अनजाने संबंध Ch. 08

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नदी से लड़की का बचाव और उस के बाद की घटनाएँ
1.6k words
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Part 8 of the 8 part series

Updated 07/04/2023
Created 06/17/2023
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अनजाहे संबंध का अन्तिम भाग

***********************************

वह उतर कर कपड़ें बदलने चली गयी। आशा जब चाय लेकर आयी तो मैं वैसे ही पड़ा था वो बोली की उस के बिना चैन नही आ रहा था क्यो। मैंने कहा कि हाँ ऐसा ही था। बोली चाय रखी है उठ कर पी लो और कपड़ें पहन लो। माधवी आती होगी। तभी माधवी कपड़ें ले कर आ गयी उस के हाथ में मेरे भी कपड़ें थे आशा को देख कर बोली कि इस से तो रुका ही नही जाता। सारे कपड़ें गीले कर दिये थे इस लिए बदलने पड़ेगे। आशा मुस्करा कर चली गयी। माधवी बोली कि क्या आशा को चिढ़ा रहे हो। मैंने कहा कि नही मन किया तो कर लिया। बोली कि अपने कपड़ें भी बदल लो। मैंने कहा कि शायद आशा को जाना है तो माधवी बोली कि नही कल जायेगी। मैं कपड़ें बदलने लगा।

माधवी चाय पीते हूए बोली कि ऐसी पार्टी से तौबा कर लो। कुछ होश ही नही रहता है सर अभी तक घुम रहा है उल्टी सी भी आ रही है मेरे कहा कि चाय पी कर देखो सही हो जायेगा। चाय पीने के बाद माधवी की तबीयत सुधर गई। वह भी नहाने के लिए चली गयी। उस के बाद आशा का नम्बर लगा फिर मैं नहाने चला गया। नाश्ते के समय बात करते में तय हुआ कि आज कही नहीं जायेगें। घर पर ही रह कर बातें करेगे बाहर जा कर थक जाते है।

बातें शुरु हुई तो जीवन में क्या किया है और आगे क्या करना है इस के बारे में कोई खुल कर बोल नहीं रहा था। मैंने कहा कि मेरा तो पता है कि मैं अपने जीवन में दूबारा लौटना नही चाहता, मेरी पत्नी ने मुझ से तलाक ले लिया है उस का मेरे दोस्त से ही चक्कर चला और मेरी पीठ में ही छुरा मारा गया। कोर्ट में कहा गया कि मैं सेक्स करने में असमर्थ हूँ इस आरोप का मैंने कोई जबाव नही दिया जो वो चाहती थी उस को दे दिया। नौकरी छोड़ दी शहर छोड़ दिया दोस्ती पर से विश्वास हट गया। इस लिए यहाँ एकान्त में शरण ली है ताकि जो घाव लगे है वह भर जाये। ये तो मेरी कहानी है आज तुम दोनों को बता दी है।

आशा बोली कि मेरी कहानी भी तुम्हारी जैसी है मेरे पति ने भी शादी के दो साल के बाद ही किसी और के लिए मुझें छोड़ दिया, परिवार ने भी मेरा साथ नही दिया। इस लिए यहाँ नौकरी कर ली और जान बुझकर पहाड़ी पर पोस्टिग ली है। यहाँ पर मैं भी सब से बच कर समय काट रही हूँ। यहाँ सिर्फ महेश ही मेरा दोस्त है जिस से मैं मन की बात कर सकती हूँ।

माधवी बोली कि मेरी कहानी भी तुम दोनों जैसी है मेरा जिस से प्यार या जो भी कहो था वह मेरी दोस्त के साथ चला गया और मुझें छोड़ गया। इस बात की वजह से मैंने अपने जीवन का अन्त करने का निश्चय किया और नदी में कुद गयी। वो तो किस्मत अच्छी थी कि महेश ने नदी से निकाल कर नया जीवन दिया। इस लिए मैं तो मानती हूँ कि अब मेरी जिन्दगी महेश के नाम है।

मैंने कहा कि ऐसे बड़ी-बड़ी बातें मत किया कर। वो बोली कि मैंने तो अपने मन की बात कही है। मैं तो अब महेश के साथ ही रहूँगी, हम तीनों ही एक जैसे सताए हुँऐ है इस लिए एक दूसरे का दर्द समझ सकते है और शायद सबसे अच्छे दोस्त साबित होगे। आशा बोली कि माधवी हम में सब से छोटी है लेकिन बात बिल्कुल सही करती है। हम तीनों को एक दूसरे के साथ रहना चाहिए यही हम सब के लिए सही रहेगा। मैंने कहा कि यह सब से छोटी है इस के सामने पुरा जीवन पड़ा है। कैरियर बनाना है मेरे साथ कैसे चल पायगा तो माधवी बोली कि कैरियर बनाने में तुम्हारे साथ से क्या परेशानी आयेगी। मेरे पास कोई जबाव नही था। मैंने कहा कि अपने माता-पिता को भी तो जबाव देना होगा, इस पर उस ने कहा कि अगर वो सही होते तो मैं इस समस्याऔ का सामना क्यों करती। उन्हें तो अपने सिवा किसी और की परवाह नही है। मैंने कहा कि तुम बालिग तो हो तो वो हँस कर बोली कि मैं चौबीस साल की हूँ। पढ़ाई पुरी कर चुकी हूँ। अपने जीवन का फैसला मैं खुद करुगी।

आशा बोली कि इतनी छोटी भी नही है जितना हम सोच रहे थे। मैंने कहा कि हाँ तुम्हारी बात सही है। तो यह पक्का रहा कि हम तीनों एक-दूसरे का ध्यान रखेगें और अपने तीनों के बीच किसी और को नही आने देगे। हम तीनों ने हाथ पर हाथ रख कर कसम खाई की दोस्ती को समाज की निगाहों से बचा कर रखेगे और समाज से नही डरेगें। तीनों एक दूसरे से गले मिले।

हम ने अपने जीवन के बारे में एक बड़ा फैसला किया था इस लिए खुश थे दोनों ने मेरे दोनों गालों पर चुम्बन की झड़ी लगा दी मैंने धमकी दी की अब बस करो। तब जा कर दोनों रुकी। आशा बोली कि महेश को साड़ी पसन्द है तो तुम कभी कभी साड़ी पहना करो उसे अच्छा लगेगा। माधवी बोली कि इसी लिए तो साड़ी खरीदी है पहननी तो तुम ने सीखा दी है अब जब मन करेगा तब पहन सकती हूँ। मैंने कहा कि मेरी पसन्द नापसन्द को इतनी प्रमुखता मत दो जो मन करे वो पहनो और खुश रहो यह जरुरी है। तुम जो मुझ से चाहो वो कहो ताकि मैं वह कर सकुँ। दोनों एक साथ बोली कि अपनी सुरत से पहले यह उदासी हटाओ फिर कुछ और बात के लिए कहेगे। मैं कहाँ कि तुम दोनों के होते हुए मैं उदास कैसे रह सकता हूँ मेरी इस बात पर दोनों जोर से हँसने लगी।

माधवी बोली की आशा तुम हर हफ्ते एक दिन हमारे साथ खाना खाओगी और महीने में एक छुठ्ठी हमारे साथ मनाओगी। आशा बोली कि कभी-कभी तुम दोनों भी मेरे पास आ जाया करो, ताकि मेरा मन भी काम में लगा रहे। हम दोनों ने सर हिलाया। फिर वो बोली कि कभी घुमने के लिए यहाँ से दूर भी जाने का प्रोग्राम बनायेगे। मैंने कहा कि यह सही बात है कही बाहर घुमने का प्रोग्राम बनाते है मोनोटोनी टुटेगी। तय हुआ कि कही बाहर जाने का कार्यक्रम बनाते है। बातों में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला, दोपहर का खाना बनाने के लिए दोनों किचन में चली गयी तो कुछ देर बाद मैं भी किचन में पहुँचा तो दोनों बोली कि मत आऔ मैंने कहा कि भई मेरी ही किचन में ऐसा मत करो मैं कुछ करने नहीं आया हूँ केवल तुम लोगों को काम करते देखने का मन है।

आशा बोली कि माधवी ही बना रही है मुझें तो कुछ बनाना आता नही है लेकिन माधवी के साथ रह कर मैं भी सीख जाऊँगी ऐसा लगता है। मैंने कहा कि देखते है की माधवी तुम्हें सीखा पाती है या नही। माधवी बोली कि सीखना तो सीखने वाले पर निर्भर करता है।आशा सीख जायेगी ऐसा मुझें लगता है। मैंने कहा कि अच्छा है मुझें बढ़िया खाना मिलने लगेगा। आशा बोली कि ऐसा तो मेरे साथ भी होगा कि मैं भी अच्छा खाना खा पाऊँगी। हमारी बातों के बीच खाना बन गया। खाना खाते समय भी यही चर्चा होती रही।

मैं किताब ले कर पढ़ने बैठा तो दोनों बोली कि कुछ देर हमें भी पढ़ लिया करो। मैंने मजाक से कहा कि तुम पढ़ने कहा देती हो। तो बोली कि तुम ने पढ़ा कब है? मैंने कहा कि मैं तो तुम दोनों को रोज ही पढ़ता हूँ। दोनों मेरी बात समझ कर मुझें मारने दौड़ी तो मैं उन से बचने के लिए भाग खड़ा हुआ। समय सही कट रहा था। शाम को नदी के तट पर दूर तक टहने चले गये लौटे तो रात घिर चुकी थी। खाना बनने के बाद खा कर बात करते रहें और तय किया कि आज कुछ पार्टी नही होगी केवल आराम होगा क्यों कि सुबह आशा को नौकरी पर जाना है।

आशा अपने कमरे में सोने चली गयी और मैं और माधवी अपने बिस्तर में लेट गये। माधवी ने मेरे से पुछा कि तुम ने इतने दिनों से अपने बारे में क्यो नही बताया था मैंने कहा कि क्या बताता कि मेरी बीवी ने इस लिए तलाक दे दिया कि मैं नामर्द हूँ। माधवी बोली कि मुझें तो पता है कि सच क्या है मुझें तो बता सकते थे। मैंने कहा कि इतने सालों तक तो मुझें भी लगता रहा कि मैं किसी औरत के लायक नही हूँ। मेरे मन से यह मानना शुरु कर दिया था और ऐसा हो भी गया। एक बार मौके पर मैं कुछ नही कर सका था तब से इस बात के बारे में सोचना ही बन्द कर दिया।

आशा तो डॉक्टर है लेकिन उस से भी शर्म के कारण कुछ नही कहा। वो तो तुम मेरी जिन्दगी में आई तो मेरे में मर्द होने का अहसास दूबारा जगा और मैं वह कर पाया जो करना चाहता था। तुम्हे कैसे बताऊँ कि इस बात ने कैसी हालत कर दी थी। मानसिक तौर पर तौड़ दिया था। तुम ने आ कर जबरदस्ती कर के सही किया है। और क्या कहुँ। इस नये जीवन के लिए तुम्हारा आजीवन कर्जदार रहुँगा।

माधवी ने मेरा चुम्बन लिया और कहा कि अब सो जाओ, आज के बाद इस विषय में बात नही करेगे मेरे को तो तुम जैसे मिले हो सही हो। ऐसे ही रहो कोई चिन्ता मत करो। बस मेरे से प्यार करो। यह कह कर उस ने अपने हाथ और पैर मेरे ऊपर रख दिये और सोने की कोशिश करने लगी मैं भी सो गया।....

***** समाप्त *****

आपको यह कहानी कैसी लगी इस बारें में अपने विचार अवश्य बतायें।

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