सहकर्मी से प्यार

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साथ पढ़ाने वाली टीचर से पहले प्यार और बाद में शादी
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मैं एक स्कूल में टीचर था, कंप्यूटर पढ़ाता था। स्कूल का काफी स्टाफ फीमेल था इस लिये माहौल सही सा ही रहता था। मेरे से सब दोस्ती रखना चाहते थे क्योकि कंप्यूटर तब नया नया आया था और सब उस के बारें में ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाना चाहते थे सो मैं सब की गुड बुक में था। मेरा भी सब से वास्ता पड़ता था, इस कारण से स्टाफ के हर मेम्बर से बोलचाल थी। कुछ मेरे वाचाल होने के कारण स्टाफ में मेरी लोकप्रियता ज्यादा ही थी। कुछ लोग इस कारण से मुझ से जलते भी थे लेकिन मेरा कुछ बिगाड़ नहीं पाते थे। मुझे यह बात पता थी लेकिन मैं किसी से उलझाव नहीं चाहता था इस लिये अपने काम से काम रखता था लेकिन अगर किसी को मेरी जरुरत पड़ती थी तो उस की मदद करने में भी नहीं हिचकता था।

मेरे साथ की एक महिला टीचर जो देखने में बहुत साधारण नजर आती थी और कपड़ें भी बड़े साधारण से पहनती थी। साथ में रहने के कारण बातचीत होना लाजमी था सो हल्की-फुल्की होती रहती थी, लेकिन ज्यादा जान पहचान नहीं थी ना मैं आगे बढ़ना चाहता था ना ही वो।

शाम को देर होने के कारण घर छोड़ने जाना

विद्यालय में वार्षिक उत्सव की तैयारियाँ चल रही थी इस कारण से सभी टीचरों को देर तक रुक कर इस की तैयारी में लगा रहना पड़ता था। ज्यादातर तो शाम होने से पहले ही सब चले जाते थे लेकिन एक दिन शाम हो गयी और फिर अंधेरा छा गया। सभी टीचर निकल गये थे केवल मैं और निशा ही स्कूल में बचे थे। हम दोनों ने जब अपना कार्य समाप्त किया और चलने लगे तो निशा को इतनी रात को अकेले भेजना मुझे सही नहीं लगा और मैंने उस से पुछा कि क्या मैं उसे घर छोड़ दूँ? तो वह बोली कि हाँ क्योंकि बहुत अंधेरा हो गया है तथा अब अकेले जाना सही नहीं है। निशा बोली कि तुम ने पुछ लिया नहीं तो मैं तुम से अनुरोध ही करने वाली थी कि आज मुझे घर छोड़ दो। हम दोनों मेरे स्कूटर पर बैठ कर निशा के घर के लिये चल पड़ें।

निशा का घर शहर के एक कोने में था। छोटा शहर था इस लिये परिवहन की सुविधायें ज्यादा नहीं थी और शाम को तो जो थी वह भी गायब हो जाती थी। निशा जिस मोहल्ले में रहती थी वहाँ आबादी कम ही थी। इस लिये ज्यादा सुनसान सा लग रहा था। जब हम दोनों निशा के घर पर पहुँचे तो उसे उतार कर जब मैं वापस चलने के लिये स्कूटर मोड़ने लगा तो निशा बोली कि आप चाय पी कर जाओ। मैंने पहले तो मना किया लेकिन उस के बार-बार अनुरोध करने पर मैं चाय पीने रुक गया। स्कूटर पार्क करके उस के घर में आ गया। दो कमरों का उस का घर साधारण था, लेकिन सुरुचिपूर्ण तरीके से सजा था। वह यह बता रहा था कि इस घर की मालकिन बहुत सुरुचिपूर्ण विचारों की है। मैं सोफे पर बैठ कर इधर उधर नजरें मारता रहा।

कुछ देर बाद निशा एक प्लेट में चाय के दो कप और एक प्लेट में बिस्कुट ले कर आ गयी। वह कपड़ें भी बदल आयी थी और पहले से बेहतर लग रही थी। उस ने चाय मेज पर रख कर एक कप मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने कप उस के हाथ से लेकर उस से चाय पीनी शुरु की। चाय के पहले घुट से ही पता चल गया था कि निशा चाय बढ़िया बनाती है। मैंने कहा कि आप चाय तो बढ़िया बनाती है। ऐसी चाय पीने के लिये तो रोज आप को कष्ट दिया जा सकता है तो वह बोली कि आप का स्वागत है। उस का चेहरा अपनी प्रशंसा सुन कर गुलाबी हो गया था। हम दोनों चुपचाप चाय पीने लगे। लेकिन मैं अपनी आदत से मजबुर था तो बोला कि निशा जी आप के घर में कोई और नजर नहीं आ रहा है तो वह वोली कि मैं अकेली ही रहती हूँ परिवार गांव में रहता है। कभी-कभार कोई आ जाता है ज्यादातर तो मैं अकेली ही होती हूँ। अब अकेले रहने की आदत पड़ गयी है। उस के यह शब्द उदासी से भरे थे जिसे मैंने महसुस किया।

निशा नें मुझ से पुछा कि आप का परिवार कहाँ है तो मैंने बताया कि मैं भी अकेला ही रहता हूँ। परिवार दूसरे शहर में है। अपना व्यवसाय है मैं ही जिद करके सरकारी नौकरी मिलने के बाद उस से अलग हुआ हूँ। वह यह जान कर आश्चर्य से बोली कि आप अकेले कैसे रह पाते है?

जैसे आप

मेरे पास तो कोई चारा ही नहीं है।

क्यों

लम्बी कहानी है।

अगर सुनाना चाहे तो सुना सकती है

अभी नहीं

जैसी आप की मर्जी

मैं भी ज्यादा नजदीकियां नहीं चाहता था। चाय पीने में रात काफी हो गयी थी तो निशा बोली कि आप रात का खाना खा कर जाइये। मैंने कहा कि दूसरें के हाथ का खाना अच्छा लगता है लेकिन अभी काफी देर हो गयी है। फिर कभी मौका मिला तो अवश्य खाऊँगा। यह कह कर मैं निशा से विदा ले कर अपने घर के लिये चल दिया। रात को घर पर खाना नहीं बनाना था सो रास्ते में ब्रेड आमलेट बनवा कर घर पहुँच गया। घर जा कर उन से पेट-पुजा की और सोने की तैयारी करनी शुरु कर दी। सुबह फिर से स्कूल समय पर पहुँचना था। बिस्तर पर लेटा तो आज का घटनाक्रम आँखों के आगे घुमने लगा। समझ नहीं आया कि निशा अकेली क्यों रहती है। घर तो बहुत सुरुचिपूर्ण था लेकिन उस की पोशाक ऐसी बेढ़गी सी क्यो होती है। यही सब सोचते-सोचते कब मुझे नींद आ गयी पता ही नहीं चला।

सुबह स्कूल में निशा से मुलाकात स्टाफ रुम में हुई तो उस ने मुझ से माफी मांगी और कहा कि रात को मैं आप को धन्यवाद कहना तो भुल ही गयी थी। मैंने हँस कर कहा कि आप ने इतनी बढ़िया चाय पिला कर धन्यवाद कर तो दिया था। वह हँस कर बोली की चलो मेरी चिन्ता दूर हुई नहीं तो मैं रात भर परेशान रही कि आप मेरे बारे में क्या सोचेगें कि इस लड़की को रात को घर छोड़ा और इस ने बदले में धन्यवाद भी नहीं कहा। मैंने कहा कि अब तो हिसाब बराबर हो गया ना। उस ने सहमति में सर हिला दिया। इस के बाद मैं अपनी क्लास में चला गया।

स्कूल के खत्म होने के बाद सब वार्षिक उत्सव की तैयारियों में लग गये। कम ही दिन बचे थे इस लिये कार्यों को समय से पुरा करना जरुरी था। इस अवसर पर होने वाले प्रोग्रामों का अभ्यास पुरे जोरों पर था। कोई कमी नहीं रहनी चाहिये थी। इसी वजह से आज भी देर हो गयी। हम दोनों ही शाम को अकेले रह गये। जब हम चलने लगे तो मैंने कहा कि निशा जी चलिये आज आप के यहाँ चाय पीते हो तो वह बोली कि हाँ चलिये। हम दोनों स्कुटर पर बैठ कर उस के घर के लिये चल दिये। रात गहरा रही थी। उस के घर पहुँच कर निशा बोली कि चाय पी कर जाईयेगा। मैं चुपचाप चाय पीने के लिये घर में चल दिया।

घर में पहुँच कर मैं सोफे पर बैठ गया और निशा चाय बनाने चली गयी। कुछ देर बाद निशा चाय ले आयी। इस बार चाय के साथ पकोड़े भी थे। मैंने आश्चर्य से पुछा कि यह कब बना लिये तो वह बोली कि सुबह तैयारी कर के गयी थी। जब तक चाय बनी तब तक पकोड़ें भी बन गये। आप खा कर बताओ कि कैसे बने है? मैंने एक पकोड़ा उठा कर मुँह में डाल लिया और उसे पुरा खा लिया। निशा मेरे चेहरे की तरफ देख रही थी कि मैं क्या प्रतिक्रिया देता हूँ मैं भी उसे परेशान करने के लिये आज चुप्पी साधे बैठा था। जब मैं पकोड़े को खाने के बाद कुछ नहीं बोला तो वह बोली कि क्या हूआ? पकोड़ें सही नहीं बने है? मैंने हँस कर कहा कि अभी तो मैं उन के स्वाद का मजा ले रहा हूँ। वह बोली कि यह क्या बात हुई? मैं यह जानने के लिये मरी जा रही हूँ कि पकोड़ें कैसे बने है और आप जबाव नहीं दे रहे है। शायद खराब बने है आप इस लिये नहीं बताना चाह रहे है।

मैंने उसे बताया कि पकोड़ें सही बने है मैं तो उसे छेड़ने के लिये ऐसा कर रहा था। वह कुछ नहीं बोली तो मैं बोला कि आप बड़ी गंभीर रहती है तो सोचा कि आप से कुछ मजाक कर लेते है इस बहाने ही आप के चेहरे पर हँसी आ जायेगी तो वह बोली कि प्रशंसा के बिना हँसी कैसे आयेगी इस से तो रोना निकलने वाला था। मैंने अपने कान को हाथ लगा कर कहा कि ऐसा पाप मेरे सर ना लगाये। रोने की कोई बात नहीं है।

निशा बोली कि आप पहले व्यक्ति है जिसे मैंने अपने हाथ से कुछ बना कर खिलाया है। इस लिये ऐसा हो रहा है। मैंने कहा कि निश्चित रहिये आप ने बढ़िया पकोड़ें बनाये है। और इन को खा कर मेरे जैसे कुँवारे अकेले रहने वाले की दूआयें आप को अवश्य मिलेगी। मेरी बात पर वह पेट पकड़ कर हँसने लगी। इस समय वह बहुत सुन्दर लग रही थी। जब उस की हँसी बंद हुई तो वह बोली कि आप कंप्यूटर वाले ऐसे निकलेगे, पता नहीं था। मैंने कहा कि आप सांइस वाली इतना बढ़िया खाना बनाने वाली होगी यह भी मुझे पता नहीं था।

ऐसी ही चुहल-बाजी में चाय और पकोड़ें खत्म हो गये। मैंने चलने की इजाजत मांगी तो वह बोली कि आप को खाने की नहीं कह सकती कुछ है ही नहीं आज कल समय ही नहीं मिल पा रहा है कि कुछ खरीद कर ला पाऊँ। मैं बोला कि खातिर जमा रखिये खाना भी खा लुँगा।वह मुस्करा कर बोली कि रात को कैसे काम चलायेगे? मैंने उसे बताया कि रास्ते में से ब्रेड और आमलेट लेता जाऊँगा उसी से कल काम चलाया था। उसी से आज पेट भर लुँगा। इस के बाद में निशा के घर से निकल गया।

पुरा हफ्ता ही लेट होने के कारण शाम को निशा को उसके घर छोड़ने के कारण उस से नजदीकियां बढ़ रही थी। वह भी अब खुल कर बात करने लगी थी। वार्षिक उत्सव के दिन शाम को जब निशा को उसके घर छोड़ने के लिये चलने लगा तो वह बोली कि आप रास्ते में सब्जी मंडी हो कर चलें। कुछ सब्जियां खरीद लेते है। आज आप को रात का खाना खिला कर ही भेजूँगी। मैं उस की बात मान कर सब्जी मंडी की तरफ चल दिया। कुछ खरीदारी निशा ने करी तो कुछ मैंने भी करी, मेरे घर में भी कोई सब्जी नहीं थी। फिर निशा के घर पहुँच गये। निशा जब तक चाय बनाने गयी तब तक मैं उस के कमरें का निरिक्षण करने लगा। कमरें में कोई तस्वीर नहीं थी, इस लिये यह पता लगा पाना मुश्किल था कि उस के परिवार में कौन-कौन है? मैं निरिक्षण कर ही रहा था कि निशा चाय ले कर आ गयी।

आज चाय के साथ बिस्कुट थे। चाय पीते में मैंने उस से पुछा कि आप अगर बुरा ना माने तो आप के परिवार के बारे में कुछ पुछ सकता हूँ तो वह बोली कि नहीं मैं बुरा नहीं मानुँगी,आप कुछ भी पुछ सकते है। मैंने पुछा कि कोई फोटो नजर नहीं आ रही है, इस पर वह बोली कि गांव में रहने के कारण किसी को फोटो खिचवाने का शौक नहीं है इस लिये कोई फोटो नहीं है। वहाँ लोग इन बातों को महत्व नहीं देते है। उस का उत्तर सुन कर मैं चुप हो गया। मुझे चुप देख कर निशा बोली कि मेरा भरा पुरा परिवार है लेकिन पढ़ाई पर जोर देने के कारण सब नाराज से है। फिर गांव से निकल कर शहर में टीचर की नौकरी ने यह नाराजगी और बढ़ा दी है, इस लिये अकेला ही रहना पड़ता है। मां कभी-कभी आ जाती है एक-दो दिन के लिये।

निशा ने मुझ से पुछा कि आप अकेले क्यों रहते है? मैंने उसे बताया कि मेरा किस्सा भी कुछ उस के जैसा ही है, व्यापारी परिवार से हो कर मैं नौकरी कर रहा हूँ इस लिये सब नाराज है लेकिन मैं कुछ अलग करना चाहता था इस लिये सरकारी नौकरी में आ गया हूँ। लड़का हूँ इस कारण से अकेला रहने में परिवार को कोई आपत्ति नहीं है। काम चल रहा है। पढ़ाने में मेरा मन भी लगता है। गल्ले पर बैठने का मेरा मन बिल्कुल नहीं था इस लिये कंप्यूटर की पढ़ाई की और नौकरी कर ली। देखते है आगे क्या होता है? उस ने पुछा कि आगे क्या करने का विचार है। मैंने कहा कि कुछ नहीं लेकिन अगर नौकरी में मन नहीं लगा तो कुछ और कर लुँगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि लोग सरकारी नौकरी को तरसते है और आप उसे छोड़ने की बात कर रहे है।

मैंने कहा कि छोड़ने की बात नहीं कर रहा लेकिन मेरे फिल्ड में बहुत स्कोप है क्या पता भविष्य में क्या हो कौन कह सकता है? मेरी इस बात पर निशा ने गरदन हिला कर सहमति जताई। चाय खत्म हो गयी थी। निशा बोली कि कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा खाना खाने के लिये तो मैंने कहा कि आप बिना मतलब के परेशानी ले रही है तो वह बोली कि इस में परेशानी की कोई बात नहीं है, उसे अपने लिये तो खाना बनाना ही है, आप के लिये भी बना लेती हूं, इतनी रात को जा कर आप खाना बनाये यह तो सही बात नहीं होगी।

मैंने निशा से कहा कि मेरी इतनी चिन्ता ना करें तो वह बोली कि जब आप मेरी चिन्ता कर सकते है कि मैं रात में अकेली घर ना आऊँ तो मैं यह तो कर ही सकती हूँ । उस की इस बात के बाद खाने की बात यही पर खत्म हो गयी। निशा चली गयी और कुछ देर बात हाथ में कुछ मैगजीन ले कर आ गयी और उन्हें मुझे थमा कर बोली कि आप अपना समय इन्हें पढ़ कर व्यतीत करें जब तक में खाना बनाती हूँ फिर खा कर बताइयेगां कि कैसा बना है? यह कह कर वह चली गयी। मैं समय बिताने के लिये मैगजीनों के पन्नें पलटने लगा।

कोई आधा घंटे के बाद निशा खाना ले कर आ गयी। उस ने गोभी की सब्जी और दाल बनायी थी। हम दोनों खाना खाने लगे। मुझे बहुत जोर की भुख लगी थी। मैं झटपट खाने खाने लगा तो यह देख कर निशा हँस कर बोली कि खाना तो आराम से खाये। मैंने कहा कि जोरदार भुख लगी है इस लिये सब्र नहीं हो रहा है। निशा ने पुछा कि खाना कैसा बना है? तो मैंने उसे बताया कि वह खाना भी स्वादिस्ट बनाती है। यह सुन कर वह बोली कि पता नहीं आप कहीं झुठी प्रशंसा तो नहीं कर रहे है? मैंने उसे बताया कि मैं भी सही-सलामत खाना बना लेता हूँ इस लिये मेरी राय गलत नहीं है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप पहले व्यक्ति है जिसे मैंने खाना बना कर खिलाया है। मैंने यह सुन कर कहा कि बंदा गिनी पिग बन कर संतुष्ट है। इस बात पर निशा बोली कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे। मैंने कहा कि हम तो सीखाने को तैयार है कोई सीखे तो सही।

अच्छा जी

हाँ

मैं चेली बनने को तैयार हूँ

आप तो पहले से ही मास्टरनी जी है

लेकिन आप की शिष्या बनने को राजी हूँ

गुरु दक्षिणा देनी पड़ेगी

पहले शिक्षा तो दे। दक्षिणा भी मिलेगी

कब से शुरु करें?

जब आप का मन करें

स्कूल में रोज मेरे साथ खाना खाये, शिक्षा शुरु हो जायेगी

यह जरुरी है

हाँ

स्टाफ में अफवाह फैल जायेगी

आप को डर लगता है

आप को मैं डरने वाली लगती हूँ?

नहीं तो

फिर किस बात का डर है।

कहीं और सही रहेगा। आप मेरे को रोज ऐसे ही घर छोड़ दिया करे, मैं रास्ते में पाठ ले लुँगी।

यह तो खतरनाक है

तो घर पर रोज चाय पीते समय सही रहेगा

हाँ यह सही है

तो आज से आप मेरी शिष्या हो गयी

शिष्या का ध्यान रखना पड़ेगा

सो तो रखेगे ही, अगर कुछ कमी रहेगी तो बता दिजियेगा।

जरुर

पहली बार शिक्षा दे रहे है

हाँ किसी मास्टरनी को पहली बार दे रहा हूँ

मेरी बात पर निशा जोर से हँस पड़ी। बोली कि आप के साथ अच्छी गुजरेगी।

हम दोनों ने खाना खत्म किया और मैं घर के लिये निकल गया।

हमारी दोस्ती ऐसे ही चल रही थी। नजदिकीयां बढ़ रही थी लेकिन हम दोनों में से कोई इसे मानने को तैयार नहीं था ना ही आगे कदम बढ़ाने को तैयार थे। कुछ दिनों बाद में घर चला गया। कोई दो हफ्तें बाद लौटा तो मुझे नहीं लगा था कि निशा नें मेरे को मीस किया होगा। लेकिन स्कूल पहुँच कर जब स्टाफ रुम में बैठा अपने टाइम टेबल को देख रहा था तभी निशा रुम में आयी और मेरे पास आ कर बोली कि आप कहाँ चले गये थे? मैंने उसे बताया कि अचानक घर जाना पड़ गया था, इसी लिये आप को बता नहीं सका। वह बोली कि मैं आप की क्या लगती हूँ कि मुझे आप बता कर जाते?

मुझे उस की आवाज में गुस्सा महसुस हुआ। मैंने उस के चेहरे को देखा तो वहाँ सचमुच में गुस्सा था, मैंने कहा कि मेरे पास आप का नंबर नहीं था इस लिये जाने का नहीं बता पाया लेकिन अब आगे कभी ऐसा हुआ तो ऐसी गल्ती नहीं करुँगा। मेरी बात सुन कर उस के चेहरे के भाव बदले लेकिन ज्यादा असर नहीं पड़ा। मेरा क्लास लेने का समय हो रहा था इस लिये मैं रुम से निकल गया। दोपहर में खाने के समय भी तल्खियां नजर आयी। मैं यहाँ सब के सामने कुछ कह नही सकता था।

शाम को जब हम दोनों की छुट्टी हुई तो मैं निशा के पास जा कर बोला कि आप से कुछ बात करनी थी आज मेरे साथ चल सकती है तो वह बोली कि क्या बात करनी है? मैंने आस-पास चेहरा घुमा कर देखा तो वह समझ गयी। मैं उसे स्कूटर पर बिठा कर स्कूल से चल दिया। रास्ते में मैंने उस से पुछा कि कही चाय पीने चले तो वह बोली कि चलो। मैंने उसे कॉफी हाउस ले गया। हम दोनों एक कोने की मेज पर बैठ गये और वेटर को दो कप कॉफी ऑडर कर दी। इस के बाद कुछ देर हम दोनों कुछ नहीं बोले।

नाराज हो?

नाराज होने का हक है मुझे

हाँ इतना तो है ही

हाँ नाराज हूँ, मैं ही जानती हूँ कि इतने दिन मैंने कैसे गुजारे है? किसी से तुम्हारा पता भी नहीं पुछ सकती थी।

तुम्हारी नाराजगी सही है, मेरी गल्ती थी मैं कबूल कर चुका हूँ

इस से क्या बदल जायेगा, मेरी परेशानी खत्म हो जायेगी?

बताओ और कैसे माफी माँगु

मैं कैसे बताऊँ

मैंने अपने दोनों कानों को हाथ लगा कर कहा कि मुझे तो ऐसे ही माफी माँगनी आती है।

मेरी इस हरकत पर वह हँस पड़ी, और हम दोनों के बीच की बर्फ पिघल गयी। मैंने निशा को बताया कि घर से संदेश आया था कि फौरन घर पहुँचों तो एकदम घर के लिये निकल गया। किसी को बताने का समय ही नहीं मिला। छुट्टियों के लिये प्रार्थनापत्र भी घर पहुँच कर भेजा था। घरेलु बात थी इस लिये उस के बारें में तो कुछ नहीं बता सकता लेकिन तुम समझ सकती हो कि बात गम्भीर थी। मेरी बात से निशा आशश्वत दिखी। हम दोनों नें तय किया की हमें एक दूसरें के बारे में पता रहना चाहिये तथा ऐसा मौका दूबारा नहीं आना चाहिये। निशा बोली कि मैं अपने घर पर फोन लगवाने की कोशिश करती हूँ घर वाले तो काफी दिनों से पीछे पडे़ है मैं ही आज तक टालती आ रही थी लेकिन पिछले दिनों मुझे संपर्क ना होने के नुकसान पता चल गये है। मैंने भी उसे बताया कि मैं भी फोन लगवाने की कोशिश करता हूँ। इस के बाद जब मैं निशा को घर छोड़ने जा रहा था तो वह बोली कि आज मेरे साथ खाना खा कर जाना तो मैं बोला कि चलों जैसा तुम कहो। यह कह कर मैं चुप हो गया।

उस के घर पहुँच कर मैंने स्कूटर खड़ा किया और उस के घर के अंदर आ गया। घर में आ कर निशा ने दरवाजा बंद किया और मेरे पास आ गयी। वह कुछ झिझक सी रही थी। झिझक मुझे भी थी लेकिन विरह ने हम दोनों को बहुत तड़पाया था। मैंने निशा की बांह पकड़ कर उसे अपने पास किया तो वह मेरे से लिपट गयी और बोली कि तुम्हें नहीं पता यह पंद्रह दिन मैंने कैसे काटे है। तुम्हारी कोई खोज खबर नहीं थी, मैं किसी से कुछ पुछ नहीं सकती थी, तुम्हारें घर भी नहीं जा सकती थी पता ही नहीं था। स्कूल में कोशिश करी लेकिन किसी से कुछ पता नहीं चला। उस के लिपटने से मुझे पता चला कि उस के उभार भी है नहीं तो उस के कपड़ों से तो वह सपाट ही दिखती थी।

उस के लरजते होंठ कांप रहे थे मैंने धीरे से उन्हें अपने होंठों से छु लिया। झिझक के कारण छु कर होंठों को अलग कर लिया। उस के गर्म होंठों की गरमाहट अभी तक मेरे होंठों को महसुस हो रही थी। निशा ने अब मेरे होंठों पर अपने होंठ चिपका दिये और मेरे होंठों को अपने होंठों के बीच ले कर चुसना शुरु कर दिया। मेरा सारा शरीर उत्तेजना के कारण झनझना रहा था। मेरी बांहें उस की कमर पर कस गयी थी। हमारा चुम्बन काफी देर तक चला फिर हम दोनों अलग हो गये। मुझे और उसे अपनी सीमा का पता था और हम उस का उल्लधन नहीं करना चाहते थे। निशा शर्म के कारण अंदर भाग गयी और वहाँ से आवाज दे कर कहा कि आराम करों मैं खाना बना कर लाती हूँ। मैं वही बैठ कर निशा के बारे में सोचने लगा। निशा का शरीर भरा पुरा था लेकिन उस ने ना जाने किस कारण से उसे छुपा रखा था। मैं उस से पुछ भी नहीं सकता था लेकिन मन के किसी कोने में संतोष भी था कि जिस लड़की को मैं चाहता हूँ वह सामान्य है, भरे पुरे शरीर वाली है। कोई सपाट शरीर वाली नहीं है।

कुछ देर बाद निशा खाना बना कर ले आयी। हम दोनों खाना खाने लगे तो निशा बोली कि तुम्हारी चिन्ता मैं क्यों करती हूँ बता नहीं सकती। मैंने कहा कि मैं भी तुम्हारी चिन्ता करता हूँ लेकिन कह नहीं पा रहा था लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं भी तुम से दूर रह कर कितना परेशान नहीं था लेकिन कुछ कर नहीं सकता था। आज जब तुम से मिला तो जा कर चैन पड़ा है। तुम्हारी जैसी ही मेरी हालत थी लेकिन मैं घर के काम में व्यस्त था इस कारण कुछ कर नहीं सका। विरह तो हम दोनों ने ही झेला है। यह बताता है कि हम दोनों एक-दूसरें के प्यार में डुबे हुये है लेकिन मान नहीं रहे थे आज यह बात सामने आ गयी है। निशा ने मेरी बात सुन कर अपनी नजरें नीचे झुका ली।

संबंध का गहराना

उस दिन के बाद हम दोनों में नजदीकियां बढ़ गयी। स्कूल में भी हम दोनों खाली समय एक दूसरें के साथ ही बिताते थे। दोपहर का खाना भी एक साथ ही खाते थे। हम दोनों के बीच प्यार का अंकुर बढ़ रहा था। कुछ दिनों बाद हम दोनों ने आपस में बातचीत करके तय किया की अब हम दोनों से दूरी सही नहीं जा रही है और हम दोनों को एक हो जाना चाहिये यानि हमें शादी कर लेनी चाहिये। हमें नहीं पता था कि हमारें परिवार इस संबंध को लेकर कैसा रियेक्ट करेगें लेकिन अब हम किसी की कोई बात मानने की अवस्था से दूर निकल चुके थे। हम दोनों ने तय कर लिया था कि अगर परिवार वाले राजी नहीं हूये तो हम दोनों कोर्ट मैरिज कर लेगे।

मैंने और निशा ने अपने घर वालों से बात की। हम दोनों एक ही जाति के थे इस लिये कोई ज्यादा बाधा नहीं आई। दोनों के घर वाले एक दूसरें से मिले और हम दोनों की शादी पक्की हो गयी। मेरे घर वाले जब पक्की करने निशा के घर गये तो वापस आ कर मेरी बहन ने कहा कि भाभी कैसी डिली ढाली रहती है। तुझे कैसे पसंद आ गयी? इस बात का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था प्यार हो जाता है किया नहीं जाता यह मैं समझ चुका था। मैंने उसे समझाया कि शादी के बाद वह बदल जायेगी तुम चिन्ता ना करो। वह मेरी बात सुन कर चुप हो गयी। शादी की तैयारियों में जब निशा के लिये कपड़ें भेजने का समय आया तो मैंने बहन को समझा कर निशा के घर भेजा कि वह उस का सही नाप ले कर आये ताकि उस के कपड़ें सही सिले जा सके। बहन मेरी बात समझ गयी और उस ने निशा के घर जा कर उस का सही नाप लिया और उसी नाप के मुताबिक शादी के कपड़ें सिले गये।

शादी में निशा सही सिले कपड़ों में जंच रही रही। उस का यौवन उस में सही रुप में झलक रहा था। वह नारी सुलभ सौन्दर्य की प्रतिमा लग रही थी। यह देख कर मेरी बहन खुश हो कर मेरे पास आयी और बोली कि भाई तुझे सब मालुम था लेकिन हमें नहीं बताया था। सारा घर इस बात को लेकर परेशान था कि बहू पतली सी है। मैंने हँस कर कहा कि पहले मैं भी परेशान था लेकिन एक दिन मेरी सारी परेशानी दूर हो गयी। मेरी बात सुन कर बहन मेरे को चपत लगा कर हँसती हूई भाग गयी। निशा का परिवार भी काफी धनी था और हम तो व्यापारी थे ही इस लिये विवााह में चकाचौध की कमी नहीं थी। विवाह होने के बाद जब निशा विदा होकर हमारे घर आयी तो मेरी माँ और बहनें बहुत खुश थी। सबसे ज्यादा तो मैं खुश था लेकिन अपनी खुशी किसी पर जाहिर नहीं कर सकता था।

हमारा मिलन जल्दी नहीं हो सकता था परिवार में कई रीतिरिवाज और रस्में की जानी थी उन के होने के बाद ही हमारे मिलन की रात आनी थी। जिसका मुझे और निशा को इंतजार था। वह रात भी आ गयी। रात को जब अपने कमरे में हम दोनों अकेले हुये तो मैंने निशा को गले लगा लिया वह भी इसी क्षण के लिये तरस रही थी। हम दोनों प्रगाड़ आलिंगन में बंध गये। हम दोनों के प्यासे होंठ अपनी प्यास बुझाने के लिये लालायित थे सो वह अपनी प्यास बुझाने लगे। जब प्यास बुझ गयी तब हम दोनों एक-दूसरे से अलग हुये। निशा बोली कि सांस ही बंद होने वाली थी। मैंने कहा कि यहाँ दिन की धड़कन बंद हो रही थी तुम्हें सांस की पड़ी है। वह बोली कि आज बड़ें रोमाटिंक हो रहे हो, पहले यह रुप कहाँ था। मैंने कहा कि तुम्हारे प्यार के पीछे छिप गया था।

निशा लाल साड़ी में परी सी लग रही थी। वह जब मेरे गले लगी तो उस के सारे उभार मेरे स्पर्श में आये थे। मुझे यह पता करना था कि जिन उभारों को दिखाने के लिये महिलायें मरी जाती है उन्हें मेरी बीवी ने छुपा कर के क्यों रखा हुआ था। यह रहस्य मेरे लिये बुहत बड़ा था।

मधुयामिनी

वह फिर से बिस्तर पर जा कर बैठ गयी। उस के अंदर की स्त्री सुलभ लज्जा ने उसे फिर से मुँह नीचे करके बिठा दिया था। मैं आश्चर्य चकित था कि मेरी पत्नी अभी तो मेरे से गले मिली थी चुम्बनरत थी और अभी घुटनों में सर दे कर बैठी थी। स्त्री चरित्र की इसी विशेषता से मैं अचरज में था। कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा फिर बेड के किनारे पर बैठ गया। निशा से कहा कि वह अपना चेहरा ऊपर करे तो उस ने सर हिला कर मना कर दिया। मैंने जब दूबारा कहा तो वह बोली कि यह तो तुम्हारा काम है तुम ही करो। मैंने उस का चेहरा अपने हाथों से ऊपर किया और उसके होंठों पर हल्का सा किस कर दिया। इसके बाद मैं भी उस की बगल में बैंठ गया और उसे अपने से चिपका लिया। वह भी मानों इसी क्षण का इंतजार कर रही थी उस ने मेरे सीने में अपना सर छुपा लिया। हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठें रहे। फिर मैंने उस से पुछा कि पता है ना आज क्या होना है तो वह मेरी तरफ देख कर बोली कि हाँ सब पता है।

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