Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereयह कहानी मेरे पड़ोस की मेरी भाभी की है जिनकी पिछले साल शादी हुई है। वह बहुत ही सुन्दर है। मेरी उनके साथ बहुत अच्छी दोस्ती है। मैं रोज उनके साथ बातें करता हूँ। उन्हें डायरी लिखने का शौक है। उनके पति कम पढ़े लिखे हैं और दुबई में नौकरी करते हैं। एक दिन संयोग से उनकी डायरी मेरे हाथ लग गई और मैंने उनकी जीवन की एक सच्ची घटना पढ़ ली। उसे उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ।
मेरा नाम अंजलि है। मैं बिहार के एक गांव में हायरसेकेंडरी स्कूल में पढ़ती थी। तब मैं साढ़े अठारह साल की थी. हमारी बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा शुरू हो रही थी। आज परीक्षा का पहला दिन था और इसमें इंग्लिश का पेपर था। मैं शुरू से ही इंग्लिश में बहुत कमजोर थी। परीक्षा हमारे पड़ोस के गांव के स्कूल में हो रही थी।
मैं अपनी सहेली पिंकी के साथ परीक्षा देने के लिए गई थी। पिंकी मेरी बहुत अच्छी सहेली है लेकिन पिंकी बहुत ही निडर और शरीफ लड़की है। एक बार एक लड़के तरुण ने हम दोनों को छेड़ने की कोशिश की तो पिंकी ने उसकी वह हालत बनाई कि फिर उस दिन के बाद वह कभी सामने नहीं आया।
जब मुझे याद आता है तो मैं सोचने लगती हूँ कि मैं कभी भी ऐसा नहीं कर पाऊंगी।
हमारी क्लास में संदीप और दीपाली पढ़ने में बहुत तेज थे लेकिन मैं और पिंकी हमेशा खेलकूद में लगी रहती थी इसलिए हम लोग पढ़ाई में बहुत कमजोर थीं।
सेक्स के विषय में मुझे ज्यादा तो जानकारी नहीं थी लेकिन एक बार मैंने अपनी मां को गांव के ही एक आवारा लड़के सुन्दर के साथ सेक्स करते हुए देखा था जिसमें मेरी मां उस आवारा लड़के का लंड चूस रही थी और जब लंड से कुछ सफ़ेद-सफ़ेद निकलना शुरू हुआ तो माँ उसे पी गई थी।
कुछ सहेलियों से सेक्स के विषय में थोड़ा-बहुत सुना था कि लड़के लोग लड़कियों की चूत में लंड को घुसाकर चोदते हैं जिसमें लड़कियों को बहुत दर्द होता है लेकिन बाद में लड़कियों को अच्छा लगने लगता है।
बाकी क्लास में कभी-कभी टीचर हम लोगों के शरीर पर हाथ फेर लिया करते थे। इससे ज्यादा हम लोग यही जानते थे कि सेक्स करने से पेट में बच्चा आ जाता है।
सुबह-सुबह तैयार होकर मैं और पिंकी परीक्षा देने के लिए उस गांव पहुंच चुकी थी. वहां पता चला कि परीक्षा बहुत टाइट होने वाली है। मैं मन ही मन घबराई हुई थी क्योंकि वैसे भी मुझे इंग्लिश में कुछ आता नहीं था. लेकिन मैंने कुछ पेपर चिट (नकल करने के लिए पर्ची) बनाया हुआ था जो मैं अपने कच्छी में छिपा कर ले गई थी।
एग्जाम के लिए बेल बजी और हम सीटिंग शीट देख कर अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गये. मैं एग्जाम को लेकर बहुत सहमी हुई थी. इंग्लिश का पेपर मेरे लिए टेढ़ी खीर था. 3-4 पर्चियाँ बनाकर ले गयी थी. पर भरोसा नहीं था उसमें से कुछ आएगा या नहीं.
अचानक संदीप हमारे कमरे में आया और मेरी बराबर वाली सीट पर बैठ गया. मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा. अगर ये मदद कर दे तो … मैंने सोचा और उसकी तरफ मुड़कर बोली- कैसी तैयारी है संदीप?
“ठीक है … तुम्हारी?” उसने शराफ़त से जवाब देकर पूछा.
“मेरी? … क्या बताऊं? आज तो कुछ नहीं आता … मैं तो पक्का फेल हो जाऊंगी आज के पेपर में!” मैंने बुरा सा मुँह बनाकर कहा।
“कुछ नहीं होता … रिलेक्स होकर पेपर देना … जो क्वेस्चन अच्छे आते हों उनका जवाब पहले लिखना … एक्जामीनर पर इंप्रेशन बनेगा … ऑल द बेस्ट!” उसने कहा और सीधा देखने लगा।
“सिर्फ़ ऑल द बेस्ट से काम नहीं चलेगा.” मैं अब उसका यूँ पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी।
“मतलब?” उसने अर्थपूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखा।
“कुछ हेल्प कर दोगे ना … प्लीज़ …” मैंने उसकी तरफ प्यार भरी मुस्कान उछालते हुए कहा।
“मुझे अपना पेपर भी तो करना है … बाद में कुछ टाइम बचा तो ज़रूर …” उसने फॉरमेलिटी सी पूरी कर दी।
“प्लीज़.. हेल्प कर देना …” मैंने बेचारगी से उसकी ओर देखते हुए याचना सी की.
इससे पहले कि वो कोई जवाब देता, कमरे में इनविजाइलेटर्स (निरीक्षक)आ गये. उनके आते ही क्लास एकदम चुप हो गयी. संदीप भी सीधा होकर बैठ गया. मैं मन मसोस कर भगवान को याद करने लगी.
पेपर हाथ में आते ही सबके चेहरे खिल गये. पर मेरे चेहरे पर तो पहले की तरह ही 12 बजे हुए थे. मैं डिफिकल्ट क्वेस्चन्स की नकल लेकर आई थी. मगर पेपर आसान आ गया. मेरे लिए तो इंग्लिश में आसान और मुश्किल सब एक जैसा ही था.
“अब तो खुश हो जाओ. पेपर बहुत ईज़ी है. है या नहीं?” मेरे कानों में धीरे से संदीप की आवाज़ सुनाई दी. मैंने कुछ बोलने के लिए उसकी ओर देखा ही था की वह फिर से बोल पड़ा.
“मेरी तरफ मत देखो. ‘सर’ की नज़रों में आ जाओगी”
मैंने अपना सिर सीधा करके झुका लिया.
“मुझे नहीं आता कुछ भी इसमें से …”
काफ़ी देर तक जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने अपनी नज़रें तिरछी करके उसको देखा. वह मस्ती से लिखने में खोया हुआ था. मैं रोनी शक्ल बनाकर कभी क्वेस्चन पेपर को कभी आन्सर शीट को देखने लगी.
पेपर शुरू हुए करीब आधा घंटा हो गया था और मैं फ्रंट पेज पर अपनी डीटेल लिखने के अलावा कुछ नहीं कर पाई थी. अचानक पीछे से एक पर्ची आकर मेरे पास गिरी. इसके साथ ही किसी लड़के की हल्की सी आवाज़ भी कानों में पड़ी- उठा लो … दस मार्क्स का है!
मैंने ‘सर’ पर एक निगाह डाली और उनकी नज़र से बचाते हुए अचानक पर्ची को उठाकर अपनी कच्छी में ठूंस लिया.
मुझे कुछ तसल्ली हुई कि आख़िर मेरा भी कोई ‘कद्रदान’ कमरे में मौजूद है. मैंने पीछे देखा मगर सभी नीचे देख रहे थे. समझ में नहीं आया कि मुझ पर ये ‘अहसान’ किसने किया है.
कुछ देर मौके का इंतज़ार करने के बाद धीरे से मैंने अपनी स्कर्ट के नीचे अपनी कच्छी में हाथ डाला और पर्ची निकाल कर आन्सर शीट में दबा ली.
पर्ची को खोल कर पढ़ते ही मेरा माथा ठनक गया. वह एक गंदा लव लेटर था। मैंने देखा कुछ अश्लील बातें उसमें लिखी हुई थी। नीचे मेरा नाम भी लिखा था. मैंने हताश होकर पर्ची को पलट कर देखा, शुक्र था कि उस गंदे लव लेटर के पीछे एक एस्से टाइप क्वेस्चन का आन्सर भी लिखा हुआ था.
ज़्यादा ध्यान न देकर मैंने फटाफट उसकी नकल उतारनी शुरू कर दी. पर उस दिन मेरी किस्मत ही खराब थी. शायद बाहर बरामदे की खिड़की में से किसी ने मुझे ऐसा करते देख लिया था. मैंने अभी आधा क्वेस्चन भी नहीं किया था कि अचानक बाहर से एक ‘सर’ आए और मेरी आन्सर शीट को उठाकर झटक दिया. पर्ची नीचे आ गिरी.
“ये क्या है?” उन्होंने गुस्से से पूछा।
करीब 35-40 साल के आसपास की उम्र होगी उनकी.
“… जी … पीछे से आई थी!” मैं सहम गयी.
“क्या मतलब है पीछे से आई थी? अभी तुम्हारी शीट से निकली है या नहीं?” उनका लहज़ा बहुत ही सख़्त था.
मैं अंदर तक काँप गई.
“जी … पर मैंने कुछ नहीं लिखा … आप चाहे तो मेरी अन्सरशीट देख लो …”
उस ‘सर’ ने मुझे घूर कर देखा और पर्ची उठाकर हाथ में ले ली. थोड़ी देर मुझे यूँ ही उपर से नीचे देखते रहने के बाद उन्होंने मेरी शीट इनविजाइलेटर (निरीक्षक) को पकड़ा दी.
“शीट वापस नहीं करनी है. मैं थोड़ी देर में आकर इसका यू.एम.सी. (नकल पकड़े जाने पर बनाया जाने वाला पेपर) बनाऊँगा”. उन्होंने कहा और पर्ची हाथ में लेकर निकल गये.
यू.एम.सी का मतलब था परीक्षा में नक़ल करते हुए पकड़े जाने पर एक से तीन साल तक के लिए बोर्ड परीक्षा से निष्काषित कर दिया जाना.
मैं बैठी-बैठी सुबकने लगी. अचानक संदीप ने कहा- रिक्वेस्ट कर लो. नहीं तो पूरा साल खराब हो जाएगा.
उसके कहने पर मैं उठकर ‘सर’ के पास जाकर खड़ी हो गयी- सर प्लीज़ … शीट दे दो. अब नही करूँगी.
“इसमें मैं क्या कर सकता हूँ भला? बोर्ड ऑब्ज़र्वर ने तुम्हारी शीट छीनी है. मैंने तो तुम्हें पर्ची उठाते देख कर भी इग्नोर कर दिया था. मगर अब तो जैसा वो कहेंगे वैसा ही करना पड़ेगा. उनसे रिक्वेस्ट करके देख लो. ऑफिस में प्रिन्सिपल मैडम के पास बैठे होंगे.” सर ने अपनी मजबूरी जता दी।
“जी ठीक है …” मैं कहकर बाहर निकली और ऑफिस के सामने पहुँच गयी.
‘वो’ वहीं बैठे प्रिन्सिपल मैडम के साथ खिलखिला रहे थे.
मुझे देखते ही उन्होंने अपना थोबड़ा चढ़ा लिया और कहा- हां … क्या है?
“जी … मेरा साल बर्बाद हो जाएगा.” मैंने सहमे हुए स्वर में कहा।
“साल? तुम एक साल की बात कर रही हो? तुम्हारे तीन साल खराब होंगे. मैं तुम्हारा यू.एम.सी. बनाने जा रहा हूँ. सारा साल पढ़ाई क्यूँ नहीं की?” उनकी आवाज़ उनके शरीर की तरह ही बहुत भारी थी.
“सर प्लीज़! कुछ भी कर लो. पर सीट दे दो” मैंने याचना की।
वे कुछ देर तक मेरी ओर देखते रहे. मुझे उनकी नज़रें सीधी मेरी चूचियों में गड़ी हुई महसूस हो रही थी. पर मैंने परवाह न की … मैं यूँ ही बेचारी नज़रों से उनके सामने खड़ी रह कर उनको नज़रों से अपनी जवानी का जाम पीते देखती रही.
वे कुछ नर्म पड़े, प्रिन्सिपल की ओर देख कर बोले- क्या करें मैडम?
प्रिन्सिपल खिलखिला कर बोली- ये तो आपको ही देखना है माथुर साहब! वैसे … लड़की का बदन भरा हुआ है … मेरा मतलब पूरी जवान लग रही है” उसने पैनी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा और उनकी तरफ बत्तीसी निकाल दी.
“घर वाले भी लड़का वड़का देख लेंगे अगर पास हो गयी तो …”
“ठीक है … पीऊन को भेज कर शीट दिलवा दो … मैं सोचता हूँ तब तक!” उन्होंने मेरी उभरती जवानियों का लुत्फ़ लेते हुए कहा।
मुझे थोड़ी शांति मिली. अपनी आन्सर शीट लेकर मैं अपनी सीट पर जा बैठी. पर अब करने को तो कुछ था नहीं. बैठी-बैठी जितना लिखा था. उसको पढ़ने लगी.
मुश्किल से 5 मिनट भी नहीं हुए होंगे … क्लास में पीऊन आकर बोला- “उस लड़की को प्रिन्सिपल मैडम बुला रही हैं जिसको अभी शीट मिली थी.
मैं एक बार फिर मायूस सी होकर उठी और आन्सर शीट वहीं छोड़ कर ऑफिस के बाहर चली आई.
पर मुझे न तो मैडम ही दिखाई दी और न ही ‘सर’
“कहाँ हैं मैडम?” मैंने पीऊन से पूछा।
“अंदर चली जाओ. पीछे बैठे होंगे” पीऊन ने कहा।
मैंने अंदर जाकर देखा तो दोनों ऑफिस में पीछे सोफे पर साथ-साथ बैठे कुछ पढ़ रहे थे. मेरे अंदर जाते ही मैडम ने मुझे घूर कर देखा.
“आ जा … पहले तो तू मेरे पास आ …”
“जी …” मैं मेडम के पास जाकर नज़रें झुका कर खड़ी हो गयी।
“ये क्या है?” मेडम ने एक पर्ची मुझे दिखा कर टेबल पर पटक दी.
मैंने देखा तो वो वही पर्ची थी जो सर मुझसे छीन कर लाए थे. उन्होंने टेबल पर मेरे सामने उस ‘लव लेटर’ को ऊपर करके रखा हुआ था.
“जी … मुझे नहीं पता कुछ भी …” मैंने शर्मिंदा सी होकर जवाब दिया।
“अच्छा … तुझे अब कुछ भी नहीं पता … यू.एम.सी. बना दूँगा तब तो पता चल जाएगा न…?” सर ने गुस्से से कहा।
“जी … ये मेरे पास पीछे से आकर गिरी थी … मुझे नहीं पता किसने …” मैंने धीमे स्वर में हड़बड़ा कर कहा।
“क्या नाम है तेरा?” मैडम ने पूछा।
“जी … अंजलि!”
“ये देख … तेरा ही नाम लिखा है ऊपर … और तू कह रही है कि तुझे कुछ नहीं पता … ऐसे कितने यार बना लिए हैं तूने अब से पहले?” मैडम ने तैश में आकर कहा।
मुझसे कुछ बोला ही नहीं गया … मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ी रही।
“मैं न कहता था मैडम … आजकल लड़कियाँ उम्र से पहले ही जवान हो जाती हैं … अब देख लो … सबूत आपके सामने है!” सर ने मैडम को मुस्कराते हुए मुझे देख कर कहा। वह मेरी मजबूरी पर चटखारे ले रहे थे.
“हम्म … और बेशर्मी की भी हद होती है … जवान हो गयी तो क्या? हमारे टाइम में तो ऐसी गंदी बातों का पता ही नहीं होता था इस उम्र में … और इसको देख लो … कैसे-कैसे गंदे लेटर आते हैं इसके पास … कौन है तेरा यार? बता?”
“जी … मुझे सच में कुछ नहीं पता … भगवान की कसम …” मैंने आँखों में आँसू लाते हुए कहा।
“अब छोड़ो मैडम … जो करेगी वो भरेगी … हमारा क्या लेगी? इसकी शीट मंगवा लो … मैं यू.एम.सी. बना देता हूँ. तीन साल के लिए बैठी रहेगी घर … और ये लेटर भी तो अख़बार में देने लायक है …” सर ने कहा।
“सर प्लीज़ … ऐसा मत कीजिए..!” मैंने नज़रें उठाकर सर को देखा. मेरी आँखें डबडबा गयीं. मगर वो अभी भी मेरी कमीज़ में बिना ब्रा के ही तनी हुई मेरी चूचियों को घूर रहे थे।
“तो कैसा करूँ?” उन्होंने मुझे देख कर कहा और फिर मेडम की तरफ बत्तीसी निकाल कर हँस दिए.
“देख लीजिए सर … अब इसकी जिंदगी और इज़्ज़त आपके ही हाथ में है!” मैडम भी कुछ अजीब से तरीके से उनकी ओर देखकर मुस्कराई।
“पूछ तो रहा हूँ … क्या करूँ? ये कुछ बोलती ही नहीं …” उनकी वासना से भरी आँखें लगातार मेरे बदन में ही गड़ी हुई थी.
“सर प्लीज़ … मुझे माफ़ कर दो … आइन्दा नहीं करूँगी …” मैंने अपनी आवाज़ को धीमा ही रखा।
“इसकी तलाशी तो ले लो एक बार … क्या पता कुछ और भी छिपा रखा हो!” सर ने मैडम से कहा।
तलाशी की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गये. जो पर्चियाँ मैं घर से बना कर लाई थी. वो अभी भी मेरी कच्छी में ही फँसी हुई थीं. मुझे अब याद आया।
“ना जी ना … मैं क्यूँ लूं …? ये आपकी ड्यूटी है … जो करना हो करिए … मुझे कोई मतलब नहीं!” मैडम ने हंसते हुए जवाब दिया।
“मैं? मैं मर्द भला इसकी तलाशी कैसे ले सकता हूँ मैडम? वैसे भी ये पूरी जवान है! मुझे तो ये हाथ भी नहीं लगाने देगी.” बोलते हुए उसकी आँखें कभी मुझे और कभी मैडम को देख रही थीं।
“ऐसी वैसी लड़की नहीं है ये, हज़ार आशिक तो जेब में रख कर चलती होगी. इसको कोई फ़र्क नही पड़ेगा मर्द के हाथों से. और मना करती है तो आपको क्या पड़ी है … बना दीजिए यू.एम.सी. सबूत तो आपके सामने रखा ही है … पर मैं तलाशी नही लूँगी सर!” मैडम ने साफ मना कर दिया।
“मैं सेंटर घूम कर आती हूँ सर … तब तक आप …”
मैडम मुस्कराकर कहते हुए अपनी बात को बीच में ही छोड़ कर उठी और बाहर चली गयी।
उनकी बातों से मुझे अहसास होने लगा था कि सर की नज़र मेरी कच्ची जवानी पर है और मैडम भी उनके साथ मिली हुई है.
“अब तलाशी तो लेनी ही पड़ेगी … समझ रही हो ना?” सर ने मेरी आँखों में देख कर कहा।
मेरा टाइम निकला जा रहा था और उन्हें मस्ती सूझ रही थी. मैं कुछ नहीं बोली, सिर्फ़ सिर झुका लिया अपना.
“बोलो, जवाब दो! या मैं यू.एम.सी. बना दूँ? सर ने कहा।
“जी … मेरे पास दो और हैं. मैं निकाल कर आ जाती हूँ अभी” मैंने कसमसा कर कहा।
“निकालो, जो कुछ है एक मिनट में निकाल दो यहीं!” सर ने कहा।
मैं एक पल के लिए हिचकिचाई और फिर कुछ सोच कर तिरछी हुई और ऊपर से अपनी स्कर्ट में हाथ डाल लिया. वो अब भी मेरी ओर ही देख रहे थे. मैंने और अंदर हाथ ले जाकर पर्चियाँ निकालीं और उनको पकड़ा दी.
“हम्म” अपनी नाक के पास ले जाकर सर मेरे सामने ही पर्चियों को सूँघने लगे. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल हो गया. कुछ देर बाद वह फिर मुझे घूरने लगे.
“और निकालो?” सर ने ज़ोर देकर कहा।
“जी … और नहीं है एक भी अब मेरे पास!” मैंने जवाब दिया।
“तुम कुछ भी कहोगी और मैं विश्वास कर लूँगा? तलाशी तो देनी ही पड़ेगी तुम्हें!” उन्होंने बनावटी से गुस्से से मुझे घूरा.
“मगर सर … आधा टाइम पहले ही निकल चुका है पेपर का!” मैंने डरते डरते कहा।
“आज के पेपर को तो भूल ही जाओ. सिर्फ़ ये दुआ करो कि तुम्हारे तीन साल बच जायें. समझी?” उन्होंने गुर्राकर कहा।
“सर प्लीज़ …” मैंने सहम कर उनकी आँखों में देखा. वह एकटक मुझे ही घूरे जा रहा था.
“तुम समझ रही हो या नहीं? तलाशी तो तुम्हें देनी ही पड़ेगी अगर तुम यू.एम.सी. से बचना चाहती हो तो … तुम्हारी मर्ज़ी है. कहो तो यू.एम.सी. बना दूं?” सर ने इस बार एक-एक शब्द को जैसे चबा कर कहा।
“जी …”
मुझे उनको तलाशी देने में कोई दिक्कत नहीं थी. ऐसी तलाशी तो स्कूल के टीचर जाने कितनी ही बार ले चुके थे. बातों-बातों में सिर्फ़ मुझे टाइम की चिंता हो रही थी.
“क्या जी-जी लगा रखा है? मैंने तो अब तुम पर ही छोड़ दिया है. तुम्हीं बोलो क्या करूँ? तलाशी लूँ या यू.एम.सी. बनाऊँ?”
“जी … तलाशी ले लीजिये … पर प्लीज़ … केस मत बनाना!” मैंने याचना सी करते हुए कहा।
“वो तो मैं तलाशी लेने के बाद सोचूँगा. इधर आ जाओ. मेरे पास …” सर ने मुझे दूसरी ओर बुलाया.
मैं टेबल के साथ-साथ चलकर सर के पास जाकर खड़ी हो गयी. मेरा चेहरा ये सोच कर ही लाल हो गया था कि अब वह तलाशी के बहाने जाने कहाँ-कहाँ हाथ लगायेंगे. वह मुझे यूँ घूर रहे थे मानो कच्चा ही चबा जाने के मूड में हों. थोड़ा हिचकने के बाद उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रख दिया
“अब भी सोच लो. मैं तलाशी लूँगा तो अच्छे से लूँगा. फिर ये मत कहना कि यहाँ हाथ मत लगाओ. वहाँ हाथ मत लगाओ. तुम्हारे पास अब भी मौका है. बीच में अगर टोका तो मैं तुरंत यू.एम.सी. बना दूँगा.”
“जी … मैं कुछ नहीं बोलूँगी. पर आप प्लीज़ केस मत बनाना …” मैं अब थोड़ा खुल कर बोलने लगी थी.
“ठीक है … मैं देखता हूँ.”
कहकर वो मेरे नितंबों पर हाथ फेरने लगे.
“एक बात तो है …” उन्होंने बात अधूरी छोड़ दी और मेरे नितंबों की दरार टटोलने लगे.
मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी मचने लगी. अब मुझे पूरा यकीन हो चला था कि तलाशी सिर्फ़ एक बहाना है मेरे बदन से खेलने के लिए.
मेरी तरफ मुँह करके खड़ी हो जाओ.” उन्होंने कहा।
मैं उसकी तरफ घूम गयी. मेरी अधपकी हुई सी गोल-गोल मस्त चूचियाँ अब कुर्सी पर बैठे हुए सर की आँखों से कुछ ही उपर थी और उनके होंठों से कुछ ही दूर.
“एक बात सच-सच बताओगी तो मैं तुम्हे माफ़ कर दूँगा!” सर ने मेरी शॉर्ट स्कर्ट में से हाथ निकालते हुए कहा.
“जी …” मैंने आँखें बंद करके कहा।
“तुम्हें पता है न कि ये लेटर वाली पर्ची किसने दी है तुम्हें?” उन्होंने मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाला और मेरे चिकने पेट पर हाथ फेरने लगे.
मैं सिहर उठी. उनके खुरदरे मोटे हाथ का स्पर्श मुझे अपने पेट पर बहुत कामुक अहसास दे रहा था. मैंने आह सी भरकर जवाब दिया- नहीं सर, भगवान की कसम …
“चलो कोई बात नहीं … जवानी में ये सब तो होता ही है. इस उम्र में मज़े नहीं लिए तो कब लोगी? ठीक कह रहा हूँ ना?” उसने बोलते-बोलते दूसरा हाथ मेरी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर मेरे घुटनों से थोड़ा ऊपर मेरी जाँघ को कसकर पकड़ लिया.
“जी … प्लीज़ … जल्दी कर लीजिये ना!” मैंने उनसे प्रार्थना की।
“मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मैं तो इसीलिए धीरे कर रहा हूँ ताकि तुम्हें शर्म ना आए. ऐसा करने से तुम गर्म हो रही होगी ना? सर ने कहा और अपना हाथ एकदम ऊपर चढ़ा कर कच्छी के ऊपर से ही मेरे मांसल नितंबों में से एक को मसल दिया.
“आआअहह..” मेरे मुँह से एकदम तेज साँस निकली. उत्तेजना के मारे मेरा बदन अकड़ने सा लगा था.
“कैसा लग रहा है? मतलब कोई दिक्कत तो नहीं है ना?” उन्होंने नितंब पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करते हुए कहा।
“जी … नहीं…” मैंने जवाब दिया … मेरी टाँगें काँपने सी लगी थी. यूँ लग रहा था जैसे ज़्यादा देर खड़ी नहीं रह पाऊंगी.
“अच्छा लग रहा है ना?” उन्होंने दूसरे नितंब पर हाथ फेरते हुए पूछा।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और थोड़ी आगे होकर उनके और पास आ गयी. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. सिर्फ़ पेपर की चिंता थी.
अगले ही पल वो अपनी औकात पर आ ही गए. मेरे नितंब को अपनी हथेली में दबोचे हुए दूसरे हाथ को वो धीरे-धीरे पेट से ऊपर ले जाने लगे.
“तुम गजब की हसीन और चिकनी हो. तुम्हारे जैसी लड़की तो मैंने आज तक देखी भी नहीं. तुम चिंता मत करो. तुम्हारा हर पेपर अब अच्छा होगा. मैं गारंटी देता हूँ. बस तुम थोड़ा सा मुझे खुश कर दो. मैं तुम्हारी ऐश कर दूँगा यहाँ”
“पर … आज का पेपर सर?” मैंने कसमसाते हुए कहा।
“ओह्हो … मैं कह तो रहा हूँ … तुम्हें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं अब. आज तुम्हें पेपर के बाद एक घंटा दे दूँगा और किसी अच्छे बच्चे का पेपर भी तुम्हारे सामने रख दूँगा. बस अब तुम पेपर की बात भूल जाओ थोड़ी देर” उन्होंने कहा और मेरी कच्छी के अंदर हथेली डाल कर मेरी चूत की दरार को उंगलियों से कुरेदने लगे.
मन को मिली शांति और तन को मिली इस गुदगुदी से मैं मचल सी उठी. एक बार मैंने अपनी ऐड़ियां उठाईं और आगे हो गयी. अब उसके चेहरे और मेरी चूचियों के बीच 2 इंच का ही फासला रहा होगा.
“आह्ह … थैंक्स सर!”
“हाय … कितनी गर्म-गर्म है तू. मेरी किस्मत में ही थी तू. तभी मुझे लव लेटर वाली पर्ची हाथ लगी. वरना तो मैं सपने में भी नही सोच पाता कि यहाँ स्कूल में मुझे तुझ जैसी लौंडिया मिल सकती है. मज़ा आ रहा है ना?” उनकी भी साँसें उखड़ने लगीं थी.
“जी … आप जी भर कर तलाशी ले लो. बहुत मज़ा आ रहा है!” मैंने भी सिसकारी सी लेकर कहा।
मेरे लाइन देते ही उन्होंने झट से अपना हाथ ऊपर चढ़ा कर मेरे छोटे से उरोज को पकड़ लिया. मेरी गदराई हुई चूचियाँ हाथ में आते ही वह मचल उठा.
“वाह क्या चीज़ बनाई है बनाने वाले ने. तेरी चूचियाँ तो बड़ी मस्त हैं. सेब के जैसी, दिल कर रहा है खा जाऊँ इन्हें!” वह मेरे उरोज के निप्पल को छेड़ते हुए बोले. वो भी अकड़ से गये थे.
मैं अपनी प्रशंसा सुनकर बाग-बाग हो गयी. थोड़ा इतराते हुए मैंने आँखें खोल कर उनको देखा और मुस्करा दी.
उन्होंने अपना हाथ निकाल कर मेरी कच्छी को थोड़ा नीचे सरका दिया. गर्म हो चुकी मेरी योनि ठंडी हवा लगते ही ठिठुर सी उठी. अगले ही पल वो अपनी एक उंगली को मेरी योनि की फांकों के बीच ले गये और ऊपर नीचे करते हुए उसका छेद ढूँढने लगे.
मैं दहक उठी. मेरी योनि ने रस बहाना शुरू कर दिया. उतावलेपन और उत्तेजना में मैंने ‘सर’ का सिर पकड़ा और अपनी तरफ खींच कर अपनी चूचियों में दबा लिया. इसी दौरान उसकी एक उंगली मेरी योनि में उतर गयी. मैं उछल सी पड़ी. मगर योनि ने उसको जल्दी ही अपने अंदर एडजस्ट कर लिया.
“बहुत टाइट है तेरी ‘बुर’ तो. पहले कभी किया नहीं ऐसा लगता है!” उन्होंने कहकर और मेरी शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल दिए. मेरी मस्ताई हुई गोरी चूचियाँ टपाक से ऊपर की तरफ से छलक सी आईं.
मेरी कमीज़ में घुसे हुए उनके हाथ से उन्होंने एक चूची को और ऊपर खिसका दिया और चूची पर जड़े मोती जैसे गुलाबी दाने को शर्ट से बाहर निकाल लिया. उसको देखते ही वह पागल से हो गये- वाह … इसको कहते हैं चूचक … कितना प्यारा और रसीला है.
आगे वह कुछ नहीं बोले. अपने होंठों में उन्होंने मेरे टाइट निप्पल को दबा लिया था और किसी बच्चे की तरह उसको चूसने लगे.
मैं घिघिया उठी. बुरा हाल हो रहा था. उन्होंने अपनी उंगली बाहर निकाली और फिर से अंदर सरका दी. इतना मज़ा आ रहा था कि बयान नहीं कर सकती. मेरे होश उड़े जा रहे थे. मैं सब कुछ भूल चुकी थी. ये भी कि मैं यहाँ पेपर देने आई हूँ.
उनकी उंगली अब सटासट अंदर बाहर हो रही थी. मैंने अपनी जांघों को और खोल दिया था और जमकर सिसकारियाँ लेते हुए आँखें बंद किए आनंद में डूबी रही. वह भी पागलों की भाँति उंगली से रेलम पेल करते हुए लगातार मेरे निप्पल को चूस रहे थे. जैसे ही मेरा इस बार रस निकला मैंने अपनी जांघें ज़ोर से भींच ली.
“बस … सर … और नहीं … अब सहन नहीं होता मुझसे …”
वह तुरंत हट गये और जल्दबाज़ी सी करते हुए बोले- “ठीक है … जल्दी नीचे बैठ जाओ …”
मैं पूरी तरह उनका मतलब नहीं समझी मगर जैसे ही उन्होंने कहा. मैंने अपनी कच्छी ठीक करके शर्ट के बटन बंद किए और नीचे बैठ कर उनकी आँखों में देखने लगी.
उन्होंने झट से अपनी पैंट की ज़िप खोल कर अपना लंड मेरी आँखों के सामने निकाल दिया.
“लो! इसको पकड़ कर आगे-पीछे करो!”
हाथ में लेने पर उसका लंड मुझे सुन्दर जितना ही लंबा और मोटा लगा. मैंने खुशी-खुशी उसको हिलाना शुरू कर दिया.
“जब मैं कहूँ ‘आया …’ अपना मुँह खोल देना!” उन्होंने सिसकते हुए कहा।
मुझे मम्मी और सुन्दर वाला सीन याद आ गया- मुझे पीना है क्या सर?
“अरे वाह … मेरी जान … तू तो बड़ी समझदार है। आया … हां … जल्दी-जल्दी कर” उनकी साँसें उखड़ी हुई थीं.
करीब 2 मिनट के बाद ही वह कुर्सी से सरक कर आगे की ओर झुक गये.
“हाँ … आआआ … ले … मुँह खोल …”
मैंने अपना मुँह पूरा खोल कर उनके लिंग के सामने कर दिया. उन्होंने झट से अपना सुपाड़ा मेरे मुँह में फँसाया और मेरा सर पकड़ लिया.
“आआआ … आया … आया”
सुन्दर के मुक़ाबले रस ज़्यादा नहीं निकला था, पर जितना भी था मैंने उसकी एक-एक बूँद को अपने गले से नीचे उतार लिया. जब तक उन्होंने अपना लिंग बाहर नहीं निकाला. मेरे गुलाबी रसीले होंठ उसके सुपाड़े को अपनी गिरफ़्त में जकड़े रहे. स्वाद मुझे कुछ खास अच्छा नहीं लगा. लेकिन कुछ खास बुरा भी नहीं था.
कुछ देर यूँ ही झटके खाने के बाद उसका लिंग अपने आप ही मेरे होंठों से बाहर निकल आया. उसको अंदर करके उन्होंने अपनी ज़िप बंद की और अपना मोबाइल निकाल कर फोन मिलाया और बोला- आ जाओ मैडम!