गंगाराम और स्नेहा Ch. 10

Story Info
स्नेहा की माँ गौरी और गंगाराम की मिलन दुबारा
5.9k words
4.8
35
1

Part 10 of the 12 part series

Updated 11/29/2023
Created 06/03/2022
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

गंगाराम और स्नेहा 10

स्वीट सुधा २६

स्नेहा की माँ गौरी और गंगाराम की मिलन दुबारा

-x-x-x-x-x-x-x-x-

"ससससस..हहहहहह... भाई साब .. आह....यह.. पेलो.. और जोर से पेलो... आह... मजा आरहा है..." गौरी चिल्ला रही थी, और अपनी गांड को पीछे गंगाराम की लंड पर धकेल रही थी।

"आअह्हह स्साली.. क्या चूत है तुम्हारी भी जितना चोदूँ, और और चोदने का मन करता है..." एक शॉट गौरी के चूत में देते कहा गंगाराम ने

"तो चोदोना भाईसाब...रोक कौन रहा चोदो ... जी भर कर चोदो... अपनी मुहं बोली बहन को... मौज करो और मुझे भी मौज करने दो..." अपना गांड पीछे धकेलती बोली।

"हाँ हाँ मेरी बहना... पेलूँगा.. जी भर कर.. वैसे गौरी.. तूमतो बहुत चुड़क्कड़ निकली..."

"हाँ भाईसाब.. मैं भी क्या करूँ.. साला मेरा पियक्कड़ पतितो अब चोद नहीं पाता.. 5 सालों से मेरी चूत; एक मस्ताना यारके लिए तरसति रह गयी.. जबसे तुमसे चूदी हूँ.. मेरी मुनिया की प्यास बढ़तेहि जारही है...इसीलिए तो मैं बच्चों को गांव जारही हूँ कहकर तुम्हारे पास आगयी हूँ.... मुझे खुश करदो मेरे राजा भैया..." कही और अपने कमर को पीछे ठेली।

-x-x-x-x-x-x-x-

बात ऐसी है की गौरी; स्नेहा की माँ जब गंगाराम से चूदी तो, (पढ़िए गंगाराम - स्नेहा 7) पांच साल से भूखी उसकी बुर शांत होनेकी जगह उसकी खूब चूदी चूतमे चुदास के कीड़े और जोर से रेंगने लगे। यहाँ तक कि वह रातमें नींदमें भी भाईसाब.. भाईसाब बड बढ़ाने लगी। उसे समझ मे आगया कि जब तक अपनी चूत की प्यास न भुझेगी उसकी यही हालत रहेगी। तो उसने फैसला किया की जैसी गंगारामने कहा है दो, तीन दिन उसके यहाँ ही रहकर रात दिन चुदने का फैसला कर चुकी। वह अपने बच्चों को गांव जारहि हूँ कहकर घर से निकली। बड़ी बेटी स्नेहा ने उसके लिया बस स्टैंड तक ऑटो में बिठाई। जब वह बस स्टैंड पर ऑटो उतरी तो गंगाराम वहां कार लेकर मौजूद था। उसके साथ वह कल रात 8 बजे गंगाराम के यहाँ आई.

उस रात गंगाराम और गौरी जी भरकर चुदाई कर चुके।

दूसरे दिन 10 बजे गंगाराम गौरिको लेकर कारसे बाहर निकला। रास्ते में उसने गौरी से पुछा.. "गौरी तुम्हारा अपना कोई बैंक अकाउंट है क्या...?"

"नहीं भई साब, बैंक अकाउंट से मुझे क्या करना ह.. पहले घर का खर्चा वह देखते थे और अब तो घरका सारा खर्चा बेचारी स्नेहा ही देख रही है.. वैसे में मुझे बैंक अकाउंट कि क्या जरूरत है..?"

"हूँ... वैसे तुम कहाँ तक पढ़ी हो...?"

"10th पास हूँ.. क्यों...?" पूछी गौरी।

गंगाराम ने कोई जवाब नहिं दिया और उसे लेकर सीधा नजदीकी बैंक पहुंचा।

"भाई सब हम यहाँ क्यों?" पूछी गौरी।

"आवो तो सही बताता हूँ..." कहता वह बैंक में दाखिल हुआ। गौरी उसके पीछे पीछे अंदर आयी। वहां उसने गौरी के नाम का अकाउंट खुलवाया और उसमे पचास हजार रूपये जमा करदिया।

"भाईसाब....यह...यह..इतना पैसा मेरे नाम.. क्यों...?"

"अरे रखो तो सही..."

"नहीं .. मुझे नहीं चाहिये यह सब.."

"गौरी गौरी.. तुम बहुत ही अच्छी औरत हो..." गंगाराम ने गौरी के कंधे के गिर्द अपना हाथ घुमाकर उसे समीप खींचता बोला "तुमने मुझे भाईसाब कहा है ना.. यह एक भाई का दिया हुआ तोहफा है... ना मत बोलो... अभी तो तुम्हे पूजा को और गोपी को पढाना है... अगर और जरूरत पड़े तो पूछलेना..." उसके बाद दोनों घर आते है।

घर आतेहि गौरी गंगाराम से लिपटती कही है... "भाईसाब आप बहुत अच्छे हैं.. वैसे आप स्नेहा की देखबाल कर ही रहे हो... अब यह.. मैं आपका यह ऋण कभी नहीं चूका पावुंगी...आप जो भी बोलो मैं करूंगी" वह भावुक होकर बोली और उस से लिपट गयी।

"अच्छा... तो चलो एक बार और कुश्ती लड़ते हैं मंजूर...?"

42 उम्र वाली उस औरत शर्म से लाल होगयी और शरमाते बोली "जैसे आपकी इच्छा..."

इसीका नतीजा है ऊपर का चुदाई का संवाद।

धुआंधार चुदाई के बाद गंगाराम और गौरी एक दूसरे कि बगल में लेट कर बातें करते एक दूसर की अंगों से खिलवाड करते रहते है।

-x-x-x-x-x-x-

"देखो गंगाराम, मैं और इंतजार नहीं कर सकता... तुम्हे वह प्लाट चाहिए या नहीं.. फैसला करलो.. अगर हाँ तो एक हफ़्ते के अंदर पूरा रू 30 लाख बैलेंस पेमेंट करो..या नहीं तो अपना रू 20 लाख का एडवांस भूल जाओ..." चौधरी गंगाराम से कह रहा था। उस समय दोपहर के डेढ़ बजे थे और गौरी, गंगाराम लंच करके सोफे पर बैठे थे तो दरवाजेकि घंटी बजी।

गंगाराम ने गौरी को अंदर भेजा और दरवाजा खोला। सामने चौधरी ठहरा था। वो कोई 40 वर्षका हट्टा कट्टा आदमी था। उसे अंदर बुलाया और चौधरी सोफे पर बैठते हुए कहा "देखो गंगाराम मैं और इंतजार नहीं कर सकता... तुम्हे वह प्लाट चाहिए या नहीं.. फैसला करलो.. अगर हाँ तो एक हफ़्ते के अंदर पूरा रू 30 लाख बैलेंस पेमेंट करो..या नहीं तो अपना रू 20 लाख का एडवांस भूल जाओ..."

"यार चौधरी यह क्या बात कर रहा है तू... क्या तुमने हमारी दोस्ती भी भूलगये" गंगाराम बोला।

"गंगाराम धंधे में दोस्ती नहीं चलती है; यह बात तुमसे अच्छा कौन जनता है...?"

"लेकिन चौधरी.. मुझे कुछ समय तो दो... मुझे भी बाहर से पैसे आने हैं... आते ही..." चौधरी उसके बात को बीचमे टोका... "नहीं गंगाराम, नहीं हो सकता... उस दो एकर जमीन के लिए मुझे 60 लाख का ऑफर आयी है... तुम मेरे दोस्त हो इसी लिए बोल रहा हु... मैं तुमसे 60 डिमांड नहींकर रहा हूँ.. वही 50 पर फिक्स हूँ लेकिन बाकीके 30 लाख एक हप्ते के अंदर... नहीं तो...

"नहीं चौधरी... इतनी जलदी मुझसे नहीं होता...कमसे कम एक महीने का समय तो दो मेरे भाई..." गंगाराम मिन्नत कर रहा था।

चौधरी ने इनकार में सिर हिलारहा था।

"ठीक है फिर.. मेरे दिए हुए एडवांस वापिस करो..." गंगाराम कुछ तम तमाता बोला।

चौधरी ठहाका मारकर हंसा और बोला... "गंगारम तुम्हे मालूम ही है, रियल एस्टेट के धंधे में एडवांस वापिस नहीं मिलती..."

"नहीं चौधरी ऐसा मत करो... तुम्हारे भरोसे पर तो मैं पूरा 20 लाख एडवांस दे चूका हूँ... एडवांस वापिस नहीं देसकते तो एक महीने का समय देदो...." गंगाराम ऑलमोस्ट गिड़ गिडारहा था। बहुत देर तक रिक्वेस्ट करने पर चौधरी बोला....

"ठीक है.. एक शर्त पर..."

"क्या....?" गंगाराम आतुर होकर पुछा।

तुम्हे मालूम है मैं औरतों का शौकीन हूँ.. किसी मेरी उम्र की गधरायि औरत की इंतजाम करो...लेकिन वह कोई रंडी नहीं होनी चाहिए..."

"यह कैसे हो सकता है...?" गंगाराम पुछा।

"गंगाराम मुझे तुम्हारी बारे में मालूम है.. साला तू हमेशा अपने लिए किसी फॅमिली वालीको ही फंसता है.. तेरा राज तुहि जाने लेकिन है तो यह बात सोलह आने सच्ची ही.. अब तुम क्या करते हो... तुम्ही जानो.. किसी औरत का इंतजाम करो.. और अपने 20 लाख बचालो..."

"ठीक है.. में सोचता हूँ कुछ..."

"सोचने का नहीं है... इंतजाम करनी है... तभी तुम्हे एक महीने का मोहल्लत मिलती है.. सोचलो.. मैं फिर कल फ़ोन करूंगा..." कहता चौधरी सोफे परसे उठा। मुहं लटकाये गंगाराम उसके पीछे दरवाजे तक आया और चौधरी का बाहर जाते ही दरवाजा बंद करदिया।

-x-x-x-x-x-x-

बात क्या है भाईसाब, वह आनेवाला इतने जोरसे क्यों चिल्ला रहाथा...?" कमरे में आने के बाद गौरी गंगाराम से पूछी।

"छोड़ो वो किस्सा... धंधे में ये सब चलते ही रहता है..." गंगाराम गौरी के बगल में लेटते बोला।

वैसे गौरी सब कुछ सुनली है। कुछ देर ख़ामोशी के बाद गौरी अपनी तर्जनी ऊँगली गंगाराम के गाल पर चलाने लगी। गंगाराम उसकी ओर पलटा और उसके कमर में हाथ देकर समीप खींचा। गौरी अपने एक टांग गंगाराम के टांग पर चढ़ायी और उसके हाथ को अपने एक चूची पर लेते पूछी.. "क्या बहुत परेशान है आप..?"

"Hooooonn...." गंगाराम एक दीर्घ निश्वास लेते कहा "हाँ..."

"बात क्या है...?" गौरी आगे को झुककर गंगाराम के गाल को प्यार से चूमती पूछी।

"कहाँ ना छोड़ो वह किस्सा..."

"भाई साब आप हमें परिवार के हिस्सा बताते है; और अपने दर्द अपने पास ही रखेंगे ऐसे कैसे होगा.. आखिर परिवार किसके लिए है? अपनों का दर्द बाँटनेके लिए ही न...?"

गंगाराम धीरे धीरे उसके और चौधरी में जो हुआ उसे बयान किया।

गौरी सब सुनकर खामोश रही, कुछ बोलि नहिं। गंगराम भी खामोश उसके बगल में लेटा था और कुछ सोच रहा था। गौरी उसके ऊपर झुकी और उसके होंठों को अपनेमे लेकर चूसने चुभलाने लगी। कुछ ही देर में गंगराम में कुछ हरकत हुई, वह हाथ आगे कर गौरी के मस्ती को पकड़ा और जोरसे दबाया।

वुई माँ.. मरी..आआह.. भाईसाब.. लगताहै आप उस आदमी पर का गुस्सा मुझ पर निकल रहे है...देखो कैसे लाल हो गये यह..." कही और अपना ब्लाउज खोलकर अपनी नंगी चूची दिखती बोली।

उसकी चूची सचमे लाल होचुकी थी। "ओह सॉरी मेरि बहना.. सचमें ही मैं बहुत जोरसे दबा दिया... जलन होरही है क्या...? उस पर हलकासा हाथ फेरता कहा।

"कोई बात नहीं भाईसाब... आवो इसपर तुम्हार झूटन का मलहम लगादो..सारी जलन गायब हो जायेगी..."

कहती गौरी ने गंगाराम के मुहंको अपने भारी चूचीपर ली। गंगाराम भी उसे प्यार से चूमते जीभ से चाट चाट कर उस पर झूटानका लेप कर रहा था। इतने में गौरी ने गंगाराम के पाजामे के ऊपर से ही उसके अकड़ रहे लंड पकड़कर दबाने लगी। कुछ हि देर में दोनों नंगे होगये और गंगाराम गौरी के जंघोंमे आया। उसका ड्रिल बिट गौरी को ड्रिल करके लिए तैयार है। गौरी अपने टंगे पैलाकर, उसके हलब्बी सुपाड़ी को अपने बुरकी फांकों परा रगड़ी और कही "भाईसाब अब उतारो अपना गुस्सा..." कहते कमर उछाली।

गंगाराम ने एक शॉट दिया... उसका आधे से ज्यादा एक हि बार में गौरी के संकरी बिल चली गयी।

"सससस...हहह... यह हई न बात.." कहती अपनी कुल्हे ऊपर को उछालने लगी।

फिर दोनों के बीच खूब चुदाई होती है और दोनों थक कर ढीला पड जाते हैं।

-x-x-x-x-x-x-

शाम के साढेचार बजे थे। गौरी और गंगाराम हॉल में सोफेपर बैठकर चाय पिरहे हे। दोनों सटकर बैठे थे और टीवी देख रहे थे। टीवी चलरही है लेकिन किसी का भी ध्यान टीवी पर नहीं थी। दोनों अपने अपने ख़यालों मे थे।

"भाईसाब" गौरी बुलाई।

"vooon...." गंगाराम अपने ख़यालों मे ही हुंकारता है।

गौरी कोई जवाब नहिं देती..."

"क्या बात है गौरी.."

"मुझे कुछ कहना है...."

"हाँ कहो..."

"मैं... क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकती हूँ...?"

"तुम क्या मदद कर सकती हो..."

गौरी फिर से खामोश रहती है।

"गौरी.. कहीं तुम...." वह रुक गया... वह जो कहना चाहता था.. नहीं कहाँ.. अस्चर्य से गौरी को देखने लगा। फिर बोलै "गौरी कहीं तुम...."

गौरी धीमेसे अपना सिर हिलाई।

"नहीं नहीं ऐसे कैसे हो सकता है..?"

"भाईसाब आप जरा ठन्डे दिमाग से सोचिये; 20 लाख कोई मामूली रकम नहिं होती"

"मानता हूँ.... बिज़नेस में ऐसी उतार चढ़ाव होते हि रहते हैं..."

"लेकिन जब कोई रास्ता दिख रहा है तो उसे छोड़ना भी तो मूर्खता होतीहै..." गौरी बोली।

"नहीं.. नहीं... मैं तुम्हारी फॅमिली को अपना मानता हूँ..."

"हमभी तो मानते हैं... इसी लिए कह रही हूँ... एक फॅमिली सदस्य होते, दूसरे सदस्य को नुक्सान होते देख भी तो नहीं सकते..."

"लेकिन..."

"भाईसाब... आप बहुत अच्छे है...अब लेकिन वेकिन कुछ नहीं... आप मेरी बात मानिये प्लीज..."

"गौरी एक बार फिरसे सोचलो... बाद में पछताना न पड़े..."

"कोई पछताव नहीं होगी... आप उस आदमी से बात करिये..." गौरी गंगाराम की हाथ को अपने में लेकर दबाती बोली।

गंगाराम एक दीर्घ निश्वास छोड़ते हुए बोला "ठीक है फिर. कब बुलावूं उसे ...?"

"आज ही बल्कि अभी बुलाइये... कल शाम तो मुझे घर वापिस चलि जानी है..." एक पल रुकी और फिर बोली "उस से कहिये की संयोगवश आपका कोई पुराना वाकिफकार मिलगयी है और आपने उसे मनालिये हैं..."

गंगाराम चौधरी को फ़ोन लागाता है.. और सब समझाता है... और कहता है की वह अजाये...

"स्साला...गंगाराम.. मुझे मालूम है.. तुम कितने पक्के खिलाडी हो... सात बजे तक आजावूंगा..." उधर से चौधरी कहा और फ़ोन काट दिया।

-x-x-x-x-x-x-x-

गंगाराम और गौरी हॉल में सोफे पर बैठकर बार बार घड़ी देख रहे थे। शाम के 7.15 बज चुके हैं और उन्हें चौधरी का इंतजार था। वह एक दूसरे के बगल में बैठे थे और गंगारामके हाथ में गौरी का हाथ था। गंगाराम उसे दबाते कहा "गौरी तुमने अच्छी तरह से सोच लिया हैं न...?"

"हाँ भाई साब मैंने सोच लिया है..मैं अपने भाईसाब को इतना घाटा होने नहीं दूँगी..." वह पूरी ढीठ के साथ बोली। गंगाराम अपने आप में हंस रहा था। उसकी चाल कामयाब हो रही है। यही तो गंगाराम की चालाकी है की वह पहले गौरी को 50 हजार रूपये deposit करके उसको ऋणी बनाया और गौरी उसके ऋण की भोज के तले गंगाराम को सहायता करने को निर्णय ली है। पाठकों को याद होगा उसने ऐसे ही स्नेहा को भी फंसाया था और स्नेहा समीर खान से गंगाराम की काम कराई थी।

दरवाजे कि घण्टी बजी तो दोनों चहक उठे और गंगाराम उठकर दारवाजा खोलने गया। गांगाराम के साथ अंदर आया चौधरी हाल में एक 40 - 42 साल की गधराई औरत को बैठे पाया। पहले ही नजर में गौरी उसे भागयी। गंगाराम उसे सोफ़ेपर बिठया और गौरिका परिचय कराया "चौधरी.. यह है गौरी.. मेरे एक अच्छे दोस्त की पत्नी... और गौरी यह है चैधरी... मेरे अच्छे मित्र हैं और मेरे जैसेही बिसिनेस वाले हैं। गौरी खड़ी होकर उसे हाथ जोड़ कर नमस्ते की। फिर सब बैठकर बातें करने लगे। कुछ देर दोनों मर्द रियल एस्टेट दह्न्धे के बारे में बातें करते रहे।

चौधरी झट गौरि की ओर मुड़कर "गौरीजी आपके पति क्या करते हैं...?" पुछा।

गौरी कुछ बोलने जा रही थी की गंगाराम कहा.. "इनके पति आजकल दुबई मे है.. वहां उनका बेकरी बिज़नेस है। बच्चों की पढ़ाई के लिए इन्हे यहीं रुकना पड़ा..." कहा। गौरि के होंठों पर एक मुस्कान थी।

"मैं अभी आई.." कहते गौरी उठी और अंदर चली आयी। चलते समय उसकी भारी भरकम कूल्हों को हिलता देखकर चौधरी के हाथ उसके जांघों के बीच आगये और वहां सहलाने लगे।

गौरी अंदर जानेके बाद चौधरी गंगाराम से "यार.. क्या मॉल पकड़ा है यार.. सच में तू लकी है.. कैसे पटाया इस औरत को...?" पुछा।

"सशशशशशशश.. धीरे कहीं वह सुन न ले... कहाथा न इनके पति मेरे मित्र है तो उनकी घर की हांल चाल पूछने जाया करता था.. बस ऐसे में एक दिन..." वह रुक गया।

"यार पक्का गृहिणी लगती है.. कहीं गड़बड़ न होजाये...?" चौधरी अपना शंका जाहिर किया।

"ऐसा नहीं होगा.. मैंने उसे समझाया है की एक गेस्ट को एंटरटेन करना है... वह राजी से आगयी है..." यहाँ दोनों बातें कर ही रहे थे की गौरी एक ट्रे लेकर प्रवेश करि। ट्रे में तीन गिलास एक फुल बोतल व्हिस्की, सोडा साइफन, दो प्लेटों नमकीन ले आयी। एक में मसाला काजू था दुसरे में उबले हुए मूँगफली थी। गौरी जैसे ही ट्रे रखने के लिए झुकी उसका साड़ी कंधेसे गिरी और बहुत ही खूबसूरत नजारा धौधरी को दिखी। गौरी बैठकर सब के लिए ड्रिंक्स बनायीं और एक चौधरी को दी और एक गंगाराम को और तीसरे वह खुद ली।

"चियर्स आज के मादक शाम के लिए..." कहता चौधरी अपना गिलास पहले गौरी के ग्लास से फीर गंगाराम के गल्स से टकराया। गौरी मादक ढंग से मुस्कुराते गिलास टकराई।

अगले दस मिनिट में यह लोग हँसते, चुटकुले सुनते, अपना ड्रिंक सिप करते और नामकीन चबाते अपना पहला गिलास ख़तम कर चुके हैं। गौरी और चौधरी एक सोफे पर बैठे हैं तो गंगाराम एक अलग सोफे पर। कैसे पहल किया जाये यह बात दोनों मर्द सोचने लगे। गिलास ख़तम होते ही गौरी ने फिर से आगे झुक कर ग्लास भरने लगी। अबकी बार साड़ी तो नहीं गिरी लेकिन साड़ी उसके पेट पास से हटकर उसकी गहरी नाभि दिखने लगी। नाभि इतनी गहरी थी की छोटी ऊँगली का एक टकना अंदर घुसेगी।

गौरी ने फिरसे सब ग्लासेस थमाई। चौधरी थोड़ा हिम्मत करा और वह खुद अपने गलास से एक घूँट पीकर अपना गिलास गौरीके मुहं के पास रखा। गौरी चौधरी की ओर एक चित्ताकर्षक मुस्कान दी और उस गिलास से एक बडा घूंट ली। घूँट तो ली लेकिन वह उसे निगलि नहीं, व्हिस्की को मुहं में रखकर चौधरी की ओर घूमी और उसके होंठों को अपनेमे लेकर चूसते अपने मुहंमे से सारा व्हिस्की चौधरी के मुहं में उंडेल दी।

चौधरी तो एक क्षण के लिए सक पकाया फिर भी जल्दी ही संभल गया और अपने हाथ गौरी के कमर के गिर्द लपेटकर समीप खींचा और उसके होंठों को चूमने लगा।

गौरीभी चौधरी से लिपटते गंगाराम की और देखि और आँखों से ही समीप अनेका इशारा करि। गंगाराम जो गौरीकी हरकत से अचंभे में था वह उन दोनोंके पास आया तो गौरी ने अपने को चौधरी से छुडाली और गंगाराम को खींच कर सोफे पर बिठाते उसके ऊपर टूट पड़ी।

तब तक दोनों मर्द अपने आपको सँभाल चुके थे और चौधरी ने झट गौरी साड़ी उखाड़ फेंका। अब गौरी सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में थी। गौरी के मस्तियाँ एक बड़े साइज के आम की तरह आगे लटक रहे हैं तो चौधरी अपने आप को रोक नहीं पाया और एक आम को पकड़कर निचोड डाला।

"ससससस...ह्ह्ह्हआआ.. जालिम.. मार डालोगे क्या....?" वह दर्द से तिलमिलाते कही।

"अहह... गौरी तुम हो ही इतनी दिलकश की मैं अपने को रोक नहीं पाया.." चौधरी कहा और एक बार फिरसे उसकी एक चूची को टीपा। तब तक गंगाराम गौरी के होंठों को चूमते अपना हाथ उसके जांघों के बीच घुसाया। गौरी भी कुछ कम नहीं थी। उसका एक हाथ गंगाराम के गर्दन के गिर्द तो उसका दूसरा हाथ चौधरी के जांघों में कुछ तलाश कर रही है।

गौरी की हरकत देख चौधरी ने अपने कपडे उतर दिए और गौरी का हाथ खीचंकर अपने औजार पकड़ा दिया।

"स्स्सस्स्स्स....." कहती गौरीने उस लवडे को अपनी मुट्ठी जकड़ी। साथ ही साथ वह गंगाराम के हाथों के लिए अपने जांघें खोलदी। गंगाराम अपना हाथ वहां डालने से पहले उसके पेटीकोट खोल दिया और नंगी जंघोंमे हाथ डला और गौरी की चूत को पकड़ा।

जैसे ही उसने उसकी मोठे फांकोंके बीच ऊँगली डाली वह सनझ गया की गौरी की चूत मदनरस छोड़ रही है।

"Waaaaaaaaavvv गौरी तुम्हारी तो रिस रही है..." गंगाराम कहा।

"भाईसाब आपको चूत रस की कॉकटेल पिनी है..." वह पूछी।

"चूत रस का कॉकटेल.. वह क्या होती है...?" चौधरी उसकी बातों को सुनकर पुछा। तब तक सब लोग पूर्णतया नग्न होचुके हैं। गौरी की मुनिया तो बिना बालों के एकदम साफ चिकनी थी। चौधरी आनेसे पहले उसने स्नान का बहाना कर अपने झांटों सहित खाँख (arm pit) के बालों को साफ कर आई है।

"अभी पिलाति हुँ.." गौरी कही और वहीं सोफ़े पर इस तरह खिसकी की उसके नितम्ब सोफे के किनारे (edge) पर टीका कर; पीछे को लेटते अपने मोटे सफ़ेद जाँघे खोली। उसके चिकनी चूत और मोटे फांकों को देख कर चौधरी उसपर गिरने वाला था।

"अरे...रे... रुकिए.. इतनी उतावले क्यों हो रहे हैं... कभी चूत नहीं देखि क्या...?" मुस्कुराते पूछी।

"बहुत से देखिहै मेरी जान..लेकिन तुम जैसी नहीं देखि..."

गौरी खिल खिलाकर हँसते पूछी "अच्छा... ऐसी क्या है मेरी उसमे...?"

बहुत ही लुभावनी है यह नगीना... एकदम मालपुए की तरह उभरे हुए, फूली फूली फांके... उनके बीच लालिमा से भरी स्वर्ग.. और उसमे से आती भीनी भीनी खुसबू.. ओह.. इन जांघोंके बीच तो स्वर्ग है...." चौधरी भावुक होकर बोला और गंगाराम से पुछा... "यार गंगाराम तुम क्या कहते हो...?"

"चौधरी मुझे क्या कहना है.. जो तुम बोले वही सच है.. वैसे स्वर्ग की सैर कब करायेगि येह तो पूछो..." गंगाराम चौधरी को आंख मारते पुछा।

गभराओ नहीं भाईसाब... वह भी करावुंगी..पहले कॉकटेल तो पिलो.." गौरी गंगाराम की बातोंका जवाब देती बोली।

"पिलाओ जलदी मुझे सब्र नहींहो रहा है...?" चौधरी बोला।

गौरी सोफे पर अधलेटी अपने जांघों को पूरा पैलाकर, एक हाथ में व्हिस्की का गिलास थामकर व्हिस्की को धीरेसे अपनी नाभि में धार की तरह डालने लगी। व्हिस्की उसकी गहरी नाभि में भरकर वहां से निचे उसकी चूत की तरफ बहरही थी।

"चलो शुरू होजाओ..कॉकटेल पिना..."चौधरी को देख कर आंख दबाती बोली।

"Waaaaaaavvvvvv... क्या नया तारीका है कॉकटेल पिनेका.." चौधरी कहा और गौरीके जंघोंमे आकर अपना मुहं वहाँ चिपका दिया। जैसे जैसे वहिस्की आरही थी चौधरी उसे चूत की कटोरी से पिने लगा। चौधरी की जीभ अपने फांकों पर टच करते ही गौरी में हल्का सा कम्पन हुआ और वह "आआअह्ह्ह्हम्म्म्म" कहते सिसकार ली।

"भाईसाब.. जब तक आपके दोस्त कॉकटेल पीते हैं तब तक आप मेरे दुद्दुओ को पिलो..." कही और गंगाराम अपने समीप खींचकर उसके मुहं को अपने एक स्तन पर रखी। गंगाराम उसे चुभलाने लगा। कुछ देर एह दौर चलता रहा और फिर गंगाराम और चौधरी का अदला बदली हुआ। यानि, गंगाराम गौरीके चूत से व्हिस्की पिने लगा तो चौधरी गौरी का दूसरा स्तन चुंबकने लगा।

पांच मिनिट बाद 'अब मेरी बरी.." कहते गौरी उठी अउ दोनों मदोंको सोफे पर बिठाई। उस दोनों के बीच में निचे कार्पेट पर घुटनों पर बैठी और कही "चलो.. अब तुम लोग अपने औज़ारों पर व्हिस्की डालो..." कही।

दोनों समझ गये की गौरी क्या कह रहि है.. और उत्तेजित होते गंगाराम ने अपने लंड पर व्हिस्की की धार डालने लगा। व्हिस्की जैसे धार की तरह लंड पर बह रहि है गौरी ने उस लंड लो मुहं में लेकर व्हिस्की को निगलने लगी। वैसे ही एक बार गंगाराम की तो एक बार चौधरी को चूस रही थी।

तीनोंको खूब मजा मिल रही थी। सब के सब मस्ती के आलम में डूबे थे। वैसे इतनी देर की इन हरकतों से गौरी की चूत में खलबलि मचने लगी। अंदर कहीं खुजली सी होने लगी।

एक बार वह चौधरी के लंड को जकड़ी बोली.. लगता है यह मेरी फाड़ देगी..." उसके सुपाडे पर ऊँगली फेरते बोली।

"ऐसे कैसे हो सकता हॉकता है.." चौधरी बोला "गंगाराम का तो मेरे से भी बड़ा है..." वह गंगाराम की 9 इंच लंड को देखते बोला।

"भाईसाब का लम्बा जरूर है लेकिन आपका देखो कितना मोटा है.. मेरी कलाई से भी मोटा है... इतना मोटा मेरेमे घुसेगी क्या.. एहि अनुमान हो रही है..." वह चौधरी को रिझाते अपने होंठोंको काटते बोली।

"चलो वो भी देखते हैं... यहीं शुरू होजायेंगे या बैडरूम में..."

"चौधरी यही कारपेट पर एक शो डालते है यार.. सेकंड राउंड बेडरूम मे चलते है.." गंगाराम कहा।

हाँ यह ठीक रहेगी..." गौरी बोली। जैसे वह यह बात बोली गंगाराम अंदर गया और तीन चार तकिये ले आया। गौरी तकिये पर सिर रख कर पीट के बल लेट गयी। गौरी एक हाथ से अपने चूची को दबाते, निप्पल को पिंच करते, दूसरे हाथ को अपनी खूब चुदी बुर पर फेरते उन दो मर्दोंको पागल कर रही थी। गंगाराम तो ज्यादा अचम्भे रहा। गौरीसे उसके योन सम्बन्ध कहीं तीन महीनेसे चल रहीहै.. लेकिन गौरी का आज का यह रूप वह कभी नहीं देखा।

अब दोनों मर्दों पहले कौन, पहले कौन चल रही थी तो गौरी बोली... पहले दोनों मेरे पास आवो ... और दोनॉ एक एक चूची को, मुहंमे लो..." कही।

दोनों मर्द उसके दोनों तरफ आये तो गौरी ने दोनोंको अपने बाहोंमे ली। गंगारम एक चूचिको पिरहा था तो चौधरी दूसरा। स्तन को पिते पिते चौधरी अपना हाथ निचे कर तब तक खूब रिसरहे गौरी की चूत में ऊँगली करने लगा...

"आआअह्ह्ह्ह...चौधरी साब.. ऐसे ही करिये आपकी ऊँगली..हहह,,, और अंदर..." कहती कमर उछालने लगी। यह देख गंगाराम उसकी नाभि में अपनी उंगलि करने लगा...

"ससससस.. नहीं भाईसाब .. नहीं.... वहां ऊँगली मत करो..." वह तिलमिलाई।

"क्यों... क्या हुआ मेरी रानी..?" गंगाराम कहा और उसके होंठो को अपने मे लिया।

"नंगनगङ्गं" उसके मुहं से निकले...

इधर गंगाराम नाभि में उंगलिकर रहा था तो चौधरी चूत में ऊँगली कर रहा था। साथ ही साथ चूची भी चूस रहा था। अब गौरी से भी रहा न गया...

"आआआहहहहह.. कोई तो मेरी खुजली मिटाओ.. डालो अपनी हलब्बी लंड मेरी चूत में.." वह चिल्लायी।

गंगाराम अपने जगह से उठा गौरीको चोदने। भाईसाब आप नहीं, चौधरी साब को आने दीजिये; वह हमारे मेहमान हैं..." गंगाराम को देखते कही और आंख दबाई।

चलो चैधरी शुरू हो जाओ..." गंगाराम ने कहा।

इतनेमे गौरी भी बोली "चौधरी साब आप आईये..मेरी खुजली मिठाइये..."

चौधरी गौरी के जांघो में यया और अपनी लंड को गौरी की फांकों पर रगड़ा। गौरी एक छिनाल की तरह चित लेटी अपने होंठोंको काटते चौधरी को देख रही थी।

चौधरी में अब जोश आगया अपना औजार को चूत के मुहाने रख कर एक जोर का दक्का दिया।

"हाय... अम्मा.. मरीरे.. हाय.. हाय मेरी फट गयी... हाय कितना मोटा लंड है..." वह चिल्ला रही थी।

12