सहकर्मी से प्यार

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डर तो नहीं रही हो?

हाँ डर लग रहा है

मुझ से कैसा डर

तुम से नहीं बल्कि होने वाली चीज से

सब के साथ होता है

हाँ

हम भी वही सब करेगें

प्यार से करना, मैंने सुना है बड़ा दर्द होता है

ध्यान रखुँगा, कि तुम्हें कोई दर्द ना हो

यह कह कर मैंने उस की साड़ी कंधों से नीचे कर दी। अब वह केवल ब्लाउज में मेरे सामने थी। मैंने कभी उसे इस रुप में नहीं देखा था। मेरी निगाहे उसे ताक रही थी यह देख कर निशा बोली कि क्या आँखों से करने का इरादा है। मैंने उस की गरदन पर चुम्बन ले कर कहा कि नहीं पुरा खाने का इरादा है। कोई कोर-कसर नहीं रखुँगा। वह बोली कि देखते है। मैंने उस के माथे, आँखों को चुमा और मेरे होँठ उस के वक्षस्थल के मध्य उतर गये। मैं जल्द से जल्द उस का ब्लाउज उतारना चाहता था और यह देखना चाहता था कि उस के स्तन कैसे दिखते है। पहले तो मुझे ऐसा लगता था कि उस के स्तन है भी या नहीं। मैंने हाथ उस की पीठ पर कर के उस के ब्लाउज के हूक खोल कर ब्लाउज उतार दिया। उस ने अपनी दोनों बांहें कस कर वक्षस्थल को छुपा लिया।

मैंने ब्रा के हूक भी खोल दिये। अब उसे भी कंधों से नीचे कर दिया। वह उस की बांहों पर आ कर अटक गयी। मैंने धीरे से उस की दोनों बांहों को खोल कर ब्रा को उस के शरीर से अलग कर दिया। उस के कसे और भरे स्तन मेरे सामने थे। दोनों का साइज बता रहा था कि निशा में यौवन की कमी नहीं थी। तनाव के कारण दोनों भुरे निप्पल तन कर आधें इंच लम्बें हो गये थे अब मुझ से रुका नहीं गया और मैंने बढ़ कर अपने होंठो से उन को चुमना शुरु कर दिया। निशा ने कोई विरोध नहीं किया। दोनों निप्पलों को मन भर चुसने के बाद मैंने स्तनों को जम कर मुँह में लेकर चुसा। निशा बोली कि दर्द हो रहा है जरा आराम से करों। मैंने उस के कान में कहा कि अब आराम नहीं हो सकता, इस पर वह मुझे चुम कर बोली कि रात अपनी है जल्दी क्या है।

उस की बात सही थी। मैंने अपने पर काबू किया और उस की साड़ी को उतार कर एक तरफ रख दिया। कीमती साड़ी थी हमारें खेल में उस पर दाग लगने थे। साड़ी के बाद पेटीकोट को खोल कर उतार दिया। अब सिर्फ पेंटी ही निशा के शरीर पर रह गयी थी। निशा नें मेरी तरफ देखा और कहा कि तुम भी कपडें उतार दो। मैंने उस की बात मान कर कुर्ता और बनियान उतार कर रख दी। फिर कुछ सोच कर पायजामा भी उतार दिया। अब हम दोनों एक-दूसरे के जैसे हो गये।

मैंने निशा को लिटा लिया और उसे अपने से चिपका कर उस के शरीर पर हाथ फैरने लगा। इस से हम दोनों के शरीर में आग सी लग रही थी। हम दोनों की पहली रात थी इस लिये कुछ शर्म तो थी लेकिन क्योंकि दोनों लम्बे समय से एक दूसरे को जानते थे इस लिये कोई झिझक नहीं थी। मैं निशा की पीठ कर गरदन पर चुम्बन लेने लगा फिर उस की पीठ से होते हुये मेरे होंठ उसी की कमर पर आ गये और उस के कुल्हों को चुमते हुये उस की जाँघों को चाट कर मैं उस के मखमली पंजों तक पहुँच गया। उस के पाँव की हर ऊंगली को होंठों में चुस कर उसे पीठ के बल कर दिया वह अब फिर मेरी गोद में लेटी थी। मेरे हाथ उस की केले के समान जाँघों को सहला रहे थे।

इस के कारण मेरा लिंग ब्रीफ में तन कर कड़ा हो गया था। निशा भी हाथ से मेरी छाती को सहला रही थी। मैंने हाथ से उस की जाँघों के जोड़ को छुआ तो वह सिहर गयी। मैं धीरे से पेंटी के ऊपर से उस की योनि को सहलाने लगा। कुछ देर बाद मैंने उस की नाभी को चुमा और होंठ नीचे कर के उस की योनि को पेंटी के ऊपर से चुम लिया। निशा उत्तेजना के कारण कांप सी रही थी। मैं भी काँप रहा था मेरा हाथ उस की पेंटी के अंदर गया और मैंने पहली बार अपनी पत्नी की योनि को हाथ लगाया। वहाँ पर गिला गिला सा था हाथ से पेंटी को नीचे किया और अपने होंठों से उस का चुम्बन ले लिया। निशा ने बल सा खाया। मैंने उस की पेंटी उस के पांवों से निकाल कर अलग कर दी।

निशा अभी इस खेल में भाग नहीं ले रही थी शायद शर्म की वजह से मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ब्रीफ पर रखा तो उस ने हाथ झटकें से अलग कर लिया। उस ने कहा कि ऐसा मत करो। मैंने कहा कि तुम इस की मालकिन हो उसे सहला दो तो वह बोली कि तुम बड़ें बेशर्म हो। मैंने कहा कि हम दोनों के बीच में शर्म का क्या काम है। वह मेरी बात सुन कर मुस्करा दी और उस ने अपने हाथ से मेरे महाराज को ब्रीफ के ऊपर से सहला दिया। लिंग की उत्तेजना और बढ़ गयी।

मेरा यह पहला मौका था सो मैं जल्दी बाजी नहीं करना चाहता था तथा होने वाले घटनाक्रम को लेकर मेरे मन में भी आशंकायें थी। मैंने अपनी ब्रीफ उतार दी। मेरे तने लिंग को देख कर निशा की आँखें चौक गयी। उसे भी शायद यह ख्याल आ रहा होगा कि इतना मोटा लिंग उस की कसी योनि में कैसे जायेगा? मैं उस का डर खत्म करने के लिये उस के बदन को सहला रहा था। फिर मैंने उसे लिटा कर अपना मुँह उस के पैरों की तरफ किया और उस की कुँवारी चुत का रस चुसने के लिये होंठों से उसे चाटने लगा। निशा के मुँह से कराह सी निकली। मैंने उस की योनि के फलकों को ऊंगली की सहायता से अलग कियाऔर उस की योनि के अंदर अपनी जीभ घुसा दी। निशा आहहहहह उहहहह करने लगी। मेरी जीभ उस की योनि का अंनवेषण करती रही। निशा नें मेरे सर को पकड़ कर के अपनी योनि पर चुपका दिया। कुछ देर बाद मैंने अपनी पोजिशन बदली और उस के मुँह को चुम कर कहा कि निशा संभोग के लिये तैयार हो तो वह बोली कि हाँ लेकिन आराम से करना। मैंने कहा कि पहली बार तेज दर्द हो सकता है, वह बोली कि सब पता है।

मुझ से भी अब रुका नहीं जा रहा था सो उस की जाँघों के मध्य बैठ गया। उस की टाँगों को चौड़ा कर के अपने लिंग को उस की कुँवारी चूत पर रख कर उसे लिंग से सहलाया। फिर लिंग को हाथ से पकड़ कर योनि के अंदर डालने का प्रयास किया। लिंग योनि के अंदर नही गया। दूबारा लिंग के सुपारे को धीरे से योनि के अंदर धकेला तो वह कुछ अंदर चला गया। निशा को दर्द महसुस हुआ उस ने अपने होंठ कस लिये। अब मैंने पुरी ताकत लगा कर लिंग को योनि में धकेला तो सुपारा पुरा अंदर घुस गया। निशा के चेहरे पर दर्द की लकीरे खींच गयी थी। मैं रुका तो उस ने आँखों से इशारा किया कि रुकों मत। मैंने पुरी ताकत लगा कर लिंग को योनि में धकेल दिया इस बार लिंग आधे से ज्यादा योनि में घुस गया था। अंदर बहुत कसाव था नमी थी लेकिन बहुत गर्मी भी थी। निशा ने दर्द को रोकने के लिये नीचे के होंठ को दांत से भीच रखा था। मुझ पता था कि अब रुकना नहीं है तो मैंने जोर लगा कर पुरा लिंग निशा की योनि में डाल दिया। निशा दर्द के कारण गरदन इधर-उधर पटकने लगी।

मैं अब रुक गया निशा ने होंठ खोल दिये। मैंने उन्हें चुमा और निशा से पुछा कि क्या हाल है तो वह बोली कि अंदर आग सी लग गयी है। तुम रुकों मत मैं उस की बात सुन कर हल्के-हल्के धक्कें लगाने लगा। निशा आहहहहहहहहहहह उहहहहहह करने लग गयी। इस के कारण मेरी उत्तेजना और बढ़ गयी और मेरे धक्कें और तेज हो गये। कुछ देर बाद निशा भी इस का मजा लेने लगी और हम दोनों के कुल्हें ऊपर नीचे हो कर एक दूसरें का साथ देने लगे। काफी देर तक मैं ऐसे ही निशा को भोगता रहा फिर उस की बगल में लेट गया। वह भी हाँफ रही थी। मैंने उसे अपने ऊपर लिटा लिया। कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे फिर मैंने उस की योनि में अपना लिंग डाल दिया और उस के कुल्हों के नीचे हाथ लगा कर नीचे से धक्कें लगाने लगा।

योनि के कसाव के कारण लिंग पर बहुत घर्षण हो रहा था। लेकिन इस की मुझे कोई परवाह नहीं थी। कुछ देर बाद निशा के कुल्हें भी उछलने लगे और मेरे लिंग को अंदर बाहर करने लगे। दोनों के शरीर गर्मी से जल से रहे थे लेकिन शरीरों में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही थी। मैंने करवट बदली और निशा को नीचे कर लिया और जोर-जोर से धक्कें लगाने लगा। अब कमरें में फच-फच की आवाज आ रही थी। कुछ देर बाद मेरी आँखें मुद गयी और मैं निशा पर लेट गया। मेरे लिंग पर आग सी लगी हुई थी। पहले संभोग की आग थी यह। होश सा आने पर मैं निशा के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट गया। वह हाँफ रही थी। मैंने उस के नीचे की तरफ देखा तो वहाँ पर खुन के लाल निशान थे। मेरा लिंग भी लाल रंग से लिथड़ा हुआ था।

निशा शर्म के कारण आँख नहीं खोल रही थी। मैंने उस से कहा कि निशा आँखें खोलो तो उस ने अपनी आँखें खोली और बोली कि बहुत दर्द हो रहा है। मैंने कहा कि कुछ देर में कम हो जायेगा। वह बोली कि मैं तो मर जाऊँगी। मैं उसे अपने से चिपका लिया और उसे चुम कर कहा कि दर्द कुछ देर में सही हो जायेगा। वह मेरी छाती में छुप गयी। हम दोनों ऐसे ही सो गये। सुबह मेरी आँख खुली तो देखा कि निशा उठ कर नहाने चली गयी थी। मैं भी उस का बाथरुम में घुस गया। जब तक नहा कर निकला माँ कमरे में आ कर निशा को कुछ समझा रही थी। मैं माँ से कतरा कर बाहर चला गया। दिन में एक दो बार निशा से मुलाकात हुई लेकिन कोई बात नहीं हो पायी। घर में मेहमानों का मेला लगा था उन से समय ही नहीं मिल रहा था। बहन ने रात को कहा कि आज तुम दोनों एक साथ नहीं सो सकते माँ ने क़हा है। मैंने पुछा कि मैं कहाँ सोऊँ तो वह बोली कि बाहर सब के साथ सो जाना। अगले दो दिन तक हम दोनों मिल नहीं पाये। जब घर मेहमानों से खाली हो गया तो माँ बोली कि तुम्हारा कमरा अलग कर दिया है उस में ही अब से रहना। मैंने हाँ में सर हिलाया।

रात को नये कमरे में जब हम दोनों मिले तो निशा बोली कि तुम से पास रह कर भी ना मिल पाना सहन नहीं हो रहा था लेकिन माँ ने बताया कि कोई रस्म होनी है इस लिये मन पर पथ्थर रख लिया। हम दोनों बहुत प्यासे थे सो एक दूसरे के आलिंगन में बंध गये। लब एक दूसरे से चिपक गये। जब मन भर गया तब जा कर सांस ली।

तुम्हार दर्द कम हो गया है

हाँ, अब दर्द नहीं है

आज का क्या विचार है

विचार तो अच्छा है

दर्द तो नहीं होगा

दर्द होगा तो होगा

बड़ी बहादूर बन रही हो

मैं ने उस के स्तनों को दबोच लिया। निशा बोली कि आराम से करो ना। मैंने उस से पुछा कि वह पहले ऐसे कपड़े क्यों पहनती थी जिसे से उस की छातियां दिखायी नहीं देती थी। निशा बोली कि मैं जब अकेली रहने आयी तो मुझे लगा कि मैं ऐसे कपड़ें पहनु जिस से किसी का ध्यान मेरी तरफ ना जाये। एक बार देखने के बाद कोई मुझे दुबारा नहीं देखे। लेकिन तुम ऐसे निकले कि पीछे ही पड़ गये। मैंने कहा कि मैं पीछे पड़ा था कि तुम? तो वह बोली कि आग तो दोनों तरफ लगी हुई थी ना। मैंने कहा कि पहली नजर में तो तुम बिल्कुल आकर्षक नहीं लगती थी। ऊपर नीचे से सपाट लगती थी।

वो तो मुझे जब पता चला जब तुम पहली बार मेरे से लिपटी थी। लगा कि मेरी चाहत आम महिला जैसी है। नहीं तो उस से पहले मुझे चिन्ता होती थी। निशा बोली इसी लिये तुम्हारी बहन मेरे ब्लाउज का नाप लेने आयी थी। मैंने उसे बताया कि मेरे घर वाले भी बहुत परेशान थे कि बहु बहुत पतली दुबली है। मैंने बहन को समझाया कि तुम इस बहाने जा कर नाप ले आना सब को सच पता चल जायेगा। मैं सब को यह तो बता नहीं सकता था कि मैंने सब कुछ नाप कर देखा हुआ है। निशा बोली कि तुम बहुत गंदे हो।

अपनी चीज के बारे में पड़ताल करना बनता है। जब शादी में तुम सही साईज के कपड़े पहन कर आयी तो घर वालो की जान में जान आयी। निशा बोली कि मुझे भी सब अजीब लगता था लेकिन अपने आप को औरों की नजरों से छुपाना जरुरी था।

तुम्हारी बातें सारी रात चलेगी

नहीं तो लेकिन यह बात मेरे मन में फंसी हूई थी

अब तो फाँस निकल गयी

हाँ

फिर किस बात की देरी है

आओ कह कर मैंने निशा के ऊपर अपने को गिरा लिया। मेरे होंठ उस के चेहरे को चुमने लग गये। उस की गरदन से होते हुये होंठ निशा के वक्षस्थल के मध्य आ गये। ब्लाउज के कारण इस से नीचे जाना संभव नही था तो मेरे हाथो नें उस का ब्लाउज उतार दिया फिर ब्रा का नंबर था। अब उस के स्तन मेरे सामने थे। मेरे होंठ उस पर अपनी छाप छोड़ने लग गये। फिर निप्पलों का नंबर आया। निशा आहहहह उहहहह करने लग गयी। मेरा हाथ उस के सपाट पेट पर से फिसलता हुआ उस की जाँघों के मघ्य पहुँच गया। पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे खिसका दिया। पेंटी के अंदर हाथ योनि को सहला रहा था। इस से निशा काँप रही थी। इस से मेरा शरीर भी उत्तेजना से भर रहा था। कुछ देर बाद मैंने पेंटी को भी नीचे जाँघों पर खिसका दिया और नीचे झुक कर योनि को चुम लिया। उस की मादक सुगंध मेरी चेतना पर छाने लगी। कुछ देर तक तो मेरी जीभ बाहर से उसे चाटती रही फिर मेरी जीभ उस के अंदर घुस गयी। अंदर के नमकीन पानी से मेरा वास्ता पड़ा।

निशा ने अपने हाथों से मेरा सर अपने जाँघों के जोड़ पर सटा लिया। उस का शरीर अकड़ रहा था। मैंने अपना सर वहाँ से हटा कर उस की जाँघों को चुमना शुरु किया और उसकी जाँघों को चुमता हुआ पाँवों तक पहुँच गया। फिर उस की सारी ऊंगलियों को होंठों में लेकर चुमना शुरु किया। उस के मुलायम पाँवों को चुमने के बाद मैंने उसे उलटा कर दिया और नीचे से चुमना हुआ उस की पीठ पर पहुँच गया। उस की पीठ पर अपनी गरम सांसों को छोड़ता हुआ उसकी गरदन पर पहुँच गया और उस की गरदन को चुम कर उसे सीधा कर लिया। निशा भी पुरी तरह से गरम हो चुकी थी। उन ने भी मेरी छाती पर अपनी छाप लगानी शुरु कर दी थी। फिर हम दोनों के होंठ आपस में चुपक गये। दोनों के हाथ एक-दूसरे के बदन को सहला रहे थे। दोनों के शरीर में वासना की आग लग गयी थी।

अब उस का बुझना जरुरी थी सो मैं निशा के ऊपर आ गया और अपने लिंग को उसकी योनि में डालने की कोशिश की पहली बार प्रयास सफल नहीं हुआ। दूसरी बार लिंग का सुपड़ा योनि के मुँह पर लगा कर जोर लगाया तो वह योनि के अंदर चला गया। अंदर पर्याप्त नमी थी। आज निशा को दर्द नहीं होना चाहिये था। निशा ने मेरी पीठ पर हाथ फिराये तो मैंने जोर से धक्का लगाया तो लिंग पुरा योनि में घुस गया। निशा आहहहह उहहहहह करने लग गयी। लेकिन मैं रुका नहीं। कुछ देर बाद निशा ने भी अपने कुल्हों को हिला कर मेरा साथ देना शुरु कर दिया। कुछ देर हम दोनों इस आसन में लगे रहे। फिर मैंने उस के ऊपर से उठ कर बैठ गया और उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया। फिर उस के कुल्हों के नीचे हाथ लगा कर उन्हें उठा कर लिंग के ऊपर किया और जब लिंग योनि में घुस गया तो कुल्हों को नीचे कर लिया।

निशा की बाँहें मेरी गरदन पर लिपट गयी। हम दोनों ने एक दूसरे को चुमा और निशा अपने कुल्हों को उठा कर लिंग को योनि में समाने लगी। मैं उस के स्तनों को चुसने लग गया। कुछ देर हम दोनों इस आसन में लगे रहे। फिर थक जाने के बाद मैंने उसे लिटा दिया। अब मैं उस के ऊपर आ गया। निशा बोली कि धीरे से करो ना। मैंने उस की बात का ध्यान रख कर धीरे से धीरे लिंग को अंदर बाहर करने लगा। कुछ देर बाद निशा के पाँव मेरी पीठ पर कस गये। वह डिस्चार्य हो गयी थी। कुछ देर बाद मैं भी डिस्चार्ज हो गया।

उस के ऊपर से उतर कर बगल में लेट गया। निसा की साँस भी उखड़ सी रही थी। कुछ देर बाद हम दोनों कुछ शान्त हुये तो निशा मेरी तरफ पलटी और बोली कि तुम तो बहुत शैतान हो यह कहाँ से सिखा? मैंने कहा कि भई शादी से पहले वात्सायन को चाटा है। वह हँस कर बोली कि चलो मुझे तो लगा कि तुम मेरी तरह ही नादान हो। मैंने कहा कि दुनिया को पढ़ाते है तो अपने लिये तैयारी नहीं करेगे। वह मेरी छाती पर सिर रख कर बोली कि हाँ ऐसा कैसे हो सकता है कि अपने लिये तैयारी ना करे।

आज क्या हाल है

दर्द तो है लेकिन हल्का सा है, तुम्हारा क्या हाल है?

कल तो मेरे भी बहुत दर्द था लेकिन आज नहीं हो रहा है

हम दोनों काफी देर तक बातें करते रहे फिर सो गये।

सुबह हम दोनों एक साथ उठे और एक दूसरे को चुम कर तैयार होने लग गये। निशा सहयोगी से सहधर्मिणी बन गयी थी। यह यात्रा बहुत रोचक रही थी। हम दोनों में कब दोस्ती प्यार में बदल गयी दोनों को पता ही नहीं चला।

****समाप्त ****

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