बुढ़े मालिक का काम वाली से प्यार

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बुजुर्ग मालिक का घर की काम वाली से लगाव और संभोग.
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कहानी एक बुजुर्ग आदमी की जिन्दगी से संबंधित है। अकेले रह जाने पर उस ने अपने घर का काम करने के लिये अपने गाँव से एक महिला को बुला लिया था। बुजुर्ग के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उन का साथ देने के लिये कोई नहीं था, इसी लिये उन्हें अकेलापन खाने के दौड़ता था। इस से बचने का कोई उपाय उन के पास नहीं था। किताबें पढ़नें, टीवी देखने में ही उन का ज्यादातर समय कट जाता था। खाना समय पर मिल जाता था। किसी अन्य वस्तु की उन्हें आवश्यकता नहीं लगती थी। समय कट रहा था।

घर का काम करने के गाँव से आई हुई महिला 36-37 साल के आसपास की थी। उस के पति की मृत्यू हो चुकी थी। वह भी अकेली थी। इसी कारण से वह शहर में काम करने आ गयी थी। घर में ज्यादा काम नहीं था। इस कारण से कोई चिन्ता की बात नहीं थी। मालिक उस से ज्यादा बात नहीं करता था। वह भी उन से काम के लिये ही बात करती थी। उस के पास भी बात करने के लिये कोई नहीं था। दिन का कुछ समय तो वह काम में लगी रहती थी लेकिन काम के खत्म होने के बाद वह भी खाली हो जाती थी, उस समय उसे अकेलापन काटने को दौड़ता था। इस का उस के पास कोई हल नहीं था। घर से बाहर वह जा नहीं सकती थी। मालिक के सिवा घर में कोई नहीं था। उन से बात करने में उसे संकोच लगता था।

रोज के काम के मालिक का काम भी नौकरानी से पड़ता ही था। कई बार अपनी बात समझाने के लिये उसे काफी देर तक उन्हें समझाना पड़ता था। गाँव से होने के कारण शहर के तौर-तरीके उसे पता नहीं थे। लेकिन वह सीखने को हमेशा तैयार रहती थी। मालिक जो बात उसे बताते थे वह समझ लेती थी और उसी के अनुसार काम करने की कोशिश करती थी। धीरे-धीरे मालिक और उस के बीच सामजस्य बैठने लग गया। वह कई बातें बिना कहे ही समझ जाती थी। बुजुर्ग भी उस की आवश्यकताओं को समझने लगे थे। दोनों का एक-दूसरे के सिवा कोई नहीं था। दो लोग जब एक-साथ रहते है तो उन के बीच संबंध स्थापित हो जाता है। जिसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता।

अगर वह स्त्री और पुरुष हो तो वह संबंध क्या रुप लेगा कोई नहीं बता सकता है। ऐसा ही उन दोनों के बीच हो रहा था। बुजूर्ग जिन का नाम मोहन लाल था, नौकरानी जिस का नाम आशा था, की तरफ आकर्षित होने लग गये। जब वह खाली होते तो उस को काम करते देखने लग गये। पत्नी के जाने के बाद उन्होनें अपने मन को सांसारिक आकर्षणों से अलग सा कर लिया था। लेकिन आशा के उन के जीवन मे आने के कारण वह इन आकर्षणों के प्रति फिर से लगाव रखने लगे थे। सेहत सही होने के कारण किसी तरह की बंदिश तो नहीं थी लेकिन कुछ करने में उन्हें संकोच होता था। कुछ सामाजिक संकोच था कुछ स्तर का संकोच।

नौकरानी के प्रति आकर्षण

आशा रोज सुबह उठ कर उन्हें चाय बना कर देती थी। यह उन की बहुत पुरानी आदत थी, इस के बाद वह सुबह का अखबार बैठ कर पढ़ते थे। अखबार पढ़ने के बाद वह नित्यक्रम करने चले जाते थे। इस के बाद नहाने के बाद पूजा करते थे। तब तक आशा नाश्ता बना देती थी। नाश्ता करने के बाद वह टी.वी देखने बैठ जाते थे। टी.वी देखने के बाद वह कुछ देर सो जाते थे। जाग कर कंप्यूटर पर बैठ कर दूनिया के बारें में पता करते थे। इस सब में दोपहर के खाने का समय हो जाता था। दोपहर का खाना खा कर या तो सो जाते थे या कोई फिल्म वगैरहा देखने बैठ जाते थे। आशा इस समय आराम किया करती थी।

सुबह जब आशा घर की सफाई करती थी तब उन की नजर काम करती आशा पर चली जाती थी। कई बार उस के आंचल के ढलकने से झाँकते उस के स्तन उन की नजरों में आ जाते थे। वह अपनी नजर हटा लेते थे लेकिन यह दृश्य उन के मन में तरंग पैदा करता था। वह इस भावना को जितना दबाने की कोशिश करते थे वह उतनी ही जोर से भड़कती थी। पोचा लगती आशा के पिछवाड़े का दर्शन भी उन के शरीर में करंट सा भर देता था। वह इस से बचने के लिये अपनी निगाह दूसरी तरफ फैर लिया करते थे। लेकिन वह घर से बाहर नहीं जा पाते थे। दिन भर उन की नजर आशा पर पड़ती ही रहती थी। उन के मन में आशा के प्रति आकर्षण पैदा हो गया था। वह आशा के प्रति आकर्षित हो गये थे। छुपी नजरों से वह आशा के देखने का अवसर ढुढ़ ही लिया करते थे। आशा की जरुरतों के प्रति उन की चिन्ता बढ़ने लग गयी थी।

नौकरानी का भी उस के प्रति आकर्षण

आशा भी सारे दिन काम करने के दौरान मोहन लाल जी से मिलती रहती थी। मोहन लाल जी का व्यवहार बहुत संयत था वह उसे प्यार से आशा जी कह कर पुकारते थे। पहले तो वह ज्यादा बात नहीं करते थे लेकिन कुछ समय से वह उस से बातचीत करने लग गये है। उस की अगर कोई आवश्यकता होती है तो वह उसे पुरी करने की कोशिश करते है। आशा को यह सब अच्छा लगता है। उसे पता था कि उस के नीरस जीवन में जो कुछ रस है वह मोहन लाल जी से ही है। गाँव में उस को पेट भरने की भी परेशानी थी। लेकिन यहाँ आने के बाद उस का बदन भी भर गया था। यहाँ भर पेट खाने को मिल रहा था। कोई रोक टोक नहीं थी। वह अपने मन मुताबिक का खाना बना सकती थी और खा भी सकती थी। पहले पहल तो उसे शहरी तौर-तरीकों से परेशानी हुई थी लेकिन मोहन लाल जी ने उसे सब सिखा दिया था। वह भी सब जल्दी सीख गयी थी। उसे घर को चलाने में मजा आता था। उस के मन में कभी कभी शरीर की भुख जागती थी लेकिन वह उसे बुझाने के लिये कुछ नहीं कर सकती थी।

एक बार महावारी के समय उस की हालत बहुत खराब हो गयी थी। उस से उठा भी नहीं जा रहा था। सुबह जब वह नहीं उठ पायी तो मालिक ने उस को आवाज दी। जब उस ने जवाब नहीं दिया तो वह उस के कमरे में आ गये। वह दर्द से परेशान बिस्तर पर पड़ी थी। मोहन लाल जी ने उस से पुछा कि क्या बात है तो उस ने बताया कि वह बीमार है। मोहन लाल जी ने उस का हाथ पकड़ कर देखा कि कहीं बुखार तो नहीं है लेकिन हाथ ठंड़ा पड़ा था। मोहन लाल को कुछ याद आया और वह आशा से बोले कि महीना हुआ है? आशा ने सर हिला कर उत्तर दिया। मोहन लाल जी कमरे से बाहर निकल गये।

कुछ देर बाद वह आशा के पास वापस लौटे। उन्होने एक गोली आशा के हाथ में दी और पानी का गिलास उसे पकड़ा कर कहा कि यह गोली खा लो, दर्द में आराम मिल जायेगा। तुम आराम करो। मैं चाय बना कर लाता हूँ। आशा ने गोली खा ली। कुछ देर बाद मोहन लाल चाय का कप उसे देकर चले गये। दवा ने असर करना शुरु कर दिया था। उस का दर्द कम होने लग गया था। चाय पी कर वह उठ कर घर का काम करने के लिये तैयार हो गयी। मोहन लाल के प्रति उस के मन में लगाव पैदा हो गया। उसे लगा कि मालिक उस का कितना ध्यान रखते है, उस के दर्द का इलाज भी करते है।

जब वह नाश्ता बना कर मालिक को देने गयी तो मोहन लाल ने उस से पुछा कि वह महीने के दिनों में क्या इस्तेमाल करती है? आशा ने बताया कि वह पुराने कपड़ें लगा लेती है। यह सुन कर मोहन लाल बोले कि वह उस के लिये पैड ला देगे। वह आगे से पैड का इस्तेमाल किया करे। कपड़ें से बीमारी लग सकती है। उस ने सर हिला कर सहमति जता दी। उसे तो पैड के बारे में कुछ पता ही नहीं था। वह क्या चीज है और कैसे इस्तेमाल होता है वह नहीं जानती थी।

मोहन लाल जी नाश्ता कर के बाजार चले गये। वहाँ से लौटे तो उन के हाथ में कई चीजे थी। उन्होंने आशा के हाथ में एक लिफाफा दे कर कहा कि यह पैड है वह इन का इस्तेमाल किया करें। आशा ने पैड का लिफाफा पकड़ लिया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे पुछे कि इन्हें कैसे इस्तेमाल किया जाता है। उस की हालत को मोहन लाल भाँप गये। वह बोले कि कच्छी तो पहनती है? आशा ने हाँ में सर हिलाया। यह सुन कर उन्होनें एक पैड निकाल कर आशा को बताया कि कैसे पैड को कच्छी में लगाना है। आशा को सब समझ आ गया। वह उस पैड को लेकर चली गयी।

नहा कर उस ने पैड लगा कर पहन लिया। जब वह मोहन लाल के सामने पड़ी तो उन्होने उस से पुछा कि लगा लिया तो उस ने बताया कि लगा लिया है। वह कुछ पुछना चाहती थी। लेकिन संकोच कर रही थी। मोहन लाल ने इसे समझ कर कहा कि आशा यह पैड जब भर जायेगा तो इसे निकाल कर दूसरा लगा लेना। यह पैड 10 से 12 घंटे तक चल जाता है। आशा के मन में जो सवाल था उसे उस का जवाब मिल गया था। आज दवा और पैड के कारण उस के दर्द का समय मोहन लाल जी के कारण आसान हो गया था। वह इस के लिये मोहन लाल की शुक्रगुजार थी। उस ने सर झुका कर मोहन लाल को धन्यवाद कहा। उस की यह बात सुन कर मोहन लाल हँस गये और बोले कि जैसे तुम मेरा ध्यान रखती हो वैसे ही मेरी भी जिम्मेदारी है कि मैं तुम्हारा ध्यान रखुँ। आगे से कोई भी परेशानी हो तो मुझे बताने में झिझकना नहीं।

आज के घटना क्रम से दोनों के मध्य जो झिझक थी वह दूर हो गयी थी। अब दोनों एक दूसरे से बिना किसी शर्म के बात कर सकते थे। दोनों के बीच जो दिवार थी वह आज ढ़ह गयी थी।

आशा का महीना चार-पांच दिन चलता था। उसे इन दिनों में सेक्स की बहुत इच्छा होती थी। पति की मृत्यू के बाद उस के शरीर की भुख को मिटाने का कभी सोचा ही नहीं था। इस तरफ से वह मुँह मोड़ चुकी थी। इस बार उस के मन में कामना जाग रही थी कि वह अपने शरीर की आग को बुझाये। उस के मन में कामना तो थी लेकिन उसे बताने का उपाय उसे नहीं सुझ रहा था। मोहन लाल के प्यार भरे व्यवहार के कारण उस के मन में कामना ने सर उठा लिया था।

आज शाम को मौसम बहुत खराब हो गया। आकाश पर काले बादल छा गये और कुछ देर बाद तुफान के साथ जोरदार बारिश होने लगी। वह छत पर से कपड़े उठाने गयी। कपड़े उठाते उठाते वह पुरी तरह से भीग गयी। नीचे जब कपड़े ले कर आयी तो वह पुरी तरह से पानी से लथपथ थी और उस की साड़ी बदन से चिपक गयी थी। उसे ऐसी हालत में मोहन लाल ने देखा। आशा का पुरा बदन साड़ी के चिपने के कारण दिख रहा था। उस के बदन के हर उतार चढ़ाव को मोहन लाल देख पा रहे थे जिसे वह पहले नहीं देख सके थे। आशा के बदन को देख कर आज मोहन लाल के बदन में सेक्स की इच्छा जाग गयी। वह ध्यान से आशा को देखने लगे। उन की नजर को देख कर आशा कपड़े बदलने भाग गयी। मोहन लाल अपनी जाँघों के मध्य आये तनाव को महसुस करने लगे।

गीले कपड़े बदल कर आशा मोहन लाल के पास आयी तो मोहन लाल ने पुछा कि आशा ज्यादा तो नहीं भीग गयी हो? आशा बोली कि बारिश बहुत तेज थी, इस कारण बुरी तरह से भीग गयी हूँ। मोहन लाल की आँखों में आशा को नयी तरह की चमक दिखायी दी।

आशा खाना बनाने के बाद खाना मालिक को दे कर अपने कमरे में चली गयी। खाने के बाद मोहन लाल सोने चले गये। आज रात को उन्हें बिस्तर पर नींद नहीं आ रही थी। आँखे बंद करते ही आशा का गिला बदन उन की आँखों के सामने आ जाता था। वह जानते थे कि सेक्स की इच्छा तो सही है लेकिन अपने से कम उम्र की स्त्री को क्या वह सन्तुष्ट कर पायेगे? उन की जाँघों के मध्य का तनाव कुछ अच्छी खबर नहीं दे रहा था। वह सोने की कोशिश करने लगे। इसी बीच बिजली चली गयी। बरसात के कारण विभाग ने लाइट काट दी थी। अब सुबह ही उस के आने की आशा थी। वह उठ कर घर का चक्कर लगाने के लिये कमरे से निकल गये। इन्वर्टर काम कर रहा था लेकिन वह भी कुछ घंटों ही काम कर पायेगा। वह आशा के कमरे के बाहर खड़े थे कि तभी आशा भी बाहर आ गयी। उन्हें देख कर बोली कि

आप अभी तो सोये नहीं?

नींद नहीं आ रही थी, फिर बिजली भी चली गयी

बाहर बहुत जोर से बरसात हो रही है।

मैं घर देखने ही उठा था। तुम जा कर सो जाओ

तभी बाहर जोर से बिजली कड़की और आशा उस से डर कर उन से लिपट गयी। बाहर जोर से कहीं बिजली गिरी। आशा की बांहें मोहन लाल के चारों तरफ लिपट गयी। मोहन लाल ने स्त्री शरीर का बहुत लंबें समय के बाद स्पर्श किया था। उन का अपने से कंट्रोल हट गया। उन्होंने आशा को कस कर अपने से चिपका लिया। दोनों काफी देर तक ऐसे ही खड़े रहे। बाहर बिजली बार-बार कड़क रही थी। मोहन लाल ने आशा की कमर में हाथ डाला और उसे अपने साथ अपने कमरे की तरफ चल दिये। आशा भी चुपचाप उन के साथ चल दी।

कमरे में पहुँच कर उन्होनें आशा को बिस्तर पर बिठा दिया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। आशा चुपचाप बैठ गयी। मोहन लाल भी बेड पर आशा के साथ बैठ गये। उन्होने आशा की कमर में हाथ डाल कर अपने से चिपका लिया। वह उन से चिपक गयी। मोहन लाल ने अपने हाथों में उसका चेहरा लेकर उसके होंठ चुम लिये। इस चुम्बन से उनके शरीर में करंट सा दौड़ गया। बहुत समय बाद नारी शरीर का स्वाद चखने से उनके शरीर में काम की तरंग सी दौड़ने लग गयी। आशा ने भी उनके होंठों को चुम लिया। दोनों एक-दूसरे के होंठों को जम कर चुम रहे थे। काफी दिनों के प्यासे थे इस लिये उसे पुरा करने की कोशिश हो रही थी।

मोहन लाल के होंठ चेहरे से होकर आशा की गरदन पर आ गये। वहाँ चुम कर वह उस के वक्षस्थल के मध्य पहुँच गये। वहाँ चुम्बन दे कर दोनों उरोजों पर ब्लाउज के ऊपर से चुम्बन किया। एक हाथ से जब उस के छाती को सहलाया तो वह उत्तेजना के कारण कठोर हो गयी। दूसरे पर हाथ फिरा कर उसे भी दबाया उस की कठोरता उन्हें महसुस हुई। आशा के हाथ मोहन लाल की पीठ पर घुम रहे थे। वह उसे सहला रही थी। पुरुष सानिध्य का उसका अनुभव ज्यादा नहीं था। लेकिन मोहन लाल तो इस क्षेत्र के खिलाड़ी रह चुके थे। उन्हें अपने साथी को उत्तेजित करने के सारे गुर आते थे। वह आज सब को आशा पर इ्स्तेमाल करना चाहते थे।

उन्होंने आशा के पेट पर हाथ फिराया और फिर उस के पेट से नीचे की तरफ हाथ ले गये। पेटीकोट के ऊपर से ही आशा की जाँघों के जोड़ को सहलाया। अन्दाजा लगाया कि नीचे का क्या हाल है। उन्हें पता था कि आशा को कैसे गर्म करना है। उनकी असली समस्या तो उन के अपने गर्म होने की थी। वह काफी समय से हस्थमैथुन भी नहीं कर पा रहे थे। इस लिये उन्हें चिन्ता थी कि आज वह कुछ कर पायेगे? या उनका मजाक बन जायेगा।?

मोहन लाल ने आशा को बेड पर लिटा दिया और उसकी बगल में लेट गये। उनका हाथ उसकी जाँघों के बीच पड़ा था। वह उसे भरपुर उत्तेजित करना चाहते थे। इसी लिये उन्होंने उसका ब्लाउज उतार दिया और उस के स्तनों पर हाथ फैरना शुरु कर दिया। अगला काम उनके होंठों ने आशा के निप्पलों को अपने बीच में लेकर चुसा। इस के कारण आशा का सारा शरीर तन सा गया था। उस के शरीर में अजीब तरह का करंट सा दौड़ रहा था उसे इस का पहले अनुभव नहीं हुआ था। मोहन लाल उस के उरोजों के साथ काफी देर तक खेलते रहे। फिर वह उस की कमर की तरफ झुके और उसकी नाभी को चुम कर नीचे की तरफ चल दिये लेकिन नीचे पेटीकोट की बाधा आयी। उन्होंने उस का नाड़ा खोल कर उसे भी नीचे खिसका दिया। नीचे आशा ने कुछ नहीं पहना हुआ था।

मोहन लाल ने अपनी ऊंगलियों से उसकी बालों के मध्य छिपी योनि को सहलाया, चाहते तो वह उसे चुमना लेकिन रुक गये। इतनी उत्तेजना के कारण उन्हें लगा कि उनका वीर्यपात हो गया है। वह अपनी ब्रीफ का गिलापना महसुस कर पा रहे थे। अब रुका नहीं जा सकता था। उन्होंने अपनी एक ऊंगली आशा की योनि में डाल दी। योनि में पर्याप्त नमी थी। ऊंगली आराम से अंदर चली गयी। आशा ने आहहहह की। ऊंगली योनि के अंदर बाहर होने लग गयी। आशा को इस से मजा आ रहा था। जब ऊंगली योनि के अंदर गयी तो उसे आशा का जीस्पाट मिल गया। मोहन लाल जी उसे सहलाने लगे। आशा आहहह उहहहह करने लग गयी थी। उत्तेजना के कारण उसका सारा शरीर तन गया था। आनंद के कारण उस ने आँखें बंद कर रखी थी। वह मिलने वाले आनंद को भोग रही थी।

मोहन लाल जी ने अब देर करना सही नहीं समझा और अपने कपड़ें उतार कर आशा के ऊपर आ गये। उन का लिंग सही साइज का था लेकिन उस में तनाव की कमी दीख रही थी। मोहन लाल का भी उत्तेजना के कारण बुरा हाल था। सारा शरीर गर्म हो गया था। उन्होंने आशा की जाँघों के बीच बैठ कर उस की जाँघों को फैला दिया और अपने लिंग को उस की योनि से रगड़ने लगे। कई बार रगड़ने के बाद भी उस में वह तनाव नहीं आया कि वह आशा की योनि में प्रवेश कर पाये। उन्होंने अपने लुजपुजे लिंग को हाथ की सहायता से आशा की कसी हुई योनि में जबर्दस्ती घुसेड़ा लेकिन वह अंदर नहीं गया और बाहर निकल गया। मोहन लाल जी को अपनी हालत समझ आ गयी। वह समझ गये की आज वह संबंध बनाने में सफल नहीं हो पायेगे। उन के मन का डर सही साबित हो रहा था। अपने दिमागआगे क्या करना है ताकि आशा के सामने वह लज्जित ना हो सके यह सोच कर वह अपनी ऊंगली से योनि के अंदर जीस्पाट को जोर से सहलाने लगे।

आशा उत्तेजना के कारण उन्हें चुम रही थी। वह भी उसे भरपुर रुप से चुम रहे थे। ऊंगली से उस के जीस्पाट को सहला रहे थे।कुछ देर बाद आशा की टाँगें उन की पीठ पर कस गयी। वह स्खलित हो गयी थी। कुछ देर तक के ऊपर पड़े रह कर मोहन लाल उस के ऊपर से उतर गये और उस की बगल मे लेट गये। उन की सांस भी फुल रही थी। आशा तो ऑर्गज्म का मजा ले रही थी। उस की छातियाँ भी ऊपर नीचे हो रही थी। मोहन लाल ने अपने लिंग पर हाथ लगाया तो उन्हें पता चला कि वह भी डिस्चार्ज हो गये थे। अब करने को कुछ नहीं बचा था। बाहर बारिश का शोर उन के मन के शोर को टक्कर दे रहा था। उन्होंने सोचा कि शायद काफी समय से समागम नहीं किया है शायद यही आज की घटना का कारण हो। कुछ देर तक वह इसी सब के बारे में सोचते रहे फिर उन्होंने आशा को अपने से चिपकाया और उस के बदन की तपीश का आनंद लेने लगे। आशा अभी भी होश में नहीं थी। मोहन लाल को कब नींद आ गयी उन्हें पता नहीं चला।

सुबह जब आँख खुली तो देखा कि आशा उन से चिपकी सो रही थी। उन्होंने धीरे से उसे अपने से अलग किया और बेड से नीचे उतर गये। अपने कपड़ें पहन कर उन्होंने आशा को हिला कर जगाया। आशा ने आँखें खोली और अपनी हालत समझ में आते ही बेड से उतर गयी। शर्म के कारण उस की आँखें उठ नहीं रही थी। मोहन लाल ने उस से कहा कि तुम कपड़ें पहन लो। यह सुन कर आशा ने अपने के देखा तो उसे पता चला कि वह बिना कपड़ों के खड़ी थी। उस ने पास पड़े कपड़ें उठा कर पहनने शुरु कर दिये। कपड़ें पहन कर वह कमरे से बाहर चली गयी। मोहन लाल ने बेड पर पड़ी चद्दर को देखा तो उन्हें पता चला कि उस पर काफी दाग पड़े हुये थे। रात को दोनों के शरीरों से काफी द्रव्य निकला था। सब कुछ सही चला था, केवल उनका औजार ही फेल हो गया था। इसका कुछ इलाज करना पडे़गा ऐसा उन्होंने सोचा। वह यह सब सोच ही रहे थे कि आशा कमरे में आयी और बोली कि आप बाहर चले मैं चद्दर बदल कर आपके लिये चाय ले कर आती हूँ। यह सुन कर मोहन लााल कमरे से बाहर चले गये।

वह बाहर कुर्सी पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगे। बारिश कम हो गयी थी। कुछ देर बाद आशा उन को चाय दे गयी। अखबार पढ़ते में उन्हें ध्यान आया कि कल उन्होंने कोई सावधानी नहीं बरती थी। जो बाद में परेशानी पैदा कर सकती थी। यह जान कर वह कल संभोग ना होने की बात को सही मानने लगे। उन्हें लगा कि कल गल्ती होते रह गयी थी। वह तो बुढ़े है लेकिन आशा तो अभी गर्भवती होने की उम्र में है ऐसे में असुरक्षित संभोग परेशानी का कारण बन सकता है। इस का भी कोई उपाय करना पड़ेगा। कल तो अचानक हुयी घटना के कारण ऐसा हो गया लेकिन आगे से ऐसी गल्ती से उन्हें बचना होगा।

चाय खत्म करने के बाद वह अपने दैनिक कामों में लग गये। नाश्ता करने के बाद वह सोचने लगे कि किस से अपनी समस्या का समाधान पुछे। कोई व्यक्ति उन के ध्यान में नहीं आया जिससे वह सलाह ले सके। इसी उधेड़बुन में दोपहर हो गयी। खाना खा कर वह सोने की बजाए, तैयार हो कर बाजार के लिये निकल गये। वह इस समय बाहर कम ही जाते थे। लेकिन आज आम दिन नहीं था। उन्हें पता था कि कल झिझक दुर हो जाने के कारण आगे मिलन होना अवश्यसंभावी था। ऐसी परिस्थिति के लिये पहले से तैयार होने में ही समझदारी है, ऐसा उन्हें पता था।

पहले तो घर से दूर जा कर मेडीकल स्टोर से कंड़ोम का पैकिट खरीदा, एक स्ट्रीप वियाग्रा का भी खरीदा। वह इसे प्रयोग नहीं करना चाहते थे लेकिन कुछ ना होने से कुछ होना ज्यादा सही रहता है। इसी समय उन्हें अपने एक परिचित वैद्य का ध्यान आया। वह उस के पास पहुँच गये। कुछ संकोच से उन्होंने वैद्य जी को अपनी समस्या समझायी। वैद्य जी ने उन से उन की सेहत के बारे में पुछा। भाग्यवश उन्हें कोई बिमारी नहीं थी। वैद्य जी कुछ देर तक उन की नाड़ी अपने हाथ में ले कर बैठे रहे। फिर बोले कि आप को कोई गम्भीर समस्या नहीं है। कुछ दिन दवाई खाये और तेल का उपयोग करेगें तो शीघ्र ही लाभ दिखायी देगा, ऐसा मेरा विश्वास है। वैद्य जी की इस बात से मोहन लाल जी के मन में आशा कि किरण जल गयी। वैद्य जी से दवा ले कर वह घर के लिये चल दिये। रास्ते में कुछ फल खरीद लिये।

घर पहुँचे तो आशा उनका ही इंतजार कर रही थी। उन से बोली कि आप तो दोपहर में बाहर नहीं जाते, आज क्या हुआ? मोहन लाल बोले कि कुछ सामान खरीदना था इस लिये उसे लेने चला गया था। आशा ने उन्हें पानी ला कर दिया। मोहन लाल पानी पीने लगे। इतनी भाग दौड़ से वह थक से गये थे, इस लिये कुछ देर आराम करने के लिये बेड़ पर लेट गये। कुछ देर बाद आशा उन के पास आ कर खड़ी हो गयी। आशा को खड़े देख कर मोहन लाल ने उस से पुछा कि क्या बात है?

आप से कुछ बात करनी थी

कहो

कल की बात से आप नाराज तो नहीं है

नहीं नाराज क्यों होऊँगा

नहीं मुझे लगा कि मैं, आप के साथ कुछ गलत तो नहीं कर रही हूँ

तुम ने कुछ गलत नहीं किया था

मुझे लगा कि आप मुझ से नाराज होगे

नहीं लेकिन मैं कल कुछ कर नहीं पाया इस लिये अपने से नाराज था

मुझे कुछ पता नहीं चला, मैं तो बेहोश सी थी

तुझे नहीं पता चला लेकिन मुझे तो पता चला था

अब क्या होगा

कुछ नहीं, ईलाज से सब कुछ सही हो जायेगा, कुछ दिन रुकना पडे़गा

मैंने कोई गल्ती तो नहीं की थी।

कैसी गल्ती

मैंने ऐसा कुछ कभी किया नही है

चिन्ता ना कर मैं सब कुछ सिखा दूँगा

मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था फिर मैं बेहोश सी पड़ गयी थी

पहली बार था ऐसा हो जाता है, आगे से नहीं होगा, तु होश में रहेगी

जैसा आप कहेगें मैं वैसा ही करुँगी

तु जब भी मेरे साथ सोने आये तो नहा कर आना, कल तेरे से पसीने की बदबु आ रही थी, मुँह में नमक का स्वाद आ रहा था

आगे से ध्यान रखुँगी, आप जब चाहेगे मुझे बता दिजियेगा मैं नहा लिया करुँगी

रात को डर तो नहीं लगा था

डर किस बात का आप से डर कैसा

जो हम ने किया उस का डर

नहीं मैं भी मन ही मन चाहती थी लेकिन आप से कह नहीं पाती थी

आगे से कोशिश करगे कि सही से करे और इसका मजा ले

मैं तो आप के ही सहारे हूँ

तुझे बहुत कुछ सिखाना है, डरना नहीं जैसा मैं कहुँ करती जाना

आप पर मुझे पुरा विश्वास है, मुझे गरीबी से आप ने ही निकाला है।

अरे मैंने तेरे पर कोई अहसान नहीं किया है मुझे भी तो किसी की जरुरत थी

जा कर आराम कर ले

आशा कमरे से चली गयी। उस की बात से मोहन लाल के मन में विश्वास जगा कि मेरा और आशा का संबंध सही रहेगा। मैं ही नहीं वह भी शारीरिक सुख की तलाश में है। उसे भी इस से बढ़िया मौका नही मिल सकता है। मोहन लाल ने सोचा कि इसे सेक्स के बारे में काफी कुछ सिखाना पड़ेगा तभी यह मेरी साथी बन पायेगी। यही सब सोचते सोचने मोहन लाल की आँख लग गयी।

शाम को जग कर मोहन लाल ने वैद्य जी के दिये तेल से अपने लिंग पर मालिश करी। इस से उन्हें अपने लिंग में तनाव का अनुभव हुआ। इस से मोहन लाल के मन में आशा की किरण दिखायी दी। खाना खाने के बाद दवाई खा कर वह सोने के लिये लेट गये। आज भी बाहर बारिश हो रही थी। लगता था कि आज भी बिजली जाने वाली थी। ऐसा ही हुआ कुछ देर बाद लाइट चली गयी। आज मन में कुछ करने की इच्छा नहीं थी। कल की असफलता का घाव मन से निकल गया था। आशा भी तैयार थी यह बहुत अच्छी बात थी। उन की हालत में उस का सहयोग बहुत जरुरी था। यही सोचते सोचते उन्हें नींद आ गयी।

पुरे हफ्ते लिंग पर दवा लगाने और दवा खाने के बाद लग रहा था कि कमजोरी का इलाज मिल गया है। एक मन था कि वियाग्रा खा कर संभोग की शुरुआत की जाये दूसरा मन कहता था कि कुछ दिन और वैद्य जी की दवा खा कर उस के बाद संभोग का प्रयास किया जाये। दूसरी बात ही चली और एक और हफ्ता मोहन लाल ने इंतजार किया। लाभ होता दिख रहा था। लेकिन मोहन लाल ने अपने आपको बचा कर रखा। उन्हें सही समय का इंतजार था। मोहन लाल को पता था कि आयुर्वेद रोग को जड़ से समाप्त करता है। इसी लिये वह अपने मन पर नियंत्रण रख पा रहे थे। इस दौरान आशा को सेक्स के बारे में कुछ बातें बताई ताकि उसके मन में कोई संदेह ना रहे। उसे भी पुरी तरह से तैयार होना था यह उन्हें पता था। वह इस उम्र में ज्यादा सेक्स तो नहीं कर सकते थे, लेकिन वह चाहते थे कि जितना भी करे उस का भरपुर आनंद उठाये।

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