मेरी दो नौकरानियां Ch. 03

Story Info
कैसे मैंने अपनी दूसरी नौकरानी को पटाया आय जी भर कर चोदा।
3.8k words
4.4
25
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Part 3 of the 3 part series

Updated 08/05/2023
Created 05/22/2023
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कैसे मैंने अपनी दूसरी नौकरानी को पटाया आय जी भर कर चोदा।

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दोस्तों मैं हूँ अनुराग, इस से पहले आपने मेरे 'मेरे दो नौकरानियाँ' की दो कड़ी पढ़चुके हैं; आईये आज मैं आपको उसकी तीसरी और अंतिम कड़ी की ओर लेचलता हूँ। आपको मालूम है की मैंने अपनी दुबली पतली नौकरानी वासंती को स्पेशल टॉनिक पिलाने के बहाने चार महीने से चोद रहा हूँ। दो महीने और बीतचुके हैं। अब उसके बदन भरी, भरी दिखरही है और उसके चेहरे पर चुदानेका एक अलग ही चमक आचुकी है।

यहाँ तक की मेरी पत्नी यशोदा ने भी उसका यह चमक भांप चुकी है। एक रविवार के दिन वासंती बाहर नलके पास कपडे धोरही थी। मेरी पत्नी पीछे की किचन गार्डनसे कुछ तरकारी निकाल रहि थी। तरकारी तोड़ते उसने वासंतीसे पूछी "वासंती क्या बातहै आजकल तेरी चेहरेपर बहुतही चमक दिखरही है... और बदनभी गदरायी दिख रही है... कहीं तुम्हारा पति वापस तो नहिं आगया...?"

मेरी पत्नी का यह सवाल सुनते हि मै गभरा गया। मैं अपने कान खड़े करके वासंती का जवाब सुनने लगा। वासंती ने बहुत होशियारी से जवाब दी। |

"जी मैडमजी... डेढ़ महीने पहिले वह आगया है..."

"इसिलिए तो...?" मेरी पत्नी बोल रहि थी।

"मैडमजी आप यह कैसी बातें कर रहे है.. उसके आनेसे मेरा बदन में वजन आने का क्या सम्बन्ध...?" वह पूछी।

मेरी पत्नी गुम्भन से कही... "अरी... सम्बन्ध कैसे नहीं... बहुत गहरा सम्बन्ध है..."

"अच्छा वह क्या समबन्ध..?"

"अच्छा.. यह बता तेरा पति तुझे रोज ले रहा है क्या...?" मेरी पत्नी ऐसी बात करेगी मुझे पता नहीं था।

"छी.. मैडमजी आप येह कैसे बात कर है...?" मुझे लगा वह लजा रही है...

"आरी बोलना..इसमें शर्माना क्या...? बोल लेरहा हैना...?"

"वूं"

"क्या रोज लेरहा है...?"

"तीन दिन जब मैं बाहर थी तो वह तीन दिन छोड़के.. हर रोज..." वासंती के स्वर में लाज की कम्पन थी।

"इसीलिए तेरा शरीर भर भरा दिख रही है... कहीं गर्भसे तो नहीं...?"

"नही मैडमजी.. ऐसी कोई बात नहीं..."

चालो अच्चा है तेरा पति आगया है... अब उसे बांधके रख..." कहती मेरी पत्नी अंदर आगयी।

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दूसरे दिन सवेरे 10.30 बजे मैं उसे लेते कल की बात पूछी।

"हाय दय्या.. साब आप ने तो हमारि सारि बात सुनली..." मेरे शॉट को वह अपनी कमार उछालते बोली।

"वैसे तुम्हे अपने पति की बात कैसे सूझी...?" में उसकी निप्पल को पिंच करते पूछा।

"ससस..ससस.." मेरे निपल पिंच करने पर वह कराहती बोली.. "सच में साब मैं तो बहुत गभरा गयी थी मैडमजी की बात सुनकर..." वह अपनी नंगी छाती पर अपना हाथ रखती बोली... "मुझे कहाँ सूझा साब.. यह तो मैडमजी ही अपने सवाल में बोलि थि... की 'कहीं तेरा पति तो नहीं आगया...?' बस मैं उस बात को पकड़ली और मैं हाँ में हाँ मिलादी..."

"लेंकिन तुम तो कहरहि थी कि तेरा पति तीन दिन छोड़कर हर रोज कर रहा है...?"

"मैं यहाँ आप ही की बात कही है साब..आप तो मुझे उस तीन छोड़कर हर रोज लेरहेथे न..."

"तो तुमने मुझे अपनी पति बनालिया..." मैं उसे मजाकिया अंदाज में बोला।

"वह खिसियाकर हंसी और बोली.. माफ़ करना साब..."

उसके बाद हम अपने काम में जुटे रहे.. वही चुदायिकी काम...

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एक महीना और बीत गया.. मुझे तो हर रोज मेरी नौकरानिकी बुर मिलरही थी.. जब की मेरे पत्नीके साथ ऐसा नहीं होता था। मेरे पत्नी के साथ तो हप्ते में एक से दो बार होतो ज्यादा होगया... सो मेरे हलब्बी लंड को हर रोज चुदाई का मौका मिलरही है। इस बीच मैं उसे पुसलाकर उसके गांड भी मारी। साली न.. न कहरहि थी लेकिन जब मेरा उसके गांड में पूरा घुसाते ही वह मजे ले लेकर अपनी गांड पीछे धकेल रहीथी मेरे लंड पर।

उस दिन रविवार था। सुबह के 10.30 बजे थे। हम दोनों पति पत्नी का छुट्टिका दिन। हर रविवार की तरह इस रविवार भी मैं और मेरी पत्नी हॉल में बैठ कर TV देखते चाय की चुस्की लेरहे थे। रविवार के दिन खाना मेरी पत्नी ही बनती है तो वासंती, मेरी नौकरानी उस समय तक चालि जाति है। उस दिन भी अपने आँचल को हाथ पोंछते हमारे समीप आयी और ठहर गयी। उसे देखकर मेरी पत्नी पूछी... "सारा काम होगया है..?"

"हाँ मैडमजी..."

"ठीक है जाओ.. कल टाइम पर आजाना..."

लेकिन वह वैसे ही ठहरी थी। मेरी पत्नीने उसे सवालिया निगाहो से देखि।

"मैडमजी मुझे छुट्टी चाहिए..."

"कब...? कल...?"

"नहीं मैडमजी वैसे मैं एक, डेढ़ महीने तक नहीं आवूँगी.. मुझे गांव जाना है... मेरा पिता की तबीयत बिगड़ गयी है..."

उसकी बातें सुनकर मेरी पत्नी गभरा गयी... और मैं भी; की कल से मुझे उसकी चूत नहीं मिलेगी।

अरे.. ऐसा कैसा होगा.. एक महीनेके ऊपर.. एक दो दिनतो मैं ही सम्भालती.. लेकिन इतने दिन.. नहीं. नहीं.. यह नहीं होसकता..." मेरी पत्नी कुछ नाराजगी के साथ बोली...

लेकिन मैडम जी..." वह कुछ बोलने जारही थी.. तभी मेरी पत्नी बोली... "देखो अगर तुम्हे जानाही है तो किसी भरोसे वाली को नौकरी पर रखो और जाओ..."

"उस बात की चिंता आप मत करिये मैडमजी... मैं एक को रख के जावूँगी..."

"कौन.. भरोसे वाली ही है न...?"

"जी मैडमजी.. जितना भरोसा आप मुझपर रखतें है ... उतना उस पर भी निर्भर रह सकते हैं..."

"अच्छा.. कौन है वह...?"

"मेरी ननद ही है मैडमजी..."

"ठीक है फिर..लेकिन याद रहे कुछ भी गलत हुआ तो तुम जिम्मेदार होजी..." मेरी पत्नी ने उसे चेतावनी दी।

उसी शाम वह अपनी ननद को लेकर आई। उस समय हम बाहर लॉन में बैठे थे। बच्छे समीप की मैदानमे क्रिकेट खेलने गए हैं। वासंती, मेरी नौकरीके साथ आनेवाली को देखते ही मेरे पाजामे के अंदर मेरा यार फुदकने लगा। क्या मस्त मॉल है, साली.. वासंती से बहुत ही अच्छी है.. जब वह हमारे समीप रही थी तो देखा.. साड़ी के अंदर के इसके बलिष्ट जाँघे चलक रही थी। वह दोनों समीप आये तो देखा वह तो वासंती से गोरी है और उसके चूचियां तो बोलो मत.. कोई B कप साइज के थे लेकिन बहुत ही घाटीले थे। लगता है ब्रा नहीं पहनी तो यह उसके हर कदम के साथ हिल रहे थे। कमर भी पातली ही है जैसे वसंती के है।

समीप आने पर उसने उस औरत को मेरी पत्नी से परिचय कराया... "मैडमजी यही है मेरी ननद, आपकी नयी नौकरानी..."

समीप आने पर मैंने अंदाजा लगाया की वह कोई 24 / 25 वर्ष की होगी। मेरी पत्नी उस औरतको बड़ी बारीकी से देखि और पूछी, "क्या नाम है तुम्हारा...?"

"जी मैडमजी.. वसंता..."

"ओह तुम्हारा नाम भी वसंता है...?"

"आप कैसे भी बुलाये मैडम..वैसे मेरि भाभी का नाम वासंती है और मेरी वसंता...'ती' और 'ता' यही फर्क है..." आनेवाली मुस्कुराती कही। जब वह मुस्कुरायीतो उसके दांत चमक रहे थे।

"तुमने इसे सारी काम समझादिया...?" मेरी पत्नी पुरानी नौकरानी से पूछी...

"जी मैडमजी..."

"ठीक है..."

वह दोनों चली गयी। और दूसरे दिन नयी वाली वसंता काम पर आयी... उसे काम समझाना था तो मेरी पत्नी उस दिन घर में ही रह गयी। में दो बजे नौकरी पे चलागया।

उस रात जब हम बिस्तर पर थे तो पुछा.. "कैसी है नयी नौकरानी..?"

"अच्छी है.. काम साफ सथूरा करती है। वसंती से अच्छा काम करति है..." बोली।

दूसरे दिन मेरी पत्नी चालीगयी और नयीवाली घर का काम करने लगी तो मैंने उसे परखा। बहुत ही जबर्दस्त माल है.. इसे कैसे पटना सोचने लगा.. वासंती को तो मैंने टॉनिक पिलनेके बहाने पटाया.. अब इसे कैसे पटावूं.. सोचने लगा। जब वह चलरही थी तो मैंने देखाकि उसके नितम्ब लाजवाब है और वह जब झुक कर झाड़ू लगारही थी तो उसके बड़े बडे मम्मों का झलक मिली। उसे देखते ही मेरे मुहं में पानी आया और निचे मेरे जंघोंमे खल बलि मची।

10.30 बजे वह मेरे लिए चाय बनाकर लायी। सिर्फ एक ही कप लायी।

"यह क्या एक ही कप लायी हो..तुम्हारे लिए किधर है...?" मैं उसे पुछा।

"साब..." वह आश्चर्य से बोली।

"जाओ एक कप और बनाकर ले लावो अपने लिए... मैं वेट कर रहा हूँ..." पांच मिनिट बाद वह एक और कप चाय लेकर आयी। मैंने उसे देखते कहा कहां पियो..."

"साब मैं रसोई में पीलूँगी..."

"नहीं तुम यहीं पियोगी... मेरे यहाँ बैठकर... और हर रोज एहि होगा.. समझ गयी..."

"जी साब..." वह बोली और नीचे बैठकर चाय पिने लगी।

"vaaaah तुम तो तुम्हारी भाभीसे भी अच्छी चाय बनाती हो... इसमें इलाइची डाली हो क्या...?" मैं पुछा।

"हाँ साब.. अच्छी है क्या...?" वह पूछी।

"बहुत अच्छी.. सच कहूँ तो लजवाब है...." में इसे तारीफ करते बोला। मुझे उससे पटाना जो है... वैसे वह चाय भी वस्तव में अच्छी बनायीं। मेरी तारीफ सुनकर वह लजा गयी। में उसे ही देख रहा था.... मेरे आँखों में लालसा से भरी थी।

"ऐसे क्या देख रहे हो साब.. मेरे चेहरे पर कुछ लगी है क्या...?" वह साड़ी से अपना चेहरा पोंछते पूछी।

"नहीं.. नहीं.. कुछ नहीं लगी है.. सच पूछो तो जब तुम लजा रही हो तो बहुत अच्छी लगी... इसी लिए.. सॉरी..."

"अरे इसने सॉरी क्यों साहब.. औ तो मेरी तारीफ ही कर रहे है न...." वह और लजाते बोली।

"तुम नाराज तो नहीं होना...?"

"बिलकुल नाहिं साहब..."

".... तो प्रॉमिस करोकि तुम नाराज नहीं हो..." कहते मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया...

वह एक क्षण संदिग्दमें रही और फिर मेरी हथेली पर हाथ रख कर बोली... "सच साब मैं नाराज नहीं हूँ..."

उसका हाथ मुलायम है, जबकि मेरि पुरानि वाली के तो खुरदरे थे। "थैंक्यू" कहकर उसके हाथ एक बार दबाकर छोड़ दिया।

वह भी "साब मुझे खाना बनानी है...." कही उठी और कप लेकर चली गई। मैंने सोचा आज के लिए इतना ही काफी है.....

इसके दूसरे दिन वह जब चाय लेकर आयी और एक कप मुझे दी, और वह खुद एक कप लेकर पलंग के पास निचे बैठी चाय पिने लगी। उसने आँचल से अपना मुहं पोंछी और अंचल को गोद में डाल दी। इस से मुझे उसके उभरे मम्मे साफ दिखने लगे। में उस नज़ारे का आनंद लेते उसे पुछा.. "वसंता.. तुम्हारे कितने बच्चे है...?" उसके मांग में सिंदूर और गलेमे मंगलसूत्र देखकर मैं जानगया की यह शादी शुदा है।

"साब दो बच्छे हैं... बड़ा वाला लड़का 5 सालका है और लड़की 2 1/2 सालकी है" वह चाय चुसकाती बोली।

"तुम्हारा पति क्या करता है....?" मेरा एक और सवाल।

"साब, वह माकन बनानेका मिस्त्री है और आज कल वह एक कांट्रेक्टर के साथ मुंबई में है..."

"क्या.. तुम्हारा पति यहाँ नहीं हैं...?"

"नहीं साब..." वह कुछ क्षण रुकी और फिर बोली... "आठ महीने होगये साब... वह एक; डेढ़ महिनेमे आने को कह रहा था... अब मैं अपने भाभीकेँ यहाँ ही रह रहि हूँ। "

उसकी बात सुनते हि मेरे लंड में खलबली मच गयी। 'साली, जवान औरत और आठ महीने से इसकी बुर लंड के लिए प्यासी होगी...' में सोचा और एक बार बरमुडे के अंदर मेरे यार को सहलाया।

उस दिन वहीँ तक हमारी बातें चली और खाना बनाने चली गयी।

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दस दिन और बीते।

हम दोनोंके बिच एक अच्छी तालमेल बनने लगी। वह ज्यादा तर किसी फिल्म की कॉमेडी सीन बता बताकर हंसती थी। जब भी वह हँसत थी तो उसके छलकते मस्तियों को देख कर मेरा मन मचल जाता था। कभी कभी सोचता.... 'सली की पटक कर चोदू क्या... लेकिन सब्र का फल मीठा आता है यह सोच कर अपने आपको संभालता था।

तब तक उसे हमारे यहाँ काम करते 20 दिन गुजर चुके है। एक दिन वह चाय पीते बोली...

"साब आप और मैडम जी बहुत अच्छे हैं..." वह मुझे देखति बोली।

"अच्छा... वह क्यों...?" मैं हँसते पुछा।

"आप जो भी खाते या पिते हैं वही हमें देते हैं.. मैडम तो हर रोज चाय और बिस्कुट देती हैं... और आप जैसे ही साथ में बिठाकर पीनेको कहती है। जहाँ मैं पहले काम करती थी वहां तो उबली हुयी चायपत्ति में पानि डालकर उबालते और उसमे थोडासा दूध मिलाकर एक अलग ही गिलास में देते हैं, जो की नौकरोंके लिए ही रखे हैं। वह चाय तो पानी, पानी रहती थी।

मैंउसकी बातों को सुना पर कोई कमेंट नहीं करा।

वह भी कुछ देर खमोश रही। फिर बोली "साब.. मेरी भाभी कहती है की मैं अपना काम मन लगाकर करूँ.. और आप लोगों को मेरी तरफ से कोई तकलीफ न हो..."

"चलो अच्छा है की तुम्हारी भाभी को उतना तो अहसास है हम पर..." मैं बोलै।

"इसमें अहसास की क्या बात है साब.. वैसे आप हि हम पर अहसास करते है..." वह रुकी फिर बोली "साब मेरी भाभी कहती है की मैं आपकी अच्छेसे देखभाल करूं..."

"अच्छा.." मैं हँसते पुछा... "क्या देखभाल करोगी तुम मेरा...?"

वह हँसते हुए मेरी देखि और उठ कड़ी होगयी और अपना साड़ी अपने शरीर से निकाल दी। में उसे अचरज से देखरहा था की यह क्या कर रहि है। अब वह सिर्फ अपने पेटीकोट और ब्लॉउज में थी। यह हँसते हुए मेरे पास आयी और, मेरी छाती पर हाथ रख कर मुझे पीछे धकेली। मैं पीछे चित गिरा। वह मादक ढंग से मुझे देखते, पलंग पर चढ़ी, उसके पैर मेरे दोनों ओर है। वह अपने हाथों से अपनी पेटीकोट ऊपर उठायी और मेरे मुहं पर बैठते बोली..... "साहब भाभी कहती है, आप अच्छे से चाटते हैं ... .मेरी भी चाटदो न साब..." कही और मेरे होंठो पर अपने बुर दबादी।

उसकी इस हरकत से मैं एकदम चकरा गया... लेकिन जल्दी ही अपने आप को संभाला। जो मैं चाहता हूँ वही उसके तरफसे हो रहा है... यह बात मेरी समझ ने आते ही मेरे हाथ उसके गद्देदार गांड पर गयी और वहां दबाते मैंने उसकी चूत को सूंघा। एक मदभरी बुर की गंध मेरे नथनों मे समागयी। "आआह्ह्ह्ह... क्या मदभरी गंध है यह..." उस गंध को सूंघते ही मेरे सारे शरीर में आग भड़की। वह मेरे मुहं पर बैठी थी, इसीलिए उसकी बूर ठीक से नहीं दिखी, लेकिन उसकी बुर उभरी थी और बिना बालों की थी। लगता है वह आज ही साफ करी है...

उस गंध को सूंघते मैं उसके उभार को पूरा मुहंमे लिया और चुभलाने लग। "आआअह्ह्ह्ह...साब... ममममआ" वह कसमसायी। फिर मैं अपनी जीभ निकाल, उसके चूत को चाट ने लगा।

"साब...साब...ऊह्ह्ह" वह कही।

"क्या हुआ...?" मैं उसके गद्देदार गांड को दबाते पुछा।

"बहुत अच्छा लगरहा है साब...मममम.. आआह्ह्ह..." कही और और अपनी योनि को मेरे मुहं में दबाने लगी। मैं कुछ देर उसके उभार को चुभलाकर फिर मेरी जीभ से ही उसकी फाँकों पैलाकार उसके बीच मेरी जीभ डाली। तबतक वह रिस रही थी। उसकी चूत रस का नमकीन स्वाद चखते मैं अपनी जीभ अंदर तक पेलने लगा।

जैसे जैसे मैं जीभ चला रहा था था वह भी अपनी बुर को मेरे मुहं पर रगड रही थी। मेरे हाथ उसके नितम्बों को दबाते, दबाते उस दरार मे घूस गयी। उंगलियां उसकी गांड की दरार मे चलाने लगा।

"आआह्ह्ह.... साब.. वैसे ही.. साब.. और अंदर डालिये आपकी जीभ को.. आअह्ह्ह कितना सुख मिल रहा यही.. ममम.. करो साब करो..." वह बड बढ़ाते मेरे मुहं पर रगड़ पर रगड़ करने लगी।

उसकी बातों से मैं जोश आकर.. उसे जोर जोरसे चाटते मेरे उंगलियों को दरार में फिराने लगा। एकबार तो दिल बोली की उसकी गांड में ऊँगली करूँ।

कोई पांच मिनिट तक में उसकी योनि को चाट ते रहा... और फिर वह "हहहह..साब" कहती झड़ी और मेरे मुहंमे अपना रस उंडेलडी।

कोई चार पंच मीनिट बाद वह मेरे ऊपर से उठी। में उसे मेरे आलिंगन मे लिया और कहा "वसंता.. कैसा लगा...?" पुछा।

"साब बहूत मजा आया साब.. कितने दिन होगये चुदवाकर..."

"कितने दिन होगये...?" मैं उसे चूमते पुछा।

"जब से मेरे पति मुंबई गया है मेरी मुनिया बूखी है साब..."

"अच्छा यह बताओ.. तुम्हारि भाभी ने क्या बोली...?"

"यही साब आप बहुत अच्छे चोदते हैं.. और आपका बड़ा है... वह कहती है की आपसे चुदवाके उसे बहुत सुख मिलता है.. वैसे क्याआपका सच में बड़ा है,,,?"

"तुम्ही ददख लो..." कहते मैंने अपना बरमूडा खींच ड़ाला। मेरे लंड को देखते हि वह गभरा आयी।

"हाय दय्या.. इतना बड़ा... यह तो मेरे पति से बहुत बड़ा है..." वह अपनी छाती पर हाथ रख कर बोली।

मैं उसे अपने अलिंगन मे लेकर उसके गाल को चूमता पुछा... "कितना बड़ा है तुंहारा पति का...?"

"मैं तो कभी नापी नहीं साब लेकिन आपके उसमे आधा होगा..."

मैं अपनी टी शर्ट भी उतारा और उसके सामने नंगा खड़ा है। मेरा औजार टुनकी मार रही थी।

"हहाय ...कितना सुन्दर है .. आपका... चूमने को दिल कर रहा है..." वह बोली।

== चूमलेना मेऋ बुल बुल.... लेकिन पहले मुझे तुम्हे देखना है..: मैं उसे अपने समीप खींचते बोला।

"देखना है... क़याम अप अभि मुझे देख नहीं रहे हो क्या...?" वह मेरी सटते बोली.

"ऐसे नहीं मेरी बूल बुल.. तुम्हे नंगा देखना है.." कहते में उसके गाल को चूमने लगा, और उसके ब्लाउज के घुंडियां लगा।

"नहीं साब.. नहीं.. ऐसा मत कीजिये.. मुझे लाज अति है,... " कही।

"ववहक्या नखरे कर रही है तू. अभी अभी तो साली खुद साड़ी उतारकर मुझ पर चढ़ी थी,, अब नखरे कर रही है,,,? मैं उसके स्तनको ब्लाउज के कर सही पकड़ा और मींजने लगा..

"सस्सस.... हाहाहा.. इतने जोर से नहीं साब .. लगता है..:" वह दर्द से तोल मिलाती बोली उसके चौचीतने मत थे की मैं अनजानेमें ही जोरसे निचोड़ा। उसके बाद वह ना..ना.. कहरहि थी लेकिनमे उसकी पेटीकोट और ब्लाउज उतरके हमने। साड़ी वहखुद उतर चुकी थी। 'वह क्या फिगर है उसकी.. कोई ५"४" कीलम्बाई होगी... नयन नक्श तो अच्छेहैं... कमार पतली और कुल्हे जानदार सफाचट पेट उसकी नाभि... और निचे फूलिहुयी, बिलकुल साफ, बिना बालों का उसकी मस्तानी बुर..देख कर मैं सचमे पागल हो गया।

"लगता है यहां आज ही साफ करी हो..." जांघों के बीच उसके उभा को जकड़ते पुछा..

"हाँ साब.. आज सवेरे पानी नहाते समय साफ करिथि.. भाभी बोलरहि थी की आपको चिकनी चूत पसंद है चाटने के लिए.. उसी लिए..."

"और क्या कही तुम्हरी भाभी...?" अबकी बार मैं उसकी होंठों को किस करते पुछा...

"आपके चुदाई के बारे में बहुत बोलती है साब.. आप कैसे करते हैं, आपका कितना बड़ा है; वह कहरहि थी की जब आप पहली बार उसकी उसमे घुसेड़े तो वह दर्द से तिल मिलायी थी।

अब मुझसे बर्दस्त नहीं हो रहा था... मैं बोला। . "चलो..बाएं बाद में..ोाह्लीकामपहले..." कहेमे उसे बिस्ता अपर लिटाया.. और उस पर चढ़गया।

मैं पहले उसकि एक चूची को होंठों में दबाया और एककी चुचुकको मसलने लगा... "हाहाहा... साब..साब..." वह बड बड़ा रही थी।

फिर मैं उसे ऊपर से निचे तक चाटने लगा.. यह मुझे इतना अच्छी लगि की में उसे ऊपर से निचे तक चाटता रहा। जो मैं पुरानी वाली से नहीं करा था। जैसे जैसी में उसे चाट रहा था वह मस्ती चट पटा रही थी। अब वह भी बदस्त से बाहर हो आयी.." वह खुद मुझे पलटा कर मेरे उपर चढ़ी.. मेरे जंघोंमे आकर उसने मेरे लंड को चूमि। फिर उसने मेरी चमड़ी को पीछे कर सुपाडे पर अपनी जीभ चलाने ने।

"आअह्ह। .. वसंता.. वसंता... चाटो.... चाटो..वैसे ही मेरी बुल बुल.. चाट." मैं कह रहा था। फिर वह मेरे पिशाब वाली छेद में जीभ से poke करने लगी..

"आह.. वसंता.. तुम जो कर रही हो..औरकारो..." में उसके सर को मेरे लंड पर दबाता बोला।

वह मुझे इतने मजे ले लेकर चाट राहीथी की मैं भी उसे रोक नहीं सका.. फिर वह मेरे लंड को पूरा का पूरा मुहं में लेने की कोशिश की.. लेकिन नहीं.. मेरा है भी उतना बड़ा और मोटा.. वह सिर्फ आधे से कुछ ज्यादा अपने मुहं मे लेपाई होगी मे सुपाडा उसकी हलक में चुभ रही थी। "ओक ओक" की अवाजे उसके मुहं से निकल रही थी। वह मेरे लैंड को चूमते.. चाटते..और निचे आयी, और मेरे गोलियोंको भी मुहं में लेकर चूसने लगी। चूसते चूसते उसने मुझे खल्लास करवा ही दिया.. मैंने सारा वीर्य उसके मुहं में उंडेल दिया... वह उसे चटकार लेकर निगल गयी। कुछ बूंदे उसकी छाती पर भी गिरे जिसे उसने अपनी छाती पर लेप करने लगी।

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"साब मुझे ढर लग रहा है..." वसंता अपने चूत पर हाथ रख कर बोली। वह मेरे निचे थी और मैं उसके खुले जंघोंके बीच। वह अपने पैरोंको घुटनोंके पास मोड़करपर उठयी थी और अपने हाथों स घुटनो न को पहड़ि है। जिस से उसके जंघे पूरे खुल ए है और उसके मोठे फांक भी कुछ चौड़े हुए हैं। में उसके जंघोंके बीच बैठ अपने लैंड को उस फांकों के बीच रगादरसे चूत कि छेड़ टिका कार अनार धकेलने वाला था तो व उपर वाली बातें बोली।

वसंता मुझे चूसकर झाड़नेके बाद हम कोई डॉमिनित तकसुस्ताये,फिर वह दुबारा चाय बनाकर लायी। मैं चाय का शौकीन हुँ... और यह तो चाय में इलाइची डालकर बनती है.. जो ेकानोखा उत्तेज देती है। हम चैपिनेके बाद मैं उसे चित लिटाया ार कहा की वह अपने जिन्हे पैलाये। वह ऐसी ही करी। ऊपर का जो पोज़ मैंने वर्णन किया उसीका नतीजा है।

जब वह कही की "साब ढर लग रहा है" तो में पुछा.. "क्यों...?"

"साब आपका सच में बड़ा है.. और मोटा भी... इतना मोटा मेरा पतिका नहींहै.. कहीं मेरी फट गयी तो...?"

"चुप पगलि कहीं की... इस मोटापे से फटती नहींहै...हाँ जरूर कच दर्द होती होगी..वैसे भी तुम तो अपने पति से सात आठ साल से चुदवा चुकी हो हो.. और किस बात का ढर?

"सब फिर भी..."

सब ठीक होजाएगा.. बाद में तुम्ही चीखोगी की और और.. "मैं कहा और उसके आँखों को चूमा तो ... वह कही "ठीक है साब लेकिन संभलके..."

मैं अपनी कमरको हल्कासे दबाव निच्चे को दिया। मेरा सुपाड़ा उसके फांकोंको चीरता अंडा घुसी...

"ससस...ससस....हहह..." वह करहि।

वह कराह रही थी किमैंने एक्जोर का शोर और दिया। "अम्मा..मम्मा " वह चिल्लाई.. मेरा आधा उसके अंदर चला गया.. आधा अभी भी बहार ही है।

सच में उसके तीग़ थी है.. उसके आंखोंमे आंसू आगये.. में प्यार से उस आंसू को चाटा, आँखों को चूमा और फिर उसके होंठोंको चूमते एक स्तन को मर्दन कर रहा था।

उसे चूमते पुछा.."वासंती कैसी है...?"

वसता लग रही है क्या...?"

"कुछ कुछ..." वह आंसू भरे आंखोंसे हँसते बोली।

"निकाल दूँ क्या...?" मैं पुछा।

"नहीं सब अब.. अंदर गयाही है तो क्या निकालन.. रहने दो...कुछ देर.."

में उसके ऊपर खामोशपड़ा रहा और सुकेअंगोंके साथ छेड चाढ़ कनेलगा..कोई तीनचार मिनिट डी उसमे कुच्चलं आयी वह मेरे निचे इधर उधर हिल रही थी। एक और मिनिट बाद वह निचेसे अपनी कमर उछाली। बस इसईशर मेरे लिए काफी था मैंअपनालिन कुछ बहार खींचा.. अरु एकबाफर अंडा धकेला।

"यह..अहा.." वहकरइ.

लेकिन ाबमें उसके कराहने का ख्याल नहींकरा औरएक शोतान्दर जोरसे दिया। मेरा पूरा उसके अंदर जड़ तक समगयी। अब वह कुछबोली नहीं तो मैं शुरू होगया। अंदर बाहर करने। उसकी चूत भट्टी की तरह गरम थी।

"आअह ..साब.. धीरे दही.. मम्मा. ससस.. अब अच्छा लग रहा है..." अपनेकुलहे उछालते बोली।

"अह्ह्ह वसंता. मेरी जनि.. क्या मस्त चूत है तुम्हारी..आअह्ह्ह"

"क्या सच में आपको मेरी मुनिया पसंद आयी साब..?"

"सचमे...बहुत बढ़िया है.. "

"क्या मेंरि भाभी से...?"

ऐसे तुलना करना मुश्किल है... उसकी मजा अलगहै और तुम्हारी अलगहै... "

चलो साब अब करो.. दर्द कमहुअ है..चोदो बिचारि बहुत दिन से पयसिहै..." वहअपनी गांड उठाए बोली।

:ले रानी.. तू भी क्या यद करेगी.. ले अपने सब का लंड पूरा अंदर तक दे रहा हूँ.." कहा और एक शॉट दिया।

फिर क्या ऐसे ही एक दूसरे को उकसाते पूरा आधा घंटा हम दोनों चुद्वारहे थे। उसके बाद उसकि मककन सी बुर में मैं अपना मदन रस उंडेलकर उस पर निढाल होकर पड़ा रहा।

फिर दस मिनिट बाद हम होशमे ए एकदूसरे कोदेखकर हांसे और साफ़ काके बैठ गए।

"साब बहुत अच्छा था सब,, आह.. किना सुकूनही चुदाने के बाद" वहबोली और मेरे सेलिपटा गयी। मेरेऑफिस जन्मे एक घाना औरसमय था। में उसे अबकी बार पीछे सेलिया और उसे अंतुष्ट करा। और फिर कहना ककर ऑफिस केलए एयर होने लगा... \तो दोस्तों यह थी नै दूसरी नौकरानी की मस्ती भरी चुदायी। आशा करता हूँ आप को यह एपिसोड पासंद आयी होगी पढ़ने के लिया थैंक्स और अपना कमेंट देना न भूले..

आपका

पनाभिराम

-x-x-x-x-x-x-

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AnonymousAnonymous4 months ago

5- 10 saal mei jab kahani likhna aa jaye, tab likhna. Dheeraj Mama

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