सर बहुत गंदे हैं

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तू इस गाँव की नहीं है ना?” उसने प्यार से पूछा।
“जी नहीं!” मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया.
“कौन आया है तेरे साथ?”
“जी कोई नहीं. अपनी सहेली के साथ आई हूँ!” मैंने जवाब दिया.

“वेरी गुड … ऐसा करना … पेपर के बाद यहीं रहकर सारा पेपर कर लेना … तुझे तो मैं 2 घंटे भी दे दूँगा … तू तो बड़े काम की चीज़ है यार … अपनी सहेली को जाने के लिए बोल देना. तुझे मैं अपने आप छोड़ आया करूँगा. ठीक है ना?”
“जी!” मैंने सहमति में सिर हिलाया.

तभी मैडम दरवाजा खोल कर अंदर आ गयी।
“तलाशी दी या नहीं?” उसने अजीब से ढंग से सर को देखा और मुस्कराने लगी.
“ये तो कमाल की लड़की है. बहुत प्यारी है. ये तो सब कुछ दे देगी. तुम देखना” सर ने मैडम की ओर आँख मारी और फिर मेरी तरफ देख कर बोले-

“जा! कर ले आराम से पेपर और पेपर टाइम के बाद सीधे यहीं आ जाना. मैं निकाल कर दे दूँगा तुझे वापस. आराम से सारा पेपर करना. और ये ले … तेरी पर्ची … इसमें से लिख लेना तब तक … मैं तुम्हारी क्लास में कहलवा देता हूँ … तुझे कोई नहीं रोकेगा अब नकल करने से!” कहकर उन्होंने मेरे गाल थपथपा दिए.

मैं खुश होकर बाहर निकली तो पीऊन मुझे अजीब सी नज़रों से घूर रहा था. पर मैंने परवाह नहीं की और अपने रूम में आ गयी.
“क्या हुआ?” क्लास में टीचर ने पूछा.
“कुछ नहीं सर. मान गये वो.” मैंने कहा और अपनी सीट पर बैठ गयी. अब आधा घंटा ही बचा था एग्जाम ख़त्म होने में.

तभी सर ऑफिस से बाहर निकल आए. उन्होंने इधर-उधर देखा. सभी जा चुके थे. हमारे अलावा सिर्फ़ पिऊन ही ऑफिस के बाहर बैठा था.
सर अंदर गये और थोड़ी देर बाद मैडम बाहर निकली- किशन! बाकी कमरों को ताला लगाकर तुम चले जाओ. हमें अभी टाइम लगेगा.
“ठीक है मैडम!” चपरासी ने कहा और चाबी उठा कर कमरे बंद करने लगा.

“हम्म … पर पेपर तो मेरा भी अच्छा नहीं हुआ … चल चलते हैं घर … रास्ते में बात करेंगे.” पिंकी ने मायूस होकर कहा।
“ऐसा कर … तू जा, मैं थोड़ी देर बाद आऊँगी”.
मैं लगे हाथों बाकी बचे पेपर को भी निपटा देना चाहती थी.
“पर क्यूँ? यहाँ क्या करेगी तू?” उसने आँखें सिकोड कर पूछा।

“वो … मेरा टाइम खराब हो गया था ना … इसीलिए सर मुझे अब थोड़ा सा टाइम देंगे.” मैंने उसको आधा सच बता दिया.
“पर तू किसी को बोलना मत … सर के ऊपर बात आ जाएगी नहीं तो!”
“अच्छा!” पिंकी खुश होकर बोली- “ये तो अच्छी बात है … कोई बात नहीं … मैं तेरा इंतजार कर लेती हूँ यहीं … तेरे साथ ही चलूंगी!”

मैं उसको भेजने के लिए बहाना सोच ही रही थी कि सर एक बार फिर बाहर आ गये. बाहर आकर मेरी ओर मुस्करा कर देखा और इशारे से अपनी ओर बुलाया.

“तू जा यार … मैं आ जाऊंगी … एक मिनट … सर बुला रहे हैं.” मैंने पिंकी से कहा और बिना उसका जवाब लिए सर के पास चली गयी. पिंकी वहीं खड़ी रही.
सर ने अपने होंठों पर जीभ फिराई और पिंकी की ओर देख कर धीरे से बोले- इसको तो भेज दिया होता. अपने साथ क्यूँ चिपका रखा है?
“मैंने कहा है सर … पर वो कह रही है कि मेरे साथ ही जाएगी … अब बाकी बच्चे भी जा चुके हैं … मैं उसको फिर से बोल कर देखती हूँ.” मैंने नज़रें झुका कर जवाब दिया.

“हम्म … कौन है वो? तेरी क्या लगती है?” सर की आवाज़ में बड़ी मिठास थी अब.
“जी … मेरी सहेली है … बहुत अच्छी.” मैंने उसकी नज़रों में देखा, वह पिंकी को ही घूर रहा था.
“किसी को कुछ बता तो नहीं देगी ना?” सर ने मेरी चूचियों को घूरते हुए पूछा.

यहाँ मेरी ग़लती रह गयी. मैंने समझा कि सर का ये सवाल एग्जाम टाइम के बाद मुझे पेपर करने देने के बारे में है. वैसे भी मैं यही समझ रही थी कि उनको जो कुछ करना था. वो कर चुके हैं.
“नही सर! वो तो मेरी बेस्ट फ्रेंड है … किसी को कुछ नहीं बताएगी.”
मैं कहने के बाद सर की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी. वो चुपचाप खड़े पिंकी की ओर देखते हुए कुछ सोचते रहे.

“सर!” मैंने उन्हें टोक दिया।
“हम्म?” वो अब भी मेरे पास खड़े हुए लगातार पिंकी की ओर ही देख रहे थे.
“वो … मैं … कह रही थी कि उसका भी पेपर खराब हुआ है … अगर आप …” मैं बीच में ही रुक गयी, ये सोच कर कि समझ तो गये ही होंगे।
“चल ठीक है. बुला लो. पर देख लो. तुम्हारे भरोसे पर कर रहा हूँ. कहीं बाद में …” सर की बात को मैंने खुश होकर बीच में ही काट दिया।
“जी … वो किसी को कुछ नहीं बताएगी … बुला लाऊँ उसको?” मैं खुश होकर बोली।
“हां … ऑफिस में लेकर आ जाओ!” सर ने कहा और अंदर चले गये.

मैं खुश होकर दौड़ी-दौड़ी पिंकी के पास गयी.
“चल आजा, मैंने तेरे लिए भी बात कर ली है. तुझे भी सर पेपर दे देंगे.”
“अच्छा, सच? मज़ा आ जाएगा फिर तो”.
वो भी सुनकर खुशी से उछल पड़ी. अगले ही पल हम दोनों मैडम और सर के सामने खड़ी थीं.

“मैडम, प्लीज़ … आप ऑफिस का ताला लगाकर थोड़ी देर बाहर बैठ जाओ. मेरा फोन भी लेते जाओ. अगर कोई फोन आए तो कहना कि वो पेपर्स का बंडल लेकर निकल चुके हैं और फोन यहीं भूल गये!” सर ने मैडम की तरफ अपना मोबाइल बढ़ाते हुए कहा।
“मैं तो बैठ जाऊंगी सर मगर देख लो, ज़िंदगी भर अब आप मुझे और इस सेंटर को भूल मत जाना. अब मेरे स्कूल के किसी बच्चे का पेपर खराब नहीं होना चाहिए. सबको खुली छूट मिलेगी ना अब तो?” मैडम ने शिकायती लहजे में सर से कहा।

सर ने हंसते हुए अपना पूरा जबड़ा ही खोल दिया- हा हा हा … आप भी कमाल करती हैं मैडम … ये सेंटर और आपको कभी भूल सकता हूँ क्या? यहाँ तो मुझे तोहफे पर तोहफे मिल रहे हैं. आप बेफिक्र रहें. कल से सब बच्चों को 15 मिनट पहले पेपर मिल जाया करेगा और नकल की भी मौज करवा दूँगा.”

“थैंक्स सर, मुझे बस यही चाहिए.” मैडम ने मुस्करा कर कहा और बाहर निकल कर ऑफिस को ताला लगा दिया.
“सोफे पर बैठ जाओ आराम से … डरने की कोई ज़रूरत नहीं है. अपना अपना रोल नंबर बता दो जल्दी … तुम्हें नहीं पता मैं कितना बड़ा रिस्क लेकर तुम्हारे लिए ये सब कर रहा हूँ.” सर ने हमारे रूम का बंडल खोलते हुए कहा।

पिंकी ने मेरी ओर देखा और मुस्करा दी और फिर सर को अच्छी नज़रों से देखते हुए बोली- थैंक्स सर …
हम दोनों ने अपने अपने रोल नंबर सर को बताए और उन्होंने हमारी शीट निकाल कर हम दोनों को पकड़ा दी.
“किसी इंटेलिजेंट बच्चे का भी रोल नंबर बता दो. मैं निकाल कर दे देता हूँ. जल्दी-जल्दी उतार लेना उसमें से!”

“दीपाली!” पिंकी के मुँह से निकला.
जबकि मेरे मुँह से संदीप का नाम निकलते-निकलते रह गया. पिंकी ने दीपाली का रोल नंबर सर को बता दिया.

“हम्म मिल गया!” सर ने कहा और पेपर लेकर हमारे पास आए और हमारे बीच फंसकर बैठ गये- ये लो, जल्दी-जल्दी करो.

पिंकी ने शायद सर की मंशा पर ध्यान नहीं दिया था. हम दोनों ने सामने दीपाली का पेपर खोल कर रख लिया और जो क्वेस्चन हम दोनों के बाकी थे, उतारने लगे.
करीब पाँच मिनट ही हुए होंगे कि सर ने अपनी बांहें फैलाकर हम दोनों के कंधों पर रख दी- शाबाश … जल्दी-जल्दी करो.
“तुम्हारा क्या नाम है बेटी?” सर ने पिंकी की ओर देख कर पूछा.
“जी …? पिंकी!” पिंकी जल्दी-जल्दी लिखते हुए बोली.
“बहुत प्यारा नाम है. अंजलि को तो सब पता ही है. तुम भी अब किसी पेपर की चिंता मत करना. सब ऐसे ही करवा दूँगा. खुश हो ना?” सर पिंकी की कमर पर हाथ फेरने लगे.

मेरा ध्यान रह-रह कर पिंकी पर जा रहा था. मुझे तरुण की ठुकाई याद आ रही थी. ये सोचकर मैं डरी हुई थी कि कहीं सर पिंकी पर हाथ साफ करने के बारे में ना सोचने लगे हों. ऐसा होगा तो आज बहुत बुरा होगा. मैं मन ही मन सोच रही थी मगर कहती भी तो मैं किसको क्या कहती. मेरी एक आँख अपना पेपर करने पर और दूसरी पिंकी के चेहरे पर बनी रही.

“तुम अब जवान हो गयी हो बेटी, चुन्नी डाला करो ना … ऐसे अच्छा नहीं लगता ना … देखो … बाहर से ही साफ दिख रहे हैं!” सर की इस बात पर पिंकी सहम सी गयी. मगर शायद अपना पेपर पूरा करने का लालच उसके मन में भी था.
“वो … मैंने आज अंजलि को दे दी सर …” पिंकी ने हड़बड़ा कर कहा।
ओह … हां … इसकी तो और भी बड़ी-बड़ी और मस्त हैं. पर इसको अपनी लानी चाहिए … देखो ना … तुम्हारी भी तो कैसे चोंच उठाए खड़ी हैं … तुम ब्रा भी नहीं पहनती हो … है ना?”

सर की बात सुनकर पिंकी का चेहरा सच में ही गुलाबी सा हो गया … अब शायद उसके मन में भी सर की बातें सुन कर घंटियाँ सी बजने लगी थीं. मुझे डर था कि ये घंटियाँ घंटाल बनकर सर के सिर पर ना बजने लग जायें. अभी तो पांच पेपर होने और बाकी थे.
पिंकी बोली तो कुछ नहीं पर सरक कर ‘सर’ से थोड़ा दूर हो गयी.

“नहीं पहनती हो ना ब्रा?” सर ने उससे फिर पूछा.
“अंजलि भी नहीं पहनती. तुम भी नहीं … क्या बात है यार …”
पिंकी इस बार थोड़ा सा खीज कर बोली- “वो … मम्मी लाकर ही नहीं देती, कहती हैं अभी तुम छोटी हो!”
और यह कहकर पिंकी फिर से अपना पेपर करने में जुट गयी.

“मम्मी के लिए तो तुम शादी के बाद भी बच्ची ही रहोगी बेटी, हे हे हे …” सर अपनी जांघों के बीच तनाव को कम करने के लिए ‘वहाँ’ खुजाते हुए बोले- पर तुम बताया करो ना … तुम तो अब पूरी जवान हो गयी हो … लड़कों का दिल मचल जाता होगा इन्हे यूँ फड़कते देख कर … पर तुम्हारा भी क्या कुसूर है … ये उम्र ही मज़े लेने और देने की होती है.” सर ने कहने के बाद अचानक अपना हाथ पिंकी की जांघों पर रख दिया.

पिंकी कसमसा उठी- “सर … प्लीज़!”
“करो ना … तुम आराम से पेपर करो … मैं तुम्हारे लिए ही तो बैठा हूँ यहाँ … चिंता की कोई बात नहीं!” सर ने उसको याद दिलाने की कोशिश की कि वो हम पर कितना ‘बड़ा’ अहसान कर रहे हैं. उन्होंने अपना हाथ पिंकी की जाँघ से नहीं हटाया।

पिंकी के चेहरे से मुझे साफ लग रहा था कि वो पूरी तरह विचलित हो चुकी है मगर शायद पेपर करने का लालच या फिर उसकी उम्र या फिर दोनों ही कारण थे कि वह चुप बैठी अब भी लिख रही थी.

सर ने अचानक मेरे हाथ के नीचे से अपना हाथ निकाला और मेरा दायां स्तन अपनी हथेली में ले लिया. मैंने घबराकर पिंकी की ओर देखा कि कहीं उसके साथ भी ऐसा ही तो नहीं कर दिया. लेकिन अब तक गनीमत थी कि उन्होंने ऐसा नहीं किया था. वह हड़बड़ाई हुई जल्दी-जल्दी लिखती चली जा रही थी.
सर ने अचानक अपने हाथ से उसकी जांघों के बीच जाने क्या ‘छेड़’ दिया कि पिंकी उछल कर खड़ी हो गयी. मैंने घबराकर उनका हाथ अपनी छाती से हटाने की कोशिश की पर उन्होंने मेरी चूचियों पर से हाथ नहीं हटाया।

“क्या हो गया बेटी? इतनी घबरा क्यूँ रही हो? आराम से पेपर करती रहो ना … ये देखो … अंजलि कितने आराम से कर रही है.” सर निश्चिंत बैठे हुए थे, ये सोच कर कि मेरी ‘सहेली’ है तो मेरे ही जैसी होगी.

पिंकी ने मेरी ओर देखा और शर्म से अपनी आँखें झुका लीं. उसने मेरी छाती को ‘सर’ के हाथों में देख लिया था. मैं चाहकर भी उनका हाथ ‘वहाँ’ से हटा नहीं पाई.
पिंकी का चेहरा तमतमाया हुआ था.
“मुझे नहीं करना पेपर. दरवाजा खुलवा दो, मुझे जाना है” पिंकी ने कहा।

तब तक मेरा भी पेपर पूरा ही हो गया था. मैंने भी अपनी आन्सर शीट बंद करके टेबल पर रख दी.
“हो गया सर, जाने दो हमें …”
सर गुर्राते हुए बोले- “अच्छा, पेपर हो गया तो जाने दो? हमें नहीं करना पेपर … वाह! मैं क्या चूतिया हूँ जो इतना बड़ा रिस्क ले रहा हूँ!”

जैसे ही मैं खड़ी हुई सर ने मेरी कमर को पकड़ कर मुझे अपनी गोद में बैठा लिया.
मैंने पिंकी के कारण गुस्सा सा होने का दिखावा किया.
“ये सब क्या है सर? छोड़ दो मुझे”
मैं उनकी पकड़ से आज़ाद होने के लिए छटपटाई.

“अच्छा! साली … दिन में तो तुझे ये भी पता था कि रस कैसे पीते हैं लौड़े का … अब तेरा काम निकल गया तो पूछ रही है ये सब क्या है! तुम क्या सोच रही हो? मैं तुम्हें यूँ ही थोड़े जाने दूँगा. बाकी के दिन तुम्हारी मर्ज़ी पर लेकिन आज तो अपनी फीस लेकर ही रहूँगा.” मुझे गोद में ही पकड़े हुए सर मेरी चूचियों को शर्ट के उपर से ही मसलने लगे.

पिंकी बहुत डरी हुई थी. शायद वो भी घर में ही शेर थी. सर के सामने वो खड़ी-खड़ी काँपने लगी थी. मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी मगर सच में मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था उस समय क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मेरी सहेली पिंकी उसकी आंखों के सामने मेरे साथ ये सब होता हुआ देखे।

“अभी तो एक ही पेपर हुआ है, 5 तो बाकी हैं ना, सेंटर में इतनी सख्ती कर दूँगा कि एक दूसरे से भी कुछ पूछ नहीं सकोगी. देखता हूँ तुम जैसी लड़कियाँ कैसे पास होती हैं फिर!” सर ने गुर्राते हुए धमकी दी और मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूचियों को मसलने लगे.

उनकी इस धमकी का पिंकी पर क्या असर हुआ ये तो मैं समझ नहीं पाई मगर खुद मैं एकदम ढीली हो गयी और उनका विरोध करना छोड़ दिया. मैं मजबूर होकर पिंकी को देखने लगी.
पिंकी बोली- हमें जाने दो सर … प्लीज़ … मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ … आप कुछ भी कर लेना … पर हमें अभी जाने दो.
“चुपचाप खड़ी रह वहाँ. मैंने नहीं बुलाया था तुम्हें अंदर. तुम्हारी ये ‘छमिया’ लेकर आई थी और मैं तुम्हें कुछ कह भी नहीं रहा. अब ज़्यादा बकवास मत करो और चुपचाप तमाशा देखो.” सर ने कहा और मुझे खड़ा कर दिया.

सर आगे हाथ लाकर मेरी स्कर्ट का हुक खोलने लगे. मैंने पिंकी को दिखाने के लिए उनका हाथ पकड़ लिया- छोड़ दो ना सर प्लीज़!
“बहुत प्लीज सुन ली तेरी, अब चुपचाप मेरी प्लीज़ सुन ले. ज़्यादा बोली तो पता है ना?” उन्होंने कहा और झटके के साथ हुक खोल कर स्कर्ट को नीचे सरका दिया. पिंकी जैसी लड़की के सामने इस तरह खुद को नंगी होते देख मेरी आँखें एक बार फिर डबडबा गयीं. मुझे सर की हरकतों से कोई ऐतराज नहीं था, मुझे तो सिर्फ पिंकी की ओर से डर और शर्म थी.

मैं अब नीचे सिर्फ़ कच्छी में खड़ी थी और अगले ही पल कच्छी भी नीचे सरक गयी. मेरे नंगे नितम्ब अब ‘सर’ की आँखों के सामने थे और योनि ‘पिंकी’ के सामने. मगर पिंकी ने इस हालत में मुझे देखते ही अपनी आँखें झुका लीं और सुबकती रही.

“आह … क्या माल है तू भी लौंडिया! चूतड़ तो देखो! कितने मस्त और टाइट हैं. एकदम गोल-गोल पके हुए खरबूजे की तरह!” सर ने मेरे नितम्बों पर थपकी सी मारने के बाद उनको अलग-अलग करने की कोशिश करते हुए कहा- हाय … बिल्कुल एक नंबर का माल है … कितनी चिकनी चूत है तेरी … मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि इंडिया में भी ऐसी चूतें मिल जाएँगी … क्या इंपोर्टेड पीस है यार …”

पिंकी ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया.

“चल … टेबल पर झुक जा … पहले तेरा रस पी लूँ …” सर ने कहते हुए मेरी कमर पर हाथ रख कर आगे दबा दिया और ना चाहते हुए भी मुझे झुकना पड़ा.
मैंने अपनी कोहनियाँ टेबल पर टिका लीं.
“हां … ऐसे … शाबाश … अब टाँग चौड़ी करके अपने चूतड़ पीछे निकाल ले!” सर ने उत्तेजित स्वर में कहा.

उसकी बात समझने में मुझे ज़्यादा परेशानी नहीं हुई. अब पिंकी के सामने मेरी जो मिट्टी पलीद होनी थी वह तो हो ही चुकी थी. मैं अब जल्द से जल्द उनको निपटाने की सोच रही थी. मैंने अपनी कमर को झुकाया और अपनी जांघें खोलते हुए अपने नितम्बों को पीछे धकेल सा दिया, मेरी योनि अब लगभग बाहर की ओर निकल चुकी थी.

“ओये होये … माँ कसम … क्या चूत है तेरी … दिल करता है इसको तो मैं काट कर अपने साथ ही ले जाऊँ!” कहकर उन्होंने सिसकारियाँ भरते हुए मेरे नितम्बों को अपने दोनों हाथों में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर एक ही बार में योनि को नीचे से उपर तक चाट गये. मेरी सिसकी सी निकल गयी.

“देखा … कितना मज़ा आया ना? इसको भी समझा … ये भी थोड़े मज़े लेना सीख ले मुझसे … जवानी चार दिन की होती है … फिर पछताएगी नहीं तो …” सर ने कहने के बाद एक बार और जीभ लपलपाते हुए मेरी योनि की फांकों में खलबली मचाई और फिर बोले- कह दे ना इसको … दे दे मुझे तो अलग ही मज़ा आएगा … बोल दे इसको … मौज कर दूँगा ससुरी की … मेरिट ना आए तो कहना!

मैं कुछ ना बोली … मैं क्या बोलती? मेरा बुरा हाल हो चुका था. अब लगातार नागिन की तरह मेरी योनि में लहरा रही उसकी जीभ से मैं बेकाबू हो चुकी थी और अपने आपको सिसकारियाँ भरने से भी नहीं रोक पा रही थी,
“आह … सररर … आआआह …”

“पगली … सर की हालत भी तेरी ही तरह हो चुकी है … कुछ मत बोल अब … अब तो मुझे घुसाने दे जल्दी से!” बोल कर वह खड़ा हो गया.
मैं आँखें बंद किए सिसकारियाँ लेती हुई मस्ती में खड़ी थी. अचानक मुझे अपनी योनि की फांकों के बीच उनका लंड गड़ता हुआ महसूस हुआ, समझ में आते ही मैं हड़बड़ा गयी और इसी हड़बड़ाहट में टेबल पर गिर गयी.

“आह … ऐसे मत तड़पा अब … बिल्कुल आराम से अंदर करूँगा … माँ कसम … पता भी नहीं लगने दूँगा तुझे … तेरी तो वैसे भी इतनी चिकनी है कि सर्ररर से जाएगा … आजा अंजलि आ जा आ!” पगलाए हुए से सर ने मुझे कमर से पकड़ कर ज़बरदस्ती फिर से वैसे ही करने की कोशिश की.

पर इस बार मैं अड़ गयी- नहीं सर … ये नहीं!
मैंने एकदम से सीधी खड़ी होकर कहा.
“ये क्यूँ नहीं मेरी जान … ये ही तो लेना है … एक बार थोड़ा सा दर्द होगा और फिर देखना … चल आजा … जल्दी से आजा … टाइम वेस्ट मत कर अब!” सर ने अपने लंड को हाथ में लेकर हिलाते हुए कहा.

“नही सर … अब बहुत हो गया … जाने दो हमें …” मैं अकड़ सी गयी।

“ज़्यादा बकबक की तो साली गांड में लंड घुसेड़ दूँगा. नौ सौ चूहे खाकर अब बिल्ली हज को जाएगी? चुपचाप मान जा वरना अपनी सहेली को बोल कि चूस देगी थोड़ा सा … फिर मैं मान जाऊंगा …” सर ने कहा।

अजीब उलझन में आ फँसी थी मैं. अगर घुसवा लेती तो फिर माँ बनने का डर था. पिंकी को बोलती तो बोलती कैसे? वो पहले ही मुझे कोस रही होगी. अचानक सर मेरी तरफ लपके तो मेरे मुँह से घबराहट में निकल ही गया- पिंकी … प्लीज़!
पिंकी ने मेरी तरफ घूर कर घृणा से देखा और फिर अपना चेहरा दीवार की तरफ कर लिया.

सर अब ज़्यादा मौके देने के मूड में नहीं थे. उन्होंने मुझे पकड़ कर सोफे पर गिरा लिया और मेरी टाँगें पकड़ कर दूर-दूर फैला दीं. इसके साथ ही मेरी योनि की फाँकें अलग-अलग होकर सर को आक्रमण के लिए आमंत्रित करने लगीं.
सर ने जैसे ही घुटने सोफे पर रखे, मैं आगे होने वाले दर्द की सोच से बिलख पड़ी- पिंकी … प्लीज़ … बचा ले मुझे!”

सर ने मेरे आह्वान पर मुड़कर पिंकी को देखा तो मेरी भी नज़र उसी पर चली गयी. मगर वह चुपचाप खड़ी रही।
“ऐसी सहेलियाँ बनाती ही क्यूँ है जो तेरे सामने खड़ी होकर भी तेरी सील टूटते देखती रहें? ये किसी काम की नहीं है. तुझे चुदना ही पड़ेगा आज …” सर ने कहा और मेरी जांघों को फैलाकर फिर से मुझ पर झुकने लगे. मैं बिलख रही थी. पर वो कहाँ सुनते? उन्होंने वापस अपना लंड मेरी योनि पर टिकाया ही था कि अचानक पिंकी की आवाज सुनकर पलट गये.

“क्या करना है सर?” पिंकी आँखें बंद किए उनके पास खड़ी थी.
शाबाश … मेरी पिंकी … आजा … एक बार छू कर तो देख … तुझे भी मज़ा आएगा … आजा, मेरे पास बैठ जा!” सर सिसकारी सी लेकर सोफे पर बैठ गये और उसका हाथ पकड़ कर अपने तने हुए लंड की तरफ खींचने लगे.

पिंकी अपने हाथ को वापस खींचने की कोशिश करते हुए बगैर उनकी तरफ देखे बोली- जाने दो ना सर … प्लीज़ … !”

सर ने मेरा हाथ अपने दूसरे हाथ में पकड़ा और मुझे अपने लंड के नीचे लटक रहे ‘गोले’ पकड़ा दिए … मैंने हल्का सा विरोध भी नहीं किया और उनके गोले अपनी उंगलियों से सहलाने लगी. उनका लंड और ज़्यादा अकड़ कर झटके-से मारने लगा.
सर ने पिंकी को खींच कर सोफे पर बैठा ही लिया- अरे देख तो सही … अंजलि कितने प्यार से कर रही है … तू भी करके देख … तुझे मज़ा नहीं आया तो मैं तुझे छोड़ दूँगा … तेरी कसम.

पिंकी का मुँह दूसरी तरफ था. सर ने उसका हाथ खींच कर अपने लंड पर रख दिया और उसके हाथ को पकड़े हुए अपने लंड को आगे पीछे करने लगे- हां, शाबाश … कुछ देर करके देख … बहुत काम की चीज़ है ये … देख … देख!

कहकर जैसे ही सर ने अपना हाथ वहाँ से हटाया तो पिंकी ने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया- बस … अब जाने दो सर … हमें देर हो रही है!
“ठहर जा … तू अभी ढंग से गरम नहीं हुई है ना … इसीलिए बोल रही है … वरना तो …” सर ने कहा और उसको अपनी बांहों में लेकर अपनी तरफ खींच लिया.

“कर … ना … तू क्यूँ रुक गयी?” पिंकी की हालत देख कर मैं सर के गोले सहलाना भूल कर उसकी तरफ देखने लगी थी. सर ने गुर्राते हुए मुझे मेरा काम याद दिलाया और पिंकी को सीधी करके अपनी बाँह के सहारे अपनी गोद में झुला सा लिया. अब पिंकी का चेहरा सर के चेहरे के पास था.

मैंने पिंकी की ओर देखते हुए मुझे सौंपा हुआ काम फिर से चालू कर दिया. सर ने अचानक अपना हाथ पिंकी के कमीज़ में डाला और ऊपर चढ़ा लिया. पिंकी तड़प उठी. उसको सर के हाथ मजबूरी में भी अपनी छातियों पर गंवारा नहीं हुए और वह घबराकर अपना पूरा ज़ोर लगा कर उठ बैठी और अगले ही पल खड़ी हो गयी,
“छोड़ो मुझे … मुझसे नहीं होगा ये सब …”

“तो चूतिया क्यूँ बना रही है साली … अभी तो पूछ रही थी कि क्या करना है … अब तुझसे होगा नहीं … तुझे तो मैं कल देख लूँगा …” सर ने कहा और अपनी खीज मुझ पर उतार दी. मुझे मेरे बालों से पकड़ा और उनको खींचते हुए घुटनों के बल ज़मीन पर अपने सामने बैठा लिया
“ले … तू चूस … बता इसको कितना मज़ा आ रहा है तुझे …” कहकर उन्होंने मुझे आगे खींचा और अपने लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगे.

मैंने एक बार घबरा कर उनको देखा और उनकी आँखों में देखते हुए ही अपने होंठ खोल दिए.
सर ने सिसक कर अपने लंड को एक दो बार मेरे खुले होंठों पर गोल गोल घुमाया और फिर अपना काले टमाटर जैसा सुपारा मेरे मुँह में ठूंस कर बाहर निकालकर कहा- कैसा लगा?
सर ने पूछा।

मैंने सहम कर पिंकी की ओर देखा. वह तिरछी नज़रों से मेरे मुँह की ओर ही घूर रही थी.
बाहर निकाल कर सर ने एक दो बार लंड से मेरे होंठों पर थपकी सी लगाई और मेरे होंठ खोलते ही फिर से वैसा ही किया. इस बार सुपारे से भी कुछ ज़्यादा अंदर करके निकाला था उन्होंने. मुझे लगा जैसे उनके लंड की गर्मी से मेरे होंठ पिघल से गये हों. मेरे मुँह में लार भर गयी.

“बता उसको … कैसा लग रहा है?” सर ने घूर कर पिंकी की ओर देखते हुए कहा और फिर मेरी ओर देखने लगे.
“जी … अच्छा लग रहा है!” मैंने जवाब दिया और फिर से उनके मेरे होंठों पर लंड रखते ही मैंने अपने मुँह को खोल लिया.
“आआआ आआहह … क्या चूसती है तू …” इस बार सर ने अपना लंड मेरे गले तक ठूँस दिया था … जैसे ही उन्होंने बाहर निकाला तो मुझे खाँसी आ गयी और साथ ही आँखों में आँसू भी।

सर का लंड मेरी लार में लिपट कर चिकना और रसीला सा हो गया था. उन्होंने फिर से मेरे होंठों पर लंड को रखा और थोड़ा-थोड़ा अंदर-बाहर करने लगे.
“आह … कितना गर्म मुँह है तेरा। इसको बोल … जितना आज तूने किया है … ये भी करे … वरना मैं तुझे चोद दूँगा आआह्ह्ह!”

कुछ देर बाद उन्होंने मेरे मुँह से लंड निकाल लिया- बोल … क्या कहती है? इसको मनाएगी या अपनी चुदवायेगी?
उन्होंने गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैंने मजबूरी वश पिंकी के चेहरे की ओर देखा तो उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिली मगर उसके हाव-भाव से मुझे लगा कि वह नहीं कर पाएगी.
“मैं कर तो रही हूँ सर!” मैंने डरते-डरते कहा.
“तुझे नहीं पता यार … वो गाना है ना … निगोड़े मर्दों का … कहाँ दिल भरता है? करने को तो मेरी बीवी भी बहुत अच्छे से कर देती है … पर कच्ची कलियों का मज़ा कुछ और ही होता है. समझी? और फिर ‘नया माल नखरे करके मिले तो … उसके तो कहने ही क्या!”

फिर सर बोले- चल खड़ी हो जा।
अब मेरे पास यही आखिरी मौका था सर को मनाने के लिए. मैंने एक बार पिंकी की तरफ देखा वह सर झुका कर दूसरी तरफ देख रही थी।

मैं अपना मुंह धीरे से सर के कानों के पास ले गई और सर से धीरे से बोली- सर प्लीज आज मुझे और मेरी सहेली को जाने दीजिए कल परीक्षा के बीच में मैं आप से मिलूंगी. आपका जो मन करेगा, मेरे साथ कर लेना। प्लीज सर …

सर भी शायद मेरी मज़बूरी समझ गए। वो भी मेरी कुंवारी सील तोड़ना चाहते थे, इसी के लालच में वो भी कुछ शांत हो गए. फिर उन्होंने कहा- ठीक है लेकिन अभी के लिए तो मुझे शान्त कर दो। इतना बोल कर उन्होंने मुझे नीचे बैठा दिया और फिर से मेरे मुंह में अपना लंड डालकर मेरे मुँह को चोदने लगे।

दो-दो कमसिन जवानियों की अमरुद टटोल टटोलकर वह बहुत गर्म हो चुके थे इसलिए वह मेरे मुँह की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पाए और जल्दी ही उन्होंने अपना जूस मेरे मुंह में छोड़ना शुरू कर दिया। मैं जल्दी-जल्दी उनका रस पी गई ताकि पिंकी को ज्यादा कुछ मालूम न पड़े।