खड़ी है ।

देवरानी: गुस्से में "कमला तुम्हारा दिमाग खराब तो नहीं!"

कमला: माफ़ कर दो महरानी!

देवरानी: ऐसे कैसे इतनी लापरवाही कर सकती हो!

कमला: बस आज बाद नहीं होगा...!

कमला वह "प्रेम पत्र, जो बलदेव ने अपनी माँ देवरानी के लिए लिखा था" निकाल कर देवरानी को दे देती है। देवरानी झट से उसके हाथ से पत्र लेते हुए अपने तकिये के नीचे रख देती है।

कमला ऐसे अपने हाथ से जल्दीबाजी में पत्र छीने जाने पर।

कमला: बड़ा बेसबरी हो रही हो महारानी! इस पत्र के लिए!

देवरानी मुस्कुरा रही थी ।

"होउंगी ही वह पहले प्यार की पहला पत्र जो है।"

और शर्म से अपने सर नीचे झुका लेती है।

कमला: लाड़ो अब नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माओ मत, चलो जीविका के पास नहीं तो दोनों को गायब देख महाराज जी समझ जाएंगे की गायब होने का मतलब है कि पत्र उनकी प्यारी पत्नी का ही था।

और कमला एक कातिल मुस्कान देती है।

फिर दोनों चल पड़ती है, जीविका के कक्ष की तरफ ।

जीविका को चारो ओर से घेरे सब खड़े हुए थे और जीविका उस घेरे के अंदर-अंदर लंबी सांस ले रही है।

अब तक वैध भी पहुँच चुका था और उपचार शुरू कर देता है।

इतने में कमला और देवरानी दोनों भी पहुँच जाती है और सबके साथ ये भी जीविका को देखने लगती है।

वैध: महारानी जी आपको पता है। आपको चलने में परेशानी होती है। वैशाखी भी आप बड़ी मुश्किल से उठती हैं। तो आपको संभलना चाहिए था।

राजपाल: हाँ माँ आपको कुछ भी लेना हो आप हमें बताएँ!

वैध: महाराज! इनके एड़ी के ऊपर की-की हड्डी जो नाज़ुक होती है। हमसे दरार आ गयी है। कुछ दिन इस पर जड़ी बूटी बाँध के रखना होगा ।

वैध अपना उपचार समाप्त करता है, तो जीविका का दर्द में अब कुछ आराम होता है।

वैध: अब आज्ञा दीजिए महाराज!

राजपाल को अब वह पत्र याद आता है और उसका शातिर दिमाग़ जानना चाहता था कि उसमे क्या है।

राजपाल: बेटा बलदेव तुमने वह पत्र देखा! वैध जी को क्या आयुर्वेदिक जड़ी बूटी चाहिए?

बलदेव: जी पिता जी.

महाराज राजपाल: वैधजी वैसे बलदेव आज ही जाए वह जड़ी बूटी लाने या कल।

महाराज राजपाल एक शातिर दिमाग से अपनी आंखो को घुमा के वैध जी का तरफ देखता है।

वैध जी को समझ नहीं आता कि क्या बात चल रही है।

वैध राजपाल का तरफ देखता है। राजपाल के ठीक पीछे खड़ी कमला उसको देख कर आँख मारती है और अपने होठ दांत से काटती है।

राजपाल: क्या हुआ वैध जी आपने तो वह पात्र कमला को लिख दिया था।

वैध चलाक था वह कमला का इशारा समझ जाता है।

वैध: महाराज! आज कोई आवश्यकता नहीं, कल भी अगर वह जड़ी बूटीया मिले तो चलेगा।

और कमला की तरफ देखता है।

ये सब बलदेव देख रहा था और उसे भी सब समझ आ गया था ।

देवरानी ने तो बस मन में श्लोको की झड़ी लगा दी थी और लगातार प्रार्थना कर रही थी के वैध जी कही मना न कर दे के उनको कोई जड़ी बूटी नहीं मंगवाना था बलदेव से।

महाराजा राजपाल वैध का स्पष्ट उत्तर सुन कर मुस्कुराते हुए ।

राजपाल: ठीक है। तुम लोग माँ की देख भाल करो।

और फिर महाराज बाहर चला जाते है।

पर राधा को कहीं ना कहीं सबके मुख देख शक होना शुरू हो जाता है।

फिर देवरानी और बलदेव कक्ष से बाहर चले जाते हैं।

राधा: कमला में महारानी श्रुष्टि से बता कर आती हूँ, वह यहाँ नहीं आई अब तक।

कमला: ठीक है। राधा!

फिर कमला राजमाता जीविका का मालिश करने लगी जिस से राजमाता जीविका अब राहत महसस कर रही थी।

जीविका: ये बलदेव और देवरानी भी चले गये।

कमला: जी राजमाता!

जीविका: "हाँ वह तो जाएंगे ही!"

(मन मैं: दोनों को प्यार का भूत जो चढ़ा है।)

कमला को इस तरह से जीविका का बोलना अटपटा-सा लगता है और सोच में पड़ जाती है। आखिर क्या सोच कर जीविका ने ऐसा कहा?

बलदेव बाहर अपने सैनिक अभ्यास में लगा हुआ था और अंदर देवरानी सब से पहले अपनी कक्ष का दरवाजा बंद करती है। फिर खिड़की परदे लगाती है और पलंग पर लेट कर अपने तकिए के नीचे से "प्रेम पत्र" निकालती है। जिसमें से गुलाब की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी।

देवरानी पत्र को खोल कर पेट के बल लेट कर पढ़ना शुरू करती है।

" प्रिय माँ!

मैं आपका बलदेव हूँ और हमेशा आपका रहूंगा, अपनी माँ का बलदेव जितना सम्मान कल करता था आज भी उतना ही करता है और वह सम्मान कल भी उतना रहेगा चाहे प्रतिष्ठा कैसी भी हो।

मेरी माँ की मान मर्यादा इज्जत का रखवाला जितना बचपन से था उतना ही रहूँगा । मैं आज और कल भी नहीं बदलूंगा और हमेशा आपकी मान मर्यादा की रक्षा करूंगा।

मां अगर मेरे पास कोई भी गलत तरीके से आपके दिल को ठेस पहुँची तो उसके लिए आपसे क्षमा मांगता हूँ। आप! माफ़ कर दो मुझे!

जब तक मैं अपनी शिक्षा पूरी करके नहीं आया था और अपने जीवन में मैंने कल तक बहुत अकेला महसूस किया था और जैसे ही मेरी नज़र तुम पर गई तब से मैं तुम्हारे लिए पागल हो गया था कहीं ना कहीं मेरा दिल तुमने उस दिन चुरा लिया पर इस बात को मानने में मुझे समय लगा।

सिर्फ इसलिए नहीं कि तुम्हारा दुख देख कर मेरा दिल पसीज गया था, पर सही कहूँ तो तुम्हारी खूबसूरती भी बहुत बड़ी वजह थी, जिसने मेरे दिल को बेबस कर दिया मुझे अपनी माँ के प्यार में पड़ने के लिए ।

मां! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ अपनी सारी जिंदगी बिताना चाहता हूँ और मैं तुम्हारे हर वह दुख जो तुमने जीवन में देखा है, उन सब पर मरहम की रुई की तरह लग जाना चाहता हूँ जिस से तुम्हारे दिल का दर्द मिट जाए और तुम जीवन का सही आनंद ले सको।

मैंने बहुत सोचा समाज के बारे में पर आख़िर कर मेरा दिल नहीं माना और मेरा दिल अपनी हसरते पूरी कर के रहेंगा और मेरी सबसे बड़ी हसरत है तुम्हें जीवन भर की ख़ुशी देना, उसके लिए ज़माने से लड़ने का और मरने का मुझे कोई गम नहीं होगा, अब बस आपके लिए जीने की ख़ुशी है।

बोलो जियोगी मेरे साथ? तो आज रात भोजन के बाद नदी किनारे आजाना!

तुम्हारा प्रेमी,

बलदेव उर्फ़ शेर सिंह।"

देवरानी लेटी हुई ये प्रेम पत्र पढ़ रही थी और उसकी चूत में खलबली मच रही थी। वह बिस्तर पर अपनी चूत रगड़ के कराहती है!

"आह बलदेव!"

जारी रहेगी...

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous
Share this Story

Similar Stories

Royal Saga - Magic and Sex Pt. 01 A Royal saga, the prince take control over his mother.in Incest/Taboo
Innocent Mom now Son's Slave Ch. 01 Prelude. Backstory. Multiple Parts.in Incest/Taboo
Mom's Big Bed Ch. 01 Hippy mom catches son jerking and smoking her weed.in Incest/Taboo
Cougar Moms' Cheerleading Squad Six Moms start cheerleading for their sons...in Incest/Taboo
The King and His Mother He may be king but his mother is the power behind the throne.in Incest/Taboo
More Stories