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अपडेट 43
बलदेव - महारानी इश्क़ में आगे बढ़ने लगे
पारस
शमशेरा से अपनी तारीफ़ सुन कर हुरिया को आज सालो बाद एक अलग एहसास हो रहा था उसे आज फिर ऐसा महसूस हुआ जैसे कि वह दुनिया सबसे हसीन, सबसे खूबसूरत औरत है।
शमशेरा हुरिया को घूरते हुए तारीफ कर के निकल जाता है।
पारस के राजदरबार में बैठे सुल्तान मीर वाहिद और देवराज कुबेरी पर आक्रमण करने की तयारी कर रहे थे उतने में शमशेरा वहा पहुँचता है।
शमशेरा: सलाम अब्बा!
मीर वाहिद: सलाम बेटा जानी!
शमशेरा: सलाम देवराज जी!
देवराजः सलाम युवराज!
शमशेर: तो तय्यारी कहा तक पहुची?
देवराज: हो जाएगी आप फ़िक्र ना करे!
शमशेरा: आपको एक बात कहू।
देवराज: हाँ भाई. कहो!
शमशेरा: मैं तुम से बोलना भूल गया पर तुम्हारी बहन देवरानी तुम्हें बहुत याद करती हूँ।
देवराज: क्या कह रहे हो मैं समझा नहीं?
मीर वाहिद: बेटा तुम्हें कैसे पता?
शमशेरा: क्योंकि मैं घटराष्ट्र गया था जब मैं कुबेरी के खज़ाने की जासूसी करने गया था।
देवराज ये सुन कर आचार्य चकित हो जाता है।
देवराज: कैसी है। मेरी बहन देवरानी, ख़ुश तो है, ना वह?
शमशेरा: हाँ पर अपने भाई से मिलने को बेचैन-सी है । पर तुम्हें तो उसकी चिंता ही नहीं है ।
देवराज: ऐसा नहीं है।
शमशेरा: ऐसा नहीं है। तो मेरे ख्याल से तुमको उससे मिलना चाहिए!
देवराज: पर कैसे युवराज, मिलना तो हम भी चाहते हैं। मैंने तो बहन देवरानी से कई वर्षो से देखा नहीं है ।
शमशेरा: देखो भाई. हमारे सलाह मानो तो तुम्हारा वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं क्यू के राजा रतन सिंह जानता है। की हम उसके राज्य कुबेरी को लूटना चाहते हैं और वह आपको छोड़ेगा नहीं।
देवराज: तुम सही कह रहे हो।
शमशेरा: तुम चाहो तो कुछ दिनों के लिए अपनी बहन को यहाँ बुला सकते हो ।
देवराज: तुम्हारी सलाह तो अच्छी है।
मीर वाहिद: हाँ और हम भी उसे देख लेंगे, जिस से अगरचे, हमें कुबेरी के साथ-साथ घाटराष्ट्र पर हमला करना पड़ा तो हम में से कोई-कोई उसे नुक्सान नहीं पहुँचाएंगा।
देवराज: हमारे परिवार के लिए सोचने के लिए आपका धन्यवाद सुल्तान!
मीर वाहिद: आपका परिवार भी हमारा परिवार है राजा देवराज!
देवराज: धन्यवाद सुल्तान, मैं आज ही अपनी बहन देवरानी को निमंत्रण भेजता हूँ।
घाटराष्ट्र
दोनों प्रेमी प्रेमीका आज मिल कर बहुत खुश थे और आज हुए मिलाप से दोनों को बहुत खुशी और संतुष्टि थी। बलदेव और देवरानी आने वाली कठिनाईयो से अनजान प्यार के समुंदर में गोते लगाने के लिए तैयार थे। उन्हें डर खौफ अब नहीं था और बलदेव और देवरानी को पारस बुलाने के लिए उधर देवराज अपनी तैयारी कर रहा था।
एक नये रिश्ते के उदय के साथ सुबह होती है। एक न्य रिश्ता जिसे दोनों ने दिल से कुबूल कर लिया था, देवरानी उठ कर किसी दुल्हन की तरह तैयार होती है और अपने गले में बलदेव का दिया हुआ सोने का हार पहन लेती है।
देवराज भी सुबह उठ कर अपना व्यायाम करता है। फिर नहा धो कर वैध जी की जड़ी बूटी खा कर अपने कक्ष में से बाहर निकलता है। तो उसके पिता और उसकी बड़ी माँ भोजन करने के लिए बैठी हुई थी और पास में वह उसकी दादी जीविका भी थी जो आपस में कुछ बातें कर रही थी।
राजपाल: अरे बेटा आओ!
बलदेव सब के चरण छू कर आशीर्वाद लेता है।
राजपाल: माँ देखो आपका पोता कितना बड़ा हो गया है। अब ये मेरा बेटा नहीं भाई लगता है।
जीविका: हाँ (मन में: इसीलिए ये तुमहि पत्नी को-को खूब चोदता है, चाटता है।)
राजपाल: इसके विवाह के लिए अब लड़की ढूँढनी होगी।
जीविका: हाँ जल्दी ढूँढ लो बेटा राजपाल कहीं देर न हो जाए! और बलदेव को गौर से देख कर
(मन में: जल्दी कर लो बेटा राजपाल! कही ये तुम्हारी पत्नी को ही अपनी पत्नी ना बना ले ।)
बलदेव ये सुन कर शर्मा कर बोलता है
बलदेव: नहीं पिता जी अभी तो हम सिर्फ 18 के हैं।
राजपाल: पर अब तो हट्टे कट्टे और पूरे पुरुष दिखते हो।
उतने में देवरानी रसोई में से आती है।
देवरानी: क्या चल रहा है। किसकी सगाई करवा रहे हो
बलदेव: माँ देखो ना ये लोग कह रहे हैं मुझे शादी करने के लिए!
सृष्टि: हाँ तो इसमें गलत क्या है। बेटा बलदेव?
देवरानी: नहीं, मेरा बच्चा अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है ।
बलदेव: हाँ मुझे अभी नहीं करनी शादी!
जीविका: (मन में) हाँ इसे तो जीवन भर अपनी माँ को चोदना है । क्यू करेगा शादी ये कमीना।?
सृष्टि: अच्छा ठीक है। ये तो बताओ तुम्हें कैसी कन्या चाहिए?
बलदेव: ऐसी... (देवरानी को देखते हुए आख मार देता है।)
देवरानी उसको आख मरते देख लेती है। पर और कोई नई देख पता और देवरानी अपने दोनों आँखों को फाड़े खाना पड़ोसने में लगी हुई थी ।
राजपाल: मुझे कुछ समझ नहीं आया?
बलदेव: पिता जी जैसी माँ है। वैसी काम काजी सबका ख्याल रखने वाली।
जीविका: (मन में) ये सीधा बोल ना के माँ ही चाहिए तुझे अपनी हवस मिटाने के लिए.
सृष्टि: हम्म्म! (अंदर से देवरानी की तारीफ सुन उसके अंदर की सौतन जग जाती है पर वह चुप रहती है।)
राजपाल: अरे देवरानी! आज बड़ी सुंदर लग रही हो और ये गले में हार कहाँ से लाई?
जीविका: (मन में) कहाँ से लाएगी इसके यार बलदेव ने दिया है। बुद्धू राजपाल!
देवरानी: इसके बारे में आप अपने पुत्र से पूछिए और मुस्कुरा कर बलदेव की ओर देखने लगी।
इस बार बलदेव की फ़सने की बारी थी।
बलदेव: (मन में) ये देवरानी भी बड़ी शरारती होते जा रही है। जब इसे चोदना शुरू करुंगा तब इसकी सब शरारत निकाल दूंगा।
जीविका: बोलो बलदेव क्या बात है इस हार के पीछे?
बलदेव: दादी ये प्रेम की निशानी है।
जीविका ये उत्तर सुन कर बस देखती रह जाती है।
जीविका: क्या?
बलदेव: दादी ये मैंने अपनी मेहनत के दम पर खरीद कर माँ को दिया है। जब मैं पांच वर्ष के लिए वन में गुरु जी के पास गया था तो वहा लकड़ी काटने का काम किया था जिस से हमें कठौर और परिश्रम करना सिखाया गया था और हमें उसकी मजदूरी मिलती थी । उससे मैंने और मेरे सभी मित्रो ने माँ को उपहार भेंट दिया है ।
जीविका ये जवाब सुन कर चुप बैठ जाती है।
उतने में कमला आ जाती है और खाना परोसने लगती है।
कमला: अरे भाई. अगर सबको उपहार मिल रहा है तो मेरा कहाँ है?
बलदेव: आप अपना उपहार वैध जी से ले लो!
कमला: क्या...?
बलदेव: हाँ वह कह रहे थे कि कमला बहुत मेहनत करती है। कुछ ना कुछ मिलना चाहिए उसे!
कमला बात को समझ जाती है कि बलदेव का निशाना किधर है।
कमला: अब युवराज तो जवान है, वह अपनी माँ को दे रहे हैं वैसा हमें कहा मिलेगा वैध जी से!
बलदेव: वो क्यों?
कमला: भला वैध जी कहा अब कहाँ मेहनत कर कमाई कर के मेरे लिए लाएंगे ऐसा उपहार और उनसे मिलेगा भी तो वह खरा सोना नहीं मिलेगा!
देवरानी समझ जाती है के बलदेव जवान है और कस कर मेहनत कर सकता है पर वैध नहीं कर सकता।
कमला: है ना महारानी देवरानी जी! बलदेव कस से मेहनत करता है ना?
देवरानी: हं हं...करता है।...!
जीविका: (मन में) अब वैध जी कहा रगड़ के बलदेव जैसा चोद पाएंगे देवरानी को! पर ये बात कमला कैसी जानती है।
बलदेव: कमला खरा सोना नहीं पर चांदी तो मिल ही सकती है तुम्हें वैध जी से!
कमला मुस्कुराती है।
कमला: युवराज जी!
राजपाल: अरे! क्या बात को बढ़ा रहे हो तुम सब चुपचाप खाओ!
सृष्टि: आज तुमने पूजा नहीं की देवरानी?
देवरानी: ऐसा कैसे हो सकता है कि में पूजा करना भूल जाउ?
प्रारंभ: आज तुम्हारा प्रसाद नहीं मिला।
देवरानी: हाँ वह प्रसाद देना भूल गई. मैं अभी आपको ला कर देती हूँ रखा है।
शुरुआत: कोई बात नहीं, बाद में मैं खुद तुम्हारे कमरे में आ कर ले लुंगी ।
राजपाल भोजन समाप्त कर उठता है।
राजपाल: मुझे आज सेनापति के साथ, काम से पड़ोस के राज्य में जाना है।
बलदेव: तो कब तक लौटोगे आप?
देवरानी बलदेव को वह देख रही थी जो खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
राजपाल: संध्या हो जाएगी।
शूरुति: ठीक है। महाराज आप जाये हम है यहाँ!
राजपाल चला जाता है और धीरे-धीरे सब भोजन समाप्त कर उठ कर जाने लगते हैं।
अब सिर्फ बलदेव और देवरानी बच जाते हैं।
बलदेव: अब आप भी खा लो।
देवरानी: मैं खा लुंगी, मेरी चिंता मत करो।
बलदेव: अब प्रेम आपसे करते हैं। चिंता पड़ोसियो की थोड़े ही करेंगे।
देवरानी शर्मा कर।
देवरानी: हट! बड़ा आया प्रेम पुजारी।
देवरानी थाली ले कर बैठ जाती है और खाने लगती है।
बलदेव: ये हुई ना बात अब मेरी बात मानने की आदत सीख लो।
देवरानी: अगर नहीं मानु तो?
बलदेव: नहीं मानी तो, मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा कि तुम खुद ही मान जाओगी।
बलदेव अब देवरानी की आंखो में देख रहा था।
अपने प्रति अपने बेटे का इतना प्यार देख कर देवरानी खाते हुए रुक गई थी । बलदेव अब अपने हाथ से रोटी का निवाला बना कर देवरानी के मुँह में रखता है और उसको खिलाने लगता है।
देवरानी: इतना प्यार मत करो, की संभल नहीं पाओ तुम!
बलदेव: मुझे तुम्हारे प्यार में पागल होना है।
देवरानी: पागल तो हो ही गए हो तुम!
देवरानी के पीछे जा कर बलदेव उसे गले लगा लेता है ।
बलदेव: अभी तुमने पागलपंती देखी कहा है ।
फिर बलदेव देवरानी को अपने गोद में उठा लेता है और-और उसे गोद में उठाये देवरानी के कक्ष में चला जाता है। उसने दरवाज़ा भी लगा देता है।
बलदेव गोद में उठाए ला कर देवरानी की कक्ष में आ कर देवरानी को खड़ी कर देता है। फिर देवरानी के एक हाथ को पकड़ कर अपने हाथ से मसलता है और उसके पेट के ऊपर उसके नाभि को छूने लगता है।
देवरानी का पल्लू अब खिसक जाता है और उसके दोनों बड़े वक्ष सदा की तरह बाहर आने की गुहार लगा रहे थे।
बलदेव: माँ!
देवरानी: हम्म!
बलदेव: कैसा मेहसूस कर रही हो मेरी बाहो में?
देवरानी: सुरक्षित! "आह!" और सिसकी लेती है क्योंकि बलदेवा अब अपना लंड उसके पीछे चुभा रहा था।
"आह! उफ्फ्फ! बलदेव!"
बलदेव: हम आपसे बहुत प्रेम करते हैं।
देवरानी: मैं भी तुमसे प्रेम करने लगी हू। बलदेव तुम मेरे पहले प्यार हो!
ये सुनते हैं "उम्म्हा मेरी रानी!" बोल बलदेव देवरानी के कान के जड़ में चूमता है। जिस्मो की इस तरह रगड़ने से देवरानी की चूत पानी छोड़ने लगती है और उसके आख बंद होने लगती हैं।
बलदेव: तुम इस हार में बला की सुंदर लगती हो!
देवरानी: कितनी सुंदर?
बलदेव: इतनी जितनी पूरी दुनिया में कोई महिला नहीं होगी!
देवरानी: पर तुम्हें आज नहीं तो कल, शादी तो करनी ही है। सबने आज से ही पूछने शुरू कर दिया है ।
बलदेव: माँ सुशह्ह्ह! ऐसा कभी ना कहना। किसी और का होने से पहले मैं अपनी जान देना पसंद करूंगा!
बलदेव की बात सुनकर देवरानी पलट कर उसको जोर से पकड़ कर गले लग जाती है।
"बलदेव मेरी जान!"
"पर तुम्हें करना तो होगा वह एक ना एक दिन।"
बलदेव: तो तुमसे करुंगा विवाह!
ये सुन कर देवरानी के होश उड़ जाते हैं।
बलदेव: बोलो करोगी विवाह मुझसे
देवरानी: पर ये कैसे मुमकिन है।
बलदेव: सब मुमकिन है। अगर तुम मेरा साथ दो
फ़िर से देवरानी को अपने बाहो में भर कर अपने लौड़े को उसके मोटे बड़े मटके जैसे गांड पर टिकाए उसके दूध को घूर रहा था और देवरानी विवाह की बात सुन कर सोच में डूब गई थी।
बलदेव: तुम्हारा अंग-अंग संगमरमर-सा है। मेरी रानी और उसके दूध पर से पल्लू हटा देता है।
बलदेव: तुम्हारे ये कितने आकार में हैं।
ये सुन कर देवरानी थोड़ा शर्मा कर दूसरी तरफ देखने लगी और बलदेव हिम्मत कर के उसका पल्लू खोलने लगता है।
बलदेव: शर्मा रही हो तुम अपनी जान से!
देवरानी अपनी आखे फिर बंद कर लेती है और अपने स्तनों को तारीफ सुन कर अंदर वह अंदर बहुत खुश थी।
देवरानी के वक्ष किसी बड़े नारियल की तरह सर उठाए हुए थे और उसके ब्लाउज में उसके निपल भी साफ पता चल रहे थे"माँ मैं तुम्हारे ये आम को चूस लूंगा, सारा रस पी लूंगा, ये कहीं से भी दशहरी आम से छोटे नहीं बल्कि दुगने है।"
देवरानी: इश्ह्ह1"
बलदेव NE अब उसकी साडी को लगभाग खोल दिया और गोल घूम के उसके पीछे आ गया था।
बलदेव की नज़र अब पेटीकोट में छुप नहीं रहे बड़े तरबूज़ से बड़ी गांड पर टिक गयी थी ।
बलदेव: माँ ये तरबूज़ तुम्हारे कितने कड़े और मज़बूत हैं। इसे भी फोड़ कर मैं इसका भी रस पीऊंगा ।
देवरानी बूत बने खड़ी थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे इसलिए चुपचाप आनंद ले रही थी।
अब साडी को नीचे फेंक कर बलदेव ऊपर से नीचे तक देवरानी के हर अंग को खा जाने वाली नजर से देखता है। फिर बलदेव माँ की गेहरी नाभि में अपनी उंगली डाल देता है।
देवरानी: ईशहह बलदेव! "
फिर वह अपनी उंगली धीरे-धीरे देवरानी के पेट से ऊपर की ओर ले जा रहा था।
देवरानी के. सांस तेजी से चलने लगती है।
अब बलदेव की उंगली उसके बड़े स्तनों के बीच की खाई में पहुँच जाती है।
देवरानी आख बंद किये हुए थी उसकी सांस भारी हो गयी थी।
देवरानी: उह्ह्ह! आआआह1 बलदेव!
और उसके दूध ज़ोर से ऊपर नीचे हो रहे थे।
बलदेव: माँ आज तुम दुल्हन लग रही हो और ये तुम्हारी संकरी कमर तो तुम्हारे दूधिया पेट को खूबसूरत बना रही है और आपकी चिकनी जंघ भी खूब भारी, और लचीली लगती है।
देवरानी: ईश बलदेव बस!
बलदेव तो मानने को बिलकुल तैयार नहीं था और अपने दो उंगली उसके दोनों वक्षो के बीच में फंसाया रहा जिस से उसे अपनी माँ के बड़े दूध का नरम एहसास मिल रहा था।
देवरानी अपना हाथ ले जा कर बलदेव के हाथ पर रख कर पीछे करती है।
देवरानी: बेटा मान जा!
बलदेव देवरानी की आंखो में देखता है और अपने दोनों हाथो को उसके गालो पर ले जाता है ।
बलदेव: बोलो आज तुम इतनी सजी सावरी क्यू हो?
बलदेव उसको दोनों गालो को दबाता है।
देवरानी (मन में) : "कमला सही कहती थी इसके जितने बड़े और कठौर हाथ किसी के नहीं ।"
देवरानी: अपने प्यार के लिए सजी हूँ!
अपने यार के लिए संवरी हूँ।
अब देवरानी भी हल्का मेहसूस कर रही थी । उसकी माँ बेटे वाली लज्जा थोड़ी-सी निकल गई थी।
बलदेव: कौन है। तुम्हारा यार?
देवरानी: तुम हो बलदेव!
इतने में दरवाजा कोई खटखटाता है।
बलदेव और देवरानी सीधे होते हैं।
देवरानी: कौन है, बाहर?
बाहर से आवाज़ आती है।
"मैं हु कमला महारानी भारी दोपहरी में काहे दरवाजा लगाय लिए हो ।"
बलदेव: ये कमला भी ना!
देवरानी बलदेव को देख मुस्कुराती है।
देवरानी: जाओ अब जा कर दरवाजा खोलो!
बलदेव: नहीं आप जाओ माँ और उसको यहाँ से भगाओ!
देवरानी: मुस्कुराते हुए बेटा तुम मेरी हालत देखो वह क्या सोचेगी और बाहर से कोई आ जा रहा होगा तो वह भी देख सकता है मुझे।
बलदेव थोड़ा गुस्से में दरवाजा खोलता है।
कमला देखती है की ये तो बलदेव है और आवाज तो देवरानी ने दी थी। उसने समझने में देर नहीं लगती है कि अंदर क्या चल रहा है।
बलदेव: क्या है। कमला?
कमला: वो वह मैं मालिश...!
मुस्कुराते हुए कहती हैं और अंदर उसकी नज़र जाती है जहाँ पर आधी नंगी देवरानी खड़ी थी और उसकी अस्त व्यस्त बाल साडी और ब्लाउज का हाल देख समझ जाती है कि गलत समय आकर कार्यकर्म खराब कर दिया है।
बलदेव: तुम जाओ मालिश में कर दूंगा।
और बलदेव के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
कमला मुस्कुराती हुई चली जाती है।
फिर बलदेव फिर से दरवाजा बंद करता है।
जारी रहेगी