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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 42
बलदेव का इश्क़, शमशेर का मंसूबा
देवरानी और बलदेव महल की तरफ नदी पार से आ रहे थे, महल के पास पहुँच कर ।
बलदेव: कल मेरा दिया हुआ गले का हार पहनना।
देवरानी: क्यों पह्नु?
बलदेव: क्योंकि मैं कह रहा हूँ।
देवरानी थोड़ी शराराती मुस्कान के साथ।
"आप हमारे हैं। कौन"?
बलदेव महल के पीछे हे देवरानी का हाथ पकड़ के अपने ओर खींचते हुए ।
"आपके सैंया है हम!"
देवरानी शर्मा जाती है। "बेशरम! बड़ा आया अपनी मैया का सैया बनने वाला ।"
बलदेव: अब बन चूका हूँ मैं अपने मैया का सैयाँ ।
और जल्दी ही देवरानी उसके बाहो से निकल कर ।
"सैंया जी इतनी जल्दी ठीक नहीं, कहीं कोई सुनना ले।"
बलदेव: सुन लेने दो अगर कोई सुनता है तो!
देवरानी: तुम से बेहस करना बेकार, हाँ पहन लूंगी।
बलदेव मुस्कुराता है और देवरानी पिछले दरवाजे से महल में घुस जाती है और बलदेव आगे के दरवाज़े की ओर चलने लगता है।
जैसा हे बलदेव महल के सामने आता है। राजपाल सामने टहलता हुआ दिखाई पड़ता है।
बलदेव झट से अपने पिता जी के चरण छू कर।
बलदेव: पिता जी प्रणाम!
राजपाल: आयुष्मान भवः:
राजपाल: अरे बेटा इतनी रात गए कहाँ घूम रहे हो?
बलदेव: वो मैं... (मन मैं: अब कैसे बताउ के मैं माँ से मिलने गया था ।)
राजपाल: बोलो भाई....इतनी रात गए घर लौट रहे हो किसी कन्या का चक्कर है क्या?
बलदेव: नहीं पिता जी!
राजपाल: अरे शर्माऔ मत बताओ । हम विवाह करवा देंगे।
बलदेव: (मन में: अब कैसे बताऊँ कि मैं तुम्हारी पत्नी से मिलने गया था और मैंने उसको वहाँ दबाया था, मसल के देखा है । पिता जी!)
राजपाल: कहो भी!
बलदेव: (मन मैं-पिता जी अगर सच बोल दूं तो अब क्या तुम मेरी माँ से मेरा विवाह करवाओगे?)
बलदेव: नहीं पिता जी वह तो मैं सीमा पर सुरक्षा देखने गया था कि सैनिक कैसे काम कर रहे हैं।
राजपाल: वाह! मेरे लाल तुम सही राजधर्म निभा रहे हो।
बलदेव: (मनमें) हाँ जो धर्म तुमने नहीं निभाया उसकी पूर्ति में करूंगा और माँ को खुश रखूंगा।
फ़िर दोनों इधर उधर की बातें करने लगते हैं।
देवरानी महल के अंदर घुसते ही अपने कक्ष में जाने लगती है तो उसे जीविका दिखायी देती है।
जीविका: बहु!
देवरानी: जी माँ जी!
जीविका की पैनी भरी नजर उसके उलझे हुए बालो और अस्त व्यस्त साडी पर पड़ती है।
जीविका: (मन में-लगता है।ये बलदेव से खूब मस्ती कर रही है और शायद चुदवा भी लीया हो।)
देवरानी: क्या हुआ है दर्द हो रहा है। माँ जी क्या हुआ है?
जीविका: होना क्या है। बहू, तुम इतनी देर रात गई कहा थी?
देवरानी थोड़ी हड़बड़ा जाती है। "वह माँ जी मैं महल के पीछे बाग में बैठी थी"।
जीविका: इतनी रात में क्या तारे गिन रही थी?
देवरानी: वो बस नींद नहीं आ रही थी तो चली गई. (मन में: ये जीविका तो मेरे पीछे वह पड़ गई अब क्या कहूँ इसके पोते को मुझसे प्यार है और उसने ही मुझे प्यार किया है। उसने ही मुझे नदी पर बुलाया था पर इस बूढ़ी की मेरी साडी पर ही नज़र है।)
जीविका: ये ब्लाउज तुमने पहली बार पहना है ये तो छोटे हो गए थे ना ।
देवरानी: हाँ पर मैंने सोचा ऐसे फेकने से अच्छा है इसे एक बार तो पेहन लू।
(मन में-अब मैं तुम्हें क्या बताउन तुम्हारा पोता बलदेव इस ब्लाउज में सिर्फ मेरे दूध देख कितना पागल हो गया था) ।
जीविका: ठीक है। पर समय की सीमा मत लाँघो बहु!
देवरानी: जी माँ जी!
और देवरानी अपने ज़ोर से धड़कते सांसों को रोकते हुए अपने कक्ष में प्रवेश करती है।
फिर आज के दिन की घटनाओ को याद कर के देवरानी खुश थी और उसे नींद नहीं आ रही थी उधर बलदेव भी अपने पिता के साथ महल में आ जाता है और अपनी कक्ष में सोने की तैयारी करने लगता है।
पारस में
राजदरबार में मीर वाहिद अपने वजीर और मंत्री के साथ देवराज का यानी कि देवरानी के भाई का इंतजार कर रहे थे।
महल में शमशेरा तय्यार हो रहा था राजदरबार में देवराज का स्वागत करने के लिए. उसके दिमाग में अब सिर्फ हुरिया बसी रहती थी। उसने जब से अपनी अम्मी हुरिया और अपने बाप मीर वाहिद की चुदाई देखी थी वह भूल नहीं रही थी।
शमशेरा अपने आभुषण बदलते हुए सोच रहा था ।
शमशेरा: (मन में) अम्मी तो कयामत है। हिजाब में तो कुछ पता नहीं चलता है। अब्बा कसम से किस्मत वाले हैं।
पर एक बात शमशेरा को खाये जा रही थी, उसने उसकी अम्मी को मिन्नत करते हुए देखा था पर उसके अब्बा फिर भी उनसे जल्दी दूर हो गए!
शमशेरा: (मन में) अम्मी ने कितनी मिन्नते की थी अब्बा से की जल्दी फारिग मत होना पर अब्बा ने फिर भी अम्मी को प्यासा छोड़ दिया।
शमशेरा तैयार हो कर अपने मेहमान देवराज का स्वागत करने के लिए जाता है। उसके रास्ते में उसकी अम्मी का कक्ष था जिसका दरवाज़ा खुला हुआ था।
शमशेरा कुछ सोचता है। फ़िर दरवाज़े के पास जाता है तो देखता है। उसकी अम्मी आईने के सामने सज सवर रही थी।
हुरिया के बड़े दूध और थोड़ा चरबीदार पेट और मंसल चुतड एक तरफ से दिखाई पढ़ता है। जिसे देख शमशेरा वही खड़ा हो देखता है ।
शमशेरा: खुदा माफ़ करे! पर इतने बड़े दूध! ऐसी बीवी को भला कोई कैसे प्यासा वह छोड़ सकता है!
शमशेरा बहुत चालबाज़ किस्मत का इंसान था जो जासूसी करने में अव्वल था पर उसे भी लगा ये सही समय नहीं है और अपने दिल को मना कर वह वहाँ से राजदरबार चला जाता है।
इधर हुरिया थोड़े देर अपने आप को आईने में निहारती है।
"कसम से मैं आज भी उतनी ही खूबसूरत हूँ जितनी मैं तब थी जब एक वक्त में मैं मिश्र की सबसे खूबसूरत लड़की थी पर अब कोई तारीफ भी नहीं करता।"
"इसकी वजह ये हैकी वह मेरा घर था जहाँ मैं बिना हिजाब और नकाब के भी रह लेती थी जिससे मेरे जिस्म की खूबसूरती सब देख लेते थे पर ससुराल में आकर बंदिशे लग गई."।
वो अपना पास रखा काला हिजाब पहन लेती है और वह भी राजदरबार चली जाती है।
राजदरबार में हुरिया पहुचती है तो देखती है। सब बैठे हैं। शमशेरा अपनी जगह छोड़ कर ।
शमशेरा: अम्मी जान यहाँ बैठिये ।
हुरिया: जी बेटा।
शमशेरा: (मन में) अम्मी तुम्हारा नाम हूर-ए-हाँ सही रखा गया है । इस हिजाब में तो तुम्हें कोई भी एक मामूली औरत समझेगा पर दरअसल तुम बला की खुबसूरत हो!
इतने में कुछ लोगों की आवाज आती है और दरबारी देवराज का स्वागत करते हैं।
मीर वाहिद खड़ा होता है और उसके साथ ही सभी दरबारी भी खड़े हो जाते हैं ।
देवराज सामने से चल कर आ रहा था ।
हुरिया: कितना हट्टा कट्टा है। देवराज! (मन में)
मीर वाहिद: इस्तकबाल है आप का देवराज खुशामदीद!
देवराज: धन्यवाद! हमारे स्वागत के लिये । जहाँ पनाह!
देवराज और मीर वाहिद मिलते हैं। फ़िर देवराज शमशेरा से मिलता है।
शमशेरा: वैसे काफ़ी देर कर दी तुमने आने में।
देवराज: हाँ थोड़ी देर तो हुई!
मीरवाहिद: तो आगे का क्या इरादा है। हमें "कुबेरी" राजा रतन सिंह का राज्य लूटना है।
देवराज: मेरे जीजा जी राजा राजपाल, राजा रतन सिंह के मित्र है और अगर हम कुबेरी पर हमला करेंगे तो वह अवश्य उनका साथ देंगे।
शमशेरा: हमें किसी भी कीमत पर वहाँ का खज़ाना चाहिए!
देवराज: इन्हे समझाई जहाँ पनाह! आपका शहजादा जल्दी उत्तेजित हो जाता है।
मीर वाहिद: बेटा शमशेरा शांत रहो!
देवराज: मैं इसी शर्त पर आपका साथ दे सकता हूँ!
मीर वाहिद: हमें आपकी हर शर्त मंजूर है। बोलो क्या शर्त है?
देवराज: वहाँ के आम लोगों को मारा नहीं जाएगा और खासकर औरतें और बच्चों पर कोई जुल्म नहीं करेगा।
मीर वाहिद: हमें मंजूर है।
देवराज: मेरी बहन देवरानी और जीजा राजपाल के ऊपर कोई भी भूल से भी हमला ना करे! वह मेरा परिवार है।
मीर वाहिद: हाहाहा! जब वह तुम्हारा परिवार है। तो हमारे भी वह दूसरे नहीं है। उनको हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी खुद मीर वाहिद लेता है।
देवराज: फिर मेरी और कोई इच्छा नहीं है ।
"सेनापति युद्ध की तैयारी करो हमें दिल्ली के शाहजेब से पहले कुबेरी का खजाना लूटना है।"
सेनापति: जी जहाँ पनाह!
शमशेरा: और ऐसे शाहजेब से तुम्हारी पुरानी दुश्मनी भी निकल जायेगी ।
देवराज: शाहजेब को अब पता चलेगा मैं क्या हूँ, उसके खजाना पाने के सब मुराद उसके दिल में ही रह जाएंगे ।
मीर वाहिद: हम जरूर बादशाह शाहजेब के दिल्ली से निकलने से पहले ही हम कुबेरी पहुँच जाएंगे । अभी आप जा कर आराम कीजिये राजा देवराज।
देवराज: जी जहाँपनाह!
देवराज चला जाता है और फिर धीरे-धीरे सब उठ कर जाने लगते हैं। हुरिया अपने हिजाब में अपने कक्ष की ओर जा रही है और उसके पीछे शमशेरा आ रहा था।
हुरिया की लचकती गांड जो हिजाब से ढके रहने के बाद भी जाहिर हो रही थी उसपर नजर टिकाये शमशेरा हुरिया के पीछे-पीछे आ रहा था।
शमशेरा: (मन में) क्या कातिल गांड है, उफ़ अम्मी जान!
हुरिया अपनी कक्षा में पहुँचती है।
हुरिया: "उफ़ इतनी गर्मी लगती है इस हिजाब में!"
तभी पीछे से!
शमशेरा: तो कौन कहता है, पहनो इसे?
हुरिया: अरे बेटा तुम 1
शमशेरा मुस्कुरा कर सामने आता है। ।
हुरिया: ये तो औरत का गहना है और खुदा की ख़ुशी इसमें ही है। एक इज्जतदार औरत का खजाना यही है।
शमशेरा: अम्मी मैं ये नहीं कहता की आप गैर के पास जाएँ तो भी हिजाब ना पहने! पर अपनों के पास तो आप कम से कम थोड़ी-सी...
(मन में: तुम तो हमें उस खज़ाने को छुपाने की कोशिश करती हो जो छुपना जानता ही नहीं है।)
हुरिया भी जो पिछले 25 साल से हिजाब पहन रही थी जब से उसकी शादी हुई थी । वो खुश हो कर हिजाब ऊपर कर निकालने लगती है और शमशेरा एक-एक सेकंड लगातार उसकी तरफ ही देख रहा था।
अब हुरिया अपने हाथ उठा कर हिजाब निकाल देती है। पर उसके दोनों हाथ अब भी ऊपर थे । इससे उसके बड़े दूध तन के खड़े हो जाते हैं मानो किसी बड़े नारियल की तरह कह रहे थे आओ मुझे मसलो!
शमशेरा: (मन में) ए-खुदा क्या चीज़ है ये! लगता है अब्बा ने तो इन्हे ढंग से मसला भी नहीं और उसके दूध को देखता रहता है। फ़िर उसकी गांड देख उफ़ ये तो ऐसी है जैसे पीछे से किसी ने कटवा के गद्दा लगा दिया है।
शमशेरा का लंड खड़ा हो जाता है। हुरिया अब सीधी होती है।
हुरिया: कैसी दिखती हूँ मैं?
शमशेरा: कयामत...!
(हूरिया मन में अब पहले वाली कयामत नहीं रही अब तो 45 साल की हो गई हूँ!)
हुरिया ये सुन कर हैरानी से पूछती है।
"क्या कहा?"
शमशेरा: मैं ये कह रहा था कि आप परी या हूर जैसी हो जिसका मुकाबला इंसान क्या हूर परी भी नहीं कर सकती।
ये सुन कर हुरिया मुस्कुरा देती है...।
जारी रहेगी