महारानी देवरानी 046

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46 रगड़ा पट्टी
3.7k words
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00

Part 46 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 46

रगड़ा पट्टी

देवरानी बलदेव से खूब रगड़ पट्टी कर के उसके कक्ष से नीचे उतरती है। वह गुनगुनाते हुए अपने बाल जो बलदेव ने पूरे खोल दिए थे उसे संवारती हुई नीचे उतर रही थी।

शाम को वक्त, वैध जी कहे अनुसार जीविका टहल रही थी और तभी उसे ऊपर से उत्तर कर बलखाती हुई देवरानी, मुस्कुराती हुई किसी घोड़ी की तरह चल कर सामने से आती दिखाई दी।

जीविका: (मन में) "किसी घोड़ी जैसी मटक रही है। आज तो ये लोग दिन दहाड़े शुरू हो गए, शाम में ऊपर से उतर रही है । दिन भर ऊपर ही थी क्या चुड़ैल?"

देवरानी अब जीविका के सामने थी । जीविका उसे देखती ही रह जाती है। देवरानी के बिखरे बाल अस्त व्यस्त साडी, ब्लाउज ढीला-सा पड़ा हुआ था, घाघरा मुड़ा उलझा हुआ था, देवरानी के होठों की लाली कहीं पर थी कहीं पर नहीं थी, उसकी गर्दन और गाल पर लाल निशान थे जिन्हे जीविका गुस्से से देख रही थी।

जीविका बूढ़ी हो गई थी उसे समझने में देर नहीं लगी, कि देवरानी का ये हाल कैसे हुआ होगा? पर जीविका को समझ नहीं आता है कि बहू को क्या बोले!

देवरानी: (मन में) बूढ़ी आखे फाड़ देख रही है तो देख ले की में करवा आई हूँ तेरे पोते से मालिश।

देवरानी जीविका को देखते हुए सोचती है पर जीविका बोल ही नहीं पा रही थी जैसे उसे कोई सांप सूंघ गया हो

देवरानी हल्का मुस्कुरा के जीविका के पैर छू लेती है।

"प्रणाम सांसू माँ!"

" हाँ! जीती रही! मजबूरन जीविका के मुँह से निकलता है। जिसे सुन कर देवरानी एक कातिल मुस्कान देती है और मन में कहती है।

(मन में: "अब लगा लो ज़ोर अपनी बुद्धि और अपनी बहू से पूरा जोर लगवा लो। इस बार तुम मेरी ख़ुशी नहीं छीन सकती! प्यारी सांसु माँ!")

"आ! ह!" हल्का मुस्कुरा के "तुम सबको तो मेरा बलदेव मजा चखायेगा! मेरे हर दुख का बदला लेगा वो!" और अपने सर के बाल को बाँध कर अपने पल्लू को झटका देकर चलती रहती हैं।

जीविका: (मन में) भगवान इस अधर्मी देवरानी की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। इसे सद्बुद्धि दे । ये तो अपने बेटे से ही रंगरलिया मना रही है।

"कही देवरानी हम सब से बदला लेने का तो नहीं सोच रही, ऊपर से आ कर चरण स्पर्श कर रही है जैसी सती सावित्री बहू हो।"

जीविका टहलते हुए सोचते हुए वह अपनी कक्षा में पहुँच जाती है।

उधर देवरानी भी अपनी कक्ष में पहुँचती है तो देखती है कमला उसका बिस्तर ठीक कर रही थी।

कमला पलट कर देखती है देवरानी का हाल देख कर सोचती है।

"लगता है कमीनी अपना तिजोरी बलदेव के चाभी से खुलवा के आ गई!"

कमला: देवरानी क्या बात है आज बड़ी खिली-खिली लग रही हो?

देवरानी: हाँ बस अब तो मेरा समय शुरू हो गया है। मेरी कमला! अब तो मैं बस ऐसे ही रहूंगी।

कमला: कैसा समय महरानी?

देवरानी: अब बनो मत।

कमला हस देती है ।

कमला: हे भगवान लगता है कोई तुम्हारी पूरी लाली खा गया हो!

देवरानी शर्मा कर "हां"

कमला: "हाँ महारानी कितना बुरा हाल बना रखा है?"

देवरानी: "क्यू ऐसा क्या हुआ है मुझे?"

कमला: "महारानी! अपनी हालत को देखो कोई बच्चा भी देखेगा तो समझ जाएगा कि खूब रगड़ पट्टी का खेल-खेल के आई हो।"

देवरानी: "चल मुझे घर में कौन देखने आ रहा है।"

कमला: "हे भगवान महारानी इतना भी ठीक नहीं है । किसी ने देखा तो नहीं ना आपको इस हाल में?"

देवरानी को जीविका का चेहरा याद आता है पर वह ये बात कमला से छुपाती है।

कमला: " हाय भगवान अपने आप को देखो! मेरा ऐसा हाल तो मेरी सुहागरात में रात भर सम्भोग करने के बाद भी नहीं हुआ था।"

देवरानी झट से अपनी कक्ष में आईने के परदे को हटाती है और अपने आपको देख "इश्ह्ह!" कर शर्मा जाति है।

उसकी पूरा गर्दन, गाल और होठ पर निशान पड़े थे। गोरे बदन पर लाल निशान अलग ही दिख रहे थे।

देवरानी: (मन में) ये बलदेव भी ना एक काम संयम से नहीं करता है । सब कुछ में अपना बल दिखाना जरूरी है।

कमला: क्या हुआ जी किसको याद कर रही हो।

देवरानी: तुम ज्यादा बड़बड़ मत करो या हाँ सुनो ये सफ़ेद चादर हटाओ पलंग पर से।

कमला: मैंने अभी बदल के नई बिछाई है।

देवरानी: नहीं हटाओ इसे दूसरी बिछाओ ।

देवरानी अपनी कक्ष के अंदर के कक्ष में जाती है जहाँ बड़ी आलमारी में से निकाल कर एक लाल रंग की चादर लाती है।

कमला; क्या बात है आज सफेद से सीधे लाल रंग पर, आज चुदाई का कार्यकर्म यहीं तो नहीं है?

देवरानी शर्मा के..

देवरानी : कमला चुप कर! कुछ न कुछ उल्टा दिशा पूछती रहती है तू, हाँ है! आज बलदेव यहीं आएगा। तुझसे मतलब?

कमला: मुझे सब बता दिया करो । कब कहा ये कमला काम आजाए किसी को पता नहीं होता।

देवरानी: वह तो है कमला, तू है बड़े काम की चीज, बस एक काम करना । आज रात में तू महल में रुक जाना और मेरे कमरे में रसोई का सामान रखा है, उस कमरे में एक खटिया है, वही सोना है तुम्हें।

कमला चादर बदलने लगती है

कमला: पर देवरानी, हमें यहाँ रुकना मना है।

देवरानी: समझो...तुम्हें अपनी पैनी नज़र बनाए रखनी है। जैसे ही राजपाल या कोई अन्य मेरी कक्ष में आने लगे तो मुझे सचेत कर देना, ताली बजा के या खांसी कर के इशारा कर देना

कमला: बड़ी चाल बाज़ होते जा रही हो?

देवरानी वही कुर्सी पर बैठती है या कामसूत्र की किताब पलंग के नीचे से निकाल कर खूब चाव से पढ़ने लगती है।

कमला सारा काम निपटाती है या रसोई में जा कर काढ़ा तैयार करने लगती है । फिर वह काढ़ा गिलास में ले कर आती है । देवरानी अब भी वह पुस्तक पढ़ रही थी।

कमला: कब तक पुस्तक ही पढ़ती रहोगी? ऐसा कुछ सच में भी करो!

कमला देवरानी के पास में ही बैठ जाती है।

देवरानी एक पन्ने को देख रही थी जिसमें एक पुरुष महिला की दोनों टांगो को अपने कांधे पर रख, बच्चे की तरह उठा रखा था। महिला दीवार के सहारे उसके ऊपर थी और उसका मुंह उस स्त्री के चूत में था।

कमला: ऐसा करने का इरादा है क्या?

देवरानी: धत्त ये सब तो बस चित्रकला है। सच में ऐसा नहीं होता!

कमला: नहीं ये सच में भी होता है करना आना चाहिए.

देवरानी: पर ये औरत इस चित्र में दीवार के सहारे इस पुरुष के कंधे पर बैठी है...छी!

और देवरानी पास रखा काढ़े का ग्लास उठा कर पीने लगती है।

कमला: फिकर न करो महारानी। बलदेव! आपको दोनों कंधो पर क्या एक कंधे पर भी उठा सकता है।

देवरानी: चुप कर पापिन!

कमला: आज शाम का योग नहीं किया, तैयारी करो मजबूती से, नहीं तो तुम्हारी हड्डी पसली एक कर देगा ये बलदेव!

देवरानी मुस्कुराते हुए..

"हाय! मेरी जान कमला में तो अंग-अंग तुडवाना चाहती हूँ । वैसे मैंने जड़ी बूटी वाला काढ़ा पी लिया है योग तो अब बलदेव के साथ रात को ही करूंगी।"

कमला: बड़ी छिनाल होते जा रही हो सती सावित्री से!

देवरानी: चुप कर... भगवान भी है इस कक्ष में, धीरे बोल!

कमला: तो क्या धीरे बोलने से तुम भगवान से बात छुपा लोगी और रात में यहीं अपने बेटे को ले सब कर लोगी, तो क्या भगवान को दिखेगा नहीं।?

देवरानी: हम्म्म पर इसमे भगवान की ही मर्जी है, इसलिए सब कुछ हो रहा है। उनकी आज्ञा के बिना कुछ नहीं होता।

कमला: अरे! मैं तो मजाक कर रही थी महारानी! आप तो, इस पल का आनंद लो । पुस्तक पढ़ो, में खाना बनाने जा रही हूँ।

देवरानी: जाओ! मैं कुछ देर में आई!

और फिर कामसूत्र पुस्तक पढ़ने लगती है।

वही बलदेव अपने कक्ष से बाहर आकार व्यायाम करने लगता है और सैनिक के साथ तलवार से अभ्यास करने लगता है ।

वही पर बैठे राजपाल उसे देख बोलता है ।

राजपाल: पुत्र बड़े ज़ोरो से तैयारी चल रही है कौन-सा क़िला फ़तेह करने का इरादा है।

बलदेव: (मन में) आपकी पत्नी का किला पिता जी!

"पिता जी अभ्यास और व्यायाम तो में रोज़ ही करता हूँ।"

राजपाल: चलो अब संध्या हो गई है घर चले।

बलदेव पसीना-पसीना हो गया था वह पास में रखे एक टोकरी से फल उठा कर खाता है या कुछ पिसी हुई जड़ी बूटी को फाक कर पानी पीता है।

राजपाल बलदेव के करीब आ कर "लगता है मेरा बेटा अपने शरीर पर खूब मेहनत कर रहा है।"

"पिता जी शरीर जितना स्वस्थ रहे उतना अच्छा होता है।" मज़ाकिया अंदाज़ में बलदेव बोलता है । "पता है पास एक गाँव में सुखिया नाम के युवक की पत्नी भाग गई अभी कुछ दिन पहले उनका विवाह हुआ था ।"

राजपाल: "क्या बात कर रहे हो ये तो गलत है।"

बलदेव: "सही है पिता जी उस सुखिया में जान नहीं है किसी डंडे की तरह है । उसको बिना दिखाए लड़की से विवाह करवा दिया। लड़की उसे सुहागरात में देख के ही भाग गई."

"पर ये तो घटराष्ट्र के नियम का उल्लंघन है।"

"वो तो है पिता जी! सैनिक अभी भी ढूँढ रहे हो उस लड़की को शायद वह अब राष्ट्र में नहीं है।"

"पर पिता जी क्या ये सही है? क्या किसी की इच्छा की विरुद्ध उसका विवाह करवा देना उचित है? अपने दिल से सोचिए! अगर आपका विवाह ऐसे स्त्री से करवा दिया जाए जिसे कोई रोग हो, तो क्या आप उसको रखोगे?"

"आप नहीं रखोगे पिता जी, क्यू के मर्द तो अपनी मर्जी से चुन कर विवाह करता है । औरत देखे बिना करती है"

"मैं तुम्हारी बात समझ सकता हूँ पर यही हमारा नियम और धर्म है।"

बलदेव (मन में) "अगर ये नियम ही धर्म है तो मैं इस नियम को नहीं मानता।"

"ठीक है पिता जी चले अब।"

"ठीक है चलो।"

ऐसे ही रात हो जाती है सब भोजन करने के लिए बैठ जाते हैं।

बलदेव ख़ुशी-ख़ुशी खा रहा था।

सृष्टि: आज दिन में तो मुह लटकाये हुए भोजन कर रहे थे तुम युवराज बलदेव। अभी बड़े खुश हो क्या बात है?

बलदेव: वह बस बड़ी माँ दिन में माँ का हाथ का था या अभी कमला के हाथ का है इसलिए!

सृष्टि ये उत्तर समझ नहीं पति क्यू के कमला से अच्छा भोजन तो देवरानी बनती है।

बलदेव देवरानी को देख मुस्कुराता है देवरानी हल्का गुस्सा दिखाती है और मार दूंगी का इशारा करती है।

सब अपना भोजन कर के अपनी-अपनी कक्ष की ओर जा रहे थे । बलदेव हाथ धो कर वहीँ टहलने लगता है।

बलदेव देवरानी के रास्ते में उसके सामने खड़ा हो जाता है। देवरानी अपना रास्ता बदल के आगे बढ़ने लगती है।, तभी बलदेव उसका हाथ पकड़ लेता है

"अरी कहा जा रही हो मेरी जान?"

"बलदेव हम महल के बीचो बीच है बेटा1"

"मैं किसी से डरता नहीं, जब प्यार किया तो डरना क्या" और मुस्कुराता है।

देवरानी धीरे से

"सब के सो जाने के बाद, आओ मेरे कमरे में" और शर्म से अपना सारा झुक लेती है।

सामने से राधा पायल खनकाती चली आ रही थी बरतन रखने, उसकी पायल की आवाज सुन कर बलदेव हाथ छोड़ देता है ।

बलदेव: "ठीक है माँ मैं भगवान का प्रसाद लेने आऊंगा।"

देवरानी "धत्त" और मुस्कुरा के शर्माते हुए अपने कक्ष में चली जाती है।

राधा को उन्हें देख कुछ शक होता है पर उसे कुछ समझ नहीं आता ।

राधा: (मन मैं) ये क्या हो रहा है मेरे दिमाग के बाहर है। इस बारे में महारानी सृष्टि से बात करनी पड़ेगी।

देवरानी अपनी कक्षा में जाती है खूब अच्छे से स्नान कर के सजती सवारती है । फिर अपने आपको आईने में देखती है।

देवरानी अपने गहनों में खूब जच रही थी उसके ऊपरी हिस्से में एक छोटा-सा कपड़ा था, जो उसके वक्षो और अन्य अंगो को ढक कम और दिखा ज्यादा रहा था और नीचे एक धोती नुमा कपड़ा जो की उसकी जांघ तक ही आ रहा था । कुल मिला कर आज देवरानी बिजली गिराने वाली थी।

खुद क ऐसा उत्तेजक रूप देख देवरानी बड़बड़ायी: "आज तो तुम गये बलदेव!"

देर रात चारो ओर से झींगुरो और सियार के बोलने की आवाज गूंज रही थी । सब के सब नींद की आगोश में चले गए थे । कमला देवरानी की बात मान, आज महल में ही रुकी थी और वही रसोई के पास खाट पर लेटी थी।

बलदेव हर पांच मिनट में महल और अपने कक्ष के चारों ओर चक्कर काट रहा था और देखने की कोशिश कर रहा था कि सब सोये के नहीं।

आखिरकार उसे आधी रात में लगता है कि अब सब के सब सो गए और महल के बाहर सैनिक भी नींद में ऊंघ रहे ठेस । वह हल्का-सा अपने बदन पर इतर लगता है और खुद को महका के धीरे से देवरानी की कक्षा की ओर चल देता है।

देवरानी अपनी कक्ष में गोल-गोल घूम रही थी और बलदेव का इंतजार कर रही थी।

तभी बलदेव देवरानी के दरवाजे पर पहुँचता है।

और एकदम हल्की आवाज से फुसफुसाता है।

देव...रानी...देव रानी! "और हल्के से उसके मुँह से सीटी निकलती है" श्श शी"

देवरानी ये सुन कर मुस्कुराती है और अपने कक्ष के द्वार की ओर बढ़ती है फिर-फिर जा कर दरवाज़ा खोलती है।

"कुंडी मत खड़काओ राजा!"

बलदेव आता है तो देवरानी को उस उत्तेजक एक छोटे से कपडे में देख पागल-सा हो जाता है।

देवरानी: सीधा अंदर आओ राजा, मन बनाओ मेरा ताज़ा ताज़ा!

बलदेव: आज ये रूप में पहली बार देख रहा हूँ तुम तो जान ले लोगी माँ!

दरवाजा खुला था फिर भी।देवरानी मुस्कुराती है।

बलदेव तो बस आधी नंगी देवरानी के वक्ष या उसके आधे खुले जांघो में खो गया था।

देवरानी मुड़ते हुए अपने बिस्तार की ओर जाने लगी।

देवरानी: वैसे ये देवरानी का रूप है तुम्हारी माँ का नहीं!

ऐसे बड़े-बड़े गांड, उन्नत वक्षो को छोटे से वस्त्र में देख के और फिर देवरानी की ऐसी कामुक कविता सुन कर बलदेव का लंड खड़ा हो गया था।

देवरानी तभी मुड़ कर देखती है और एक उत्तेजित स्वर में बलदेव को देख कामुक हो फुसफुसाती है । ।

"आओ राजा!"

बलदेव झट से दरवाजा लगाता है फिर अपनी माँ की ओर चल पड़ता है।

हरे रंग की धोती और कंचुकी में देवरानी कहर ढा रही थी, बलदेव उसके पीछे से उसका एक हाथ अपने हाथ में लेता है दूसरे हाथ से उसके मुलायम पेट को पकड़ता है ।

बलदेवःमां देवरानी!

"इश्श्श आआह बलदेव!"

"तुम इस परिधान में पहले कभी नहीं दिखी?"

"किसके लिए पहनती ये? अब से जब भी तुम चाहोगे मैं ये पहनूंगी!"

"पर माँ तुम्हें लोग साडी में देख आपा खो देते हैं ये पहन के बाहर मत जाना।"

"अगर ये पहन बाहर गई तो?"

"तो कोई तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे देगा। ज़बरदस्ती भी कर सकता है।"

"इतनी हिम्मत नहीं किसी की देवरानी के पास भी फटके. तलवार से दो भाग में बाँट दूंगी उसे ।"

"पर माँ मैं नहीं चाहता कि कोई तुम्हें देख कर आहे भरे या नज़रो से पीये।"

"ठीक है बलदेव जैसी तुम्हारी मर्जी! नजरों से तो चाँद को भी लोग प्यार कर लेते हैं पर छू तो नहीं सकते।"

बलदेव देवरानी के मखमली पेट को दबोच कर सहलाने लगता है।

"मां तुम भी मेरे लिए उस चांद से कम नहीं, जिसके लिए मैं सपना देखा करता था।"

"उहह आआह बलदेव आराम से।"

बलदेव देवरानी का पेट खूब अच्छे से सहलाता है और रगड़ता है

"तुम्हारी ये गहरी नाभि कितनी प्यारी है!"

बलदेव कमर को पकड़ कर देवरानी की गांड को अपने लंड की तरफ खींचाता है जिसे समझ कर देवरानी थोड़ा झुक जाती है।

देवरानी अपना एक पैर सोफ़े पर रख दूसरा पैर नीचे रख अपनी गांड को बलदेव के लौड़े की तरफ कर देती हैऔर अपने दोनों हाथों से सोफे का कोने को पकड़ लेती है।

बलदेव मुद्रा समझ कर सीधा खड़ा हो कर अपनी धोती में छिपे बड़े हुल्लबी 9 इंच का लौड़ा, देवरानी की 44 की गांड पर टिका देता है, जिसे महसूस कर देवरानी अपनी आँख बंद कर लेती है।

"माँ तुम्हारे बड़े तरबूज़ कितने गोल आकर के हैं।"

देवरानी हल्का मुस्कुरा के अपना गांड पीछे की ओर ढकेलती है और बलदेव अपना हाथ देवरानी के कंधे पर रखता है । देवरानी बलदेव का घुटना पकड़ लेती है और अपनी गांड को बलदेव के लंड पर रगड़ती है।

बलदेव का लौड़ा पूरा आकार में बड़ा हो कर अब पूरी औकात में आ गया था । वह अब देवरानी के झीनी से साडी के बाबजूद देवरानी के नितम्बो के बीच अपनी जगह तलाशने लगा था । बलदेव का लंड देवरानी की ढीली और झीनी धोती में गांड की दरार ढूँढ लेता है और वहा घुसने लगता है।

बीच की दरर को लंड पर मसहूस करते ही बलदेव हल्का-सा धक्का लगाता है।

"उह अम्म! कितनी गरम हो तुम मेरी रानी!"

"आआह बेटा आआ!"

उत्तेज़ना के मारे देवरानी बलदेव के लंड पर अपनी गांड को गोल-गोल घुमा रही थी और अपनी गांड की दरार में बड़ा लंड फ़सा हुआ महसुस कर रही थी।

बलदेव अब दोनों हाथ गांड पर रख गांड की दरार में लंड खूब रगड़ता है । देवरानी आख बंद किये रहती है।

"कितने मोटे हैं ये माँ! "

"आआह जो है सब तेरे है मेरे लाल आह्ह!"

"ये सीधा अंदर जाना चाहता है।"

ये सुनते हैं देवरानी का ध्यान भंग होता है या वह आगे बढ़ जाती है। "फक्क" की आवाज से गांड की दरार से लौड़ा निकल जाता है। देवरानी शरमाई हुई धोती के ऊपर तंबू बने, बलदेव के लौड़े को खा जाने वाली नज़र से देख रही थी।

देवरानी: अब तुम लेट जाओ मुझे प्यार करना है।

अब बलदेव चित लेट जाता है।

देवरानी बलदेव के नंगे चौड़े सीने को देख"बलदेव तुम्हारी छाती कितनी मजबूत हैं।"

अपने हाथ से उसकी छाती को सहलाने लगती है। अब बलदेव अपनी आख बंद कर देता है।

"मां तुमने ये सब कहा से सीखा?"

"ये बात बाद में बेटा! अभी जो सीखी हूँ वह तो कर लू।"

ऐसे सहलाने से बलदेव का लौड़ा धोती में खड़ा हो कर आसमान की ओर देख रहा था।

"आह माँ तुम सच में रति देवी हो"

"हाँ मेरे काम देव के लिए तो रति ही चाहिए."

देवरानी एक बार बलदेव के खड़े लौड़े को देख (मन में) "ये कमला सही कहती थी कि इसका लौड़ा सब से बड़ा है और यही मेरी चूत के हिसाब से सही है, ऊपर से इतना बड़ा लग रहा है तो नंगा तो विकराल लंड लगेगा ।"

देवरानी अब बलदेव के जांघो पर अपने मांसल जांघ रख सहला रही थी।

और अपने बड़े वक्ष को बलदेव की छाती पर टिकाये हल्का-सा रगड़ लेती है।

"आआह माँ उहह!"

देवरानी आधी बलदेव के ऊपर लेट जाती है और बलदेव के लंड पर अपनी चूत रख के रगड़ती है और अपने वक्ष उसके सीने में दबा लेती है और उसके होठों पर पहुँच जाती है।

"ओह मेरे राजा!"

देवरानी अपनी जिभ निकल कर बलदेव के होठ को पकड़कर के चुसने लगती है

" गल्लप्पप्पप्प गल्पपपपपप! उम्म्म्हहाआ! गैलप्पप्पप्प! अम्म्म्म्म्म!

बलदेव भी प्रतिक्रिया में उसका साथ देता है

"आआह माँ!"

गैलप्पप्प! उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म! गैलप्पप्पप्प! गैलप्पप्प! आह! उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म!

बलदेव और देवरानी खूब एक दूसरे को चूसते हैं और तभी रुकते हैं जब देवरानी की सांसें लेने में तकलीफ होने लगती है।

बलदेव से भी अब बर्दाश्त करना मुश्किल था । वह झट से देवरानी को अपने गोद में लेने लगता है।

देवरानी मुस्कुरा कर"संयम मेरे राजा!"

"राजपाल ने भी ऐसे ही जल्दबाज़ी की थी । मैं नहीं चाहती कि तुम भी जल्दीबाज़ी करो!"

बलदेव देवरानी के दोनों जांघों को पकड़कर ऊपर उठा लेता है या खुद पालथी मार के बैठ जाता है।

देवरानी को अब धीरे-धीरे लंड पीठ कर बैठाते हुए.

"मां मैं राजपाल जैसा नहीं बनूंगा कभी।"

"तुम्हें भी इस आसन का पता है?"

"मां बस तुम वह नहीं हो जो कामसूत्र पढ़ सकती हो।"

देवरानी को झटका लगता है।

"तुम्हें ये कैसा पता बेटा?"

"मां मैंने भी उस पुस्तक को देखा जिसको तुम पढ़ती हो" "वो पुस्तक मैंने कमला के हाथो में पकड़ ली थी"

"ये कमला भी ना!"

"हाँ उसने बताया ये तुम्हारी माँ की पुस्तक है।"

बलदेव अब खूब अच्छे अपने लंड पर देवरानी की गांड को मसलता है और उसके पीछे से उसकी पीठ पर चुम्बन लेने लगता है । अब उसका हाथ देवरानी की गांड को हल्का-सा छू रहा था।

बलदेव का लंड अब गांड की दरार से होते हुए उसकी चूत तक पहुँच रहा था।

दोनों आखे बंद थी और दोनों अनादित हो रहे थे।

देवरानी (मन में) "आह! कितना बड़ा लंड है मेरे कमीने आशिक का1"

"आह बलदेव उहह!"

"तुम्हें बुरा तो नहीं लगा कि तुम्हारी माँ ऐसी चित्र देखती है या ऐसी पुस्तक पढ़ती है।"

"नहीं माँ मेरी माँ की हर बात सही है। मुझे तुम्हारी कोई बात बुरी नहीं लगती।"

"उहह आआआह बलदेव!"

बलदेव अब देवरानी को उठाये अपनी लंड पर उसकी गांड को आगे पीछे करते हुए जोर-जोर से रगड़ने लगता है, जीससे उसके हाथ भी उसके वक्ष से बार-बार टकरा रहे थे।

"आआह बलदेव ओह्ह्ह उह्ह्ह नहीं बलदेव!"

"आह माँ तुम कितनी भारी हो!"

"आहह उहह बलदेव इसलिए ही तो तुम्हें चुना है मैंने! उहह! आआआहह! के तुम मेरा भार उठा सको।"

उहहहह आआआआह नहीं माँ! "

"आआह ऐसे ही बलदेव और रगड़ो मुझे।"

"आह ये मटको जैसी गांड ने मुझे कभी दाएँ कभी बाएँ हो कर मुझे बहुत सताया है!"

आआआह और रगड़ो मेरे राजा! कर-कर रगड़ो! "उहह आआआह!"

"तो ले लो इनसे, अपना बदला उहह बेटा।"

देवरानी की पायल या चूड़ी की आवाज फ़िज़ा में गूंज रही थी और बलदेव तथा देवरानी की सिस्की से पूरा महौल उत्तज़ना से भरा हुआ था।

"बलदेव उह्ह्ह आआआआआ-आआआआआ नहीं बलदेव ओह्ह्ह्ह मैं गई!" फिर देवरानी झड़ जाती है।

"आह माँ रुको! आआआह उहह ये लो मेरा। हथौड़ा! अपने तरबूज़ पे! उहह आआह! तोड़ दूंगा इसे आज।"

"उहह आआआह बेटा।"

"आआआह आआआ या बलदेव के बड़े लौड़े ने धोती में छेद कर खूब सारी पिचकारी छोड़ दी, जो कुछ उसकी धोती और कुछ देवरानी की गांड ऊपर जा कर गिर गयी"

देवरानी उठती है तो उसे अपना कपड़ा गीला महसूस होता है"ये क्या बलदेव तुमने पूरा पिछवाड़ा खराब कर दिया।"

"माँ कपड़े बदल लेना ।"

देवरानी मुस्कुराती है और बलदेव के गाढ़े पानी को अपनी गांड पर से अपनी उंगली में ले लेती है ।अपने होठों पर ले जा कर अपने होठों पर लगा कर बलदेव को देख कर आँख मारती है।

बलदेव अपना लौड़ा पकड़े बैठा था। वह उसे सहलाने लगता है।

देवरानी उसके लंड के पानी को एक अंदाज़ से अपने होठों से छुआ कर चाट लेती है।

बलदेव उठ कर अपनी माँ को गले से लगा लेता है।

"देवरानी मेरी रानी!"

"बलदेव मेरे प्रेमी!"

"तुम रति से कम नहीं मेरी रानी!"

"और तुम कामदेव हो!"

जारी रहेगी

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