महारानी देवरानी 045

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एक मर्द का साथ
3.6k words
5
32
00

Part 45 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 45

एक मर्द का साथ

पलंग पर लेटा हुआ बलदेव अपनी माँ को जाते हुए देखता रह जाता है। कैसे उसकी बड़ी माँ ने उसका पूरा मजा किरकिरा कर दिया था और सृष्टि वहाँ से देवरानी को ले कर चली गई थी।

"ये बड़ी माँ को तो सुकून ही नहीं है, माँ को थोड़ा-सा भी ख़ुश नहीं देख सकती हैं । मेरी रानी की इन लोगों ने आधी ज़िन्दगी बरबाद कर दी है। अभी उनकी आधी ज़िन्दगी बाकी है, उसे मैं इन लोगों को बरबाद नहीं करने दूंगा।"

अब तक बलदेव का लंड शांत हो चुका था और वह बुझे मन के साथ बाहर आता है। तो देखता है, उसकी माँ और बड़ी माँ दोनों रसोई में है।

देवरानी देखती है। के बलदेव का चेहरा उतरा हुआ है और वह रसोई में काम करते हुए "बलदेव उठ गए तुम, तुम्हारे लिए आज क्या बनाऊँ?"

सृष्टि भी वही पर थी।

बलदेव: हाँ!

बस इतना कह कर मुंह लटकाए सीढ़ी पर चढ़ने लगता है।

शुरष्टि: अरे देवरानी इसको क्या हुआ?

देवरानी: मुस्कुरा कर"क्या होगा इसे अभी तो सो कर उठा है। ना1"

(मन में) इसे प्यार हो गया है।

सृष्टि: परंतु फिर भी देवरानी उसने अपना मुँह बना रखा है और तुम्हारी बात का ठीक से जवाब भी नहीं दिया!

देवरानी: वह उसकी तबीयत ख़राब है। इसलिए!

(मन में) वह भले से नहीं बोला पर मुझे उसके जज़्बात समझ आ गए हैं ।

सृष्टि हाँ! हो सकता है। वही तो मैं बोलू बलदेव जैसा मेहनती लड़का भरी दोपहरमें क्यू सो रहा है।

इस बात पर देवरानी शर्म से सर झुक कर मुस्कुरा देती है। (मन ही मन) "ये लड़का तो वैसे मेहनत ही कर रहा था, पर अपनी माँ पर!"

देवरानी अपने मन में बड़बड़ाती है।

सृष्टि: क्या?

देवरानी: नहीं कुछ नहीं, मैं कह रही थी जल्दी से खाना बना लेती हूँ आप जाओ कमला को भेज दो!

सृष्टि (बुदबुदाती है) : क्या बात है। आज मेरी सौतन मुझे खाना नहीं बनाने दे रही है और पहले हमेशा मेरे से काम करवाने के लिए तुनकती थी । आज ये उल्टी गंगा कैसे बह रही है।

देवरानी: क्या कहा दीदी?

शुरुआत: कुछ नहीं, मैं जाती हूँ । कमला जो भेज दूंगी।

शुरष्टि चली जाती है और देवरानी अपने काम में लग जाती है।

"ये बलदेव भी ना एक पल भी मेरे बिना नहीं रहता। आज मुझे महसुस हुआ कि एक मर्द का साथ क्या होता है और एक औरत के जीवन में पुरुष का काम क्या है।"

"ये राजपाल ने तो जीवन भर कभी ना मुझे खोजा, ना पूछा, ना प्यार किया । सबका बदला लेगा मेरा बलदेव।"

और मुस्कुराती है। तभी वहाँ कमला आ जाती है।

कमला: हाय बन्नो तो बड़ी मुस्कुरा रही है। लगता है। तुम्हारे दरिया में गोते लगा लिए बलदेव ने।

देवरानी देखती है। सामने कमला खड़ी हो कर उस पर ताने कस रही थी।

देवरानी: चुप कर कमिनी।

कमला: हा-हा अब मुझे क्यू बताओगी दुश्मन जो हू।

देवरानी: ऐसा नहीं है। कमला!

कमला: तो फिर बताओ ना उद्घाटन हो गया क्या?

देवरानी एक दम शर्म से लाल हो जाती है।

देवरानी: पागल वह सब नहीं हुआ।

कमला: क्या सब नहीं हुआ, दरवाजा लगा के भारी दोपहर में, घंटो भर अंदर थे तुम दोनों, और कहते हो कुछ नहीं हुआ। बुरबक समझी हो?

देवरानी: अरे कहा ना कमला वैसा कुछ नहीं हुआ।

कमला: तो क्या अंदर बैठ कर क्या पूजा अर्चना कर रही थी और पाठ पढ़ा रही थी।

देवरानी: ऐसा नहीं है। वह तो बस ऊपर-ऊपर से...

फिर देवरानी अपना सारा झुक लेती है वह मारे शर्म के गड़ी जा रही थी।

कमला: अच्छा तो बस रगड़ा रगड़ी हुई है।, खूब कस के रगड़ा है, बलदेव ने। देखो अब तक गर्दन लाल है।

देवरानी ये सुन कर अपने पैरो के अंगूठो को उंगली पर रख कर बोली 'बस करो कमला! खाना बनाओ'! '

कमला: अच्छा ठीक है। महारानी! आपको पता है। महारानी सृष्टि कह रही थी कि बलदेव की तबीयत ख़राब है और तुम अध्याय ख़त्म कर रही थी कक्ष में।

और कमला ठहाका लगा कर हस देती है। जिसे देख देवरानी भी हस देती है।

"अब और क्या कहती?"

देवरानी मासूम बनते हुए कहती है।

कमला: वह तो है। आपने सही बेवकूफ़ बनाया उसे!

देवरानी: हम्म झूठ बोलना पड़ा!

कमला: हाँ तो क्या बताती की आप किसी और भक्ति में लीन थे, और वैसे भी जीवन में कुछ पाने के लिए और खास कर आज के समय तो झूठ बोलना ही पड़ता है।

देवरानी: हम्म!

कमला: कुछ अच्छा होने के लिए कुछ बुरा करना संसार का नियम है। देवरानी!

और तुम इस नियम को जितना जल्दी सीख जाओ उतना अच्छा है। नहीं तो लोग सिर्फ तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे। तुम्हारे लिए कोई कुछ नहीं करेगा।

देवरानी: हाँ कमला अब मुझे अपने जीवन में खुशी के लिए किसी के भरोसे नहीं रहना है। खुद करना है। जो करना, सबने अपनी खुशी के लिए. मेरी खुशी का गाला घोंटा तो सही । तो अब मैं क्यों किसी नियम और समाज का सोचूं । मैं तो किसी की खुशीयो का गला तो नहीं घोट रही हूँ और अगर जरुरत पड़ी तो मैं वह भी करूंगी क्यू के मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है।

कमला: आपका बलदेव सब ठीक कर देगा अब ज्यादा मत सोचिए महारानी!

देवरानी: सुनना

देवरानी कमला के कान में कुछ कहती है।

फिर दोनों मिल कर खाना तैयार करते हैं और कमला बारी-बारी से सबको खाना तैयार होने का सुचना दे देती है।

सृष्टि जीविका देवरानी बलदेव सब मिल कर खाने लगते हैं। क्यू के आज राजपाल रात तक ही वहा आने वाला था।

सब चुप चाप खा रहे थे।

देवरानी के सामने बलदेव बैठा अपना सर झुकाए खा रहा था पर अपना सर उठाने का नाम नहीं ले रहा था।

देवरानी: (मन में) रूठ गया मेरा कन्हैया ।

सृष्टि: कमला और सब्जी लाओ ।

कमला: अभी लाई!

कमला सब्जी ले कर आती है।

कमला: लगता है आपको बहुत अच्छी लगी।

सृष्टि: हा स्वादिष्ट तो है। आज का पनीर किसने बनाया?

कमला: बनाया तो मैंने पर तेल मसाला सब महरानी देवरानी के हिसाब से था।

सृष्टि; ओह!

देवरानी अभी भी बलदेव को देखे जा रही थी और वह अपना सारा झुकाए धीरे-धीरे खा रहा था।

बलदेव को गमशुम देख अब देवरानी का भी चेहरा उतर जाता है।

देवरानी: बलदेव ये सब्जी लो ना तुम्हें तो ये पसंद है।

बलदेव चुप रहता है।

देवरानी चमचे से उसकी थाली में रखने वाली थी कि वह अपने हाथ से चमचे को पीछे करता है।

जिसे देख देवरानी वापस सब्जी कटोरे में रख देती है।

बलदेव उठ जाता है और हाथ धो कर महल के बाहर जाता है।

देवरानी कमला को इशारा करती है की रोको बलदेव को, उसने ठीक से खाया नहीं है।

कमला: अरे! युवराज आप ने बहुत कम खाया। हमने आपका मनपसंद पनीर बनाया था।

बलदेव: बस मेरी खुराक कम है। मेरा इतने से वह पेट भर जाता है, अब चाहे वह कोई भी चीज़ हो।

फिर एक बार देवरानी को तिरछी नज़र से देखता है और फिर पलट कर महल के बाहर जाने लगता है।

देवरानी जो गुमसुम थी अब हल्का मुस्कुरा की शरारत से "जितना खायेगा बलदेव उतना खिलाऊंगी ना, क्यू घबराता है और जिस दिन मुझे लगा कि तेरा मन मेरे से भर गया उस दिन बताऊंगी । आज बड़ा भाव खा रहा है।" (देवरानी मन में अपने आप से बात करती है)

भोजन के बाद सब जा कर अपनी-अपनी कक्षा में कुछ समय विश्राम करने के लिए जाते हैं। पर देवरानी अब भी बरतन हटा कर वही बैठी हुई थी।

कुछ देर में बलदेव उसे वापस आता हुआ दिखायी देता है।

" कितने मुछो पर ताव दिए हुआ है जैसे मैं इसकी पत्नी हूँ और इसको अपने पत्नी से मिलन नहीं करने दे रहे हैं ।

पर प्यार भी तो मुझसे ही करता है ना। "

देवरानी बलदेव को देखते हुए सीढियो पर चढ़ने लगती है। जिसे अंदर आता हुआ बलदेव देख लेता है।

"ये माँ को क्या हुआ वह ऊपर क्यू जा रही है।"

बलदेव बस माँ को ही देखे जा रहा था जो एक बलखाती नागिन-सी सीढ़ियों से ऊपर जा रही थी।

जैसे हे देवरानी को लगा के बलदेव उसे घुर रहा है। वह अपनी गांड को मटकती है।

देवरानी के दोनों बड़े चुतर को यू मटकता देख बलदेव से रहा नहीं जाता।

बलदेव (मन में) : "ये गांड बहुत मटका रही हो रानी जब इसे अपने मुसल से कुटूंगा तो पता चलेगा"।

देवरानी (मन में) ; अब तो बलदेव का बच्चा आएगा ही मेरे पीछे!

और अदा से पीछे मुड़ कर देखती है फिर अपनी गांड पर गुमान करते हुए बलदेव के कमरे में जाती है।

बलदेव भी पीछे-पीछे चोरों की तरह अपनी माँ की गांड का पीछे करते हुए अपने कक्ष में प्रवेश करता है।

बलदेव को उसकी माँ सामने खिड़की पर खड़ी मिलती है। पर उसे अपने पलंग के सामने एक चित्र लटका हुआ दिखता है।

दीवार पर चित्र में जिस महिला का चित्र था वह कुछ देवरानी जैसी थी, जिसे देख बलदेव समझ जाता है। ये तो माँ का ही चित्र है।

"ये माँ की चित्र कला की कृति किसने बनाई और मेरे कक्ष में कैसे आयी?"

बलदेव देवरानी को देखता है तो पाता है। की देवरानो बड़ी मनमोहक अंगड़ाई की अदा से खिड़की के दोनों ओर अपने हाथ रखे अपनी गांड को फेलाए खड़ी हुई थी।

बलदेव: (मन में) जी तो चाहता है। अभी खड़े-खड़े हे पेल दू पर ये कोई कमजोर माल नहीं है। ऐसी पारसी माल की मलाई खाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी ।

जालीदार ब्लाउज और साडी में देवरानी के मनमोहक जिस्म को घुर कर बलदेव का लंड सर उठाने लगा तभी देवरानी अपना हाथ पीछे ले जाती है और अपने ब्लाउज का डोरी खोल देती है। जिसे देख फन्नं से बलदेव का शेर हुनकार भरने लगता है। फिर देवरानी एक अदा से बलदेव पर कहर बरपते हुए घूमती है।

देवरानी की ऐसी कातिल मुस्कान और उत्साह से भरे अंदाज़ ने बलदेव की कुछ भी सोचने समझने की शक्ति छीन ली और अब वह हर गुस्सा गिला शिकवा भुला कर देवरानी के पास जाना चाहता था । वह जा कर उससे पीछे से चिपक जाता है।

बलदेव: मां जान लोगी क्या?

बलदेव उसके कानों में सरगोशी करते हुए कहता हैं। देवरानी आख बंद किये हुए थी।

"और उसका क्या जो दोपहर से तुम मुझ से दूर जा कर मेरे दिल को ठेस पहुँचा रहे थे?"

"माफ़ कर दो मेरी रानी!"

"उहह आआह! मुझे समझ आता है तुम्हारा प्यार! पर तुम शायद ये नहीं जानते बलदेव में इस प्यार के लिए बरसों से तरसी हूँ।"

"मां तो उस दिन राजा राजपाल से क्यू चिपकी थी और खूब हस-हस कर बाते कर रहे थे तुम दोनो।"

"वो मैं गुस्से में थी। तुम्हें बुरा लगा मेरे राजा!"

"हाँ मेरी रानी को कोई और छुए तो राजा को बुरा तो लगेगा! हे ना?"

"पर वह तुम्हारे बाप है। उसकी पत्नी हूँ मैं । अब भी तुम उनकी पत्नी के साथ-साथ छेड़-छाड़ करते हो और अपने पिता को नाम से बुला रहे हो।"

बलदेव अब कस के देवरानी को पीछे से दबा लेता है।

"इश्श बलदेव!"

"वैसे पिता का क्या जिन्होंने मेरी रानी को जीवन भर तकलीफ दी है। और वह मेरा शत्रु है जिसने मेरी रानी को दुःख दिया ।"

"उहह आआह मेरे राजा! आराम से! अगर तुम्हें उस दिन के लिए बुरा लगा हो तो माफ़ कर दो! वैसे उस दिन भी तुम्हारे पिता जी ने बस मेरे साथ बाते की और फिर उस सृष्टि के कक्ष में चले गए मुझे छोड़ के. आआह!"

"मैं नहीं चाहता कि वह राजपाल तुम्हें छुए भी ।मेरी रानी!"

"बस तुमने कहा मतलब आज के बाद वह राजपाल मेरा कोई नहीं है।"

अब तक गले लगाने से दोनों के जिस्म गरम हो गए थे और दोनों एक दूसरे में समाना चाहते थे।

"वो सब छोड़ो बलदेव बड़े गुस्सा थे आज दिन में और शाम होते ही फिर प्यार आगया मुझ पर?"

"माँ तुम्हारे पास वह सब कुछ है जिससे मैं क्या, कोई भी मर्द किसी की हत्या भी कर दे!"

"उहह सच्ची बलदेव!"

"सच मेरी रानी!"

बलदेव अब आला आते हुए ब्लाउज के डोरी को हाथ से हटा कर देवरानी के पीठ पर हाथ फेरते हुए।

"क्या पीठ है। तुम्हारी कसम से इसे तो चाटने का मन कर रहा है।"

"तो चाट लो!"

फिर बलदेव अपना मुँह लगा कर पीठ को चूमता है और पीठ को जबान से चाटते हुए ऊपर आने लगता है।

"उम्म्म्म माँ! क्या दूधिया पीठ है, तुम्हारी!"

"उहह आआह बलदेव! आराम से! पूरा पीठ भीग गयी मेरी कितनी गरम जबान है तुम्हारी!" "आआआआह। उह्ह्ह्ह!"

बलदेव ऊपर अपने होठ ले कर आता है।

"उहह्म्म्म ओम्म्म्म्म आह मा!"

"उफ्फ्फ बलदेव मेरी जान लोगे तुम अब।"

अगर तुम ऐसे बिजली गिराओगी दिन दिहाड़े तो मैं उसका बदला ऐसे ही लूंगा। "

"हे भगवान! उफ्फ! घर पर सब है। संयम रखना सीखो! मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ । उह बलदेव!"

बलदेव अब सीधा हो कर देवरानी की गांड पर अपना 9 इंच का लंड चुभा देता है।

देवरानी ने भी अपनी 44 की गांड पर लंड मेहसूस कर आखे बंद कर ली थी ।

"कैसा लग रहा है। माँ"

"ओह्ह बलदेव! बेशरम आह्ह!"

बलदेव ने नीचे से अपनी माँ को हाथो को अपने कब्ज़े में ले लिया था।

"बोलो ना माँ कैसा लग रहा है।"

"उह बलदेव! अच्छा!" देवरानी अब अपने पेट पर रखे बलदेव के हाथ को अपने हाथ से दबाती है।

"क्या इतना मजा कभी तुम्हारे पति ने दिया?"

"इस्सस! चुप करो बलदेव! वह मेरी इज्जत नहीं करता मजा तो दूर की बात है।"

"तुम्हें मैंने हृदय से प्रेम किया है, पुत्र! तुम ही मेरे पहले प्यार हो मेरे आशिक!"

"पिता जी को उनकी गलती की सजा मिलेगी1"

"वो क्या मुझे प्रेम करेगा पिछले 18 वर्ष में 18 बार भी मेरे साथ नहीं सोया।"

"क्या माँ? ये क्या कह रही हो तुम?"

"सच्ची बलदेव वह दुष्ट 18 बार क्या मेरे साथ मिलन करेगा 18 मिनट भी नहीं किया? "

"इसका मतलब तुमने अभी तक 18 बार भी मिलाप नहीं किया?" और बलदेव देवरानी के बालों में नाक लगा कर सुंघता है।

"नहीं बलदेव में झूठ नहीं कहूंगी । राजपाल ने पहली बार सुहागरात में मुझे कुछ समय दिया। सुहागरात के बाद हम केवल तीन या चार बार मिले।"

"उह माँ उम्हा!" बलदेव उसकी गर्दन पर चूम रहा था "तुम्हारी जुल्फो की ये खुशबू, माँ!"

"उहह आआह! बेटा तुम्हें पता है। तीन चार बार भी मैं ही छुप-छुप के उनके पास गई थी क्यू के उनको कसम थी सृष्टि की तरफ से।"

"मेरे जीवन से खेला है इस सृष्टि ने!"

बलदेव चेतना जारी रखते हुए-हुए पूछता है "मां तुम्हारी आयु कितनी है।"

"उह आह आराम से बेटा! मैं 35 साल की हूं ।"

"अभी बहुत समय है। पश्चिम देशो में तो इस उमर में लोग विवाह करते हैं और वैसे भी मैं पूरे 18 साल का कसर पूरी कर दूंगा।"

बलदेव अब धीरे-धीरे अपने लौड़े को देवरानी की गांड की दरार में घुसा रहा था ।

"उह आआह बलदेव!" देवरानी अपनी आंखे बंद कर मजे ले रही थी।

"बलदेव मैं तुम्हें अपना मानती हूँ, दिल से! राजपाल की तरह धोखा ना देना।"

"मैं उसके जैसा बेवकूफ़ नहीं जो तुम जैसी माल के रहते हुए कहीं और मुँह मारू।"

"सब मर्द ऐसा ही कहते हैं।"

बलदेव देवरानी के बाल को खोल देता है।

"माँ तुम्हारा चाँद-सा मुखरा और सुंदर हो गया । तुम्हारी सुराही दार गर्दन! उफ़ माँ तुम्हारी आँखे 1 तुम्हारे होठो की लाली! तुम्हारे ये गाल दूध से चमक रहे है। काट लू!"

"उह! इतना प्यार करता है, मुझे!"

"यकीन नहीं होता तो आज़मा कर देखना कभी।"

"कितना प्यार करते हो मुझसे?"

"अपनी जान से भी ज़्यादा!"

"और तुम मेरी रानी! तुम कितना चाहती हो अपने प्रेमी बलदेव को?"

"इतना कि अब तुम ही मेरे भगवान हो और तुम्हारी इच्छा पूरी करना ही मेरी भक्ति है। बलदेव!"

"नहीं माँ पूजा तो मैं करना चाहता हूँ इस संगेमरमरी बदन की। तुम्हें तो मैं रानी नहीं महारानी बना कर रखूँगा और देवी माँ बना कर दिन रात उपासना करूँगा।"

देवरानी बलदेव को मुस्कुराते हुए एक अदा से दीवार की ओर ढकेलती है।

"अपनी माँ को महारानी बनायेगे। बड़ा आये! महाराजा तो अभी बने नहीं हो ।"

"माँ घटराष्ट्र का अगला महाराजा मैं ही हू और तुम बनोगी मेरी महारानी।"

देवरानी बलदेव के बलिष्ट सीने पर हाथ रख मुस्कुरा रही थी।

"और वैसे भी मैंने घटराष्ट्र की महारानी को जीत लिया हू तो महाराजा तो हो ही गया हूँ । मुझे पिता जी राजा बनाएँ इसकी आवश्यकता ही नहीं है ।"

"देवरानी को अपनी महारानी बनाने का स्वप्न अगर देख रहे हो तो फिर सीने में तलवार खाने के लिए तैयार रहना ।"

"मर जाऊंगा पर तुम्हारे हर अधूरे सपने को पूरा करूंगा । ऐसी जान का क्या करना जो अपने प्यार पर ना मर सके"

देवरानी की आंखो में अचानक एक अलग-सा प्यार आ जाता है।

बलदेव यू प्यार से देख रही देवरानी के पास अपना मुंह ले जाता है।

"यही करना चाह रहा था ना दोपहर को!"

"हाँ मेरी महारानी!"

"आजा मेरे महाराजा!"

देवरानी बलदेव की आंखों में देख रही थी और बलदेव अपने होठ हल्का खोले हुए थे देवरानी के होठो के करीब धीरे से ला रहा था।

जैसे ही बलदेव के होठ देवरानी के होठो से टकराते है। वह आखे बंद कर लेती है। पर बलदेव अब भी उसके मासूम से चाँद से मुखरे में खोया हुआ था।

"उहह आआआहह!"

बलदेव ने हल्का-सा होठ को पकड़ा था और फिर वह अपने दोनों होठों से देवरानी के निचले होठों को पकड़ लेता है।

"उहह बल...!"

"उम्म्म्म माँ ह्ह्ह!" "

चप्पप्प! चुउउउउ!की आवाज से बलदेव चुसे जा रहा था!

देवरानी अब अपने होठ थोड़े बलदेव के होठ पर रगड़ती है।

बलदेव दोनों होठों से देवरानी के निचले होठों को पकड़ता हैं।

देवरानी: उहह आआआहह!

ज़ोरो से अपनी छाती ऊपर नीचे करती है।

बलदेव होठ को चबा के चूस रहा था।

देवरानी ज़ोरो से उत्तज़ना में बलदेव से चिपक जाती है। देवरानी अपने दूध बलदेव के सीने से सटाती है।

बलदेव उसके होठों को चूसते हुए उसके कमर पर हाथ रखे उसे अपने पास खींचता है।

और फ़िर उसके होठों को खूब ज़ोर से चूसता है । फिर देवरानी के दोनों ओंठो को खूब ज़ोरो से चूस रहा था बलदेव।

देवरानी: उहह आअम्म्म्म!

देवरानी उसका साथ देते हुएउसके होठों में अपनी जिह्वा डाल देती है।

"उम्म्म्म आआह्म्म्म!"

उह चुउउउ चुउउ आआआह उन्म्म्म! "

अब देवरानी भी खूब कस के साथ चूम और चाट र रही थी और उसकी सांसे रुकने लगी तो वह बलदेव के मुंह से थोड़ी दूर होती है।

अपने अंदर थूक गटकते हुए मुस्कुराते हुए कहती हैं।

"तुम थकते नहीं बलदेव!"

"तुम्हें प्यार करते हुए बरसो बीत जाए तो पता ना चले। इतनी जल्दी तुम थक गयी क्या मेरी रानी?"

"मैं तुम्हारी माँ हूँ! पारस की रानी!" और बलदेव उसे अपने से खूब जकड़ कर गले लगा लेता है।

"ये तुम्हारा चित्र मेरे कक्ष में कैसे आया और कहा से आया?"

"अरे मेरे राजा! तो तुमने देख लिया वो, वह मेरी ओर से उपहार है मेरे प्रेमी के लिए!"

"उस चित्र में तुम माल लग रही हो तुम्हारे मांसल पेट और उभार सब दिख रहे हैं।"

"हुं! पागल! तो देखना सुबह शाम मेरे चित्र को।"

देवरानी बलदेव के सीने को सहलाते हुए कहती है।

बलदेव ये सुन कर फिर से बाहो में देवरानी को भरे हुए कहता है "ओह मेरी देवरानी!" मेरी प्रेमिका! "

और झट से उसके होठों को फिर अपने होठों में दबा लेता है। चुसने लगता है।, देवरानी उसके बाहो में सिमटी चली जाती है और अपने नाम पुकारने से और उत्साहित हो जाती है।

देवरानी: (मन में) "हे भगवान! ये तो अपनी माँ को नाम से पुकार रहा है। जैसे मैं इसकी पत्नी हो गई!"

देवरानी के होठ की लाली को चूसते हुए बलदेव ने खूब जोर से नाम बोला था और फिर ओंठ चूसने लगा था । जिसे देख कर देवरानी भी अपने मन में कहती है "अब इसे प्रेमी बनाया है।" तो नाम तो लेगा ही "

देवरानी अब ज़ोर से बलदेव के ओंठो को अपने ओंठो में दबा लेती हैं और चूसती है ।

देवरानी अब पानी छोड़ने लगती है। उसकी चूत किसी भट्टी की तरह जल रही थी वह बलदेव के होठ को जकड़ के चूस के रस पी रही थी।

बलदेव अब अपने लौड़े को देवरानी की बुर पर खूब ज़ोर से रगड़ता है और होठ चुस्ते हुए एक लंबी सांस ले कर अपनी माँ का होठ छोड देता है।, देवरानी की चूड़ी तन-तन बज रही थी।

बलदेव: देवरानी!

देवरानी: बलदेव! उह1

"ऐसे सर क्यू नीचे झुका रही हो? मेरे नाम लेने से कोई आपत्ति है, मेरे प्रेमीका को"

"नहीं मेरे प्रेमी! पहले बार सुना तो अटपटा लगा! पर तुम्हारा कहने का हक है।"

"मेरे प्रेमी कहो! पुकारो मेरे नाम से!"

"देवरानी जी.! महारानी देवरानी!"

"महाराजा जी! महाराजा बलदेव1"

और अपनी चूत को जोर से रगड़ती है। बलदेव के लंड से चूत पर थप्प कर चोट लगती है ।

देवरानी अपने होठ आगे बढ़ाती है और बलदेव उसके ओंठ पूरे अपने मुँह में भर कर चुसने लगता है।

बलदेव के मुँह से हल्का-सा निकलता है। "देवरानी!"

अब देवरानी किसी शेरनी की तरह उत्तेजित हो कर बलदेव पर भारी पड़ती हुई अपने जीभ को निकाल कर बलदेव के मुख में डाल, उसके होठों को बुरी तरह चूसने लगती है।

"उहम्आआ आआहा!"

देवरानी मन में"मेरे राजा अभी तुझे पता नहीं हैं पारस के शेरनी के मुँह लगने का अंजाम!"

उम्म्हा चुउ आआआह!

देवरानी अपने जिभ को अंदर घुसाए और अपने दोनों होठों से बलदेव के होठों को खाए जा रही थी और बलदेव भी उसे इस तरह से चूसने से हैरान था।

"उह्म्म्म आआह बल...!"

उह माँ!

और बलदेव के होठों को काट कर वह अपने होठों पर जबान फेरते हुए बलदेव के ओंठो को चूसती है।

देवरानी अब भी बलदेव के बलिष्ट सीने पर हाथ रखे हुई थी और संतुष्टि से बलदेव को देख रही थी। बलदेव उसे देख हैरान था।

"माँ तुम्हारा ये रूप बड़ा कातिल था!"

"तुम्हें एक तरसे हुए दिल और पारस की रानी को ख़ून चखा दिया है। अब देखते रहना ये शेरनी तुम्हारा क्या हश्र करेगी।"

"मैं मर मिटने के लिए तैयार हूँ मेरी रानी!"

देवरानी: तुम्हें संयम रखना सिखा दूंगी तुम्हें काम के सारे सूत्र पता चल जाएंगे मेरे काम देव!

बलदेव: मेरी रति रानी वही तो मैं चाहता हूँ!

देवरानी: तो आजाना आज रात भोजन के बाद मेरे कक्ष में!

"तुमने कहा था ना देवरानी आज रात तुम्हें माँ नहीं देवरानी मिलेगी।"

देवरानी किसी भूखी शेरनी की तरह बलदेव के आखो में देखती है। बलदेव देवरानी का हाथ पकड़ कर चुमता है।

"मेरी देवरानी महारानी!"

और फिर उसे गले लगा लेता है।

जारी रहेगी

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