महारानी देवरानी 056

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पारस जाने की तयारी और यात्रा की शुरुआत
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Part 56 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 56

पारस जाने की तयारी और यात्रा की शुरुआत

श्याम और बद्री सैनिक के साथ महल के मुख्य दुवार की ओर जाने लगते हैं। रास्ते में वह उन दोनों की नजर कसरत करते हुए बलदेव पर पड़ती है जो अपने ही धुन में कसरत करने में मग्न था।

सैनिक: युवराज आपके मित्र आये हैं।

बलदेव: क्या सच में?

बलदेव पलट कर देखता है। तो सामने श्याम और बद्री मुस्कुराते हुए खड़े हुए थे।

बलदेव: अरे मित्रो! तुम दोनों का स्वागत है।

बलदेव खुला नग्न शरीर लिए हुए, उनका स्वागत करने के लिए, अपने मित्रो के पास जाता है।

बद्री: बलदेव तुम्हारा शरीर अब हम जैसा नहीं रहा हे तुम पत्थर के समान हो गए हो।

श्याम: हाँ भाई. आज कल भाई बहुत ज़्यादा मेहनत कर रहे हैं।

बलदेव मुस्कुराता हुआ सैनिक को आज्ञा देता है ।

"जरा मेरा परिधान लाना!"

"जी युवराज!"

बलदेव: वह सब छोडो! तुम दोनों इतनी सवेरे कैसे पहुँच गए?

बद्री: भाई! हम रात में ही तुम्हारे क्षेत्र में आ गए थे और हम पास के एक राज्य में रुक गए थे।

शयाम: हाँ और सुबह होते हे हम वहाँ से चल दिए, इसलिए सुबह सवेरे ही पहुच गए।

बलदेव: मेरी मन रखने के लिए मित्रो, तुम दोनों का धन्यवाद!

बद्री: भाई. हम मित्र हैं। अगर हम एक दूसरे का साथ नहीं देंगे तो कौन देगा?

श्याम: मित्र तुम्हारे लिए तो हम जान भी दे सकते हैं। जब हम आचार्य जी पास शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब तुमने भी तो हमारे लिए बहुत कुछ किया है।

तीनो चल कर अब महल के मुख्य द्वार पर पहुँच गये थे।

बद्री: श्याम सही कह रहा है। बलदेव हम वह दिन भूल नहीं सकते जब तुमने हम सब की गलती की सजा अपने सर ले ली थी। बलदेव बात काटते हुए-

"मित्रो! अब छोड़ो भी जो हुआ सो हुआ। तुम दोनों मेरे मित्र हो तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान की परवाह कभी भी नहीं परवा नहीं करूंगा।"

श्याम: ओ भाई! मुझे तो बहुत भूख लगी है और मैं तो घातराष्ट्र आता ही हूँ मौसी के हाथों बने पकवान खाने के लिए ।

बलदेव: श्याम चलो आज तुम्हें हम बहुत बढ़िया पकवान खिलाएंगे!

श्याम: मुझे तो मौसी के हाथ का खाना है।

बलदेव: हाँ मैं माँ से कह कर तुम्हारे लिए विशेष भोजन बनवा दूंगा।

बद्री: तुम तो अब भी बच्चे ही हो। आये नहीं कि शुरू हो गये। पेटू कही के ।

बलदेव: अरी ऐसा नहीं है। बद्री श्याम को इसका पूरा हक है। "तुम दोनों झगड़ा बंद करो और चलो मेरे साथ।"

तीनो महल में घुस जाते है। देवरानी अपनी कक्ष में व्यायाम करने के बाद स्नान कर सुबह की जड़ी बूटी खा रही थी फिर उसके कानो में बलदेव और किसी की बातें सुनाई देती हैं ।

देवरानी अपना घूंघट कर अपने कमरे से बाहर आती है और देखती है सामने बलदेव के साथ उनके दोनों मित्र थे।

बलदेव देखता है कि माँ घूंघट ताने दूसरी ओर मुंह किये हुए पहचानने की कोशिश कर रही थी की आख़िर बलदेव के साथ कौन आये है।

बलदेव: अरे माँ इधर आओ! ये मेरे मित्र श्याम और बद्री हैं।

अब तक तो देवरानी ने भी चोर नजरों से देख पता लगा लिया था के बद्री और श्याम आये हैं।

देवरानी उनके पास चली जाती है और अपना घूँघट किया हुआ पल्लू हटाती है।

बद्री और श्याम देवरानी को हो देखते ही उसके चरण स्पर्श करते हैं।

बद्री और श्याम: मौसी आप को बहुत दिन बाद देख बहुत अच्छा लगा हमें। आशीर्वाद दीजिये।

देवरानी: अरे मेरे बेटे मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। देवरानी दोनों को सर पर हाथ फेरती है। फिर देवरानी उन्हें आयुष्मान होने का आशीर्वाद देती है ।

फिर दोनों खड़े होते हैं।

ये सब देख बलदेव मुस्कुरा रहा था।

देवरानी: बलदेव इन दोनों को अपने कक्ष में ले कर जाओ, अभी पूजा नहीं हुई है।

श्याम: मौसी मुझे प्रसाद चाहिए।

बद्री: श्याम तू बस खाने के जुगाड़ में रहना बच्चे, मौसी आपको पूजा करने की क्या आव्वश्यकता है आप तो खुद देवी लगती हो और देवी जैसी पवित्रा हो।

देवरानी ये सुन कर मुस्कुरा देती है।

बलदेव: बद्री तुम कह रहे थे ना के मेरे गठीले शरीर का राज क्या है। ये राज ये है कि मैं इसी देवी की पूजा करता हूँ।

ये बोल कर बलदेव देवरानी की ओर देख आख मार देता है।

देवरानी अपना घूँघट फिर से डाले अपने कमरे में जाने लगती है। देवरानी बलदेव के मित्रो की बात सुन लज्जा के साथ अपने ऊपर गर्व भी कर रही थी।

बद्री: पूजा भर से ये कैसे हुआ, मित्र?

बलदेव: भाई. माँ मेरे खाने पीने सब कुछ का हिसाब रखती है।

तीनो सीढ़ियों से होते हुए बलदेव के कक्ष तक पहुँच जाते है।

बद्री: भाई से। बलदेव पारस कब निकलने का इरादा है।

बलदेव: जब तुम कहो?

श्याम: हाँ! हमें वहा खूब प्राचीन चीजे देखने को मिलेगी और मैंने सुना है वहाँ के पकवान भी बहुत स्वादिष्ट होते है।

बद्री: श्याम अब तुम बच्चे नहीं हो! कुछ और भी सोचो खाने से हट कर, मूर्ख!

श्याम: तुमने मुझे मूर्ख कैसे कहा? मैं मेवाड़ का युवराज हूँ अभी तुम्हारे उज्जैनी जिभ को खींच लूंगा, कालू राम!

श्याम बद्री को देख कर जोर से हसता है। जिस से बलदेव की भी हंसी छूट जाती है।

बद्री श्याम की गर्दन को हाथ में ले कर पीछे से दबा कर बोलता है ।

"श्याम अपने गोरे रंग पर इतना अहंकार मत करो!"

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे मुर्ख कहने की? बद्री काले बादल!"

बद्री: इसकी तो मैं जान ले लूंगा!

बलदेव: छोडो भी बद्री इसको! तुम दोनों बच्चो को तरह लड़ना कब बंद करोगे! फिर बलदेव दोनों को अलग करता है।

बलदेव: अब हम बारी-बारी से स्नान कर लेते हैं।

तभी तीनो के कानों में ढोल की आवाज आती है।

बद्री: कोई ढिंढोरा पीट रहा है।

तभी तीनो कान लगा कर ढिंढोरे की आवाज के साथ कोई सन्देह राज्य में सुनाया जा रहा था। वह सुनने लगे।

"सुनो सुनो सुनो...सुनो सुनो घटराष्ट्र वासिओ! महाराज राजपाल सिंह ने आज अभी-अभी सभा बुलाई है। कृपा कर के सब पहुचे! महाराज कोई महवपूर्ण निर्णय लेना हैं। सुनो-सुनो घटराष्ट्र वासिओ!"

बलदेव: अब तो समय व्यर्थ करना ठीक नहीं होगा, मैं जल्द ही स्नान कर के आया।

बद्री और श्याम समझ जाते हैं और अपने साथ लाया हुआ समान सैनिक को कह कर कक्ष में रखवाते है और पहनने के लिए अपने साथ लाये वस्त्र का चुनाव करने लगते हैं।

थोड़ी देर में बलदेव स्नान कर के आ जाता है और बारी-बारी से सभी स्नान कर लेते हैं और अपने राजसी परिधान पहन लेते हैं।

देवरानी इधर आकर अपनी कक्ष में पहले अगरबत्ती जलाती है और कुछ प्रसाद का चढ़ावा लगा कर रोज़ की तरह अपना पाठ पढ़ रही थी, कुछ देर पाठ पढ़ने के बाद पूजा ख़तम होती है और देवरानी अपने और बलदेव के लिए कामना करती है।

"भगवान धन्यवाद तूने मेरी हृदय की बात सुन ली और इतने बरसो बाद मैं अपने मायके पारस जा रही हूँ । हम सब दूर की यात्रा करने जा रहे हैं। हम सब पर अपनी कृपा रखना । भगवान!"

देवरानी दोनों हाथो जोड़े खड़ी भगवान से उनकी कृपा मांग रही थी। उसने मंदिर में दीया जला कर पूजा की थी। वह पूजा की थाली ले कर बलदेव के कक्ष की ओर जाती है।

देवरानी देखती है। तीनो त्यार हो कर बैठे हुए थे।

देवरानी: लो बच्चो तुम सब के लिए पूजा का प्रसाद!

बद्री और श्याम झट से अपना सारा झुक कर अपना हाथ आगे बढ़ा कर प्रसाद ले लेते हैं। पर बलदेव नहीं लेता।

देवरानी: अरे बलदेव तुम भी लो बेटा।

बलदेव सर निचे कर के बोलता है ।

"मां मैं बाद में ले लूंगा" और देवरानी को एक अंदाज़ से देखता है।

श्याम: मौसी! महराज ने अभी सभा क्यू बुलायी है?

देवरानी: सभा बुलाने के बारे में तो मैंने नहीं सुना और तुम मुझे मौसी कहते हो और उनको महाराज । ऐसा क्यों?

श्याम: क्यू के मौसी महाराज राजपाल खड्डूस है। इसलिए उन्हें मौसा नहीं कहता और आप एक दम अपनी-सी लगती हो तो आपको महारानी नहीं कह सकता । आपको मौसी कहना ही अच्छा लगता है।

देवरानी श्याम की बात पर मुस्कुराती है।

बद्री: मुर्ख श्याम चुप रहो! वैसे मौसी अभी थोड़ी देर पहले हमने ढिंढोरा सुना, सभा के बारे में! उस समय शायद आप पूजा कर रही होंगी।

देवरानी: हाँ मैं पूजा कर रही थी।

बद्री: आप तो देवी हैं। मौसी! आपने तो सच में कुछ नहीं सुना जबकि पूरे घटराष्ट्र ने सुन लिया, सच कहु आप की भक्ति को मेरा नमन है ।

देवरानी: अरे बस भगवान की कृपा है। मेरे जैसी पुजारिने तो करोड़ो होंगी ।

बद्री: मौसी इस श्याम को भी कुछ सिखा दो। इसे कुछ नहीं आता।

श्याम: हाँ जैसे तुम बहुत ने बड़े भक्त हो और साक्षात शिव जी से वार्तालाप करते हो।

ये सुन कर सब हसने लगते है।

देवरानी: अगर ऐसा है। तो तुम लोग जाओ. हम सबको प्रसाद दे कर आते हैं।

देवरानी प्रसाद की थाली ले कर चली जाती है और बलदेव अपने मित्रो को ले कर महल के बाहर निकल सभा स्थल की और जाने लगता है।

देवरानी सबसे पहले सृष्टि के कक्ष की और जाती है।

"दीदी श्रुष्टि!"

"आओ देवरानी।"

"दीदी ये लीजिए भगवान का प्रसाद।"

"अरे वाह देवरानी इतनी सवेरे तुमने पूजा पाठ भी कर लीया ।"

"हाँ दीदी! वैसे आज आप उदास-सी लग रही हो। क्या हुआ आप की तबीयत तो ठीक है ना?"

शुरुष्टि अंदर से जल भुन जाती है।

"क्यू? ऐसा क्यू कह रही हो देवरानी में ठीक तो हूँ।"

"दीदी वह मैं रात में उठी तो मैंने देखा था आप अपने कक्ष में जा रही थी और जब तक मैं आवाज देती आप ने दरवाजा बंद कर लिया था।"

"श्रुष्टि दीदी लगता है। आपकी नींद पूरी नहीं हो पाई है।"

शुरष्टि को इतना गुस्सा आया की वह अब देवरानी के गालो पर रख कर दे पर वह अपने आप पर काबू रख बोलती है ।

शुरुष्टि: (मन में-कामिनी तू रंडीनाच कर ले जितना करना है बस आगे आने वाले दो दिन में तेरे चिता में आग मैं ही दूंगी।)

देवरानी: क्या सोचने लगी आप? ये लीजिए प्रसाद, भगवान मनुष्य को शक्ति वह उतनी ही देता है। जितने की अवश्यक्ता होती है। इसलिए हमें अपनी शक्ति का कभी भी गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जो भगवान शक्ति देता है वही गलत इतेमाल करने पर उसे छीन भी लेता है।

सृष्टि हाथ आगे बढ़ा कर अपने मन को मार कर प्रसाद देवरानी के हाथों से लेती है।

शुरष्टि: (मन में-रंडी बड़ा ज्ञान दे रही है। देवी बनने कि कोशिश कर के शुरू से ही तुमने सोचा था घर पर अपना सिक्का जमाने का। पर आज तक तुम सब के पैरो की धूल ही हो, एक दो दिन अपने बेटे पर इतरा लो । फिर तो मैं तुम से स्वर्ग लोक में मिलूंगी, कमिनी वही पर अपने बेटे से प्रेम का खेल खेलना...देवरानी! उह्ह्ह! बड़ी आयी है देवी माँ!

सृष्टि के चेहरे पर एक बड़ी कुटिलता भरी मुस्कान आ जाती। जिसे देवरानी देख लेती है।

देवरानी: क्या बात है। दीदी बेवजह मुस्कुरा रही हो! कहीं रात की महाराज की कोई बात तो याद नहीं आ गई?

शुरष्टि: तुम कहना क्या चाहती हो देवरानी?

देवरानी: यहीं जब मैं पानी पीने उठी थी तब मैंने आपको महाराज के कक्ष से निकलते हुए देखा था ।

सृष्टि चुप चाप बूत बनी देवरानी की बात सुन रही थी । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे?

देवरानी: वैसे लगता है कल रात आपने खूब आनंद लिया, इसलिए आप अब तक मुस्कुरा रही हो।

शुरष्टि के लगा जैसे देवरानी ने उसके जले पर नमक छिड़क दिया हो । महाराज ने तो असल में शुरुष्टि को असंतुष्ट, तड़पती हुई प्यासी और खुमारी में छौड दिया था। वह प्यास और खुमार सृष्टि अब तक महसुस कर रही थी।

शुरष्टि: (मन में-देवरानी की बच्ची मेरा मज़ाक उड़ा रही है। पर इसे कैसे पता राजपाल ने मुझे प्यासी छोड़ देता है।, हाँ इसने भी तो राजपाल का लिंग लीया है। भले ही ये आज से 17 साल पहले ही चुदी थी पर जानती है कि बूढ़े महाराज के 4 इंच के लौड़े से क्या होता है।)

देवरानी: (मन में-अब तुम उस बूढ़े के छोटे से लिंग को खड़ा करती रहना जीवन भर और तीन धक्के में ही खुश रहना, भले ये कद की नाटी है पर चालबाज़ी तो भरपूर है कमीनी।)

सृष्टि: नहीं, नहीं देवरानी। ये क्या बकवास कर रही हो तुम, अब मैं 48 साल की हो गई हूँ, अब मेरा दिल नहीं करता, वह सब का करने का ।

देवरानी: (मन में-वह तो तेरा दिल जानता है-है । शुरुष्टि)

देवरानी: ऐसा क्या! दीदी मुझे तो पता नहीं था।

शुरष्टि: हाँ अब बकवास तुम्हारी ख़तम हो गई हो तो जाओ. मुझे कुछ काम है।

देवरानी को गुस्सा आता है। पर ये बदला लेने का सही समय नहीं था । इसलिए वह वहाँ से चल देती है।

देवरानी जीविका के ओर चल देती है।

"माँ जी कहा हो आप?"

जीविका अपनी कक्षा से बाहर आते हुए-"हाँ बहु कहो!"

और गुस्से से देखते हुए देवरानी से पूछती है।

"वो माँ जी आपके लिए प्रसाद लायी थी।"

जीविका को उस रात का दृश्य याद आता है जब बलदेव देवरानी के कुल्हो को हाथ से दबा कर देवरानी को गोद में ले रसोई से ले जा रहा था।

जीविका अपने मन में "देवरानी तू कितनी बड़ी पापिन है। मैंने कभी नहीं सोचा था तुम ऐसा कुछ करोगी। मुझे शर्म आती है अपने ऊपर अब!"

"माँ जी क्या सोच रही हैं। मुझे आशीर्वाद दीजिए । मैं कई वर्षों बाद अपने मायके पारस जा रही हूँ ।"

देवरानी जीविका के पाँव छू लेती है।

जीविका नहीं चाहते हुए भी आशीर्वाद देती है ।

"हाँ हाँ जीती रहो!"

देवरानी एक कातिल मुस्कान के साथ जीविका की परिस्तिथि समझते हुई खड़ी होती है और जीविका को देखती है। जिसका चेहरा उतरा हुआ था।

देवरानी को जीविका का चेहरा देख कर बहुत ख़ुशी होती है।

जीविका (मन में "मुझे इन दोनों को पाप करने से कैसे रोकना चाहिए, राजपाल को कैसे बतायू की उसकी पत्नी और उसका बेटा अवैध सम्बंध बना रहे हैं।")

देवरानी सबको प्रसाद बांटती है और फिर कमला को थाली दे कर बोलती है ।

देवरानी: कमला इसे बांट दो!

कमला: क्या बात है। आज बहुत खिल रही हो?

देवरानी: क्यू क्या मैं रोज़ अच्छी नहीं लगती?

कमला: नहीं महारानी आज ऐसा खिल रही हो जैसे युवराज ने खूब अंदर तक अपने काले से मालिश कर दी हो।

देवरानी: चुप कर पगली...ऐसा कुछ नहीं हुआ।

कमला: तो कैसा हुआ?

देवरानी: बस तुझे तो बताया तो था। बस वहा तक । बिना विवाह के और आगे नहीं जाना...डर लगता है। कहीं कुछ...?

कमला: देवरानी कहीं ये डर तो नहीं है कि के कहि युवराज आप को पेट से कर के छोड़ नहीं दे। (तो फिर तुम ना घर की रहोगी ना घाट की) इसलिए पहले उसे बंधन में बाँधना चाहती हो।

देवरानी शर्मा जाती है।

देवरानी: कमला! तू छिनाल है।...मुझे बलदेव पर पूरा भरोसा है।...

कमला अरो डरो मत मेरी बहना! बलदेव तुमसे सच्चा प्यार करता है। उसके सामने कोई हूर या परी भी आ जाए तो वह आपको छोड़ उसको देखेगा भी नहीं!

देवरानी: पहले मैं...!

कमला: मैं समझ रही हूँ महारानी आप सोच रही हो कहीं आगे जा कर उसका मन बदल जाए किसी कुंवारी दुल्हन के लिए और वह विवाह कर ले...पर ऐसा नहीं होगा।

देवरानी: भगवान न करे ऐसा हो, ठीक है। अब मैं चलती हूँ मुझे जरूरो काम है।

देवरानी अपने कक्ष में जाती है और सभा में जाने की तयारी करने लगती है।

धीरे-धीरे सब सभा में पहुँचते हैं और महराजा, महारानी और युवराज सबका जय जयकार से स्वागत होता है।

राजपाल: सेनापति सोमनाथ खड़े हो कर जनता को बताओ!

सेनापति सोमनाथ: देवियो और सज्जनो और घाटराष्ट्र के 20 गांवों से आए हुए हमारे गाँव के सम्मानित मुखिया जनो आप सभी का घाटराष्ट्र के महाराज राजपाल और सेना स्वागत करते हैं।, महाराज ने एक निर्णय लिया है जिस में र आप सबका योगदान जरूरी है।,

महाराज को घटराष्ट्र के ऊपर आक्रमण होने की आशंका है और इस बात का डर मुझे भी है। राष्ट्र का सेनापति होना मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है। पर आप सब जानते हैं। की हम आयत निर्यात में पीछे हैं और घाटराष्ट्र का खजाना भी अब कुछ खास बचा नहीं है और हमें आशंका है दिल्ली से शाहजेब हम परआक्रमण कर सकते हैं और हमे सुचना मिली है कि उनकी सेना उत्तर की ओर निकल गई है। मैं आप सब से निवेदन करता हूँ कि आप सब सेना में शामिल हों क्यू के बादशाह शाहजेब के सैनिक 25000 से कम नहीं है।

क्या आप सब अपने बच्चों को हमारी सेना में घाटराष्ट्र बचाने के लिए भेजेंगे?

पुरी सभा में लोग एक स्वर में बोलते हैं ।

"हाँ हम अपने बच्चे भेजेंगे और हमारी माँ घाटराष्ट्र की धरती को आक्रमण करने वालो से बचाएंगे ।"

सेनापति: और एक मदद और चाहिए आप सब अपने घर पर जो भी हथियार या लोहा हो आप उसे हमारे हवाले कर दे। हम उन्हें गला कर हमारे सैनिकों के लिए हथियार बनायेंगे।

सेनापति: क्या आप सब हमारा साथ देंगे?

भीड़ में से एक दस वर्ष का बालक आगे अत है और कहता है।

"सेनापति जी मैं एक लोहार का बेटा हूँ और मैं अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ूंगा! "

भीड़ में सब एक साथ कहते है।

"जियो लाल!"

"जब राज्य के लिए ये बालक आगे आ सकता है तो हम सब क्यू नहीं?"

वो दस वर्षीय बालक अपने झोले में हाथ डाल कर एक हथोड़ी निकालता है।

"सेनापति जी मेरे पिता लोहार हैं और उनकी ये हथोड़ी में राज को दान करता हूं। "

सेनापति सोमनाथ अत्यंत खुश होते हैं और बालक के पास आकर बोलते हैं ।

सेनापति: इस घाटराष्ट्र के लाल का दान में स्वीकार करता हूँ। लाओ मेरे बच्चे! सेनापति उसके सर पर हाथ फेर कर उसकी हथोड़ी ले लेता है।

सेनापति: आप सब सचेत रहिए अपने-अपने गाँव में । हम सब मिल कर सीमा को चारो ओर से घेर लेंगे।

सेनापति सोमनाथ: महाराज आप कुछ कहना चाहेंगे।

राजपाल: आज अगर पिता श्री जीवित होते तो वह बहुत प्रसन्न होते। आप सबका धन्यवाद घाटराष्ट्र वासियों और मैं आप सब की और से हमारे अतिथि राजकुमार बद्री जो उज्जैन के युवराज हैं और राजकुमार श्याम जो मेवाड़ से आये है उनका स्वागत करता हूँ।

पूरी भीड कहती है।

"स्वागत है। आप दोनों का अतिथियो!"

बद्री और श्याम, बलदेव और देवरानी की ओर देख मुस्कुराते है।

राजपाल: एक बात और कहना चाहूंगा आज रानी देवरानी अपनी माँ के यहाँ पारस जाने वाली है।

भीड में से एक व्यक्ति उठ कर बोलता है ।

"महाराज क्षमा करें क्या इस परिस्थिति में हमारे सैनिकों को बाहर जाना ठीक है।"

राजपाल देखिये हम इस बात को भली-भाति समझते हैं। इसलिए देवरानी के साथ केवल बलदेव, श्याम और बद्री ही जाएंगे।

व्यक्ति: महाराज की जय हो!

सबलोग पीछे से कहते हैं। महाराज की जय हो!

सेनापति: महाराज क्या आपको कुछऔर कहना है।

राजपाल: नहीं सभा ख़तम की जाए ।

सेनापति: घटराष्ट्र वासियो सभा खतम की जाती है और अभी से जिनको सेना में शामिल होना है। वह सेना शिविर के मैदान में रुक सकते है।

जय घटराष्ट्र!

पूरी भीड एक साथ कहती है।

"जय घटराष्ट्र!"

धीरे-धीरे जनता जाने लगती हैं और राजपरिवार के सब लोग अपने आसन से उठ कर महल में जाने लगते हैं।

बलदेव के साथ श्याम और बद्री भी जाने लगते हैं। देवरानी भी अपने कमरे में जा चुकी थी।

बलदेव: मित्रो तुम दोनों ऊपर जाओ। मैं माँ को कह दूं तुम दोनों के खाने के लिए कुछ विशेष बनाये।

श्याम: हाँ ठीक है!

श्याम और बद्री ऊपर चले जाते हैं।

बलदेव अपनी माँ के कक्ष में घुस जाता है। देवरानी अपने सामान को जो उसे अपने साथ पारस ले कर जाना था उसे इकट्ठा कर रही थी।

"मां चलने की तय्यारी शुरू हो गई"

"अरे आओ बलदेव!"

बलदेव देवरानी के रूप को निहारते हुए!

"मां तुम बला की सुंदर लग रही हो"

"अच्छा मेरे राजा!"

बलदेव देवरानी को बाहो में भर लेता है।

देवरानी: जाओ मुझसे बात मत करो!

बलदेव: क्यू माँ क्या हुआ?

देवरानी: मुझे गुस्सा आया है तुम से।

बलदेव: क्यू गुस्सा है। मेरी रानी?

देवरानी: जब मैंने दिया तो तुमने प्रसाद क्यू नहीं खाया?

बलदेव हसते हुए बोला "ओह तो ये बात है। मेरी रानी।"

बलदेव: देखो माँ मैंने प्रसाद नहीं लिया क्यू के तुम मेरी देवी हो और मेरा मनपसंद प्रसाद लेना मुझे आता है।

बलदेव आगे बढ़ कर देवरानी के होठों को अपने होठों में दबा कर चूसने लगता है।

"उम्म्हा एगललोप्प स्लर्प गलप्प-गलप्प उम्म्म स्लरप्प गैलप्प गैलप उम्म्म्हा रप्प!"

ऐसे अचानक हमले से देवरानी संभल नहीं पाती और लंबी सांस लेने लगती है।

एक लम्बी चुम्बन के बाद बलदेव देवरानी के होठ को हल्का काट लेता है। फिर देवरानी के होठ छोड़ता है।

देवरानी: उफ़ बलदेव ये क्या हरकत है।

बलदेव: माँ प्रसाद देते हुए तुमने मुझे बच्चा कहा था। ये उसकी सजा है।

देवरानी: अच्छा तो इस बात से मुंह गिराए हुए थे तुम और तुमने ये कर के साबित कर दिया की तुम अभी भी बच्चे ही हो।

बलदेव देवरानी को ले कर दीवार से चिपका देता है और उसकी गर्दन को अपने बड़े हथेली से पकड़ लेता है ।

बलदेव: माँ वह तो मैं तुम्हें बताऊंगा की मैं कैसा बच्चा हूँ!

देवरानी हल्का खासी करते हुए....!

देवराणु: जान से ही मार दोगे मुझे क्या?

बलदेव अपना हाथ देवरानी की गर्दन से हटा कर देवरानी की बड़ी गांड पर रख कर दबाता है।

बलदेव: जान से तो नहीं पर किसी और चीज़ से मारूंगा ये!

और बलदेव देवरानी की गांड पर एक थपकी मारता है।

देवरानी लज्जा कर सरा झुका लेती है।

देवरानी: मेरे प्रेमी क्यू गुस्सा हो रहे हो । अगर मैं तुम्हें बच्चा समझती हूँ तो मैं तुम पर भरोसा कर तुम्हें अपना जीवन साथी नहीं चुनती।

बलदेव को अपनी माँ पर प्यार का साथ दया आजाती है।

"मां, मैं आपके इस निर्णय को कभी गलत साबित नहीं होने दूंगा।"

तभी राजपाल आवाज देता है।

"देवरानी ओ देवरानी!"

देवरानी: जी महाराज!

बलदेव अपने हाथ से देवरानी की गांड को पूरी ताकत से दबाता है।

देवरानी: आआआआह!

देवरानी की जोर की आह सुन कर राजपाल देवरानी के कक्ष की ओर आता है।

देवरानी: छोडो बलदेव! राजपाल आरहा है।

देवरानी आकर दरवाजे पर खड़ी हो जाती है और राजपाल वहा से तेजी से चलता हुआ उधर आ गया था पर देवरानी को देख रुक जाता है।

राजपाल: क्या हुआ ऐसे क्यों चीखी?

देवरानी: महाराज वह मेरे पैर पर ठोकर लग गई थी।

राजपाल: बताओ कहा पर लगी चोट?

तभी बलदेव सोचता है कि अब छुपना बेकार है और दरवाजे के पीछे से निकल कर सामने आता है।

राजपाल: बलदेव तुम यहाँ...क्या कर रहे हो?

बलदेव: पिता जी पारस जाने की तैयारी में माता का हाथ बटा रहा था।

राजपाल: अच्छा बेटा!

बलदेव: अच्छा तो मुझे आज्ञा दीजिये! सामान बाँधना है।

बलदेव वापस दरवाजे के पीछे चला जाता है और राजपाल की आँखों से ओझल हो जाता है।

राजपाल अभी भी अपनी पत्नी देवरानी के दरवाजे के सामने खड़ा होकर बात कर रहा था, जो के दरवाजे और देवरानी से 4 हाथ की दूरी पर था।

राजपाल: सुनो देवरानी श्याम और बद्री को कुछ खिलाया पिलाया की नहीं?

देवरानी दरवाजे पर खड़ी-खड़ी बोलती है ।

"महाराज अभी कुछ देर में ही भोजन बन जाएगा कमला और राधा पकवान बना रही हैं।"

दरवाजे के पीछे छिपे बलदेव को शरारत सूझती है और वह किवाड़ के पट से सट कर खड़ी देवरानी की उभरी गांड को देखता है और उसकी गांड को अपने हाथो से सहलाने लगता है। जिसका असर देवरानी के चेहरे पर साफ दिख रहा था और उसके आख बीच-बीच में बंद हो जाती थी ।

राजपाल: और सुनो जितना हो सके तुमको जल्दी वापिस आना है और देवराज को मेरा प्रणाम कहना और मेरी और से साले साहेब से क्षमा मांगना ।

बलदेव देवरानी की गांड सहलाते हुए दबोच कर ज़ोर से मसलता है।

देवरानी: "आआआह" उह!

राजपाल: अब क्या हुआ?

देवरानी: कुछ नहीं वह खड़ी हूँ ना कब से तो मोच दुख रही है।

राजपाल: ठीक है। जाओ आराम करो!

राजपाल घूम कर जाने लगता है।

बलदेव गांड पर एक थप्पड़ मारता है और इस बार देवरानी ज़ोर से!

"आआआह!" करती है, जो जाते हुए राजपाल को भी सुनाई देती है।

राजपाल मन में "ये देवरानी पूरी पागल है।"

जैसे ही राजपाल देवरानी की आंखो से ओझल होता है। देवरानी वापस अपने कक्ष में आती है और देखती है कि बलदेव बिस्तर पर लेटा हुआ मुस्कुरा रहा था।

"बलदेव ये क्या बेवकूफी है। अगर राजपाल देख लेता तो?"

"माँ बस मेरा मन था, मैंने कर दिया।"

"किसी दिन जान चली जाएगी तुम्हारे इस मन के चक्कर में!"

"मां क्यों परेशान हो रही हो? अच्छा बोलो तुम्हें मजा आया या नहीं जब मैंने तुम्हारे पति के सामने तुम्हें मसला तो?"

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