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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 40
बड़े अच्छे हैं
देवरानी लेटी हुई ये प्रेम पत्र पढ़ रही थी और उसकी चूत में खलबली मच रही थी। वह बिस्तर पर अपनी चूत रगड़ के कराहती है!
"आह बलदेव!"
देवरानी के कान में कमला की कही हुई बात गूंजती है। "महारानी बलदेव का हाथ इतना बड़ा है। तो वह कितना बड़ा होगा और बलदेव का वह तो आपके आगे की खाई और पीछे के समुंदर को पार कर देगा"
देवरानी ये सोच कर अपना सर तकिये मैं दबा लेती है।
कमला की कही हुई मजाक की बात अब देवरानी को सच होती दिख रही थी जो खाई और समुंदर को पार राजपाल कभी नहीं कर पाया था शायद उसके अंत तक उसका बेटा चला जाए । अब यही उम्मीद देवरानी को अपने बलिष्ठ पुत्र से थी उसके वर्षों से तरसती अनछुई खाई और समुंदर को कोई पार कर दे। कोई वीर हो जो तैर कर खाई और समुद्र को चीर कर वह पार कर सके।
ये सब सोचते हुए देवरानी शाम में उठ कर अपने आप को खूब अच्छे से रगड़-रगड़ कर स्नान कराती है। सजति सवारती है और छोटे से ब्लाउज और साडी में आग उगलती अपनी जवानी को ढक लेती है।
फिर वह अपने कक्षा में पूजा कर भगवान से प्रार्थना करती है के सब कुछ कुशल मंगल हो!
"भगवान मेरा मन रख लेना। हम पहली बार हम मिल रहे हैं कुछ उल्टा सीधा ना हो।"
देवरानी अब मंदिर से थोड़ा सिन्दूर उठाती है और उसको अपने मंगल सूत्र से रगड़ती है और मंगल सूत्र। पहन के फ़िर सिन्दूर अपने माथे पर लगा लेती है।
अब देवरानी अपने आप को देखने आईने के सामने जाती है और बड़े शिद्दत से संवारती है।
देवरानी: (मन में) अच्छी। तो लग रही हूँ ना मैं, बलदेव को पसंद आऊंगी ना!
देवरानी अभी अपने आप को निहार रही थी कि कमला आ जाती है और उसे ऐसे अपने आप को बेहतर तरीके से सजते संवरते देख-
कमला: (मन में) ये तो चुदने के लिए बेहद बेचैन है।
देवरानी: अरे आओ कमला!
कमला: क्या बात है। महारानी आज तो ऐसी सजी हो जैसी कवारी दुल्हन सजती है।
देवरानी ये सुन कर शर्मा जाती है।
हट कमला! तुम तो कुछ भी कहती हो। "
कमला: सही कह रही हूँ आप आज तो कयामत लग रही हो!
देवरानी: सच बताओ ठीक लग रही हूँ ना!
कमला: आप अप्सरा से काम नहीं लग रही हो महारानी देवरानी, अगर बलदेव अकेला पा ले तो आप के दरिया और समुंदर दोनों में, अपनी नाव से गोते लगा ले।
देवरानी इस बात का मतलब समझ कर शर्मिंदा हो जाती है।
देवरानी: मेरा बलदेव इतना गंदा नहीं है ।
कमला: आपकी गलत फहमी है। वह क्या हैआपको जल्द ही पता चल जायेगा।
देवरानी: हे भगवान, इस कमला को सद्बुद्धि दो।
कमला: बस " हे भगवान! हे भगवान! ही चिल्लाती रह जाओगी! अगर बलदेव को एक मौका दिया तो!
देवरानी: बस करो कमला, दीवालों को भी कान होते है।
कमला: वैसे बन ठन के कहाँ जा रही हो?
देवरानी: बलदेव से मिलने!
कमला: वह तो मुझे पता है। अपने यार से ही मिलोगी! पर कहा मिलोगी?
देवरानी अपने बाल संवारते हुए "उसने पत्र में लिखा था कि आज रात नदी किनारे मिलो!"
देवरानी की बात सुन कर कमला हस देती है।
कमला (मन में) : जो संस्कारी कल तक संकारो का पल्लू ओढ़े बिना घर से बाहर नहीं निकलती थी आज रात अपने आशिक से मिलने आज नदी के किनारे पर जाएगी।
कमला: आप ऐसे ही खुश रहें महारानी और याद रखें आप दोनों की प्रेम लीला कोई देखे नहीं!
देवरानी कमला के पास आकर उसका दोनों हाथ पकड़ लेती है।
"कमला तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद बहन आज तुम्हारे कारण ही मैं अपना प्यार पाने जा रही हूँ और इतनी खुश हूँ जैसे मुझे कोई गम नहीं था, तुमने मेरा हर मौके पर साथ दिया है ।"
"कमला बोलो इसके बदले में क्या चाहिए?"
कमला: मुझे जब चाहिए होगा तो बता दूंगी अभी तो आप लोग खुल के जियो।
देवरानी: हाँ अब किसी को पता भी चल जाएगा तो मैं उसकी परवाह नहीं करूंगी और ना कभी डरूंगी।
"घुट-घुट के 100 दिन जीने से अच्छा है। एक दिन ख़ुशी की जी लो"
कमला: वाह अब तो बड़े बहादुर हो गए हैं आप!
रात में देवरानी खूब जम के पकवान बनाती है और साथ में वह अपने हाथों से बलदेव के लिए खास कर खीर बनाती है।
रात का भोजन करने सब बैठे । एक तरफ बलदेव और उसके पिता राजपाल और दूसरी तरफ देवरानी और सृष्टि बैठी हुई थी ।
कमला और राधा खाने की तैयारी कर रही थी।
राजपाल: कमला, ज़रा माँ का भोजन उनको कक्ष में पहुँचा देना।
कमला: आप लोग खा ले मैं उनके लिए हूँ ना!
धीरे-धीरे कमला और राधा भोजन लगा देती है और सब खाना शुरू करते हैं।
राजपाल: वाह! आज का खाना ज्यादा स्वादिष्ट लग रहा है।
सृष्टि: हाँ! वह तो है।
कमला: आज महारानी देवरानी ने खुद भोजन बनाया है।
सृष्टि कमला के मुंह से देवरानी के लिए महारानी सुन आगबबूला हो जाती है।
राजपाल: क्या बात है। रानी देवरानी आज आप बहुत सजी सवरी और खुश नजर आ रही हैं और ऊपर से इतना अच्छा खाना भी आपने बनाया है ।
कमला: (मन मैं) अब तुम्हें कैसे ये बताये महाराज राजपाल, की ये देवरानी की चूत ने अपने बराबर लौड़े का इंतज़ाम होने जाने के बाद, खुशी से देवरानी को मजबूर कर दिया ऐसा खाना बनाने के लिए ।
देवरानी: (मन में) महाराज आपको क्या बताऊ आप के निकम्मे होने की वजह से, आज मैं अपने बेटे से एक प्रेमी के रूप में, तुम सब से छुप के मिलने जा रही हूँ।
सृष्टि: महाराज इतना भी अच्छा खाना नहीं है। वह तो देवरानी ठीक ठाक बना लेती है।
कमला: (मन मैं) अब इसकी क्यू जली पड़ी है। इसको तो बूढ़े लंड से वह काम चलाते रहना पड़ेगा देवरानी की बराबरी करती है। करम जली!
राजपाल: नहीं महारानी खाना सच में बहुत स्वादिष्ट है ।
और सृष्टि देवरानी का तारीफ सुन कर तुनक कर उठ जाती है।
राजपाल: बेटा तुम्हें कैसा लगा?
बलदेव जो चुपचप चोर नज़रो से देवरानी पर नज़र गड़ाये हुए था वह देवरानी की आँखों में आँखे डाल देख रहा था ।
बलदेव: "बहुत अच्छी है।"
राजपाल: कौन अच्छी है। तुम्हारी माँ?
राजपाल: मैं खाने की बात कर रहा हूँ ये तो मुझे पता है। तुम्हारी माँ अच्छी है। तुम्हारा बहुत ध्यान रखती है।
बलदेव देवरानी का तरफ दिखता है और उसके पल्लू के जालीदार कपड़ो से उसके बड़े ऊंचे दूध को देख बोलता है ।
बलदेव: इनके ये भी अच्छे हैं।
राजपाल: क्या बक-बक कर रहे हो?
जारी रहेगी