मेरी दो नौकरानियां Ch. 02

Story Info
घर का मालिक अपने नौकरानि को चोदने की दास्ताँ.
2.2k words
3.86
62
00

Part 2 of the 3 part series

Updated 08/05/2023
Created 05/22/2023
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घर का मालिक अपने नौकरानि को चोदने की दास्ताँ

""साब....साब... उठिये...." मेरी नौकरानी की आवाज सुनकर मैं उठा। मैं अभी भी उसके ऊपर ही था। मेरा लंड सिकुड़कर बहार आ चुकी है। मैं वासंती के उपरसे उठा। पहले हम दोनों अपने आपको साफ करे और फिर आकर बैठ गए। वह किचनमें गयी और एकबार फिर चाय बनाके लाई। हम दोनों चाय पीने लगे। चाय पीते मैं उस से पुछा.." कैसी लगी....?"

वासंती नयी नवेली दुल्हन की तरह लजाई और सिर झुकाली। हम दोनोंके बीच कोई बातचीत नहीं हुयी। चाय खतम करनेके बाद वह बोली "साब एक बात पूछूं...?"

"हाँ.. पूछो..." में उससे देखता बोला।

आप मुझे करने के लिए टॉनिक का नाटक करेथे ना...?" उसके इस सवालसे मैं अचंभेमें रह गया... 'इसे तो मेरी चाल मालूम हो गयी...' सोचा।

"ओह...मालूम रहकर भी तुमने मानली....?" मैं पुछा।

वह कुछ बोली नहीं.... मुझे ही देख रही थी।

"क्यों...?"

"मुझे भी आपसे करवाने का मन है साब.. एक बार मैं आपको मैडमजी को करते देखा था।"

"क्या...? तुमने मुझे मैडम को करते देखि हौ.. कब...?"

"हाँ साब..मेरे यहाँ काम करते एक महीना गुजरगया था। उस दिन मैडम छुट्टी पर थी। मैं काम खतम करके मैडमजी से 'जा रही हूँ' कहने आपके कमरे तक आई और दरवाजा धकेली। दरवाजा बिना आवाजके खुली सामने जो दिखी वह देखकर मैं ढंग रहगयी। सामने मैडम जी पलंग पकड़कर गाय बनी झुकी थी और आप मैडमके पीछे अपना मुट्ठीमें पकड़कर मैडम के उसपर अपना रगड़ रहेथे। मैं अंदर आते आते रुक गयी और आप दोनों कि कामलीला देखने लगी। वैसे मैं अपका लिंग देखकर सकतेमें रह गयी। इतना बड़ा तो मैं पहली बार देखि हूँ... मैं गभरा भी रहीथी की आपका मैडमजी को फाड़ देगी।"

"लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं... उल्टा मैडमजी आपके और और कहते अपने नितम्ब पीछे धकेल्र रहि थी।

'अरे रानी कर तो रहा हूँ...' आप बोले तो मैडमजी का जवाब था और जोरसे करो.. और अंदर तक पेलो..."

"रानी लगता है तम्हारी चूत रोज रोजको गहरी होति जा रही है..."

'हाँ होगी.. तुम भी तो अपना लिंग बढालो.. सुना है आजकल लिंग बढ़ाने वाले दवाईयाँ मार्किट में आई है,,," कहते आपसे चुद रही थी, और आप मैडमजी की कमर पकड़कर जोर जोरसे पेलने लगें।

आप दोनों का वह चुदाई देखकर तो मैं पगला गयी हूँ। मेरा पति मुझे छोड़कर भाग गया.. तब से मेरी भूखी प्यासी है... मैं चुदाने के लिए तड़प रही थी।

तबसे लेकर में आपसे चुदना चाहती थी। आज जाके वह मौका मिला..."

"लेकिन मुझसे क्यों.. क्या तुम्हारे बस्तीमें कोई मर्द नहीं है क्या...?"

"क्यों नहीं है साब. मेरे पर नजर रखने वाले भी है.. लेकिन साले सब हरामि है... मैं एक बार एक से करवाई तो वह मुझे रंडी करके बदनाम करदेंगे... जब मैं आप दोनों को देखि तो मैं सोचलिया की आप से करवावुंगी.. बद्नामि का ढर तो नहीं रहेगा ना..." वह कही और अपना हाथ आगे बढाकर मेरा मर्दानगी को मुट्टी में जकड़ी।

"फिर से करवाना है....?"

"दो साल से भूखी हूँ साब.. यह भूख इतनी जल्दि नहीं मिटने वाली..." कही।

"ठीक है..लेकिन पहले तुम्हारे वहां के बाल साफ करने होंगे.. मैं तुम्हे किस करना चाहता हूँ.. तुम्हारी चाटना चूसना चाहता हूँ.. उसके लिए वह बिना बालोंका होना जरूरी है" कहा।

"आप का जो दिल बोले करिये साब... बस एक बार और मेरी खुजली मिठाइये..."

"चलो फिर बाथरूम में चलते हैं"

हम दोनों फिरसे बाथरूम मे आगये। जैसी ही मैं अपने कपडे उतारी वह मेरी कड़क हो चुकि लिंग को देखते बोली "साब आप का तो फिर से तैयार है"। कही और वह अपने कपडे उतार दी। मैं मेरी पत्नी का बाल साफा क्रीम (hair removing cream) वासंती के चुत और बगलों मे लगाया। पांच मिनिट बाद उस पर पानी डाला तो सारे बल पानी के साथ नाले में बहगये। बालों के वजह से उभर मालूम नहिं पड़ा लेकिन अब मैंने देखा की उसका तो खूब फुली हुई है। दोनों फांके मोटे थे और कुछ खुलकर अंदर के लालीमा, नमीके साथ दिखने लगी।

हमदोनों हमारे कमरेमे आये और मैं उसे आदमकद शीशे के सामने खड़ा किया और बोला "देखो अब कैसी लग यही है तुम्हारी.."

वह अपने आप को आईने देखकर अपने आप में मुस्कुराने लगी। मैं उसके पीछे खड़ा था और मेरा डंडा उसकी नितम्बों की दरार में घुसने की कोशीश कर रही है। मैं अपने दोनों हाथ सामने लेकर उसकी छोटी, छोटी चूचियों को हथेली के निचे दबा रहा था।

"सससससस.... सससस..." उसके मुहंसे एक सिसकी निकली।

"क्या हुआ...?"

"कुछ नहीं साब" वह बोली और मेरे हाथों पर अपना हाथ रखकर अपनी चूची दबायी।

"यह देखो तुम्हारी कितनी फूली फूली है.." कहते मैं अपना एक हाथ निचे उसके जंघोंके बीच लाया और वहां हथेली से दबाया। फिर उसके चूत के लबो को उँगलियों से खोलकर दूसरी हाथ की बीच वलि ऊँगली उसमे घुसेडा। वासंती अपने कुल्हों को मेरे उभार पर दबाते मेरे हरकतों का मजा ले रही है। यह सब करते मैं उसके कान के लौ को हल्कासा दाँतोंसे काटरहा था। साथ ही साथ वहां चाट भी रहा था।

मेरी चाटने पर उसके शरीर में एक कंपन हुआ। कुछ देर हम वही मिरर के पास मौज मस्ति करने के बाद मैं उसे बिस्तर तक लाया और उसे पीट के बल लिटाया।

वह अपने दोनों पैरोंको पैलाकर लेटी थी और अपना एक हाथ से अपनी छोटी चूची को दबा रही थी। जांघों के बीच उसके खुले फांके मुझे निमत्रण देरही है।

मैं अपना मुहं वहां लगाया और उसके पूरे बुर को मुहं में लेकर जोरसे चूसा। उसका मदन रस नमकीन स्वाद के साथ मेरे मुहं में, जिसे मैं चटकारे लेकर निगल गया। जैसे ही मैंने वहाँ मुहं लगाया "आह... आह ससस.." करते वह सिसकने लगी। उसके दोनों हाथ मेरे सिर के पीछे रख वह मुझे अपने चूत पर दबा रही थी। एक बार पूरा रस चूसने के बाद अब मैं उसके मोटे फांकों पर अपनी जीभ चलाने लगा।

"आमम्मम...आआ... साब.. उह उह" कर रहीथी मैं अपना काम जारी रखा और जी भर के उसके मदन रास को चूसने चाटकर निगलने लगा। कुछ देर बाद मैं अपने उँगलियों से उसके फांके खोलकर मेरी जीभ अंदर घुसेड़ने लगा तो वह जोरसे चिल्लायी.. "साब... साब,,, आअह गुद गुदी हो रही है..." .और खिल खिलाकर हंसी। मेरे चूसने से और चाटने से वह इतना गर्म होगयी की वह मुझे ऊपर खींचते कह रही थी.. सब.. यह मेरी बुर..यह खुजली मुझे मारदेगी.. जल्दी अपना डंडा अंदर डालिये साब.." कहते अपनी कमर उछालने लगी।

अब मेराभी धैर्य जवाब देने लगा। मैं इतना उत्तेजित हुआ की मुझे लगने लगा की मैं अब झड़ जावूंगा। मैं उसके जंघोंके बीच आया और अपना उसकी बुर पर लगाकर एक दक्का दिए।

एक ही शॉट मैं मेरा आधा उसकी बुर में चली गयि। वहभी निचेसे कमर उछाली। मेरा उसमे अडसाकर मैं अबकी बार उसके होंठों को अपने में लेकर चूसने ला। वहभी मेरे होंठों को चूस रही थी,चूम रही थी। वह बार बार अपनी कमर उछालते मुझे करने का ईशारा देरही थी। अगर मैं चोदना शुरू करदिया तो ज्यादा देर टिक नहीं पावूंगा,,, मुझे इतनी जल्दी झड़ना नहीं है।

इसी लिए मैं उसे बातों में लगाया।

"वासंती क्या सच में तुमने अपना पति का चूमा या चूसा नहीं हो...?" पुछा।

"नहीं साब.. इसे चूसते है यह बात मुझे मालूम ही नहिं, न मेरे पति ने इसके बारे में बताया.. वैसे मैं लोगों को लंड चुसवाने की गली देते सुनी थी" वह बोली।

"और किसीने तुम्हारी चुत को नहीं चूसा...?"

"नहिं साब किसीने नहीं चूसा.. आप पहले आदमी है जो मेरी चूत चूसे और मुझसे अपना लंड चुसवाया, कसम से"।

वैसे ऐसा करने से तुम्हे मजा आया की नहीं ...?" मेरा एक और सवाल।

वह शर्म से अपना मुहं दूसरी ओर करली।

"आरी बोलना वासंती... मजा या की नहीं..." मैं उसके मुहं को अपनी ओर कर उसके गालों को चूमता पुछा।

"वूं...." वह बोली।

"वूं.. बोले तो.. तुम्हे अच्छा लगा या नहीं...?'

"अच्छा लगा..." वह बहुत ही धीमें से बोली।

कौनसा अच्छी लगि,, चूसना या चुसवाना,,," अबकी बार मैं उसकी चूचिकि घुंडी को मसलते पूछा।

"दोनों ही,, अच्छे लगे..."

"अच्छा यह बताओ कभी तुमने अपने पति पर सवार करि हो...?"

"पति पर सवार... नहीं तो... यह पति पर सवार करा क्या है...?" वह पूछी। अब मैं समझ गया की वह सेक्स के विषय में बहुत ही नादान है... उसकी इस नादानी को देखते मेरे में उत्तेजना बढ़ने लगी। इसे हर चीज सीखाकर मेरी जो तमन्नाये है, जो मेरी पत्नी से नहीं पूरे नहीं होते उन्हें पूरा करनेका सोचने लगा।

"सवार करने का मतलब है कभी अपने पति पर चढ़कर चूदी हो क्या...?" मैं उसे समझते पुछा।

"नहीं साब,, यह मुझे नहीं मालूम है..." वह मासूमियत बोली।

में एक बार उसके पतले होंठों को चूमकर बोला " वासंती तुम्हे बहुत कुछ सीखना है सिखोगी...?"

"सीखूंगी सांब..लेकिन अब तो अपना चुदाई शुरू करो.. मेरे अंदर खुजली हो रही है और मेरा बुर पानी छोड़ने लगी है..." वह अपना कमर उछलते बोली।

"पहले तुम्ही चोदो मुझे..." में उसके चूची की नन्ही घुंडी को मसलते बोला।

"ससससस....हहहहाह... साब आप मुझे तड़पा रहे हैं.." वह फिरसे कमर उछलती बोली।

चलो तुम्हे नया सिखाता हूँ.. उठो..." मैं बोला।

"साब..." वह बोली। उसके बुर में इतनी खुजली होरही थी की उसे एक मिनिट की भी देरी अच्छी नहीं लग रही है...

अरे उठो तो.. बताता हूँ.. तुम्हे खूब मजा आएगा..." कहते में उसके ऊपर से उठा। उसके बगल में चित लेट गया। मेरा हीरो तनकर सल्यूट मार रहा था। "वसंती चलो अब मेरे ऊपर चढ़ो.. मेरे दोनों तरफ अपने पैर रखो.." में बोला।

वह मेरे दोनों ओर पैर रख कर खड़ी होगयी। दोनों तरफ पैर रखने से उसके फांके कुछ खुल गयी और उसमेसे बूँद बूँद टपक रही थी।

"अब बैठो..." वह मेरे ऊपर बैठने लगी... बैठते समय मेरे लंड को अपने बुर में लेलेना समझ गयी..." वह सिर हिलाते बैठने लगी; जैसे उसकी कमर निचे को आयी वह एक हाथ से मेरे औजार को पकड़कर पहले अपने फांकों के बीच रगडी और धीरे से अंदर लेते मेरे डंडा पर बैठ गयी। मेरा पूरा उसके चूत में समां गयी। जैसे ही पूरा अंदर चलिगई मैं बोला "अब ऊपर निचे होजाओ जैसा मर्द करते है..."

तीन चार बार उठ बैठ करि और खिल खिलाते बोली... "हाय सब यह तो बहूत अच्छा है..हहहह आपका मेरे अंदर कहीं जाकर चुभ रही है.." कहते वह उत्तेजन के साथ उठ बैठ करने लगी। मेरा लंड उसके दीवारों को रगड़ता अंदर बहार होने लगी। उसके चूत रस मेरे लंड पर चिपुड़ चुकी है और अब आसानीसे उसके अंदर बाहर हो रहाथा। कभी कभी मैंभी निचेसे मेरी कमर ऊपर उठादेता था।

में अपने दोनों हाथों से उसके छोटे संतरे जैसे चूची को दबाता रहा। वह मस्तीमे मेरे ऊपर; ऊपर निचे हो रही थी। कोई पांच छह मिनिट हम वैसे चुदाई करे होंगे ऊपर निचे होनेसे उसके सांस फूलरही थी।

वह बोली "साब अब मेरे से नहीं होता... आप ही करिये.. में थक गयी हूँ..."

"अब समझी हो हम मर्द कितना मेहनत करते हैं..तुम औरत लोग तो और और कहते कमर उछलते हो..देखो औरतों को खुश करने हमें क्या क्या करना पड़ता है..." मैं उसकी नाक को मरोड़ते बोला।

"मान गयी साब" सचमे ही आप बहुत मेहनत करते है.. चलो अब आईये मेरे ऊपर..." कहती वह मेरे ऊपर से उठी। में उसे पीट के बल लिटाया तो उसने अपने टाँगें खोलके राखी। रससे भरे हुए उसकी चूत से पानी टपक रहा है। में उसके जंघोंके बीच आकर मेरा लंड उसके बुर के होंठों पर फेरते पुछा.. "वासंती क्या तुम कुतिया बनी हो...?"

मैं क्या पूछ रहा था उसे समझ में नहीं आया। "मेरा मतलब है कबि तुम्हारा पति तुम्हे झुकाकर करा या नहिं...?"

"हाँ साब व तो कभी कभी मुझे झुका कर पीछे से लेता था" वह बोली।

उसके बाद हम दोनों में धमसान चुदाई हुयी।

"यह वासंती क्या तंग है तुम्हारी.... यह लो.." कह रहा था। सचमें ही उसका बहुत टाइट थी।

जैसे जैसे में ऊपर निचे होरहा था वह भी निचेसे अपने कूल्हे उठारहि थी और और.. और.. अंदर तक डालो.." कहते उत्साहित कर रही थी। कोई 8 / 9 मिनीट के चुदाई के बाद अब मेरेसे रहा नहीं गया "वासंती मेरा होगया..." कहते उसके बुर को मेरे गर्म लावा भरने लगा। वह भी तृप्ति से आंखे बंद करके उसके अंदर गिरती वीर्य का रसास्वाद ले रहि थी।

फिर क्या है दोस्तों.. उसके बाद तो वासन्ती मेरी रखैल ही बन गयी। में उसे तरह तरह से चोदता था। उसकी बुर को खाता था और मेरे औजार को उससे चुसवा था..

तीन महिने बीत गए हमारी चुदाई शुरू होकर। इस चुदाई का नतीजा भी मिलने लगी। मेरा लंडरस पीकर और चूत में लेकर उसका शरीर का वजन बढ़ी और उसके चेहरे में निखार आयी। अब में उसे तरह तरह के ड्रेस लाया करता था और उसे पहना कर मेरी दिलकी कवाइश पूर्ति करती थी। यहाँतक की में उसके लिये जांघों के ऊपर तक आने वाले शॉर्ट्स और टी शर्ट और टाइट लेग्गिंग्स और छोटी कुर्तियां भी लाया करता था और वह उसे पहनकर खुद भी आनंद होती थी और मुझे भी उस ड्रेस पाहन कर नयन सुख देती थी। आज कल मैं उसके गांड में भी ऊँगली करने लगा। पहले वह न, न कही लेकिन बाद में उंगली का भी मजा लेने लगी। मैं एक दिन उसे चोदते उसकी गांड में ऊँगली करते बोला "वासंती तुम अपनी गांड कब दोगी मुझे..?" पुछा।

"छी आप ..उसे भी करते है क्या...?" मेरी ऊँगली को गांड में करवाते पूछी।

"एक बात बताओ..मेरी ऊँगली करने से तुम्हे नाजा मिलरही है या नहीं...?"

"वो तो मिलरही है..." वह झट बोली।

जब ऊँगली से मजा मिल रही है तो लंड से भी मिलेगी..." मैं बोला। लेकिन साब आपका बहुत मोटा है... बहुत दर्द होगा..."

"बस पहले दिन कुछ दर्द होगा.. लेकिन बादमें देखना कितना आनद अति है..."

"ठीक है साब जब आप इना कह रहे हैं तो मरवावुंगी मेरी गांड.." वह कुछ शरमाते बोली।

"शबाष यह हुयी हिम्मतवाली बात..." कहा।

बस और क्या है हमारा ऐसे ही मौज मस्ती चल रहा ही... वह गांड मरवाने को राजी हुयी.. जब वह गांड मरवायेगी तो फिर मिलता हूँ उस घटना के साथ. तब तक के लिए अलविदा करिये।

आपका कमेटं लिखना न भूलिए।

गुड बाई

आपका

पनाभिराम

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